Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 18-Aug- 2018 )
18-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - अमृतवेले उठ मेडीटेशन में बैठो, विचार करो - मैं आत्मा हूँ, हमारा बाबा बागवान है, वही खिवैया है, मैं उसकी सन्तान हूँ, मालिक बन ज्ञान रत्नों का सिमरण करो"
 
प्रश्नः-
 
किस एक बात का महत्व दुनिया में भी है तो बाप के पास भी है?
 
उत्तर:-
 
दान का। तुम बच्चों को रहमदिल बन सबके ऊपर तरस खाना है। सबको अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देना है। दानियों की बहुत महिमा होती है। अ़खबार में भी उनका नाम निकलता है। तो तुम्हें भी सबको दान करना है अर्थात् मेडीटेशन सिखलाना है।
 
गीत:-
 
मुझको सहारा देने वाले.......
 
ओम् शान्ति।
 
सहारा उनको दिया जाता है जो डूबते हैं, उनको पार करने के लिये सहारा देते हैं क्योंकि खिवैया नाम तो भारतवासी जानते हैं। खिवैया का काम है डूबने वाले को बचाना। बच्चे जानते हैं - भारतवासियों का बेड़ा डूबा हुआ है। हर बात भारतवासियों के लिये ही है। और कोई खण्ड के लिये नहीं कहेंगे। यह भी तुम समझते हो। सत्य नारायण की कथा अथवा अमरनाथ की कथा भी यहाँ होती है। तुम जबकि सुबह को मेडीटेशन में बैठते हो तो किसको याद करते हो? भक्ति मार्ग में तो कोई किसको, कोई किसको याद करते हैं। उन सबकी साधना है अयथार्थ। सिखलाने वाला खिवैया वा बागवान तो कोई है नहीं। गुरू लोग भी मेडीटेशन सिखलाते हैं कि ऐसे-ऐसे करो। बहुत प्रयत्न करते हैं याद में रहने के लिये। योग साधना कहा जाता है। वह तो मनुष्य, मनुष्य को कराते हैं। अभी तुम जानते हो इस बगीचे का माली अथवा मालिक है परमपिता परमात्मा। कांटों के जंगल का मालिक है रावण। माया रावण कांटों का जंगल बनाती है। यह तुम्हारी बातें भी कोई-कोई जानते हैं। भूल जाते हैं। माया भुला देती है। मेडीटेशन में बैठने में भी माया बड़ा विघ्न डालती है। मेडीटेशन कैसे करो - यह भी बाप सिखलाते हैं। तुम तो कर्मयोगी हो। दिन में तो कर्म करना ही है। उसके लिये कोई बंधन नहीं है। दिन में कभी भी मेडीटेशन नहीं होती है। दिन में तो खाना-पीना, खेलना-कूदना, धन्धाधोरी करना होता है। उसमें याद थोड़े-ही रह सकती है। कहते तो बहुत हैं कि हम सारा दिन याद में रहते हैं परन्तु है तो बड़ा मुश्किल। बाबा अनुभव बतलाते हैं। अमृतवेले का समय सतोगुणी होता है, उस समय याद करना सहज है। अमृतवेले का टाइम सबसे अच्छा है। दिन में तो लफड़े रहते हैं। हाँ, कर्म करते समय याद स्थाई रह सकती तो है बहुत अच्छा। परन्तु बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं - मैं कोशिश करता हूँ बाबा की याद में रह तुमसे बात करुँ। अन्दर यह नशा रहता है - मैं स्वयं बाप (प्रजापिता ब्रह्मा) बच्चों से बात करता हूँ। मैं स्वयं मनुष्य सृष्टि का बाप हूँ - ऐसा समझने से नशा चढ़ता है। बाकी मैं आत्मा हूँ, परमपिता परमात्मा बाप को याद कर बात करुँ, वह याद बड़ा मुश्किल रहती है। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं ना। बाप सिखलाते भी हैं। यह तो जानते हैं हम बागवान हैं। बागवान तो जरूर बगीचा ही बनायेंगे। कांटों को थोड़े-ही बनायेंगे। माली कांटों का बीज थोड़े-ही लगायेंगे। माली हमेशा बागवान होते हैं, फूल लगाते हैं। तो बाबा भी फूल लगाते हैं। फारेस्ट बनाने वाली है माया। उनकी मत पर चलने से मनुष्य कांटे बन जाते हैं। यह तो ज्ञान मिला है - बाबा बागवान है, खिवैया है, रहमदिल भी है, बीजरूप भी है। रात को जब बैठते हैं तो ख्याल चलता है - यह कितना बड़ा बगीचा है! पहले कितना छोटा था! तो योग के साथ-साथ ज्ञान भी चाहिए। मनुष्यों के पास ज्ञान तो कुछ भी नहीं है। अनेक प्रकार के योग लगाते हैं। किसी किसी की याद में बैठते होंगे। ज्ञान की बात ही नहीं। काली माँ की याद में बैठे होंगे तो सिर्फ काली की शक्ल ही सामने आयेगी। जगदम्बा को याद करते रहेंगे। वह है भक्ति मार्ग। बाप की याद, वर्से की याद रहती है। भक्ति बहुत तरीके से करते हैं। माला फेरते हैं। कोई तो गुप्त फेरते हैं। हमारी भी है गुप्त माला। तो यह रस्म-रिवाज भक्ति मार्ग में कितनी चलाते हैं। बाबा को छोटेपन का अनुभव है। जैसे बाप फेरते थे, हम भी उनको देख एक कोठरी में बैठ माला फेरते थे। राम-राम कहते थे। बस, ज्ञान कुछ भी नहीं। अभी तुम बच्चों में तो ज्ञान है। अमृतवेले इस मेडीटेशन में बैठने की आदत पड़ जाये तो बड़ा मजा आयेगा। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं। ज्ञान में भी रमण करते रहते हैं। कितना बड़ा बगीचा है। पहले छोटा था। बीज भी याद आया, बगीचा भी याद आया। कैसे बगीचा बनता है - बाबा में भी यह ज्ञान है, हमारे में भी यह ज्ञान है। सारा झाड़ बुद्धि में जाता है। अन्दर चलता रहता है, इसको मेडीटेशन कहा जाता है। बाप की भी खुशी, ज्ञान की भी खुशी रहती है। दोनों चीजें याद आती हैं। वह तत्व ज्ञानी ऐसे मेडीटेशन में नहीं बैठते हैं। उनको तो जरूर तत्व ही याद आयेगा। बस, तत्व में लीन हो जाना है। रचयिता और रचना का तो उन्हों को पता ही नहीं है। तो उन्हों की और तुम बच्चों की बात और है।
 
बाबा बीजरूप है - हमको यह नॉलेज है। रात को बैठने से अच्छे-अच्छे ख्यालात आयेंगे। समझ सकते हैं भक्ति मार्ग में क्या-क्या करते थे। कितने हठयोग आदि सिखलाते हैं। अभी तो समझ मिली है बाप को याद करने से उनकी सारी रचना (झाड़) याद जाती है। हम 84 जन्मों का चक्र लगाकर आये हैं। अभी हम जाते हैं वापिस। यह ड्रामा का चक्र फिरता रहता है। ज्ञान धन को भी याद करते, धन देने वाले को भी याद करते हैं। जितना याद में रहेंगे उतना अवस्था परिपक्व होती जायेगी। तुम किसको भी समझा सकते हो - मेडीटेशन में हम कैसे बैठते हैं। मनुष्यों को तो अनेक प्रकार की मत मिलती है - फलाने को याद करो। यहाँ हम सब एक मत पर हैं, एक की ही याद में रहते हैं। छोटे, बड़े, बूढ़े - सबको एक ही मत मिलती है। मेडीटेशन में तो बैठना होता है ना। हम आत्मा सो परमात्मा तो हो नहीं सकते। आत्मा कहती है - हमने 84 जन्म पूरे किये, अब वापिस जाना है। परमात्मा ऐसे कहेंगे क्या? वह तो पुनर्जन्म में आते नहीं हैं। तुम्हारे पास जब कोई आये तो उसे हाल में ले आओ। कोई अच्छे-अच्छे आदमी आते हैं, देखो, समझने की चाहना है तो यहाँ ले आओ, उन्हें समझाओ कि हम कैसे मेडीटेशन करते हैं। रात में भी मेडिटेशन करते हैं, दिन में भी करते हैं। हम याद करते हैं एक बाप को। बाप का फ़रमान है - मुझे याद करो और रचना के चक्र को याद करो। 84 जन्म भी गाये जाते हैं। जरूर पहले-पहले देवी-देवतायें थे। उन्हों के ही 84 जन्म भी गाये जाते हैं। यह चक्र का राज़ अच्छी रीति समझाना पड़े। हमको बाप और उनकी रचना का यह चक्र याद रहता है। बाप की याद और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान बुद्धि में है। हम सबकी एक ही मत है। हम हैं श्रीमत पर। वह पतित-पावन बाप ही आकर बेहद स्वर्ग का वर्सा देते हैं। तो बाप को जरूर याद करना पड़े ना। बाप द्वारा ही हम वर्सा पाते हैं। फिर गिरते हैं, अन्त में पतित बन जाते हैं। बाप रचयिता तो रचना की ही नॉलेज देंगे। गॉड फादर इज़ नॉलेजफुल, पतित-पावन। तो जरूर पतित दुनिया में आकर पावन बनायेंगे ना। ऐसे तुम कोई को बैठ समझायेंगे तो प्रभावित होंगे। बोलो, सिर्फ अच्छा-अच्छा कहकर नहीं जाओ, यह तो प्रैक्टिकल में लाना है। जन्म-जन्मान्तर का सिर पर बोझा बहुत है। इसमें टाइम लगता है।
 
तुमको समझाना है - बाबा आया हुआ है, मौत सामने है, ग़फलत करेंगे तो वर्सा पा नहीं सकेंगे। शुभ कार्य में देरी नहीं करना चाहिए। अब सीखकर जाओ। इस मेडीटेशन में बैठने से तुमको नशा अच्छा चढ़ेगा। अभी बाप को याद करो। तुम्हारा बाप तो है ना। भक्ति मार्ग में जन्म-जन्मान्तर याद करते आये हो। लौकिक बाप तो हर जन्म में बदलता है फिर भी तुम निराकार बाप को जरूर याद करते हो क्योंकि वह है अविनाशी बाप। विनाशी (लौकिक) बाप से विनाशी वर्सा मिलता है। अविनाशी बाप से अविनाशी वर्सा मिलता है। हम एक श्री श्री की श्रीमत से श्रेष्ठ बनते हैं। आदि सनातन तो देवी-देवता धर्म ही है। उनसे फिर और बिरादरी निकलती हैं। सन्यासियों का है रजोप्रधान सन्यास। यह है सतोप्रधान सन्यास। यह है ही राजयोग।
 
भारत का मुख्य शास्त्र है गीता। तो मेडीटेशन के लिये यह समझाना है - बाप हमको ऐसे मेडीटेशन सिखलाते हैं। भगवान् कभी मनुष्य को नहीं कह सकते। भगवान् तो सबका एक होना चाहिये ना। वही पतित-पावन है, वही हेविनली गॉड फादर है और आते भी भारत में हैं। उनका भक्ति मार्ग में कितना बड़ा मन्दिर बना हुआ है। उस श्री श्री की मत से ही हम श्रेष्ठ बनते हैं। इन बातों को बैठ समझो। बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानो। यह और कोई नहीं जानते। सतयुग की आयु ही इतनी बतलाते हैं। पहले झाड़ नया होता है तो उसको स्वर्ग कहेंगे। फिर वह जड़जड़ीभूत हो जाता है। अभी यह सारी दुनिया नर्क है। घर-घर तो क्या सारी दुनिया ही नर्क है। यह है ही कांटों का जंगल। एक-दो को कांटा ही लगाते रहते हैं। बाप आकर फिर गार्डन ऑफ अल्लाह बनाते हैं। बाप आकर बहिश्त स्थापन करते हैं। तुम जानते हो फूलों का बगीचा किसको और कांटों का जंगल किसको कहा जाता है। तुम दैवी फूल बन रहे हो। तो चिन्तन चलता रहना चाहिए। बाबा में भी यह नॉलेज है। बच्चों में भी यह नॉलेज है। ऐसे-ऐसे ख्यालात चलाने से रात को बड़ा मजा आयेगा, ऐसे-ऐसे समझायें। बिचारे कुछ नहीं जानते हैं इसलिए अपने को तरस पड़ता है। गॉड फादर कहते हैं। परन्तु बाप को और उनकी रचना को जानते नहीं हैं। हम भी अब अल्लाह के बच्चे बने हैं। समझाने का भी बड़ा नशा चाहिए। अविनाशी ज्ञान रत्न हैं तो फिर दान करना चाहिए। दानी की बहुत-बहुत महिमा करते हैं। अ़खबार में भी पड़ता है। रिलीजस माइन्डेड ही दान करते हैं। तुम तो हो ही रिलीजस माइन्डेड। दान ही नहीं करेंगे तो मिलेगा क्या? दान तो जरूर देना है। ज्ञान दान देना तो अति सहज है। बाबा बतलाते हैं - हम ऐसे मेडीटेशन में बैठते हैं, इस दुनिया का चक्र ऐसे फिरता है। पहले एक धर्म था। पीछे यह धर्म निकले हैं। यह सब बिरादरियां हैं। यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में बैठनी चाहिए। मनुष्यों को योग का बहुत शौक रहता है। बोलो, हमारा मेडीटेशन चलकर देखो। रिलीजस माइन्डेड जो होते हैं वह मेडीटेशन हाल देखकर खुश होते हैं। रिलीजस माइन्डेड मनुष्य कभी पाप नहीं करते। तुम्हारे पास समझाने की प्वाइन्ट्स तो बहुत हैं। परन्तु बच्चे नम्बरवार हैं। कोई की बुद्धि का ताला ही नहीं खुलता है। बाप को याद नहीं करते तो ताला खुलेगा कैसे? है बहुत सहज बात। समझाना है हम याद में कैसे बैठते हैं। मनुष्यों को तो पता नहीं कि हम किसको याद करते हैं! हमको सिखलाने वाला स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा है जो सबका बाप है। वह पतित-पावन गॉड फादर हमको राजयोग सिखलाते हैं। अब तुम सीखो, सीखो। हम सबकी तो एक ही मत है। श्री श्री से हम मत ले रहे हैं। यह है एम ऑब्जेक्ट। जैसे बाप नॉलेजफुल, वैसे बच्चे। मनुष्य से देवता एक ही बाप बनाते हैं। ऐसे-ऐसे विचार करने से रात को भी बहुत मजा आयेगा। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1) अमृतवेले उठ याद में बैठ ज्ञान का रमण करना है। ज्ञान धन को भी याद करना है तो ज्ञान दाता को भी याद करना है।
 
2) ईश्वरीय नशे में रहकर सेवा करनी है। सबको मेडीटेशन करने की सहज विधि समझानी है। एकमत होकर रहना है।
 
वरदान:-प्युरिटी की पर्सनैलिटी और रॉयल्टी द्वारा बाप के समीप आने वाले देही-अभिमानी भव
 
जैसे शरीर की पर्सनैलिटी आत्माओं को देहभान में लाती है, ऐसे प्युरिटी की पर्सनैलिटी देही-अभिमानी बनाए बाप के समीप लाती है। प्युरिटी की पर्सनैलिटी आत्माओं को प्युरिटी की तरफ आकर्षित करती है, प्युरिटी की रॉयल्टी धर्मराजपुरी की रॉयल्टी देने से छुड़ा देती है। इसी रायॅल्टी अनुसार भविष्य रायॅल फैमली में सकेंगे। देही-अभिमानी बच्चे इस पर्सनैलिटी द्वारा बाप का साक्षात्कार कराने वाले रूहानी दर्पण बन जाते हैं।
 
स्लोगन:-हरेक की विशेषता को देखने का चश्मा सदा लगा रहे तो विशेष आत्मा बन जायेंगे।
 
 
18/08/18              Morning Murli   Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, wake up in the early morning hours of nectar and sit in meditation. Think: I am a soul and my Baba is the Master of the Garden. He is the Boatman and I am His child. Become a master and churn the jewels of knowledge.
 
Question:
 
Which one aspect is given importance by the world outside and also by the Father?
 
Answer:
 
That of donating. You children have to become merciful and have compassion for everyone. Give the donation of the imperishable jewels of knowledge to everyone. Donors are praised a great deal. Their names are mentioned in the newspapers. You also have to donate to others, that is, teach them meditation.
 
Song:
 
My heart says thanks to the One who has given me support. 
 
Om Shanti
 
Support is given to those who are drowning. They are given support in order to take them across because the people of Bharat recognise the term “The Boatman”. The task of a boatman is to save someone from drowning. You children understand that the boat of the people of Bharat has sunk. Every aspect applies to the people of Bharat. This cannot be said of the people of any other land. It is only you who understand this. The story of becoming a true Narayan, that is, the story of immortality, takes place here. When you sit in meditation in the early morning hours, whom do you remember? On the path of devotion, some remember one deity and others remember another. All their spiritual endeavours are inaccurate because they don’t have the Boatman or the Master of the Garden to teach them. Gurus teach people meditation and tell them what to do. They make a great deal of effort to stay in remembrance. Yoga is called spiritual endeavour. Human beings teach that to other human beings. You now understand that the Supreme Father, the Supreme Soul, is the Gardener of this garden, that He is the Master of the Garden. Ravan is the master of the forest of thorns. Maya, Ravan creates the forest of thorns. Only a few people understand your things; they forget them. Maya makes them forget. Maya creates huge obstacles when you sit in meditation. The Father also teaches you how to have meditation. You are karma yogis. You have to perform actions during the day. There is no bondage in this. They cannot have meditation during the day. During the day there is eating, drinking, playing, dancing and doing business etc. They are not able to maintain remembrance whilst doing any of that. Many say that they stay in remembrance throughout the whole day. However, that would be very difficult. Baba shares his own experience. The time of the early morning hours of nectar is the purest time of all. It is easy to have remembrance at that time. The time of amrit vela is the best of all. There are many things that you have to attend to during the day. Yes, it is good if you are able to have constant remembrance whilst doing things. However, Baba shares his experience: I try very hard to talk to you whilst staying in remembrance of Baba. Internally, I have the intoxication: I, the father, Prajapita Brahma, am speaking to you children. I am the father of the human world. I become intoxicated with this consciousness, but I find it very difficult to maintain the consciousness that I am a soul and that I am talking to you whilst staying in remembrance of the Supreme Father, the Supreme Soul. That remembrance is very difficult. Baba shares his experience. The Father also teaches you. He (Shiv Baba) understands that He is the Master of the Garden. A gardener would surely create a garden. He would not create thorns. A gardener would not plant thorns. A gardener is always the master of the garden; he plants flowers. Therefore, Baba too plants flowers. It is Maya that creates the forest of thorns. By following her directions, human beings become like thorns. You have received the knowledge that Baba is the Gardener; He is the Boatman; He is also the Merciful One and He is the Seed as well. When you sit in meditation at night, you have the thought that this garden is so huge! Previously, it used to be very small. As well as yoga, knowledge is also needed. Human beings don’t have any knowledge. They have many types of yoga: they must be sitting and remembering someone or other. There is no question of knowledge in that. When they sit to remember Mother Kali, only the face of Kali appears in front them at that time. They also continue to remember Jagadamba. That is the path of devotion. Neither do they have remembrance of the Father nor do they remember the inheritance. They perform devotion in many different ways. Some turn the beads of a rosary, some turn the beads in an incognito way. Your rosary is also incognito. They have so many customs and systems on the path of devotion. Baba has experienced this in his childhood: My father used to turn the beads of a rosary. Then, when I saw him, I too used to sit in a little room and turn the beads of a rosary. He used to chant: Rama! Rama! That’s all! He had no knowledge. You children now have knowledge. When you form the habit of sitting in this meditation in the early morning hours of nectar, you will experience a great deal of pleasure. Baba shares his experience. He also continues to churn this knowledge. This is such a huge garden! Previously it used to be small. When you remember the Seed you will also remember the garden. How is the garden created? Baba has this knowledge and you also have this knowledge. The whole tree enters your intellects. All of this spins inside you. This is called meditation. You have the happiness of belonging to the Father and you also have the happiness of knowledge; you remember both things. Those who have the knowledge of the element of light do not sit in meditation in this way. They only remember the element of light. All they want is to merge into the element. They don’t know the Creator or His creation and so their ideas are totally different from those of you children. You have the knowledge that Baba is the Seed. By sitting in meditation at night, you can have very good thoughts. You can understand what you used to do on the path of devotion. People teach many types of hatha yoga etc. You have now understood that, by remembering the Father, you are able to remember the whole of His creation (tree). You have been around the cycle of 84 births and you are now going back home. This cycle of the drama continues to turn. You remember the wealth of knowledge and also remember the One who gives you this wealth. The more you stay in remembrance, the firmer your stage will become. You can explain to anyone how you sit in meditation. Human beings receive many different instructions to remember So-and-so. Here, all of you are following one direction. You stay in remembrance of the One. Young, old, everyone receives the same direction. You have to sit in meditation. We souls cannot be the Supreme Soul. The soul says: I have completed 84 births; I now have to return home. Would the Supreme Soul say this? He doesn’t take birth and rebirth. When people come to you, take them to the hall. When you see eminent people coming here to understand more, bring them here and explain to them how we sit in meditation, how we meditate in the night as well as during the day and how we only remember the one Father. The Father’s orders are: Remember Me and remember the cycle of creation; 84 births have also been remembered. It was surely the deities who existed first. It is their 84 births that have been remembered. You have to explain the secrets of the cycle very clearly. You remember the Father and the cycle of His creation. Your intellects have remembrance of the Father and also the knowledge of the beginning, the middle and the end of creation. We all follow one direction. We are following shrimat. The Purifier Father comes and gives you your unlimited inheritance of heaven and so you definitely have to remember the Father. It is from the Father that you claim your inheritance. Later, you fall and you become impure by the end. The Father is the Creator and so He would surely give the knowledge of creation. God, the Father, is knowledge-full, the Purifier. Therefore, He would definitely come into the impure world in order to purify it. If you sit and explain this to others, they will be very impressed. Tell them: Don’t simply say that this is good and then leave. You have to put it into practice. There is a burden of sin of innumerable births on your heads and it takes time to remove it. You have to explain to them: Baba has come, and death is standing just ahead. If you become careless, you will not be able to claim your inheritance. You must not delay in carrying out an auspicious task. Learn and go. By sitting in meditation you will experience a great deal of intoxication. Now remember the Father. He is your Father, the One whom you have been remembering on the path of devotion for birth after birth. You have had a different physical father in every birth, but you still definitely remember the incorporeal Father because He is your eternal Father. You receive a perishable inheritance from your physical father. You receive the imperishable inheritance from the imperishable Father. You become elevated by following the shrimat of the One who is doubly elevated (Shri shri). The original eternal religion is that of the deities; the different clans emerge from that. The renunciation of sannyasis is of a semi -pure level whereas your renunciation is completely pure. This is Raja Yoga. The main scripture of Bharat is the Gita. As for meditation, you have to explain: The Father teaches us meditation in this way. No human being can be called God. The God of everyone has to be one. He is the Purifier. He is Heavenly God, the Father, and He only comes in Bharat. A huge temple was built to Him on the path of devotion. We become elevated by following the directions of the One who is doubly elevated. Sit and understand these things. Understand the Father and the beginning, the middle and the end of His creation. No one else knows this. The duration of the golden age is shown to be just this much. When the tree is new, it is called heaven. After that, it starts to decay. This whole world is now hell. Not only every home, but also the whole world has become hell. This is the forest of thorns. They continue to prick one another. The Father has come to create the garden of Allah. The Father comes and establishes Paradise. You understand what is known as the garden of flowers and what is known as the forest of thorns. You are becoming divine flowers. You should continue to have these thoughts. Baba has this knowledge and you children also have this knowledge. By having such thoughts at night, you will experience great pleasure. You should explain in this way, because those poor helpless things do not know anything and that is why you feel compassion for them. They call out: O God, the Father! However, they don’t know the Father or His creation. We have now become the children of Allah. There should be great intoxication whilst explaining this. You have the imperishable jewels of knowledge so you should donate them. Donors are praised a great deal. Their names are mentioned in the newspapers. It is religious-minded people who give donations. You are religious minded. If you don’t make this donation, what would you receive? You definitely have to donate. It is very easy to donate knowledge. Baba tells you how to sit in meditation and how the cycle of the world turns. Previously, there was one religion. Then other religions later emerged. All of those are clans. These things should sit in the intellects of you children. Human beings are very interested in yoga. Tell them: Come and try our meditation. Those who are religious minded will become happy when they see the meditation hall. Religious-minded people never commit sin. Although you children have many points to explain, you are numberwise. The locks on the intellects of some of you do not open at all. How would the lock open if you don’t remember the Father? This is something very easy. You have to explain how you sit in remembrance. People don’t even know who it is we remember. The incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, Himself, who is the Father of all, is teaching us. He is the Purifier, God the Father , and He is teaching us Raja Yoga. It is now up to you whether you study or not. All of us are following one direction. We are taking directions from the One who is doubly elevated. This is the aim and objective. Just as the Father is knowledge-full , so are His children. Only the one Father can change humans into deities. By having such thoughts at night also you will experience great pleasure. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Awaken in the early morning hours of nectar, churn the knowledge whilst sitting in remembrance. Remember the wealth of knowledge as well as the Bestower of Knowledge.
 
2. Stay in Godly intoxication and do service. Show everyone the easy way to do meditation. Remain in harmony by following one direction.
 
Blessing:
 
May you be soul conscious and with the personality and royalty of purity thereby come close to the Father.
 
Just as a physical personality can bring souls into body consciousness, in the same way, the personality of purity makes you soul conscious and brings you close to the Father. The personality of purity attracts souls towards purity. The royalty of purity frees you from having to pay any royalty to Dharamraj. According to this royalty you can come into the royal family in the future. Soul-conscious children with this personality become spiritual mirrors to grant a vision of the Father.
 
Slogan:Always wear the spectacles of seeing each one’s speciality and you will become a special soul.

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