Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK_MURALI
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month -DECEMBER 2017 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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31 Image Murali 31-Dec-2017 31865 2018-01-02 01:02:44
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Details ( Page:- Murali 1-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 01.12.17      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe Mithe bacche-Baap bhal yahan tumhare samookh hai lekin yaad tumhe Shantidham ghar me karna hai-tumhara buddhi yog sada upar latka rahe.
Q- Aho bhagya kin baccho ka kahenge aur kyun?
A- Jin baccho ki buddhi me Baap ki knowledge aayi,unka hai aho bhagya kyunki gyan milne se sadgati ho jati hai.Tum Biswa ke mallik ban jate ho.Baki jab tak gyan nahi hai tab tak koi Shiv Baba par sarir bhi hom de lekin prapti sirf alpkaal ki hoti hai.Baap ka varsha nahi milta hai.Bhakti me bhavna ke chane mil jate hain,sadgati nahi milti.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
 1)Ghar-ghar ko mandir banana hai.Parivaar walo ki bhi seva karni hai.Oonche gyan ka simran kar khushi se jholi bharni hai.
2)Kisi bhi dehadhari ko yaad nahi karna hai.Apna buddhi yog upar latkana hai.Suhavne sangam yug par jeete ji Parlokik Baap ka banna hai.
 
Vardaan:- Gyan,goon aur shaktiyon se sampann ban daan karne wale Mahadani bhava.
Slogan:-- Jo ek Baap se prabhavit hain un par kisi aatma ka prabhav pad nahi sakta.


English Summary ( 1[sup]st[/sup] Dec 2017 )
Headline - Sweet children, although the Father is here, face-to-face with you, you still have to remember Him in His home, the land of peace. Let your intellects always remain in yoga up above.
Question:For which children would you say, "Oho, fortune!" and why?
Answer:
"Oho, fortune!" is said of the children whose intellects have the Father's knowledge because, by receiving knowledge, you attain salvation, you become the masters of the world. Without having knowledge, even if they were to sacrifice their bodies to Shiv Baba, they would only receive temporary attainment. Unless they have knowledge; they won't receive the Father's inheritance. In devotion they receive chickpeas (a little something) because of their devotional love, but they do not receive salvation.
Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Make every home into a temple. Serve even your family members. Churn the elevated knowledge and fill your aprons with happiness.
2. Don't remember any bodily beings. Connect your intellects in yoga up above. At the beautiful confluence age, belong to the Father from beyond while alive.
 
Blessing: May you be a great donor filled with knowledge, virtues and powers and donates them.
Throughout the day, be a great donor and donate any power, knowledge or virtues to any soul who comes in contact with you. The spiritual meaning of the word “donation” is to give co-operation. You have the treasures of knowledge and also the treasures of powers and virtues. Become full of all three, not just one. No matter what a soul may be like, even if he is someone who insults or defames you, donate virtues to that one too with your attitude and your stage.
Slogan:Those who are impressed with the one Father cannot be impressed by any other soul.
 
 
HINDI DETAIL MURALI

01/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे ''मीठे बच्चे - बाप भल यहाँ तुम्हारे सम्मुख है लेकिन याद तुम्हें शान्तिधाम घर में करना है - तुम्हारा बुद्धियोग सदा ऊपर लटका रहे''
 
प्रश्न:अहो भाग्य किन बच्चों का कहेंगे और क्यों?
 
उत्तर:
जिन बच्चों की बुद्धि में बाप की नॉलेज आई, उनका है अहो भाग्य क्योंकि ज्ञान मिलने से सद्गति हो जाती है। तुम विश्व के मालिक बन जाते हो। बाकी जब तक ज्ञान नहीं है तब तक कोई शिवबाबा पर शरीर भी होम दे लेकिन प्राप्ति सिर्फ अल्पकाल की होती है। बाप का वर्सा नहीं मिलता है। भक्ति में भावना के चने मिल जाते हैं, सद्गति नहीं मिलती।
ओम् शान्ति।
 
बच्चों की दिल में सदैव रहता है कि बाबा आकर हमको पढ़ाते हैं। यहाँ तो सम्मुख बैठे हो। बुद्धि में आता है - हमारा बाबा आया हुआ है। कल्प पहले मुआफिक फिर से हमको राजयोग सिखलाकर पवित्र बनाए साथ ले जायेंगे। यह भी तुम बच्चे जानते हो। हम जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना जाकर ऊंच पद पायेंगे। यह बुद्धि में रहता है। बच्चे जानते हैं अभी भक्ति मार्ग खत्म होना है। भक्ति और ज्ञान दोनों इकट्ठे नहीं चलते हैं। जो भी मनुष्य पूजा आदि करते हैं, शास्त्र पढ़ते हैं, वह कोई ज्ञान नहीं है। वह भक्ति है। बाप भी कहते हैं मीठे बच्चे वेद-शास्त्र आदि अध्ययन करना, जप-तप आदि करना, यह जो कुछ भक्ति आधाकल्प से करते आये हो उसको ज्ञान नहीं कहेंगे। ज्ञान का सागर एक ही बाप है। वह तुमको बिल्कुल सही रास्ता बताते हैं कि बच्चे अब मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है। बुद्धियोग ऊपर में लटका हुआ होना चाहिए। ऐसे नहीं कि बाबा यहाँ है तो बुद्धि भी यहाँ रहे। भल बाबा यहाँ है तो भी तुमको बुद्धियोग वहाँ शान्तिधाम में लगाना है। ज्ञान है ही एक सेकण्ड का। भक्ति तो आधाकल्प चली है और आधाकल्प तुमको वर्सा मिलना है। भक्ति और ज्ञान दोनों इकट्ठे हो न सकें। दिन और रात अलग-अलग हैं। यह है बेहद का दिन और रात। ब्रह्मा का दिन सो बी.के. का दिन। बच्चे जानते हैं हम देवता बन रहे हैं। सतयुग को कहा जाता है जीवनमुक्तिधाम। यह है जीवनबंध धाम। इस समय सब रावण के बंधन में हैं, शोकवाटिका में हैं। तुमको अब पता पड़ा है - शोक वाटिका किसको और अशोक वाटिका किसको कहा जाता है। भक्ति है उतरती कला का मार्ग।
बाप कहते हैं - अब वापिस मुक्तिधाम चलना है। ऐसे कोई कह नहीं सकते कि मेरे बच्चे अब सबको मुक्तिधाम चलना है अर्थात् जीवनबंध से लिबरेट होना है। फिर पहले कौन सा धर्म जीवनमुक्ति में आना है? यह भी तुम बच्चे जानते हो, खेल सारा भारत पर ही है। बाकी बीच में बाईप्लाट हैं। अपना उनसे कोई कनेक्शन नहीं है। ज्ञान और भक्ति की बातें मनुष्य नहीं समझ सकते। उनका पार्ट ही नहीं है। पार्ट है ही तुम भारतवासियों का। सतयुग आदि में देवी-देवता ही थे, अब कलियुग में अनेक धर्म हैं। तुम्हारा यह है लीप जन्म, कल्याणकारी जन्म। यह संगम का सुहावना युग है ना। तुम जानते हो लौकिक बाप के भी हम हैं फिर जीते जी पारलौकिक बाप के बने हैं। लौकिक बाप भी है और पारलौकिक बाप भी हाज़िराहज़ूर है। तुम्हारी आत्मा कहती है बाबा आप परमधाम से आये हो हमको वापिस ले जाने। बाप बच्चों से ही बात कर सकते हैं। जैसे आत्मा को इन ऑखों से देख नहीं सकते हैं, वैसे परमात्मा को भी देख नहीं सकते। हाँ दिव्य दृष्टि से साक्षात्कार हो सकता है। दिखाते हैं कि विवेकानन्द को साक्षात्कार हुआ कि रामकृष्ण की आत्मा निकल मेरे में समा गई। परन्तु आत्मा समा तो नहीं सकती। बाकी आत्मा का साक्षात्कार होता है। परमात्मा का भी यथार्थ रूप बिन्दी है। परन्तु गाया हुआ है वह हजारों सूर्यों से भी तेजोमय है। तो परमात्मा अगर वह साक्षात्कार न कराये तो कोई का विश्वास न बैठे। बिन्दी रूप के साक्षात्कार से कोई समझ न सके क्योंकि उनको कोई जानते ही नहीं। यह नई बात बाबा ही बतलाते हैं। परम आत्मा बड़ी चीज़ तो हो न सके। वह अति सूक्ष्म से सूक्ष्म है। उनसे सूक्ष्म कुछ भी है नहीं। यह भी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि आत्मा और परमात्मा जो बिन्दी रूप है, उनमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है। आत्मा में 84 जन्मों का अपना-अपना पार्ट नूँधा हुआ है। कितनी विचित्र बात है। बाप बिगर कोई समझा न सके। यह बातें तुम विलायत वालों को समझाओ तो वन्डर खायें और तुम्हारे ऊपर कुर्बान जायें। प्राचीन भारत का ज्ञान और योग तुम ही समझा सकते हो। पहले-पहले यह समझाना है कि आत्मा परमात्मा क्या वस्तु है। आत्मा के लिए कहते हैं स्टार है। परमात्मा के लिए नहीं कहेंगे कि वह स्टार है। आत्मा कोई छोटी बड़ी नहीं होती है। वह है ही एक बिन्दी, जो एक शरीर छोड़ दूसरे में प्रवेश करती है। तुम बच्चे समझते हो ड्रामा में जो कुछ चलता है, वह नूँध है। चक्र फिरता रहता है। यह सब बुद्धि में प्रैक्टिकल आना चाहिए। दुनिया तो इन सब बातों को जानती नहीं है। सबसे तीखी दौड़ी आत्मा की है, एक सेकण्ड में कहाँ की कहाँ चली जाती है। सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है। तो सेकण्ड में आत्मा भी वहाँ पहुँचती है। आत्मा कहती है मेरे से तीखा और कुछ है नहीं। मेरे से छोटा और कोई है नहीं। छोटी सी आत्मा में सारी नॉलेज है। उनको कहा जाता है गॉड इज नॉलेजफुल। आगे कहते थे भगवान सब कुछ जानते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि एक-एक के दिल को बैठ जानते हैं। यह तो ड्रामा में सब कुछ नूँध है।
बाप समझाते हैं मैं इस झाड़ का बीज रूप हूँ। झाड़ का बीज अगर चैतन्य हो तो समझाये कि मैं ऐसे धरनी में रहता हूँ। गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रचते हैं। बीज तो एक है ना। तुम आत्मा यहाँ शरीर धारण कर पार्ट बजाती हो। बाप कैसे आकर प्रवेश करते हैं - यह तुम बच्चों को अब मालूम पड़ा है। बाप आकर नॉलेज देते हैं, सदैव बैठा नहीं रहता। बाप ने समझाया है जब झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था होती है, तब ही मैं आता हूँ। अभी सहायता के लिए बहुत यज्ञ रचेंगे। यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ। कृष्ण ज्ञान यज्ञ हो न सके। कृष्ण तो देवता था। द्वापर में आ न सके। देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हैं। कृष्ण देवता द्वापर में कैसे आ सकता? रावणराज्य में देवतायें पैर नहीं रखते। तुम बच्चे जानते हो आत्मा अविनाशी है। आत्मा में ही संस्कार रहते हैं। शरीर तो खत्म हो जाता है। आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार रहते हैं। अब तुम समझते हो जो भी मनुष्य मात्र हैं वह ड्रामा प्लैन अनुसार चल रहे हैं। आगे यह नहीं समझते थे कि सृष्टि किस आधार पर चलती है। ईश्वर के आधार पर तो है नहीं। यह तो बना बनाया खेल है जो फिरता रहता है। ऐसे नहीं ईश्वर के आधार पर खड़ा है। जैसे तुम्हारा पार्ट है वैसे परमात्मा का भी पार्ट है। साक्षात्कार भी मैं कराता हूँ। भक्ति मार्ग में हर एक की मनोकामना अल्पकाल के लिए पूरी होती है। दान-पुण्य आदि जो कुछ करते हैं उसका अल्पकाल के लिए सुख मिलता है। थोड़ा सा सुख मिला फिर ऐसा कर्म करते हैं जो उनको भोगना पड़ता है। कहते हैं भावी के भूगरे (चने) भी अच्छे। भक्तिमार्ग में मेहनत करते हैं, मिलता क्या है? चने। शिवबाबा पर भल शरीर भी होम देते हैं तो भी मिलते भूगरे हैं, वर्सा तो मिल न सके। काशी कलवट खाने समय विकर्म भल नाश होंगे फिर शुरू हो जायेंगे। तो भावना के भूगरे हुए ना। ज्ञान मार्ग में तुमको देखो कितना मिलता है। एकदम तुम विश्व के मालिक बन जाते हो। यह कोई की बुद्धि में अगर नॉलेज आ जाये तो अहो भाग्य। ज्ञान से सद्गति होती है। इसको नॉलेज कहा जाता है। यह बाप के सिवाए कोई दे न सके। शास्त्र कितने ढेर पढ़ते हैं। बहुत होशियार हो जाते हैं फिर वह संस्कार ले जाते हैं। अच्छा उनको मिलता क्या है? भूगरे, और तो कुछ नहीं। नीचे गिरते ही आते हैं। समझो कोई का राजा के घर में जन्म होता है, खुशी मनाते हैं भल वह राजकुमार है, परन्तु तुम कहेंगे उनको चने मिले। कहाँ हमको बाप विश्व का मालिक बनाए बादशाही देते हैं, कहाँ वह भूगरे (चने)। कोई बहुत दान करते हैं। भल जाकर राजा के पास जन्म लिया तो भी तुम्हारी भेंट में भूगरे हैं। तो अब राजाई पद का पुरुषार्थ करना चाहिए, लौकिक बाप भी बच्चों को देख बहुत खुश होते हैं। यह है बेहद का माँ बाप, जिससे 21 जन्मों का सुख मिलता है। आजकल देखो दुनिया में दु:ख बढ़ता जा रहा है। अभी दु:खधाम की अन्त है। पारलौकिक बाप से बच्चों को क्या मिलता है? लौकिक से क्या मिलता है? फ़र्क कितना है। यहाँ कर्मों अनुसार कोई गरीब बनता है - कोई कैसे बनते हैं। वहाँ गरीब भी सुखी रहते हैं। नाम ही है सुखधाम। यह है दु:खधाम। सन्यासी लोग कहते हैं हमने घरबार छोड़ा है, पवित्र बने हैं, भारत को पवित्र रखने के लिए। गवर्मेन्ट भी उनका मान रखती है। परन्तु दु:खधाम को सुखधाम बनाना - यह बाप का काम है। सर्व को शान्तिधाम, सुखधाम ले जाना है क्योंकि यह तो सारी दुनिया का प्रश्न है। भारत जब श्रेष्ठाचारी था तब देवतायें थे। बाबा ऐस्से (निबन्ध) देते हैं, युक्ति से लिखना चाहिए। देवतायें 84 जन्मों का चक्र लगाकर आये हैं फिर मनुष्य से देवता बनते हैं। मनुष्य से देवता बाप ही बनायेंगे और कोई की ताकत नहीं। सन्यासियों से भारत को कुछ फ़ायदा है। पवित्र रहते हैं, आगे तो रचता रचना के लिए कहते थे बेअन्त है, हम नहीं जानते हैं। अभी तो कह देते हैं हम भगवान हैं। तत्व को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। बाप के महावाक्य हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। पतित-पावन मैं हूँ। सारी दुनिया को आकर पावन बनाता हूँ। सारे भंभोर को आग लगनी है। सारी दुनिया अज्ञान निंद्रा में सोई हुई है। ड्रामा प्लैन अनुसार सारी दुनिया नास्तिक है। बाप कहते हैं मैं आकर सबको आस्तिक बनाता हूँ। अभी जो बिल्कुल तमोप्रधान बने हैं वो अपने को भगवान कह देते हैं। तुम तो इस सृष्टि चक्र के राज़ को जानने से चक्रवर्ती राजा बनते हो। महावीर बनते हो। तुमको तो प्रालब्ध में माल मिलते हैं। उनको क्या मिलता है? चने। तुम माया पर जीत पाते हो। स्वदर्शन चक्र तुम ब्राह्मणों को है। विष्णु के मन्दिर को नर नारायण का मन्दिर कहते हैं। वास्तव में लक्ष्मी-नारायण को तो दो, दो भुजायें चाहिए। परन्तु उनको भी 4 भुजायें दे देते हैं। लक्ष्मी-नारायण तो अलग ठहरे ना। अगर वह 4 भुजाओं वाले हैं तो उनकी सन्तान भी 4 भुजा वाली आती। ऐसे तो है नहीं। देखो, बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं। अब तुम समझदार, मास्टर नॉलेजफुल बन गये हो। पतितों को पावन बनाना है। घर वालों को उठाना है। घर को भी मन्दिर बनाना है। बच्चे कहते हैं बाबा फलाने की बुद्धि का ताला खोलो। अब मैं सिर्फ यह काम करने के लिए बैठा हूँ क्या? तुम तो ब्राह्मणियाँ हो, भूँ-भूँ तुमको करनी है। ब्राह्मणों को सर्विस करनी है। पद भी तुमको पाना है। मैं निष्काम सेवाधारी हूँ और कोई निष्काम हो नहीं सकता। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। मैं नहीं बनता हूँ। मकान भी तुम बच्चों के लिए बनाये हैं। मैं तो पुरानी कुटिया में बैठा हूँ। मेरे लिए पुराना मकान, पुराना शरीर है। शिवबाबा पुराने तन में रहता है तो यह फिर कहाँ जायेगा? निष्काम सेवा एक बाप ही कर सकता है। तुम जानते हो बाबा से हम विश्व के मालिकपने का वर्सा लेते हैं तो खुशी से झोली भरनी चाहिए। देखो, ज्ञान कितना ऊंचा है। भक्ति में तो क्या-क्या दान-पुण्य, जप-तप आदि करना पड़ता है। सद्गति दाता तो एक बाप है। बाप ने आकर ज्ञान घृत डाला है। सतयुग में सबकी ज्योति जगी रहती है। परन्तु वहाँ पर ज्ञान नहीं रहता है कि हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बने हैं। वह है प्रालब्ध, नयेसिर चक्र शुरू होता है। यह अनादि है। सूर्य निकलता है फिर जाता है, यह धरती का फेरा है। ऐसे नहीं ईश्वर फेरता है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) घर-घर को मन्दिर बनाना है। परिवार वालों की भी सेवा करनी है। ऊंचे ज्ञान का सिमरण कर खुशी से झोली भरनी है।
2) किसी भी देहधारी को याद नहीं करना है। अपना बुद्धियोग ऊपर लटकाना है। सुहावने संगमयुग पर जीते जी पारलौकिक बाप का बनना है।
 
वरदान: ज्ञान, गुण और शक्तियों से सम्पन्न बन दान करने वाले महादानी भव!
सारे दिन में जो भी आत्मा सम्बन्ध-सम्पर्क में आये उसे महादानी बन कोई न कोई शक्ति का, ज्ञान का, गुणों का दान दो। दान शब्द का रूहानी अर्थ है सहयोग देना। आपके पास ज्ञान का खजाना भी है तो शक्तियों और गुणों का खजाना भी है। तीनों में सम्पन्न बनो, एक में नहीं। कैसी भी आत्मा हो, गाली देने वाली, निंदा करने वाली भी हो - उसे भी अपनी वृत्ति वा स्थिति द्वारा गुण दान दो।
 

स्लोगन: जो एक बाप से प्रभावित हैं उन पर किसी आत्मा का प्रभाव पड़ नहीं सकता।


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Details ( Page:- Murali 02-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 02.12.17      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe Mithe bacche -Shiv jayanti ka tyohar bade te bada tyohar hai,ise tum baccho ko bahut dhoomdham se manana hai,jisse saari duniya ko Baap ke avtaran ka pata pade.
 
Q-Tum baccho ko kis baat me soosti nahi aani chaiye?Agar soosti aati hai to uska kaaran kya hai?
A- Padhai wa yog me tumhe zara bhi soosti nahi aani chahiye.Lekin kayi bacche samjhte hain sabhi to bijayi mala me nahi aayenge,sab to raja nahi banenge-isiliye soost ban jaate hain.Padhai par dhyan nahi dete.Lekin jiska Baap se poora love hai wo accurate padhai padhenge,soosti aa nahi sakti.
 
Q- Chalte-chalte kayi baccho ki avastha dagmag kyun ho jaati hai?
 
A- Kyunki Baap ko bhool deha-ahankar me aa jaate hain.Deha-ahankar ke kaaran ek do ko bahut tang karte hain.Chalan se aisa dikhayi padta hai jaise Devta banne wala he nahi hai.Kaam-krodh ke basibhoot ho jaate hain.
 
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1)Baap ka madadgar ban,sabhi ko Baap ka parichay dene ki yukti rachni hai.Bichaar sagar manthan karna hai.Gyan ke nashe me rehna hai.
2)Deha-ahankar chhod dehi-abhimaani banna hai.Apni seva dusro se nahi leni hai.Maa-Baap se ris nahi karni hai.Unnke samaan banna hai.
Vardaan:-- Parvas aatmaon ko rahem ke seetal jal dwara vardan dene wale Vardani murt bhava.
Slogan:--Parmatm milan mele ki mouj me raho to maya ke jhamele samapt ho jayenge.
 
English Summary ( 2nd Dec 2017 )
Essence:  Sweet children, the festival of the birthday of Shiva is the greatest festival of all. You children  have to celebrate it with so much pomp and splendour that the whole world can  come to know about the incarnation of the Father.
Question:What should you children not be lazy about?  If there is laziness, what is the reason for it?
Answer:
 There mustn't be the slightest laziness in studying or in yoga.  However, some children think that not everyone will become part of the rosary of victory, that not everyone will become a king and they therefore become lazy. They don't pay attention to studying, but those who have full love for the Father will study accurately; they cannot be lazy.
 
Question: Why does the stage of some children fluctuate while they are moving along?
Answer:
Because they forget the Father and become body conscious.  Because of body consciousness, they cause a lot of distress to one another. It seems from their behaviour that they are not going to become deities; they are influenced by lust and anger.
 
Essence for Dharna:
1.  Become a helper of the Father and create methods to give the Father's introduction.
    Churn the ocean of knowledge.  Maintain the intoxication of knowledge.
2.  Renounce body consciousness and become soul conscious.   Don't take service from others.
    Don't compete with the mother and father; become equal to them.
 
Blessing:May you give blessings with the cool water of kindness to souls who are under an external influence and thereby become an image that grants blessings.
If someone who is burning in the fire of anger comes in front of you, consider that person to be under an external influence and bless him with the cool water of your kindness. Do not sprinkle oil on him. If you have any feeling of anger towards anyone, that is like sprinkling oil (onto a fire). So, become an image that grants blessings and give the blessing of the power of tolerance. When you fill yourself with this sanskar in the living form at this time, you will then become an image that grants blessings through your non-living image.
 Slogan:Stay in the pleasure of the mela (fair) of meeting God and all the jamela (chaotic circus) of Maya will finish.
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02/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे ''मीठे बच्चे - शिवजयन्ती का त्योहार बड़े ते बड़ा त्योहार है, इसे तुम बच्चों को बहुत धूमधाम से मनाना है, जिससे सारी दुनिया को बाप के अवतरण का पता पड़े''
 
प्रश्न: तुम बच्चों को किस बात में सुस्ती नहीं आनी चाहिए? अगर सुस्ती आती है तो उसका कारण क्या है?
उत्तर:
पढ़ाई वा योग में तुम्हें जरा भी सुस्ती नहीं आनी चाहिए। लेकिन कई बच्चे समझते हैं सभी तो विजय माला में नहीं आयेंगे, सब तो राजा नहीं बनेंगे - इसलिए सुस्त बन जाते हैं। पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते। लेकिन जिसका बाप से पूरा लॅव है वह एक्यूरेट पढ़ाई पढ़ेंगे, सुस्ती आ नहीं सकती।
 
प्रश्न: चलते-चलते कई बच्चों की अवस्था डगमग क्यों हो जाती है?
उत्तर:
क्योंकि बाप को भूल देह-अहंकार में आ जाते हैं। देह-अहंकार के कारण एक दो को बहुत तंग करते हैं। चलन से ऐसा दिखाई पड़ता है जैसे देवता बनने वाला ही नहीं है। काम-क्रोध के वशीभूत हो जाते हैं।
 
ओम् शान्ति।
 
सभी ब्राह्मणों को यह पता है कि शिव जयन्ती है मुख्य। आजकल बर्थ डे तो सबका मनाते हैं। परन्तु शिव जयन्ती के संवत का कोई को पता नहीं है। मनुष्यों का संवत तो गाते आये हैं। क्राइस्ट का संवत पूछेंगे तो झट बतायेंगे। उनका भी बर्थ डे मनाते हैं। तुमने शिवजयन्ती पहले इतना धूमधाम से नहीं मनाई है। अब बच्चों को विचार चलाना है कि दुनिया को कैसे पता पड़े क्योंकि अब शिवजयन्ती आने वाली है। तो ऐसा धूमधाम से जयन्ती मनाओ जो सारी दुनिया को पता पड़ जाए। मेहनत करनी है। सब बच्चों को मालूम कैसे पड़े कि सारी दुनिया का जो क्रियेटर है उनकी जयन्ती है, वह इस समय यहाँ है। बच्चों को मालूम कैसे पड़े। अखबारें तो बहुत छपती हैं। उनको कहा जाता है एडवरटाइजमेंट, जिससे नाम मशहूर हो। अखबार का खर्चा भी बहुत होता है। अब शिवजयन्ती का तो सबको मालूम पड़ना चाहिए। तुमको सारी दुनिया का ओना रखना है। बाप का परिचय सबको देना है। गाया भी हुआ है कि बच्चों ने घर-घर में बाप का सन्देश पहुँचाया है कि बाप आया है, जिसको वर्सा लेना हो तो आकर लो। परन्तु लेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले लिया होगा। आत्मा तो जानती है, अब सबको मालूम पड़ेगा तो आ जायेंगे क्योंकि और और धर्मों में बहुत कनवर्ट हो गये हैं। तुम भी अपने को देवी-देवता थोड़ेही समझते थे। शूद्र धर्म में थे। अब तुमको बाप ने समझाया है। तुम अब समझ सकते हो कि हमको कौन पढ़ाते हैं। फिर भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं, जिस कारण उन्हों की अवस्था भी ऐसी ही रहती है। देवता बनने के जैसे लायक ही नहीं बनते हैं। काम का भूत वा देह-अभिमान का भूत होने से बाप को याद नहीं कर सकते। देही-अभिमानी जब बनें तब बाप को याद करें। बाप के साथ लॅव भी रहे और पढ़ाई में भी एक्यूरेट रहें। यह बहुत वैल्युबुल ज्ञान रत्न हैं, जिसका बहुत नशा रहना चाहिए। जिस्मानी पढ़ाई में भी रजिस्टर रहता है। उसमें मैनर्स भी दिखाते हैं। गुड, बेटर और बेस्ट... यहाँ भी ऐसे है। कोई तो बिल्कुल कुछ भी जानते नहीं हैं। भल बच्चे बने हैं। बाप के पास रहे पड़े हैं। तो भी कईयों से घर में रहने वालों की चलन अच्छी होती है। फिर भी सर्विस करते हैं। मुख्य बात है सर्विस की। विजय माला में भी वही पिरोयेंगे, बाकी तो प्रजा बनेंगे। प्रजा तो बहुत बनती है। कोई बड़े घर में जन्मता है तो सब उनको बधाईयाँ भेजते हैं। बाकी दुनिया में तो बहुत जन्मते रहते हैं। तुम तो बाप के वारिस बने हो। तो उस बेहद के बाप का जन्म-दिन तो मनाना चाहिए। धूमधाम से त्रिमूति शिव जयन्ती मनानी है। क्या करें जो बहुतों को मालूम पड़े? यह फुरना रहता है ना। किस प्रकार की सर्विस करें जो हमारे कल्प पहले वाले ब्राह्मण कुल भूषण फिर से आ जाएं। युक्तियाँ रची जाती हैं। बाप कहते हैं सिवाए अखबार के तो मुश्किल है। अखबार सब तरफ जाती है। अखबार के 2-4 पेज लेना पड़े। जब सिलवर जुबली मनाते हैं तो अखबार में 2-4 पेज ले लेते हैं। अब वह तो कामन पाई पैसे की सिलवर जुबली मनाते हैं। तुम्हारी यह गोल्डन जुबली सबसे न्यारी है। हमेशा गोल्डन, सिल्वर जुबली मनाते हैं, कॉपर आइरन जुबली नहीं मनाते। 50 वर्ष होते हैं तो उनको गोल्डन जुबली कहा जाता है। अब तुमको बाप की जयन्ती मनानी है, जो सबको मालूम पड़े। अखबार में दो पेज डालें तो कोई हर्जा नहीं है। बहुतों को पता पड़ना चाहिए। समय नाज़ुक आता जाता है। नहीं तो फिर देरी पड़ जायेगी। अब शिव जयन्ती के लिए पहले से ही तैयारी करनी चाहिए। अखबार के दो पेज लेवे जिसमें त्रिमूति झाड़ और आजकल की प्वाइंटस लिखी जायें। गंगा स्नान से सद्गति नहीं होती है। जैसे 4 पेज वाला लिटरेचर है, वैसे आगे पीछे भी डाला जाए। उतरती कला और चढ़ती कला वाला चित्र और जो मुख्य चित्र हैं। विचार करना चाहिए कौन-कौन से मुख्य चित्र हैं? जिससे मनुष्य समझ जायें कि बरोबर दुर्गति हुई है। बाबा बच्चों का ध्यान खिंचवाते हैं, विचार सागर मंथन करना चाहिए। इस बात पर बहुत थोड़े बच्चे हैं जिनका ख्याल चलता है। 4-5 हजार खर्च होगा, हर्जा नहीं। ढेर बच्चे हैं, बूँद-बूँद तलाव हो जायेगा। तुमको मालूम है आगाखाँ को भी हीरों में वजन किया। वह तो कुछ भी नहीं। यह तो कल्याणकारी बाप है, वह तो सब पैसे जाते हैं विकारों में। तुम बच्चों को इन विकारों से छुड़ाया जाता है। मनुष्य से देवता बनाया जाता है। तुम्हारे में न काम की हिंसा, न क्रोध की हिंसा है। तो अखबारों में 4-5 पेज जरूर लेने चाहिए जो भी सर्विसएबुल बच्चे हैं, समझते हैं हम सर्विस कर रहे हैं। प्रदर्शनी, प्रोजेक्टर के लिए चित्र बना रहे हैं, जिनकी बुद्धि चलती है उन्हों के लिए बाबा समझा रहे हैं। बाप कहते हैं हिम्मते बच्चे मददे बाप बैठा है। जो बुद्धिवान पढ़े लिखे बच्चे हैं वह झट अखबार के लिए मेटर लिखकर तैयार करेंगे। अखबार में कोई चीज़ डाली जाती है तो उन्हों को दृष्टि भी देनी है। अभी शिवजयन्ती में दो अढ़ाई मास हैं। तुम बहुत काम कर सकते हो। दो-चार अखबारों में डालना चाहिए - हिन्दी और अंग्रेजी मुख्य हैं। इन दोनों में छप जाए। शिवजयन्ती इस रीति मनाना ठीक होगा। सारी दुनिया के बाप का बर्थ डे है, यह सबको मालूम पड़ जाए। अखबारें तो दूर तक जाती हैं। सेन्सीबुल एडीटर जो होते हैं, धर्मी ख्यालात वाले होते हैं वह पैसे नहीं लेते हैं। यह तो सबके कल्याण के लिए है। करके थोड़ा खर्चा होगा। हिम्मते बच्चे मददे बाप। ऐसे-ऐसे ख्यालात चलने चाहिए। मनुष्य यह नहीं जानते कल्याण, अकल्याण किसको कहा जाता है। कल्याण की मत कौन दे सकता है? कुछ भी समझते नहीं हैं। तुम बच्चे जानते हो। तुम्हारे में भी बहुत थोड़े हैं जो विजय माला में आयेंगे। बाकी प्रजा बनेंगे। यह है राजयोग, राजाई प्राप्त करने का। पढ़ाई वा योग में सुस्ती करने से राजाई नहीं प्राप्त कर सकेंगे। लिमिट है - इतने राजायें बनने हैं। जास्ती बन न सकें। जो अच्छी ख्यालात वाले होंगे उनका झट पता लग जायेगा कि यह राजाई कुल में आ सकता है वा नहीं। तो अब सेन्टर्स पर राय निकालते हैं। बड़े-बड़े दुकान बाबा के बहुत हैं। सब सेन्टर्स (दुकान) एक जैसे तो चल न सकें। कोई मैनेजर अच्छा होता है तो दुकान को अच्छा चलाते हैं। कोई पर ग्रहचारी बैठ जाती है तो अच्छे-अच्छे भी फेल हो पड़ते हैं। बाप कहते हैं अब दिन नजदीक आते जाते हैं। लड़ाई की तैयारियाँ भी होती जाती हैं। आपदायें भी आनी हैं। बहुत थोड़ा समय है, योग लगाने में बड़ी मेहनत है। योग से ही विकर्म विनाश करने हैं। अगर योग में रह गोल्डन एज तक नहीं पहुँचे तो रॉयल घराने में आ न सके। प्रजा में चले जायेंगे। अच्छे पुरुषार्थी जो होंगे वह कभी नहीं कहेंगे कि जो तकदीर में होगा। ड्रामा अनुसार ऐसे-ऐसे ख्यालात वाले प्रजा में जाए नौकर बनेंगे। पद ऊंचा पाना है तो एडवरटाइज़ करनी पड़े। नहीं तो उल्हना देंगे, इसलिए अखबार में डालते हैं। अपना चित्र और मुख्य-मुख्य बातें लिखनी हैं। त्रिमूति गोला भी डालना है। उतरती कला, चढ़ती कला वाला चित्र भी डालना है। भारत दी हेविन, भारत दी हेल। हेविन में कितना समय रहते, हेल में कितना समय रहते। अब बाबा डायरेक्शन दे रहे हैं। अगर कोई मुरली मिस कर दें तो डायरेक्शन का पता नहीं पड़ेगा। मददगार बन नहीं सकेंगे।
बाबा पूछते रहते हैं यह मैटर तैयार किया? सेन्सीबुल बच्चों की जहाँ तहाँ महिमा होती है। कोई-कोई बहुत तंग करते हैं। देह-अभिमानी बन जाते हैं। सेन्टर के हेड बने, देह-अभिमान आया तो यह मरा। बाप को कभी अहंकार आ न सके। बाबा कहते हैं हम ओबिडियन्ट सर्वेन्ट हैं। देखो यहाँ बहुत बड़े-बड़े आदमी आते हैं। देखते हैं बर्तन हाथ से मांजते हैं तो खुद भी मांजने लग पड़ते हैं। परन्तु कोई-कोई को देह-अहंकार आ जाता है। थाली कटोरा नहीं साफ कर सकते। ऐसे देह-अभिमान वाले गिर पड़ते हैं। अपना अकल्याण कर बैठते हैं। बाबा थोड़ेही कभी सर्विस लेते हैं। शिवबाबा को तो शरीर ही नहीं है जो सर्विस लेवे। वह तो सर्विस करते हैं। बाबा देही-अभिमानी बनना सिखलाते हैं। माँ-बाप को बच्चे कभी एलाउ नहीं करेंगे कि बर्तन मांजें। परन्तु माँ-बाप से रीस नहीं करनी चाहिए। पहले माँ-बाप जैसा बनना चाहिए। पढ़ते तुम्हारे साथ वह भी हैं परन्तु कायदे अनुसार साक्षात्कार होता जाता है कि पहले नम्बर में यह पास होते हैं। सर्विस का शौक बहुत रखना है। घर-घर में गीता पाठशाला खोलनी है तो वृद्धि होती जायेगी। लिख देना चाहिए आओ तो तुमको अपने पारलौकिक बाप का परिचय दें। बेहद के बाप से बेहद का वर्सा कैसे मिलता है, वह आकर समझो। एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति कैसे मिल सकती है। कोई ऐसा बुद्धिवान है नहीं जो समझ सके। तुम्हारे में भी हड्डी ज्ञान बहुत थोड़ों में है, जिनको ज्ञान का नशा चढ़ा हुआ है वह अपनी राय निकालते रहते हैं। स्लोगन की समझानी भी लिखनी पड़े। देहली बाम्बे में बहुत समझू बच्चे हैं, जिनको बहुतों का परिचय है, वह यह काम कर सकते हैं। एडीटर्स को समझाना चाहिए। उन्हों के हाथ में बहुत होता है। हाफ दाम में देवें, क्वाटर में देवें। रिलीजस बातें फ्री में भी डाल सकते हैं। बाबा राय देते हैं - इस शिव जयन्ती को बहुत धूमधाम से मनाया जाए, ऐसी प्रेरणा आई है। खर्चे का हर्जा नहीं। चित्र छपाओ। रंगीन वीकली छोटी होती है, इसमें चित्र बड़े क्लीयर चाहिए। बाबा सर्विसएबुल बच्चों को राय देते हैं और सर्विसएबुल बच्चे ही रेसपान्ड करेंगे। आइडिया लिखेंगे, मैटर तैयार करेंगे। अलग मैटर छपाकर भी अखबार के साथ भेज सकते हैं। वह भी अखबार वालों से प्रबन्ध करा सकते हैं। अखबार के अन्दर पर्चा डाल देंगे। आगे ऐसे अलग कागज छपाकर दूसरों की एडवरटाइज़ का अखबार में डाल देते थे, अभी शायद बंद कर दिया है। परन्तु पुरुषार्थ करने से हो सकता है। नहीं तो सबको मालूम कैसे पड़े - त्रिमूति शिव जयन्ती का। प्रदर्शनी भी 7 रोज़ चलती। शिवजयन्ती का तो एक दिन है, वह धूमधाम से मनाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप का मददगार बन, सभी को बाप का परिचय देने की युक्ति रचनी है। विचार सागर मंथन करना है। ज्ञान के नशे में रहना है।
2) देह-अंहकार छोड़ देही-अभिमानी बनना है। अपनी सेवा दूसरों से नहीं लेनी है। माँ-बाप से रीस नहीं करनी है। उनके समान बनना है।
 
वरदान: परवश आत्माओं को रहम के शीतल जल द्वारा वरदान देने वाले वरदानी मूर्त भव!
यदि कोई क्रोध अग्नि में जलता हुआ आपके सामने आये, तो उसे परवश समझ अपने रहम के शीतल जल द्वारा वरदान दो। तेल के छींटे नहीं डालो, अगर किसी के प्रति क्रोध की भावना भी रखी तो तेल के छींटें डाले, इसलिए वरदानी मूर्त बन सहनशीलता की शक्ति का वरदान दो। जब अभी चैतन्य में यह संस्कार भरेंगे तब जड़ चित्रों द्वारा भी वरदानी मूर्त बनेंगे।
 

स्लोगन: परमात्म मिलन मेले की मौज में रहो तो माया के झमेले समाप्त हो जायेंगे।

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Details ( Page:- Murali 03-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 03.12.17      Pratah Murli Om Shanti Bapdada Madhuban
Head Line - Pratham aur Antim Purusarth
Vardan – Seva ka pratyaksh fal khate everhealthy , wealthy aur happy rahnewale sada khushal bhav.
Slogan – Pavitra atma hi swachta aur satyata ka darpan hai

English Summary ( 3rd Dec 2017 )
Headline - The first and last effort.
Blessing:May you be constantly happy-hearted and remain ever healthy, wealthy and happy by eating the instant fruit of service.
People today say: Eat fresh fruit and you will stay healthy. They show fruit as a means of staying healthy and you children are those who eat instant fruit at every second. This is why when someone asks you how you are, you tell them: I am happy and I move in the way that angels do. I am healthy, wealthy and happy. Brahmins can never get upset.
Slogan:A pure soul is a mirror of cleanliness and truth.
 
HINDI DETAIL MURALI

03/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

" अव्यक्त-बापदादा" मधुबन ( 03/04/83 )

 "प्रथम और अन्तिम पुरूषार्थ"
आज बेहद का बाप बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले, बेहद की बुद्धि, बेहद की दृष्टि, बेहद की वृत्ति, बेहद के सेवाधारी ऐसे श्रेष्ठ बच्चों से साकार स्वरूप में, साकार वतन में बेहद के स्थान पर मिलने आये हैं। सारे ज्ञान का वा इस पढ़ाई की चारों ही सबजेक्ट का मूल सार यही एक बात ''बेहद'' है। बेहद शब्द के स्वरूप में स्थित होना, यही फर्स्ट और लास्ट का पुरूषार्थ है। पहले बाप का बनना अर्थात् मरजीवा बनना। इसका भी आधार है देह की हद से बेहद देही स्वरूप में स्थित होना। और लास्ट में फरिश्ता स्वरूप बन जाना - इसका भी अर्थ है सर्व हद के रिश्ते से परे फरिश्ता बनना। तो आदि और अन्त पुरूषार्थ और प्राप्ति, लक्षण और लक्ष्य, स्मृति और समर्थी दोनों ही स्वरूप में क्या रहा? ''बेहद''। आदि से लेकर अन्त तक किन-किन प्रकार की हदें पार कर चुके हो वा करनी हैं। इस लिस्ट को तो अच्छी तरह से जानते हो ना! जब सर्व हदों से पार बेहद स्वरूप में, बेहद घर, बेहद के सेवाधारी, सर्व हदों के ऊपर विजय प्राप्त करने वाले विजयी रत्न बन जाते तब ही अन्तिम कर्मातीत स्थिति के अनुभव स्वरूप बन जाते।
हदें हैं अनेक, बेहद है एक। अनेक प्रकार की हदें अर्थात् अनेक मेरा मेरा। एक मेरा बाबा, दूसरा न कोई इस बेहद के मेरे में अनेक मेरा समा जाता है। विस्तार सार स्वरूप बन जाता है। विस्तार मुश्किल होता है या सार मुश्किल होता है? तो आदि और अन्त का पाठ क्या हुआ? बेहद। इसी अन्तिम मंजिल पर कहाँ तक समीप आये हैं, इसको चेक करो। हद की लिस्ट सामने रख देखो कहाँ तक पार किया है! लिस्ट का वर्णन करने की तो आवश्यकता नहीं है। सबके पास कितने बार की सुनी हुई यह लिस्ट कापियों में तो बहुत नोट है। सबके पास ज्यादा से ज्यादा माल डायरियॉ वा कापियाँ होंगी। जानते तो सभी हो, वर्णन भी बहुत अच्छा कर सकते हो। ज्ञाता भी हो, वक्ता भी हो। बाकी क्या रहा? बापदादा भी सभी टीचर्स अथवा स्टूडेन्ट्स सबके भाषण सुनते हैं। बापदादा के पास वीडियों नहीं है क्या? आपकी दुनिया में तो अभी निकला है। बापदादा तो शुरू से वतन में देखते रहते हैं। सुनते रहते हैं। वर्णन करने का श्रेष्ठ रूप देखकर बापदादा मुबारक भी देते हैं क्योंकि बापदादा की एक प्वाइंट को भिन्न-भिन्न रमणीक रूप से सुनाते हो। जैसे गाया हुआ है बाप तो बाप है लेकिन बच्चे बाप के भी सिरताज हैं। ऐसे सुनाने में बाप से भी सिरताज हो। बाकी क्या फालो करना है? तीसरी स्टेज है - पार कर्ता। इसमें कोई न कोई हद की दीवार को पार करने में, कोई तो उस हद में लटक जाते हैं, कोई अटक जाते हैं। पार करने वाले कोई-कोई मंजिल के समीप दिखाई देते हैं। किसी भी हद को पार करने की निशानी क्या दिखाई देगी वा अनुभव होगी? पार करने की निशानी है पार किया, उपराम बना। तो उपराम बनना ही पार करने की निशानी है। उपराम स्थिति अर्थात् उड़ती कला की निशानी। उड़ता पंछी बन कर्म के इस कल्प वृक्ष की डाली पर आयेगा। उड़ती कला के बेहद के समर्थ स्वरूप से कर्म किया और उड़ा। कर्म रूपी डाली के बन्धन में नहीं फँसेगा। कर्म बन्धन में फँसा अर्थात् हद के पिंजरे में फँसा। स्वतत्र से परतत्र बना। पिंजरे के पंछी को उड़ता पंछी तो नहीं कहेंगे ना। ऐसे कल्प वृक्ष के भिन्न-भिन्न कर्म की डाली पर बाप के उड़ते पंछी श्रेष्ठ आत्मायें कभी-कभी कमज़ोरी के पंजों से डाली के बन्धन में आ जाते हैं। फिर क्या करते? कहानी सुनी है ना! इसको कहा जाता है हद को पार करने की शक्ति कम है। इस कल्प वृक्ष के अन्दर चार प्रकार की डालियाँ हैं। लेकिन पाँचवीं डाली ज्यादा आकर्षण है। गोल्डन, सिलवर, कॉपर, आयरन और संगम है हीरे की डाली। फिर हीरो बनने के बजाए हीरे की डाली में लटक जाते हैं। संगमयुग का ही सर्व श्रेष्ठ कर्म है ना। यह श्रेष्ठ कर्म ही हीरे की डाली है। चाहे संगमयुगी कैसा भी श्रेष्ठ कर्म हो लेकिन श्रेष्ठ कर्म के भी बन्धन में फँस गया, जिसको दूसरे शब्दों में आप सोने की जंजीर कहते हो। श्रेष्ठ कर्म में भी हद की कामना, यह सोने की जंजीर है। चाहे डाली हीरे की है, जंजीर भी सोने की है लेकिन बन्धन तो बन्धन है ना! बापदादा सर्व उड़ते पंछियों को स्मृति दिला रहे हैं, सर्व बन्धनों अर्थात् हदों को पार कर्ता बने हो!
आज का विशेष संगठन गऊपाल की माताओं का है। इतने बड़े संगठन को देख गऊपाल भी खुश हो रहे हैं। बापदादा भी मीठी-मीठी माताओं को ''वन्दे मातरम्'' कहते हैं क्योंकि नई सृष्टि की स्थापना के कार्य में ब्रह्मा बाप ने भी माता गुरू को सब समर्पण किया। इस ईश्वरीय ज्ञान की विशेषता वा नवीनता है ही शक्ति अवतार को आगे रखना। माता गुरू का सिलसिला स्थापन करना, यही नवीनता है इसलिए यादगार में भी गऊ मुख का गायन पूजन है। ऐसे हद की मातायें नहीं लेकिन बेहद की जगत मातायें हो, नशा है ना! जगत का कल्याण करने वाली हो, जग कल्याणकारी अर्थात् विश्व कल्याणकारी हो। सिर्फ घर कल्याणी तो नहीं हो ना। कब घर कल्याणी का गीत सुना है क्या? विश्व कल्याणी का सुना है। तो ऐसी बेहद की माताओं का संगठन, श्रेष्ठ संगठन हुआ ना। मातायें तो अनुभवी मूर्त हो ना! कुमारियों को धोखे से बचने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है। मातायें तो अनुभवी होने के कारण हद के धोखे में नहीं आने वाली हो ना! मैजारटी नये-नये हैं। नये-नये छोटे बच्चों पर ज्यादा ही स्नेह होता है। बापदादा भी सभी माताओं का ''भले पधारे'' कहकर के स्वागत करते हैं। अच्छा।
ऐसे सदा बेहद की स्थिति में स्थित रहने वाले, सदा उड़ता पंछी, उड़ती कला में उड़ने वाले, सदा अन्तिम फरिश्ता स्वरूप का अनुभव करने वाले, सदा बाप समान कर्मबन्धनों से कर्मातीत, ऐसे मंजिल के समीप श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
सेवाधारियों के प्रति:-
बापदादा सभी निमित्त सेवाधारी बच्चों को किस रूप में देखते हैं? निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बाप भी सेवाधारी बन करके ही आते हैं ना। जो भी भिन्न-भिन्न रूप हैं, वह हैं तो सेवा के लिए ना! तो बाप का भी विशेष रूप सेवा का है। तो निमित्त सेवाधारी अर्थात् फालो फादर करने वाले। बापदादा हरेक बच्चे को इसी नज़र से देखते हैं। बापदादा के सेवा के कार्य में आदि रत्न हो ना! जन्मते ही बाप ने क्या गिफ्ट में दिया? सेवा ही दी है ना। सेवा की गिफ्ट के आदि रत्न हो। बापदादा सभी की विशेषताओं को जानते हैं। जन्म से वरदान मिलना, यह भी ड्रामा में हीरो पार्ट है। वैसे तो सभी सेवाधारी हैं लेकिन जन्मते ही सेवा का वरदान और आवश्यकता के समय में निमित्त बनना - यह भी किसी-किसी की विशेषता है। जो हैं ही आवश्यकता के समय पर सेवा के साथी, ऐसी आत्मा की आवश्यकता सदा है। अच्छा - सभी में अपनी-अपनी विशेषतायें हैं, अगर एक-एक की विशेषता का वर्णन करें तो कितना समय चाहिए। लेकिन बापदादा के पास हरेक की विशेषता सदा सामने है। कितनी हरेक में विशेषतायें हैं, कभी अपने आपको देखा है? विशेषतायें सबमें अपनी-अपनी हैं लेकिन बापदादा विशेष आत्माओं को एक ही बात बार-बार स्मृति में दिलाते हैं, कौन-सी? जब भी कोई भी सेवा के क्षेत्र में आते हो, प्लैनिंग बनाते हो वा प्रैक्टिकल में आते हो तो सदा बाप समान स्थिति में स्थित होकर फिर कोई भी प्लैन बनाओ और प्रैक्टिकल में आओ। जैसे बाप सबका है, कोई भी नहीं कहेगा कि यह फलाने का बाप है, फलाने का नहीं, सब कहेंगे मेरा बाबा। ऐसे जो निमित्त सेवाधारी हैं, उन्हों की विशेषता यही है कि हरेक महसूस करे, अनुभव करे कि यह हमारे हैं। 4-6 का है, हमारा नहीं, यह नहीं। हमारे हैं, हरेक के मुख से यह आवाज न भी निकले तो भी संकल्प में इमर्ज हो कि यह हमारे हैं - इसको ही कहा जाता है फालो फादर। सबको हमारे-पन की फीलिंग आये। यही पहला स्टैप बाप का है। यही तो बाप की विशेषता है ना। हरेक के मन से निकलता है ''मेरा बाबा।'' तेरा बाबा कोई कहता है? तो यह मेरा है बेहद का भाई है या बहन है वा दीदी है दादी है, यही सबके मन से शुभ आशीर्वाद निकले। यह मेरा है क्योंकि चाहे कहीं भी रहते हो लेकिन विशेष आत्मायें तो बेहद की हो ना! निमित्त सेवार्थ कहीं भी रहो लेकिन हो तो बेहद सेवा के निमित्त ना। प्लैन भी बेहद का, विश्व का बनाते हो या हरेक अपने-अपने स्थान का बनाते हो! यह तो नहीं करते ना! बेहद का प्लैन बनाते, देश विदेश सबका बनाते हो ना! तो बेहद की भावना, बेहद की श्रेष्ठ कामना - यह है फालो फादर। अभी यह प्रैक्टिकल अनुभव करो। अभी सब बुजुर्ग हो। बुजुर्ग का अर्थ ही है अनुभवी। अनेक बातों के अनुभवी हो ना! कितने अनुभव हैं! एक तो अपना अनुभव। दूसरा अनेकों के अनुभवों से अनुभवी। अनुभवी आत्मा अर्थात् बुजुर्ग आत्मा। वैसे भी कोई बुजुर्ग होता है तो हद के हिसाब से भी उसको पिताजी, काका जी कहते हैं। ऐसे बेहद के अनुभवी अर्थात् सबको अपनापन महसूस हो।
सहयोगी आत्माओं को तो बापदादा सदा ही सहयोग के रिटर्न में स्नेह देते हैं। सहयोगी हो अर्थात् सदा स्नेह के पात्र हो इसलिए देंगे क्या, सबको स्नेह ही देंगे। सबको फीलिंग आये कि यह स्नेह का भण्डार हैं। हर कदम में, हर नज़र में स्नेह अनुभव हो। यही तो विशेषता है ना! ऐसा कोई प्लैन बनाओ कि हमें क्या करना है। विशेष आत्माओं का विशेष फर्ज क्या है? विशेष कर्म क्या है? जो साधारण से भिन्न हो। चाहे भावना तो समानता की रखनी है लेकिन दिखाई दे यह विशेष आत्मायें हैं। हर कदम में विशेषता अनुभव हो तब कोई मानेंगे विशेष आत्मायें हैं। विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष करने वाली। कहने वाली नहीं लेकिन करने वाली। अच्छा।
महावीर बच्चे सदा ही तन्दुरूस्त हैं क्योंकि मन तन्दुरूस्त है, तन तो एक खेल करता है। मन में कोई रोग होगा तो रोगी कहा जायेगा, अगर मन निरोगी है तो सदा तन्दुरूस्त है। सिर्फ शेश शैया पर विष्णु के समान ज्ञान का सिमरण कर हर्षित होते। यही खेल है। जैसे साकार बाप विष्णु समान टांग पर टांग चढ़ाए खेल करते थे ना। ऐसे कुछ भी होता है तो यह भी निमित्त मात्र खेल करते। सिमरण कर मनन शक्ति द्वारा और ही सागर के तले में जाने का चांस मिलता है। जब सागर में जायेंगे तो जरूर बाहर से मिस होंगे। तो कमरे में नहीं हो लेकिन सागर के तले में हो। नये-नये रत्न निकालने के लिए तले में गये हो।
कर्मभोग पर विजय प्राप्त कर कर्मयोगी की स्टेज पर रहना इसको कहा जाता है विजयी रत्न। सदा यही स्मृति रहती कि यह भोगना नहीं लेकिन नई दुनिया के लिए योजना है। फुर्सत मिलती है ना, फुर्सत का काम ही क्या है? नई योजना बनाना। पलंग भी प्लैनिंग का स्थान बन गया।
माताओं के ग्रुप से:-

सभी ऐसा अनुभव करते हो कि तकदीर का सितारा चमक रहा है? जिस चमकते हुए सितारे को देख और आत्मायें भी ऐसा बनने की प्रेरणा लेती रहें, ऐसे सितारे हो ना! कभी सितारे की चमक कम तो नहीं होती है ना! अविनाशी बाप के अविनाशी सितारे हो ना! सदा एक रस हो या कभी उड़ती कला कभी ठहरती कला? सदा उड़ती कला का युग है। उड़ती कला के समय पर कोई चढ़ती कला भी करे तो भी अच्छा नहीं लगेगा। प्लेन की सवारी मिले तो दूसरी सवारी अच्छी लगेगी? तो उड़ती कला के समय वाले नीचे नहीं आओ। सदा ऊपर रहो। पिंजरे के पंछी नहीं, पिंजरा टूट गया है या दो चार लकीरें अभी रही हैं।
तार भी अगर रह जाती है तो वह अपनी तरफ खींचेगी। 10 रस्सी तोड़ दी, एक रस्सी रह गई तो वह भी अपनी तरफ खींचेगी। तो सर्व रस्सियाँ तोड़ने वाले, सब हदें पार करने वाले ऐसे बेहद के उड़ते पंछी, हद में नहीं फंस सकते। 63 जन्म तो हद में फँसते आये। अब एक जन्म हद से निकलो, यह एक जन्म है ही हद से निकलने का, तो जैसा समय वैसा काम करना चाहिए ना। समय हो उठने का और कोई सोये तो अच्छा लगेगा? इसलिए सदा हदों से पार बेहद में रहो। माताओं को अविनाशी सुहाग का तिलक तो लगा हुआ है ना। जैसे लौकिक में सुहाग की निशानी तिलक है, ऐसे अविनाशी सुहाग अर्थात् सदा स्मृति का तिलक लगा हुआ हो। ऐसी सुहागिन सदा भागिन (भाग्यवान) है। कल्प-कल्प की भाग्यवान आत्मायें हो। ऐसा भाग्य जो कोई भाग्य को छीन नहीं सकता। सदा अधिकारी आत्मायें हो, विश्व का मालिक, विश्व का राज्य ही आपका हो गया। राज्य अपना, भाग्य अपना, भगवान अपना इसको कहा जाता है अधिकारी आत्मा। अधिकारी हैं तो अधीनता नहीं।
प्रश्न:- आप बच्चों की कमाई अखुट और अविनाशी है कैसे?
उत्तर:-
आप ऐसी कमाई करते हो जो कभी कोई छीन नहीं सकता। कोई गड़बड़ हो नहीं सकती। दूसरी कमाई में तो डर रहता है, इस कमाई को अगर कोई छीनना भी चाहे तो भी आपको खुशी होगी क्योंकि वह भी कमाई वाला हो जायेगा। अगर कोई लूटने आये तो और ही खुश होंगे, कहेंगे लो। तो इससे और ही सेवा हो जायेगी। तो ऐसी कमाई करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हो। अच्छा ! ओम् शान्ति।
वरदान: सेवा का प्रत्यक्ष फल खाते एवरहेल्दी, वेल्दी और हैपी रहने वाले सदा खुशहाल भव!
 
जैसे साकार दुनिया में कहते हैं कि ताजा फल खाओ तो तन्दरूस्त रहेंगे। हेल्दी रहने का साधन फल बताते हैं और आप बच्चे तो हर सेकण्ड प्रत्यक्ष फल खाने वाले हो इसलिए यदि आपसे कोई पूछे कि आपका हालचाल क्या है? तो बोलो - हाल है खुशहाल और चाल है फरिश्तों की, हम हेल्दी भी हैं, वेल्दी भी हैं तो हैपी भी हैं। ब्राह्मण कभी उदास हो नहीं सकते।

स्लोगन: पवित्र आत्मा ही स्वच्छता और सत्यता का दर्पण है।

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Details ( Page:- Murali 04-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 04.12.17      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe Mithe bacche -Sada yah smriti me rahe ki humara yah antim 84 wa janm hai,ab wapis ghar jana hai,fir apne rajya me aana hai.
Q-Baap pakka soudagar hai,kaise?
A- Jo abhi sahookar hain,jinhe paise ka nasha hai,baba kehte hain,tum yahan ki apni rajayi sambhalo.Unka Baap swikar nahi karta hai.Garibo ko he Baba oonch te oonch banate hain.Garibo ki payi-payi safal kar unhe sahookar bana dete isiliye Baap ko pakka soudagar kaha jata hai.
Q-Baccho me kaun si soosti bilkul nahi honi chahiye?
A-Kayi bacche murli soonne wa padhne me soosti karte hain.Murli miss kar dete hain.Baba kehte hain bacche isme soost mat bano.Tumhe ek bhi murli miss nahi karni hai.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1) Sabhi ko razi karna hai.Moodi dimag wala nahi banna hai.Bahut-bahut mitha banna hai.Achche manners sikhne aur sikhlane hain
2) Har kadam par supreme surgeon se raye leni hai.Shrimat par chalte rehna hai.Sensible ban har points swayang me dharan karni hai.
 
Vardan:-Maryada ki lakeer ke andar sada chatrachhaya ki anubhooti karne wale Mayajeet,Bijayi bhava.
Slogan:-. Asariri banne ka abhyas he samapti ke samay ko samip laane ka aadhar hai.
 
English Summary ( 4th Dec 2017 )
Sweet children, always remain aware that this is the last of your 84 births. You now have to return home and then go into your kingdom.
Question:How is the Father the true Businessman?
Answer:
Baba says to those who are wealthy at this time and have the intoxication of their money: Look after your kingdom here! The Father doesn't accept anything of theirs. It is the poor that Baba makes the highest on high. He uses every penny of the poor in a worthwhile way and makes them wealthy. This is why the Father is called the true Businessman.
Question:Which laziness should you children not have at all?
Answer:Some children are lazy in reading or listening to the murli; they miss the murli. Baba says: Children, don’t become lazy in this. You mustn't miss a single murli.
Essence for Dharna:
1. Make everyone happy. Don't become moody. Become very, very sweet. Learn and teach others good manners.
2. Take advice from the Supreme Surgeon at every step. Continue to follow shrimat. Become sensible and imbibe every point of knowledge.
Blessing:May you be a victorious soul and a conqueror of Maya and always experience being under the canopy of protection by staying within the line of the code of conduct.
Remembrance of the Father is the canopy of protection. To the extent that you stay in remembrance, you will accordingly experience His company. To stay under the canopy means to remain constantly safe. Those who step out from under the canopy even in their thoughts are attacked by Maya. By your staying under the canopy and within the line of the code of conduct, no one would have the courage to enter. However, if you step outside the line, Maya is very clever. Therefore, become a conqueror of Maya with the Father’s company.
Slogan:The practice of being bodiless is the basis of bringing the time of completion close.
HINDI DETAIL MURALI

04/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे मीठे बच्चे - सदा यह स्मृति में रहे कि हमारा यह अन्तिम 84 वाँ जन्म है, अब वापिस घर जाना है, फिर अपने राज्य में आना है''
 
प्रश्न: बाप पक्का सौदागर है, कैसे?
उत्तर:
जो अभी साहूकार हैं, जिन्हें पैसे का नशा है, बाबा कहते हैं, तुम यहाँ की अपनी राजाई सम्भालो। उनका बाप स्वीकार नहीं करता है। गरीबों को ही बाबा ऊंच ते ऊंच बनाते हैं। गरीबों की पाई-पाई सफल कर उन्हें साहूकार बना देते इसलिए बाप को पक्का सौदागर कहा जाता है।
 
प्रश्न:बच्चों में कौन सी सुस्ती बिल्कुल नहीं होनी चाहिए?
उत्तर:
कई बच्चे मुरली सुनने वा पढ़ने में सुस्ती करते हैं। मुरली मिस कर देते हैं। बाबा कहते हैं बच्चे इसमें सुस्त मत बनो। तुम्हें एक भी मुरली मिस नहीं करनी है।
 
ओम् शान्ति।
 
बच्चों से बेहद का बाप पूछते हैं और जो भी गुरू गोसांई आदि हैं वह अपने फालोअर्स को बच्चे नहीं कहेंगे। आजकल तो अच्छे-अच्छे जवान विद्वान भी भाषण करते हैं वा बुजुर्ग मातायें अथवा पुरुष हैं, उनमें हिम्मत ही नहीं आयेगी जो कहें कि हे बच्चों। यह अक्षर वह कह सकते हैं जो गृहस्थ व्यवहार में हों। बच्चा अक्षर फैमली का है। बाप कह सकते हैं। वह सन्यासी आदि तो फैमली के नहीं हैं। वह हैं निवृत्ति मार्ग वाले। तो गृहस्थ व्यवहार के ख्यालात बुद्धि में नहीं आते। यह तो मात-पिता है तो जरूर बच्चे-बच्चे कहेंगे। तुम भी समझते हो बेहद का बाप हम बच्चों को बैठ समझाते हैं। पूछते हैं बच्चों तुम्हारा घर कौन सा है? (परमधाम) परमधाम से कोई समझेंगे नहीं। कहना चाहिए शान्तिधाम, निर्वाणधाम। तुमको याद करना है अपने घर को। जानते हो बाबा आया हुआ है, हमको श्रृंगार कर घर ले जायेंगे। फिर हम सुखधाम में आयेंगे। अभी तो यह है दु:खधाम। इनका तुमको सन्यास करना है। यह बेहद का सन्यास सिवाए परमपिता परमात्मा के और कोई सिखला सके। वह तो हद का अर्थात् घरबार का सन्यास करते हैं। यह तो मात-पिता है ना। मात-पिता घरबार कैसे छुड़ायेंगे? उनका तो धर्म ही है निवृत्ति मार्ग का। जैसे और-और धर्म हैं। आर्य समाजी, राधा स्वामी... अभी राधा का स्वामी कौन है? यह कोई भी नहीं जानते हैं। वास्तव में राधे-कृष्ण तो प्रिन्स-प्रिन्सेज़ हैं। आपस में दोनों सखा-सखी ठहरे। उनको राधा का स्वामी नहीं कहेंगे। जब राधा का स्वामी बनता है फिर नाम बदलकर लक्ष्मी-नारायण नाम पड़ेगा। श्री नारायण स्वामी है। हाँ, जब तक शादी नहीं की है तब तक स्वामी नहीं कहेंगे। यह समझने की बातें हैं।
बाप ने बच्चों से पूछा अपना शान्तिधाम, सुखधाम याद है? यह रावणपुरी दु:खधाम है। पुरी रहने की होती है। रावणपुरी में राम-सीता हैं नहीं। यूँ तो तुम सब सीतायें हो और बाप कहते हैं - मैं हूँ राम। मुझे तुम सीताओं को रावण की जेल से छुड़ाना है। जो सारी दुनिया समुद्र के बीच में है, उन पर रावण का राज्य है। रामराज्य तो सतयुग में था, जिसमें लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। था भारत पर राज्य। परन्तु उस समय और कोई खण्ड होने कारण कहा जाता है, यह भी विश्व के मालिक थे। हैं भारत के मालिक और कोई खण्डों का नाम निशान नहीं रहता। तो सारी दुनिया के मालिक ठहरे ना, और वहाँ तुम्हारा मीठे पानी पर राज्य चलता है। तो यह तुम बच्चों की बुद्धि में रहना चाहिए कि अब नाटक पूरा हुआ है, अभी वापिस घर जाना है। हमने 84 का चक्र लगाया है। मनुष्यों की बुद्धि में कुछ नहीं आता। ऐसे ही सुनी-सुनाई बात कह देते हैं। तुम जानते हो - हम 84 का चक्र लगाकर आये हैं। अभी हमको वापिस जाना है। फिर नयेसिर चक्र शुरू होगा। पुरानी दुनिया कलियुग से नयेसिर शुरू नहीं हो सकता। परन्तु नया चक्र सतयुग से शुरू होगा। यह सब बातें तुम बच्चों को ही समझाई जाती हैं, परन्तु कितनी बातें बच्चे भूल जाते हैं। धारणा होने कारण फिर वह खुशी का पारा नहीं चढ़ सकता। हमारा यह 84 वाँ अन्तिम जन्म है। फिर हम अपने घर जायेंगे। जब तक पवित्र नहीं बने हैं तब तक कोई वापिस नहीं जा सकते। जन्म लेना ही है। जो तुम पहले-पहले थे अब पिछाड़ी में हो। सब धर्म वाले अभी अन्त में भिन्न नाम, रूप देश, काल में हैं। गुरूनानक जिसने सिक्ख धर्म स्थापन किया, उसकी आत्मा कहाँ है? यहाँ ही भिन्न नाम-रूप में है। सबको पूरा पार्ट बजाना ही है। अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - नई दुनिया में जाने के लिए। पिछाड़ी में सबको हिसाब-किताब चुक्तू कर फिर जाना है। गुरूनानक की आत्मा फिर अपने समय पर आयेगी। सतयुग, त्रेता, द्वापर में वह सके। वह आती ही है कलियुग में। अपने समय पर आकर धर्म स्थापन करेगी। नम्बरवार अवतार आते हैं, जो आकर अपना धर्म स्थापन करते हैं। पहला नम्बर अवतार है भगवान का। अब निराकार कैसे अवतार ले? बताते हैं मैंने इस चोले का आधार लिया है। यह अपने जन्मों को नहीं जानते। शरीर तो इनका है ना। गाया भी जाता है - आये देश पराये। और सब अपने देश, अपने शरीर में आते हैं। हाँ धर्म स्थापक दूसरे के शरीर में सकते हैं, फिर उनका नाम होता है। पवित्र आत्मा आकर प्रवेश करेगी। जो पहली आत्मा है वह धर्म स्थापन नहीं करेगी, जो आत्मा प्रवेश करेगी वही स्थापना करेगी। सितम आदि पहले वाली आत्मा सहन करती है। जैसे क्राइस्ट की आत्मा आई वह तो सतोप्रधान थी, उनको कुछ सहन नहीं करना है। उनको तो पहले सतो में ही आना है। तो जो पहली आत्मा है, वह सहन करती है। दु: तो आत्मा को ही होता है ना, जब शरीर के साथ है। धर्मराज भी शरीर धारण कराए सज़ा देंगे। आत्माओं को फील होता है कि हम सज़ा खा रहे हैं इसलिए कहा जाता है पाप आत्मा, पुण्य आत्मा। पाप शरीर, पुण्य शरीर नहीं कहा जाता है। सन्यासी तो कह देते हैं आत्मा निर्लेप है, शरीर पर पाप लगता है। अनेक प्रकार के गुरू लोग हैं। बाबा ने बहुत गुरूओं का अनुभव किया है। बाबा हर एक से पूछते रहते थे - क्यों सन्यास किया? घरबार कैसे छोड़ा? बतलाते नहीं थे। तो मैं कहता था कि मैं कैसे समझूँ कि मैं भी कर सकूँगा वा नहीं? ऐसी-ऐसी बातें बड़े शुरूडनेस (समझदारी) से करते थे। अभी समझते हैं कि यह सारा जो मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है इनकी जड़जड़ीभूत अवस्था है। अभी फिर से नया शुरू होना है। प्रलय तो होती नहीं। शास्त्रों में महाप्रलय दिखाई है। वह तो होती नहीं। कहते हैं श्रीकृष्ण सागर में पीपल के पत्ते पर आया। यह सब हैं गपोड़े।
बाप कहते हैं - मैं तो आता हूँ आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करने। हमेशा पहले स्थापना फिर विनाश, पालना.. ऐसे कहना चाहिए। ऐसे नहीं कि पहले स्थापना, पालना, पीछे विनाश कहो। तो कोई सेन्सीबुल सुनेगा तो कहेगा यह तोते मुआफिक पढ़े हुए हैं। स्थापना, पालना फिर विनाश कैसे होगा! इसलिए कायदेमुज़ीब करेक्ट अक्षर बोलने हैं। स्थापना, विनाश, पालना। अभी ऊंचे ते ऊंच बाप की तुमको श्रीमत मिलती है। देते हैं ब्रह्मा के तन द्वारा, यह बाबा का शरीर मुकरर है। सेन्सीबुल बच्चे जो होंगे उनको कोई राय पूछनी होगी तो श्रीमत लेंगे। श्रीमत पर चलने से कभी धोखा नहीं खायेंगे। शिवबाबा की ही श्रीमत है। बाबा दूर थोड़ेही है। बाप देखते हैं बच्चे रांग चलते हैं वा राइट चलते हैं। हर एक को सर्जन से राय मिल सकती है। यह है सबसे बड़ा सर्जन। कोई भी बात में तकलीफ हो तो बाबा बैठा है। श्रीमत पर चलते रहो। समझो कोई गरीब बच्चा है, धारणा अच्छी है, सर्विसएबुल है, परन्तु गरीब है इसलिए आकर मिल नहीं सकता। ऐसे को टिकट भी मिल सकती है। बाप तो गरीबनिवाज़ है ना। ऐसे तो बाप को बच्चे चाहिए जो गरीब से गरीब हो और पढ़कर ऊंचे ते ऊंचा चढ़ जाये। आजकल सब गरीब हैं। 10-20 लाख तो कुछ भी नहीं हैं। 10-20 करोड़ हो तो साहूकार कहा जाए। बाबा ने समझाया है - पदमपति यह वर्सा ले नहीं सकेंगे। वह अर्पण हो सकें। बाबा एलाउ करेंगे। गरीबों की पाई-पाई सफल होती है। ऐसी क्या पड़ी है, यह भी पक्का सौदागर है इसलिए साहूकार आते ही नहीं हैं। बाप कहते हैं तुम अपनी राजाई सम्भालते रहो।
अब तुम बच्चे जानते हो - बाबा आकर सब वेदों, शास्त्रों का सार समझाते हैं। यह भी बाबा ने समझाया है - विष्णु को ब्रह्मा बनने में 5 हजार वर्ष लगते हैं और ब्रह्मा से विष्णु को निकलने में एक सेकण्ड... और कोई यह बातें समझ सके। बाबा कितना अच्छा हिसाब समझाते हैं। विष्णु की नाभी कमल से 84 जन्मों बाद अभी ब्रह्मा निकला है। अभी ब्रह्मा सरस्वती सो फिर लक्ष्मी-नारायण बन जाते हैं। सूर्यवंशी बनेंगे फिर चन्द्रवंशी बनेंगे। यह सारा चक्र बुद्धि में है। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा यह टापिक बहुत अच्छी है। सारे चक्र का राज़ इसमें जाता है। यह सब बातें सेन्सीबुल बच्चे अच्छी रीति धारण कर सकेंगे और प्वाइंट्स लिखते करेक्ट करते रहेंगे। भाषण जब करते हैं, कोई को याद नहीं रहता तो कागज सामने रखते हैं। तुम बच्चों को ओरली समझाना है। बैरिस्टर लोग बहुत अभ्यास करते हैं। फिर दूसरा वकील आरग्यू करेंगे तो किताब खोलकर देखेंगे। फिर बोलेंगे जज साहेब देखो फलानी लॉ बुक में यह है। वह फिर कहेंगे फलाने बुक में यह है। उन्हों के पास बहुत प्वाइंटस रहती हैं। इंजीनियर की भी बुद्धि चलती रहती है। तो हमको ऐसे-ऐसे प्लैन्स बनाने हैं। तुमको भी विचार चलाना है। टापिक की लिस्ट बनानी चाहिए। इस पर यह-यह प्वाइंट्स समझायेंगे। फिर सारी नॉलेज बुद्धि में जायेगी, फिर एक्यूरेट भाषण करेंगे। अचानक भाषण करेंगे तो गड़बड़ होगी। यह भी नम्बरवार प्रैक्टिस है। तब तो जो तीखे हैं उनको बुलाते हैं, आकर भाषण करो। समझते हैं यह बड़ी बहन है। भाईयों में जगदीश होशियार है। तो कहेंगे यह बड़ा भाई है तो फिर रिगार्ड पूरा रखना चाहिए। फिर बड़े का काम है छोटों को सिखाना। स्कूल में मैनर्स भी सिखलाते हैं। इसमें भी मैनर्स अच्छे चाहिए। दैवीगुण धारण करने हैं। मूडी नहीं बनना है। कभी मीठा, कभी कैसा वह फिर सर्विस नहीं कर सकते। बहुत मीठा बनना चाहिए। बहुत प्यार से किसको समझाना है तब अच्छा पद मिल सकता है। सभी को राज़ी करना है। यह तो जानते हो बाबा आकर सभी मनुष्य मात्र को खुश करते हैं। सर्व के सद्गति दाता, सर्व को सुख-शान्ति देने वाला है। प्रेम का सागर, सुख का सागर है। तुम्हारा बाप है तो बाप जैसा मीठा बनना पड़े। तुम कल्प-कल्प बाप का शो निकालते हो। शिव शक्ति पाण्डव सेना तुम स्वर्ग की स्थापना करते हो, टाइम लगता है। जब तक आसुरी गुण बदल दैवीगुण बन जायें। आत्मा पर जो जंक चढ़ी हुई है वह कैसे निकलेगी? योगबल से। जितना बाबा की याद में रहेंगे उतना कट उतरेगी। बच्चों को मुरली एक भी मिस नहीं करनी चाहिए। बहुत बच्चे सुस्त हैं जो कभी मुरली भी नहीं पढ़ते हैं। मुरली में बहुत अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स निकलती हैं। तो कभी भी मुरली मिस नहीं होनी चाहिए। परन्तु बाबा जानते हैं अच्छे-अच्छे बी.के. भी मुरली की परवाह नहीं करते। समझते हैं हम होशियार हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सभी को राज़ी करना है। मूडी दिमाग वाला नहीं बनना है। बहुत-बहुत मीठा बनना है। अच्छे मैनर्स सीखने और सिखलाने हैं।
2) हर कदम पर सुप्रीम सर्जन से राय लेनी है। श्रीमत पर चलते रहना है। सेन्सीबुल बन हर प्वाइंटस स्वयं में धारण करनी है।
 
वरदान:मर्यादा की लकीर के अन्दर सदा छत्रछाया की अनुभूति करने वाले मायाजीत, विजयी भव!
 
बाप की याद ही छत्रछाया है, जितना याद में रहते उतना साथ का अनुभव होता है। छत्रछाया में रहना अर्थात् सदा सेफ रहना। जो संकल्प से भी छत्रछाया से बाहर निकलते हैं उन पर माया का वार होता है। छत्रछाया के नीचे, मर्यादा की लकीर के अन्दर रहने से कोई की हिम्मत नहीं अन्दर आने की। लेकिन यदि लकीर से बाहर निकले तो माया है ही होशियार, इसलिए साथ के अनुभव से मायाजीत बनो।
 

स्लोगन: अशरीरी बनने का अभ्यास ही समाप्ति के समय को समीप लाने का आधार है।

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Details ( Page:- Murali 05-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 05.12.17      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe Bache – Tumhe loukik aloukik parivar se tod nibhana hai, lekin kisi me bhi moh nei rakhni hai, moh jit banna hai.
Ques – Kayamat ka samay hai, isilie baap ki kaunsi sresth mat sabko sunate raho.
Ans – baap ki sresth mat sunao ki kayamat ke pahle apne paapon ki hisab kitab chuktu kar lo. Apna bhavisya sresth banana k lie baap par poora poora balihar jao. Kayamat k pehle gyan aur yog se mukti Jeevan mukti ka varsha le lo. Sara purusarth abhi hi karna hai. Baap par sab kuch balihar karenge toh 21 janm k lie mil jayega. Baap ka banker har kadam par direction lete raho.
Om shanti

Dharna k lie mukhya sar
1-[font=Times New Roman]   [/font]Drama k patte par majbut rahna hai. Kisi bhi baat m naraj ni hona hai. Sada raajji rahna hai.
2-[font=Times New Roman]   [/font]Ek do ko sabdhan kar unnati ko paana hai. Dhanda adi karte bhi baap ki yaad me rahne ka purusarth karna hai.
Vardan – seva k bandhan dwara karm bandhano ko samapt karne wale viswa sewadhari bhav.
Slogan – apne devi swaroop ki smruti mei rah otoh ap par kisi ki vyarth najar nehi ja sakti.

English Summary ( 5th Dec 2017 )
. Sweet children, you have to fulfil your responsibilities to your worldly and your spiritual families, but you mustn't have attachment to anyone. Become conquerors of attachment.
Question:This is the time of settlement. Therefore, what elevated directions should you continue to tell everyone about?
Answer:The Father's elevated directions that you have to tell everyone are: Settle the karmic accounts of your sins before the time of settlement. In order to make your future elevated, surrender yourself completely to the Father. Claim your inheritance of liberation and liberation-in-life before the time of settlement with knowledge and yoga. Only at this time do you have to make all this effort. If you surrender everything to the Father, everything you receive in return will be for 21 births. For as long as you belong to the Father, continue to take directions at every step.
 
Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Remain firmly on the rails of the drama. Don't become upset about anything. Stay constantly happy.
2. Caution one another and continue to make progress. While doing your business, make effort to stay in remembrance of the Father.
Blessing:May you be a world server and finish your karmic bondages with the bond of service.
While living at home with your family, never think that it is a karmic account or a karmic bondage, for that too is service. When you are tied in the bond of service, your karmic bondages finish. Until and unless there is the motive to serve, karmic bondages will pull you. When there are karmic bondages, there will be waves of sorrow whereas when there is the bond of service, there will be happiness. Therefore, finish your karmic bondages with the bond of service. Wherever in the world a world server is, it is for world service.
Slogan:Maintain the awareness of your deity form and no one’s wasteful vision will fall on you.
HINDI DETAIL MURALI

05/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 ''मीठे बच्चे - तुम्हें लौकिक अलौकिक परिवार से तोड़ निभाना है, लेकिन किसी में भी मोह नहीं रखना है, मोह जीत बनना है''
प्रश्न: कयामत का यह समय है, इसलिए बाप की कौनसी श्रेष्ठ मत सबको सुनाते रहो?
उत्तर:
बाप की श्रेष्ठ मत सुनाओ कि कयामत के पहले अपने पापों का हिसाब-किताब चुक्तू कर लो। अपना भविष्य श्रेष्ठ बनाने के लिए बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाओ। कयामत के पहले ज्ञान और योग से मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा ले लो। सारा पुरुषार्थ अभी ही करना है। बाप पर सब कुछ बलिहार करेंगे तो 21 जन्म के लिए मिल जायेगा। बाप का बनकर हर कदम पर डायरेक्शन लेते रहो।
 
ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। अभी तुमको 3 बाप से तोड़ निभाना है। भक्तिमार्ग में दो बाप से तोड़ निभाना होता है। जब सतयुग में हो तो एक बाप से तोड़ निभाना होता है। ठीक है ना? हिसाब बुद्धि में बैठता है? जिसका बनना होता है, उनसे तोड़ भी निभाना होता है इसलिए बाप कहते हैं लौकिक कुटुम्ब परिवार से भी तोड़ निभाना है अन्त तक। कोई लौकिक सम्बन्धी को चिट्ठी लिखते हो तो वाया पोस्ट आफिस जाती है। यहाँ भी बेहद के बाप को चिट्ठी लिखते हो, शिवबाबा केयरआफ ब्रह्मा। इन बातों को सिवाए तुम्हारे और कोई नहीं समझते। यहाँ कोई नया आदमी आकर बैठे और बाबा कहे, तुमको 3 बाप हैं, तो समझ न सके। एक है लौकिक बाप। दूसरा - यह संगमयुगी अलौकिक बाप और तीसरा पारलौकिक बाप तो सबका है ही। भक्ति मार्ग में भी है तो अभी भी है। यह कोई जानते नहीं। सिर्फ उनका गायन पूजन करते हैं। तुम बच्चे तीनों ही बाप की जीवन कहानी जानते हो। कितनी बातें समझानी पड़ती हैं।
सतयुग में सब सद्गति में हैं। सुखी ही सुखी हैं। सभी सुखधाम, शान्तिधाम में हैं। रावणराज्य में सभी दु:खी हैं। देवतायें वाममार्ग में जाते हैं तो गिरने लग पड़ते हैं। दिखलाते हैं सोने की द्वारिका पानी के नीचे चली गयी। यह चक्र फिरता रहता है। नई ऊपर में आयेगी तो पुरानी फिर नीचे चली जायेगी। फिर सतयुग नीचे जायेगा तो कलियुग ऊपर आ जायेगा। फिर सतयुग ऊपर कब आयेगा? 5 हजार वर्ष बाद। बच्चों की बुद्धि में यह सारा नॉलेज आ गया है। नॉलेज तो सहज है। सिर्फ योग की मेहनत करनी पड़ती है। कोई जास्ती याद करते हैं, कोई थोड़ा याद करते हैं। तो मात-पिता बच्चों को समझाते हैं - लौकिक सम्बन्धियों से भी तोड़ निभाना है। आज नहीं तो कल उन्हों की भी बुद्धि में बैठेगा। देखेंगे यह तो ठीक है। एक बाप को याद करना है। कोई भी साधू-सन्त गुरू आदि को याद नहीं करना है। याद चैतन्य को भी करते हैं तो जड़ को भी करते हैं। सतयुग में कोई में भी मोह नहीं रहता। वहाँ मोहजीत रहते हैं। यहाँ सबमें मोह रहता है। फ़र्क है ना। ड्रामा में हर एक युग की रसम-रिवाज अपनी-अपनी है। यह बाप बैठ समझाते हैं क्योंकि बाप ही नॉलेजफुल है। है यह भी बाप, वह भी बाप। वह भी क्रियेटर, यह भी क्रियेटर। ब्रह्मा द्वारा क्रियेट करते हैं। एडाप्ट करते हैं। एडाप्ट करना अर्थात् अपना बनाना। शूद्र धर्म वाले, जिनका बहुत जन्मों के भी अन्त का जन्म है, उनको बाप एडाप्ट करते हैं। तुम बच्चे बाप को जान गये हो और बाप द्वारा सृष्टि चक्र को भी जान चुके हो। बाप द्वारा क्या वर्सा मिलता है, उनको भी जान गये हो। तुम बड़े हो, समझते हो तब तो एडाप्ट हुए हो। बिगर समझ एडाप्ट कैसे होंगे। कोई को अपना बच्चा नहीं होता तो दूसरे को अपना बनाते हैं। साहूकार का ही बच्चा बनेंगे। गरीब का थोड़ेही बच्चा बनेंगे। बाप कहते हैं मुझे बच्चे चाहिए। जरूर एडाप्ट करेंगे। यह भी तुम जानते हो - एडाप्ट उनको करेंगे जिनको कल्प पहले किया है। जो कल्प पहले पार्ट चला है, वही एक्ट रिपीट होती जायेगी। जब मेरे बनेंगे तब उनको पढ़ाऊंगा। बाप को और घर को याद करो। सुखधाम और शान्तिधाम को याद करना - बहुत सहज है। परन्तु बुद्धि बड़ी विशाल चाहिए। छोटे बच्चे समझ नहीं सकेंगे। वह सिर्फ बाबा, बाबा कहेंगे और कोई के पास जायेंगे नहीं। यहाँ तो सब हैं गुप्त बातें। समझ भी है - बुद्धि को ताकत मिलती है। ताकत मिलने से सोने के बन जाते हैं। कोई कमजोर होते हैं तो उनको सोने का सोल्युशन पिलाते हैं। सोने का पानी भी बनाते हैं। यहाँ तो तुमको रूहानी नॉलेज मिल रही है। यह नॉलेज ही इनकम है। नॉलेज तो सबको एक ही मिलती है, फिर जो पुरुषार्थ करे। इसमें मूँझने वा घबराने की कोई बात नहीं। सिर्फ बाबा का बनना है। बाप के वर्से को याद करना है। सारा दिन तो निरन्तर याद कर नहीं सकेंगे। धन्धा आदि भी करना है। कोई को तो धन्धा आदि भी नहीं है, फिर भी याद नहीं कर सकते। जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं हुई है, पुरुषार्थ करते रहना है। वह वायुमण्डल दिखाई पड़ेगा। समझेंगे अभी समय नजदीक आता जाता है। जब बहुत दु:ख आयेगा तो फिर भगवान को याद करते रहेंगे। मौत सामने दिखाई पड़ेगा। तुम्हारे में भी सबको अपनी अवस्था का मालूम पड़ जायेगा कि हमारी कमाई कम है। योग होगा तो आत्मा से खाद निकलती जायेगी। फिर बाबा भी बुद्धि का ताला ढीला करेंगे। मनुष्य बीमारी में ईश्वर को याद करते, डर रहता है। सब उनको याद कराते हैं - राम कहो, राम कहो। बाप भी कहते हैं बाप और वर्से को याद करते रहो। एक दो को सावधान कर उन्नति को पाना है। ऐसे नहीं पुरुष चले, स्त्री को न चलाये। यह जोड़ा है हाफ पार्टनर का, परन्तु आजकल हाफ पार्टनर भी समझते नहीं हैं। कोई-कोई इज्जत रखते हैं। नहीं तो आजकल बच्चे ऐसे निकल पड़े हैं जो बाप की मिलकियत को उड़ा देते हैं, माँ को पूछते भी नहीं। वहाँ तो यह सब बातें होती नहीं, कभी दु:ख नहीं होता। यहाँ पहले-पहले दु:ख ही मिलता है, सगाई की और लगी काम कटारी। देवियों को तलवार आदि दिखाते हैं। वास्तव में यह हैं ज्ञान के अलंकार। स्वदर्शन चक्र भी देवताओं को नहीं हैं। यह तुम ब्राह्मणों के हैं। गदा भी तुम्हारी निशानी है। ज्ञान की गदा से तुम माया पर जीत पाते हो। बाकी वहाँ ऐसी चीज़ों की दरकार नहीं रहती। वहाँ बड़ी मौज से रहते हैं। तपस्या करने की भी दरकार नहीं। वह तो तपस्या का फल है। सूक्ष्मवतन में हैं फरिश्ते। वह है फरिश्तों की दुनिया। यहाँ फरिश्ते नहीं रहते। देवताओं को देवता कहेंगे। वह हैं फरिश्ते और यहाँ हैं मनुष्य। सभी का अलग-अलग सेक्शन है। सतयुग में देवतायें राज्य करते हैं। वह है टाकी दुनिया। सूक्ष्मवतन में है मूवी दुनिया। दुनिया भी 3 हैं, मूलवतन, सूक्ष्मवतन और स्थूल वतन। तीन लोक कहते हैं ना। तुम्हारी बुद्धि में यह प्रैक्टिकल में है। मनुष्य तो सुनी-सुनाई पर चलते हैं। तुम अच्छी रीति जानते हो कि यह दुनिया का चक्र कैसे फिरता है। तीनों लोकों को जानते हो। सिवाए बाप के आदि-मध्य-अन्त का राज़ कोई बता नहीं सकते। कोई भी त्रिकालदर्शी है नहीं। यह थोड़ेही कोई जानते हैं कि मूलवतन में आत्मायें कहाँ, कैसे रहती हैं। तुम जानते हो वहाँ आत्माओं का झाड़ है। वहाँ से नम्बरवार आते हैं। हम सब आत्मायें बच्चे शिवबाबा की माला हैं। जैसे सिजरा बनाते हैं। क्रिश्चियन लोग भी झाड़ बनाते हैं। खुशी मनाते हैं। क्राइस्ट का बर्थ डे मनाते हैं। अभी तुम किसका बर्थ डे मनायेंगे? मनुष्यों को यह पता ही नहीं कि हमारा धर्म स्थापक कौन है? और सभी धर्म स्थापन करने वाले का हिसाब-किताब निकालते हैं। देवी-देवता धर्म किसने स्थापन किया, यह किसको पता नहीं है। बाप बैठ समझाते हैं, मैजारिटी माताओं की है। शक्तियों का मान बढ़ाना चाहिए। ऐसे नहीं कि हमको देह-अभिमान आ जाए, हम होशियार हैं। नहीं। फिर भी मान रखना है माता का। नाम ही है ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय। ज्ञान का कलष माताओं के सिर पर रखते हैं। वह तीखी हैं। सरस्वती के हाथ में सितार दी है। कृष्ण और सरस्वती के कनेक्शन का भी पता नहीं है। सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है। यह भी किसको मुश्किल पता होगा। हर एक बात अच्छी रीति समझाई जाती है।
बाप ने समझाया है - इस ज्ञान-योग के सिवाए कोई भी मुक्ति-जीवनमुक्ति पा नहीं सकते। और सब तो यह पढ़ेंगे भी नहीं। हर एक को अपना हिसाब-किताब चुक्तू करना है। पाप का दण्ड तो मिलता ही है। दुनिया वाले यह नहीं समझते कि अब कयामत का समय है। तुम्हारा सब पापों का हिसाब-किताब चुक्तू होता है। भविष्य के लिए इतना जमा करना है जो आधाकल्प चल सके। सारा पुरुषार्थ अभी करना है। बाप कहते हैं सब कुछ बलिहार कर दो तो उनका फल 21 जन्म के लिए मिल जायेगा। गरीब झट सौदा कर सकते हैं। जिनके पास लाख-करोड़ हैं, बुद्धि में बैठ न सके। बाप कुछ लेते नहीं हैं। कहते हैं - तुम ट्रस्टी होकर सम्भालो। श्रीमत पर तुम चलो। मैं तो जीता हूँ। कोई जीते जी भी ट्रस्ट में देते हैं। समझते हैं अचानक मर जाऊं तो झगड़ा पड़ जायेगा। बाबा भी जीते जी बैठा है। कहते हैं - बाप का बन डायरेक्शन लो। यह करूँ वा न करूँ। बाबा राय देंगे भल यह करो - हर एक की अवस्था पर मदार है। कोई विल भी कर लेते हैं। मोह भी बहुतों में है, जो अपने पाँव पर होगा उनको भी दे देंगे। बाप के पास कोई चालाक भी हैं - बच्चों को बांट कर बाकी अपने लिए रखते हैं। बस हम उनसे चलते हैं। ऐसे भी करते हैं। यह तो बेहद का बाप है। हर एक बच्चे को जानते हैं, ड्रामा को भी जानते हैं। समझते हैं इसमें पैसे की दरकार नहीं है। उस मिलेट्री पर गवर्मेन्ट का बहुत खर्चा होता है। तुम्हारा खर्चा कुछ भी नहीं। रात-दिन का फ़र्क है। तुम जानते हो यह सारी मिलकियत आदि खत्म हो जाने वाली है। हमको धरनी ही नई सतोप्रधान चाहिए। अभी तो तमोप्रधान है। लक्ष्मी का आह्वान करते हैं, तो सारे घर की सफाई करते हैं, शुद्ध घर में देवी आये।
बाबा ने समझाया है देवतायें इस धरती पर पैर नहीं रखते। वह सिर्फ साक्षात्कार कराते हैं। साक्षात्कार में पैर थोड़ेही धरनी पर होते हैं। मीरा भी ध्यान में देखती थी। यहाँ कोई देवता आ न सके। देवतायें सतयुग में होते हैं कलियुग में फिर उनके अगेन्स्ट है। देवताओं और असुरों की लड़ाई है नहीं। वास्तव में यह है माया से लड़ाई। योगबल से माया पर जीत पहनाने वाला, सर्व का सद्गति दाता एक बाप है। पहले-पहले है ही रुद्र माला। वहाँ इस माला को कोई जानते ही नहीं। तुम संगमयुग पर ही जानते हो कि ब्राह्मणों की माला तो बन न सके। पीछे है फिर विष्णु की माला। यह सब हैं डिटेल की बातें। कोई कहते हैं हमें धारणा नहीं होती है। अच्छा कोई हर्जा नहीं है। बाप को याद करना तो सहज है ना। तुम बाप को कैसे भूलते हो। जिस बाप से स्वर्ग का वर्सा मिलता है। जबरदस्त आमदनी है। फिर भी माया बुद्धि का योग हटा देती है। साजन जो श्रृंगार कराए महारानी बनाते हैं, ऐसे साजन को भूल जाते हैं। आधाकल्प माया का राज्य चलता है। अभी तुम माया पर जीत पाकर जगतजीत बनते हो।
यह सारी दुनिया कैसे चलती है - तुम आदि से अन्त तक जानते हो। नाटक देखकर आते हैं, उसमें मालूम पड़ता है पिछाड़ी में अब यह सीन होगी। इसमें ऐसे नहीं है। तुम जानते हो सेकण्ड बाई सेकण्ड जो चलता है सो ड्रामा। ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहना है। जो कुछ हो जाता, ड्रामा। नाराज़ होने की कोई बात नहीं। कोई ने शरीर छोड़ा उनको जाए अपना पार्ट बजाना है। एक शरीर छोड़ दूसरा लिया। तुम्हारी बुद्धि में यह स्वदर्शन चक्र फिरता रहना चाहिए। तुमको शंखध्वनि करनी है, बाप का परिचय देना है। हाथ में चित्र हो कि यह लक्ष्मी-नारायण भारत के मालिक थे। अभी कलियुग है। फिर बाप आया है - राज्य भाग्य देने। हम ब्रह्माकुमार-कुमारी पढ़ रहे हैं, दादे से वर्सा ले रहे हैं। तुमको भी लेना हो तो लो। यह है तुम्हारा निमंत्रण फिर बहुत आयेंगे, वृद्धि होती जायेगी। शिव जयन्ती पर भी अच्छा ही आवाज होगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ड्रामा के पट्टे पर मजबूत रहना है। किसी भी बात में नाराज़ नहीं होना है। सदा राज़ी रहना है।
2) एक दो को सावधान कर उन्नति को पाना है। धन्धा आदि करते भी बाप की याद में रहने का पुरुषार्थ करना है।
 
वरदान:सेवा के बंधन द्वारा कर्म-बन्धनों को समाप्त करने वाले विश्व सेवाधारी भव!
प्रवृत्ति में रहते हुए कभी यह नहीं समझो कि हिसाब-किताब है, कर्मबन्धन है...लेकिन यह भी सेवा है। सेवा के बन्धन में बंधने से कर्मबन्धन खत्म हो जाता है। जब तक सेवा भाव नहीं होता तो कर्मबन्धन खींचता है। कर्मबन्धन होगा तो दु:ख की लहर आयेगी और सेवा का बन्धन होगा तो खुशी होगी इसलिए कर्मबन्धन को सेवा के बंधन से समाप्त करो। विश्व सेवाधारी विश्व में जहाँ भी हैं, विश्व सेवा अर्थ हैं।
 

स्लोगन: अपने दैवी स्वरूप की स्मृति में रहो तो आप पर किसी की व्यर्थ नज़र नहीं जा सकती।

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Details ( Page:- Murali 06-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 06.12.17      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe Bache  Baap ko aur chakra ko yaad karo, much se kuch bhi bolne ki darker ni, sir fish nark se dil hata do toh tum ever nirogi ban jayenge.
Question – Baap direct aakar apne bachho ki sresth pralabdh banana k lie kaunsi ray dete hai.
Ans – bacche ab tumhara sab kuch khatm honewala hai. Kuch bhi kaam ni ayega. Isilie sudame ki tarah apni bhavisya pralabdh bana lo. Baap direct aya hai toh aapna sab kuch safal kar lo. Hospital kom college khol do, jisse bahuton ka kalyan ho. Sabko raasta batao. Srimat par sada chalet raho.
Om shanti

Dharna k lie mukhya sar
1-Issh antim janm mai sampoorn pavitra ban baap ki yaad mei rahna hai. Ish patit duniya se dil hata dena hai.
2-swadarshan chakradhari banna hai. Hospital kom college khol aneko ka kalyan karna hai. Har kadam par supreme surgeon se shremat leni hai.
Vardan – swadarshan chakra ke title ki smruti dwara par darshan mukt banne wale mayajit bhav.
Slogan – Vanprasth sthiti ka anubhav karo aur karao toh bachpan ke khel samapt ho jayenge.

English Summary ( 6th Dec 2017 )
.Sweet children, remember the Father and the cycle. There is no need to say anything through your lips. Simply remove your hearts from this hell and you will become ever free from disease.
 
Question:What advice does the Father come and give you children directly in order for you to make your reward elevated?
Answer:
Children, everything you have is now going to finish. Nothing will be of any use. Therefore, like Sudama, create your future reward. The Father has come directly and so you should use everything you have in a worthwhile way. Open a hospital-cum-college through which many can benefit. Show everyone the path. Always continue to follow shrimat.
 
Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Become completely pure in this final birth, and stay in remembrance of the Father alone. Remove your heart from this impure world.
2. Become a spinner of the discus of self-realisation. Open a hospital-cum-college and benefit many. Take shrimat from the Supreme Surgeon at every step.
 
Blessing:May you be aware of your title of “A spinner of the discus of self-realisation” and thereby become a conqueror of Maya and free from looking at others.
At the confluence age, the Father Himself gives you children different titles. Keep those titles in your awareness and you will easily be able to stabilise in your elevated stage. Your intellect should not just speak about it but you should set yourself on that seat. Let your stage be according to your title. If you have the title of a spinner of the discus of self-realisation in your awareness, then you cannot look at others. To be a spinner of the discus of self-realisation means to be a conqueror of Maya. Maya will not then even have the courage to come in front of you. No one can stay in front of the discus of self-realisation.
Slogan:Experience the stage of retirement and give others this experience and all games of childhood will finish.
HINDI DETAIL MURALI

06/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 ''मीठे बच्चे - ''मीठे बच्चे - बाप को और चक्र को याद करो, मुख से कुछ भी बोलने की दरकार नहीं, सिर्फ इस नर्क से दिल हटा दो तो तुम एवर निरोगी बन जायेंगे''
 
प्रश्न:बाप डायरेक्ट आकर अपने बच्चों की श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने के लिए कौन सी राय देते हैं?
उत्तर:
बच्चे, अब तुम्हारा सब कुछ खत्म होने वाला है। कुछ भी काम नहीं आयेगा इसलिए सुदामे की तरह अपनी भविष्य प्रालब्ध बना लो। बाप डायरेक्ट आया है तो अपना सब कुछ सफल कर लो। हॉस्पिटल कम कॉलेज खोल दो जिससे बहुतों का कल्याण हो। सबको रास्ता बताओ। श्रीमत पर सदा चलते रहो।
 
ओम् शान्ति।

 
बेहद का बाप बच्चों को समझा रहे हैं। समझाया उसको जाता है जो बेसमझ होते हैं। तुम जानते हो कि बरोबर सब पतित हैं और पतित-पावन बाप को याद करते हैं। पतित मनुष्य को जरूर बेसमझ कहेंगे। सभी बुलाते हैं कि हे पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ। भारतवासी जानते हैं कि सतयुग में यह भारत पावन था। पावन गृहस्थ धर्म था, इस समय पतित गृहस्थ अधर्म है। धर्मात्मा पावन को कहा जाता है। इस भारत में 5 हजार वर्ष पहले जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो उनको पावन राज्य कहा जाता था। नर और नारी दोनों पावन थे। बाप बैठ समझाते हैं आधाकल्प से भक्ति मार्ग चला है। जप-तप आदि करना, वेद अध्ययन करना, यह सब भक्ति मार्ग है, इससे मुझे कोई प्राप्त नहीं कर सकता। मुझ बाप को जानते ही नहीं हैं। यह सब वेस्ट आफ टाइम, वेस्ट आफ इनर्जी करते हैं। द्वापर से लेकर भक्ति मार्ग शुरू होता है। फिर देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं। लाखों करोड़ों रूपया खर्च कर देवताओं के मन्दिर बनाते हैं। सोमनाथ का मन्दिर कितना हीरे-जवाहरों से सजा हुआ था। उस समय के हिसाब अनुसार करोड़ों रुपये खर्च नहीं किया होगा क्योंकि उस समय तो हीरे-जवाहर आदि का दाम कुछ भी नहीं रहता। इस समय अगर वह मन्दिर होता तो अथाह पदमों की मिलकियत हो जाए।
अब बाप समझाते हैं मीठे बच्चे वेद, शास्त्र अध्ययन करना, यह भक्ति है, उसको ज्ञान नहीं कहा जाता। सतयुग में तीर्थ आदि नहीं मानते हैं। गंगा-जमुना नदियाँ तो सतयुग में भी हैं। अभी भी हैं। सतयुग में कोई तीर्थ करने के लिए नदियाँ नहीं थी। बाप तो है ज्ञान का सागर, वह बैठ ज्ञान देते हैं। आधाकल्प यह भक्ति चलती है। पहले अव्यभिचारी भक्ति होती है। शिव की ही पूजा करते हैं। फिर देवताओं की, अभी तो भक्ति व्यभिचारी हो गई है। भक्ति करते, शास्त्र आदि पढ़ते रहते हैं तो सब भगत हो गये। सजनियाँ मुझ एक साजन को याद करती हैं। भक्तों की रक्षा करने वाला है भगवान। तो जरूर भक्ति में तकलीफ होती है तब तो कहते हैं आकर हमको लिबरेट करो। दु:ख से मुक्त करो। गाइड बन मुक्तिधाम में ले चलो। उनको यह पता नहीं है कि भगवान कौन है। शिव वा शंकर के मन्दिर में जाते हैं। शिव-शंकर को इकट्ठा कर दिया है। हैं दोनों अलग-अलग, वह निराकार, वह सूक्ष्म शरीरधारी। वह मूलवतन में रहने वाला, वह सूक्ष्मवतन में रहने वाला। तो बाप समझाते हैं मन्दिर में बैल दिखाते हैं। समझते हैं शिव-शंकर की बैल पर सवारी थी। अब शिव के लिए कहते हैं वह सर्वव्यापी है। ऐसे नहीं कहेंगे कि शिव शंकर सर्वव्यापी हैं। एक परमपिता परमात्मा निराकार को कहते हैं। अब बाप कहते हैं देखो मैं निराकार तुमको कैसे पढ़ाता हूँ। बैल पर कोई सवारी थोड़ेही होती है। हमारी सवारी बैल पर क्यों दिखाई है? मैं तो साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करके आता हूँ। इनके 84 जन्मों की कहानी बैठ तुमको सुनाता हूँ। तुम भी ब्रह्मा मुख वंशावली आकर बने हो। इनका नाम है भागीरथ अर्थात् भाग्यशाली रथ क्योंकि पहले-पहले यह सुनते हैं और यही सौभाग्यशाली हैं। सतयुग में बहुत थोड़े होते हैं। बाकी सब आत्मायें वापिस चली जाती हैं अपने घर, जहाँ से आई हैं। यह कर्मक्षेत्र है। सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। मूलवतन, सूक्ष्मवतन में यह सतयुग त्रेता नहीं होते हैं। यह ड्रामा का चक्र यहाँ फिरता है। आधाकल्प ज्ञान सतयुग-त्रेता, आधाकल्प भक्ति द्वापर-कलियुग। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था फिर लक्ष्मी-नारायण दी फर्स्ट, सेकेण्ड.. राजाई चलती है। त्रेता में है चन्द्रवंशी राम की डिनायस्टी। सतयुग में 8 जन्म, त्रेता में 12 जन्म। यह 84 जन्मों की कहानी बाप ही समझाते हैं। बाप अपने ब्राह्मण बच्चों को ही मिलते हैं और किसको नहीं। बच्चे बने हैं तब उनको पढ़ाते हैं। बाप कहते हैं - मैं तुम्हारा बाप-टीचर-सतगुरू हूँ। सद्गति कर साथ ले जाता हूँ। पावन होने का बहुत सहज उपाय है, जो तुमको बतलाता हूँ। यहाँ बैठ तुम क्या करते हो? बच्चे कहते हैं - बाबा हम आपको याद करते हैं। आपका फरमान है कि निरन्तर मुझे याद करने का पुरुषार्थ करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। फिर तुम पवित्र सतोप्रधान बन जायेंगे। अब तुम तमोप्रधान हो, याद से ही खाद निकलेगी। कोई तकलीफ की बात नहीं। एवर निरोगी बनने के लिए कितनी सहज युक्ति है। देवतायें कभी बीमार नहीं होते। इस याद से ही तुम निरोगी बनेंगे। पाप भस्म होने से तुम पावन बन जायेंगे। बड़ी भारी कमाई है। घूमो, फिरो सिर्फ मुझे याद करो। पहले यह प्रैक्टिस करनी है। याद करने से हम 21 जन्म के लिए निरोगी बन जायेंगे। कोई तकलीफ की बात नहीं, सिर्फ मामेकम् याद करो। यह बाप ने आत्माओं को कहा, हे आत्मायें सुनती हो? बाप मुख से कहते हैं मुझे याद करो और घर को याद करो। अब यह नर्क खलास होना है। जाना है अपने घर। भोजन बनाते समय भी याद का पुरुषार्थ करो। भल तुम कर्मयोगी हो तो भी कम से कम 8 घण्टे तक जरूर पहुँचो। 5 मिनट, 10 मिनट, आधा घण्टा ऐसे चार्ट को बढ़ाते रहो। जाँच करते रहो हमने कितना समय बाप को याद किया? जिस बाप से वैकुण्ठ की बादशाही मिलती है, 21 जन्मों के लिए सदा निरोगी बनते हैं। कितनी सहज युक्ति है। चक्र का नॉलेज समझाया है कि चोटी ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र यह चक्र याद करना है। बीज और झाड़ को याद करो। अभी तुम जानते हो एक धर्म की स्थापना हो तो दूसरे धर्म विनाश हो जायेंगे। सतयुग में एक ही धर्म है। तुमको मेहनत ही इसमें है। बाप कहते हैं मुझ बीज को याद करो और झाड़ को याद करो। स्थापना, विनाश और पालना... यह है बहुत सहज। सहजयोग और सहज ज्ञान। बीज से झाड़ कैसे निकलता है, यह तुम्हारी बुद्धि में ज्ञान है। रहो भल गृहस्थ में परन्तु पवित्र रहना है। यह तो अच्छा है ना। बाप कहते हैं 63 जन्म तुमने नर्क में गोते खाये हैं। पाप किये, अब बिल्कुल ही पाप आत्मा बन पड़े हो। रावण की मत पर चलते आये हो। गाँधी भी रामराज्य चाहते थे। इसका मतलब रावण राज्य में थे। मनुष्यों की बुद्धि कितनी मलीन हो गई है। कुछ भी समझते नहीं हैं। स्वर्ग कब था किसको पता ही नहीं है। लक्ष्मी-नारायण को 5 हजार वर्ष हुए हैं, यह किसको मालूम नहीं है। सतयुग की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं। आधाकल्प है ज्ञान, आधाकल्प है भक्ति फिर जब पुरानी दुनिया हो जाती है तो आता है वैराग्य। इस नर्क से दिल हटा देते हैं।
तुम यहाँ बैठे बहुत कमाई करते हो। बाप कहते हैं - तुम चक्रवर्ती राजा बनते हो। यह तुम्हारा अन्तिम 84 वाँ जन्म है, विनाश सामने खड़ा है। मृत्युलोक का विनाश अमरलोक की स्थापना हो रही है। अमरनाथ बाबा से हम सत्य-नारायण बनने की सत्य कथा सुन रहे हैं। है एक कथा। शास्त्र आदि कितने ढेर बनाये हैं। करोड़-पदम रूपये खर्च करते हैं। है सब झूठ। बाप सच बताए सचखण्ड की स्थापना करते हैं। कितना अच्छी रीति समझाया जाता है। कैसी भी अबलायें, गणिकायें, अहिल्यायें उस स्वर्ग का मालिक बन सकती हैं। तुम्हारे पास अभी क्या रखा है? अमेरिका में क्या है? बड़े-बड़े महल हैं। वह तो अभी गिरे कि गिरे। स्वर्ग में तो अकीचार धन था। यहाँ तो धन है ही नहीं। अमेरिका के व्हाइट हाउस को क्या लूटेंगे? कुछ भी रखा नहीं है। वहाँ सतयुग में तो गरीब से गरीब का महल भी यहाँ से अच्छा होगा। चाँदी सोना लगा हुआ होगा। वहाँ सब सस्ताई रहती है, सबको अपनी जमीन रहती है। सुदामे का मिसाल... भक्ति मार्ग में दो मुट्ठी ईश्वर अर्थ देते आये हो। कोई 5-10-100 रुपये भी दान करते हैं, जिसका एवजा दूसरे जन्म में मिलता है इसलिए ही मनुष्य दान-पुण्य आदि करते हैं। कोई हॉस्पिटल खोलते हैं तो दूसरे जन्म में तन्दरुस्ती अच्छी मिलती है। कोई बीमारी नहीं होती है। कोई कॉलेज बनाते हैं तो दूसरे जन्म में पढ़कर होशियार हो जाते हैं। एक जन्म का फल दूसरे जन्म में मिलता है। अब परमपिता परमात्मा निराकार बाप तो दाता है। बाप कहते हैं - बच्चे एक हॉस्पिटल कम कॉलेज खोलो, इसमें बहुतों का कल्याण होगा। इसका फल तुमको 21 जन्म के लिए मिलेगा। वह है इनडायरेक्ट एक जन्म के लिए, यह है डायरेक्ट, 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध मिलती है क्योंकि अब बाप डायरेक्ट बैठे हैं। समझाते हैं तुम्हारा सब कुछ खत्म होने वाला है। महल माड़ियाँ सब मिट्टी में मिल जानी हैं इसलिए अब भविष्य की कमाई करो जो तुम्हारे काम आये। जो भी आये उसको रास्ता बताओ, बाप को याद करो तो तुम्हारी कट निकलेगी। पारलौकिक बाप है। बाप कहते हैं श्रीमत पर चलने से तुम स्वर्ग के मालिक, पारसबुद्धि बन सकते हो। कितनी युक्तियाँ भी समझाते रहते हैं। हर एक के कर्म का हिसाब अपना-अपना है। बाप कर्म-अकर्म-विकर्म की गति बैठ समझाते हैं। कोई भी तकलीफ हो तो सर्जन के पास आकर श्रीमत लो। अहिल्याओं, कुब्जाओं... सबको यह रास्ता बताना है। पवित्रता पर ही हंगामा होता आया है। विष नहीं दिया तो मारने लग पड़ते। घर से निकाल देते हैं। कितना हंगामा करते हैं। बाबा कहते हैं इस ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न बहुत पड़ेंगे। अबलाओं पर अत्याचार बहुत होंगे और सतसंगों में कभी अत्याचार नहीं होते हैं। यहाँ पर विघ्न पड़ते हैं। बाबा कहते हैं - कितने पतित बन पड़े हैं। अभी तुम पवित्र बनते हो - पावन दुनिया का मालिक बनने के लिए। बाप का फरमान है यह अन्तिम जन्म पवित्र बन मुझे याद करो तो विकर्म विनाश हों। इसका नाम ही है सहज राजयोग और कोई शास्त्र में यह युक्ति नहीं है। गीता में है देह के सब धर्म त्याग मुझ अपने बाप को याद करो। अब कृष्ण तो भगवान है नहीं। भगवान सब आत्माओं का बाप एक है। शरीर का लोन लिया है, यह है भाग्यशाली रथ। इनको खुशी तो होती है कि मेरा शरीर भगवान काम में लाते हैं। इस शरीर में बाप आकर सबका कल्याण करते हैं। बाकी बैल आदि नहीं है। इन बातों को नया क्या समझे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस अन्तिम जन्म में सम्पूर्ण पवित्र बन बाप की याद में ही रहना है। इस पतित दुनिया से दिल हटा देना है।
2) स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। हॉस्पिटल कम कॉलेज खोल अनेकों का कल्याण करना है। हर कदम पर सुप्रीम सर्जन से श्रीमत लेनी है।
 
वरदान:स्वदर्शन चक्र के टाइटल की स्मृति द्वारा परदर्शन मुक्त बनने वाले मायाजीत भव!
संगमयुग पर स्वयं बाप बच्चों को भिन्न-भिन्न टाइटल्स देते हैं, उन्हीं टाइटल्स को स्मृति में रखो तो श्रेष्ठ स्थिति में सहज ही स्थित हो जायेंगे। सिर्फ बुद्धि से वर्णन नहीं करो लेकिन सीट पर सेट हो जाओ, जैसा टाइटल वैसी स्थिति हो। यदि स्वदर्शन चक्रधारी का टाइटल स्मृति में रहे तो परदर्शन चल नहीं सकता। स्वदर्शन चक्रधारी अर्थात् मायाजीत। माया उसके आगे आने की हिम्मत भी नहीं रख सकती। स्वदर्शन चक्र के आगे कोई भी ठहर नहीं सकता।

स्लोगन:वानप्रस्थ स्थिति का अनुभव करो और कराओ तो बचपन के खेल समाप्त हो जायेंगे।

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Details ( Page:- Murali 07-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 07.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe Mithe bacche -Idhar udhar baith kar faaltu baaton me apna time waste mat karo,Baap ki yaad me raho to time aabad ho jayega.
Q.1-Baap ka show (naam)kaun se bacche nikaal sakte hai?
A-Jo baap samaan seva karte hain.Agar har karma Baap ke saman ho to bahut bada fal mil jayega.Baap hum baccho ko aap samaan banane ke liya purusarth kara rahe hai.
Q.2-Antar mukhi kise kahenge?Tumhare antarmukhta nirali hai kaise?
A-Soul consciouss hokar rehna he antarmukhi banana hai.Anadar jo aatma hai unko sab kuch baap se hi sunna hai,Ek Baap se he buddhiyog rakh goonvan banna hai,ye he hai nirali antarmukhata.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Antarmukhi ban ek Baap se he sunna hai.Ek Baap ke saath buddhiyog rakh goonvan banna hai.Baharmukhta me nahi aana hai.
2)Roohani Baap ki yaad ke nashe me rah bhojan banana wa khana hai.Pakka yogi banna hai.
 
Vardan:-Prabruti me rehte lokikta se nyare rah prabhu ka pyaar prapt karne wale Lagaomukt bhava.
Slogan:-Sada khazano se sampann aur santoost raho to paristhitiyan aayengi aur badal jayengi.

English Summary ( 7th Dec 2017 )
 Sweet children, don’t sit here and there and waste your time in useless things. Stay in remembrance of the Father and your time will then be used in a worthwhile way.
 
Question:Which children can glorify the Father's name?
Answer: Those who serve in the same way as the Father. If you perform every deed in the same way as the Father, you will receive a great reward. Baba is inspiring us children to make effort in order to make us equal to Him.
 
Question:Who would be called introverted? How is your introversion unique?
Answer:To remain soul conscious is to be introverted. The soul inside has to listen to everything from the Father alone. To connect your intellects in yoga to only the one Father and become virtuous is your unique introversion.
 
Song:Salutations to Shiva.  Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Become introverted and listen to only the one Father. Connect your intellects in yoga to only the one Father and become virtuous. Don't become extroverted.
2. Remain in the intoxication of remembering the spiritual Father while preparing and eating food. Become a firm yogi.
 
Blessing:May you become free from attachment and receive God’s love by remaining detached and not worldly while living at home with your family.
 
While staying at home with your family, have the aim that you are at a service place for service. Wherever you live, let the atmosphere be like that of a service place. The meaning of a household is to have an attitude of being beyond, that there is no consciousness of “mine”. Everything belongs to the Father and so it is an attitude of being beyond. Anyone who comes should experience you to be detached and loving to God. Let there not be attachment to anyone. Let the atmosphere not be worldly, but spiritual and let your speaking and doing be the same and you will then receive number one.
 Slogan:When you remain constantly full of treasures and are content any adverse situations that come will be transformed.
HINDI DETAIL MURALI

07/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 ''मीठे बच्चे - इधर-उधर बैठकर फालतू बातों में अपना टाइम वेस्ट मत करो, बाप की याद में रहो तो टाइम आबाद हो जायेगा''
प्रश्न:बाप का शो (नाम) कौन से बच्चे निकाल सकते हैं?
उत्तर:
जो बाप समान सेवा करते हैं। अगर हर कर्म बाप के समान हो तो बहुत बड़ा फल मिल जायेगा। बाबा हम बच्चों को आप समान बनाने के लिए पुरुषार्थ करा रहे हैं।
प्रश्न:अन्तर्मुखी किसे कहेंगे? तुम्हारी अन्तर्मुखता निराली है कैसे?
उत्तर:
सोल कान्सेस होकर रहना ही अन्तर्मुखी बनना है। अन्दर जो आत्मा है उनको सब कुछ बाप से ही सुनना है, एक बाप से ही बुद्धियोग रख गुणवान बनना है, यही है निराली अन्तर्मुखता।
 
गीत:-     ओम नमःशिवाय....   ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने यह गीत सुना। बाप की महिमा सुनी और बाप की महिमा का फल फिर बच्चों को मिल रहा है। और बच्चे फिर बाप का शो करते हैं। परन्तु शो तब करेंगे जब उन जैसी सर्विस करेंगे। वह फल भी भारी पायेंगे। अब तुम बच्चे प्रैक्टिकल में हो। भगत सिर्फ गाते रहते हैं। तुम जानते हो बापदादा संगम पर हमारे सम्मुख बैठे हैं। बाप जरूर दादा के तन से ही बतायेगा। यह बच्चों को पक्का निश्चय है कि हम पुरुषार्थ कर अवश्य बाप समान बनेंगे। बाप पतित-पावन, ज्ञान सागर है। उससे तुम पतित-पावनी ज्ञान गंगायें निकली हो। गंगायें क्यों कहा जाता है? क्योंकि तुम सब सजनियां हो। सबको हम ज्ञान गंगा ही कहेंगे। बच्चों को नशा चढ़ता है कि हम श्रीमत पर सारे विश्व के मनुष्य मात्र को सुख दे सकते हैं, जो और कोई नहीं दे सकता। अब बाप आया है सबको सद्गति देने, और दिलाते भी हैं बच्चों द्वारा क्योंकि करनकरावनहार है ना। तो ऐसे बाप की श्रीमत पर जरूर चलना पड़े। बाप कहते हैं जो करेगा और जितनी सर्विस करेगा - वही 21 जन्मों के लिए ऊंच प्रालब्ध पायेगा। परन्तु तकदीर में नहीं है तो कुछ करते नहीं हैं। है बहुत सहज। दिन-प्रतिदिन बाप बहुत अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स देते रहते हैं, और बाप कहते हैं जितनी झोली भरनी हो उतनी भर दो। यह मालूम भी अपने को पड़ सकता है कि हम अपनी झोली अच्छी रीति भर रहे हैं या कहाँ टाइम वेस्ट करते हैं। भक्ति में तो बहुत टाइम वेस्ट किया, एनर्जी वेस्ट की, पैसे भी बरबाद किये तो मेहनत भी बरबाद की। देखो कितनी मेहनत करते हैं। जप, तप, दान, तीर्थ आदि कितना करते हैं। अब यह जो कुछ हुआ ड्रामानुसार। अभी तो है पुरुषार्थ की बात। जो बीत चुका उसका तो कुछ होना नहीं है। फिर अपने समय पर रिपीट होगा। अब बाप कहते हैं श्रीमत पर चलो। अपना टाइम यहाँ वहाँ बरबाद मत करो। टाइम को आबाद करो - बाप की याद में। बहुत बच्चे हैं जो बाप की बातें एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हैं। जो अच्छी रीति धारण करेंगे वह फिर औरों की भी जरूर सर्विस करेंगे। अपना समय कहाँ भी बरबाद नहीं करेंगे। बहुत बच्चे हैं जो सारा दिन बाहरमुखी रहते हैं। बच्चों को पुरुषार्थ कर अर्न्तमुखी बनना है। अन्दर आत्मा है ना। यह निश्चय करना है कि हम आत्माओं को बाप समझा रहे हैं कि बच्चे तुमको सोल कान्सेस होकर रहना है, सच्चा-सच्चा अन्तर्मुख इसको कहा जाता है। हमारे अन्तर्मुख होने की बातें ही निराली हैं। अन्दर जो आत्मा है उनको सब कुछ बाप से ही सुनना है। बाप प्यार से बच्चों को बार-बार समझाते हैं। मात-पिता और भी जो अनन्य भाई-बहिन हैं, जो अच्छी सर्विस करते हैं, उन्हों से तुमको सीखना है। भल थोड़े बहुत अवगुण तो सभी में अभी हैं। गाते भी हैं कि मुझ निर्गुण हारे में.. अभी तुम बच्चों को गुणवान बनना है। सो तब बन सकते हो जब बाप के साथ बुद्धियोग होगा। माया तो बहुत भटकायेगी। बच्चे गिरते और चढ़ते रहते हैं। जो बॉडी कान्सेस रहते हैं वह गिरते रहते हैं। जो सोल कान्सेस रहते हैं वह गिरते नहीं हैं। वह बाप से अन्जाम (वायदा) करते हैं कि हम यह काम करके ही दिखायेंगे। पूर्ण पवित्र बनकर ही दिखायेंगे। अन्दर में यह पक्का निश्चय करना चाहिए कि हम बाप से पूरा-पूरा वर्सा लेंगे। कहाँ भी फालतू टाइम नहीं गंवायेंगे। बच्चों को शरीर निर्वाह भी करना है। घरबार छोड़ना तो हठयोगी सन्यासियों का काम है। तुमको तो अपनी रचना की भी पूरी देख-रेख करनी है और दिल में यह निश्चय रखना है कि इन आंखों से हम जो देखते हैं, वह सब विनाश हो जाने वाला है। इसमें ममत्व रखने से ही अपना नुकसान करेंगे। ममत्व एक बाप से रखना है। मुख्य बात है पवित्रता की। इस पर भी बहुत हंगामें होते हैं। क्रोध पर इतना हंगामा नहीं होगा। बाप कहते हैं यह काम विकार तो इस समय सबमें प्रवेश है। सब विकार से पैदा होते हैं। तुम समझा सकते हो कि हम भ्रष्टाचारी को श्रेष्ठाचारी बनाने में मदद कर रहे हैं।
अब तुम बच्चों को सोल-कान्सेस बनना है। पतित-पावन बाप को याद करना है। बुलाते भी हैं कि हे पतित-पावन आओ तो आकर क्या करेंगे? जरूर पावन बनायेंगे। यहाँ स्नान आदि की तो बात नहीं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो और कोई भी उपाय है नहीं। योग अग्नि से ही तुम पतित से पावन बनेंगे। आइरन एज़ से तुम गोल्डन एज़ में जायेंगे। यह एक ही उपाय है, दूसरा कोई उपाय ही नहीं। सब बीमारियों की एक ही दवाई है, बाप की याद। इससे ही सब दु:ख दूर हो जायेंगे। बाप की याद से वर्सा भी याद आयेगा। बाप माना ही वर्सा। लौकिक बाप भल कितना भी गरीब होगा तो पाई-पैसे, बर्तन आदि का कुछ तो वर्सा देगा जरूर। तो तुमको पहले बाप को फिर वर्से को याद करना है। बाप कहते हैं मनमनाभव, मध्याजी भव। बाप तुमको सभी वेदों, शास्त्रों का सार समझाते हैं। दूसरा कोई भी यह सार जानते ही नहीं। बाप सीधा कहते हैं बच्चे देह-अभिमान को छोड़ दो। तुमको समझना चाहिए कि हम आत्माओं से बाप बात कर रहे हैं। निराकार बाप निराकार बच्चों को ही कहेंगे कि तुम आत्मायें कानों से सुनती हो। तुम ही सब कुछ करती हो। कोई भी हालत में बच्चों को देह-अभिमानी नहीं बनना है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। सर्विस भी करो क्योंकि देह से ही सब काम होता है। वह तो करना ही पड़े। कोई-कोई कुछ समय के लिए अनकान्सेस, बेहोश भी हो जाते हैं। परन्तु वह कोई ज्ञान की बात नहीं। यहाँ तो बाप को याद करने की ही मेहनत करनी है, जिसमें ही माया के बहुत विघ्न पड़ते हैं। तुम जानते हो हमने बाप की गोद ली है तो बाप को जरूर याद करना पड़े। भोग बनाते हो तो भी शिवबाबा को याद करना है। आगे भोग बनाते थे तो कृष्ण को, राम को, गुरूनानक को याद करते थे। गुरूवाणी पढ़ते थे। याद में बनायेंगे तब तो शुद्ध होगा। फिर प्रैक्टिस पड़ जाती है। यहाँ भी बाप के याद की प्रैक्टिस पड़ जानी चाहिए। जितना हो सके भोग वा भोजन बनाने के समय बाबा को याद जरूर करना है, बहुत-बहुत जरूरी है। परन्तु बच्चे याद करते नहीं। भण्डारे में एक दो को याद कराना चाहिए कि बाबा को याद कर भोजन बनाओ। ऐसे करते-करते पक्के हो जायेंगे। जिनको अभ्यास नहीं होगा, वह तो कभी याद करेंगे नहीं। ब्रह्मा-भोजन की बहुत महिमा है तो जरूर कुछ होगा ना। देवतायें भी इच्छा रखते हैं ब्रह्मा भोजन की। तो याद में रह भोजन बनाने से अपना भी कल्याण होता है तो आने वालों का भी कल्याण होता है। याद में रहने से बुद्धि में आ जाता है कि हम शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं। परन्तु बच्चे याद करते नहीं हैं, यह कच्चाई है। आगे चलकर ऐसे बच्चे निकलेंगे जो बाप की याद में एकदम मस्त हो जायेंगे। याद में ही भोजन आदि बनायेंगे। जैसे शराब का नशा चढ़ जाता है। तुम बच्चों को फिर यह रूहानी बाप की याद का नशा रहना चाहिए, इससे बहुत फ़ायदा है। साज़न को वा बाप को याद करना है, अति मीठा बाप है। इन जैसा मीठा कोई होता नहीं। बाहर वाले तो इन बातों को जानते ही नहीं। देवी-देवता धर्म वाले ही समझ सकते हैं। त्वमेव माताश्च पिता.. यह एक निराकार बाप की महिमा है। कृष्ण को कोई कह न सके। जरूर बाप ने इतना ऊंच कर्तव्य किया है तब फिर भक्ति मार्ग में हम उनकी इतनी महिमा करते हैं।
अब बाप कहते हैं - मीठे बच्चे और सब तरफ से बुद्धियोग हटाओ। सारी दुनिया से, अपनी देह से भी बुद्धि का योग हटाए मामेकम् याद करो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा। बहुत सस्ता सौदा है परन्तु लेने वाले नम्बरवार हैं। यह भी ड्रामा बना हुआ है। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। सुनते भी हैं, कोई तो अच्छी रीति धारण करते हैं, कोई तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं। यहाँ सम्मुख सुनने से बच्चे रिफ्रेश होते हैं फिर बाहर जाने से भूल जाते हैं। कुछ भी याद नहीं रहता। कोई तो अच्छी रीति रिपीट भी करेंगे। जो बाबा ने समझाया है वह प्रैक्टिकल में करेंगे। सवेरे उठकर तुम बाबा की याद में भोजन बनायेंगे तो भोजन में ताकत रहेगी। इतना तुम बच्चों को नशा रहना चाहिए - सारे मनुष्य कुल का उद्धार करना है। मनुष्य कुल की ही बात है। ऐसे नहीं जानवर आदि का उद्धार करेंगे। उनका ड्रामा में पार्ट ही यह है। जैसा मनुष्य वैसा फर्नीचर। सतयुग में किचड़-पट्टी होती नहीं। तुम्हारे लिए कितने वैभव हैं। वहाँ पंछी जानवर आदि सब रॉयल होते हैं। जैसा मनुष्य वैसी उनकी सामग्री होती है। गरीब की सामग्री क्या होगी? साहूकार की सामग्री कितनी रॉयल होगी। तुम बच्चे जानते हो बाबा हमको बहुत ऊंची कमाई करा रहा है। फिर जितना जो करे पढ़ाई एक ही है। पद हर एक नम्बरवार पाते हैं। राजा-रानी, प्रजा, साहूकार के नौकर चाकर, गरीब के नौकर-चाकर सब होते हैं। बुद्धि में है कि हम अपनी राजधानी योगबल से स्थापन कर रहे हैं। हथियारों आदि की यहाँ बात नहीं है। यह है अभी की बात। योगबल से तुम राजाई पाते हो। इस समय तुम ब्राह्मणियाँ (शक्तियाँ) हो। सतयुग में देवियों को हथियार आदि हो नहीं सकते। यह है अभी की बात - ज्ञान तलवार, ज्ञान खड़ग। फिर वह सब स्थूल रूप में ले गये हैं। अब तुम्हारी सूरत और सीरत दोनों बदलती हैं। काले से गोरे बनते हो। सर्वगुण सम्पन्न और 16 कला सम्पूर्ण बनते हो, जितना जो पुरुषार्थ करेंगे, इसमें झूठ तो चल न सके। अगर अन्दर कुछ काला भरा हुआ होगा तो बाहर भी काला ही दिखाई पड़ेगा।
बाबा कहते हैं - बच्चे तुम ऐसे मीठे बनो जो सब समझे तो इनको बनाने वाला कौन है। तुम्हारी बुद्धि में सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज है। इस चक्र को जानने से ही तुम चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। बोर्ड लगा दो कि रचता है बाप, वही सारी नॉलेज देते हैं। तुम हो ब्राह्मण। तुम्हारी जात ही न्यारी है। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों को ही बाप नॉलेज सुना रहे हैं। तो शिवबाबा के साथ तुम्हारा कितना लव होना चाहिए। परन्तु अच्छे-अच्छे फर्स्टक्लास बच्चे योग में फेल हो पड़ते हैं। ज्ञान तो बड़ा सहज है। मुरली भी अच्छी चलाते हैं परन्तु योग में मेहनत है। याद से विकर्म विनाश करना - यह मेहनत है। बस इसमें बहुत फेल होते हैं। भगवानुवाच तुमको मनुष्य से देवता, पतित से पावन बनाने आया हूँ। ज्ञान से ही सद्गति होती है, तो ज्ञान सागर को जरूर नॉलेज देना पड़े। बाकी पानी का सागर वा नदियाँ थोड़ेही पावन बना सकती हैं। अभी तुम बच्चे समझते हो हम अपने लिए राजधानी स्थापन कर रहे हैं। आत्म-अभिमानी बन रहे हैं। हम बाबा से नॉलेज का वर्सा लेकर विश्व का मालिक बन जायेंगे। कहाँ उन्हों की बुद्धि, कहाँ तुम्हारी बुद्धि। वह सब विनाश के लिए काम करते, तुम स्थापना के लिए करते हो। यह बातें भूलनी नहीं चाहिए। परन्तु जिनकी तकदीर में नहीं है तो धारणा करते ही नहीं। पुरुषार्थ करना चाहिए - ऊंच पद पाने के लिए। हम पास होकर ऊंच नम्बर लेवें। चाहते तो हैं परन्तु मेहनत नहीं पहुँचती। यह है बेहद की पढ़ाई, बाप तो विश्व की बादशाही देते हैं। वन्डर है ना। बहुत प्यार से समझाते हैं। बच्चे, मुझे याद करो, हड्डी याद करना है। बाप फिर से आया हुआ है। हम जरूर बाप की मत पर चलकर पूरा वर्सा लेंगे। बाबा हम आपको जान गये हैं। बाबा को देखा भी नहीं है, घर बैठे भी टचिंग हो जाती है। कोई को थोड़ा सुनने से भी नशा चढ़ जाता है। तकदीर भी साथ देती है। कोई फिर संगदोष में आकर पढ़ाई छोड़ देते हैं। रावण मत वाले अलग हैं, ईश्वरीय मत वाले अलग हैं। तुम बच्चे जानते हो - कैसे राजाई स्थापन हो रही है योगबल से। बाहुबल अनेक प्रकार का है। योगबल एक ही प्रकार का है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अन्तर्मुखी बन एक बाप से ही सुनना है। एक बाप के साथ बुद्धियोग रख गुणवान बनना है। बाहरमुखता में नहीं आना है।
2) रूहानी बाप की याद के नशे में रह भोजन बनाना वा खाना है। पक्का योगी बनना है।
 
वरदान: प्रवृत्ति में रहते लौकिकता से न्यारे रह प्रभू का प्यार प्राप्त करने वाले लगावमुक्त भव!
 
प्रवृत्ति में रहते लक्ष्य रखो कि सेवा-स्थान पर सेवा के लिए हैं, जहाँ भी रहते वहाँ का वातावरण सेवा स्थान जैसा हो, प्रवृत्ति का अर्थ ही पर-वृत्ति में रहने वाले अर्थात् मेरापन नहीं, बाप का है तो पर-वृत्ति है। कोई भी आये तो अनुभव करे कि ये न्यारे और प्रभु के प्यारे हैं। किसी में भी लगाव न हो। वातावरण लौकिक नहीं, अलौकिक हो, कहना और करना समान हो तब नम्बरवन मिलेगा।

स्लोगन:सदा खजानों से सम्पन्न और सन्तुष्ट रहो तो परिस्थितियां आयेंगी और बदल जायेंगी।

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Details ( Page:- Murali 08-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 08.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche -ShivBaba is samay tumhare saamne hazir-nazir hai,tumhe pehle yah nischay chahiye ki humko padhane wala swayang Shiv Baba hai,koi dehadhari nahi.
Q-Baap se kaun sa prashn poochna bhi jaise Baap ki insult hai?
A-Bacche Baap se poochte hain-Baba aapki is tan me padhramani kab tak hai wa binash kab hoga?Baba kehte-Yah jaise tum meri insult karte ho.Mehman se poochna ki aap baki kitne din rahenge?Yah to insult hui na! kahenge kya main tumhare liye bojh ho pada hoon.Shib Baba to jab tak yahan hai-tab tak tum bacche khush ho na isiliye aise prashn Baap se nahi poochne chahiye.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Goopt roop me yog bal se Bharat ko swarg banane ki seva karni hai,roohani sevadhari banna hai.
2)Humara sarvottam Brahman kul hai,hum Swadarshan chakradhari hain.Is nashe me rehna hai.Kisi bhi baat me sansay nahi oothana hai.
 
Vardan:-Powerful break dwara second me byakt bhao se parey hone wale Avyakt Farishta wa Asariri bhava.
Slogan:-Khushi ki khoorak khaate raho to mann aur buddhi shaktishali ban jayegi.

English Summary ( 8th Dec 2017 )
Sweet children, Shiv Baba is present in front of you at this time. You first have to have the faith that it is Shiv Baba, Himself, not a bodily being, who is teaching you.
Question:Asking the Father which question is like insulting Him?
Answer:Children ask the Father, “Baba, till when will You continue to enter that body?” or, “When will destruction take place?” Baba says: This is as though you are insulting Me. To ask a guest for how many more days he will stay is an insult. He would reply: Am I a burden to you? For as long as Shiv Baba is here, you children are happy, are you not? Therefore, you should not ask the Father such questions.
 
Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1. Serve Bharat in an incognito way with the power of yoga and make it into heaven. Become spiritual servers.
2. Our Brahmin clan is the most elevated. Maintain the intoxication that you are spinners of the discus of self-realisation. Don’t develop doubt about anything.
 
Blessing:May you remain beyond gross feelings by using a powerful brake in a second and become an avyakt angel or bodiless.
 
There may be an atmosphere of noise everywhere around you, but you can put a full stop in a second and go beyond gross feelings. When the brake is applied powerfully, you will then be said to be an avyakt angel or bodiless. There is now a great need for this practice because the calamities of nature are going to come suddenly. At that time, let the intellect not go anywhere else, just the Father and I; let the intellect be focused wherever you want. For this, you need the powers to merge and pack up and you will then be able to go into the flying stage.
 Slogan:Continue to eat the nourishment of happiness and your mind and intellect will become strong.
HINDI DETAIL MURALI

08/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 ''मीठे बच्चे - शिवबाबा इस समय तुम्हारे सामने हाज़िर-नाज़िर है, तुम्हें पहले यह निश्चय चाहिए कि हमको पढ़ाने वाला स्वयं शिवबाबा है, कोई देहधारी नहीं''
प्रश्न: बाप से कौन सा प्रश्न पूछना भी जैसे बाप की इन्सल्ट है?
उत्तर:
बच्चे बाप से पूछते हैं - बाबा आपकी इस तन में पधरामणी कब तक है वा विनाश कब होगा? बाबा कहते - यह जैसे तुम मेरी इन्सल्ट करते हो। मेहमान से पूछना कि आप बाकी कितने दिन रहेंगे? यह तो इन्सल्ट हुई ना! कहेंगे क्या मैं तुम्हारे लिए बोझ हो पड़ा हूँ। शिवबाबा तो जब तक यहाँ है - तब तक तुम बच्चे खुश हो ना इसलिए ऐसे प्रश्न बाप से नहीं पूछने चाहिए।
 
ओम् शान्ति।
बाप बैठकर ब्रह्मा द्वारा अपने बच्चों, ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियों को समझाते हैं। ब्रह्माकुमार कुमारियाँ भी समझते हैं कि निराकार बाप ब्रह्मा द्वारा समझा रहे हैं। बाप तो है निराकार। किसको साक्षात्कार भी कराना होगा तो ब्रह्मा का शरीर ही सामने करूँगा। अगर खुद का साक्षात्कार कराये तो कोई समझ न सके। वह तो एक बिन्दी है। अब जैसे आत्मा स्टार है, वैसे परमात्मा भी बिन्दी है। यह बुद्धि से समझा जाता है। भल साक्षात्कार हो भी, चीज़ तो वही देखेंगे और क्या चीज़ हो सकती है। अक्सर करके बहुतों को ब्रह्मा का साक्षात्कार कराते हैं कि इनके पास जाओ। छोटी चीज़ को कोई समझ न सकें। ब्रह्मा द्वारा बाप बैठ समझाते हैं, नॉलेज देते हैं। कहते हैं - बच्चों मैं इस साधारण मनुष्य तन का आधार लेता हूँ। ब्रह्मा तो नामी-ग्रामी है। समझेंगे बाबा इसमें है। यह बाबा का रथ है। बाबा नहीं होता तो यह ब्रह्मा भी काहे का। तो यह बी.के. भी काहे के। बच्चों को नॉलेज मिलती है। तुम समझते हो यह नॉलेज सिवाए परमपिता परमात्मा के कोई दे नहीं सकते। नॉलेजफुल वह निराकार है। सिवाए आरगन्स के ज्ञान दे कैसे सकते? बच्चों को यह निश्चय हो जाना चाहिए कि इस समय बाबा हाज़िर नाज़िर है। बुद्धि कहती है बाबा इसमें प्रवेश है, जो बैठ नॉलेज देते हैं। उस परमपिता परमात्मा के सिवाए स्वर्ग का वर्सा मिल न सके।
तुम बच्चे जानते हो भक्ति मार्ग में जो भी त्योहार आदि मनाये जाते हैं वो सब इस समय के ही यादगार हैं। शिव जयन्ति भी इस समय का ही त्योहार है। त्रिमूर्ति शिव, परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं। कृष्ण थोड़ेही नई दुनिया की स्थापना करेंगे। ब्राह्मण कुल चला आता है। उनको यह पता नहीं कि ब्राह्मण सो देवता बन जाते। ब्रह्मा की औलाद तुम ब्राह्मण हो। जो भी मनुष्य मात्र हैं, सब धर्म वाले उन्हों को समझ में आता है कि हमारा ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर ब्रह्मा है, जिसको आदम-बीबी अथवा आदि देव, आदि देवी कहते हैं। वह भी शिवबाबा की रचना है। बाबा ने रचना कैसे रची? एडाप्ट किया। यह है पहले नम्बर की बात। अल्फ के बाद फिर बे। इन बातों को जो अच्छी रीति समझते हैं वही ऊंच पद पाते हैं।
अभी तुम बच्चे समझते हो मनुष्य कितना घोर अन्धियारे में हैं। कल्प पहले भी जब आग लगी थी तब जगे थे। वह सीन फिर होगी। होना भी जरूर है। दूसरे धर्म वाले इन बातों को समझेंगे नहीं, न पुरुषार्थ करेंगे। सतयुग में तो इतने मनुष्य आ न सकें। वहाँ बहुत थोड़े होंगे, जो सूर्यवंशी घराने में राज्य करेंगे। सब ड्रामा के बंधन में बांधे हुए हैं। बाप खुद कहते हैं मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। कोई बात का रेस्पान्ड ड्रामा में होगा तो बताऊंगा। ड्रामा का सारा राज़ अभी थोड़ेही बताऊंगा। मेरे में भी पार्ट नूँधा हुआ है। जैसे इमर्ज होता जाता है, तुमको समझाता जाता हूँ। सब कुछ ड्रामा अनुसार ही चलता है, उसमें फ़र्क नहीं पड़ सकता। ड्रामा में नहीं होता तो रेसपान्ड करेंगे नहीं। ऐसे नहीं कि अभी बता दूँगा कि बाकी इतने वर्ष हैं। बाबा से पूछते हैं - बाबा कब तक इस शरीर में मुसाफिरी करेंगे? बतायेंगे नहीं। ड्रामा में है नहीं तो क्या कर सकते। ड्रामा में होगा तो बतायेंगे। मैं आया ही हूँ तुम बच्चों को पढ़ाने। मैं तुम्हारा बाप भी हूँ। तुम गाते हो तुम मात-पिता... वही पार्ट बजा रहा हूँ। मेरा फ़र्ज है तुमको शिक्षा देना। मुझे कहते हैं ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप। चैतन्य बीज तो सब कुछ बतायेगा ना। इस झाड़ पर बनेनट्री का मिसाल दिया जाता है। तुम देखते हो देवी-देवता धर्म अभी है नहीं। बाकी सब धर्म हैं। अभी यह सब खलास हो जायेंगे। फिर अपने समय पर आकर स्थापना करेंगे। मैं देवता धर्म की स्थापना कर रहा हूँ। जब वह धर्म प्राय:लोप है, चित्र हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं कि देवी-देवता धर्म कब था। कहाँ गुम हो गया। सिर्फ कहेंगे लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। द्वापर में कृष्ण आया, गीता सुनाई बस। यह शास्त्र आदि सब भक्ति के लिए हैं। द्वापर में बैठ यह शास्त्र आदि बनायेंगे। सच खण्ड में सिर्फ देवता राज्य करते थे। यह है ही झूठ खण्ड। वहाँ तो कोई भी पाप नहीं होता। अभी बाप तुमको पुण्य आत्मा बना रहे हैं। ड्रामा में नूँध है। रावणराज्य में ही भक्ति, शास्त्र आदि शुरू होते हैं। यह अनादि ड्रामा शूट हुआ पड़ा है। यह है ही झूठी दुनिया। ईश्वर के लिए भी झूठ ही झूठ बोलते हैं। ईश्वर तो ऊंच ते ऊंच है, हम उनसे मिलने चाहते हैं तो जरूर उनसे कुछ मिलता है। बाप से क्या मिलेगा? वह है सर्व का सद्गति दाता। सर्व को दु:ख से छुड़ाते हैं। रावण भी बड़ा जबरदस्त है। आधाकल्प उनका राज्य चलता है। परन्तु वह दु:ख देते हैं इसलिए सब मनुष्य बाप को याद करते हैं। रावण तुम्हारी सारी राजधानी छीन लेता है, इतना जबरदस्त है। अब तुमको मालूम पड़ा है - बाप हमको वर्सा देते हैं, रावण श्राप देते हैं। मनुष्यों को यह पता नहीं है कि बाप कब वर्सा देते हैं। कृष्ण का नाम गीता में डालने से गीता को झूठा कर दिया है। बड़े ते बड़ी भूल यह है। यह बाबा भी तो नारायण का पक्का भगत था, गीता पढ़ता था। गीता पढ़ने बिगर कोई काम नहीं करता था। जब साक्षात्कार हुआ फिर समझने लगे यह झूठी गीता है, एकदम छोड़ दिया। बाप हमको यह (लक्ष्मी-नारायण का) वर्सा देते हैं। अभी तो बहुत कुछ समझ में आ गया है, शिवबाबा समझाते रहते हैं। कभी कोई शास्त्र नहीं उठाया। बाबा सुना रहा है। यह भी कहते हैं - मैं सुन रहा हूँ। कभी बाबा नहीं है तो यह भी सुनाते हैं। इसमें बाबा है, इसलिए ब्रह्मा का नाम इतना नहीं है। अजमेर में एक मन्दिर बनाया है, परन्तु कुछ समझते नहीं हैं। कृष्ण को मुरली दी और सरस्वती को सितार दी है। सरस्वती को गॉडेज आफ नॉलेज कहा जाता है। गॉड आफ नॉलेज ब्रह्मा के बदले कृष्ण को कह दिया है। मूँझ गये हैं।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं त्रिमूति में कृष्ण तो है नहीं। भल करके है परन्तु गुप्त। राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, यह भी किसको पता नहीं है कि परमपिता परमात्मा ने समझाया था। अब भी समझाते रहते हैं। साधू-सन्त आदि इस बात को समझ जायें तो यहाँ सबकी भीड़ मच जाये। परन्तु ड्रामा में ऐसे भी नहीं है। बाप कहते हैं - मैं संगम पर आकर राजयोग सिखाता हूँ, जो पास होते हैं वह सूर्यवंशी बनते हैं, जो फेल होते हैं वह चन्द्रवंशी बनते हैं। सूर्यवंशी की प्रजा सूर्यवंशी होगी, चन्द्रवंशी की प्रजा चन्द्रवंशी होगी। तुम बच्चों की बुद्धि में सारे चक्र का ज्ञान है। तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण। यह है सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल। तुम सेवाधारी हो। तुम गुप्त वेश में भारत को योगबल से स्वर्ग बनाते हो। तुम्हारे लिए स्वर्ग जरूर चाहिए। पुरानी दुनिया को खत्म करना पड़े। श्रीमत पर तुम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो। यादवों की राजाई खत्म होनी है। पाण्डव राजाई स्थापन कर रहे हैं - नई दुनिया के लिए। पुराने भंभोर को आग लगनी है। यह भी समझते हो - बाकी कितने दिन होंगे? बहुत थोड़े। बाकी कितना समय है? यह हम पूछ नहीं सकते। मेहमान से पूछा नहीं जाता है, आप कितने दिन रहेंगे? कहेंगे मैं शायद बोझ हूँ। शिवबाबा कहते हैं - मैं यहाँ हूँ तो तुम खुश रहते हो ना। फिर पूछते क्यों हो कि कब तक पधरामनी है? यह पूछना भी जैसे इन्सल्ट है, इसमें भी लज्जा आनी चाहिए। यह पूछना तो ऐसे हुआ कि बाबा जल्दी जाये तो अच्छा इसलिए ऐसे-ऐसे सवाल बाबा से पूछ भी नहीं सकते। ऐसा बाप तो कोई हो न सके। बच्चे ही बाप को जान गये हैं। कृष्ण के लिए ऐसे नहीं कहेंगे कि इसमें परमात्मा है। कृष्ण ही याद आता रहेगा। परमात्मा तो याद आ न सके। कृष्ण को ही देखते रहेंगे। शिव को याद ही न करें इसलिए तुम बच्चों को समझाया गया है कि शिवबाबा को याद करो। देह-अभिमान में नहीं रहना है। श्रीकृष्ण की महिमा कोई कम नहीं है।
बाप कहते हैं मुझे आना ही है पराये देश, पुराने शरीर में। श्रीकृष्ण तो रावण के देश में आ न सके। अब तुम जानते हो कि श्रीकृष्ण की आत्मा पुनर्जन्म लेते-लेते अब इस शरीर में है। यह अन्तिम शरीर है। यही फिर नम्बरवन पावन शरीर बनता है। यह सब बातें और कोई की बुद्धि में आ न सकें। रावण का चित्र बनाते हैं परन्तु समझते नहीं हैं कि रावण की प्रवेशता कब से हुई है? जलाते ही आते हैं। मर जाये तो फिर जलाना बन्द कर दें, मरता नहीं। हर वर्ष जलाते हैं। यह सब है भक्ति मार्ग। बाप कहते हैं मैंने तुमको सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनाया। तुम फिर शूद्र वंशी बने कैसे? अब फिर तुमको सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बना रहा हूँ। अभी तुम जानते हो हम विश्व पर जीत पाते हैं फिर हार खाते हैं। जब देवी-देवता धर्म था तो और कोई धर्म नहीं था। अब फिर वह धर्म स्थापन होगा तो और सब धर्म खत्म हो जायेंगे। आसार भी तुमको देखने में आयेंगे। कितना साइन्स का काम चल रहा है। खुशी भी मनाते हैं। ऐसा एरोप्लेन निकलेगा जो 3-4 घण्टे में लन्दन पहुँचायेगा। आजकल एरोप्लेन में हाथी, बन्दर, मेढक सब जाते हैं। यह सुख के लिए भी हैं तो दु:ख के लिए भी हैं। वहाँ विमान में घूमते हैं। अभी तुम ऊंची तकदीर बनाने के लिए आये हो। तुम सो देवी-देवता बन रहे हो। स्वर्ग का नाम गाते हैं परन्तु जानते नहीं कि स्वर्ग कब था? कहते हैं स्वर्ग पधारा तो जरूर नर्क में था। परन्तु सीधा कहो तुम नर्कवासी हो तो गुस्सा लगेगा। अब तुम्हारे में ताकत है। तुम कह सकते हो तुम पतित-पावन को बुलाते हो तो जरूर पतित हो। बाप कहते हैं - अब झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाया हुआ है। महाभारी लड़ाई मशहूर है। तुम जानते हो हम आये हैं राजाई लेने। हम स्थापना के निमित्त हैं। आगे चल यह सन्यासी, महात्मायें भी तुम्हारी बात मानेंगे, यह सब ड्रामा में नूँध है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) गुप्त रूप में योगबल से भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है, रूहानी सेवाधारी बनना है।
2) हमारा सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल है, हम स्वदर्शन चक्रधारी हैं। इस नशे में रहना है। किसी भी बात में संशय नहीं उठाना है।
 
वरदान:पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकण्ड में व्यक्त भाव से परे होने वाले अव्यक्त फरिश्ता व अशरीरी भव!
चारों ओर आवाज का वायुमण्डल हो लेकिन आप एक सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाकर व्यक्त भाव से परे हो जाओ, एकदम ब्रेक लग जाए तब कहेंगे अव्यक्त फरिश्ता वा अशरीरी। अभी इस अभ्यास की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अचानक प्रकृति की आपदायें आनी हैं, उस समय बुद्धि और कहाँ भी नहीं जाये, बस बाप और मैं, बुद्धि को जहाँ लगाने चाहें वहाँ लग जाए। इसके लिए समाने और समेटने की शक्ति चाहिए, तब उड़ती कला में जा सकेंगे।
 
स्लोगन:खुशी की खुराक खाते रहो तो मन और बुद्धि शक्तिशाली बन जायेगी।

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Details ( Page:- Murali 09-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 09.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche -Tumhe khushi honi chahiye ki hum abhi yah duniya,yah sab kuch chhod apne ghar Shantidham jayenge fir Sukhdham me aayenge.
Q-Is nazook raaste me nirantar aagey badhne ke liye kaun si khabardari zaroor rakhni hai?
A- Kabhi bhi koi byarth wa saitani baatein soonaye to uska mitra nahi bano.Han ji karke glani ki baatein sunna mana Baap ka nafarmanbardar banna,isiliye rahemdil ban uski aadat ko mitana hai.Baap ka farmanbardar banna hai.Gyan ka surma pahan lena hai.Yahi bahut nazook rasta hai jisme khabardar hokar chalne se he aagey badhte rahenge.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1) Apni briti ko suddh rakh dushman ko bhi mitra banana hai.Apkari par bhi upkar kar Baap ka sachcha parichay dena hai._
2)Jo ratn Baba ke mukh se nikalte hain wohi ratn nikalne hain.Koi bhi byarth baatein na sunni hai na soonani hai.
Vardan:-Negative ko positive me parivartan karne wale Swa parivartak so Biswa parivartak bhava.
Slogan:-Drama ke gyan ko smruti me rakhne wale he nothing new ki bidhi se bijayi ban sakte hain.

English Summary ( 9th Dec 2017 )
. Sweet children, you should have the happiness that you are now to leave this world and everything within it and go to your home, the land of peace, and then to the land of happiness.
 
Question:
In order to move constantly forward on this delicate path, what must you definitely be cautious about?
 
Answer:
Don't become a friend of anyone who tells you wasteful or devilish things. To listen and agree with others when they speak of defamatory things means to be disobedient to the Father. Therefore, become merciful and help them end their habits. Become obedient to the Father. Wear the eye make-up (ointment) of knowledge. This is a very delicate path. By moving along with great caution you will continue to make progress.
 
Song:Take us away from this land of sin to a world of rest and comfort!  Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1. Keep your attitude pure and even make your enemies into your friends. Uplift those who defame you and give everyone the Father’s true introduction.
2. Let only the jewels that emerge through Baba's lips emerge through your lips. Don’t listen to or speak of wasteful things.
 
Blessing:May you be a self-transformer and so a world transformer who transforms the negative into positive.
In order to transform any thought or sanskar to be transformed from negative into positive in a second, you need to practise applying a brake to the traffic throughout the day because the speed of wasteful and negative thoughts is very fast. At the time of a fast speed, practise transforming it by applying a powerful brake. You will then be able to transform your waste and become a self-transformer and so a world transformer. Then, through your angelic form, you will be able to give many souls blessings of happiness and peace.
 Slogan:Only those who keep the knowledge of the drama in their awareness are able to become victorious with the method of “nothing new”.
HINDI DETAIL MURALI

09/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - तुम्हें खुशी होनी चाहिए कि हम अभी यह दुनिया, यह सब कुछ छोड़ अपने घर शान्तिधाम जायेंगे फिर सुखधाम में आयेंगे''
प्रश्न: इस नाज़ुक रास्ते में निरन्तर आगे बढ़ने के लिए कौन सी खबरदारी जरूर रखनी है?
उत्तर:   कभी भी कोई व्यर्थ वा शैतानी बातें सुनाये तो उसका मित्र नहीं बनो। हाँ जी करके ग्लानी की बातें सुनना माना बाप का नाफरमानबरदार बनना, इसलिए रहमदिल बन उसकी आदत को मिटाना है। बाप का फरमानबरदार बनना है। ज्ञान का शुर्मा पहन लेना है। यही बहुत नाज़ुक रास्ता है जिसमें खबरदार होकर चलने से ही आगे बढ़ते रहेंगे।
 
गीत:-इस पाप की दुनिया से....ओम् शान्ति।
 
मीठे बच्चे अब तुम समझदार बने हो और फील करते हो कि पहले हम कितने बेसमझ थे। यह भी समझ में नहीं आता था कि यह पतित दुनिया है और इसी भारत में जब देवी देवताओं का राज्य था तो पावन सुखी थे। उसमें कोई दु:ख की बात नहीं थी। परन्तु यह भी निश्चय नहीं होता था कि स्वर्ग में सदैव सुख होगा। स्वर्ग का किसको पता नहीं था। मनुष्य तो समझते हैं वहाँ भी दु:ख था। यह है बेसमझी। अब तुम बच्चे समझदार बने हो। बाप ने आकर समझाया है। उनकी श्रीमत पर तुम चल रहे हो। मनुष्य कहते भी हैं कि यह पतित दुनिया है। स्वर्ग पावन दुनिया थी। पावन दुनिया में भी दु:ख हो फिर तो दु:ख की ही दुनिया हुई। फिर गीत भी रांग हो जाता है। कहते हैं हे बाबा ऐसी जगह ले चलो जहाँ आराम, सुख चैन हो। बच्चे यह भी जानते हैं स्वर्ग सोने की चिड़िया थी। देवी-देवता थे, कहते भी हैं हम एक दो को दु:ख नहीं देते थे। परन्तु फिर कह देते कि यह दु:ख सुख सब परम्परा से चला आता है। कृष्ण पर भी झूठे कलंक लगा दिये हैं। कहा जाता है जैसी पतितों की दृष्टि वैसी सृष्टि, समझते हैं सारी सृष्टि पतित ही है। इस समय उन्हों की दृष्टि ही पतित है तो सारी सृष्टि को ही पतित समझते हैं। कह देते हैं परम्परा से यह पतितपना चला आता है।
अभी तुम बच्चों में समझ आती जाती है - सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। बच्चों को परमपिता परमात्मा के डायरेक्शन मिलते हैं। आत्माओं को बाप बैठ समझाते हैं, सब आत्मायें पतित हैं इसलिए पतित आत्मा को पाप-आत्मा कहा जाता है। बाप आत्माओं से बात करते हैं - तुम हमारे अविनाशी बच्चे हो। फिर मम्मा बाबा भी कहते हो। इस दुनिया में किसको भी पिताश्री नहीं कह सकते। श्री माना श्रेष्ठ परन्तु यहाँ एक भी मनुष्य श्रेष्ठ है नहीं। यह तो एक की ही महिमा हो सकती है। भल तुम इनको इस समय कहते हो क्योंकि सन्यास किया हुआ है श्रेष्ठ बनने के लिए। तुम जानते हो हम अभी फरिश्ते बनने वाले हैं। लेकिन चलते-चलते, श्रेष्ठ बनते-बनते झट माया रावण थप्पड़ लगाकर भ्रष्ट बना देती है। भ्रष्ट को श्री कह नहीं सकते। श्री लक्ष्मी, श्री नारायण। श्री राधे, श्रीकृष्ण कहते हैं। मन्दिरों में भी जाकर उन्हों की महिमा गाते हैं। अपने को श्रेष्ठ कह नहीं सकते। अब तुम बच्चों ने समझा है भारत श्रेष्ठ था। वहाँ मूत पलीती नहीं थे। शुद्ध श्रेष्ठ थे। बाप की महिमा है ना - मूत पलीती कपड़ों को धोकर कंचन कर देते हैं। इस समय तो सभी पतित हैं। बरोबर है भी रावण राज्य। मनुष्य रावण को वर्ष-वर्ष जलाते हैं। परन्तु जलता ही नहीं फिर फिर खड़ा हो जाता है। यह भी मनुष्यों को समझ में नहीं आता जबकि जला देते हैं फिर हर वर्ष नया क्यों बनाते हैं? इससे सिद्ध होता है रावण राज्य गया नहीं है। स्वर्ग में जब रामराज्य होता है तब वहाँ रावण की एफीजी निकालेंगे नहीं। कहते हैं रावण को जलाया फिर लंका को लूटा। रावण की लंका सोनी बताते हैं। परन्तु ऐसा है नहीं। यह तो सारी दुनिया लंका है। यह आइलैण्ड है ना। सारे वर्ल्ड पर रावण का राज्य है। यह भी तुम बच्चे समझते हो। कालेज में कोई बेसमझ जाकर बैठे तो क्या समझ सकेंगे। कुछ भी नहीं। वेस्ट आफ टाइम करेंगे। यह ईश्वरीय कालेज है, इनमें नया आदमी कोई समझ नहीं सकेंगे इसलिए 7 रोज क्वारन टाइन में बिठाना पड़े। जब तक लायक बनें। फिर भी अच्छा आदमी, रिलीजस माइन्डेड है तो उनसे पूछना है परमपिता परमात्मा तुम्हारा क्या लगता है? वह है आत्माओं का पिता और प्रजापिता भी तो बाप है। यह प्वाइंट बड़ी अच्छी है। परन्तु बच्चे इस पर इतना हर्षित नहीं होते हैं। बाप कहते हैं तुमको नई-नई प्वाइंट सुनाता हूँ जिससे तुमको नशा चढ़े। किसको समझाने की युक्ति आये। तुम फार्म भराकर पूछ सकते हो कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? कहेगा परमपिता तो पिता हुआ ना, फिर उस समय सर्वव्यापी का ज्ञान ही उड़ जायेगा। तुम जब प्रश्न पूछेंगे तो कहेंगे वह तो बाप है। हम सब बच्चे हैं। इतना मान ले तो लिखा लेना चाहिए। प्रजापिता के भी बच्चे ठहरे। वह शिव हो गया दादा और वह बाबा। शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना करने वाला है तो जरूर उनसे ही वर्सा मिलेगा। बहुत सहज ते सहज बातें निकालनी पड़ती हैं। मित्र-सम्बन्धियों आदि के पास जाओ, उनको भी यह समझाओ। यह तो नशा है ना हम बापदादा से वर्सा पाते हैं। माता से वर्सा नहीं मिलेगा। बाप को ही स्वर्ग की स्थापना करनी है ना। वही मालिक है। जैसे इनको दादे के वर्से का हक है, वैसे पोत्रे-पोत्रियों को भी हक है। बाप कहते हैं मुझे याद करो। ऐसे नहीं कहते कि इस देहधारी को भी याद करो। बाप सम्मुख बात कर रहे हैं। कल्प पहले भी ऐसे समझाया था। परन्तु बच्चों को देह-अभिमान बहुत आ जाता है। देहधारियों से लॅव हो जाता है। बाप कहते हैं हे आत्मायें तुम तो अशरीरी आई थी फिर पार्ट बजाते अब 84 जन्म पूरे किये हैं। अभी मैं कहता हूँ तुमको वापिस चलना है। मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। देहधारी को याद करने से विकर्म विनाश नहीं होंगे। तुम वायदा करते हो बाबा हम आपको ही याद करेंगे। तुमको इस पुरानी दुनिया में अब रहना ही नहीं है, इसमें कोई चैन नहीं इसलिए कहते हो ऐसी जगह ले चलो जहाँ सुख चैन हो। तुम बच्चे जानते हो हम पहले जायेंगे शान्तिधाम में। वहाँ सुख का नाम नहीं लेंगे। शान्ति ही शान्ति होगी। फिर जायेंगे सुखधाम में। वहाँ फिर शान्ति का नाम नहीं लेंगे। जब दु:ख है तो अशान्ति है। सुख में तो शान्ति है ही। परन्तु वह शान्तिधाम नहीं। शान्तिधाम है आत्माओं का स्वीट होम। बाप सारे आदि मध्य अन्त को जानने वाला है। अब तुम बच्चों का धन्धा ही है पढ़ना-पढ़ाना और फिर अपने शरीर निर्वाह अर्थ कर्म भी करना है।
तुम जानते हो हम इस मृत्युलोक से अमरलोक चले जायेंगे वाया शान्तिधाम। यह बुद्धि में याद रखना है जब तक तुम ट्रांसफर हो जाओ। अपनी पढ़ाई की रिजल्ट तक पढ़ना पड़े। जब तक मृत्यु नहीं हुआ है, पढ़ना ही है। यह तो याद कर सकते हो ना कि अब हमको जाना है घर। यह दुनिया, यह सब कुछ छोड़ना है। खुशी होनी चाहिए। बेहद नाटक का राज़ भी समझ गये हो। हद का नाटक पूरा होता है तो कपड़े बदली कर घर चले जाते हैं। वैसे हमको भी जाना है। 84 जन्मों का चक्र पूरा होता है। याद भी करते हैं हे पतित-पावन आओ। शिवबाबा को ही याद करेंगे। एक तरफ कहते पतित-पावन आओ दूसरे तरफ फिर सर्वव्यापी कह देते। कोई अर्थ ही नहीं निकलता। बच्चों को कितना सहज रीति समझाते हैं - शान्तिधाम को याद करो। यह दु:खधाम है, इसका विनाश भी सामने खड़ा है। यह वही महाभारत लड़ाई है। यूरोपवासी यादव भी हैं और कौरव पाण्डव भाई-भाई हैं। हम एक ही घर के हैं ना। भाई-भाई में युद्ध हो नहीं सकती। यहाँ तो युद्ध की बात ही नहीं। परन्तु मनुष्यों का भी धन्धा है एक दो को लड़ाना। यह तो एक रसम है। सब एक दो के दुश्मन हैं। बच्चा भी बाप का दुश्मन बन पड़ता है। मृत्युलोक की रसम-रिवाज़ भी सबकी अपनी-अपनी है। बाप का प्लैन देखो कितना बड़ा है। सबके प्लैन्स खत्म कर देते और सुखधाम की स्थापना करते हैं। बाकी सबको शान्तिधाम में भेज देते हैं। तुम बच्चे देखते हो हम किसके सामने बैठे हैं। निश्चय है परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है। इन आरगन्स द्वारा हमको नॉलेज दे रहे हैं और कोई सतसंग ऐसा होगा क्या। यहाँ बाप सामने बैठ समझाते हैं। जानते हो बाप हम आत्माओं से बात करते हैं। हम कानों से सुनते हैं। बाबा इस दादा के मुख द्वारा बोलते हैं। जो रत्न बाबा के मुख से निकलते वही तुम बच्चों के मुख से निकलने चाहिए। सदैव मुख से रत्न ही निकले। फालतू शैतानी बातें सुननी भी नहीं चाहिए। कई तो बड़ी खुशी से बैठ सुनते हैं। बाप कहते हैं ऐसी बातें सुनो वा किसको करते हुए देखो तो बाबा को बताओ तो बाबा समझानी देंगे। नहीं तो वह पक्के हो जाते हैं। परन्तु ऐसा होता रहता है। बाबा को सुनाते नहीं हैं कि बाबा यह फालतू बातें सुनाते हैं, इनको मना की जाये तो आदत मिट जाए। बाप सभा में समझायेंगे परन्तु ऐसे के फिर मित्र बन जाते हैं। माया अच्छे-अच्छे बच्चों की बुद्धि भी पत्थर बना देती है। बाप के फरमानबरदार बच्चे बनते ही नहीं हैं, बड़ा नाज़ुक रास्ता है। इसमें बड़ी खबरदारी रखनी चाहिए। रहमदिल बन किसमें आदत है तो मिटानी चाहिए। हाँ जी करके सुनना नहीं चाहिए। बाबा जो सुखधाम का मालिक बनाते हैं, ऐसे बाबा की ग्लानी तो हम कभी नहीं सुनेंगे। हमको तो शिवबाबा से वर्सा लेना है और बातों से क्या तैलुक। कोई सुने न सुने हम तो ज्ञान का शुर्मा पहन लें। कोई ज्ञान अंजन पाते हैं कोई तो फिर धूल अंजन पाते हैं। उससे ज्ञान का तीसरा नेत्र खुलता ही नहीं है। बाबा इतना तो सहज कर समझाते हैं जो कैसा भी रोगी, अंधा, लंगड़ा हो वह भी समझ जाये। अल्फ और बे दो अक्षर हैं। बाप समझाते हैं बच्चे, मित्र-सम्बन्धियों आदि से भी दोस्ती रखो। बहुत मीठा बनो। तुम्हारा काम ही है बाप का परिचय देना। भल दुश्मन हो तो भी मित्रता रखनी है। बहुत मीठा बनना है। बाप कहते हैं तुमने आसुरी मत पर मुझे कितनी गाली दी है, मेरा अपकार किया है फिर भी मैं तुम पर कितना उपकार करता हूँ। ईश्वर का अपकार होना भी ड्रामा में नूंध है। तब तो कहते हैं यदा यदाहि.. आया भी भारत में है। समझा भी रहे हैं। बच्चों को हर एक बात अच्छी रीति समझनी है। किसकी तकदीर में नहीं है तो फिर वही आसुरी धन्धा करते रहेंगे। यहाँ से बाहर गये और इन बातों को भूल जायेंगे। निंदा करते-करते यह हाल हो गया है। अब यह निंदा करना तो छोड़ दो। तुम्हारा नाम तो लिखा हुआ है प्रजापिता ब्रह्माकुमार-कुमारियां। समझ जायेंगे शिव के पोत्रे पोत्रियां ठहरे। जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलता होगा। भारत को वर्सा था अब नहीं है फिर अब मिलता है। सतयुग में सिर्फ सूर्यवंशी ही थे। अब तुम बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और वहाँ पहुंच जायेंगे। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। तुम बच्चों को भी सर्विस करनी है परन्तु पहले अपनी वृत्ति भी अच्छी चाहिए। सिर्फ पण्डित नहीं बनना है। पक्के योगी, राजऋषि होंगे तो दूसरे को तीर लगेगा। खुद में ही कोई कमी होगी तो दूसरे को बोल नहीं सकेंगे। लज्जा आती रहेगी, अपना पाप अन्दर खाता रहेगा। हर बात के लिए बाबा समझाते बहुत अच्छा हैं। कल्प पहले भी ऐसे ही समझाया था। देवी-देवता धर्म तो जरूर स्थापन होगा कोई पढ़े न पढ़े। फिर भी बाप कहते हैं कुछ समझदार बनो। इस कमाई और उस कमाई को बुद्धि में रखो। सच्ची कमाई बाप ही कराते हैं। बाप और स्वर्ग को याद करना, यह भूलो मत। सिमरण करते-करते अन्त मती सो गति हो जायेगी। सवेरे उठ बाप की याद में बैठो। अगर सुस्ती आती है तो समझा जाता तकदीर में नहीं है। ऐसी प्रैक्टिस करनी है जो अन्त में देह भी याद न पड़े। हम आत्मा हैं। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपनी वृत्ति को शुद्ध रख दुश्मन को भी मित्र बनाना है। अपकारी पर भी उपकार कर बाप का सच्चा परिचय देना है।
2) जो रत्न बाबा के मुख से निकलते हैं वही रत्न निकालने हैं। कोई भी व्यर्थ बातें न सुननी है न सुनानी है।
वरदान: निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करने वाले स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक भव!
कोई भी संकल्प वा संस्कार सेकण्ड में निगेटिव से पॉजिटिव में परिवर्तन हो जाए - इसके लिए सारे दिन में ट्रैफिक ब्रेक का अभ्यास चाहिए, क्योंकि व्यर्थ वा निगेटिव संकल्पों की गति बहुत फास्ट होती है। फास्ट गति के समय पावरफुल ब्रेक लगाकर परिवर्तन करने का अभ्यास करो। तब स्वयं के व्यर्थ को परिवर्तन कर स्व परिवर्तक सो विश्व परिवर्तक बन सकेंगे तथा अपने फरिश्ते स्वरूप द्वारा अनेक आत्माओं को सुख-शान्ति का वरदान दे सकेंगे।
 

स्लोगन:ड्रामा के ज्ञान को स्मृति में रखने वाले ही नथिंगन्यु की विधि से विजयी बन सकते हैं।

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Details ( Page:- Murali 10-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 10.12.17     
Pratah Murli Om Shanti AVYAKT Baapdada Madhuban
Head Line 1– ( Avyakt bapdada – 05-04-83 )  -Sarb Bardan Aapka Janm Siddha Adhikar.
Head Line 2– ( Avyakt bapdada – 07-04-83 )  Mataon k Prati Avyakt Bapdada k Mahavakya.
Vardan – Brahman Janm ki vishesta ko natural nature bananewale sahaj Purusarthi bhav.
Slogan – Double light Rehna hai toh Bighna Binashak Bano

English Summary ( 10th Dec 2017 )
Headline 1- All blessings are your birthright. (05/04/83 )
Headline -2 -Avyakt BapDada’s invaluable versions for the mothers: (07/04/83)
BapDada is especially saying a few words to the double servers who are special instruments, to the loving mothers. So, constantly keep your gift of the Father’s teachings with you.
Question: What is the speciality of an easy yogi life?
Answer:               A yogi life is a life of constant happiness.Those who are easy yogis constantly swing in the swings of happiness. When the Father, the Bestower of Happiness, belongs to you, there is nothing but happiness. So,continue to swing in the swings of happiness. You have found the Father, the Bestower of Happiness, your life has become one of happiness, you have found the world of happiness.These are the specialities of a yogi life in which there is no name or trace of sorrow.
 
Question: On what basis should elderly and uneducated children do service?
Answer:               On the basis of their experience.Tell everyone stories of your experience. Just as a nanny or grandma tells stories to all the children in the family, in the same way, tell stories of your experiences. Just talk about what you have found and what you have attained.This service that each one of you can do is the greatest service of all. Keep constantly busy in remembrance and service. This is carrying out a task that is equal to that of the Father.
 
Blessing:May you be an easy effort-maker and make the specialty of your Brahmin birth your natural
When someone is born in a royal family, he or she brings into his or her awareness again and again, “I am a prince/princess”.             Their actions may still be ordinary due to some interest, but they do not forget the speciality of their birth.     Similarly, the Brahmin birth is a special birth. So, your birth is elevated, your religion (dharma) is elevated and your actions (karma) are elevated. Let the greatness, that is, the speciality of this life stay in your awareness in a natural way and you will become an easy effort-maker. Souls with a special life can never perform ordinary actions.
Slogan:In order to remain double light, become a conqueror of obstacles.
 
HINDI DETAIL MURALI

10/12/17 प्रात:मुरली

ओम् शान्ति " अव्यक्त-बापदादा" मधुबन ( 05-04-83 )

 

सर्व वरदान आपका जन्म-सिद्ध अधिकार

 
बापदादा बाप और बच्चों का मेला देख हर्षित हो रहे हैं। द्वापर से जो भी मेले विशेष रूप में होते हैं, कोई न कोई नदी के किनारे पर होते हैं वा कोई देवी वा देवता की मूर्ति के उपलक्ष में होते हैं। एक ही शिवरात्रि बाप की यादगार में मनाते हैं। लेकिन परिचय नहीं। द्वापर के मेले भक्तों और देवियों वा देवताओं के होते हैं। लेकिन यह मेला महानदी और सागर के कण्ठे पर बाप और बच्चों का होता है। ऐसा मेला सारे कल्प में हो नहीं सकता। मधुबन में डबल मेला देखते हो। एक बाप और दादा महानदी और सागर का मेला देखते। साथ-साथ बापदादा और बच्चों का मेला देखते। तो मेला तो मना लिया ना! यह मेला वृद्धि को पाता ही रहेगा। एक तरफ सेवा करते हो कि वृद्धि को पाते रहें। तो वृद्धि को प्राप्त होना ही है और मेला भी मनाना ही है।
बापदादा आपस में रूहरिहान कर रहे थे। ब्रह्मा बोले ब्राह्मणों की वृद्धि तो यज्ञ समाप्ति तक होनी है। लेकिन साकारी सृष्टि में साकारी रूप से मिलन मेला मनाने की विधि, वृद्धि के साथ-साथ परिवर्तन तो होगी ना! लोन ली हुई वस्तु और अपनी वस्तु में अन्तर तो होता ही है। अपनी वस्तु को जैसे चाहे वैसे कार्य में लगाया जाता है। और लोन भी साकार शरीर अन्तिम जन्म का शरीर है। लोन ली हुई पुरानी वस्तु को चलाने की विधि भी देखनी होगी ना। तो शिव बाप मुस्कराते हुए बोले कि तीन सम्बन्धों से तीन रीति की विधि वृद्धि प्रमाण परिवर्तन हो ही जायेगा। वह क्या होगा?
बाप रूप से विशेष अधिकार है मिलन की विशेष टोली और शिक्षक के रूप में मुरली। सतगुरू के रूप में नज़र से निहाल अर्थात् अव्यक्त मिलन की रूहानी स्नेह की दृष्टि। इसी विधि के प्रमाण वृद्धि को प्राप्त होने वाले बच्चों का स्वागत और मिलन मेला चलता रहेगा। सभी को संकल्प होता है कि हमें कोई वरदान मिले। बापदादा बोले जब हैं ही वरदाता के बच्चे तो सर्व वरदान तो आपका जन्म-सिद्ध अधिकार है। अभी तो क्या लेकिन जन्मते ही वरदाता ने वरदान दे दिये। विधाता ने भाग्य की अविनाशी लकीर जन्मपत्री में नूँध दी। लौकिक में भी जन्मपत्री नाम संस्कार के पहले बना देते हैं। भाग्य विधाता बाप ने वरदाता बाप ने ब्रह्मा माँ ने जन्मते ही ब्रह्माकुमार वा कुमारी के नाम संस्कार के पहले सर्व वरदानों और अविनाशी भाग्य की लकीर स्वयं खींच ली। जन्मपत्री बना दी। तो सदा के वरदानी तो हो ही। स्मृति-स्वरूप बच्चों को तो सदा सर्व वरदान प्राप्त ही हैं। प्राप्ति स्वरूप बच्चे हो। अप्राप्ति है क्या जो प्राप्ति करनी पड़े। तो ऐसी रूह-रिहान आज बापदादा की चली। यह हाल बनाया ही क्यों है! तीन हजार, चार हजार ब्राह्मण आवें। मेला बढ़ता जाए। तो खूब वृद्धि को पाते रहो। मुरली बात करना नहीं है क्या। हाँ नज़र पड़नी चाहिए, यह सब बातें तो पूर्ण हो ही जायेंगी।
अभी तो आबू तक लाइन लगानी है ना। इतनी वृद्धि तो करनी है ना! वा समझते हो हम थोड़े ही अच्छे हैं। सेवाधारी सदा स्वयं का त्याग कर दूसरे की सेवा में हर्षित होते हैं। मातायें तो सेवा की अनुभवी हैं ना! अपनी नींद भी त्याग करेंगी और बच्चे को गोदी के झूले में झुलायेंगी। आप लोगों द्वारा जो वृद्धि को प्राप्त होंगे उन्हों को भी तो हिस्सा दिलावेंगे ना। अच्छा !
इस बारी तो बापदादा ने भी सब भारत के बच्चों का उल्हना मिटाया है। जहाँ तक लोन का शरीर निमित्त बन सकते वहाँ तक इस बारी तो उल्हना पूरा कर ही रहे हैं। अच्छा !
सब रूहानी स्नेह को, रूहानी मिलन को अनुभव करने वाले, जन्म से सर्व वरदानों से सम्पन्न अविनाशी श्रेष्ठ भाग्यवान, ऐसे सदा महात्यागी, त्याग द्वारा भाग्य पाने वाले ऐसे पद्मापदम भाग्यवान बच्चों को, चारों ओर के स्नेह के चात्रक बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
 
 
 
10/12/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 07-04-83

 माताओं के प्रति अव्यक्त बापदादा के महावाक्य
 
आज विशेष निमित्त बनी हुई डबल सेवाधारी, बापदादा की स्नेही माताओं को विशेष दो बोल सुना रहे हैं। जो सदा बाप के शिक्षा की सौगात साथ रखना।
एक सदा लौकिक में अलौकिक स्मृति, सदा सेवाधारी की स्मृति। सदा ट्रस्टीपन की स्मृति। सर्व प्रति आत्मिक भाव से शुभ कल्याण की भावना, श्रेष्ठ बनाने की शुभ भावना। जैसे अन्य आत्माओं को सेवा की भावना से देखते हो, बोलते हो, वैसे निमित्त बने हुए लौकिक परिवार की आत्माओं को भी उसी प्रमाण चलाते रहो। हद में नहीं आओ। मेरा बच्चा, मेरा पति इसका कल्याण हो, सर्व का कल्याण हो। अगर मेरापन है तो आत्मिक दृष्टि, कल्याण की दृष्टि दे नहीं सकेंगे। मैजारटी बापदादा के आगे यही अपनी आश रखते हैं बच्चा बदल जाए, पति साथ दे, घर वाले साथी बनें। लेकिन सिर्फ उन आत्माओं को अपना समझ यह आश क्यों रखते हो! इस हद की दीवार के कारण आपकी शुभ भावना वा कल्याण की शुभ इच्छा उन आत्माओं तक पहुँचती नहीं इसलिए संकल्प भल अच्छा है लेकिन साधन यथार्थ नहीं तो रिज़ल्ट कैसे निकले इसलिए यह कम्पलेन्ट चलती रहती है। तो सदा बेहद की आत्मिक दृष्टि, भाई भाई के सम्बन्ध की वृत्ति से किसी भी आत्मा के प्रति शुभ भावना रखने का फल जरूर प्राप्त होता है इसलिए पुरूषार्थ से थको नहीं। बहुत मेहनत की है वा यह तो कभी बदलना ही नहीं है - ऐसे दिलशिकस्त भी नहीं बनो। निश्चयबुद्धि हो, मेरेपन के सम्बन्ध से न्यारे हो चलते चलो। कोई-कोई आत्माओं का ईश्वरीय वर्सा लेने के लिए भक्ति का हिसाब चुक्तु होने में थोड़ा समय लगता है इसलिए धीरज धर, साक्षीपन की स्थिति में स्थित हो, निराश न हो। शान्ति और शक्ति का सहयोग आत्माओं को देते रहो। ऐसी स्थिति में स्थित रहकर लौकिक में अलौकिक भावना रखने वाले, डबल सेवाधारी ट्रस्टी बच्चों का महत्व बहुत बड़ा है। अपने महत्व को जानो। तो दो बोल क्या याद रखेंगे?
नष्टोमोहा, बेहद सम्बन्ध के स्मृति स्वरूप और दूसरा ‘बाप की हूँ', बाप सदा साथी है। बाप के साथ सर्व सम्बन्ध निभाने हैं। यह तो याद पड़ सकेगा ना! बस यही दो बातें विशेष याद रखना। हरेक यही समझे कि बापदादा हरेक शक्ति वा पाण्डव से यह पर्सनल बात कर रहे हैं। सभी सोचते हो ना कि मेरे लिए पर्सनल क्या है। सभा में होते भी बापदादा सभी प्रवृत्ति वालों से विशेष पर्सनल बोल रहे हैं। पब्लिक में भी प्राइवेट बोल रहे हैं। समझा! एक एक बच्चे को एक दो से ज्यादा प्यार दे रहे हैं इसलिए ही आते हो ना! प्यार मिले, सौगात मिले। इससे ही रिफ्रेश होते हो ना। प्यार के सागर हरेक स्नेही आत्मा को स्नेह की खान दे रहे हैं, जो कभी खत्म ही नहीं हो और कुछ रह गया क्या! मिलना, बोलना और लेना। यही चाहते हो ना। अच्छा!
ऐसे सर्व हद के सम्बन्ध से न्यारे, सदा प्रभु प्यार के पात्र, नष्टोमोहा, विश्व कल्याण के स्मृति स्वरूप, सदा निश्चय बुद्धि विजयी, हलचल से परे अचल रहने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ - अलग-अलग ग्रुप से मुलाकात
1) सदा अपने को बाप के साथी अनुभव करते हो? जिसका साथी सर्वशक्तिवान बाप है उसको सदा ही सर्व प्राप्तियाँ हैं। उनके सामने कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आ सकती। माया को विदाई दे दी है? कभी माया की मेहमान निवाज़ी तो नहीं करते? जो माया को विदाई देने वाले हैं उन्हों को बापदादा द्वारा हर कदम में बधाई मिलती है। अगर अभी तक विदाई नहीं दी तो बार-बार चिल्लाना पड़ेगा - क्या करें, कैसे करें इसलिए सदा विदाई देने वाले और बधाई पाने वाले। ऐसी खुशनसीब आत्मा हो। हर कदम बाप साथ है तो बधाई भी साथ है। सदा इसी स्मृति में रहो कि स्वयं भगवान हम आत्माओं को बधाई देते हैं। जो सोचा नहीं था वह पा लिया! बाप को पाया सब कुछ पाया। सर्व प्राप्ति स्वरूप हो गये। सदा इसी भाग्य को याद करो।
2) सभी एक बाप के स्नहे में समाये हुए रहते हो? जैसे सागर में समा जाते हैं ऐसे बाप के स्नेह में सदा समाये हुए। जो सदा स्नेह में समाये रहते हैं उनको दुनिया की किसी भी बात की सुधबुध नहीं रहती। स्नेह में समाये होने के कारण सब बातों से सहज ही परे हो जाते हैं। मेहनत नहीं करनी पड़ती। भक्तों के लिए कहते हैं यह तो खोये हुए रहते हैं लेकिन बच्चे तो सदा प्रेम में डूबे हुए रहते हैं। उन्हें दुनिया की स्मृति नहीं। घर मेरा, बच्चा मेरा, यह चीज़ मेरी, ये मेरा-मेरा खत्म। बस एक बाप मेरा और सब मेरा खत्म। और मेरा मैला बना देता है, एक बाप मेरा तो मैलापन समाप्त हो जाता है।
3) बाप को हरेक बच्चा अति प्यारा है। सब श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हो। चाहे गरीब हो, चाहे साहूकार, चाहे पढ़े लिखे हो चाहे अनपढ़, सब एक दो से अधिक प्यारे हैं। बाप के लिए सभी विशेष आत्माये हैं। कौन सी विशेषता है सभी में? बाप को जानने की विशेषता है। जो बड़े बड़े ऋषि मुनि नहीं जान सके वह आपने जान लिया, पा लिया। वह बिचारे तो नेती नेती करके चले गये। आपने सब कुछ जान लिया। तो बापदादा ऐसी विशेष आत्माओं को रोज़ याद-प्यार देते हैं। रोज मिलन मनाते हैं। अमृतवेले का समय खास बच्चों के लिए हैं। भक्तों की लाइन पीछे, बच्चों की पहले। जो विशेष आत्मायें होती हैं उनसे मिलने का समय भी जरूर विशेष होगा ना! तो सदा ऐसी विशेष आत्मा समझो और सदा खुशी में उड़ते चलो।
4) ब्राह्मण बच्चे अपनी बीमारी की दवाई स्वयं ही कर सकते हैं। खुशी की खुराक सेकण्ड में असर करने वाली दवाई है। जैसे वह लोग पॉवरफुल इन्जेक्शन लगा देते हैं तो चेन्ज हो जाते। ऐसे ब्राह्मण स्वयं ही स्वयं को खुशी की गोली दे देते हैं वा खुशी का इन्जेक्शन लगा देते हैं। यह तो स्टॉक हरेक के पास है ना! नॉलेज के आधार पर शरीर को चलाना है। नॉलेज की लाइट और माइट बहुत मदद देती है। कोई भी बीमारी आती है तो यह भी बुद्धि को रेस्ट देने का साधन है। सूक्ष्मवतन में अव्यक्त बापदादा के साथ दो दिन के निमंत्रण पर अष्ट लीला खेलने के लिए पहुँच जाओ फिर कोई डॉक्टर की भी जरूरत नहीं रहेगी। जैसे शुरू में सन्देशियाँ जाती थीं एक या दो दिन भी वतन में ही रहती थी, ऐसे ही कुछ भी हो तो वतन में आ जाओ। बापदादा वतन से सैर कराते रहेंगे, भक्तों के पास ले जायेंगे, लण्डन, अमेरिका घुमा देंगे। विश्व का चक्र लगवा देंगे। तो कोई भी बीमारी कभी आये तो समझो वतन का निमंत्रण आया है, बीमारी नहीं आई है।
प्रश्न:- सहजयोगी जीवन की विशेषता क्या है?
उत्तर:- योगी जीवन अर्थात् सदा सुखमय जीवन। तो जो सहजयोगी हैं वह सदा सुख के झूले में झूलने वाले होते हैं। जब सुखदाता बाप ही अपना हो गया तो सुख ही सुख हो गया ना। तो सुख के झूले में झूलते रहो। सुखदाता बाप मिल गया, सुख की जीवन बन गई, सुख का संसार मिल गया, यही है योगी जीवन की विशेषता जिसमें दु:ख का नाम निशान नहीं।
प्रश्न:- बुजुर्ग और अनपढ़ बच्चों को किस आधार पर सेवा करनी है?
उत्तर:- अपने अनुभव के आधार पर। अनुभव की कहानी सबको सुनाओ। जैसे घर में दादी वा नानी बच्चों को कहानी सुनाती है ऐसे आप भी अनुभव की कहानी सुनाओ, क्या मिला है, क्या पाया है... यही सुनाना है। यह सबसे बड़ी सेवा है, जो हरेक कर सकता है। याद और सेवा में ही सदा तत्पर रहो, यही है बाप समान कर्तव्य।
 
वरदान: ब्राह्मण जन्म की विशेषता को नेचरल नेचर बनाने वाले सहज पुरूषार्थी भव!
 
जैसे किसी का जन्म राज परिवार में हो, तो बार-बार स्मृति में लाते हैं कि मैं राजकुमार या राजकुमारी हूँ, चाहे कर्म रूचि के कारण साधारण भी हो लेकिन अपने जन्म की विशेषता को नहीं भूलते। ऐसे ब्राह्मण जन्म ही विशेष जन्म है, तो जन्म भी श्रेष्ठ, धर्म भी श्रेष्ठ और कर्म भी श्रेष्ठ है। इसी श्रेष्ठता अर्थात् विशेषता की जीवन स्मृति में नेचरल रहे तो सहज पुरूषार्थी बन जायेंगे। विशेष जीवन वाली आत्मायें कभी साधारण कर्म नहीं कर सकती।
स्लोगन:डबल लाइट रहना है तो विघ्न-विनाशक बनो।

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Details ( Page:- Murali 11-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 11.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche-Tum sabhi manushya matra ke kalyankari ho,tumhe bahuto ka kalyan karna hai,asariri banne ke abhyas ke saath-saath service bhi zaroor karni hai.
Q- Kis ek baat me Baap bhi drama ki bhavi kah chup ho jate hain?
A- Bacche,jo bahut samay tak Baap ki palana li fir maya ke vas ho jate hain.Saadi kar kahan ka kahan chale jate hain.Ascharyavat bhaganti ho jate hain to Baap drama ki bhavi kah chup ho jate hain.Baap jaante hain yah bhi yagyan me bighna padte hain.Baap ko ouna rehta hai bacche,kahan kisi ke naam-roop me nahi fansh jaye.Maya bahut bighna dalti hai isiliye Baba raye dete hain bacche,tumhe maya se darna nahi hai.Baap ki yaad se bijayi banna hai.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Baap ki sharan me aane ke liye buddhi se behad ka sanyas karna hai.Purani duniya aur deha ko bhool aatma-abhimaani rehne ki mehnat karni hai.
2)Hum Brahman sarv ki manokaamnaye poorn karne wale hain-is nashe me rehna hai.
 
Vardan:-Light swaroop ki smriti dwara byarth ke bojh se halka rehne wale Tibra Purusharthi bhava.
Slogan:-Befikra badshah banna hai to tan-man-dhan ko prabhu samarpit kar do.

English Summary ( 11th Dec 2017 )
Sweet children, you are benefactors for all human beings. You have to benefit many. You must practise becoming bodiless and you must also definitely do service.
Question:In which one aspect does even the Father say that it is the destiny of the drama and He then becomes silent?
Answer: When children who have taken sustenance from the Father for a long time become influenced by Maya, get married and go away somewhere, when they become amazed and then leave, the Father says: It is the destiny of the drama and becomes silent. The Father knows that these are obstacles in the yagya. The Father is concerned that the children don't become trapped in anyone's name or form. Maya creates many obstacles. This is why Baba advises you: Children, you mustn't be afraid of Maya. Become victorious by having remembrance of the Father.
 
Om Shanti
Essence for Dharna:
1-     In order to take refuge with the Father, make your intellect have unlimited renunciation. Forget the old world and bodies and make effort to remain soul conscious.
 
2-     Maintain the intoxication that we Brahmins are those who fulfil the desires of everyone.
 
Blessing:May you be an intense effort-maker and remain light with no burden of waste by having the awareness of your form of light.
 
Those who maintain the awareness of their original form of light have the power to transform anything wasteful into something powerful. They easily transform any waste of time, wasteful company and wasteful atmosphere and remain double light. Along with this, they also remain light in their relationships with the Brahmin family and also in service. They do not have any connection with their old sanskars or the old world. They cannot be attracted to any bodily beings or objects. Such intense effort-making children easily attain their angelic stage.
 
Slogan:In order to become a carefree emperor, surrender your body, mind and wealth to God.

English Summary ( 12th Dec 2017 )
Sweet children, renounce arrogance of the body and become soul conscious. In order to benefit yourself, keep your chart of remembrance. Especially sit in remembrance. It is only by having remembrance that your sins will be absolved.
Question: What is the first law that the Father has told you children?
Answer:The first law is that, while seeing everything, your intellect should not be disturbed by any of it. Stay in remembrance of the one Father. Examine yourself: Is my attitude spoilt when I see something? While working with your hands, remember the Father with your heart. There is no question of closing your eyes in this.
Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Become Godly helpers according to shrimat. In order to reveal the Father, show everyone the way home.
2. Look after everything as a trustee. Don't have attachment to anyone. Pass with honours, the same as Mama and Baba.
 
Blessing: May you be master merciful and transform the world of sorrow and suffering by enabling your feelings of mercy to emerge.
When souls are crying out due to some upheaval of nature and are asking for mercy and compassion, your merciful form should emerge and hear their call. In order to transform the world of sorrow and suffering, make yourself complete. Intensify your pure feeling for transformation. By your becoming complete, this world of sorrow will be completed (finished). So, enable your feelings of mercy to emerge for yourself and all souls. Where there is mercy, there will not be any upheaval of “mine” and “yours”.
Slogan:When the two wings of knowledge and yoga are strong you will be able to experience the flying stage.
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11/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 मीठे बच्चे - तुम सभी मनुष्य मात्र के कल्याणकारी हो, तुम्हें बहुतों का कल्याण करना है, अशरीरी बनने के अभ्यास के साथ-साथ सर्विस भी जरूर करनी है
प्रश्न: किस एक बात में बाप भी ड्रामा की भावी कह चुप हो जाते हैं?
उत्तर:
बच्चे, जो बहुत समय तक बाप की पालना ली फिर माया के वश हो जाते हैं। शादी कर कहाँ का कहाँ चले जाते हैं। आश्चर्यवत भागन्ती हो जाते हैं तो बाप ड्रामा की भावी कह चुप हो जाते हैं। बाप जानते हैं यह भी यज्ञ में विघ्न पड़ते हैं। बाप को ओना रहता है बच्चे, कहाँ किसी के नाम-रूप में नहीं फंस जायें। माया बहुत विघ्न डालती है इसलिए बाबा राय देते हैं बच्चे, तुम्हें माया से डरना नहीं है। बाप की याद से विजयी बनना है।
 
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि हम बाप और दादा के सामने बैठे हैं। हर एक बात नई है और याद करना है श्रीमत पर एक ही बाप को। बाप श्रीमत देते हैं दादा के तन द्वारा। घड़ी-घड़ी बच्चों को सावधानी मिलती है कि मनमनाभव अर्थात् बाप को याद करो। इस दादा को याद नहीं करना है। दादा की आत्मा भी बाप को याद करती है तो तुमको भी याद करना है। तुम आत्मा अशरीरी हो, मैं भी अशरीरी हूँ सिर्फ तुमको इस तन द्वारा पढ़ा रहा हूँ। यह कोई सर्वशक्तिमान नहीं है। सर्वशक्तिमान एक ही बाप है। भल तुम विश्व के मालिक बनते हो परन्तु तुमको सर्वशक्तिमान नहीं कहेंगे। सर्वशक्तिमान द्वारा तुम रावण पर जीत पाकर फिर से अपना राज्य पद लेते हो। बाप का फरमान है कि मुझ अपने बाप को याद करो। तुम झाड़ के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझ गये हो। अभी तुम कितने समझदार बने हो अर्थात् बुद्धि में नॉलेज है। इस नॉलेज से तुमको बहुत ऊंच पद मिलता है। नर से नारायण बनते हो। यह राजयोग की पढ़ाई है। कल्प पहले भी तुमने यह पढ़ाई पढ़ी है। एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है फिर जो जितना पुरुषार्थ करे। पुरुषार्थ बहुत करना चाहिए और है भी बहुत सहज। अपने घर को जानना, यह कोई मुश्किल नहीं है। हम आत्मा अशरीरी हैं। शान्तिधाम में रहते हैं। वहाँ मन की शान्ति आदि नहीं कहेंगे, मन की शान्ति, वास्तव में यह अक्षर कहना भी रांग है। मन तो घोड़ा है। जब तक शरीर है आत्मा के साथ, तो मन शान्त हो नहीं हो सकता। कर्म तो करना ही है। अल्पकाल की शान्ति तो रात्रि को नींद में होती है। आत्मा कर्मेन्द्रियों से काम करते-करते थक जाती है तो अशरीरी हो जाती है। आत्मा कहती है मुझे नींद आती है। मैं थक गया हूँ। तो आत्मा अशरीरी हो जाती है। अभी बाप को याद करना है तो विकर्म विनाश होंगे। सो जाने से कोई विकर्म विनाश नहीं होंगे। यह तो बाप को याद करने का पुरुषार्थ करना है, जो पुरुषार्थ बहुत जरूरी है। घड़ी-घड़ी बाप कहते हैं मुझे याद करो। जितना जो सर्विस करेंगे, अपनी ही प्रजा बनायेंगे। ढेर की ढेर प्रजा बनानी है, बहुतों का कल्याणकारी बनना है। तुम मनुष्य मात्र के कल्याणकारी हो। रावण राज्य में कोई भी किसका कल्याण नहीं करते। मनुष्य जब दान-पुण्य करते हैं, समझते हैं हम अच्छा कर्म करते हैं। जैसे तुम कहते हो इस लड़ाई से वैकुण्ठ के द्वार खुलते हैं। यह बहुत अच्छी लड़ाई है। तुम ब्राह्मण अभी ज्ञानी तू आत्मा बने हो। जिनमें 5 विकार प्रवेश हैं वह देवता कैसे बन सकेंगे। नर से नारायण बनने के लिए अच्छी मेहनत चाहिए। बेहद का पुरुषार्थ करना है। ऐसा ऊंचा पद बाप के सिवाए कोई प्राप्त करा नहीं सकता। कोई राजयोग सिखला न सके। तुम लक्ष्मी-नारायण की बायोग्राफी को भी जानते हो। उन्होंने यह राज्य कैसे लिया? कहाँ से लिया? किसको जीता? तुम सबको समझाते हो - कि अभी राजयोग सीखकर हम लक्ष्मी-नारायण जैसा बन रहे हैं। स्वयं भगवान नर से नारायण बनने की पढ़ाई पढ़ाते हैं। तो तुम बच्चों को बहुत नशा होना चाहिए।
बाप ने समझाया है - यह ब्राह्मण धर्म परमपिता परमात्मा ही स्थापन करते हैं। अब ब्राह्मण धर्म कहाँ होता है? क्या सतयुग में? नहीं। जरूर यहाँ होगा। प्रजापिता भी यहाँ ठहरा। बाप ने ब्राह्मण धर्म स्थापन किया और ब्रह्मा मुख वंशावली रची। खुद कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त के साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करता हूँ। वह अपने जन्मों को नहीं जानते। कहते हैं ब्रह्मा को यहाँ क्यों रखा है? अरे प्रजापिता तो यहाँ होना चाहिए। समझते हैं सूक्ष्मवतनवासी देवता यहाँ कैसे हो सकता है! प्रजापिता ब्रह्मा के 84 जन्मों का राज़ बाप बैठ समझाते हैं। यह है अन्तिम जन्म, इसमें ही आना पड़ेगा। जो आदि में है सो अन्त में होगा। यह सब राज़ बाप ही समझाते हैं। यह चित्र भी शिवबाबा ने दिव्य दृष्टि से बनवाये हैं। बाबा ने डायरेक्शन दिया कि कल्प 5 हजार वर्ष का है - यह सिद्ध कर बताना है। यह स्वर्ग-नर्क के चित्र बाबा ने बनवाये हैं। गीता में यह थोड़ेही लिखा हुआ है कि परमपिता परमात्मा ने पढ़ाया है। देखो समझाने में कितनी मेहनत लगती है। दिन-प्रतिदिन समझानी मिलती रहती है। जो कल्प पहले जिस समय समझाया, उस समय अभी भी समझाते हैं। मुझ आत्मा में जो पार्ट नूँधा हुआ है, वह रिपीट होता है। यह तो तुम समझते हो कि यह पतित दुनिया है। सबका अन्तिम जन्म है। अभी नाटक पूरा होता है। नहीं तो सतयुग से दैवी धर्म कैसे स्थापन होगा। सतयुग में है एक अद्वैत देवी-देवता धर्म। इस समय तुम्हारा है ब्राह्मण धर्म। विराट रूप का राज़ भी समझाया है। ब्राह्मण माना चोटी, फिर ब्राह्मण ही देवता बनते हैं। मनुष्यों को यह पता ही नहीं है कि शिवबाबा ब्राह्मण धर्म रचते हैं। अभी तुम ट्रांसफर होते हो। शूद्र से ब्राह्मण, नीचे से आसमान में चले जाते हो। आत्माओं को अब घर जाना है।
मनुष्य देवियों के मन्दिर में जाते हैं तो यह नहीं जानते हैं कि जगत अम्बा कौन है? वह भी ब्राह्मणी है। तुम भी ब्राह्मणियाँ हो। जगत अम्बा और जगत पिता भी है, जो जिसका पुजारी होगा उनका मन्दिर बनायेगा। नॉलेज कुछ भी नहीं है कि जगत अम्बा कौन है। वह है ज्ञान ज्ञानेश्वरी, जो फिर राज-राजेश्वरी बनती है। देवियों की बहुत पूजा होती है। सतयुग में हैं लक्ष्मी-नारायण, त्रेता में हैं राम-सीता। बाकी सब इस समय के चित्र हैं। अनेक चित्र हैं, अनेक मन्दिर बनाये हैं। तुम जानते हो ब्रह्मा सरस्वती ब्राह्मण और ब्राह्मणियाँ हैं। लक्ष्मी को ब्राह्मणी नहीं कहेंगे, वह देवता है। जब ब्राह्मणी है तो सब मनोकामनायें पूर्ण करती है - 21 जन्मों के लिए। जब लक्ष्मी बनती है तो ग्रेड कम हो जाता है। अभी तुम ईश्वर की सन्तान हो। तुम्हारी ग्रेड ऊंची है। इन बातों को कोई मनुष्य नहीं समझ सकते। तुम हो ब्राह्मण कुल भूषण। अभी तुम ईश्वर के बने हो फिर देवता कुल में जायेंगे। यह संगमयुग कल्याणकारी है। बाप भारत को स्वर्ग बनाते हैं। भारत ही प्राचीन हेविन था, परन्तु किसकी बुद्धि में नहीं बैठता। भारतवासियों को मालूम पड़े तो खुश हो जायें कि हम स्वर्ग के मालिक थे। कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग गया। हेविनली गॉड फादर ही हेविन बनाते हैं। मूलवतन तो है ही। उसके लिए स्थापना अक्षर नहीं आयेगा। स्थापना धर्म की होती है। वह आत्माओं का घर है जो इस समय खाली होता है, फिर नम्बरवार सब जायेंगे। यह बच्चों की बुद्धि में बिठाना है औरों को समझाने लिए। धर्म स्थापन अर्थ जो भी आत्मायें आती हैं वह फिर सतो रजो तमो में आती हैं। तुमको अब ऊपर जाना है। तुम्हारी चढ़ती कला है। तुम रूहानी ब्राह्मण मुखवंशावली हो। वह हैं कुख वंशावली, जिस्मानी ब्राह्मण। वह जिस्मानी तीर्थ कराते हैं, कथा सुनाते हैं। तुम ब्राह्मण सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाने वाले हो। जिस्मानी ब्राह्मण भी यहाँ आते हैं - उन्हों को जब मालूम पड़ता है कि सच्चे ब्राह्मण बरोबर यह हैं तब समझते हैं हम बरोबर झूठी कथायें सुनाते हैं। उन्हों के कच्छ में है कुरम, तुम्हारी बुद्धि में है नॉलेज। वह शास्त्र पढ़कर सुनाते हैं और तुम्हारी बुद्धि में नॉलेज है, जैसे बाबा की बुद्धि में है। बाबा सत, चित, आनन्द स्वरूप, बीजरूप है और है भी निराकार। तुमको भी बुद्धि में नॉलेज धारण करनी है। नॉलेज डिफीकल्ट नहीं है, सिर्फ ध्यान देना है। ऐसे भी नहीं कोई घर-बार छोड़ना है। यह तो कारण बन जाते हैं। समझो बच्ची शादी करने नहीं चाहती है, बाप मारते हैं। परन्तु छोटी है भाग नहीं सकती। बालिग है तो आकर शरण लेती है। गाते हैं शरण पड़ी मैं तेरे क्योंकि रावण राज्य में बहुत दु:खी हैं। फिर बाप से वर्सा पाते हैं। समझो किसको पति बहुत मारता है, समझती है इससे जाकर बाबा की शरण लेवें। परन्तु घरबार छोड़ना मासी का घर नहीं है। मेहनत लगती है। सन्यासी भल सन्यास करते हैं परन्तु मित्र-सम्बन्धी कोई भूलते नहीं हैं। कई लौट भी आते हैं, मेहनत है। ब्रह्म तत्व से योग जल्दी नहीं लगता। यहाँ तुम जानते हो पुरानी दुनिया और पुराने सम्बन्ध हैं। देह सहित सब कुछ छोड़ना है, इसलिए तुमको इस पुरानी दुनिया से वैराग्य आता है। पुराने शरीर से भी तुमको वैराग्य है। यह है बेहद का वैराग्य। उन्हों का है हद का रजोगुणी वैराग्य। यह है बेहद का सतोप्रधान वैराग्य। दुनिया को नहीं छोड़ते हैं। तुम पुरुषार्थ कर रहे हो पुरानी दुनिया से नई दुनिया में जाने लिए। वह थोड़ेही ऐसे समझते हैं कि नई दुनिया में जाकर सुख भोगना है। यह सुख तुम्हारे लिए है। उन्हों का है रजोप्रधान सन्यास। तुम्हारा है सतोप्रधान सन्यास। बच्चों को सतोप्रधान बनना है। योग से खाद भस्म हो जायेगी इसलिए इसको योग अग्नि कहा जाता है। याद अग्नि यह अक्षर शोभता नहीं है। योग अग्नि कहा जाता है, जिससे विकर्म भस्म होंगे। है बहुत सहज बात। परन्तु घड़ी-घड़ी कहते हैं बाबा हम भूल जाते हैं। बाप कहते हैं - बच्चे देही-अभिमानी बनो। सतयुग से त्रेता तक तुम सोल कान्सेस रहते हो। तुम आधाकल्प सोल कान्सेस, आधाकल्प बॉडी कान्सेस बने हो। तो अब सोलकान्सेस बनने में मेहनत लगती है। सतयुग में समझते हैं हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। सर्प का मिसाल.... यह दृष्टान्त तुम्हारे लिए है। सन्यासी ज्योति ज्योत में समाने चाहते हैं। वह यह नहीं जानते हैं कि हमको फिर आकर नया चोला लेना है। तुम जानते हो यह बूढ़ा शरीर छोड़ जाकर नया लेंगे। पुराने कपड़े को छोड़ने का दिल होता है। कछुए का मिसाल भी तुम्हारे लिए है। कर्म करते बाप को याद करते रहो। बाप ही सद्गति दाता है। सद्गति दाता एक शिवबाबा दूसरा न कोई। तुम सब आत्मायें शिवबाबा के बच्चे फिर प्रजापिता ब्रह्मा की भी सन्तान हो। पहले हैं ब्राह्मण फिर झाड़ वृद्धि को पाता है। यह वैरायटी धर्मों का झाड़ है। पहले देवी-देवता धर्म फिर इस्लामी, बौद्धी फिर वृद्धि होती रहती है। टाल-टालियाँ निकलती रहती हैं। जब नये निकलते हैं तो उनकी महिमा होती है। पीछे ताकत कम होती जाती है। तुम हो बहुत बड़ी ताकत वाले, जो विश्व के मालिक बनते हो। वहाँ कोई मिनिस्टर आदि नहीं होते हैं। राजा का हुक्म चलता है। द्वापर से वजीर होते हैं। अब तो राजा-रानी हैं नहीं। यह भी ड्रामा बना बनाया है। भारत स्वर्ग था, अब नर्क है। नर्क भी पहले सतोप्रधान फिर अभी नर्क भी तमोप्रधान है, जिसको रौरव नर्क कहा जाता है। बाप कहते हैं - मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ती है। कितना ओना रहता है, कहाँ कोई बच्चियां गुण्डों के हाथ में न आ जायें। दुनिया बहुत गन्दी है। सेन्टर पर गन्दे लोग आ जाते हैं। नाम रूप में फंस पड़ते हैं। यज्ञ में अनेक प्रकार के विघ्न भी पड़ते हैं। माया भी विघ्न डालती है। फिर बहुत घुटका खाते हैं। फिर भी बाप को याद करना पड़े। युद्ध के मैदान में खड़े होकर लड़ना है। डरना नहीं है। फारकती बहुत दे देते हैं। कितने वर्ष रह पालना ली, फिर शादी कर कहाँ न कहाँ चले गये। आश्चर्यवत भागन्ती हो जाते फिर भी ड्रामा की भावी कह चुप हो जाते हैं। सर्विस में रहने वालों को खुशी बहुत जास्ती रहती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप की शरण में आने के लिए बुद्धि से बेहद का सन्यास करना है। पुरानी दुनिया और देह को भूल आत्म-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है।
2) हम ब्राह्मण सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाले हैं - इस नशे में रहना है।
 
वरदान:लाइट स्वरूप की स्मृति द्वारा व्यर्थ के बोझ से हल्का रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव!
 
जो अपने निज़ी लाइट स्वरूप की स्मृति में रहते हैं उनमें व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने की शक्ति होती है। वे व्यर्थ समय, व्यर्थ संग, व्यर्थ वातावरण को सहज परिवर्तन कर डबल लाइट रहते हैं। साथ-साथ ब्राह्मण परिवार के सम्बन्ध में, सेवा के संबंध में भी हल्के रहते हैं। उनका रिश्ता किसी भी पुराने संस्कार वा संसार से नहीं रहता। किसी देहधारी व्यक्ति या वस्तु की तरफ उनकी आकर्षण हो नहीं सकती। ऐसे तीव्र पुरूषार्थी बच्चे सहज ही फरिश्ते पन की स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं।
 

स्लोगन:बेफिक्र बादशाह बनना है तो तन-मन-धन को प्रभू समर्पित कर दो।

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Details ( Page:- Murali 12-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 12.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche- Mithe bacche-Deha-ahankar chhod dehi-abhimani bano,apne kalyan ke liye yaad ka chart note karo,khaas yaad me baitho,yaad se he bikarm binash honge.
Q- Baap ne tum baccho ko pehla-pehla kayeda kaun sa sunaya hai?
A- Pehla kayeda hai-sab kuch dekhte huye buddhi chalyemaan na ho.Ek Baap ki yaad rahe.Apni pariksha leni hai ki meri,briti dekhne se kharab to nahi hoti hai? tumhe haath se kaam karte dil se Baap ko yaad karna hai,isme aankhe band karne ki baat he nahin hai.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Shrimat par khudai-khidmatgar banna hai.Baap ka show karne ke liye sabko ghar ka rashta batana hai.
2)Trusty hokar sab kuch sambhalna hai.Kisi me bhi mamatva nahi rakhna hai.Mata-pita ke muafik izzat se pass hona hai.
 
Vardan:-Raham ki bhavna ko emerge kar dukh dard ki duniya ko parivartan karne wale Master Merciful bhava.
 Slogan:-Gyan aur yog ke dono pankh mazboot ho tab udti kala ka anubhav kar sakenge.
 
 
HINDI DETAIL MURALI

12/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 मीठे बच्चे – “मीठे बच्चे - देह-अंहकार छोड़ देही-अभिमानी बनो, अपने कल्याण के लिए याद का चार्ट नोट करो, खास याद में बैठो, याद से ही विकर्म विनाश होंगे
 
प्रश्न: बाप ने तुम बच्चों को पहला-पहला कायदा कौन सा सुनाया है?
उत्तर:
पहला कायदा है - सब कुछ देखते हुए बुद्धि चलायमान न हो। एक बाप की याद रहे। अपनी परीक्षा लेनी है कि मेरी वृत्ति देखने से खराब तो नहीं होती है? तुम्हें हाथ से काम करते दिल से बाप को याद करना है, इसमें आंखे बन्द करने की बात ही नहीं है।
 
ओम् शान्ति।
भक्ति मार्ग में अक्सर करके कोई सन्यासी आदि जब बैठते हैं तो ऑखें बन्द करके बैठते हैं। यहाँ कायदा है देखते हुए भी चलायमान नहीं होना है। अपनी परीक्षा लेनी होती है कि देखने से मेरी वृत्ति खराब तो नहीं होती है? हम भल देखते हैं परन्तु बुद्धि का योग बाप के साथ है। मनुष्य भोजन बनायेंगे तो ऑखें बन्द करके तो नहीं बनायेंगे ना। इसको कहा जाता है हथ कार डे दिल यार डे। कर्मेन्द्रियों से काम लेते रहो परन्तु याद बाप को करो। जैसे स्त्री पति के लिए भोजन बनाती है। हाथ से काम करती रहेगी परन्तु बुद्धि में होगा कि मैं पति के लिए भोजन बनाती हूँ। तुम बच्चे बाप की सर्विस में हो। बाप कहते हैं - बच्चे मैं तुम्हारा ओबिडियन्ट सर्वेन्ट हूँ। बच्चों को अर्थात् आत्माओं को समझायेंगे ना। आत्मा कहेगी - स्वीट फादर, आप जो हमको ज्ञान और योग सिखलाते हो, हम उस सर्विस में ही बिजी हैं। और आपने डायरेक्शन दिया है कि गृहस्थ व्यवहार में रहते, काम करते घड़ी-घड़ी मुझे याद करते रहो। तुम रेगुलर याद कर नहीं सकते। कोई कहे हम 12 घण्टा याद करते हैं, परन्तु नहीं। माया घड़ी-घड़ी बुद्धियोग जरूर हटायेगी। तुम्हारी लड़ाई है ही माया के साथ। माया याद करने नहीं देती है क्योंकि तुम माया पर जीत पाते हो। रावणजीत जगतजीत। राम भी जगतजीत थे। सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी जगतजीत थे। तो इन ऑखों से देखते हुए बुद्धि बाप के साथ रहनी चाहिए। देखना है मेरे को कोई चलायमानी तो नहीं आती है! बाप को पूरा याद करना है। ऐसे नहीं कि मैं तो शिवबाबा का हूँ ही, याद करने की क्या दरकार है। परन्तु नहीं, खास याद करना है और यह नोट रखना है कि सारे दिन में हमने कितना समय याद किया? ऐसे बहुत होते हैं जो सारे दिन की हिस्ट्री लिखते हैं कि हमने सारा दिन यह-यह किया। जरूर अच्छे मनुष्य ही लिखेंगे। अच्छी चाल लिखते हैं तो पिछाड़ी वाले देखकर सीखें। बुराई लिखें तो उनको देख और भी बुराई सीखेंगे। अब बाप बच्चों को राय देते हैं कि तुमको चार्ट रखना है। नॉलेज तो बहुत सहज है। भारत का प्राचीन राजयोग मशहूर है। भक्ति मार्ग में अनेक प्रकार के हठयोग आदि सिखलाते हैं। उन्हों को यह पता नहीं है कि बाप ने कौन सा योग सिखलाया था? भल कोई-कोई अक्षर भी हैं - मनमनाभव, देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो। अब उनके लिए सर्वव्यापी कहना, यह तो रांग हो जाता है। कोई याद कर ही नहीं सकते। पत्थरबुद्धि होने कारण कुछ भी अर्थ नहीं समझते। बाप समझाते हैं - मुझ बाप को याद करो। यह मेरी देह नहीं है। कृष्ण की आत्मा तो कह न सके। निराकार बाप ही कहते हैं अपने को आत्मा अशरीरी समझो। तुम अशरीरी (नंगे) आये थे। उन्होंने फिर नागा समझ लिया है। भक्तिमार्ग में अयथार्थ उठा लिया है। बाप ने कहा - अपने को देह से अलग समझो। देह अहंकार छोड़ो, देही-अभिमानी बनो। सारी आयु तुम अपने को देह समझते आये हो। अभी यह अन्तिम जन्म है। अभी तुमको देही-अभिमानी बनना है। सतयुग में देवतायें आत्म-अभिमानी थे। उनको मालूम रहता था कि एक शरीर छोड़ दूसरा लेना है। खुशी से पुराना शरीर छोड़ नया लेते हैं। सन्यासी तो यह सिखला न सकें। वह काल को जीत नहीं सकते। तुम बच्चे काल पर जीत पाते हो। वह निवृत्ति मार्ग वाले हैं। वह फिर अपने सन्यास धर्म में आयेंगे। प्रवृत्ति मार्ग में आ न सकें। वह भी भारत के लिए अच्छा धर्म है। पवित्र बनते हैं भारत की महिमा इतनी बड़ी है जितनी बाप की बड़ी है। भारत ही पवित्र था, अब नहीं है। भारत सबका तीर्थ स्थान है। सब मनुष्य मात्र की अभी सद्गति होगी। कहते हैं गॉड फादर इज़ लिबरेटर। दु:ख से लिबरेट कर शान्तिधाम में ले जाते हैं। अगर भारतवासियों को मालूम होता तो सर्वव्यापी नहीं कहते। शिवजयन्ति यहाँ मनाते हैं। गाते भी हैं कि हे पतित-पावन। निराकार बाप को ही याद करते हैं। भारतवासी ही गाते हैं। सबसे जास्ती पावन वही बनते हैं। तुम समझते हो बिल्कुल राइट बातें हैं। बाकी शास्त्र तो ढेर हैं, हर धर्म वाले अपनी-अपनी किताब बनाते हैं। नये-नये धर्मों का बहुत मान होता है। भारतवासी द्वापर से गिरते ही आये हैं। अभी सब पतित बन पड़े हैं। सारी दुनिया पतित-पावन बाप को याद करती है। ऐसे बाप का जन्म यहाँ होता है। सोमनाथ का मन्दिर भी यहाँ है, इनको अगर जान जायें तो सब एक पर ही फूल चढ़ायें क्योंकि वह सबका लिबरेटर है। हमारा तो एक दूसरा न कोई। कोई मरता है तो उन पर फूल चढ़ाते हैं। शिवबाबा तो मरते नहीं हैं। सबको शान्तिधाम ले जाते हैं। शिव के मन्दिर जहाँ-तहाँ हैं। विलायत में भी शिवलिंग को सब पूजते हैं। परन्तु यह पता नहीं है कि हम इनको क्यों पूजते हैं। बाप स्वयं बैठ समझाते हैं कि शिवजयन्ति के बाद कृष्णजयन्ति भारत में ही होती है। शिव जयन्ति के बाद नई दुनिया आती है। बाप आते हैं पुरानी दुनिया को नया बनाने। भारत सबसे ऊंच है। नाम ही है पैराडाइज़। तुम सब खुश होते हो कि अभी हम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं श्रीमत पर। हम खुदाई खिदमतगार हैं, सैलवेशन आर्मी हैं। सारी दुनिया को रावण की जंजीरों से तुम छुड़ाते हो। तुम जानते हो बाबा के साथ हम भारत की खिदमत कर रहे हैं। गाँधी जी ने फारेनर्स से छुड़ाया परन्तु कोई सुख तो नहीं हुआ और ही दु:ख हो गया। लड़ते-झगड़ते रहते हैं। बाप कहते हैं मैं आता हूँ रावण की जंजीरों से छुड़ाने। रावण की जंजीरों के कारण अनेक प्रकार की जंजीरें हैं। सतयुग में यह होती नहीं। वहाँ दु:ख की कोई बात नहीं। यहाँ तो कितने व्रत नेम रखते हैं। यह सब करते हैं श्रीकृष्णपुरी में चलने लिए।
अब बाप बच्चों को समझाते हैं फादर शोज़ सन, सन शोज़ फादर। तुम सबको घर का रास्ता बताते हो। इसको भूल-भूलैया का खेल कहा जाता है। भक्ति में कितना माथा मारते हैं परन्तु बाप से वर्सा कोई ले न सकें। भक्ति, तप, दान करते-करते माथा टेकते रहते हैं। रास्ता बताने वाला एक ही बाप है। अगर कोई रास्ता जानता हो तो बताये। इससे सिद्ध है कि कोई भी जानते ही नहीं हैं। कोई को रास्ते का मालूम ही नहीं है। अभी सब मच्छरों सदृश्य वापिस जाने वाले हैं। सबके शरीर खत्म होंगे। बाकी आत्मायें हिसाब-किताब चुक्तू कर वापिस जायेंगी। इनको कयामत का समय कहा जाता है। मनुष्य दीपावली पर साल का फ़ायदा नुकसान निकालते हैं। तुम्हारी है कल्प-कल्प की बात। अभी तुमको 21 जन्म के लिए करना है। बाप को याद करने से जमा होगा फिर 21 जन्म कोई तकलीफ नहीं होगी। कोई अप्राप्त वस्तु नहीं होगी। स्वर्ग की सारी प्राप्ति अभी के पुरुषार्थ पर होती है। यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं। अभी तुम अनुभव पा रहे हो। जब स्वर्ग में चले जाते हो फिर कौन बैठ लिखेंगे। शास्त्र आदि तो बाद में बनते हैं। शास्त्रों में है कि जमुना के कण्ठे पर महल थे, देहली परिस्तान थी। बिरला मन्दिर में लिखा हुआ है 5000 वर्ष पहले धर्मराज ने वा युद्धिष्ठिर ने परिस्तान स्थापन किया था। जमुना-गंगा नाम अभी तक चला आता है। वास्तव में ज्ञान गंगायें तुम हो। जमुना का इतना प्रभाव नहीं जितना गंगा का है। बनारस, हरिद्वार में गंगा है। वहाँ बहुत साधू आदि जाते हैं। वहाँ जाकर कहते हैं शिव काशी विश्वनाथ गंगा। विश्वनाथ ने गंगा बहाई, जटाओं से। ऐसे कहते हैं और समझते हैं गंगा के कण्ठे पर रहने से हमारी मुक्ति हो जायेगी। बहुत जाकर काशीवाश करते हैं। आगे बलि चढ़ते थे। अब कहते हैं हमारी मुक्ति हो जायेगी। देखो, ज्ञान मार्ग में क्या बात और भक्ति मार्ग में क्या बात है। कितना कान्ट्रास्ट है। आधाकल्प अनेक प्रकार की तकलीफें उठाई। देवियों पर जाकर बलि चढ़े। अभी तुम बलि चढ़ते हो - यह सब कुछ ईश्वर का है। तो ईश्वर का सब कुछ तुम्हारा है। ईश्वर का सब कुछ है स्वर्ग। तुम तो अब नर्कवासी हो। बाप का बनकर फिर स्वर्गवासी बन रहे हो। बाबा की श्रीमत पर पूरा चलना पड़े। शिवबाबा को तो मकान आदि बनाना नहीं है। वह तो दाता है। यह सब बच्चों के लिए है। शिवबाबा कहेंगे तुम बच्चे ही ट्रस्टी होकर सम्भालो। भक्तिमार्ग में कहते हैं - शिवबाबा यह सब कुछ आपका दिया हुआ है फिर जब वापिस लेते हैं तो कितना दु:खी होते हैं। अब बाबा तुमसे लेते कुछ भी नहीं हैं। बाप सिर्फ कहते हैं इनसे ममत्व मिटा दो। ट्रस्टी होकर गृहस्थ व्यवहार की सम्भाल करो। बाकी मैं लेकर क्या करूँगा। तुम्हारे लिए ही सेन्टर खुलवाये हैं। यह हॉस्पिटल और कॉलेज कम्बाइन्ड है। हेल्थ और वेल्थ दोनों मिलती है। एज्युकेशन को सोर्स आफ इनकम कहा जाता है। जितना जो पढ़ते हैं वह बाप से इतना वर्सा लेते हैं। पुरुषार्थ पूरा करना चाहिए। फालो फादर और मदर, त्वमेव माता च पिता.. यह है ना। वह पिता आकर इनमें प्रवेश करते हैं। इनसे एडाप्ट करते हैं। वह माता-पिता ठहरा। हम तो उनकी महिमा करते हैं। मैं इनके मुख द्वारा कहता हूँ - तुम हमारे हो। तुमको मैंने एडाप्ट किया है फिर माताओं की सम्भाल लिए सरस्वती को मुकरर किया है। तुम छोटे बच्चे तो नहीं हो। बाप कहते हैं तुम हमारे बने, अच्छा अब ट्रस्टी होकर रहो। गृहस्थ व्यवहार की पूरी सम्भाल करो। सबसे अच्छा है यह रूहानी हॉस्पिटल खोलना। शिवबाबा कहते हैं हम क्या सम्भाल करेंगे। ब्रह्मा बाबा के लिए भी कहते हैं यह क्या करेंगे? इनके पास जो कुछ था सो शिवबाबा को दे दिया। ट्रस्टी बनना पड़ता है। यहाँ तो सब कुछ बच्चों के लिए किया जाता है। तुम बच्चों को ही बाबा सब शिक्षायें देते हैं। ऐसे नहीं यह मकान शिवबाबा वा ब्रह्मा बाबा का है। सब कुछ बच्चों के लिए है। तुम ब्राह्मण बच्चे हो, इसमें झगड़े आदि की कोई बात नहीं है। सबकी कम्बाइन्ड प्रापर्टी है। इतने सब ढेर बच्चे हो, पार्टीशन कुछ हो न सके। गवर्मेन्ट भी कुछ कर न सके। यह ब्राह्मण बच्चों का है, सब मालिक हैं। सब बच्चे हैं। कोई गरीब, कोई साहूकार - यहाँ सब आकर रहते हैं। कोई की प्रापर्टी नहीं है। लाखों की अन्दाज में हो जायेंगे। सब कुछ तुम मीठे बच्चों के लिए है। तुम हो रूहानी बच्चे। तुम जितना प्यारे हो उतना लौकिक हो न सकें। वह शूद्र जाति के तुम ब्राह्मण जाति के, इसलिए उनसे कनेक्शन टूट जाता है। सन्यासी यह नहीं कहेंगे यह सब तुम्हारे लिए है। मैं भी तुम्हारा हूँ। शिवबाबा कहते हैं - मैं निष्काम सेवाधारी हूँ। मनुष्य निष्कामी हो न सकें। जो करेगा उसको उनका फल जरूर मिलेगा। मैं फल नहीं ले सकता हूँ। पुरानी दुनिया, पुराने शरीर में आकर प्रवेश करता हूँ। यहाँ मेरे लिए यह पुराना शरीर है। भक्ति में मेरे लिए बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं। इस समय देखो मैं कहाँ बैठा हूँ। कितना गुह्य राज़ बच्चों को समझाता हूँ। बाबा कोई सतसंग में थोड़ेही मुरली चलायेगा। बच्चों को बहुत खुशी का पारा चढ़ता है। बाप बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं। कैसे आकर पढ़ाते हैं, यह तुम ही जानते हो। डरने की कोई बात नहीं है। सब बाप के बच्चे हैं। जो कुछ बनता है बच्चों के लिए। ऐसे नहीं सबको यहाँ आकर बैठ जाना है। तुमको तो अपने गृहस्थ व्यवहार में रहना है। सब आकर इकट्ठे रहें तो सारी देहली जितना तुम्हारे लिए चाहिए। ऐसा तो हो न सके। फिर भी बाप से योग लगाते रहो तो विकर्म विनाश होंगे। आत्मा गोल्डन एज़ड बन जायेगी, तब ही घर में जायेंगे। मम्मा बाबा मुआफिक इज्जत से पास होकर जाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) श्रीमत पर खुदाई-खिदमतगार बनना है। बाप का शो करने के लिए सबको घर का रास्ता बताना है।
2) ट्रस्टी होकर सब कुछ सम्भालना है। किसी में भी ममत्व नहीं रखना है। मात-पिता के मुआफिक इज्जत से पास होना है।
 
वरदान:रहम की भावना को इमर्ज कर दु:ख दर्द की दुनिया को परिवर्तन करने वाले मास्टर मर्सीफुल भव!
प्रकृति की हलचल में जब आत्मायें चिल्लाती हैं, मर्सी और रहम मांगती हैं तो अपने मर्सीफुल स्वरूप को इमर्ज कर उनकी पुकार सुनो। दुख दर्द की दुनिया को परिवर्तन करने के लिए स्वयं को सम्पन्न बनाओ। परिवर्तन की शुभ भावना को तीव्र करो। आपके सम्पन्न बनने से यह दुख की दुनिया सम्पन्न (समाप्त) हो जायेगी, इसलिए स्वयं प्रति, चाहे सर्व आत्माओं के प्रति रहम की भावना इमर्ज करो। जहाँ रहम होगा, वहाँ तेरा-मेरा की हलचल नहीं होगी।
 

स्लोगन:ज्ञान और योग के दोनों पंख मजबूत हों तब उड़ती कला का अनुभव कर सकेंगे।

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Details ( Page:- Murali 13-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 13.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche- Mithe bacche-yaad me baithte samay aankh kholkar baitho kyunki tumhe khaate-peete,chalte-firte Baap ki yaad me rehna hai.
Q- Bhagwan ko dhoondne ke liye manushya dar-dar dhakke kyun khaate hain-kaaran?
A- Kyunki manushyo ne Bhagwan ko sarvabyapi kah bahut dhakke khilaye hain.Sarvabyapi hai to kahan se milega?Fir kah dete hain Paramatma to naam-roop se nyara hai.Jab naam-roop se he nyara hai to milega fir kaise aur dhoondenge kisko?Isiliye dar-dar dhakke khaate rehte hain.Tum baccho ka bhatakna ab choot gaya.tum nischay se kehte ho-Baba Paramdham se aaye hain.hum baccho se in organs dwara baat kar rahe hain.Baki naam-roop se nyari koi chiz hoti nahi.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Shrimat par sabko pawan banane ka rashta batana hai.Patit-Pawan Baap ka parichay dene ki yukti rachni hai.
2)Baap se varsha lene ke liye wa Baap ki sharan me aane ke liye poora-poora nastmoha banna hai.Aankh kholkar Baap ko yaad karne ka abhyas karna hai.
 
Vardan:-Baap ki chattrachaya ke niche rah maya ki chaya se bachne wale Sada Khush aur Befikra bhava.
Slogan:- Jinki murli se pyaar hai wohi Master murlidhar hain.

English Summary ( 13th Dec 2017 )
Sweet children, when sitting in remembrance, sit with your eyes open because you have to stay in remembrance of the Father while eating, drinking, walking and moving around.
 
Question:What is the reason why people wander from door to door searching for God?
Answer:
Because people have said that God is omnipresent and made others wander around a great deal. If He were omnipresent, where would you find Him? They then say that God is beyond name and form. If He were beyond name and form, how would you find Him? For whom would you look? This is why they continue to wander from door to door. You children have now stopped wandering around. You say with faith that Baba has come from the supreme abode. He speaks to us children through these organs. However, there is nothing that is beyond name or form.
 
Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1. Follow shrimat and show everyone the way to become pure. Create methods to give the Purifier Father’s introduction.
2. In order to claim your inheritance from the Father and to take refuge with the Father, finish all attachment. Practise remembering the Father with your eyes open.
 
Blessing:May you be constantly happy and carefree and remain safe from the shadow of Maya by staying under the canopy of the Father’s protection.
 
The means to remain safe from the shadow of Maya is to stay under the Father’s canopy of protection. To remain under the canopy means to remain happy. You have given all of your worries to the Father. Those who lose their happiness, who become weak are influenced by the shadow of Maya because weakness invokes Maya. If the shadow of Maya comes even in your dreams, you will continue to be distressed and you will have to battle. Therefore, remain constantly under the Father’s canopy of protection. Remembrance is the canopy.
 Slogan:Those who have love for the murli are master murlidhars.
HINDI DETAIL MURALI

13/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 मीठे बच्चे – “मीठे बच्चे - याद में बैठते समय आंखे खोलकर बैठो क्योंकि तुम्हें खाते-पीते, चलते-फिरते बाप की याद में रहना है
 
प्रश्न:  भगवान को ढूँढने के लिए मनुष्य दर-दर धक्के क्यों खाते हैं - कारण?
उत्तर:
क्योंकि मनुष्यों ने भगवान को सर्वव्यापी कह बहुत धक्के खिलाये हैं। सर्वव्यापी है तो कहाँ से मिलेगा? फिर कह देते हैं परमात्मा तो नाम-रूप से न्यारा है। जब नाम-रूप से ही न्यारा है तो मिलेगा फिर कैसे और ढूँढेंगे किसको? इसलिए दर-दर धक्के खाते रहते हैं। तुम बच्चों का भटकना अब छूट गया। तुम निश्चय से कहते हो - बाबा परमधाम से आये हैं। हम बच्चों से इन आरगन्स द्वारा बात कर रहे हैं। बाकी नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ होती नहीं।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे बाप की याद में बैठे हैं। यह किसने कहा और किसको? सभी आत्माओं के बाप ने अपने बच्चों, आत्माओं से बोला। आत्माओं ने आरगन्स से सुना कि बाबा ने क्या कहा? बाप ने कहा, अपने बाप को याद करते हो? बाप को याद करने के लिए क्या आंखें बन्द करनी होती हैं? बच्चे जब बाप को याद करते हैं तो आंखे तो खुली हुई होती हैं। उठते-बैठते, चलते-फिरते बच्चों को बाप की याद रहती है। आंखे बन्द करने की दरकार नहीं। आत्मा जानती है कि मेरा बाप इन आरगन्स से मेरे से बात करते हैं। परमधाम से आये हैं, इस पतित पुरानी दुनिया को नई दुनिया बनाने। यह बुद्धि में है, आंखे तो खुली हुई हैं। बाबा बात करते हैं, तुम सुनते भी हो और याद में भी हो। कौन सुनाते हैं? परमपिता परमात्मा। उनका नाम क्या है? जैसे तुम्हारे शरीर का नाम है। वह बदलता रहता है। एक शरीर लिया, छोड़ा फिर दूसरा लिया तो नाम भी दूसरा पड़ेगा। आत्मा का नाम बदलता नहीं है। बाप कहते हैं मैं भी आत्मा हूँ, तुम भी आत्मा हो। मैं परमधाम में रहने वाला परम आत्मा हूँ, इसलिए सुप्रीम आत्मा कहते हैं। सुप्रीम ऊंचे ते ऊंच को कहा जाता है। ऊंच आत्मायें भी हैं तो नीच आत्मायें भी हैं। कोई पुण्य आत्मा, कोई पाप आत्मा। बाप कहते हैं - मुझ आत्मा का नाम सदैव एक ही शिव है। नाम तो जरूर चाहिए ना। न जानने के कारण कह देते हैं नाम-रूप से न्यारा है। परन्तु नाम-रूप से न्यारी कोई चीज़ हो न सके। जैसे आकाश है, कोई चीज़ तो नहीं है ना। पोलार ही पोलार है। उनका भी नाम तो हैं ना आकाश। बहुत सूक्ष्म तत्व है। अच्छा उनसे भी ऊपर देवता रहते हैं। वह भी पोलार है। आकाश में बैठे हैं। फिर उनसे भी ऊपर और आकाश, उसमें भी आत्माओं के बैठने की जगह है। वह भी आकाश है, जिसको ब्रह्म तत्व कहते हैं। यह तीन तत्व हैं - स्थूल, सूक्ष्म, मूल। आत्मायें तो जरूर पोलार में रहेंगी ना। तो तीन आकाश हो गये। इस आकाश में खेल होता है तो जरूर रोशनी चाहिए। मूलवतन में खेल नहीं होता, उसको ब्रह्म तत्व कहते हैं। वहाँ आत्मायें निवास करती हैं। वह है ऊंच ते ऊंच तीन लोक अर्थात् तीन मंजिल हैं दुनिया की। ऐसे नहीं सागर के नीचे कोई लोक है। पानी के नीचे फिर भी धरती है, जिस पर पानी ठहरता है। तो यह हैं तीन लोक। साइलेन्स, मूवी और टॉकी। यह शिवबाबा बैठ समझाते हैं। क्या शिवबाबा को आंखे बन्द कर याद करना है? नहीं। दूसरे लोग आंखे क्यों बन्द करते हैं? क्योंकि आंखे धोखा देती हैं।
मनुष्य खुद कह देते हैं परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है। फिर कहते हैं पत्थर भित्तर सबमें हैं। 24 अवतार हैं। कच्छ मच्छ अवतार है। वास्तव में है सब झूठ ही झूठ। ईश्वर को सर्वव्यापी कह कितना रोला कर दिया है। भक्ति मार्ग है ही धक्का खाने का मार्ग। मुझे भी पूरे धक्के खिलाते हैं। अब भक्त भगवान को याद करते हैं कि हमको भक्ति से, धक्कों से बचाओ। जब यहाँ आकर मिलते हैं तो कहते हैं बाबा हमने आपको बहुत ढूँढा। बहुत धक्के खाये परन्तु आप मिले नहीं। अरे कब से धक्के खाये? बाबा यह पता नहीं। अब बाप समझाते हैं ज्ञान से ही सद्गति होती है। मनुष्य कुम्भ के मेले पर धक्के खाने जाते हैं। जहाँ भी पानी होगा वहाँ जाकर स्नान करेंगे। कुम्भ अर्थात् संगम। असुल है आत्मा और परमात्मा का मेला। परन्तु भक्ति में फिर वह सागर और पानी का मेला बना दिया है। देश-देशान्तर मेला लगता है। वह है पानी में स्नान करने का मेला। कई इन बातों को मानते हैं। कई नहीं भी मानते हैं। कई तो न भक्ति को, न ज्ञान को मानते हैं। बस मनुष्य पैदा होता है फिर मरता है। नेचर ही है। अनेक मतें हैं। एक ही घर में स्त्री की मत और पुरुष की मत और हो जाती है। एक पवित्रता को मानेंगे दूसरा नहीं मानेंगे। अभी तुमको श्रीमत मिल रही है। गाया भी हुआ है - श्रीमत भगवानुवाच। उनकी मत से ही मनुष्य से देवता बन जाते हैं। देवता धर्म अभी है नहीं। निशानियाँ चित्र हैं जिससे सिद्ध है कि आदि सनातन देवी-देवता धर्म था वह राज्य करके गये हैं। पुराने से पुरानी चीज़ है देवी-देवताओं की। लार्ड कृष्णा कहते हैं वा तो कहेंगे गॉड श्री नारायण। तुम जानते हो लक्ष्मी-नारायण का राज्य था जिसको वैकुण्ठ कहा जाता है। श्रीकृष्ण वैकुण्ठ का मालिक था, सतयुग का प्रिन्स था फिर वही कृष्ण द्वापर में कैसे गया? उसी नाम-रूप से तो आ न सके। वो जो चैतन्य था उनके जड़ चित्र यहाँ हैं। परन्तु वह आत्मा कहाँ गई? यह कोई नहीं जानते। बाप बतलाते हैं - आत्मा 84 जन्म लेते अभी यहाँ पार्ट बजा रही है। भिन्न नाम-रूप, देश, काल का पार्ट बजाती आई है। आत्मा ही कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। नाम-रूप, देश, काल, मित्र सम्बन्धी सब अलग-अलग हैं। दूसरे जन्म में बदल जायेंगे।
तुम जानते हो अभी हम पढ़ रहे हैं। फिर हम सो देवी-देवता बनेंगे। सूर्यवंशी में 8 जन्म लेंगे। एक शरीर छोड़ दूसरा लेंगे। वह गर्भ जेल नहीं, गर्भ महल होगा। यहाँ गर्भ जेल में बहुत सज़ा भोगते हैं। दु:ख होता है तब कहते बस अभी बाहर निकालो। हम फिर पाप नहीं करेंगे। परन्तु बाहर माया का राज्य होने कारण फिर से पाप करने लग पड़ते हैं। वहाँ गर्भ महल में आराम से रहते हैं। तो बाप कहते हैं सब वेद-शास्त्र आदि का सार मैं तुमको ही समझाता हूँ। अच्छा बाबा कुम्भ के मेले पर समझाते हैं बहुत स्नान करने जायेंगे। बहुत भीड़ होगी। इलाहाबाद में त्रिवेणी पर मेला लगता है। अभी वह कोई संगम तो है नहीं। संगम होना चाहिए सागर और नदियों का। यह तो नदियों का संगम है। दो नदियाँ मिलती हैं। वह फिर कह देते तीसरी नदी गुप्त है। अब गुप्त नदी कोई होती नहीं। हैं ही दो नदियां। देखने में भी दो आती हैं। एक का पानी सफेद, एक का मैला दिखाई देता है और तो कोई है नहीं। गंगा, जमुना हैं। तीन नहीं हैं। यह भी झूठ हुआ ना। संगम भी नहीं है। कलकत्ते में सागर और ब्रह्म पुत्रा मिलती हैं। नांव में बैठकर उस पार जाते हैं, वहाँ मेला लगता है। कितनी मेहनत करते हैं। अमरनाथ पर तीर्थ यात्रा करने जाते हैं, वहाँ भी शिवलिंग की मूर्ति है। वह घर में भी रख सकते हैं। फिर वहाँ जाने की दरकार नहीं, यह भी धक्का खाना ड्रामा में नूँध है। त्रिवेणी में जाते हैं, समझते हैं वह पतित-पावनी है। कोई-कोई को यह भी मालूम नहीं नदियाँ कहाँ से आती हैं। पहाड़ से आती हैं। परन्तु पानी तो सागर से आता है। बादल बरसते हैं तो ऊंचे पहाड़ होने कारण बर्फ जम जाती है। फिर धूप लगने के कारण जब बर्फ गलती है तो पानी इकट्ठा होकर नदियों में आता है। अब विचार करो कि पतित-पावन परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर वा ज्ञान नदियाँ? वा पानी का सागर और नदियाँ? बहुत अन्धकार में धक्का खाते रहते हैं। अब उनको कैसे बतायें कि यह पतित-पावनी नहीं है, यह तो बरसात का पानी है। बादलों से पानी आता है, बादल फिर सागर से पानी खींचते हैं। पानी तो पतित-पावन हो नहीं सकता। गाते भी हैं पतित-पावन सीताराम, हे पतित-पावन आओ। आत्मायें कहती हैं हे पतितों को पावन बनाने वाले बाबा रहम करो।
बाप समझाते हैं - यह भक्ति के धक्के खाने से कोई पावन बनते नहीं हैं। यह नदियाँ तो अनादि हैं ही। पानी है पीने और खेती करने के लिए। वह कैसे पावन करेगा? अभी यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है। मैं आता हूँ तुमको पावन बनाने। सतयुग पावन दुनिया थी। यह है पतित दुनिया। जो पावन थे वही 84 जन्म ले पतित बने हैं इसलिए फिर पावन बनने के लिए बाप को बुलाते हैं। आधाकल्प से उतरती कला होती आई है। भारत सतयुग में बहुत सुखी था, पावन था। अब दु:खी है क्योंकि पतित हैं इसलिए पुकारते हैं ओ गॉड फादर और फिर कह देते उनका नाम-रूप है नहीं। तब पुकारते किसको हैं? यह भी समझते नहीं जैसे कहते हैं आत्मा स्टॉर मिसल है। चमकता है अजब सितारा। आत्मा बिल्कुल छोटी बिन्दी मिसल है। टीका भी यहाँ लगाते हैं और कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा... तो इतनी छोटी सी बिन्दी आत्मा में 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है। वह कभी मिट नहीं सकता। यह सारा नाटक इमार्टल है। चक्र फिरता रहता है। ऐसे नहीं सृष्टि एक जगह खड़ी है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म जो पहले था, वह अब नहीं है। जरूर जब ना हो तब तो मैं आऊं। मैं आकर फिर से देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ। तो चक्र फिरता है। हिस्ट्री-जॉग्राफी फिर रिपीट होती है। सतयुग में सूर्यवंशी राज्य था। त्रेता में चन्द्रवंशी अब फिर तुमको 84 जन्मों का पता पड़ा है ना। कैसे हम चढ़ती कला में आते हैं। बाप सभी बच्चों को पतित से पावन बनाने का रास्ता बताते हैं। ऐसे नहीं कहते कि आंखे बन्द कर मुझे याद करो। खाते-पीते चलते मुझे याद करना है। आंखे बन्द कर खाना खायेंगे क्या? मक्खी अन्दर चली जाए।
तुम बच्चों की आत्मा जानती है कि बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। कृष्ण तो मनुष्य था उनको भगवान कैसे कहेंगे। बाप कहते हैं - अब मुझे याद करो तो तुम पावन बनेंगे। जितना समय यात्रा में रहते हैं तो मनुष्य पवित्र रहते हैं। लौटकर आते हैं तो घर में फिर पतित बन जाते हैं। तुम्हारी है रूहानी यात्रा जो बाप कराते हैं। बाप कहते हैं - तुमको अमरलोक में चलना है तो मुझे याद करो। आत्मा पवित्र होने से ही तुम उड़ सकेंगे। अन्त मती से गती होगी। बाप की श्रीमत से ही सद्गति मिलती है। श्रीमत कहती है हे आत्मायें मामेकम् याद करो तो खाद निकल जाए और तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे, फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे। इस चक्र को समझने से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। सतयुग त्रेता में तुम पावन थे फिर बाप तो पूछेंगे ना कि तुमको पतित किसने बनाया? यह भी अभी तुम बच्चे समझते हो कि जब से रावण राज्य शुरू होता है तो पतित बन पड़ते हैं। आधाकल्प के बाद पुरानी दुनिया हो जाती है। फिर तुमको सुख तो नई दुनिया में मिलना चाहिए। वह मैं ही आकर देता हूँ। हम तुमको पावन बनाते हैं, वह तुमको पतित बनाते हैं। मैं वर्सा देता हूँ, रावण श्राप देते हैं। यह है खेल। रावण तुम्हारा बड़ा दुश्मन है। उनका बुत बनाकर जलाते हैं। कभी देखा शिव का चित्र उठाकर जलायें? नहीं। शिव तो है निराकार। राम सुख देने वाला उनको कैसे जलायेंगे। दु:ख देने वाला है रावण, कहते हैं यह अनादि जलाते आते हैं। तो क्या शुरू से ही रावण राज्य था? रामराज्य हुआ ही नहीं? यह सब समझाना पड़े। रावण राज्य कब से शुरू हुआ, यह किसको पता नहीं। आधाकल्प से शुरू होता है। तुम सब द्रोपदियां पुकारती हो - बाबा हमारी रक्षा करो। अरे तुम बोलो हमको पतित बनना ही नहीं है। हिम्मत चाहिए, नष्टोमोहा बनना है। मैं शरण तब दूंगा जब तुम नष्टोमोहा बनेंगी। मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। पति, बाल बच्चे याद पड़ते रहेंगे तो वर्सा पा नहीं सकेंगी। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए बाप को याद करो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) श्रीमत पर सबको पावन बनाने का रास्ता बताना है। पतित-पावन बाप का परिचय देने की युक्ति रचनी है।
2) बाप से वर्सा लेने के लिए वा बाप की शरण में आने के लिए पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। आंख खोलकर बाप को याद करने का अभ्यास करना है।
 
वरदान:बाप की छत्रछाया के नीचे रह माया की छाया से बचने वाले सदा खुश और बेफिक्र भव!
माया की छाया से बचने का साधन है-बाप की छत्रछाया। छत्रछाया में रहना अर्थात् खुश रहना। सब फिक्र बाप को दे दिया। जिनकी खुशी गुम होती है, कमजोर हो जाते हैं उन पर माया की छाया का प्रभाव पड़ ही जाता है क्योंकि कमजोरी माया का आह्वान करती है। अगर स्वप्न में भी माया की छाया पड़ गई तो परेशान होते रहेंगे, युद्ध करनी पड़ेगी इसलिए सदा बाप की छत्रछाया में रहो। याद ही छत्रछाया है।
 

स्लोगन:जिनका मुरली से प्यार है वही मास्टर मुरलीधर हैं।

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Details ( Page:- Murali 14-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 14.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche- Mithe bacche-Tumhe gyan ka tishra netra mila hai,tum trikaldarshi bane ho lekin yah alankar abhi tumhe nahi de sakte kyunki tum purusharthi ho.
Q- Grihast me rehte karm abasya karna hai lekin kis ek baat ki sambhal zaroor rakhni hai?
A- Karm karte,byabahar me aate ann ki bahut parhej rakhni hai.Patito ke haath ka nahi khana hai,apne ko bachate rehna hai.Karm sanyasi nahi banna hai lekin parhej zaroor rakhni hai.Tum karmyogi ho.Karm karte Baap ki yaad me raho to bikarm binash honge.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Shrimat par gyan aur yog bal se maya par bijay pani hai.Binash ke pehle bikarmo ko binash karna hai.
2)Behad ka rajya lene ke liye har baat me apna bachao karte rehna hai.Anna dosh se bahut sambhal karni hai.
 
Vardan:-Byarth ki apavitrata ko samapt kar Sampoorn swachh banne wale Holyhans bhava.
Slogan:-Nao aur khiwaiya mazboot ho to toofan bhi tohfa ban jate hain.

English Summary ( 14th Dec 2017 )
Sweet children, you have received the third eye of knowledge and you have become trikaldarshi, but you cannot be given those ornaments at this time because you are effort-makers.
 
Question:While living at home with your family you definitely have to do things, but what one thing do you have to be very cautious about?
 
Answer:While doing everything and interacting with everyone, be very cautious about your food. Don’t eat food prepared by impure human beings. Continue to protect yourselves. Don't become renunciates of action, but definitely do take precautions. You are karma yogis. While doing everything, stay in remembrance of the Father and your sins will be absolved.
 
Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Conquer Maya with the power of knowledge and yoga by following shrimat. Have your sins absolved before destruction takes place.
2. In order to claim the unlimited kingdom, continue to protect yourself in every way. Be very cautious about being affected by the food you eat.
 
Blessing:May you become a holy swan by finishing the waste of impurity and becoming completely clean.
The speciality of a holy swan is constantly to pick up jewels of knowledge. Then by using the power of discernment, to separate milk from water, that is, to discern between the wasteful and the powerful. To be a holy swan means to be constantly clean. Cleanliness means purity and not to be even slightly influenced by any dirt nor any impurity of waste. If there is any waste, you cannot then be said to be completely clean. Let your intellect constantly churn the jewels of knowledge. If the churning of knowledge continues, there will not be any waste. This is known as picking up jewels.
Slogan:When the boat and the Boatman are strong, even storms become a gift.

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14/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 मीठे बच्चे – “मीठे बच्चे - तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, तुम त्रिकालदर्शी बने हो लेकिन यह अलंकार अभी तुम्हें नहीं दे सकते क्योंकि तुम पुरुषार्थी हो
 
प्रश्न: गृहस्थ में रहते कर्म अवश्य करना है लेकिन किस एक बात की सम्भाल जरूर रखनी है?
उत्तर:
कर्म करते, व्यवहार में आते अन्न की बहुत परहेज़ रखनी है। पतितों के हाथ का नहीं खाना है, अपने को बचाते रहना है। कर्म सन्यासी नहीं बनना है लेकिन परहेज़ जरूर रखनी है। तुम कर्मयोगी हो। कर्म करते बाप की याद में रहो तो विकर्म विनाश होंगे।
 
ओम् शान्ति।
बाप बच्चों को बैठ समझाते हैं। जब कोई गीता आदि सुनाते हैं तो कहते हैं यदा यदाहि... जब-जब धर्म की ग्लानि, अधर्म की वृद्धि होती है, तब भगवान आते हैं। बरोबर धर्म की ग्लानि होती है। ग्लानि माना निंदा... तो भारत में धर्म की ग्लानि और अधर्म की वृद्धि हो जाती है। मैं आता ही तब हूँ, जब यह हालत होती है। बहुत दु:ख है, मौत सामने खड़ा है। विनाश के लिए मूसल भी तैयार हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा आया हुआ है, आदि सनातन धर्म की स्थापना करने। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, शंकर द्वारा विनाश, विष्णु द्वारा पालना... बरोबर यह तीनों कर्तव्य अभी चल रहे हैं।
अभी तुम ब्राह्मण हो और जानते हो अभी हम ब्राह्मण से फिर देवता बन रहे हैं। अभी शिवबाबा के पोत्रे हैं। शिवबाबा का एक बच्चा, एक से फिर तुम कितने बच्चे बनते जाते हो। पतितों को पावन बनाने की सेवा तुम कर रहे हो। यह है बेहद का यज्ञ। यज्ञ में सारी पुरानी दुनिया स्वाहा हुई थी। इस यज्ञ के बाद फिर कोई यज्ञ होगा ही नहीं। सतयुग त्रेता में कोई यज्ञ रचते ही नहीं। यज्ञ रचते ही हैं विघ्नों को हटाने के लिए। यह तो बहुत भारी विघ्न है, तो इसके लिए बड़ा यज्ञ चाहिए। यह है बेहद का यज्ञ। इसमें पुरानी दुनिया की सामग्री जो भी है सब स्वाहा होनी है। रुद्र अथवा शिवबाबा एक ही है। जैसे शिव का रूप है वैसे रुद्र का भी रूप है। कृष्ण तो साकारी है, इसका सच्चा-सच्चा नाम ही है शिव ज्ञान यज्ञ। शिवबाबा कहते हैं, रुद्र बाबा नहीं कहते हैं। भोला भण्डारी शिवबाबा को कहते हैं। यह है शिवबाबा का यज्ञ। उनसे हमें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज मिल रही है। तुम जानते हो हमको ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है। देवताओं को तीसरा नेत्र दिखाते हैं ना। परन्तु यह है ज्ञान का तीसरा नेत्र जो तुम ब्राह्मणों को मिलता है, जिससे तुम देवता बनते हो। वहाँ तीसरे नेत्र की दरकार नहीं है। परन्तु तुमको तो दिखा नहीं सकते क्योंकि तुम पुरुषार्थी हो। चलते-चलते भाग जाते हो इसलिए जो फाइनल रिजल्ट वाले हैं उनको यह अलंकार दिये हैं। नहीं तो देवताओं के पास थोड़ेही शंख, चक्र आदि हैं। यह सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज तुमको सुना रहे हैं। उन्होंने फिर शास्त्रों में लिख दिया है कि स्वदर्शन चक्र से फलाने को मारा, यह किया। बाप कहते हैं मैं तो पतितों को पावन बनाने आता हूँ, इसमें हिंसा की तो बात ही नहीं है। देवताओं का है ही अहिंसा परमो धर्म। कृष्ण के लिए फिर हिंसा करना कैसे लिखा है। कैसे वन्डरफुल चित्र बनाये हैं। वहाँ ही गीता सुनाते, राजयोग सिखाते, वहाँ ही फिर किसको मारते हैं। बाप को तो याद करते ही इसलिए है कि आकर पतित दुनिया को पावन बनाओ, राजयोग सिखाओ। बाप कहते हैं ज्ञान का सागर, नॉलेजफुल मैं हूँ। तुमको नॉलेज मिल रही है, इसको ही अमरकथा कहते हैं। वह तो शिवशंकर को एक कह देते हैं। शंकर सूक्ष्मवतनवासी, वह कैसे कथा सुनायेंगे। उनको तो नॉलेजफुल नहीं कहा जाता। शिवबाबा सारे सृष्टि चक्र का राज़ समझाते हैं। जो नॉलेज कोई के पास है नहीं। बाप धनी को न जानने के कारण ही आरफन बन पड़े हैं। लड़ते-झगड़ते रहते हैं। सतयुग में कोई झगड़ा होता ही नहीं। न रोना, न पीटना... इसलिए मोहजीत राजा की कथा सुनाते हैं। कथायें तो ढेर हैं। हर एक धर्म में किसम-किसम की कथायें हैं, जो सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। भक्ति करते हैं भगवान से मिलने लिए। आधाकल्प भक्ति करते आये हैं। भगवान तो किसको मिला ही नहीं। अब बाप ने तुम बच्चों को परिचय दिया है। तुम्हें फिर औरों को देना है। सन शोज़ फादर... तो बाप का परिचय दे सबको नॉलेज बताते रहते हो।
तुम हर एक बच्चे की बुद्धि में है कि शिवबाबा हमारा रूहानी बाप है। यह भी भक्ति मार्ग वालों को समझाना है कि तुम्हारे दो बाप हैं। एक लौकिक बाप, दूसरा पारलौकिक बाप, जिसको गॉड फादर कहते हैं जिसने यह बेहद की रचना रची है। बाप से तो जरूर वर्सा मिलता होगा। वह है ही स्वर्ग की रचना रचने वाला। भारत स्वर्ग था। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उन्हों को यह राज्य किसने दिया? कलियुग अन्त में कोई भी विश्व का मालिक है नहीं। यह है ही रावण का राज्य, खुद भी कहते हैं हमको रामराज्य, नई देहली में दैवी राज्य चाहिए। रामराज्य है सतयुग-त्रेता। रावण राज्य है द्वापर कलियुग। द्वापर से ही भक्ति मार्ग शुरू होता है। विकार भी शुरू होते हैं, जिसकी निशानियाँ भी हैं। जगन्नाथपुरी के मन्दिर में बाहर देवताओं के गन्दे चित्र बनाये हैं। ताज तख्त आदि वही है, सिर्फ चित्र विकारी दिखाते हैं। जब देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं तो फिर धरती की उथल पाथल भी होती है। सोने-हीरे के महल सब नीचे चले जाते हैं। पूजा के लिए कितना भारी मन्दिर बनाया है, भक्ति मार्ग में। आपे ही पूज्य आपेही पुजारी। बाप समझाते हैं - मैं तो पुजारी नहीं बनता हूँ। अगर मैं बनूँ तो मुझे फिर पूज्य कौन बनायेगा? मैं न पतित बनता हूँ, न बनाता हूँ। पतित तुमको रावण बनाते हैं, जिसको जलाते आते हैं। इस समय पाप आत्माओं की दुनिया है। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। फिर कह देते पतित-पावन सीताराम। झट त्रेता वाले राम की याद आ जाती है। अब वह तो पतित-पावन नहीं है। बाप यह सब बातें समझाते हैं। तुम सब सीतायें हो, द्रोपदियाँ हो। एक की बात नहीं है। द्रोपदी को 5 पति दिखाते हैं। ऐसी बात है नहीं। भारत ही प्राचीन पवित्र खण्ड था क्योंकि पतित-पावन परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस है। उसने यहाँ आकर पतित नर्कवासियों का उद्धार किया है। सब धर्म वाले गॉड फादर को याद करते हैं क्योंकि सब तमोप्रधान हैं। इब्राहिम, बौद्ध आदि सब इस समय हाज़िर हैं। पहला नम्बर ब्रह्मा भी पतित दुनिया में है तो और कोई वापस कैसे जा सकता। सभी इस समय कब्रदाखिल हैं। बाप आकर सबको गति सद्गति देते हैं। सतयुग में भारत पवित्र था। देवताओं के आगे गाते भी हैं आप सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी... हम विकारी हैं। इस समय सब विकारी हैं, सबको निर्विकारी बनाने बाप को आना पड़ता है। तो पतित-पावन बाप ठहरा, न कि पानी की नदियाँ। पतित-पावन ज्ञान सागर से निकली हुई यह ज्ञान गंगायें। शिव शक्ति सेना है। शिव से ज्ञान का कलष मिलता है। बाप कहते हैं - बच्चे गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। कर्म भी जरूर करना है। यह है ही कर्मयोग। कर्म-सन्यास तो नहीं हो सकता। वह समझते हैं घर में खाना नहीं बनाते, भीख पर गुज़ारा करते हैं, इसलिए कर्म सन्यासी हैं। वह तो फकीर ठहरे। अन्न तो विकारियों का पेट में पड़ता है, तो अन्नदोष लग जाता है। पतित घर से भल निकल जाते हैं फिर भी जन्म तो पतित घर में लेना पड़ता है। तुमको भी अन्न असर करेगा, इसलिए परहेज रखी जाती है। पतित का अन्न नहीं खाना चाहिए। जितना हो सके अपने को बचाते रहो। कोई का बहुत झगड़ा भी हो जाता है। एक भाई ज्ञान में आता, दूसरा नहीं आता ऐसे बहुत केस होते हैं। इतना बेहद का राज्य लेते हो तो जरूर कुछ झगड़े होंगे। कोई भी हालत में तुमको अपना बचाव रखना है। मुक्ति तो कोई पाते नहीं हैं। गपोड़े मारते रहते हैं हम ज्योति ज्योत में लीन होंगे। समझाते-समझाते आखिर उन्हों की बुद्धि में भी आयेगा कि यह बात ठीक है। सतयुग की आयु अगर लाखों वर्ष होती तो संख्या बहुत बढ़ जाती। अभी तो संख्या और ही सबसे थोड़ी है क्योंकि कनवर्ट हो गये हैं और धर्मों में। देवता धर्म वाले हैं सूर्यवंशी। राम को फिर क्षत्रिय की निशानी दे दी है। अभी तुम रूहानी क्षत्रिय हो। माया पर जीत पाते हो, इसमें समझने की बड़ी बुद्धि चाहिए। योग भी बड़ा सहज है। आत्माओं का योग लगता है परमपिता परमात्मा के साथ। योग आश्रम तो बहुत हैं परन्तु वह सब हठयोग कराते हैं। यह थोड़ेही कहते हैं परमपिता परमात्मा के साथ योग लगाओ। तुम बच्चे जानते हो - बाबा हमको दलाल के रूप में मिले हैं। कहते हैं - मामेकम् याद करो तो खाद निकल जायेगी। याद करते-करते तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे।
बाप बैठ समझाते हैं - बच्चे दुनिया का हाल देखो क्या हो गया है। तुम जो विश्व के मालिक थे, अब बेगर बन पड़े हो फिर बेगर टू प्रिन्स बनना है। भारत बेगर है। पतित राजायें, पावन महाराना-महारानी के मन्दिर बनाकर पूजा करते हैं। निराकार शिवबाबा की पूजा करते हैं। जरूर कुछ किया होगा। कितने मन्दिर हैं। तुम अभी जानते हो 5 हजार वर्ष पहले भी आकर राजयोग सिखाया था। तुमने अनेक बार राज्य लिया है और गँवाया है। अब फिर शान्तिधाम और सुखधाम को याद करो, दु:खधाम को भूलते जाओ। यह सब विनाश होना है। फिर तुम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। बाप कहते हैं - मैं तुम्हारा बेहद का बाप भी हूँ, तुमको बेहद का वर्सा देने आया हूँ। तुम्हारी दिल में खुशी है, हम अपनी राजधानी श्रीमत पर स्थापन कर रहे हैं। परन्तु है सारा गुप्त। रावण पर जीत पानी है। गाया भी जाता है माया जीते जगत जीत। 5 विकारों पर जीत पानी है। 5 विकारों का सन्यास करना है। खिवैया तो एक बाप है। सबकी सद्गति करने वाले सतगुरू बिगर घोर अन्धियारा है। भारत में गुरू तो बहुत हैं। हर एक स्त्री का पति भी गुरू है। फिर इतनी दुर्गति क्यों हुई है? कह देते हैं सब ईश्वर के रूप हैं। हम ईश्वर हैं। फिर योग किससे लगायें? फिर तो भक्ति ही बन्द हो जाये। फिर हे भगवान कह किसको बुलाते हैं? साधना किसकी करते हैं? खुद ईश्वर थोड़ेही कभी बीमार पड़ता है। परन्तु कोई पूछने वाला नहीं है। डरते रहते हैं, श्राप न मिल जाये। वास्तव में श्राप देने वाला है रावण। बाप तो वर्सा देते हैं। रावण दुश्मन है इसलिए जलाते रहते हैं। लक्ष्मी-नारायण के चित्र को कब जलाते हैं क्या? बिल्कुल नहीं। रावण क्या चीज़ है - अभी तुमको मालूम पड़ा है। सतयुग में पावन प्रवृत्ति में सुख था। अभी पतित प्रवृत्ति में दु:ख है। अभी इसका विनाश होना है। तुम देखेंगे अर्थक्वेक आदि होती रहेंगी। बाबा भी कहाँ तक बैठ शिक्षा देंगे? लिमिट होगी ना। राजाई स्थापन होगी और विनाश होगा। अन्त में तुम बहुत मज़े देखेंगे, शुरूआत से भी जास्ती। वह तो पाकिस्तान था। अभी तो विनाश का समय है। तुमको बाबा बहुत कुछ दिखायेंगे। फिर जो अच्छी रीति नहीं पढ़े हुए होंगे वह अन्दर फथकते रहेंगे। क्या कर सकते हैं? अभी जितना पुरुषार्थ करना है कर लो, बाल-बच्चों को तो सम्भालना ही है। कायर नहीं बनना है। कदम-कदम श्रीमत पर चलना है। बाप को याद करते रहना है। बस इसमें ही मेहनत है। पापों का बोझा सिर से कैसे उतरे? उसके लिए है सहज योग। यह है ज्ञान बल, योगबल जिससे माया पर विजय पाकर विश्व के मालिक बनते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) श्रीमत पर ज्ञान और योगबल से माया पर विजय पानी है। विनाश के पहले अपने विकर्मों को विनाश करना है।
2) बेहद का राज्य लेने के लिए हर बात में अपना बचाव करते रहना है। अन्नदोष से बहुत सम्भाल करनी है।
 
वरदान:  व्यर्थ की अपवित्रता को समाप्त कर सम्पूर्ण स्वच्छ बनने वाले होलीहंस भव!
होलीहंस की विशेषता है - सदा ज्ञान रत्न चुगना और निर्णय शक्ति द्वारा दूध पानी को अलग करना अर्थात् व्यर्थ और समर्थ का निर्णय करना। होलीहंस अर्थात् सदा स्वच्छ। स्वच्छता अर्थात् पवित्रता, कभी भी मैलेपन का असर न हो। व्यर्थ की अपवित्रता भी नहीं, अगर व्यर्थ भी है तो सम्पूर्ण स्वच्छ नहीं कहेंगे। हर समय बुद्धि में ज्ञान रत्न चलते रहें, ज्ञान का मनन चलता रहे तो व्यर्थ नहीं चलेगा। इसको कहा जाता है रत्न चुगना।
 

स्लोगन:नाँव और खिवैया मजबूत हो तो तूफान भी तोहफा बन जाते हैं।

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Details ( Page:- Murali 15th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 15.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban

Mithe bacche- Mithe bacche-Tumhe Shiv jayanti ka tyohar badi dhoomdham se manana hai.Yah tumhare liye bahut bada khushi ka din hai,sabko Baap ka parichay dena hai.

Q-Kaun se bachche apna bahut bada nukshan karte hain?Ghata kab padta hai?
A- Jo bachche chalte-chalte padhai chood dete hai,way apna bahut bada nukshan karte hain.Baba roz itne heere ratna dete hain,guhya points soonate hain,agar koi regular nahi soonte hain to ghata pad jata hai.Napass ho jaate hain,swarg ki oonchi badshahi gawa dete hain.Pad bhrast ho jata hai.

Dharana ke liye mukhya saar:-

1)Is poorane sarir ka shringar nahi karna hai.Vanvah me rah naye ghar me chalne ki taiyari karni hai.
2)Gyan snan roz karna hai.Kabhi bhi padhai miss nahi karni hai.

 Vardan:-Gyan aur yog ke bal dwara maya ki shakti par bijayi prapt karne wale Mayajeet,Jagatjeet bhava.

Slogan:-Karm karte karm ke bandhano se mukt rehna he farishta banna hai.

English Summary ( 15th Dec 2017 )
Sweet children, you have to celebrate the festival of Shiv Jayanti with a lot of pomp and splendour. This is a day of great happiness for you. Give everyone the Father's introduction.
 Question:Which children harm themselves very much? When do they incur a loss?
Answer: The children who stop studying while moving along cause themselves great harm. Every day, Baba gives so many diamonds and jewels and tells you so many deep points. If you don't study regularly, you incur a loss. You would fail, lose your elevated sovereignty of heaven and destroy your status.
 Song:O traveller of the night, do not become weary! The destination of dawn is not far off.
 Om Shanti

Essence for Dharna:
1. Don't decorate that old body. Live simply and make preparations to go to your new home.
2. Bathe in knowledge every day. Never miss the study.
Blessing:May you be a conqueror of Maya and a conqueror of the world and gain victory over Maya’s power with the power of knowledge and the power of yoga.
 In the world, there is the power of science, the power of government and the power of devotion, whereas you have the power of knowledge and the power of yoga. These are the greatest powers of all. The power of yoga enables you to gain constant victory over Maya. In front of this power, the power of Maya is nothing. Souls who are conquerors of Maya cannot be defeated even in their dreams. Their dreams too are powerful. Let there always be this awareness: We souls who have the power of yoga are constantly victorious and will always remain victorious.

 Slogan:To remain free from any bondage of karma while performing actions is to be an angel.
 

Sweet, elevated versions of Mateshwari 

Song: Show the path to those who have no sight, dear God! Since people sing the song, “show the path to the blind”, it means that it is only God who can show the path. This is why people call out to God, and when they say, “Show us the path, Prabhu”, it is surely God Himself who has to come into a corporeal form from His incorporeal form to show us the path. Only then can He show us the path in a physical way. He cannot show us the path without coming here. Those people who are confused have to be shown the path and this is why they say to God, “Show the path to those who are blind.” He is then also called the Boatman, that is, He will take us across the world that is made of the five elements to the other side, beyond the five elements, to the sixth element of great light. So, it is only when God comes from that side to this side that He can take us there. So, God has to come from His land; this is why He is called the Boatman. He takes us boats (souls) across. He will take across those who have yoga with Him, whereas those who are left will experience punishment from Dharamraj and then be liberated.
 2) Let us go from the world of thorns to the shade of flowers. This can only be sung to God. When people are extremely unhappy, they remember God. “God, take us away from this world of thorns to the shade of flowers.” This proves that there is definitely another world. All human beings know that the present world is filled with thorns because of which people experience sorrow and peacelessness. Therefore, they remember the world of flowers. So, there definitely must be that world too, of which there are the sanskars in souls. We know that sorrow and peacelessness are the karmic accounts of the bondage of karma. All human beings, from kings to beggars, are completely trapped in these accounts, and this is why God Himself says: The present world is the iron age. It has been created due to the bondage of karma from the world before that which was the golden age and called the world of flowers. That world is free from any bondage of karma; it is the kingdom of deities who are liberated in life but they do not exist now. When we say, “Liberated in life”, it does not mean that we were free from the body. They did not have any awareness of the body, but even while in their bodies, they had no sorrow, that is, there was no business of any bondage of karma there. They would take birth, then depart and would experience happiness from the beginning through the middle to the end. So, “liberated in life” means to be karmateet while alive. This whole world is trapped in the five vices. It means that the five vices fully reside here, but people do not have that sufficient strength to be able to conquer these five evil spirits. So, this is when God Himself comes and liberates us from the five evil spirits and enables us to attain the future reward of the deity status. Achcha.

HINDI DETAIL MURALI


15/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


 मीठे बच्चे “मीठे बच्चे - तुम्हें शिव जयन्ति का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाना है। यह तुम्हारे लिए बहुत बड़ा खुशी का दिन है, सबको बाप का परिचय देना है

 

प्रश्न:कौन से बच्चे अपना बहुत बड़ा नुकसान करते हैं? घाटा कब पड़ता है?

उत्तर:

जो बच्चे चलते-चलते पढ़ाई छोड़ देते हैं, वे अपना बहुत बड़ा नुकसान करते हैं। बाबा रोज़ इतने हीरे रत्न देते हैं, गुह्य पाइंटस सुनाते हैं, अगर कोई रेगुलर नहीं सुनते हैं तो घाटा पड़ जाता है। नापास हो जाते हैं, स्वर्ग की ऊंची बादशाही गंवा देते हैं। पद भ्रष्ट हो जाता है।

 

गीत:-रात के राही थक मत जाना....  ओम् शान्ति।

 

यह रात और दिन मनुष्यों के लिए हैं। शिवबाबा के लिए रात और दिन नहीं है। यह तुम बच्चों के लिए है, मनुष्यों के लिए है। ब्रह्मा की रात ब्रह्मा का दिन गाया जाता है। शिव का दिन, शिव की रात ऐसे कभी नहीं कहा जाता है। सिर्फ एक ब्रह्मा भी नहीं कहा जायेगा। एक की रात नहीं होती है। गाया जाता है ब्राह्मणों की रात। तुम जानते हो अभी है भक्ति मार्ग का अन्त, साथ-साथ घोर अन्धियारे का भी अन्त है। बाप कहते हैं - मैं आता ही तब हूँ जबकि ब्रह्मा की रात होती है। तुम अभी सवेरे के लिए चलने लग पड़े हो। जब तुम ब्रह्मा की सन्तान आकर बनते हो तब तुमको ब्राह्मण कहा जाता है। ब्राह्मणों की रात पूरी हो फिर देवताओं का दिन शुरू होता है। ब्राह्मण जाकर देवता बनेंगे। इस यज्ञ से बहुत बड़ी बदली होती है। पुरानी दुनिया बदलकर नई होती है। कलियुग है पुराना युग, सतयुग है नया युग। फिर त्रेता 25 प्रतिशत पुराना, द्वापर 50 प्रतिशत पुराना। युग का नाम ही बदल जाता है। कलियुग को सब पुरानी दुनिया कहेंगे। ईश्वर कहा जाता है बाप को, जो ईश्वरीय राज्य स्थापन करते हैं। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प संगमयुग में आता हूँ। टाइम तो लगता है ना। यूँ तो है एक सेकण्ड की बात, परन्तु विकर्म विनाश होने में समय लगता है क्योंकि आधाकल्प के पाप सिर पर हैं। बाप स्वर्ग रचता है तो तुम बच्चे भी स्वर्ग के मालिक तो बनेंगे। परन्तु सिर पर जो पापों का बोझा है उनको उतारने में टाइम लगता है। योग लगाना पड़ता है। अपने को आत्मा जरूर समझना है। आगे जब बाबा कहते थे तो जिस्मानी बाप याद आता था। अभी बाबा कहने से बुद्धि ऊपर चली जाती है। दुनिया में और किसकी बुद्धि में यह नहीं होगा कि हम आत्मा रूहानी बाप की सन्तान हैं। हमारा बाप टीचर गुरू तीनों ही रूहानी हैं। याद भी उनको करते हैं। यह है पुराना शरीर, इनको क्या श्रृंगार करना है। परन्तु अन्दर में समझते हैं अभी हम वनवाह में हैं। ससुरघर नई दुनिया में जाने वाले हैं। पिछाड़ी में कुछ भी नहीं रहता है। फिर हम जाकर विश्व के मालिक बनते हैं। इस समय सारी दुनिया जैसे वनवाह में है, इसमें रखा ही क्या है, कुछ भी नहीं। जब ससुरघर था तो हीरे-जवाहरों के महल थे। माल-ठाल थे। अभी फिर पियरघर से ससुरघर जाना है। अभी तुम किसके पास आये हो? कहेंगे बापदादा के पास। बाप ने दादा में प्रवेश किया है, दादा तो है ही यहाँ का रहवासी। तो बापदादा दोनों कम्बाइण्ड हैं। परमपिता परमात्मा पतित-पावन है। उनकी आत्मा अगर कृष्ण में होती, वह ज्ञान सुनाती तो कृष्ण को भी बापदादा कहा जाता। परन्तु कृष्ण को बापदादा कहना शोभता ही नहीं। ब्रह्मा ही प्रजापिता गाया हुआ है। बाप ने समझाया है यह 5 हजार वर्ष का चक्र है। तुम बच्चे प्रदर्शनी जब दिखाते हो तो उनमें यह भी लिखो कि आज से 5 हजार वर्ष पहले भी हमने यह प्रदर्शनी दिखाई थी और समझाया था कि बेहद बाप से स्वर्ग का वर्सा कैसे लिया जाता है। आज से 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से हम त्रिमूर्ति शिव जयन्ति मनाते हैं। यह अक्षर जरूर डालना पड़े। यह बाबा डायरेक्शन दे रहे हैं, उस पर चलना है। शिव जयन्ति की तैयारी करनी है। नई-नई बात देख मनुष्य वन्डर खायेंगे। अच्छा भभका करना चाहिए। हम त्रिमूर्ति शिव की जयन्ति मनाते हैं। छुट्टी करते हैं। शिव जयन्ति की छुट्टी आफीशियल है। कोई करते हैं, कोई नहीं करते हैं। तुम्हारा यह बहुत बड़ा दिन है। जैसे क्रिश्चियन लोग क्रिसमस मनाते हैं। बहुत खुशी मनाते हैं। अब तुमको यह खुशी मनानी चाहिए। सबको बताना है कि हम बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं। जो जानते हैं वही खुशी मनायेंगे। सेन्टर्स में आपस में मिलेंगे। यहाँ तो सब आ न सकें। हम मनाते हैं जन्मदिन। शिवबाबा का मृत्यु तो हो न सके। जैसे शिवबाबा आया है वैसे चले जायेंगे। ज्ञान पूरा हो गया। लड़ाई शुरू हो गई। बस। इनको अपना शरीर तो है नहीं। तुम बच्चों को अपने को आत्मा समझ पूरा देही-अभिमानी बनना है, इसमें मेहनत लगती है। सतयुग में तो आत्म-अभिमानी हैं। वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होगा। यहाँ बैठे-बैठे काल आ जाता है, हार्टफेल हो जाता है। कहेंगे ईश्वर की भावी। परन्तु ईश्वर की भावी नहीं है। तुम कहेंगे ड्रामा की भावी। ड्रामा में इनका पार्ट ऐसा था। अभी तो है ही आइरन एज़, नई दुनिया गोल्डन एज़ थी। सतयुग के महल कितने हीरों से सजाये हुए होंगे। अकीचार धन होगा। परन्तु उनका पूरा वृतान्त नहीं है। कुछ अर्थक्वेक आदि होती है तो टूट-फूट पड़ती, नीचे चली जाती है तो इन बातों का बुद्धि से काम लेना है। यह खाना बुद्धि के लिए है। तुम्हारी बुद्धि ऊपर चली गई है। रचता को जानने से रचना को भी जानते हैं। सारे सृष्टि का राज़ बुद्धि में है। ड्रामा में ऊंचे ते ऊंचा है भगवान। फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर हम इन तीनों का आक्यूपेशन बता सकते हैं। क्या-क्या पार्ट है? जगत-अम्बा का कितना बड़ा मेला लगता है। जगत-अम्बा, जगत-पिता का आपस में क्या सम्बन्ध है? यह कोई नहीं जानते क्योंकि यह गुप्त बात है। माँ तो यह बैठी है, वह थी एडाप्ट की हुई इसलिए चित्र उनके बने हैं। उनको जगत-अम्बा कहा जाता है। ब्रह्मा की बेटी सरस्वती। भल माँ का टाइटिल दिया है परन्तु थी तो बेटी। सही करती थी ब्रह्माकुमारी सरस्वती। तुम उनको मम्मा कहते थे। ब्रह्मा को माँ कहना शोभता नहीं। यह समझने और समझाने में बड़ी रिफाईन बुद्धि चाहिए। यह गुह्य बातें हैं। तुम किसके भी मन्दिर में जायेंगे तो झट उनका आक्यूपेशन जान लेंगे। गुरूनानक के मन्दिर में जायेंगे तो झट बता देंगे कि वह फिर कब आयेंगे? उन लोगों को कुछ पता नहीं क्योंकि कल्प की आयु लम्बी कर दी है। तुम वर्णन कर सकते हो। बाप कहते हैं देखो मैं तुमको कैसे पढ़ाता हूँ? आता कैसे हूँ? कृष्ण की तो बात ही नहीं। गीता का पाठ करते रहते हैं, कोई 18 अध्याय याद करते हैं तो उनकी कितनी महिमा हो जाती है। एक श्लोक सुनायेंगे तो कहेंगे वाह! वाह! इन जैसे महात्मा तो कोई नहीं। आजकल तो रिद्धि-सिद्धि भी बहुत है। जादू का खेल बहुत दिखाते हैं। दुनिया में ठगी बहुत है। बाप तुमको कितना सहज समझाते हैं परन्तु पढ़ने वालों पर मदार है। टीचर तो एकरस पढ़ाते हैं कोई नहीं पढ़ेंगे तो नापास होंगे। यह भी होना जरूर है। सारी राजधानी स्थापन होनी है। तुम यह ज्ञान-स्नान कर, ज्ञान का गोता लगाए परिस्तान की परी अर्थात् स्वर्ग के मालिक बन जाते हो। रात-दिन का फ़र्क है। वहाँ तत्व भी सतोप्रधान होने से शरीर भी एक्यूरेट बनता है। नेचुरल ब्युटी रहती है। वह है ईश्वर की स्थापन की हुई भूमि। अभी आसुरी भूमि है। स्वर्ग, नर्क में बहुत फर्क है। अभी तुम्हारी बुद्धि में ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बैठा हुआ है, नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार।

बाप कहते हैं - अच्छी रीति पुरुषार्थ करो। बच्चियां नये-नये स्थान पर चक्र लगाने जाती हैं। अगर अच्छी मातायें आदि हैं तो सर्विस को जमाना पड़े। सेन्टर पर अगर कोई नहीं आते हैं तो अपना नुकसान करते हैं। कोई पढ़ने के लिए नहीं आते हैं तो उनको फिर लिखना चाहिए। तुम पढ़ते नहीं हो इससे तुमको बहुत घाटा पड़ जायेगा। रोज़-रोज़ बहुत गुह्य प्वाइंट्स निकलती हैं। यह हैं हीरे रत्न, तुम पढ़ेंगे नहीं तो नापास हो जायेंगे। इतनी ऊंची स्वर्ग की बादशाही गँवा देंगे। मुरली तो रोज़ सुननी चाहिए। ऐसे बाप को छोड़ दिया तो याद रखना, नापास हो जायेंगे, फिर बहुत रोयेंगे। खून के ऑसू बहायेंगे। पढ़ाई तो कभी नहीं छोड़नी चाहिए। बाबा रजिस्टर देखते हैं। कितने रेगुलर आते हैं। न आने वालों को फिर सावधान करना चाहिए। श्रीमत कहती है - पढ़ेंगे नहीं तो पद भ्रष्ट हो जायेंगे। बहुत घाटा पड़ जायेगा। ऐसे लिखा-पढ़ी करो - तब तुम स्कूल को अच्छी तरह उठा सकेंगे। ऐसे नहीं कोई नहीं आया तो छोड़ दिया। टीचर को ओना रहता है कि हमारे स्टूडेन्ट जास्ती नहीं पास होंगे तो इज्जत जायेगी। बाबा लिखते भी हैं तुम्हारे सेन्टर पर सर्विस कम चलती है, शायद तुम सोते रहते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बादादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) इस पुराने शरीर का श्रृंगार नहीं करना है। वनवाह में रह नये घर में चलने की तैयारी करनी है।

2) ज्ञान स्नान रोज़ करना है। कभी भी पढ़ाई मिस नहीं करनी है।

 

वरदान:ज्ञान और योग के बल द्वारा माया की शक्ति पर विजय प्राप्त करने वाले मायाजीत, जगतजीत भव!

 

दुनिया में साइन्स का भी बल है, राज्य का भी बल है और भक्ति का भी बल है लेकिन आपके पास है ज्ञान बल और योग बल। यह सबसे श्रेष्ठ बल है। यह योगबल माया पर सदा के लिए विजयी बनाता है। इस बल के आगे माया की शक्ति कुछ भी नहीं है। मायाजीत आत्मायें कभी स्वप्न में भी हार नहीं खा सकती। उनके स्वप्न भी शक्तिशाली होंगे। तो सदा यह स्मृति रहे कि हम योगबल वाली आत्मायें सदा विजयी हैं और विजयी रहेंगे।

 

स्लोगन:कर्म करते कर्म के बन्धनों से मुक्त रहना ही फरिश्ता बनना है।

 

मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य

 

गीत:- नयनहीन को राह दिखाओ प्रभु ... अब यह जो मनुष्य गीत गाते हैं नयनहीन को राह बताओ, तो गोया राह दिखाने वाला एक ही परमात्मा ठहरा, तभी तो परमात्मा को बुलाते हैं और जिस समय कहते हैं प्रभु राह बताओ तो जरुर मनुष्यों को राह दिखाने के लिये खुद परमात्मा को निराकार रूप से साकार रूप में अवश्य आना पड़ेगा, तभी तो स्थूल में राह बतायेगा, आने बिगर राह तो बता नहीं सकेंगे। अब मनुष्य जो मूंझे हुए हैं, उन मूंझे हुए को राह चाहिए इसलिए परमात्मा को कहते हैं नयनहीन को राह बताओ प्रभु... इसको ही फिर खिवैया भी कहा जाता है, जो उस पार अथवा इन 5 तत्वों की जो बनी हुई सृष्टि है इससे पार कर उस पार अर्थात् 5 तत्वों से पार जो छट्ठा तत्व अखण्ड ज्योति महतत्व है उसमें ले चलेगा। तो परमात्मा भी जब उस पार से इस पार आवे तभी तो ले चलेगा। तो परमात्मा को भी अपने धाम से आना पड़ता है, तभी तो परमात्मा को खिवैया कहते हैं। वही हम बोट को (आत्मा रूपी नांव को) पार ले चलता है। अब जो परमात्मा के साथ योग रखता है उनको साथ ले जायेगा। बाकी जो बच जायेंगे वे धर्मराज की सजायें खाकर बाद में मुक्त होते हैं।

 

2) कांटों की दुनिया से ले चलो फूलों की छांव में, अब यह बुलावा सिर्फ परमात्मा के लिये कर रहे हैं। जब मनुष्य अति दु:खी होते हैं तो परमात्मा को याद करते हैं, परमात्मा इस कांटों की दुनिया से ले चल फूलों की छांव में, इससे सिद्ध है कि जरूर वो भी कोई दुनिया है। अब यह तो सभी मनुष्य जानते हैं कि अब का जो संसार है वो कांटों से भरा हुआ है। जिस कारण मनुष्य दु:ख और अशान्ति को प्राप्त कर रहे हैं और याद फिर फूलों की दुनिया को करते हैं। तो जरूर वो भी कोई दुनिया होगी जिस दुनिया के संस्कार आत्मा में भरे हुए हैं। अब यह तो हम जानते हैं कि दु:ख अशान्ति यह सब कर्मबन्धन का हिसाब किताब है। राजा से लेकर रंक तक हर एक मनुष्य मात्र इस हिसाब में पूरे जकड़े हुए हैं इसलिए परमात्मा तो खुद कहता है अब का संसार कलियुग है, तो वो सारा कर्मबन्धन का बना हुआ है और आगे का संसार सतयुग था जिसको फूलों की दुनिया कहते हैं। अब वो है कर्मबन्धन से रहित जीवनमुक्त देवी देवताओं का राज्य, जो अब नहीं है। अब यह जो हम जीवनमुक्त कहते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम कोई देह से मुक्त थे, उन्हों को कोई देह का भान नहीं था, मगर वो देह में होते हुए भी दु:ख को प्राप्त नहीं करते थे, गोया वहाँ कोई भी कर्मबन्धन का मामला नहीं है। वो जीवन लेते, जीवन छोड़ते आदि मध्य अन्त सुख को प्राप्त करते थे। तो जीवनमुक्ति का मतलब है जीवन होते कर्मातीत, अब यह सारी दुनिया 5 विकारों में पूरी जकड़ी हुई है, मानो 5 विकारों का पूरा पूरा वास है, परन्तु मनुष्य में इतनी ताकत नहीं है जो इन 5 भूतों को जीत सके, तब ही परमात्मा खुद आकर हमें 5 भूतों से छुड़ाते हैं और भविष्य प्रालब्ध देवी देवता पद प्राप्त कराते हैं। अच्छा - ओम् शान्ति।

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Details ( Page:- Murali 16th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 16.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban

Mithe bacche- Mithe bacche-Tumhe abhi gyan ka tishra netra mila hai,tum jaante ho har 5 hazaar varsh baad Bholanath Baap dwara hum yah gyan soonkar manushya se Devta bante hain.

Q- Gyan ki dharana na hone ka mukhya kaaran kya hai?

A- Buddhi bhatakti hai,ek ke saath poora yog nahi hai.Dehi-abhimaani nahi bane hain isiliye dharana nahi hoti hai.Baba kehte bachche,familiarity me nahi aao.Ek do ke naam-roop ko mat yaad karo.Ek Baap dusra na koi-yah paath pakka kar lo,dusro ke pichadi na pado.Baap se raye lete raho,isme tum dulh se liberate ho jayenge.Dharana bhi achchi hogi.

 Dharana ke liye mukhya saar:-

1)Baap samaan gyan ki sankh dhwani karni hai.Sirf padh karke nahi soonana hai.Dharana karke fir samjhana hai.
2)Khaan-paan ki bahut parhej rakhni hai.Shrimat ka paalan kar prabriti me rehte huye kaise pavitra rehte hain,yah anubhav dusro ko soonana hai.

Vardan:-Sangamyug ke mahatva ko jaan sneh ki anubhootiyon me samaane wale Sampoorn Gyani Yogi bhava.

Slogan:-Jo byarth ki feeling se pare rehta hai wohi mayajeet banta hai.

English Summary ( 16th Dec 2017 )
"Sweet children, you have now each received the third eye of knowledge. You know that you hear this knowledge from the Innocent Lord every 5000 years and change from human beings into deities."
Question:What is the main reason why you are not able to imbibe knowledge?
Answer:
Your intellect wanders, there isn't full yoga with the One and you haven't become soul conscious. That is why you become unable to imbibe knowledge. Baba says: Children, don't come into familiarity. Don't remember the name and form of one another. Make firm the lesson from ‘Belonging to the one Father and none other’. Don't chase after others. Continue to take advice from the Father because, by doing so, you will be liberated from sorrow and you will be able to imbibe well.
 Song:No one is unique like the Innocent Lord. Om Shanti

 Essence for Dharna:
1) Blow the conch shell of knowledge, like the Father. Don’t relate knowledge simply by reading it. Imbibe it first and then explain it.
2) Take great care over your food and drink. Follow shrimat and share your experience with others about how you remain pure while living in your household.
 Blessing:May you be completely knowledgeable and yogi and merge yourself in the experience of love by knowing the importance of the confluence age.
 The confluence age is the age of God’s love. Know the importance of this age and merge yourself in the experience of love. The Ocean of Love is giving you platefuls of diamonds and pearls, and so constantly keep yourself full. Do not become happy with just a little experience; become full. The diamonds and pearls of God’s love are invaluable. Constantly remain decorated with these because love is yoga and to merge yourself in love is complete knowledge. Those who constantly experience spiritual love are completely knowledgeable and yogi.
Slogan:Those who remain beyond any wasteful feeling can become conquerors of Maya. 

HINDI DETAIL MURALI


16/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


 मीठे बच्चे “मीठे बच्चे - तुम्हें अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, तुम जानते हो हर 5 हजार वर्ष बाद भोलानाथ बाप द्वारा हम यह ज्ञान सुनकर मनुष्य से देवता बनते हैं

 

प्रश्न:ज्ञान की धारणा न होने का मुख्य कारण क्या है?

उत्तर:

बुद्धि भटकती है, एक के साथ पूरा योग नहीं है। देही-अभिमानी नहीं बने हैं इसलिए धारणा नहीं होती है। बाबा कहते बच्चे, फैमिलियरटी में नहीं आओ। एक दो के नाम-रूप को मत याद करो। एक बाप दूसरा न कोई - यह पाठ पक्का कर लो, दूसरों के पिछाड़ी न पड़ो। बाप से राय लेते रहो, इससे तुम दु:ख से लिबरेट हो जायेंगे। धारणा भी अच्छी होगी।

 
गीत:-भोलेनाथ से निराला....  ओम् शान्ति।

 भोलानाथ है देने वाला। भोलानाथ शिवबाबा को तो कहते ही हैं। भोलानाथ होकर गया है और बरोबर बिगड़ी बनाकर गया है। आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताकर गया है, इसलिए भगत गाते हैं। तुम बच्चे जानते हो जिस भोलानाथ का गायन है, जो बिगड़ी को बनाने वाला है, वह हमारे सम्मुख बैठा है। भगत भगवान को याद करते हैं, उनकी महिमा गाते हैं और बाप अपना पार्ट बजा रहे हैं। बाप ने ही आकर अपना परिचय दिया है, बच्चों को। बच्चों की बुद्धि में बैठा है कि बाबा जो समझाते हैं वह बरोबर कल्प-कल्प समझाते हैं। कल्प-कल्प आकर पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाते हैं। अभी बना रहे हैं। बहुतों को अभी पता पड़ा है। अभी बहुत हैं जिन्हों को पता नहीं है - वर्सा लेने वाले होंगे तो कल्प पहले मुआफिक आकर वर्सा लेंगे। तुमको पहले थोड़ेही यह मालूम था कि बाबा आकर वर्सा देंगे। अभी मालूम पड़ा है। बरोबर भक्तों का रक्षक है। आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाते हैं। उनको ज्ञान का सागर कहा जाता है। दिल से लगता है बरोबर यह वही हैं जो भारत में आकर जन्म लेते हैं। इनका अलौकिक जन्म गाया हुआ है। भारतवासियों को आकर पतित से पावन बनाते हैं। पतित मनुष्य जो बुलाते हैं वह जरूर समझते होंगे हम पावन थे, अब पतित बने हैं, फिर पावन बनना है।

अभी बाप द्वारा तीसरा नेत्र मिलने से तुमने यह सब कुछ समझा है। तुम बच्चों का सारा दिन विचार सागर मंथन चलता रहेगा। सतयुग में पावन कौन थे? बरोबर देवी-देवता ही थे। उस समय और कोई धर्म नहीं था। देवताओं के चित्र भी हैं और कोई नाम नहीं लेंगे। ऐसे नहीं कहेंगे चित्र हैं। श्री लक्ष्मी देवी, श्री नारायण देवता। अभी वह नहीं हैं। जब वह थे तो और कोई धर्म नहीं था। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि बाबा हमको सत्य कथा सुनाते हैं। तो लोग कहते हैं यह ज्ञान तो हमने सुना नहीं है क्योंकि उनको ड्रामा के राज़ का तो पता नहीं हैं। तुम कहेंगे यह तो कल्प-कल्प तुम सुनते आये हो। क्या 5 हजार वर्ष पहले नहीं सुनाया था? फिर यह क्यों कहते हो आगे कभी नहीं सुना है। कल्प पहले जिसने सुनाया था उस द्वारा तुम अभी भी सुन रहे हो। अच्छी रीति समझाना चाहिए। तुमने तो 5 हजार वर्ष पहले भी यह ज्ञान सुना था। देवताओं को 5 हजार वर्ष हुए हैं। उन्हों को मनुष्य से देवता किसने बनाया? अभी भी वही बाप फिर से बनायेगा। 5 हजार वर्ष बाद फिर से बाप को आना पड़ता है। रावण द्वारा पतित बने हुए को पावन बनाने। हिस्ट्री-जॉग्राफी मस्ट रिपीट। यह भी समझ में आता है हिस्ट्री रिपीट होती है। सतयुग के बाद त्रेता... चक्र लगाते हैं। अभी कलियुग का अन्त है। एक तरफ विनाश ज्वाला खड़ी है - दूसरी तरफ बाबा यहाँ आये हैं, नई दुनिया स्थापन करने अर्थ। यह वही महाभारत लड़ाई है। समझते हैं इससे विनाश हो जायेगा - मनुष्यों की दुनिया का। यह सबको समझ में आता है। पुरानी दुनिया का विनाश देखने में आता है। यह महाभारी महाभारत लड़ाई 5 हज़ार वर्ष पहले भी लगी थी। कोई लाखों वर्ष की बात नहीं है। यह भारत ही स्वर्ग था। इन देवताओं का राज्य था। यह सतयुग के मालिक थे। चित्रों पर भी अच्छी रीति समझाना पड़ता है इसलिए ही यह लक्ष्मी-नारायण आदि के चित्र बनाये हैं। यूँ लक्ष्मी-नारायण के चित्र तो भारत में ढेर हैं, फिर हम बनाते हैं, क्यों? हम अर्थ सहित बनाते हैं। इनमें पूरा ज्ञान है। मनुष्य तो मूँझे हुए हैं इसलिए समझाया जाता है - सतयुग में इन्हों का राज्य था। बहुत थोड़े मनुष्य थे जो होकर गये हैं वही फिर पुनर्जन्म ले पावन से पतित बनेंगे। यह दुनिया ही तमोप्रधान है फिर पावन बनना है। समझानी तो बहुत सहज है। बाप कहते हैं मैं तुमको 5 हजार वर्ष पहले की कहानी सुनाता हूँ। लाँग-लाँग एगो... यहाँ इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था अथवा क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले सतयुग था। हेविनली गॉड फादर ने हेविन स्थापन किया था। भारत को कहते भी हैं प्राचीन देश है, इसमें गॉड गॉडेज राज्य करते थे। गॉड कृष्ण, गॉडेज राधे कहते हैं। राधे-कृष्ण लक्ष्मी नारायण सतयुग में थे, फिर राम-सीता त्रेता में 5 हजार वर्ष का हिसाब-किताब क्लीयर है। जब उन्हों का राज्य था तो बाकी सब आत्मायें मुक्तिधाम में थी। आत्मा तो अविनाशी है। आत्मा का कभी विनाश नहीं होता। ड्रामा भी अविनाशी है। आत्मा को 84 जन्मों का अविनाशी पार्ट मिला हुआ है। इतनी छोटी सी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है। यह कितनी वन्डरफुल बात है, इसको ही कुदरत कहा जाता है। इतनी छोटी बिन्दी कितना 84 जन्मों का पार्ट, 5 हजार वर्ष का पार्ट उसमें भरा हुआ है। वह भी अविनाशी, जो रिपीट जरूर करना है। यह बड़े ते बड़ी कुदरत है। परमात्मा भी बिन्दी, आत्मा भी बिन्दी। परन्तु परमात्मा सुप्रीम है। आत्मायें तो सब एक जैसी नहीं हैं, नम्बरवार हैं। पहले सुप्रीम शिवबाबा फिर कहेंगे लक्ष्मी-नारायण। ब्रह्मा-सरस्वती को सुप्रीम नहीं कहेंगे। सम्पूर्ण तो लक्ष्मी-नारायण है फिर नम्बरवार एक दो के पिछाड़ी आते हैं। मुख्य गायन है देवताओं का। सबसे सुप्रीम आत्मा शिवबाबा की है फिर सूक्ष्मवतन में ब्रह्मा-विष्णु-शंकर फिर लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता सब नम्बरवार हैं। नाटक में भी एक्टर नम्बरवार होते हैं। सब एक जैसे नहीं होते हैं। कहेंगे इनकी आत्मा सुप्रीम एक्टर है, यह पाई पैसे का एक्टर है। सबसे फर्स्टक्लास क्रियेटर, डायरेक्टर कौन है? करनकरावनहार एक ही परमपिता परमात्मा है। अब तुमको सारे ड्रामा का पता पड़ा है। यह है बेहद का ड्रामा, नटशेल में तुमको बताया जाता है। झाड़ का यह देवी-देवता धर्म है फ़ाउन्डेशन। फिर उनसे टालियाँ इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन निकले हैं। यह फ्लावरवाज़ होगा। झाड़ शोभता है ना। बाकी एक-एक धर्म के पत्ते बैठ गिनती करो तो कितने होंगे। इस्लामी, बौद्धी सबके मठ पंथ गिने जाते हैं। शिव भोलानाथ यह ज्ञान सुनाते हैं। बाकी कोई डमरू आदि बजाने की बात नहीं है। शास्त्रों में जो आया सो लिख दिया है। वास्तव में है ज्ञान की डमरू, इनको शंखध्वनि भी कहा जाता है। शंखध्वनि मुख से की जाती है। यह है ज्ञान की मुरली। ड्रामा के आदि-मध्य अन्त का राज़ बैठ सुनाते हैं। आत्मा बिन्दी मिसल है, जिसमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है। वह क्रियेटर है। वो एक्ट भी करते हैं। अच्छा पार्ट वह लेते हैं। नम्बरवार तो होते हैं ना। यह है ही एक बाप क्रियेटर और सब पुनर्जन्म में आने वाले हैं। यह कभी पुनर्जन्म नहीं लेते हैं, इनका अलौकिक जन्म है। तुम जानते हो कैसे आकर प्रवेश किया है। दूसरी आत्मायें भी प्रवेश करती हैं ना। समझो किसके स्त्री की आत्मा आती है। बोल सकेगी कि मैं सुखी हूँ। बाकी उनके शरीर को भाकी नहीं पहन सकेंगे क्योंकि शरीर तो दूसरा है ना। भावना है कि यह हमारे स्त्री की आत्मा है, इनको बुलाया गया है। ऐसे बहुतों को बुलाते हैं। अभी तमोगुणी हो गये हैं इसलिए एक्यूरेट बताते नहीं हैं। आत्मा क्या चीज़ है, कैसे आती-जाती है। यह ड्रामा में पहले से ही नूँध है। ऐसे नहीं आत्मा निकलकर यहाँ आती है। वह मर जाती है, नहीं। बाप कहते हैं यह मनोकामना पूर्ण करने के लिए साक्षात्कार कराता हूँ, जो ड्रामा में नूँध है। सो होता है। सेकण्ड पास हुआ, ड्रामा में नूँध है। यह बेहद का नाटक है। बाप बिन्दी है। बिन्दी को भोलानाथ कहते हैं। कितना वन्डर है। बाप भी कहते हैं मुझ बिन्दी में कितना पार्ट है। यह बातें नये कोई की बुद्धि में बैठ न सकें। पुरानों से भी कितनों की समझ में नहीं आता है। तो किसको समझाने में मूँझते हैं, जैसे रेडियों में कोई बात करने में मूँझते हैं। इसमें मुरली बड़ी फुर्ती से चलानी है। वह पढ़कर सुनाते हैं। यह है ओरली। बाबा भी सब कुछ ओरली सुनाते हैं। तुम्हारी बुद्धि में धारणा हो रही है। कल्प पहले भी तुमने धारणा कर बहुतों को सुनाया है। फिर वह ज्ञान खत्म हो गया। अब फिर रिपीट होना है। यह ज्ञान कोई साधू-सन्त की बुद्धि में नहीं है। वह परमात्मा को नहीं जानते। वह कह देते हैं - आत्मा परमात्मा में मिल जायेगी। मिलेगी फिर कैसे? अभी तुम्हारी आत्मा जानती है कि हमारा बाप आया है। हमको नॉलेज दे रहा है। फिर हम बाबा के साथ घर जायेंगे। यह तुम बच्चों को रूहानी नशा है। यह है तुम्हारा प्रवृत्ति मार्ग। बहुत तुमको कहते हैं कि तुम तो कुमार अथवा कुमारी हो। तुमको विकारों का अनुभव ही नहीं। हम तो विकारी गृहस्थ में रहने वाले हैं। तुम हमको यह ज्ञान कैसे दे सकते हो? हम हैं युगल, हमको बैचलर कैसे समझा सकेगा? हमको तो युगल समझाये, जो अनुभवी हो? विकार में गया हुआ हो, वही हमको समझा सकते हैं कि हमने ऐसे जीत पाई। ऐसे-ऐसे बाबा के पास पत्र आते हैं। बात तो ठीक है अब ऐसे अनुभवी से पत्र लिखाना चाहिए, जिसने भल शादी की हो परन्तु पवित्र हो। कोई को बाल-बच्चे थे, फिर पवित्र बने हैं। ऐसे-ऐसे हमको समझायें। ज्ञान तो बहुत अच्छा है। परन्तु कोई तीखा समझाने वाला नहीं है तो मैं मूँझ जाता हूँ। बहुत बातें सामने आती हैं। तो अनुभवी समझाने वाला हो। अब पत्रों द्वारा तो किसको इतना समझा नहीं सकते। सम्मुख आकर मिलें तो बाबा भी समझाये। ऐसे-ऐसे बहुत युगल हैं जो अपना अनुभव सुना सकते हैं कि हम ऐसे प्रवृत्ति में रह श्रीमत का पूरा-पूरा पालन कर रहे हैं। खान-पान की भी पूरी परहेज रखते हैं। कोई समझाने वाला ठीक नहीं है तो मूँझ पड़ते हैं। सर्विस के लिए बुद्धि चलनी चाहिए। देही-अभिमानी भी बनना है। कोई भी फैमिलियरटी में नहीं आना चाहिए। मेहनत लगती है। माया घड़ी-घड़ी फँसा लेती है। कर्मातीत अवस्था अभी हो नहीं सकती। बहुत एक दो के नाम-रूप में फँस पड़ते हैं। फिर बाबा को लिखते भी नहीं कि बाबा यह-यह तूफान आते हैं। सच नहीं बताते हैं। बाबा को लिखें तो बाबा युक्ति भी बतायें। कोई-कोई सच लिखते हैं। शिवबाबा तो सब कुछ जानते हैं। समझाते हैं अगर ऐसी कोई चलन चली तो धर्मराज द्वारा बहुत दण्ड भोगना पड़ेगा। सारा दिन ख्यालात चलते रहते हैं। सेन्टर पर आते हैं। कहते हैं फलानी बहुत अच्छा समझाती है। परन्तु अन्दर शैतानी भरी पड़ी होगी। यहाँ तो एक के साथ योग चाहिए। बाप के सिवाए दूसरा न कोई। क्यों दूसरे के पीछे पड़े। धारणा नहीं होती है तो जरूर कहाँ बुद्धि भटकती है फिर राय भी नहीं पूछते हैं। डरते हैं। बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। इस याद से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। दु:ख से तुम लिबरेट हो जायेंगे। मुक्ति तो सब माँगते हैं। मुक्त होते हैं दु:ख से फिर सुख में आयेंगे। जीवनमुक्ति सबके लिए है। परन्तु पहले मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में आना है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) बाप समान ज्ञान की शंख ध्वनि करनी है। सिर्फ पढ़ करके नहीं सुनाना है। धारणा करके फिर समझाना है।
2) खान-पान की बहुत परहेज रखनी है। श्रीमत का पालन कर प्रवृत्ति में रहते हुए कैसे पवित्र रहते हैं, यह अनुभव दूसरों को सुनाना है।

 वरदान:संगमयुग के महत्व को जान स्नेह की अनुभूतियों में समाने वाले सम्पूर्ण ज्ञानी योगी भव!

संगमयुग परमात्म स्नेह का युग है। इस युग के महत्व को जानकर स्नेह की अनुभूतियों में समा जाओ। स्नेह का सागर स्नेह के हीरे मोतियों की थालियां भरकर दे रहे हैं, तो अपने को सदा भरपूर करो। थोड़े से अनुभव में खुश नहीं हो जाओ, सम्पन्न बनो। ये परमात्म प्यार के हीरे-मोती अनमोल हैं, इससे सदा सजे सजाये रहो क्योंकि यह स्नेह ही योग है और स्नेह में समाना ही सम्पूर्ण ज्ञान है। ऐसे रूहानी स्नेह का सदा अनुभव करने वाले ही सम्पूर्ण ज्ञानी-योगी हैं।

स्लोगन:जो व्यर्थ की फीलिंग से परे रहता है वही मायाजीत बनता है।

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Details ( Page:- Murali 17th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 17.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Headline – Sahaj Purusarthi ka lakshan
Vardan – Avyakt palna dwara shaktisali ban last sau first jaanewale first number ke adhikari bhav.
Slogan – Swaman ki seat par set rah otoh sarb ka mann swatah prapt hoga.
English Summary ( 17th Dec 2017 )
"The qualifications of an easy effort-maker ."
Blessing:May you go fast with powerful avyakt sustenance and claim a right to a first number even though you have come last.
Souls who have come in the avyakt part have the easy fortune of going fast in their effort. This avyakt sustenance will easily make you powerful. Therefore, you can move forward as much as you want. This time has received the blessing of “Going fast though you have come last and coming first by going fast.” So, use this blessing, that is, use this blessing according to the time. Use whatever you have received and you will claim a right to claim a first number.

 Slogan:Remain set on your seat of self-respect and you will automatically receive respect from everyone.

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17/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति


" अव्यक्त-बापदादा" मधुबन – (11-04-83 )


 “सहज पुरूषार्थी के लक्षण

बापदादा अपने स्नेही, सहयोगी बच्चों को देख हर्षित हो रहे हैं। स्नेह और मिलन की भावना इन दो शक्तियों के आधार पर निराकार और आकार बाप को आप समान साकार रूप में साकारी सृष्टि में लाने के निमित्त बन जाते हो। बाप को भी बच्चे स्नेह और भावना के बन्धन में बांध लेते हैं। मैजारटी अभी भी माताओं की है। माताओं का ही चरित्र और चित्र दिखाया है - भगवान को भी बांधने का। किस वृक्ष से बांधा? इस बेहद के कल्प वृक्ष के अन्दर स्नेह और भावना की रस्सी से कल्प पहले भी बांधा था और अब भी रिपीट हो रहा है। बापदादा ऐसे बच्चों को स्नेह के रेसपान्ड में, जिस रस्सी से बाप को बांधते हो, इन स्नेह और भावना की दोनों रस्सियों को दिलतख्त का आसन दे झूला बनाए बच्चों को दे देते हैं। इस कल्प वृक्ष के अन्दर पार्ट बजाने वाले इसी झूले में सदा झूलते रहो। सभी को झूला मिला हुआ है ना! आसन से हिल तो नहीं जाते हो? स्नेह और भावना की रस्सियाँ सदा मज़बूत हैं ना! नीचे ऊपर तो नहीं होते! झूला झुलाता भी है, ऊंचा उड़ाता भी है और अगर जरा भी नीचे ऊपर हुए तो ऊपर से नीचे गिराता भी है। झूला तो बापदादा ने सभी को दिया है। तो सदा झूलते रहते हो! माताओं को झूलने और झुलाने का अनुभव होता है ना! जिस बात के अनुभवी हो, वह ही बातें बापदादा कहते हैं। कोई नई बात तो नहीं है ना! अनुभव की हुई बातें सहज होती हैं वा मुश्किल!

आज की यह कौन सी सभा है? सभी सहजयोगी, सहज पुरूषार्थी सहज प्राप्ति स्वरूप हो वा कभी सहज, कभी मुश्किल के योगी हो? सहज पुरूषार्थी अर्थात् आये हुए हिमालय पर्वत जितनी समस्या को भी उड़ती कला के आधार पर सेकण्ड में पार करने वाले। पार करने का अर्थ ही है कि कोई चीज़ होगी तब तो उसको पार करेंगे। ऐसे सहज पार करते, उड़ते जा रहे हो वा कभी पहाड़ पर उतर आते, कभी नदीं में उतर आते, कभी कोई जंगल में उतर आते। फिर क्या कहते? निकालो वा बचाओ। ऐसे करने वाले तो नहीं हो ना! मातायें अब भी बात-बात पर वही पुकार तो नहीं करती रहती! भक्ति के संस्कार तो समाप्त हो गये ना! द्रोपदी की पुकार पूरी हो गई या अभी भी चल रही है? अभी तो अधिकारी बन गये ना! पुकार का समय समाप्त हुआ। संगमयुग प्राप्ति का समय है न कि पुकार का समय है? सहज पुरूषार्थी अर्थात् सबको पार कर सर्व सहज प्राप्ति करने वाले। सहज पुरूषार्थी सदा वर्तमान और भविष्य प्रालब्ध पाने के अनुभवी होंगे। प्रालब्ध सदा ऐसे स्पष्ट दिखाई देगी जैसे स्थूल नेत्रों द्वारा स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है। ऐसे बुद्धि के अनुभव के नेत्र द्वारा अर्थात् तीसरे दिव्य नेत्र द्वारा प्रालब्ध दिखाई देगी। सहज पुरूषार्थी हर कदम में पदमों से भी ज्यादा कमाई का अनुभव करेंगे। ऐसा स्वयं को सदा संगमयुगी सर्व खजानों से भरपूर आत्मा अनुभव करेंगे। किसी भी शक्ति से, किसी भी गुण के खजाने से, ज्ञान के किसी भी प्वाइंट के खज़ाने से, खुशी से, नशे से कभी खाली नहीं होंगे। खाली होना गिरने का साधन है। खड्डा बन जाता है ना। तो खड्डे में गिर जाते हैं। थोड़ी सी भी मोच आ जाती है तो परेशान हो जाते हैं ना! यह भी बुद्धि की मोच आ जाती है। संकल्प टेढ़ा हो जाता है। शक्तिशाली मालामाल के बदले कमजोर और खाली हो जाते हैं। तो संकल्प की मोच आ गई ना! ऐसे करते क्यों हो? फिर कहते हो रास्ता टेढ़ा है। आप टेढ़े नहीं हो? टेढ़े रास्ते को तो सीधा बनाया है ना! शक्ति अवतार किसलिए हो? टेढ़े को सीधा करने के लिए। कान्ट्रैक्ट क्या लिया है? जैसे इस हाल को टेढ़े बांके से सीधा किया तब तो आराम से बैठे हो। तो हाल के कान्ट्रैक्टर से पूछो उसने यह सोचा क्या कि टेढ़ा है, मोच आयेगी। सीधा किया वा टेढ़े को ही सोचता रहा। कहाँ पत्थर को उड़ाया, कहाँ पत्थर को डाला, मेहनत की ना। तो आप सबको स्वर्ग बनाने का कान्ट्रैक्ट है ना! टेढ़े को सीधा बनाने का कान्ट्रैक्ट है ना! ऐसे कान्ट्रैक्ट लेने वाले तो नहीं कह सकते कि रास्ता टेढ़ा है। अचानक गिरना, यह भी अटेन्शन की कमी है। साकार रूप में याद है ना, कोई गिरते थे तो क्या करते थे! उसकी टोली बन्द होती थी। क्यों? आगे के लिए सदा अटेन्शन रखने के लिए। टोली देना तो कोई बड़ी बात नहीं है। टोली तो होती ही बच्चों के लिए है। लेकिन यह भी स्नेह है। टोली देना भी स्नेह है, टोली बन्द करना भी स्नेह है। फिर क्या सोचा? अचानक गिर जाते हैं वा रास्ता टेढ़ा है, यह कहेंगे? अभी तो इस पुरूषार्थ के मार्ग में इतनी भीड़ कहाँ हुई है! अभी तो 9 लाख प्रजा भी नहीं बनी है। अभी तो एक लाख में ही खुश हो रहे हो। (83 में 1 लाख की संख्या थी) यह पुरूषार्थ का मार्ग बेहद का मार्ग है। तो समझा सहज पुरूषार्थी किसको कहा जाता है! जो मोच न खाये और ही औरों के लिए स्वयं गाइड, पण्डा बन सहज रास्ता पार करावे। सहज पुरूषार्थी सिर्फ लव में नहीं लेकिन लव में लीन रहता। ऐसी लवलीन आत्मा सहज ही चारों ओर के वायब्रेशन से वायुमण्डल से दूर रहती है क्योंकि लीन रहना अर्थात् बाप समान शक्तिशाली, सर्व बातों से सेफ रहना। तो समानता बड़े ते बड़ी सेफ है। है ही मायाप्रूफ सेफ। तो समझा सहज पुरूषार्थ क्या है! सहज पुरूषार्थ अर्थात् अलबेलापन नहीं। कई अलबेलेपन को भी सहज पुरूषार्थ मानकर चलते हैं। वो सदा मालामाल नहीं होगा। अलबेले पुरूषार्थी की सबसे बड़ी विशेषता अन्दर मन खाता रहेगा और बाहर से गाता रहेगा! क्या गाता रहेगा? अपनी महिमा के गीत गाता रहेगा। और सहज पुरूषार्थी सदा हर समय में बाप के साथ का अनुभव करेगा। ऐसे सहज पुरूषार्थी हो? सहज पुरूषार्थी सदा सहज योगी जीवन का अनुभव कर सकता है। तो क्या पसन्द है? सहज पुरूषार्थ या मुश्किल? पसन्द तो सहज पुरूषार्थ है ना! दिलपसन्द चीज जब बाप दे ही रहे हैं तो क्यों नहीं लेते। न चाहते भी हो जाता है, यह शब्द भी मास्टर सर्वशक्तिवान का बोल नहीं है। चाहना एक, कर्म दूसरा तो क्या उसको शिव-शक्ति कहेंगे!

शिव-शक्ति अर्थात् अधिकारी। अधीन नहीं। तो यह बोल भी ब्राह्मण भाषा के नहीं हुए ना! अपने ब्राह्मण भाषा को तो जानते हो ना! संगमयुग का अर्थात् सहज प्राप्ति का बहुत समय गया। अब बाकी थोड़ा सा समय रहा हुआ है। इसमें भी समय के वरदान, बाप के वरदान को प्राप्त कर स्वयं को सहज पुरूषार्थी बना सकते हो। ब्राह्मण की परिभाषा है ही मुश्किल को सहज बनाने वाला। ब्राह्मण का धर्म, कर्म सब यही है। तो जन्म के, कर्म के ब्राह्मण आत्मायें अर्थात् सहज योगी, सहज पुरूषार्थी। अब यहाँ से क्या बन करके जायेंगे?

मधुबन को परिवर्तन भूमि कहते हो ना! मुश्किल शब्द को तपोभूमि में भस्म करके जाना। और सहज पुरूषार्थ का वरदान ले जाना। परिवर्तन का पात्र अर्थात् दृढ़ संकल्प के पात्र को धारण करके जाना तब वरदान धारण कर सकेंगे। नहीं तो कई कहते हैं वरदान तो बाबा ने दिया लेकिन आबू में ही रह गया। वहाँ जाकर देखते हैं वरदान तो साथ आया ही नहीं। वरदाता का वरदान योग्य पात्र में लिया? अगर लिया ही नहीं तो रहेगा कहाँ? जिसने दिया उसके पास ही रहा ना! ऐसे नहीं करना। होशियार बहुत हो गये हैं। अपना कसूर नहीं समझेंगे। कहेंगे पता नहीं बाबा ने क्यों ऐसे किया! अपनी कमजोरियाँ सब बाप के ऊपर रखते हैं। बाबा चाहे तो कर सकता है लेकिन करना नहीं है। बाप दाता है या लेता है? दाता तो देता है लेकिन लेने वाले लेवें भी ना! या देवे भी बाप और लेवे भी बाप। बाप लेंगे तो आप कैसे भरपूर होंगे! इसलिए लेना तो सीखो ना! अच्छा - मिलन तो हो गया ना। सबसे हंसे, बहले, सबके चेहरे देखे। इस समय तो बहुत अच्छे चियरफुल चेहरे हैं। सभी खुशी के झूले में झूल रहे हैं। तो यह मिलना नहीं हुआ! मिलना अर्थात् मुखड़ा देखना और दिखलाना। देखा ना! पात्र भी मिला, वरदान भी मिला। बाकी क्या रह गया? टोली तो दीदी दादी से खा ली है। जब व्यक्त रूप में निमित्त बना दिया है तो अव्यक्त को क्यों व्यक्त बनाते हो! दीदी दादी भी बाप समान हैं ना! जब भी दीदी दादी से टोली लेते हो तो क्या समझकर लेते हो? बापदादा टोली दे रहे हैं। अगर दीदी दादी समझ लेते तो यह भी भूल हो जायेगी। अच्छा तो बाकी टोली की इच्छा अभी है। समझते हैं टोली खायेंगे तो आगे तो आयेंगे ना। तो आज ही सबकी क्यू लगाओ और टोली खाओ। दिल तो कब भरने वाली है नहीं। दिल भरती रहनी चाहिए। भर नहीं जानी चाहिए। कुछ न कुछ रहना ठीक है। तब तो याद करते रहेंगे और भरते रहेंगे। भर गई तो फिर कहेंगे भर गया अब खाओ पीयो मौज करो। अच्छा।

सब सदा के सहज योगी, सहज पुरूषार्थी, सदा सर्व की मुश्किलातों को सहज करने वाले, ऐसे बाप समान मास्टर सर्वशक्तिवान, सदा मालामाल, सर्व खजानों से स्व सहित विश्व की सेवा करने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों के साथ (माताओं से)

1- सभी अपना कल्प पहले वाला चित्र देखते रहते हो? ऐसा कौन सा चित्र है जिस चित्र में बाप का साथ भी है और सेवा भी दिखाई है? गोवर्धन पर्वत उठाने का। इस चित्र में बाप के साथ बच्चे भी हैं और दोनों ही सेवा कर रहे हैं। पर्वत को अंगुली देना सेवा हुई ना! मन में उमंग आता है ना कि सहयोगी बनने का भी यादगार बन गया है। अंगुली सहयोग की निशानी है। सभी बाप दादा के सहयोगी हो ना! जन्म ही किसलिए लिया है? सहयोगी बनने के लिए। तो सदा स्मृति में रखो कि हम जन्म से सहयोगी आत्मा हैं। तन-मन-धन जैसे पहले मालूम नहीं था तो भक्ति में लगाया और अभी जो बचा हुआ है वह सच्ची सेवा से, बाप के सहयोगी बन लगा रहे हो! 99प्रतिशत तो गंवा दिया बाकी 1प्रतिशत बचा है। अगर वह भी सहयोग में नहीं लगायेंगे तो कहाँ लगायेंगे! देखो कहाँ सतयुगी राजा और आज क्या हो? तन में भी शक्ति कहाँ हैं! आज के जवान बूढ़े हैं। जितना बूढ़े काम कर सकते, उतना आज के जवान नहीं कर सकते। नाम की जवानी है। और धन भी गँवा दिया, देवता से बिजनेस वाले वैश्य बन गये। और मन की शान्ति भी कहाँ रही, भटक रहे हो। तो मन की शान्ति, तन, धन सब गँवा दिया, बाकी क्या रहा! फिर भी चक्र करो 1 परसेन्ट भी बचा हुआ तन-मन-धन ईश्वरीय कार्य में लगाने से 21 जन्म 2500 वर्ष के लिए जमा हो जाता है। ऐसे सहयोगी बच्चों को बाप भी सदा स्नेह देते हैं, सहयोग देते हैं। और इसी सहयोग का चित्र अभी भी देख रहे हो। अभी प्रैक्टिकल कर भी रहे हो और चित्र भी देख रहे हो। वैसे कोई मरने के बाद अपना चित्र नहीं देखता। आप चैतन्य में कल्प पहले वाला चित्र देख रहे हो। पहले अपने ही चित्र की पूजा करते थे। अगर पता होता तो गायन नहीं करते, बन जाते। तो ऐसे सभी सहयोगी हो ना! सदा हर कार्य में सहयोग देने का शुभ संकल्प, कभी भी किसी भी प्रकार के वातावरण को शक्तिशाली बनाने में सदा सहयोगी। वातावरण को भी नीचे ऊपर नहीं होने देना। सहयोगी बनने के बदले कभी हलचल करने वाले नहीं बन जाना। सदा सहयोगी अर्थात् सदा सन्तुष्ट। एक बाप दूसरा न कोई, चलते चलो, उड़ते चलो। कोई भी संकल्प आये तो ऊपर देकर स्वयं नि:संकल्प होकर चलते जाओ। विचार देना, इशारा देना यह दूसरी बात है, हलचल में आना यह दूसरी बात है। तो सदा एकरस। संकल्प दिया और निरसंकल्प बने। सदा स्व उन्नति और सेवा की उन्नति में बिजी रहो और सर्व के प्रति शुभ भावना रखो। जिस शुभ भावना से जो संकल्प रखते वह सब पूरा हो जाता है। शुभ संकल्प पूरे होने का साधन है एकरस अवस्था। शुभ चिन्तन, शुभचिंतक - इसी से सब बातें सम्पन्न हो जायेगी। चारों ओर के वातावरण को शक्तिशाली बनाना यही है शक्तिशाली श्रेष्ठ आत्माओं का कर्तव्य। अच्छा।

वरदान:अव्यक्त पालना द्वारा शक्तिशाली बन लास्ट सो फास्ट जाने वाले फर्स्ट नम्बर के अधिकारी भव!

अव्यक्त पार्ट में आने वाली आत्माओं को पुरूषार्थ में तीव्रगति का भाग्य सहज मिला हुआ है। यह अव्यक्त पालना सहज ही शक्तिशाली बनाने वाली है इसलिए जो जितना आगे बढ़ना चाहे बढ़ सकते हैं। इस समय लास्ट सो फास्ट और फास्ट सो फर्स्ट का वरदान प्राप्त है। तो इस वरदान को कार्य में लगाओ अर्थात् समय प्रमाण वरदान को स्वरूप में लाओ। जो मिला है उसे यूज़ करो तो फर्स्ट नम्बर में आने का अधिकार प्राप्त हो जायेगा।

 

स्लोगन:स्वमान की सीट पर सेट रहो तो सर्व का मान स्वत: प्राप्त होगा।

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Details ( Page:- Murali 18th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 18.12.17      Pratah Murli Om Shanti Bapdada Madhuban

Mithe bacche- Mithe bacche-Behad ke Baap se tum bahut oonchi padhai padh rahe ho,buddhi me hai patit-pawan God Father ke hum student hain,nayi duniya ke liye padh rahe hain.

Q- Roohani government se ijafa kin baccho ko milta hai?

A- jo bahuto ko aap samaan banane ki mehnat karte hain.Service ka saboot nikaalte hain unhe roohani government bahut bada ijafa deti hai.Wo bhavisya 21 janmo ke liye oonch pad ke adhikari bante hain.

 Dharana ke lkiye mukhya saar:-

1)Padhai ka bahut kadar rakhna hai.Baap se kripra adi nahi maangni hai.Gyan aur yog bal jama karna hai.

2)Rahemdil banna hai.Mukh se kabhi kadwe bol nahi bolne hain.Sada mitha bolna hai.Aap samaan banane ki seva zaroor karni hai.


Vardan:-Sukh swaroop ban sabko sukh dene wale Master Sukhdata bhava.

Slogan:-Harshit aur gambhir banne ke balance ko dharan kar ekras sthiti me sthit raho.

English Summary(18th Dec 2017)
Sweet children, you are studying a very high study with the unlimited Father. It is in your intellects that you are the students of the Purifier, God, the Father, and that you are studying for the new world. 
Question:Which children receive a prize from the spiritual Government ?
 Answer:

Those who make the effort to make many others equal to themselves. Those who give the proof of service are given a very big prize by the spiritual Government. They claim a right to an elevated status for the future 21 births.
 Om Shanti 
Essence for Dharna:
1) Have a lot of value for this study. You mustn’t ask the Father for mercy etc. Continue to accumulate the powers of knowledge and yoga.
2) Be merciful. Never let bitter words emerge through your lips. Always speak sweetly. Definitely do the service of making others equal to yourself.
 Blessing:May you be a master bestower of happiness who becomes an embodiment of happiness and gives everyone happiness.
 To be aconfluence-aged Brahmin means to have no name or trace of sorrow because the children of the Bestower of Happiness are master bestowers of happiness. How can those who are master bestowers of happiness and embodiments of happiness experience sorrow themselves? They have stepped away in their intellects from the land of sorrow. They themselves are embodiments of happiness, and so they constantly give happiness to others. Just as the Father constantly gives happiness to every soul, so whatever is the Father’s task is also the task of the children. Even if someone is causing sorrow, you cannot cause sorrow. Your slogan is: Do not cause sorrow, do not accept sorrow.

 Slogan:Imbibe the balance of being cheerful and mature (serious) and remain in a constant and stable stage.
HINDI DETAIL MURALI


18/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


 मीठे बच्चे –''मीठे बच्चे - बेहद के बाप से तुम बहुत ऊंची पढ़ाई पढ़ रहे हो, बुद्धि में है पतित-पावन गॉड फादर के हम स्टूडेन्ट हैं, नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं''

 

प्रश्न:रूहानी गवर्मेन्ट से इज़ाफा किन बच्चों को मिलता है?

उत्तर: जो बहुतों को आप समान बनाने की मेहनत करते हैं। सर्विस का सबूत निकालते हैं उन्हें रूहानी गवर्मेन्ट बहुत बड़ा इज़ाफा देती है। वह भविष्य 21 जन्मों के लिए ऊंच पद के अधिकारी बनते हैं।

 

ओम् शान्ति।

 

बाप कहते हैं बच्चों को कि मेरे द्वारा तुम मीठे-मीठे बच्चे पढ़ाई पढ़ रहे हो। यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए और कोई ऐसा कह न सके कि हम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं। जितना अच्छी रीति पढ़ेंगे उतनी प्रालब्ध 21 जन्मों के लिए तुम्हारी जमा हो जायेगी। बेहद के बाप से बेहद की पढ़ाई पढ़ रहे हैं। यह बेहद की बहुत ऊंची पढ़ाई है। बाकी तो सब पाई-पैसे की पढ़ाई है। तो इस बेहद की पढ़ाई में जितना तुम पुरुषार्थ करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। तुम्हारी बुद्धि में सदैव यह बातें रहनी चाहिए कि हम पतित-पावन गॉड फादर के स्टूडेन्ट हैं और नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं तो तुमको कितना अच्छा पुरुषार्थ करना चाहिए कि हम पढ़कर पहले बाबुल के पास जायेंगे फिर अपनी-अपनी पढ़ाई अनुसार जाकर नई दुनिया में पद पायेंगे। वह है लौकिक पढ़ाई, यह है पारलौकिक पढ़ाई अर्थात् परलोक के लिए पढ़ाई। यह तो पुराना पतित लोक है। तुम जानते हो हम नर्कवासी से स्वर्गवासी बन रहे हैं। यह घड़ी-घड़ी याद पड़ना चाहिए तब तुम्हारे दिमाग में खुशी चढ़ेगी। शादी आदि में जाने से बहुत बच्चे भूल जाते हैं। पढ़ाई कभी भूलना नहीं चाहिए और ही खुशी रहनी चाहिए। हम भविष्य 21 जन्मों के लिए स्वर्ग के मालिक बनते हैं। जो अच्छी तरह बहुतों को आप समान बनाते हैं, वह फिर जरूर ऊंच पद पायेंगे। यह राज़ और कोई की बुद्धि में बैठ न सके। सर्विस करने का भी अक्ल होता है। डिपार्टमेंट अलग-अलग होती हैं। स्लाइड बनाने वालों को भी बाबा कहते हैं कि स्लाइड एक ही साइज़ में हो जो कोई भी प्रोजेक्टर में चल सके। पहले-पहले स्लाइड हो परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? तो वह समझ जायें कि परमपिता परमात्मा हमारा बाप है। उनसे वर्सा क्या मिलता है? फिर दिखाना है त्रिमूर्ति ब्रह्मा द्वारा हमको यह सूर्यवंशी पद मिलता है। तुम भी पुरुषार्थ कर रहे हो नई दुनिया के लिए। अभी तुम हो संगम पर, पावन दुनिया बनाते हो। तुम्हारी बुद्धि में अब स्मृति आ गई है। बरोबर हम 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवता थे। फिर राज्य गँवाया। बाकी यह राजाई आदि लेते हैं। वह सब हद की बातें हैं। तुम्हारी है बेहद की लड़ाई, श्रीमत पर तुम 5 विकार रूपी रावण के साथ लड़ते हो। तुम जानते हो ड्रामा में हार जीत का पार्ट है। हर 5 हजार वर्ष के बाद यह ड्रामा का चक्र फिरता है। तो अब तुम बच्चों को श्रीमत पर चलना पड़े, जिसको जो डायरेक्शन मिले। बच्चे कहते हैं हम समझते हैं परन्तु किसको समझा नहीं सकते। यह तो ऐसे हुआ जैसे समझा नहीं है। जितना खुद समझा हुआ है उतना ही पद पायेंगे। बुद्धि में स्वदर्शन चक्र फिरता ही रहे। स्वदर्शन चक्रधारी तुम बनते हो। दूसरे को अगर आप समान नहीं बनाया तो सर्विसएबुल नहीं ठहरे, इसलिए पूरा पुरुषार्थ करना चाहिए। औरों को भी सिखाना है। ब्राह्मणियों को हर एक के ऊपर मेहनत करनी है। टीचर्स बहुत मेहनत करती हैं तब तो इज़ाफा मिलता है। तुमको तो बहुत बड़ी गवर्मेंन्ट से इज़ाफा मिलता है। सर्विस का सबूत निकालना है। ग़फलत नहीं करनी चाहिए। यहाँ एक क्लास में हर प्रकार की पढ़ाई होती है। तुम जानते हो हम भविष्य में जाकर देवी-देवता बनेंगे। विनाश भी जरूर होना है। जैसे कल्प पहले स्वर्ग में मकान आदि बनाये थे वही फिर बनायेंगे। ड्रामा मदद करते हैं। वहाँ तो बड़े-बड़े महल बड़े-बड़े तख्त बनाते हैं। यहाँ थोड़ेही इतने बड़े महल सोने-चाँदी आदि के हैं। वहाँ तो हीरे-जवाहरात पत्थरों के मिसल होंगे। भक्ति में ही इतने हीरे-जवाहरात होते हैं तो सतयुग आदि में क्या नहीं होगा। भल करके साहूकार लोग यहाँ राधे-कृष्ण अथवा लक्ष्मी-नारायण आदि को सजाते हैं। सोने के जेवर आदि पहनाते हैं। बाबा को याद है - एक सेठ था उसने बोला लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर बनाता हूँ, उसके लिए नये जेवर बनाने हैं। उस समय तो बहुत सस्ताई थी। तो सतयुग में क्या होगा। भक्ति मार्ग में बहुत माल थे, जो सब लूटकर ले गये। अब तुम बच्चों को सारा मालूम पड़ गया है। यह पढ़ाई है बहुत ऊंची। छोटे-छोटे बच्चों को भी सिखलाना चाहिए। राजविद्या के साथ यह भी विद्या देते रहो। शिवबाबा की याद दिलाते रहो। चित्रों पर समझाओ। बच्चों का भी कल्याण करो। शिवबाबा स्वर्ग का रचयिता है। तुम शिवबाबा को याद करेंगे तो स्वर्ग के मालिक बनेंगे। अविनाशी ज्ञान का विनाश तो होता नहीं है। थोड़ा भी सुनाने से राजधानी में आ जायेंगे। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। वह फिर कहाँ गया? हम तुमको समझाते हैं गोया तुमको उस स्वर्ग के मालिक बना देंगे। सिखाने से सीख जायेंगे, मेहनत करनी है। फालतू बातों में टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। ग़फलत करने से बहुत पछतायेंगे। बाप धन कमाकर बच्चों को देकर जाते हैं। अभी तो सबका विनाश होना है। अभी भी कितने लड़ाई-झगड़े मौत आदि होते रहते हैं। यह कुछ नहीं है। अभी करोड़ों की अन्दाज़ में विनाश होगा, सब जल मर खत्म हो जाने हैं। कब्रिस्तान बनना है तब फिर परिस्तान बनेगा। कब्रिस्तान तो बड़ा है परिस्तान तो छोटा होगा। मुसलमान भी कहते हैं सब कब्रदाखिल हैं। खुदा आकर सबको जगाते हैं और वापिस ले जाते हैं। इस समय सब आत्मायें कोई न कोई रूप में हैं। कब्र में शरीर पड़ा है, बाकी आत्मा जाकर दूसरा शरीर लेती है। इस समय माया ने सबको कब्रदाखिल कर रखा है। सब मरे पड़े हैं। खत्म होने वाले हैं इसलिए किसी से दिल नहीं लगानी है। दिल लगानी है एक के साथ। आखरीन में तुम्हारा सबसे ममत्व मिट जायेगा। एक बाप को याद करना है बस। तुम समझते हो हम यह पढ़ाई भविष्य 21 जन्मों के लिए पतित-पावन बाप के द्वारा पढ़ रहे हैं। परमपिता परमात्मा मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, चैतन्य है। आत्मा भी चैतन्य है। जब तक आत्मा शरीर में न आये तो शरीर जड़ है। आत्मा ही चैतन्य है। अभी आत्मा को ज्ञान मिला है। हर एक आत्मा में अपना-अपना पार्ट नूँधा हुआ है। हर एक की एक्ट अपनी-अपनी है। वन्डरफुल ड्रामा है, इसको कुदरत कहा जाता है। इतनी छोटी सी आत्मा में कितना पार्ट नूँधा हुआ है। यह रूहानी बातें जो सुप्रीम रूह बैठ तुमको समझाते हैं। सैर कराते हैं, यह भी ड्रामा बना हुआ है, जो ड्रामा में नूँध है, उसका साक्षात्कार कराते रहते हैं। भल खेल पहले से ही अनादि बना हुआ है परन्तु मनुष्य नहीं जानते यह अनादि है। तुम तो सब कुछ जानते हो। जो कुछ होता है, एक सेकण्ड के बाद वह पास्ट हो जायेगा। जो पास्ट हो जाता है, तुम समझते हो यह ड्रामा में था। बाप ने समझाया है - सतयुग से लेकर क्या-क्या पार्ट हुआ है। यह बातें दुनिया नहीं जानती। बाप कहते हैं मेरी बुद्धि में जो नॉलेज है, वह तुमको दे रहा हूँ। तुमको भी आप समान बनाता हूँ। यह तो जानते हो सारी दुनिया भ्रष्टाचारी है। अब पहले-पहले पावन बनना और बनाना है। तुम्हारे सिवाए कोई पवित्र बना न सके।

अब बाप की श्रीमत पर चल दैवीगुण धारण करने हैं। बहुत मीठा बोलना है। कोई भी कड़ुआ बोल न निकले। सब पर रहम करना है। तुम सबको सिखला सकते हो - भगवानुवाच मनमनाभव। उनको यह पता नहीं है कि भगवान कौन है और उसने कब गीता सुनाई। तुम अभी समझते हो भगवानुवाच - अशरीरी बनो। देह के सब धर्म, मैं मुसलमान हूँ, पारसी हूँ, यह सब छोड़ दो। यह कौन कहते हैं? आत्मायें तो सभी आपस में भाई-भाई हैं। एक बाप के बच्चे हैं। आत्मायें अपने भाईयों को समझाती हैं कि बाप कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम मुक्तिधाम में जायेंगे। सब निर्वाणधाम जाने वाले हैं। दो अक्षर भी याद कर समझाना चाहिए। भगवान सबका एक है। कृष्ण तो हो न सके। अब बाप कहते हैं देह के सभी धर्म त्याग मामेकम् याद करो। आत्मा प्रकृति का आधार लेकर यहाँ पार्ट बजाती है। क्राइस्ट के लिए भी कहते हैं कि अभी वह बेगर है। सभी की पुरानी जुत्ती है। क्राइस्ट ने भी जरूर पुनर्जन्म लिया होगा। अभी तो लास्ट जन्म में होगा। इन मैसेन्जर्स को भी बाप ही आकर जगाते हैं। पतितों को पावन बनाने वाला एक ही बाप है। सभी को पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे आना ही है। अभी कलियुग का अन्त है। आगे चलकर यह भी मानेंगे। आवाज निकलेगा कि बाप आया हुआ है। महाभारी लड़ाई में भगवान का नाम है ना। परन्तु नाम बदली कर दिया है। विनाश और स्थापना यह तो भगवान का ही काम है। बाप ही आकर स्वर्ग के द्वार खोलेंगे। तुम बुलाते हो बाबा आओ, आकर वैकुण्ठ का द्वार खोलो। तुम्हारे द्वारा बाप आकर द्वार खोलते हैं। तुम्हारा नाम बाला है - शिव शक्ति सेना। तुमको पाण्डव क्यों कहते हैं क्योंकि तुम रूहानी पण्डे हो, स्वर्ग का रास्ता बताते हो। बाप बैठ सभी शास्त्रों का सार बताते हैं। इन बातों को समझेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले समझा है। हम आत्मायें पण्डे हैं सबको शान्तिधाम में ले जायेंगे फिर सुखधाम में आना है। दु:खधाम का विनाश होना है - इसके लिए यह महाभारत लड़ाई है। तुम्हारी बुद्धि में सारी डिटेल है। मनमनाभव, मध्याजीभव इनमें सारा ज्ञान आ जाता है। जैसे बाबा नॉलेजफुल है, तुम बच्चे भी बनते हो। सिर्फ दिव्य दृष्टि की चाबी मैं अपने पास रखता हूँ। इसके बदले फिर तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ। मैं नहीं बनता हूँ। यह फ़र्क रहता है। दिव्य दृष्टि का पार्ट भी तुम्हारे काम में आता है। भावना के भूगरे (चने) दे देते हैं। बाबा ने समझाया है - जगत अम्बा का कितना मेला लगता है। लक्ष्मी का इतना मेला नहीं लगता। कितना फ़र्क है। लक्ष्मी के चित्र को तिजोरी में रखते हैं कि धन मिलेगा। भक्ति मार्ग में मिलते हैं भूगरे (चने) ज्ञान में मिलते हैं हीरे। लक्ष्मी से सिर्फ धन मांगते हैं। उनको ऐसे नहीं कहेंगे कि बच्चा दो, तन्दरूस्ती दो। जगत अम्बा के पास सब आशायें ले जाते हैं।

अभी तुम समझते हो हम पूज्य थे, अब पुजारी बने हैं फिर पूज्य बनते हैं। ज्ञान से रोशनी मिल गई है बच्चों को। तुम कितने निराले बन गये हो। ज्ञान अंजन सतगुरू दिया... तुम ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो। बुद्धि में आ गया है तो तुमको इस पढ़ाई का कितना कदर रहना चाहिए। वह पढ़ाई तुम जन्म-जन्मान्तर पढ़ते आये हो, मिलता क्या है? भूगरे (चने)। यह पढ़ाई एक जन्म पढ़ने से तुमको हीरे-जवाहरात मिलते हैं। अब पुरुषार्थ करना तो तुम बच्चों का काम है। नहीं पढ़ते हैं तो इसमें टीचर क्या करेंगे? कृपा की तो यहाँ बात ही नहीं। संगम पर देवताओं की सारी राजधानी स्थापन हो रही है। योगबल से तुम अपने विकर्मों का विनाश करते हो और ज्ञान बल अर्थात् नॉलेज से तुम कितना ऊंच बनते हो। ज्ञान सागर और ज्ञान नदियों द्वारा स्नान करने से सद्गति होती है। बच्चों को समझाने की युक्तियाँ मिलती रहती हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार जो कल्प पहले समझाया है वही समझाते रहते हैं। बच्चे भी नम्बरवार आते रहते हैं। ब्राह्मण कुल की वृद्धि होनी ही है। तुम बच्चों को महादानी बनना है। जो कोई आये उनको कुछ न कुछ समझाते रहो। शंखध्वनि करनी है। यहाँ जितनी तुम धारणा कर सकते हो उतनी घर में नहीं होती। शास्त्रों में भी मधुबन का गायन है वहाँ मुरली बजती है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) पढ़ाई का बहुत कदर रखना है। बाप से कृपा आदि नहीं मांगनी है। ज्ञान और योगबल जमा करना है।

2) रहमदिल बनना है। मुख से कभी कड़ुवे बोल नहीं बोलने हैं। सदा मीठा बोलना है। आप समान बनाने की सेवा जरूर करनी है।

 

वरदान:सुख स्वरूप बन सबको सुख देने वाले मास्टर सुखदाता भव!

संगमयुगी ब्राह्मण अर्थात् दुख का नाम-निशान नहीं क्योंकि सुखदाता के बच्चे मास्टर सुखदाता हो। जो मास्टर सुखदाता, सुख स्वरूप हैं वह स्वयं दुख में कैसे आ सकते हैं। बुद्धि से दुखधाम का किनारा कर लिया। वे स्वयं तो सुख स्वरूप रहते ही हैं लेकिन औरों को भी सदा सुख देते हैं। जैसे बाप हर आत्मा को सदा सुख देते हैं ऐसे जो बाप का कार्य वो बच्चों का कार्य। कोई दुख दे रहा है तो भी आप दु:ख नहीं दे सकते, आपका स्लोगन है ''ना दु:ख दो, ना दु:ख लो।''

 

स्लोगन:हर्षित और गम्भीर बनने के बैलेन्स को धारण कर एकरस स्थिति में स्थित रहो।

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Details ( Page:- Murali 19th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 19.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban

Mithe bacche- Mithe bacche -Koi kitna bhi goonvan ho,mitha ho,dhanvan ho tumhe uski taraf aakarshit nahi hona hai,jism ko yaad nahi karna hai.

 Q-Jin baccho ko knowledege mili hai unke mukh se Baap ke prati kaun se mithe bol nikalte hain?

A- Oho!Baba aapne to hume jiyadaan se diya.Mithe Baba aapne hume shristi ke adi-madhya-ant ki knowledge dekar,sarv dukho se chooda diya to kitni shukriya nikalni chahiye.

Q- Ant ke samay Baap ke sivaye kisi me bhi rag na jaye uske liye kya karna hai?

A-Baba kahe bacche-koi bhi chiz lobh ke vas apne paas extra nahi rakhni hai.Extra rakhenge to usme rag jayegi.Baap ki yaad bhool jayegi.

Dharana ke liye mukhya saar:-

1)Gyan-Yog se sabko madad karni hai.Double ahinshak banna hai.Kisi ko bhi dukh nahi dena hai.

2)Nastmoha banna hai.Kisi bhi chiz me buddhi ki rag nahi rakhni hai.Ek Baap ki yaad sada rahe-iski practise karni hai.

 Vardan:-Divya buddhi dwara Trikaldarshi sthiti ka anubhav karne wale Safaltamurt bhava.

Slogan:-Yathart nirnay dena hai to roohani fakoor(nashe) dwara befikra sthiti me sthit raho.

English Summary ( 19th Dec 2017 )
Sweet children, no matter how virtuous, sweet or wealthy someone is, you must not be attracted to anyone. You mustn't remember any body.
 Question:Which sweet words for the Father emerge through the lips of the children who have received knowledge?

 Answer:Oho Baba! You have given us the donation of life. Sweet Baba, by giving us the knowledge of the beginning, the middle and the end of the world, You have liberated us from all sorrow. So, how much we should thank You?

 Question:What should you do so that you are not pulled by anyone except the Father at the end?

Answer:Baba says: Children, don't keep anything extra with yourself out of greed. If you keep anything extra, that will pull you and you will forget to have remembrance of the Father.
 Song:Have patience o mind! Your days of happiness are about to come. 
Om Shanti

 Essence for Dharna:
1) Help everyone with knowledge and yoga. Become doubly non-violent. Don't cause anyone sorrow.
2) Become a destroyer of attachment. Your intellect should not be pulled by anything. Practise having constant remembrance of the one Father.
 Blessing:May you experience the trikaldarshi stage with your divine intellect and become an image of success.
The special gift for your Brahmin birth is a divine intellect. With this divine intellect, you can clearly know the Father, yourself and the three aspects of time. It is only with the divine intellect that you can imbibe all powers by having remembrance. With the divine intellects you will experience the stage of being trikaldarshi. The three aspects of time is clear in front of them. It is also said: Whatever you think, whatever you say, consider the before and after effects of it. By performing actions knowing the consequences of them, you will definitely have success.
 Slogan:In order to make an accurate decision, remain stable in a carefree stage through spiritual intoxication.
HINDI DETAIL MURALI


19/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


 मीठे बच्चे –'मीठे बच्चे - कोई कितना भी गुणवान हो, मीठा हो, धनवान हो तुम्हें उसकी तरफ आकर्षित नहीं होना है, जिस्म को याद नहीं करना है''

 

प्रश्न: जिन बच्चों को नॉलेज मिली है उनके मुख से बाप के प्रति कौन से मीठे बोल निकलते हैं?

 

उत्तर: ओहो! बाबा आपने तो हमें जीयदान दे दिया। मीठे बाबा आपने हमें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज देकर, सर्व दु:खों से छुड़ा दिया तो कितनी शुक्रिया निकलनी चाहिए।

 प्रश्न:अन्त के समय बाप के सिवाए किसी में भी रग न जाए उसके लिए क्या करना है?

उत्तर:बाबा कहे बच्चे - कोई भी चीज़ लोभ के वश अपने पास एक्स्ट्रा नहीं रखनी है। एक्स्ट्रा रखेंगे तो उसमें रग जायेगी। बाप की याद भूल जायेगी।

गीत:-धीरज धर मनुवा.....  ओम् शान्ति।

 बच्चों को धीरज कौन दे रहा है? बच्चों की बुद्धि झट बेहद के बाप तरफ चली जाती है। सो भी सिर्फ इस समय ही तुम बच्चों की बुद्धि जाती है। यूँ तो बेहद बाप की तरफ बहुतों की बुद्धि जाती है। परन्तु उन्हों को ये मालूम ही नहीं है कि यह संगमयुग है। बाप आया हुआ है, सबको एक ही बार पता तो नहीं पड़ सकता। बच्चे बाप का बनें तो मालूम पड़े। अब तुम बच्चों ने बाप को जाना है। जानते हो बाबा आया हुआ है। बेहद का वर्सा दे रहे हैं, जो 5 हजार वर्ष पहले तुमको दिया था। वह आते ही हैं बच्चों को बेहद स्वर्ग का वर्सा देने। वह बेहद का बाप होते हुए फिर पढ़ाते भी हैं। भगवान यानि बाप फिर भगवानुवाच अर्थात् पढ़ाते हैं। पढ़ाते क्या हैं? वह भी तुम बच्चे समझते हो। हम बाप के सम्मुख बैठे हैं। बाबा कोई शास्त्र तो पढ़ा हुआ नहीं है। यह दादा पढ़ा हुआ है। उनको कहा ही जाता है ज्ञान का सागर, आलमाइटी अथॉरिटी। खुद भी कहते हैं मैं सभी वेदों, शास्त्रों आदि को अच्छी रीति जानता हूँ - यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री हैं। यह मेरे रचे हुए नहीं हैं। पूछा जाता है यह शास्त्र कब से पढ़ते आये हो? तो कहते हैं यह परम्परा से चला आया है। बाप कहते हैं मेरे को तो कोई पढ़ाने वाला नहीं है। न मेरा कोई बाप है और सब गर्भ में प्रवेश करते हैं, माता की परवरिश लेते हैं। मैं तो गर्भ में आता ही नहीं हूँ, जो माता की परवरिश लूँ। मनुष्य की आत्मा गर्भ में जाती है। सतयुग के लक्ष्मी-नारायण ने भी तो गर्भ से जन्म लिया। तो वह भी मनुष्य ठहरे। मैं तो इस शरीर में आकर प्रवेश करता हूँ, ड्रामा प्लैन अनुसार कल्प पहले मुआफिक। यह अक्षर और कोई जानते नहीं। कल्प की आयु का ही किसको पता नहीं है। बाप ही बैठ समझाते हैं मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, शिक्षक भी हूँ, सतगुरू भी हूँ। तुम जानते हो यह बाबा मिलकियत देने वाला है। बाबा स्वर्ग की बादशाही देने आया है। नर्क की राजाई थोड़ेही देंगे! यह बुद्धि में रहना चाहिए कि बेहद का बाप हमको राजयोग सिखला रहे हैं। बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। कहते हैं मेरी मत पर चलो, मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ। फिर द्वापर से तुम रावण की मत पर चलते हो। सतयुग में तो कोई मनुष्य की मत गति सद्गति के लिए मिलती नहीं। न दरकार है। कलियुग में सब गति सद्गति के लिए मत मांगते हैं। जानते हैं हम कोई समय स्वर्ग में थे, पावन थे, तब तो पुकारते हैं - हे पतित-पावन, हे सद्गति दाता हमको सद्गति दो। सतयुग में यह रड़ी नहीं मारी जाती। अब तुम जानते हो बाबा आया हुआ है। बहुत सरलता से राजयोग और सहज ज्ञान की मत देते हैं। उनकी श्रीमत है। ऊंचे ते ऊंचा है भगवान। उनसे ऊंचा कोई है नहीं, और वह हमारा रूहानी बाप है। रूहानी फादर होने के कारण वह रूहों को ही ज्ञान देते हैं, जिस्मानी फादर होने से बच्चे जिस्मानी नॉलेज उठाते हैं इसलिए बाप कहते हैं - आत्म-अभिमानी बनो और बाप को याद करो। कोई भी जिस्मानी याद नहीं रहनी चाहिए। तुम आत्मा हो, मनुष्य भल कितना भी अच्छा हो, धनवान हो, मीठा हो तो भी देहधारी को याद नहीं करना। एक परमपिता परमात्मा को ही याद करना। कोई साहूकार का बच्चा होगा तो बाप को ही याद करेगा। गाँधी को वा शास्त्री आदि को थोड़ेही याद करेगा। सबसे जास्ती याद परमपिता परमात्मा को करते हैं फिर कोई लक्ष्मी-नारायण को, कोई राधे-कृष्ण को भी करते हैं। समझते हैं यह होकर गये हैं। उन्हों की हिस्ट्री-जॉग्राफी भी है। ऊंचे ते ऊंचा है बाप, वह फिर आयेगा, जरूर वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होगी। कलियुग के बाद फिर सतयुग आयेगा। परन्तु यह सिवाए तुम बच्चों के और किसको भी मालूम नहीं। सिर्फ कहने मात्र कहते हैं - हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट। समझते कुछ भी नहीं। पहले तुम भी ऐसे थे। समझते थे बरोबर लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, परन्तु कितना समय चला, क्या हुआ फिर वह कहाँ चले गये, कुछ भी पता नहीं था। अभी भी नम्बरवार अच्छी रीति धारण कर श्रीमत पर चलते हो - यह भी ठीक है। मन्सा-वाचा-कर्मणा मदद देते हैं। ज्ञान और योग की मदद से बहुतों का कल्याण करेंगे।

तुम शक्ति सेना डबल अहिंसक हो। तुम्हारे में कोई भी हिंसा नहीं है। तुम किसको भी दु:ख नहीं देते हो। हिंसा अर्थात् दु:ख देना। घूंसा मारना, तलवार चलाना वा काम कटारी चलाना - यह सब दु:ख देना है। तुम कोई भी प्रकार का दु:ख नहीं देते हो इसलिए अहिंसा परमोधर्म कहा जाता है। मनुष्य तो सब हिंसा करते हैं। है ही रावण राज्य। मनुष्यों ने तो श्रीकृष्ण के चरित्रों में भी हिंसा दिखा दी है। तुम बच्चे जानते हो श्रीकृष्ण तो राजकुमार था, उनके ऐसे चरित्र वा जीवन कहानी की बात नहीं। चरित्र हैं ही ईश्वर के। वही रत्नागर, सौदागर, ज्ञान का सागर, जादूगर है। अरे, निराकार परमात्मा फिर सौदा कैसे करेगा? सौदागर तो मनुष्य होगा ना। इन सब बातों को तुम जानते हो तो कैसे सौदागर और रत्नागर है। उनको सब क्यों याद करते हैं? हे पतित-पावन, सर्व के सद्गति दाता, दु:ख हर्ता सुखकर्ता। महिमा भी एक की है। यह महिमा न तो सूक्ष्मवतन वासी, न स्थूलवतन वासी की हो सकती है। यह महिमा है मूलवतनवासी की। ऊंचे ते ऊंच है बाप, हम आत्मायें उनके बच्चे हैं। हम सब नम्बरवार पार्ट बजाने आते हैं। बाप कहते हैं - यह जो नॉलेज तुमको सुनाता हूँ - वह प्राय:लोप हो जाती है। वह गीतायें तो ढेर हैं। फिर भी पुरानी गीतायें निकलेंगी। तुम्हारे कागज थोड़ेही निकलेंगे। गीता बहुत भाषाओं में हैं। ऊंचे ते ऊंची गीता है परन्तु सब बनाई है मनुष्यों ने, यथार्थ तो है नहीं इसलिए सब अन्धेरे में हैं, तब गाया जाता है ज्ञान सूर्य प्रगटा... इस सूर्य की महिमा नहीं। ज्ञान सूर्य की महिमा है। यह सूर्य धूप देता, सागर पानी देता, उनके नाम इन पर, इनके नाम उन पर लगा दिये हैं। ज्ञान सागर को ही ज्ञान सूर्य कहते हैं। तुम जानते हो हमारा अन्धियारा अब दूर हो गया है। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को तुम ही जानते हो। जब रचयिता के पार्ट को जानते हो तो औरों के पार्ट को भी जरूर जानते होंगे। तुमको नॉलेज मिल रही है। तुम जानते हो यह बाबा बहुत प्यारा है। हमको जीयदान देते हैं। दु:ख से छुड़ाते हैं। काल के चम्बे से छुड़ाते हैं। कोई मरने से बच जाते हैं - कहते हैं डाक्टर ने जीयदान दिया। तुमको तो एक ही बार ऐसा जीयदान मिलता है - जो तुम कभी बीमार नहीं होंगे, फिर यह नहीं कहना पड़ेगा कि फलाने ने जीयदान दिया। यह है बिल्कुल नई बात।

अभी तुम जीते जी बाप के बने हो। कोई-कोई को फिर माया रावण अपनी तरफ खींच लेती है। उसे कहेंगे रावण रूपी काल खा गया। ईश्वरीय गोद में आकर फिर बदलकर आसुरी गोद में चले जाते हैं। काल ने नहीं खाया परन्तु जीते जी ईश्वर के बने, फिर जीते जी रावण के बन पड़ते हैं। यहाँ धर्मात्मा बने फिर वहाँ जाकर अधर्मी बन जाते हैं। यहाँ संगम पर धर्म का राज्य है, वहाँ अधर्म का राज्य है। सतयुग में है ही एक धर्म। कलियुग में है अधर्म का राज्य, कौरव राज्य। पाण्डवों के साथ कहते हैं कृष्ण था। तुम्हारे साथ तो शिवबाबा है। जुआ की बात नहीं। राजाई न कौरवों की है, ना पाण्डवों की है। बाप आकर धर्म का राज्य स्थापन करते हैं। चाहते भी हैं रामराज्य हो। हम स्वर्गवासी बने अर्थात् यह नर्क है। परन्तु किसको सीधा नर्कवासी कहें तो बिगड़ पड़ते हैं। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं। बेहद का बाप निराकार है। बेहद के बाप को ही भगवान कहा जाता है। हद के बाप को भगवान थोड़ेही कहेंगे। कृष्ण को थोड़ेही ज्ञान सागर, पतित-पावन कहेंगे। उनकी महिमा सिर्फ तुम ब्राह्मण जानते हो। तुमको बाप आकर आप समान बनाते हैं। बाप भी जानते हैं, तुम बच्चे भी जान जाते हो, वर्सा मिल जाता है। जैसेकि लौकिक बाप से बच्चों को वर्सा मिलता है। वह तो अलग-अलग है। यहाँ तुम समझते हो हम बेहद के बाप से वर्सा पा रहे हैं। ऐसा कोई स्कूल वा सतसंग होगा नहीं, जहाँ सब कहें हम बेहद के बाप से वर्सा लेने आये हैं। यहाँ बाप राजयोग सिखलाते हैं। कहते हैं तुम नर से नारायण बनेंगे। सो जरूर संगमयुग अर्थात् कलियुग अन्त और सतयुग आदि का संगम होगा तब तो तुम पुरुषार्थ कर नर से नारायण बनेंगे। यह राजयोग हम बाबा से सीख रहे हैं - नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने के लिए। नर-नारायण का मन्दिर भी बनाते हैं। उनको 4 भुजायें देते हैं क्योंकि साथ में हैं। नारी लक्ष्मी का फिर मन्दिर नहीं है। नारी लक्ष्मी को दीपमाला पर बुलाते हैं। उनको महालक्ष्मी कहते हैं। तुम लक्ष्मी की मूर्ति 4 भुजाओं के सिवाए नहीं देखेंगे। जिसको पूजते हैं, यह युगल विष्णु का रूप है, इसलिए 4 भुजायें दी हैं। यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। मनुष्य तो कुछ जानते नहीं। भगवान को ढूँढते रहते हैं। धक्का खाते रहते हैं। भगवान तो है ही ऊपर फिर ढूंढने की क्या दरकार है। मन्दिर में जो कृष्ण का चित्र है वह चित्र घर में रख क्यों नहीं पूजते? खास मन्दिर में ही क्यों जाते हैं? मन्दिर में जायेंगे, पैसे रखेंगे, दान करेंगे। घर में दान किसको करेंगे? तो यह सब भक्ति मार्ग की रस्में हैं। बाप कहते हैं तुमको कोई भी चित्र रखने की दरकार नहीं। क्या तुम शिवबाबा को नहीं जानते हो जो चित्र रखते हो? क्या चित्र रखने से याद कर सकते हो? बाबा जीता है फिर बच्चे चित्र क्यों रखेंगे? बाप तुमको ज्ञान दे रहा है फिर चित्र क्या करेंगे? बूढ़े हैं याद भूल जाती है इसलिए चित्र दिया जाता है। बाकी और कोई भी देहधारी को याद करते रहेंगे तो अन्त समय वही याद आयेगा। कुछ न कुछ रग है तो वह तुम्हारे पीछे पड़ेगा। फिर भल कितने भी शिवबाबा के चित्र रखो। अगर रग और तरफ होगी तो वह याद जरूर आयेगा इसलिए बाप कहते हैं बच्चे पूरा नष्टोमोहा हो जाओ। किसी भी चीज़ में मोह होगा, 2-4 जोड़ी जूते होंगे तो वह याद आयेंगे इसलिए कहा जाता है ज्यादा कोई भी वस्तुएं नहीं रखो। नहीं तो बुद्धि उसमें जायेगी। सिवाए बाप के और कोई को याद न करो। लोभ होता है ना - हम अच्छे-अच्छे वस्त्र रखें, 2-4 जूते रखें, घड़ी रखें। थोड़े पैसे रखें। रखेंगे तो वह याद आयेगा। बाबा को मालूम होना चाहिए - तुम्हारे पास क्या रखा है। वास्तव में तुमको कुछ भी रखना नहीं है, जो मिलता है वही रखना है। एक बाप के सिवाए और कुछ भी याद न रहे। इतनी प्रैक्टिस करनी है - तब ही विश्व के मालिक बनेंगे। यह कोई नहीं समझते कि राधे-कृष्ण विश्व के मालिक थे, सिर्फ कहते हैं भारत में राज्य करके गये हैं। जमुना के कण्ठे पर इनके महल थे। परन्तु वह सारे विश्व के मालिक थे। यह सिर्फ तुम्हारी बुद्धि में है। बेहद का बाप बेहद का मालिक बनाने आया है। प्रजा और राजा में फ़र्क बहुत है। यहाँ तुम नर से नारायण बनने आये हो तो पूरा फालो करो। फकीर से अमीर बनना है। इतना पुरुषार्थ करना चाहिए। खुशी से पढ़ना चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) ज्ञान-योग से सबको मदद करनी है। डबल अहिंसक बनना है। किसी को भी दु:ख नहीं देना है।

2) नष्टोमोहा बनना है। किसी भी चीज़ में बुद्धि की रग नहीं रखनी है। एक बाप की याद सदा रहे- इसकी प्रैक्टिस करनी है।

 वरदान:दिव्य बुद्धि द्वारा त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव करने वाले सफलतामूर्त भव!

ब्राह्मण जन्म की विशेष सौगात दिव्य बुद्धि है। इस दिव्य बुद्धि द्वारा बाप को, अपने आपको और तीनों कालों को स्पष्ट जान सकते हो। दिव्य बुद्धि से ही याद द्वारा सर्व शक्तियों को धारण कर सकते हो। दिव्य बुद्धि त्रिकालदर्शी स्थिति का अनुभव कराती है, उनके सामने तीनों ही काल स्पष्ट होते हैं। कहा भी जाता है जो सोचो, जो बोलो, आगे पीछे का सोच समझकर करो। परिणाम को जानकर कर्म करने से सफलता अवश्य होती है।

 स्लोगन:यथार्थ निर्णय देना है तो रूहानी फखुर (नशे) द्वारा बेफिक्र स्थिति में स्थित रहो।

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Details ( Page:- Murali 20th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 20.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban

Mithe bacche- Mithe bacche -Doordesh se Baap aaye hain dharm aur rajya dono ki sthapana karne,jab Devta dharm hai to Rajayi bhi Devtaon ki hai,dusra dharm wa rajya nahi.

Q-Satyug me sab punya aatmayein hain,koi paap aatma nahi,uski nishaani kya hai?

A- Wahan koi karmbhog(bimari) adi nahi hota hai.Yahan bimariyon adi siddh karti hain ki aatmayein paapo ki saza karmbhog ke roop me bhog rahi hain,jise he past ka hisaab-kitaab kaha jata hai.

Q- Baap ke kis ishaare ko dooradeshi bachche he samajh sakte hain?

A- Baap ishara karte hain-bachche tum buddhiyog ki doud lagao.Yahan baithe Baap ko yaad karo.Pyaar se yaad karenge to tum Baap ke gale ka haar ban jayenge.Tumhare prem ke aanshu mala ka dana ban jate hain.

 Dharana ke liye mukhya saar:-

1)Dooradeshi banna hai.Yaad ki yatra se biakrmo ka binash karna hai.Yatra par koi bhi paap karm nahi karne hain.Mahaveer ban maya par jeet pani hai.Glani se darna nahi hai,kalangidhar banna hai.

Vardan:-Sankalp roopi beej dwara vani aur karm me siddhi prapt karne wale Siddhi Swaroop bhava.

Slogan:-Yog agni se byarth ke kichde ko jala do to buddhi swachh ban jayegi.

English Summary ( 20th Dec 2017 )
Sweet children, the Father has come from the faraway land to establish both a religion and a kingdom. When the deity religion exists, it is the kingdom of deities. There is no other religion or kingdom at that time."
Question:In the golden age, all are charitable souls; there are no sinful souls. What indicates that?
Answer:No one there suffers for his or her actions in the form of illness. Illnesses etc. here prove that souls are experiencing punishment for their sins in the form of suffering for their karma. That is called the karmic accounts of the past.
Question:Which of the Father’s signals can only far-sighted children understand?
Answer:The Father signals: Children, while sitting here, race with your intellects’ yoga and remember the Father. If you remember Him with love, you will become a garland around the Father’s neck. Your tears of love become beads of the rosary.
Song:At last the day for which we had been waiting has come. Om Shanti

Essence for Dharna:
1) Become far-sighted. Have your sins absolved with the pilgrimage of remembrance. Never perform sinful actions while on the pilgrimage.
2) Become a mahavir and conquer Maya. Don't be afraid of defamation. Become Kalangidhar.
Blessing:May you be an embodiment of success who achieves success in your words and deeds with the seed of thoughts.
The thoughts that you have in your intellect are the seeds whereas the words and deeds are the expansion of those seeds. If you check your thoughts, that is, the seeds, while remaining stable in the trikaldarshi stage and make them powerful, you will then experience easy success automatically in your words and deeds. If the seeds are not powerful, your words and deeds will not then have the power to be successful. You definitely did become embodiments of success in the living form for this is why other souls attain success through your non-living images.
 Slogan:Burn the rubbish of waste in the fire of yoga and your intellect will become clean.

HINDI DETAIL MURALI


20/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


 मीठे बच्चे –''मीठे बच्चे - दूरदेश से बाप आये हैं धर्म और राज्य दोनों की स्थापना करने, जब देवता धर्म है तो राजाई भी देवताओं की है, दूसरा धर्म वा राज्य नहीं''

 प्रश्न:सतयुग में सब पुण्य आत्मायें हैं, कोई पाप आत्मा नहीं, उसकी निशानी क्या है?

उत्तर:वहाँ कोई कर्मभोग (बीमारी) आदि नहीं होता है। यहाँ बीमारियाँ आदि सिद्ध करती हैं कि आत्मायें पापों की सज़ा कर्मभोग के रूप में भोग रही हैं, जिसे ही पास्ट का हिसाब-किताब कहा जाता है।

 
प्रश्न:बाप के किस इशारे को दूरादेशी बच्चे ही समझ सकते हैं?

उत्तर:बाप इशारा करते हैं - बच्चे तुम बुद्धियोग की दौड़ी लगाओ। यहाँ बैठे बाप को याद करो। प्यार से याद करेंगे तो तुम बाप के गले का हार बन जायेंगे। तुम्हारे प्रेम के ऑसू माला का दाना बन जाते हैं।

गीत:-आखिर वह दिन आया आज.....  ओम् शान्ति।

 

बच्चों ने गीत सुना। गीत का अर्थ समझा। भारत तो बहुत बड़ा है। सारे भारत को नहीं पढ़ाया जा सकता है। यह तो पढ़ाई है - कॉलेज खुलते जायेंगे। यह हुई बेहद के बाप की युनिवर्सिटी। इनको कहा जाता है - पाण्डव गवर्मेन्ट। गवर्मेन्ट कहा जाता है सावरन्टी को। अब तुम बच्चे जानते हो - सावरन्टी स्थापन हो रही है। धर्म पलस सावरन्टी। रिलीजो पोलीटिकल... देवी-देवता धर्म भी स्थापन हो रहा है और कोई भी धर्म वाले राजाई नहीं स्थापन करते। वह सिर्फ धर्म स्थापन करते हैं। बाबा कहते हैं मैं आदि सनातन धर्म और राजाई स्थापन कर रहा हूँ, इसलिए रिलीजो पोलीटिकल कहा जाता है। बच्चों को बहुत दूरादेश बुद्धि बनना चाहिए। बाप दूरदेश से आये हुए हैं। यूँ दूरदेश से तो सब आत्मायें आती हैं। तुम भी दूरदेश से आये हो। नया धर्म जो स्थापन करने आते हैं - उनकी आत्मायें दूर से आती हैं। वह है धर्म स्थापक और इसको कहा जाता है धर्म और सावरन्टी स्थापक। भारत में सावरन्टी थी। महाराजा-महारानी थे। महाराजा श्री नारायण, महारानी श्री लक्ष्मी। तो अब तुम बच्चे कहेंगे हम श्रीमत पर चल रहे हैं। बाबा, जिसको हम सब भारतवासी पुकारते आये हैं कि आओ - आकर पुरानी दुनिया को बदल नई सुख की दुनिया स्थापन करो। पुराने घर और नये घर में अन्तर तो होता है ना। बुद्धि में नया मकान ही याद रहता है। आजकल तो मकान बहुत फैशनबुल बनते हैं। ख्याल करते रहते हैं - ऐसा-ऐसा मकान बनायें। तुम जानते हो हम अपना धर्म और राजाई स्थापन कर रहे हैं। स्वर्ग में हम हीरे-जवाहरों के महल बनायेंगे। दूसरे धर्म वाले ऐसे नहीं समझते। जैसे क्राइस्ट क्रिश्चियन धर्म स्थापन करने आया, यह उस समय नहीं समझते, जब वृद्धि होती है तब नाम रखते हैं क्रिश्चियन धर्म। इस्लामी आदि धर्म कोई भी निशानी वा नाम नहीं रहता। तुम्हारी निशानी शुरू से लेकर अभी तक चलती रहती है। लक्ष्मी-नारायण के चित्र हैं - यह भी जानते हो तो इन्हों का राज्य सतयुग में था। तुमको यह ज्ञान वहाँ नहीं होगा कि पास्ट में किसकी राजधानी थी, फ्यूचर में किसकी राजधानी होगी। सिर्फ प्रेजेन्ट को जानते हैं, बस। अभी तुम पास्ट, प्रेजेन्ट, फ्युचर को जानते हो। पहले-पहले हमारा धर्म था, फिर यह धर्म आये हैं। संगम पर ही बाप बैठ समझाते हैं। अभी तुम त्रिकालदर्शी बन गये हो। सतयुग में त्रिकालदर्शी नहीं होंगे। वहाँ तो राजाई करते रहेंगे और धर्मों का नाम-निशान नहीं रहेगा। अपनी मौज में राजाई करते रहेंगे।

अभी तुम सारे चक्र को जानते हो। मनुष्य यह तो नहीं जानते हैं कि बरोबर देवी-देवता धर्म था। परन्तु वह कैसे स्थापन हुआ, कितना समय चला - यह नहीं जानते हैं। तुम जानते हो सतयुग में इतने जन्म राज्य किया फिर त्रेता में इतने जन्म लिये। इन्हों को भी जानना पड़ेगा। बच्चे जानते हैं बरोबर बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं। तुम जानते हो कृष्ण की आत्मा का यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है, इनमें ही आकर प्रवेश किया है। इनका नाम ब्रह्मा जरूर चाहिए। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा। यह त्रिमूति की नॉलेज बहुत सिम्पुल है। यह निराकार बाप शिव, इनसे यह वर्सा मिलता है। निराकार से वर्सा कैसे मिला - यह प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण सो देवता बन रहे हैं। फिर वही देवतायें 84 जन्मों के बाद ब्राह्मण बनते हैं। यह चक्र बुद्धि में रहना चाहिए। हम सो ब्राह्मण, ब्रह्मा के बच्चे सो रूद्र (शिव) के बच्चे। हम आत्मायें निराकारी बच्चे हैं। बाप को याद करते हैं। इन चित्रों पर समझाना बहुत सहज है। तपस्या कर रहे हैं फिर सतयुग में आयेंगे। तुम्हारी बुद्धि में रहना चाहिए - हम मनुष्य से देवता बन रहे हैं। फिर देवता धर्म का बादशाह बन राज्य करेंगे। योग से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। अगर अभी भी पाप करते रहेंगे तो क्या बनेंगे। यात्रा पर जब जाते हैं तो पाप नहीं करते हैं। पवित्र भी जरूर रहते हैं। समझते हैं देवताओं के पास जाते हैं। मन्दिर में भी हमेशा स्नान करके जाते हैं। स्नान क्यों करते हैं? एक तो विकार में जाते हैं, दूसरा लेट्रीन में जाते हैं। फिर स्वच्छ बनकर देवताओं का दर्शन करने जाते हैं। यात्रा पर कब पतित नहीं बनते। 4 धामों की परिक्रमा पावन होकर देते हैं। तो पवित्रता है मुख्य। देवतायें भी अगर पतित होते तो फ़र्क क्या रहा। देवतायें पावन हैं, हम पतित हैं। तुम जानते हो बाबा ने हमको ब्रह्मा द्वारा गोद लिया है। यूँ तो तुम सब आत्मायें हमारे बच्चे हो, परन्तु तुमको पढ़ाऊं कैसे? राजयोग कैसे सिखलाऊं? तुम मीठे-मीठे बच्चों को स्वर्ग का मालिक कैसे बनाऊं? तुम जानते हो बाबा नई दुनिया स्थापन करते हैं। तो भगवान जरूर बच्चों को लायक बनाकर वर्सा देंगे। कहाँ लायक बनायेंगे? संगमयुग में। बाप कहते हैं, मैं संगम पर आता हूँ। यह बीच का ब्राह्मण धर्म ही अलग हो जाता है। कलियुग में है शूद्र धर्म। सतयुग में है देवता धर्म। यह है ब्राह्मण धर्म। तुम ब्राह्मण धर्म के हो। यह संगमयुग बहुत छोटा है। अभी तुम सारे चक्र को जान गये हो। दूरादेशी बन गये हो।

तुम जानते हो यह बाबा का रथ है, इनको नंदीगण भी कहते हैं। सारा दिन सवारी थोड़ेही होती है। आत्मा शरीर पर सारा दिन सवारी करती है। अलग हो जाए तो शरीर न रहे। बाबा तो आ-जा सकता है क्योंकि उनकी अपनी आत्मा है। तो मैं इनमें सदैव नहीं रहता हूँ, सेकण्ड में आ-जा सकता हूँ। मेरे जैसा तीखा राकेट कोई हो नहीं सकता। आजकल राकेट, एरोप्लेन आदि कितनी चीज़ें बनाई हैं। परन्तु सबसे तीखी आत्मा है। तुम बाप को याद करो - यह आया। आत्मा को हिसाब-किताब अनुसार लण्डन में जन्म लेना होगा तो सेकण्ड में वहाँ जाकर गर्भ में प्रवेश करेगी। तो सबसे तीखी दौड़ी पहनने वाली आत्मा है। अभी आत्मा अपने घर में जा नहीं सकती क्योंकि वह ताकत ही नहीं रही है। कमजोर हो गई है, उड़ नहीं सकती। आत्मा पर पापों का बोझ बहुत है, शरीर पर अगर बोझा होता तो आग से पवित्र हो जाता, परन्तु आत्मा में ही खाद पड़ती है। तो आत्मा ही साथ में हिसाब-किताब ले जाती है इसलिए कहा जाता है - पास्ट का कर्मभोग है। आत्मा संस्कार साथ में ले जाती है। कोई जन्म से लंगड़ा होता है तो कहा जाता है पास्ट में ऐसे कर्म किये हैं। जन्म-जन्मान्तर के कर्म हैं जो भोगने पड़ते हैं। सतयुग में है ही पुण्य आत्मा। वहाँ यह बातें होती नहीं। यहाँ हैं सब पाप आत्मायें। सन्यासियों को भी अर्धांग (लकवा) हो जाए तो कहेंगे कर्मभोग। अरे महात्मा श्री श्री 108 जगतगुरू को फिर यह बीमारी क्यों? कहेंगे कर्मभोग। देवताओं के लिए ऐसे नहीं कहेंगे। गुरू मरेगा तो फालोअर्स को जरूर अ़फसोस होगा। बाप पर भी जास्ती लव होता है तो रोते हैं। स्त्री का पति से जास्ती लव होगा तो रोयेगी। पति दु:खी करने वाला होगा तो नहीं रोयेगी। मोह नहीं होगा तो समझेगी भावी। तुम्हारा भी बाप के साथ बहुत लव है। पिछाड़ी में बाबा चला जायेगा - तुम कहेंगे ओहो! बाबा चला गया, जिसने इतना सुख दिया! पिछाड़ी में बहुत रहते हैं। बाप से बहुत लव रहता है। तुम कहेंगे बाबा हमको राजाई देकर चला गया। प्रेम के ऑसू आयेंगे, दु:ख के नहीं। यहाँ भी बच्चे बहुत समय के बाद आकर बाप से मिलते हैं तो प्रेम के ऑसू आते हैं। यह प्रेम के ऑसू फिर माला का दाना बन जायेंगे। हमारा पुरुषार्थ ही है कि हम बाबा के गले का हार बनें, इसलिए बाबा को याद करते रहते हैं।

बाबा का फरमान है - याद की यात्रा करते रहो। जैसे दौड़ाया जाता है फलाने स्थान को हाथ लगाकर आओ, फिर नम्बरवार होता है। यहाँ भी जितना बाबा को जास्ती याद करेंगे, जो पहले दौड़ी लगाकर जायेंगे वही फिर पहले स्वर्ग में लौट आकर राज्य करेंगे। तुम सब आत्मायें बुद्धि के योग से दौड़ रही हो। यहाँ बैठे हुए वहाँ दौड़ रही हो। हम शिवबाबा के बच्चे हैं। बाबा ईशारा करते हैं - मुझे याद करो, दूरादेशी बनो। तुम दूरदेश से आये हो। अब यह पराया देश विनाश हो जायेगा। इस समय तुम रावण के देश में हो, यह धरनी रावण की है। फिर तुम बेहद के बाप की धरनी पर आयेंगे। वहाँ है रामराज्य। रामराज्य बाप स्थापन करते हैं। फिर आधा में रावण राज्य ड्रामा अनुसार नूँधा हुआ है। यह सब बातें तुम बच्चे ही जानते हो इसलिए तुम प्रश्न पूछते हो, कोई नहीं बता सकेगा। अगर कहे आत्मा का फादर, गॉड फादर है। अच्छा - तुमको उनसे क्या वर्सा मिलना चाहिए? यह है पतित दुनिया। बाप ने पतित दुनिया तो नहीं रची है ना। कोई को भी समझाना बहुत सहज है। चित्र दिखाना पड़े। त्रिमूति का चित्र कितना अच्छा है। ऐसा कायदे अनुसार त्रिमूति शिव का चित्र कहाँ है नहीं। ब्रह्मा को दाढ़ी दिखाते हैं। विष्णु और शंकर को नहीं दिखाते हैं। उनको देवता समझते हैं। ब्रह्मा तो प्रजापिता है। कोई ने कैसे, कोई ने कैसे बनाया है। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में यह सब बातें हैं, और कोई की बुद्धि में नहीं आता है। जैसे बांवरे हैं। रावण को क्यों जलाते हैं - कुछ पता ही नहीं। रावण है कौन? कब से आया? कह देते हैं अनादि काल से जलाते हैं। तुम समझते हो - यह आधाकल्प का दुश्मन है। दुनिया में अनेक मतें हैं, जिसने जो समझाया वह नाम रख दिया। कोई ने महावीर नाम डाल दिया। अब महावीर तो हनूमान को दिखाते हैं। यहाँ आदि देव महावीर नाम क्यों रखा है? मन्दिर में महावीर, महावीरनी और तुम बच्चे बैठे हो। उन्होंने माया पर जीत पाई है इसलिए महावीर कहा जाता है। तुम भी अनायास ही अपनी जगह पर आकर बैठे हो। वह तुम्हारा यादगार है। वह है जड़। फिर भी चित्र जरूर लगाना पड़े, जब तक चैतन्य के पास आकर समझें। देलवाड़ा मन्दिर का राज़ बहुत अच्छा समझा सकते हो। यह पढ़कर गये हैं तब भक्ति मार्ग में यह यादगार बने हैं। तुम्हारी राजधानी स्थापन करने में बड़ी मेहनत लगती है। गालियाँ भी खानी पड़ती हैं क्योंकि कलंगीधर बनना है। अभी तुम सब गाली खाते हो। सबसे जास्ती ग्लानि मेरी की है। फिर प्रजापिता ब्रह्मा को भी गाली देते हैं। मित्र सम्बन्धी आदि सब बिगड़ पड़ते हैं। विष्णु वा शंकर को थोड़ेही गाली देंगे। बाप कहते हैं - मैं गाली खाता हूँ। तुम बच्चे बने हो तो तुमको भी हिस्सा लेना पड़ता है। नहीं तो यह अपने धन्धे में था, गाली की बात ही नहीं। सबसे जास्ती गाली मुझे देते हैं। अपना धर्म-कर्म भूल गये हैं। कितना समझाते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) दूरादेशी बनना है। याद की यात्रा से विकर्मों का विनाश करना है। यात्रा पर कोई भी पाप कर्म नहीं करने हैं।

2) महावीर बन माया पर जीत पानी है। ग्लानि से डरना नहीं है, कलंगीधर बनना है।

 

वरदान:संकल्प रूपी बीज द्वारा वाणी और कर्म में सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव!

बुद्धि में जो संकल्प आते हैं, वह संकल्प हैं बीज। वाचा और कर्मणा बीज का विस्तार है। अगर संकल्प अर्थात् बीज को त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर चेक करो, शक्तिशाली बनाओ तो वाणी और कर्म में स्वत: ही सहज सफलता है ही। यदि बीज शक्तिशाली नहीं होता तो वाणी और कर्म में भी सिद्धि की शक्ति नहीं रहती। जरूर चैतन्य में सिद्धि स्वरूप बने हो तब तो जड़ चित्रों द्वारा भी और आत्मायें सिद्धि प्राप्त करती हैं।

 

स्लोगन:योग अग्नि से व्यर्थ के किचड़े को जला दो तो बुद्धि स्वच्छ बन जायेगी।

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Details ( Page:- Murali 21st Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 21.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban

Mithe bacche- Mithe bacche -Aapas me roothkar kabhi padhai ko mat chhodna,padhai chhodna mana Baap ko chhod dena.

 

Q- Service ki briddhi na hone ka kaaran kya hai?

A-Jab aapas me matbhed hota hai tab service briddhi ko nahi pati.Koi-koi bacche matbhed me aakar padhai chhod dete hain.Baba savdhan karte hain bacche matbhed me nahi aao,kabhi jharmuyi jhagmuyi ki baatein nahi suno,ek Baap ki suno,baap ko samachar do to Baba tumhe 16 kala sampoorn banne ki mat denge.

Q-Padhai chhodne ka pehla mukhya kaaran kaun sa banta hai?

A- Naam-roop ki bimari.Jab kisi dehadhari ke naam roop me fanshte hain to padhai me dil nahi lagti.Maya isi baat se hara deti hai-yahi bahut bada bighna hai.

 

Dharana ke liye mukhya saar:-

1)Aapas me vahyat(byarth) baatein nahi karni hai.Kabhi bhi matbhed me nahi aana hai,padhai kisi bhi haalat me nahi chhodna hai.

2)Baba ki abagya kabhi nahi karni hai.Pratigya kar us par kayam rehna hai.Service ka sada souk rakhna hai.

 

Vardan:-Behad ke adhikar ki smriti dwara apaar khushi me rehne wale Sada Nischint bhava.

Slogan:-Sarv ki duwaon se tibragati ki udaan bharo to samasyaon ke pahad ko sahaj ki cross kar lenge.

English Summary ( 21th Dec 2017 )
Sweet children, never stop studying because of sulking with one another. To stop studying means to leave the Father.
 
Question:What is the reason for service not growing?
Answer:
When there is a difference of opinion among you, service doesn't grow. Some children stop studying because of a difference of opinion. Baba cautions you: Children, don't have any conflict with one another. Don’t listen to gossip. Listen to only the one Father. Give your news to the Father and He will give you directions to become 16 celestial degrees full.
Question:
What is the first and main reason why you stop studying?
 
Answer:
The sickness of name and form. When you become trapped in the name and form of a bodily being, you don't feel like studying. Maya defeats you in this respect. This is a very big obstacle.
 
Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1) Don't speak about wasteful things with each other. You must never come into any conflict of opinion. Never stop studying under any circumstances.
2) Never disobey Baba. After making a promise, keep it firm forever. Always have an interest in doing service.
 
Blessing:May you be constantly carefree and stay in limitless happiness with the awareness of your unlimited rights.
 
In today’s world, even when people receive their customary rights, they claim them with so much effort, whereas you have received all rights without making any effort. To become a child means to claim a right. When you say, “mine”, you claim a right. So, this is a wonder of oneself, the elevated soul. Stay in the happiness of this unlimited right. This imperishable right is fixed and when something is fixed, you remain carefree.
 Slogan:Fly at a fast speed with everyone’s blessings and you will easily cross the mountain of problems.

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21/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


 मीठे बच्चे ''मीठे बच्चे - आपस में रूठकर कभी पढ़ाई को मत छोड़ना, पढ़ाई छोड़ना माना बाप को छोड़ देना''

प्रश्न:सर्विस की वृद्धि न होने का कारण क्या है?

उत्तर:जब आपस में मतभेद होता है तब सर्विस वृद्धि को नहीं पाती। कोई-कोई बच्चे मतभेद में आकर पढ़ाई छोड़ देते हैं। बाबा सावधान करते हैं बच्चे मतभेद में नहीं आओ, कभी झरमुई झगमुई की बातें नहीं सुनो, एक बाप की सुनो, बाप को समाचार दो तो बाबा तुम्हें 16 कला सम्पूर्ण बनने की मत देंगे।

 

प्रश्न: पढ़ाई छोड़ने का पहला मुख्य कारण कौन सा बनता है?

उत्तर: नाम-रूप की बीमारी। जब किसी देहधारी के नाम रूप में फँसते हैं तो पढ़ाई में दिल नहीं लगती। माया इसी बात से हरा देती है - यही बहुत बड़ा विघ्न है।

 

ओम् शान्ति।

 

बच्चे बैठे हैं दिल में निश्चय है कि बेहद का बाप आया हुआ है, बेहद का वर्सा देते हैं। तुम सम्मुख बैठे हो। जानते हो वह सब आत्माओं का बाप है। इस शरीर द्वारा समझा रहे हैं। कल्प-कल्प ऐसे ही समझाते हैं और वर्सा देते हैं, और कोई यह ज्ञान दे नहीं सकते। बाबा समझाते हैं कभी भी किसी देहधारी को याद नहीं करना, 5 तत्वों के शरीर को बुत कहा जाता है। तो तुम्हें 5 तत्वों के शरीर को याद नहीं करना है। भल माया बहुत विघ्न डालती है परन्तु हारना नहीं है। बुद्धि में रहे मेरा तो एक बाबा दूसरा न कोई। इस बाबा के शरीर के साथ भी तुम्हारा लव नहीं होना चाहिए। कोई भी शरीर के साथ लव रखा तो अटक जायेंगे। बाबा जानते हैं बहुत मेल्स की भी आपस में ऐसी दोस्ती हो जाती है, जो एक दो के नाम रूप में फँस मरते हैं। इतनी प्रीत लग जाती है जो शिवबाबा को भूल जाते हैं। दो कन्याओं (फीमेल्स) का भी आपस में इतना लव हो जाता है जैसे आशिक होते हैं। उनको कितनी भी ज्ञान की समझानी दो परन्तु माया छोड़ती नहीं है क्योंकि ईश्वरीय मत के विरुद्ध चलते हैं। भल ज्ञान भी उठा लेवे परन्तु अवस्था डगमग रहती है। योग से जो विकर्म विनाश हों, वह होते नहीं। ऐसे-ऐसे बहुत हैं, बाबा नाम नहीं लेते।

दूसरी बात - बाबा समझाते हैं कभी भी पढ़ाई नहीं छोड़ना। भल ब्राह्मणी से नहीं बनती हैं, दिल हट जाती है परन्तु पढ़ाई जरूर पढ़नी है। बाबा को समाचार देते रहना है। आखिर बाबा मतभेद मिटा देंगे। मतभेद के कारण बहुत बच्चे अपना खाना खराब कर देते हैं, (रजिस्टर पर दाग लगा देते हैं), पढ़ाई छोड़ देते हैं। पढ़ाई कोई भी हालत में छोड़नी नहीं चाहिए। ऐसे बहुत गिर पड़ते हैं। बाबा सावधान करते हैं बच्चे तुमको कोई से भी झरमुई-झगमुई की बातें नहीं सुननी हैं। एक बाप की ही सुननी है। बहुत बच्चे हैं जो देह-अभिमान की बीमारी में रोगी हो मरते हैं। बच्चों को फरमान है - हमेशा बाप को याद करते, उनकी ही महिमा करते रहो। शिवबाबा ही कलियुगी पतित दुनिया को पावन श्रेष्ठाचारी बनाते हैं। बाबा को बच्चों का ख्याल रहता है कि माया कहाँ बच्चों को मार न डाले वा बीमार न कर दे। बच्चे अगर समाचार नहीं देते तो समझ जाता हूँ कि माया का जोर से थप्पड़ लगा है, इसलिए मुरली में समझाया जाता है। तकदीर में नहीं है तो अपने ही धन्धे में लग जाते हैं। कोई तो एक दो के नाम रूप में ऐसे फँसते हैं जैसे आशिक माशुक बने हैं। फिर मम्मा बाबा को भी याद नहीं करते। एक दो को याद करते रहते हैं। यह सब विघ्न माया डालती है। कोई की तकदीर में नहीं है तो कितना भी बाबा समझाये, वाह्यात बातें न करो फिर भी करते रहते हैं। कोई अज्ञान में जीवन कहानी लिखते हैं। हमको थोड़ेही जीवन कहानी आदि बनानी है। हमको बाबा के सिवाए किसको याद नहीं करना हैं। नेहरू मरा तो उनको कितना याद करते हैं। तुम भी ऐसे याद करो तो बाकी तुम्हारे और उनमें फ़र्क क्या रहा। ज्ञान मार्ग में बड़ी समझ चाहिए। जब तक शिवबाबा से योग नहीं तो बुद्धि का ताला नहीं खुलता। सर्विस नहीं कर सकते, पद भ्रष्ट कर लेते हैं इसलिए बाबा सावधान करते हैं कि कोई भी मतभेद हो तो बाबा को लिखो। सभी 16 कला सम्पूर्ण तो नहीं बने हैं। कोई कच्चे भी हैं, भूलें करते होंगे। सेन्सीबुल बच्चे जो हैं, फट से समाचार लिखेंगे। कोई देखते हैं कि फलाने में अभी तक क्रोध है तो उनसे दिल हट जाती है फिर घर बैठ जाते हैं। कोई ब्राह्मणी भी कह देती है कि तुम इस सेन्टर पर मत आओ।

बाबा को सर्विस समाचार देना चाहिए। बाबा खुश होगा कि बच्चा सर्विस समाचार देता है। बाबा आज फलाने को समझाया कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? बाबा स्वर्ग का वर्सा देते हैं। 5 हजार वर्ष पहले भी दिया था। यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र खड़े हैं। बाबा समझाते रहते हैं कभी कोई देखे कि इस कारण डिससर्विस होती है तो फौरन समाचार देना है। सब सम्पूर्ण तो नहीं बने हैं। बच्चों को सब कुछ समझाना होता है।

बाप कहते हैं मैं बच्चों के आगे प्रत्यक्ष होता हूँ। बहुत बच्चे जो मुझे जानते ही नहीं, उनके सम्मुख कैसे हूँगा। बच्चों को कहता हूँ-मीठे बच्चे श्रीमत पर चल अपना पुरुषार्थ कर जीवन ऊंच बनाओ। तुम सारे विश्व के मालिक बनने वाले हो। जितना जास्ती मुझे याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे, इसमें खर्चे की कोई बात नहीं, सिर्फ एज्यूकेशन है। जिसकी तकदीर में है वह पक्के हो जाते हैं। माया ऐसी है जो 6-8 वर्ष वाले भी देखो आज हैं नहीं। बाप से नहीं रूठते हैं परन्तु ब्राह्मणियों से रूठते हैं। बाबा तो यहाँ बैठा है। शिवबाबा से रूठा तो खत्म हो जायेंगे। बाबा के सिवाए मुरली कैसे सुन सकेंगे।

दूसरी बात जो कभी ध्यान का पार्ट चलता है फलानी में मम्मा आई, बाबा आया - यह भी माया है। बहुत खबरदारी से चलना है। बात कैसे करते हैं, उससे समझ जाना है। कोई-कोई में माया का भूत आ जाता है फिर कहते हैं शिवबाबा आया, मुरली चलाते हैं - यह सब माया विघ्न डालती है। बहुत ट्रेटर निकल जाते हैं। बहुत धोखा देते हैं। इन सब बातों से बहुत सम्भाल करनी है। पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है। नहीं तो माया बहुत हैरान करेगी। तूफान बहुत आयेंगे। जैसे वैद्य लोग कहते हैं कि बीमारी बाहर निकलेगी, डरना नहीं। बाबा समझाते हैं माया चलते-चलते ऐसी अंगूरी लगायेगी जो बाबा को भुला देगी। हराने की बहुत कोशिश करेगी। युद्ध है ही 5 विकारों रूपी रावण से। जितना बाबा को याद करेंगे तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। माया जीते जगत जीत भी बनेंगे। बाकी स्थूल लड़ाई की कोई बात नहीं। योगबल से ही विश्व की राजाई मिल सकती है। इस समय योगबल भी है, बाहुबल भी है। यह क्रिश्चियन दोनों मिल जायें तो विश्व के मालिक बन सकते हैं। इतनी ताकत इन्हों में है, परन्तु लाँ नहीं है। एक कहानी भी है दो बिल्लों की। कृष्ण को भी देखो कैसे हाथ में गोला दिखाया है। तो तुम्हारी याद कायम रहनी चाहिए। कोई भी कारण से पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए। विघ्न तो जरूर पड़ेंगे। माया ऐसी है जो माथा मूड लेती है, हार्टफेल कर देती है इसलिए बाप कहते हैं और सब बातों को छोड़ मामेकम् याद करो। बीज को याद करने से झाड भी याद आ जायेगा। गृहस्थ व्यवहार में रहते यह कोर्स उठाओ। भगत लोग सवेरे उठकर भक्ति करते हैं। काशी में कोठियां बनी हुई हैं। हर एक कोठी में बैठ विश्वनाथ गंगा कहते हैं, जानते कुछ नहीं। ईश्वर सर्वव्यापी कह देते हैं। अपने को तत्व योगी, ब्रह्म योगी कहलाते हैं। यह बाबा सब बातों का अनुभवी है। इनके रथ में बैठ कहते हैं इन सबको छोड़ो, बाकी तो सब खिलौने बना दिये हैं। विष्णु का, शंकर का, कृष्ण का खिलौना बनाए बैठ पूजा करते हैं। जानते किसको नहीं, पूजा में बहुत खर्चा करते हैं। पत्थर की मूर्ति बनाए उसको श्रृंगारते हैं। साहूकार तो जेवर भी पहनाते हैं। यह तो तुम जानते हो भक्ति में जो कुछ भावना से करते हैं, उसका फल कुछ न कुछ हम दे देते हैं। दूसरे जन्म में अच्छा भगत बन जाते हैं। कोई धन दान करते हैं तो धनवान के घर में, बहुत दान करते हैं तो राजाई घर में जन्म मिलता है। फिर भी इस दुनिया में सदा के लिए सुख तो है नहीं इसलिए सन्यासी इस सुख को मानते नहीं। काग विष्ठा के समान समझते हैं। तो वह राजयोग कैसे सिखलायेंगे। सारे विश्व का मालिक तो बेहद के बाप सिवाए कोई बना न सके। अब बाप तुम बच्चों को सम्मुख समझा रहे हैं, मैं फिर से आया हूँ तुमको राजयोग सिखलाने। कृष्ण के 84 जन्मों के अन्त में मैंने प्रवेश किया है, इनका नाम ब्रह्मा रखा है। मुझे ब्रह्मा जरूर चाहिए तो प्रजापिता ब्रह्मा भी चाहिए। जिसमें प्रवेश करके आऊं, नहीं तो कैसे आऊं? यह मेरा रथ मुकरर है। कल्प-कल्प इसमें ही आता हूँ। लिखा भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। किसकी? विष्णुपुरी की। अभी तुम भारत को विष्णुपुरी बना रहे हो। दूसरे कोई इस बात को समझते नहीं कि परमपिता परमात्मा का पार्ट है, कृष्ण जयन्ती मनाते हैं, नर्क को स्वर्ग बनाने वाला बाप है ना। जो ब्राह्मण बन पूरा पुरुषार्थ करेंगे वो ब्राह्मण से देवता बनेंगे, गायन है कि परमपिता परमात्मा 3 धर्म, ब्राह्मण, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी धर्म स्थापन करते हैं। वहाँ दो युगों में एक ही धर्म है और कोई धर्म है नहीं। बाकी दो युगों में देखो कितने धर्म हैं।

बच्चों को पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए। नहीं तो बहुत रोना पड़ेगा। सबके लिए ट्रिब्युनल बैठेगी। बतायेंगे कि तुमने यह-यह पाप किया इसलिए हम तुमको बहुत समझाता हूँ कि पाप नहीं करना, पुण्य आत्मा बनना। पाप करेंगे तो सौगुणा सज़ा के निमित्त बनेंगे। मेरे बनकर विकार में गये, बाप के श्रीमत की अवज्ञा की तो तुम्हारे पर बहुत सजा आयेगी। वह सजायें भी बहुत कड़ी होती हैं। बाप कहते हैं मैं परमधाम का रहने वाला हूँ। यहाँ पुरानी दुनिया में आकर तुमको वर्सा देता हूँ। फिर भी तुम नाम बदनाम करते हो, तब तो कहा हुआ है सतगुरू का निदंक सूर्यवंशी घराने में ठौर न पाये। गिर पड़ते हैं, बहुत कसम उठाते हैं। हम आपके सपूत बच्चे होकर रहेंगे। ब्लड से भी लिखते हैं। परमपिता परमात्मा से प्रतिज्ञा भी करते हैं कि बच्चा बन आपसे पूरा वर्सा लूँगा। परन्तु माया ऐसी है - वह आज हैं नहीं। प्रतिज्ञा कर फिर अपवित्र बना तो बहुत धोखा खायेगा। ईश्वर की अवज्ञा हुई ना। बाबा इशारे में सब समझाते रहते हैं। माया बहुत हैरान करेगी। नहीं तो युद्ध काहे की। विश्व का मालिक बनना, कम बात नहीं है। ग़फलत नहीं करनी है। पढ़ाई बिल्कुल नहीं छोड़नी है। बाबा से राय लो फिर जवाबदार बाबा हो जायेगा। पढ़ाई में मनुष्य कितनी मेहनत करते हैं। इम्तहान के टाइम बहुत मेहनत करते हैं। तुम भी आगे चल जब समय नजदीक देखेंगे तो रात दिन पढ़ाई में लग जायेंगे। अब वह समय जल्दी आने वाला है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) आपस में वाह्यात (व्यर्थ) बातें नहीं करनी है। कभी भी मतभेद में नहीं आना है, पढ़ाई किसी भी हालत में नहीं छोड़नी है।

2) बाबा की अवज्ञा कभी नहीं करनी है। प्रतिज्ञा कर उस पर कायम रहना है। सर्विस का सदा शौक रखना है।

 

वरदान:बेहद के अधिकार की स्मृति द्वारा अपार खुशी में रहने वाले सदा निश्चिंत भव!

आजकल दुनिया में किसी को रिवाजी अधिकार भी मिलता है तो कितनी मेहनत करके अधिकार लेते हैं आपको तो बिना मेहनत के अधिकार मिल गया। बच्चा बनना अर्थात् अधिकार लेना। मेरा माना और अधिकार मिला। तो वाह मैं श्रेष्ठ अधिकारी आत्मा! इसी बेहद के अधिकार की खुशी में रहो। यह अविनाशी अधिकार निश्चित ही है और जहाँ निश्चित होता है वहाँ निश्चिन्त रहते हैं।

 

स्लोगन:सर्व की दुआओं से तीव्रगति की उड़ान भरो तो समस्याओं के पहाड़ को सहज ही क्रास कर लेंगे।

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Details ( Page:- Murali 22nd Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 22.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban

Mithe bacche- Mithe bacche -Yogeswar Baap aaye hain tumhe Rajyog sikhlane,is yog se he tum bikarmajeet ban bhavisya me Biswa Maharaja-Maharani bante ho.

Q-Bikarmo se bachne ke liye kaun si pratigyan yaad rakho?

A- Mera to ek Shiv Baba dusra na koi.Ek Baap se sachcha roohani love rakhna hai.Yah pratigya yaad rahe to bikarm nahi hoga.Maya deha-abhimaan me laakar oolta karm karati hai.Baba ustaad hai,usey yaad kar maya se poori yudh karo to haar nahi ho sakti.

Q- Baap ko apne baccho prati kaun si aash hai?

A-Jaise lokik Baap chahte hain main baccho ko oonch padhaun,behad ka Baap bhi kehte hain main apne baccho ko swarg ki pari bana doon.Bachche sirf meri shrimat par chale to shrest ban jaye.

 Dharana ke liye mukhya saar:-

1)Koi bhi bhoot andar pravesh na ho,iski sambhal rakhni hai.Kabhi bhi maya ke toofano me moonjhna nahi hai.Kharab aadate nikaal deni hai.

_2)Yaad ka chart rakhna hai,saath-saath roohani sevadhari ban rooho ko gyan ka injection lagana hai.

 

Vardan:-Apni jeevan ko heere samaan valuable banane wale Smriti aur Bismriti ke Chakkar se Mukt bhava.

Slogan:-Apni karmendriyo ko law aur order pramaan chalane wale he sachche Rajyogi hain.

English Summary (22th Dec 2017 )
Sweet children, Yogeshwar, the Father, has come to teach you Raja Yoga. It is only by studying this yoga that you will become conquerors of sin and then become world emperors and empresses in the future.
 
Question:
What promise must you remember in order to be saved from sin?
 
Answer:
Mine is one Shiv Baba and none other. Have true, spiritual love for the one Father. If you remember this promise you won't perform sinful actions. Maya makes you body conscious and makes you perform wrong actions. Baba is the Master. Remember Him and battle with full force against Maya and you won't be defeated.
 
Question:
What hope does the Father have in His children?
 
Answer:
Just as a physical father wants to give his children a high education, in the same way, the unlimited Father says: I want to make My children into angels of heaven. If you children just follow My shrimat you can become elevated.
 
Song:I have come having awakened my fortune. 
 
Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1) Be very careful that no evil spirit enters you. Never become confused by the storms of Maya. Remove bad habits.
2) Keep your chart of remembrance. Together with that, become a spiritual server and give souls an injection of knowledge.
 
Blessing:May you be free from spinning between remembrance and forgetfulness and make your life as valuable as a diamond.
 
This confluence age is the age for remembrance whereas the iron age is the age of forgetfulness. If you constantly have the awareness of your elevated part and your elevated fortune, you will then become as valuable as a diamond. However, if you forget it, then you are a stone. This is the game of remembrance and forgetfulness. Residents of the confluence age can never tour around the iron age. If your intellect goes there, even slightly, you will then become trapped in a whirlwind because there is a lot of splendour in the iron age, but that splendour is deceptive.
Slogan:Those who keep their physical organs and senses in law and order are true Raj Yogis.
HINDI DETAIL MURALI


22/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


 मीठे बच्चे ''मीठे बच्चे - योगेश्वर बाप आये हैं तुम्हें राजयोग सिखलाने, इस योग से ही तुम विकर्माजीत बन भविष्य में विश्व महाराजा-महारानी बनते हो''

प्रश्न:विकर्मों से बचने के लिए कौन सी प्रतिज्ञा याद रखो?

उत्तर:  मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई। एक बाप से सच्चा रूहानी लव रखना है। यह प्रतिज्ञा याद रहे तो विकर्म नहीं होगा। माया देह-अभिमान में लाकर उल्टा कर्म कराती है। बाबा उस्ताद है, उसे याद कर माया से पूरी युद्ध करो तो हार नहीं हो सकती।

प्रश्न:बाप को अपने बच्चों प्रति कौन सी आश है?

उत्तर:जैसे लौकिक बाप चाहते हैं मैं बच्चों को ऊंच पढ़ाऊं, बेहद का बाप भी कहते हैं मैं अपने बच्चों को स्वर्ग की परी बना दूँ। बच्चे सिर्फ मेरी श्रीमत पर चले तो श्रेष्ठ बन जायें।

 

गीत:-तकदीर जगाकर आई हूँ......  ओम् शान्ति।

 

मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं हम अपनी नई तकदीर बनाने यहाँ आये हैं। किसके पास? योगेश्वर के पास, सिखलाने वाले ईश्वर के पास। इसको कहते हैं राजयोग। ईश्वर योग सिखलाते हैं, कौन सा योग? हठयोग तो अनेक प्रकार का है। यह जिस्मानी योग नहीं है। सन्यासियों का तत्व योग, ब्रह्म योग है। उनको ईश्वर योग नहीं सिखाते। तुम बच्चे जानते हो परमपिता परमात्मा हमको फिर से कल्प पहले मुआफिक राजयोग सिखलाते हैं। सन्यासी ऐसे कभी नहीं कहेंगे। यह योग कल्प पहले भी सिखाया था और अभी भी सिखला रहा हूँ। तुम बच्चे कह सकते हो, वह हठयोगी राजयोग सिखला नहीं सकते हैं। हमको सिखलाने वाला शिवबाबा है, जिसको योगेश्वर कहा जाता है। मनुष्य भूल से कृष्ण को योगेश्वर कह देते हैं। कृष्ण सतयुग का प्रिन्स है, वहाँ योग की बात ही नहीं। यह बहुत अच्छी प्वाइंट है, समझाने की तरकीब सीखो। युक्ति से समझाया जाता है। तुम्हारा सारा मदार योग पर है, जितना योग में रहेंगे उतना विकर्माजीत बनेंगे। भारत का प्राचीन योग बहुत गाया हुआ है। यह राजयोग परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई सिखला न सके, इसलिए इनका नाम योगेश्वर है। ईश्वर ही राजयोग सिखलाते हैं। किसके लिए राजयोग सिखलाते हैं? क्या भारत को राजाई देते हैं? नहीं, सिर्फ भारत की बात नहीं। तुम बच्चों को सारे विश्व का मालिक बनाने के लिए राजयोग सिखलाते हैं। यह एम आब्जेक्ट क्लीयर है। भल राजाई कोई टुकड़े पर करेंगे, विश्व में तो नहीं करेंगे परन्तु कहने में आता है विश्व का मालिक।

तुम बच्चे जानते हो नई दुनिया के लिए हम तकदीर बनाकर आये हैं। सारी विश्व नई बन जाती है। कैपीटल भारत है। तुम्हारे नये विश्व में भी कैपीटल देहली होगी। उनका नाम गाया हुआ है परिस्तान। तुम हो ज्ञान परियां। ज्ञान सागर में गोता खाकर मनुष्य से बदल स्वर्ग की परियां बन जाते हो। यह मान सरोवर है ना। कहते हैं वहाँ स्नान करने से मनुष्य परी बन जाते हैं। तुम यहाँ आये हो स्वर्ग की परियां बनने के लिए। तुम बादशाही लेते हो। तुम्हारे पास जेवर आदि ढेर होंगे। तुम कहेंगे हम राजयोग सीखते हैं, जिससे हम भविष्य में महाराजा महारानी बनेंगे। परन्तु अगर श्रीमत पर अच्छी रीति चलेंगे तो। ऐसे मत समझना कि प्रजा में जाने वाले को परी कहेंगे, नहीं। श्रीमत पर दैवीगुण धारण करने हैं। लौकिक बाप का बच्चों में मोह होता है तो कहते हैं बच्चों को ऊंच पढ़ाऊं। यह बाप भी कहते हैं इन्हों को एकदम स्वर्ग की परी बना दूँ। श्रीमत पर जितना चलेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे। कोई भी तकलीफ नहीं है। साहूकारों को सुनने की फुर्सत नहीं मिलती, सिर्फ गरीबों को फुर्सत मिलती है। तुम्हारे जितनी फुर्सत किसको नहीं है, जिनको लफड़े ज्यादा हैं, उनका योग लग नहीं सकता।

आज बाबा बच्ची से पूछ रहा था कि तुम जानती हो कि हम किसके रथ की सेवा कर रहे हैं। घोड़े की सम्भाल करने वाला समझेगा कि हम फलाने साहेब के घोड़े की सम्भाल कर रहे हैं। तुम भी जानते हो यह किसका रथ है। अगर शिवबाबा को याद कर तुम इस रथ की सेवा करो तो तुम बहुतों से अच्छा पद पा सकती हो। यह हुआ रथ, याद तो शिवबाबा को करना है। यह भी याद रहे तो बेड़ा पार हो सकता है। बाबा कहाँ के लिए राजयोग सिखलाते हैं? भविष्य नई दुनिया के लिए, और सिखाते हैं संगम पर। कृष्ण कैसे राजयोग सिखायेंगे? वह तो सतयुगी राजाई में था, परन्तु वह राजाई किसने स्थापन की? बाप ने। प्राचीन देवी-देवताओं को ऐसा किसने बनाया? किसने राजयोग सिखाया? वह कृष्ण का नाम लेते हैं। बाप कहते हैं मैं तुम बच्चों को अभी सिखला रहा हूँ। तुम तकदीर जगाकर आये हो, भविष्य नई दुनिया में ऊंच पद पाने के लिए। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो पवित्र दुनिया का मालिक बनो और कोई उपाय नहीं। एक तरफ याद करते हैं पतित-पावन आओ। दूसरे तरफ नदियों को कहते हैं पतित-पावनी... कितनी भूल है, बात छोटी है परन्तु मनुष्यों की आंख खोलनी है। बाप जब आते हैं आकर समझाते हैं कि पतित-पावन मैं हूँ। मैं ही तुमको ज्ञान स्नान कराए पावन बनाता हूँ। यह पतित दुनिया है। सन्यासी अनेक प्रकार के योग सिखलाते हैं। परन्तु राजयोग तो एक ही सिखलाने वाला मैं हूँ। परमपिता परमात्मा को ही पतित-पावन कहते हैं। उनको कितना याद करना चाहिए, फिर मैनर्स भी अच्छे चाहिए। हम 16 कला सम्पूर्ण बनते हैं। खान-पान शुद्ध होना चाहिए। कोई झट धारण करते हैं। गाया हुआ है सेकेण्ड में जीवनमुक्ति। एक जनक थोड़ेही होगा। मिसाल एक का दिया जाता है। द्रोपदी एक थोड़ेही होगी, सबकी लाज़ रखते हैं। स्त्री पुरुष दोनों को पतित होने से बचाते हैं। गीता में कृष्ण का नाम लिख दिया है। इस समय तुम बच्चे जो कुछ भी करते हो, भक्ति में यादगार बनता है। शिवबाबा का कितना बड़ा मन्दिर है। जो सर्विस करते हैं, उनका नामाचार निकलता है। तुम्हारा देलवाड़ा मन्दिर एक्यूरेट यादगार है। नीचे तपस्या कर रहे हो ऊपर राजाई के चित्र खड़े हैं। अभी तुम बाप से योग लगा रहे हो, स्वर्ग का मालिक बनने के लिए। स्वर्ग को भी याद करते हो। कोई मरता है कहते हैं स्वर्ग पधारा, परन्तु स्वर्ग है कहाँ, यह किसको मालूम नहीं। समझते हैं भारत स्वर्ग था फिर ऊपर कह देते हैं। बाप समझाते हैं सेकेण्ड में जीवनमुक्ति गाई हुई है। फिर भी कहते हैं ज्ञान का सागर है। जंगल को कलम बनाओ, सागर को स्याही बनाओ.. तो भी खुटता नहीं, पिछाड़ी तक चलेगा। तो मेहनत की जाती है ना। सेकेण्ड की बात भी ठीक है। बाप को जाना तो बाप का वर्सा है जीवनमुक्ति। साथ-साथ यह समझाया जाता है तो चक्र कैसे फिरता है, धर्म कैसे स्थापन होते हैं। कितनी बातें हैं समझाने की। साथ में बाबा को याद करो, वर्से को याद करो। तुम याद करते हो, निश्चय भी करते हो - हम विश्व की बादशाही ले रहे हैं। फिर क्यों भूल जाते हो? बाबा कहते हैं जितना याद करेंगे, उतने विकर्म विनाश होंगे, इसमें टाइम लगता है, जब तक कर्मातीत अवस्था हो जाये। कर्मातीत अवस्था हो गई फिर तो तुम यहाँ रह नहीं सकते हो। बच्चों को वर्षों से समझाते रहते हैं - बात है बिल्कुल सहज। अल्फ और बे, चक्र का राज़ भी बाबा समझाते हैं। बुद्धि में पूरा राज़ आता है तो फिर औरों को भी समझाना पड़ता है। सारा झाड़ बुद्धि में आ जाता है। बाप से सहज ते सहज वर्सा लेना है। कहते हैं बाबा योग नहीं लगता। माया विकर्म करा देती है। बाप समझाते हैं बच्चे अगर विकर्म कर लिया फिर तो बहुत पुरुषार्थ करना पड़ेगा। माया देह-अभिमान में लाकर उल्टा काम करा लेती है। बाप कहते बच्चे मेरा बनकर कोई भी विकर्म नहीं करो। तुमने प्रतिज्ञा की है - मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई। जैसे कन्या की जब सगाई होती है तो पति के साथ कितना लव हो जाता है। तो बेहद के बाप से कितना लव होना चाहिए। तुम्हारा कितना गुप्त लव है। वह है जिस्मानी, यह है रूहानी। उनकी प्रैक्टिस पड़ गई है। यह तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो क्योंकि नई बात है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। तुम हो खुदाई खिदमतगार। तुम हो रूहानी सेवाधारी। तुम लड़ाई के मैदान में खड़े हो। बाबा उस्ताद भी खड़ा है। कहते हैं माया के साथ पूरी युद्ध करो, जो यह 5 विकार प्रवेश ही न करें। लिखते हैं बाबा यह भूत आ गया। बाबा कहते हैं इन भूतों को भगाते रहो। यह तो अन्त तक आयेंगे और ही ज़ोर से तूफान आयेंगे। अज्ञान में भी कभी नहीं आये होंगे वह भी आयेंगे। तुम कहेंगे वानप्रस्थ में थे, कभी ख्याल भी नहीं आता था। ज्ञान में आने से काम का नशा आ गया। स्वप्न भी आते रहते हैं, यह क्या? यह वन्डरफुल ज्ञान है। कोई मूँझकर छोड़ भी जाते हैं। बाबा बता देता है - तूफान बहुत आयेंगे। जितना पहलवान बनेंगे माया खुद पछाड़ेगी, इसलिए महावीर बन स्थेरियम रहना है। बाबा की याद में रहना है। कर्म में नहीं आना है। कर्म में आने से विकर्म बन जाता है। बहुत पुरुषार्थ करना है, खराब आदतें निकालनी हैं। अविनाशी सर्जन जानते हैं, यह बाबा भी जानते हैं। माया के अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं। यहाँ बहुत शुद्ध बनना है। चाहते हो हम सूर्यवंशी बनें तो लायक बनना पड़े। यह है राजयोग, प्रजा योग नहीं है। तो पुरुषार्थ कर राजाई लेनी चाहिए। तुम युक्ति से गुप्त रीति से कहाँ भी जा सकते हो। बोलो - हमको बताओ हम किसको याद करें, जो हम दु:ख से छूट जायें? भला कहते हैं - भारत का प्राचीन योग, वह क्या है? आप हमको राजयोग सिखला सकते हो जो हम राजा बनें? ऐसी-ऐसी बातें करते ज्ञान में ले आना चाहिए। तुम ऐसी पहलवानी दिखाओ जो एक ही बात से उनकी बुद्धि ढीली हो जाए। युक्ति वाले चाहिए, तब बाबा पूछते हैं इतने सर्विसएबुल बने हो? बहुत सम्भाल रखनी पड़ती है। दुनिया इस समय बहुत गंदी है। यह भी एक कहानी है। द्रोपदी के पिछाड़ी कीचक लगे... इसलिए बाबा कहते हैं बहुत खबरदार रहना है। मूल बात है राजयोग की। किसको भी यह समझाओ कि राजयोग सिखलाया बाप ने, नाम डाला है बच्चे का। दूसरी यह बात सिद्ध करो कि कृष्ण भगवान बिल्कुल नहीं है। गीता का भगवान शिव है, जिससे स्वर्ग का वर्सा मिलता है। समझाने की युक्ति चाहिए।

तुम्हारी सर्विस है रूहानी। वह सोशल सर्विस भी जिस्मानी करते हैं। वह है जिस्मानी सोसायटी। यह है रूहानी सोसायटी। रूह को इन्जेक्शन लगता है तब कहते हैं ज्ञान अंजन सतगुरू दिया.... अब आत्मा की ज्योत बुझी हुई है। मनुष्य जब मरते हैं तो दीवा जलाते हैं। समझते हैं आत्मा अन्धेरे में जायेगी। बरोबर बेहद का अन्धियारा है। आधाकल्प घृत नहीं पड़ा है। आत्मा की ज्योति बुझ गई है। अब ज्ञान का घृत पड़ने से रोशनी हो जाती है। अब बाप बच्चों को कहते हैं कि मामेकम् याद करो। यह कृष्ण तो नहीं कह सकते। हम आत्मा भाई-भाई हैं, बाप से वर्सा ले रहे हैं। अच्छा हम कितना समय याद में रहते हैं - यह चार्ट रखना अच्छा है। प्रैक्टिस करते-करते फिर वह अवस्था पक्की हो जायेगी। यह युक्ति अच्छी है, सर्विस भी करते रहो। चार्ट भी रखो, फिर उन्नति को पाते रहेंगे। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) कोई भी भूत अन्दर प्रवेश न हो, इसकी सम्भाल रखनी है। कभी भी माया के तूफानों में मूँझना नहीं है। खराब आदतें निकाल देनी है।

2) याद का चार्ट रखना है, साथ-साथ रूहानी सेवाधारी बन रूहों को ज्ञान का इन्जेक्शन लगाना है।

 

वरदान:अपनी जीवन को हीरे समान वैल्युबुल बनाने वाले स्मृति और विस्मृति के चक्कर से मुक्त भव!

 

यह संगमयुग स्मृति का युग है और कलियुग विस्मृति का युग है। अगर अपने श्रेष्ठ पार्ट, श्रेष्ठ भाग्य की सदा स्मृति है तो हीरे समान वैल्युबुल हो और अगर विस्मृति है तो पत्थर हो। यह स्मृति और विस्मृति का खेल है। संगमयुग के रहवासी कभी कलियुग में चक्कर लगाने जा नहीं सकते। अगर थोड़ा भी बुद्धि गई तो चक्कर में फंस जायेंगे क्योंकि कलियुग में बहुत रौनक है लेकिन वह रौनक धोखा देने वाली है।

 

स्लोगन:अपनी कर्मेन्द्रियों को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाने वाले ही सच्चे राजयोगी हैं।

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Details ( Page:- Murali 23rd Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 23.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche- Mithe bacche -Is padhai me awaaz ki abasyakta nahi-yahan to Baap ne ek ki mantra diya hai ki bacche chup rahkar mujhe yaad karo.
Q-Jin baccho ko Ishwariya nasha rehta hai unki nishaani kya hogi?
A- Ishwariya nashe me rehne wale baccho ki chalan badi royal hogi.2-Mukh se bahut kam bolenge.3-Unke mukh se sadev ratna he niklenge.Waise bhi royal manushya bahut thoda bolte hain.Tum to Ishwariya santan ho,tumhe royalty me rehna hai.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Apne ko sada refresh rakhna hai.Mukh se ratna he nikaalne hai.Kabhi udashi adi aaye to Baba ke banwaye huye geet sunne hain.
2)Dehi-abhimaani banne ki practise karni hai.Yaad me rah khaad nikaalne ka purusharth karna hai.
Vardan:-Shanti ki shakti dwara asambhav ko sambhav karne wale Yogi tu Aatma bhava.
Slogan:-Nimitt ban nirmaan ka karya karne wale he sachche sevadhari hain.

English Summary ( 23th Dec 2017 )
Sweet children, there is no need for sound in this study. Here, the Father has given you just one mantra: Children, remain quiet and remember Me.
Question:What are the signs of children who have Godly intoxication?
Answer:
1) The behaviour of the children who have Godly intoxication is very royal. 2) They speak very little. 3) They only let jewels emerge from their mouth. Generally, royal people also speak very little. You are God's children and you should therefore remain royal.
 
Om Shanti
Essence for Dharna:
1) Keep yourself constantly refreshed. Only let jewels emerge through your lips. If you ever become sad, listen to the songs that Baba has had made.
2) Practise being soul conscious. Stay in remembrance and make effort to have the alloy removed.
 
Blessing:May you be a yogi soul who makes the impossible possible with the power of silence.
 
The power of silence is the greatest power of all. All other powers have emerged from this one power. Even the power of science has emerged from this power of silence. With the power of silence you can make the impossible possible. What people of the world consider to be impossible, for you yogi souls, it is easily possible. They would say that God is very high, and brighter than a thousand suns, but you speak from your own experience: We have attained Him. With the power of silence, we become merged in the Ocean of Love.
 

Slogan:Those who carry out the task of renewal as instruments are true servers.

HINDI DETAIL MURALI

23/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 ''मीठे बच्चे - इस पढ़ाई में आवाज की आवश्यकता नहीं - यहाँ तो बाप ने एक ही मंत्र दिया है कि बच्चे चुप रहकर मुझे याद करो''
प्रश्न:जिन बच्चों को ईश्वरीय नशा रहता है उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
ईश्वरीय नशे में रहने वाले बच्चों की चलन बड़ी रॉयल होगी। 2- मुख से बहुत कम बोलेंगे। 3- उनके मुख से सदैव रत्न ही निकलेंगे। वैसे भी रॉयल मनुष्य बहुत थोड़ा बोलते हैं। तुम तो ईश्वरीय सन्तान हो, तुम्हें रॉयल्टी में रहना है।
ओम् शान्ति।
बेहद का बाप बैठ बेहद के बच्चों को समझाते हैं। ऐसे तो कोई होता नहीं जो कहे कि बेहद के बच्चों प्रति समझाते हैं। बच्चे समझते हैं कि हमारा बेहद का बाप वह है, जिसको शिवबाबा कहते हैं। यूँ तो बहुत मनुष्य हैं जिनका नाम शिव होता है। परन्तु वह कोई बेहद का बाप नहीं। बेहद का बाप एक ही है जो परमधाम से आया है। उस निराकार को ही पुकारते हैं। उनको भगवान कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देवता हैं। भगवान जो परमधाम में रहते हैं, वह सब आत्माओं का बाप है। तुम कोई गुरू गोसांई आदि के आगे नहीं आये हो। तुम जानते हो कि हम बेहद बाप के आगे बैठे हैं। बेहद का बाप मधुबन में आया है। वो लोग कहते हैं कृष्ण मधुबन में आया, परन्तु नहीं। बेहद के बाप की ही मुरली मधुबन में बजती है। बाप समझाते हैं मैं कल्प-कल्प संगमयुग पर आता हूँ न कि युगे-युगे, यह भूल कर दी है जो कहते हैं युगे-युगे आता है। यह जो भी शास्त्र आदि हैं यह सब भक्ति के हैं। ऐसे नहीं कि यह अनादि हैं। बाबा ने समझाया है यह सागर और पानी की नदियाँ अनादि हैं ही। बाकी ऐसे नहीं कि भक्ति अनादि है। तुम जानते हो सतयुग, त्रेता में भक्ति होती नहीं। भक्ति शुरू होती है द्वापर में। बेहद का बाप जो ज्ञान का सागर है, वह इस ब्रह्मा द्वारा बैठ ज्ञान सुनाते हैं। सूक्ष्मवतन में तो नहीं सुनायेंगे, बाप यहाँ सम्मुख बैठ समझाते हैं, तब तो गाते हैं दूरदेश के रहने वाले.. तुम जानते हो हम आत्मायें ब्रदर्स हैं। दूरदेश के रहने वाले हैं। वह गाने वाले तो कुछ भी समझते नहीं। तुम मुसाफिर हो, दूरदेश से आये हो पार्ट बजाने। तुम जानते हो यह कर्मक्षेत्र है। यहाँ हार और जीत का खेल है। यह भी बाप समझाते हैं। सब मनुष्य चाहते हैं - शान्ति मिले। शान्ति कोई मुक्तिधाम के लिए नहीं कहते। यहाँ रहते शान्ति मांगते हैं। परन्तु यहाँ तो मन की शान्ति मिल न सके। सन्यासी लोग शान्ति के लिए जंगल में चले जाते हैं, उन्हों को यह पता ही नहीं कि हम आत्माओं को शान्ति अपने निराकारी दुनिया में ही मिल सकती है। वह समझते हैं आत्मा ब्रह्म अथवा परमात्मा में लीन हो जाती है। यह भी नहीं समझते कि आत्मा का स्वधर्म है ही शान्त। यह आत्मा बात करती है। आत्मा रहती है शान्तिधाम में। वहाँ ही उसको शान्ति मिलेगी। इस समय सबको शान्ति चाहिए। सुख को कोई सन्यासी मानते नहीं। निंदा करते हैं क्योंकि शास्त्रों में दिखाया है कि सतयुग त्रेता में भी कंस जरासंधी थे। लक्ष्मी-नारायण को भूल गये हैं। तमोप्रधान बुद्धि हो गये हैं। बाप कहते हैं मैं हूँ निराकार। वो लोग कहते हैं परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है। एक तरफ महिमा गाते हैं फिर कहते हैं सर्वव्यापी है, जब नाम-रूप से न्यारा है फिर सर्वव्यापी कैसे होगा। आत्मा का भी रूप जरूर है। कोई कह न सके आत्मा नाम रूप से न्यारी है। कहते हैं भ्रकुटी के बीच... तो आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परमात्मा पुनर्जन्म नहीं लेते। जन्म-मरण में मनुष्य आते हैं। यह है तुम्हारी पढ़ाई। पढ़ाई में कोई बाजा गाजा नहीं बजाते। तुम्हारी पढ़ाई होती है सवेरे। उस समय मनुष्य सोये रहते हैं। वास्तव में तुमको रिकार्ड बजाने की भी दरकार नहीं हैं। हम तो आवाज से परे जाते हैं। यह तो निमित्त सबको जगाने के लिए बजाने पड़ते हैं। मुरली पढ़ने अथवा सुनने में आवाज बाहर नहीं जाता है। पढ़ाई में आवाज होता ही नहीं है। बाप बैठ मंत्र देते हैं - बच्चे चुप रहकर मुझे याद करो। यहाँ कोई गुरू आदि तो है नहीं जो बैठ एक-एक को कान में मंत्र दे। फिर कह देते किसको नहीं सुनाना। यहाँ तो वह बात नहीं है। बाबा तो ज्ञान का सागर है।
यह है गीता पाठशाला। तो पाठशाला में मंत्र दिया जाता है क्या? तुम जब किसको पर्सनल समझाते हो तो रिकार्ड बजाते हो क्या? नहीं। क्लास में भी ऐसे समझाना है। चित्र भी सामने हैं। जिसने कभी नक्शा ही नहीं देखा होगा तो क्या समझेंगे कि इंगलैण्ड, नेपाल कहाँ है। अगर नक्शा देखा होगा तो बुद्धि में आयेगा। तुम बच्चों को भी चित्रों पर सारा ड्रामा का राज़ समझाया गया है। यह नॉलेज ऐसी है जो बिगर चित्रों के भी समझा सकते हो। मनुष्यों को भगवान का कुछ भी पता नहीं है। कल्प की आयु तो लम्बी चौड़ी कर दी है। अब तुमको बाप ने समझाया है। तुमको फिर औरों को समझाना पड़े। 4 युगों का 4 हिस्सा करना पड़े फिर आधा-आधा करना पड़े। आधा में नई दुनिया, आधा में पुरानी दुनिया। ऐसे नहीं कि नई दुनिया की आयु बड़ी देंगे। समझो कोई मकान की आयु 50 वर्ष है तो आधा में पुराना कहेंगे। दुनिया का भी ऐसे है। यह सब बाप ही आकर बच्चों को समझाते हैं। इसमें गीत गाने वा कविता आदि सुनाने की दरकार नहीं। हम संगमयुग के ब्राह्मणों की रसम-रिवाज बिल्कुल ही न्यारी है। किसको पता नहीं है कि संगमयुग किसको कहा जाता है, संगम पर क्या होता है? तुम जानते हो दूरदेश के रहने वाला बाप पतित दुनिया में आये हैं। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का दूरदेश नहीं है। दूरदेश है शिवबाबा का और आत्माओं का। हम सब निराकारी दुनिया में रहने वाले हैं। पहले है निराकारी दुनिया फिर आकारी फिर साकारी। निराकारी दुनिया से, पहले देवी-देवता धर्म की आत्मायें आती हैं। पहले सूर्यवंशी घराना यहाँ था, फिर चन्द्रवंशी घराने की आत्मायें आयेंगी। सूर्यवंशी हैं तो चन्द्रवंशी नहीं हैं। चन्द्रवंशी जब होते हैं तो कहेंगे सूर्यवंशी पास्ट हो गये। त्रेता में कहेंगे लक्ष्मी-नारायण का पार्ट पास्ट हो गया। बाकी ऐसे नहीं कहेंगे कि हम फिर वैश्य शूद्र बनेंगे, नहीं। यह नॉलेज तुमको अभी है। बाप तुमको चक्र का राज़ समझाते हैं। भल उन्होंने त्रिमूर्ति बनाया है। परन्तु शिव को डाला नहीं है। शिव को जाने तो चक्र को भी जाने। शिव को न जानने के कारण चक्र को भी नहीं जानते। गाते हैं दूरदेश का रहने वाला... परन्तु जानते नहीं कि भगवान ही पतित-पावन है। तुम जानते हो हमारा यह बहुत बड़ा यज्ञ है। उस यज्ञ में तिल जौं डालते हैं। यह है राजस्व अश्वमेध रूद्र ज्ञान यज्ञ। इस यज्ञ में सारी पुरानी दुनिया की सामग्री स्वाहा होनी है। जिसको राज्य पाना है वही योग में पूरा रहते हैं। सिलवर एज़ में भी दो कला कम कहा जाता है। पहले 1250 वर्ष सतयुग के हैं। फिर 625 वर्ष में एक कला कम हो जाती है, उतरती कला है ना। त्रेता में और भी खाद पड़ जाती है। अब तुम बच्चों को समझाया जाता है - जितना बाप के साथ बुद्धियोग रखेंगे तो खाद निकल जायेगी। नहीं तो सजा खाकर फिर सिलवर एज़ में आ जायेंगे। कृष्ण को सब प्यार करते हैं, झूला झुलाते हैं। राम को इतना नहीं झुलायेंगे। आजकल तो रेस की है। परन्तु यह कोई नहीं जानते कि लक्ष्मी-नारायण ही छोटेपन में राधे-कृष्ण हैं। राधे-कृष्ण पर बहुत दोष लगाये हैं, लक्ष्मी-नारायण पर कोई दोष नहीं। कृष्ण तो छोटा बच्चा है। बच्चा और महात्मा समान कहते हैं। महात्मा लोग तो सन्यास करते हैं, कृष्ण तो पतित था ही नहीं जो सन्यास करे। छोटा बच्चा पवित्र होता है, इसलिए उनको सब प्यार करते हैं। पहले है सतोप्रधान फिर सतो-रजो-तमो में आते हैं। कृष्ण को सब बहुत याद करते हैं। बाबा का मनमनाभव मंत्र तो बहुत नामीग्रामी है। देही-अभिमानी बनो। देह के सब धर्म छोड़ो। यह ज्ञान तुम कोई भी धर्म वाले को दे सकते हो। बेहद का बाप कहते हैं अल्लाह को याद करो। आत्मा अल्लाह का बच्चा है। आत्मा कहती है खुदा ताला। अल्ला सांई। जब अल्लाह कहते हैं तो जरूर आत्मा का बाप निराकार है, उनको ही सब याद करते हैं। अल्लाह कहने से जरूर नज़र ऊपर जायेगी। बुद्धि में आता है कि अल्लाह ऊपर में रहता है। यह है साकार सृष्टि। हम वहाँ के रहने वाले हैं।
बाप कहते हैं - हम भी मुसाफिर, तुम भी मुसाफिर हो। परन्तु तुम मुसाफिर पुनर्जन्म में आते हो, मैं मुसाफिर पुनर्जन्म में नहीं आता। मैं तुमको छी-छी पुनर्जन्म से छुड़ाता हूँ। इस रावण राज्य में तुम बहुत दु:खी हो तब तो मुझे बुलाते हो। बाप कितनी अच्छी-अच्छी बातें तुमको समझाते हैं। बच्चे अभी खेल पूरा होता है। यहाँ बहुत दु:ख है। हर चीज़ कितनी मंहगी हो गई है फिर सस्ती थोड़ेही होगी। आगे सस्ताई थी। सबके पास अनाज आदि खूब रहता था। सतयुग को कहते हैं गोल्डन एज़। वहाँ सोने के सिक्के थे। वहाँ सोना ही सोना होगा, चांदी भी नहीं। वहाँ बाजार भी भभके की होगी। हीरे-जवाहर क्या-क्या पहनते होंगे। वहाँ हीरे-जवाहरों का ही खेल चलता है। खेती-बाड़ी ढेर होगी। यहाँ अमेरिका में अनाज इतना होता है, जो जला देते हैं। अभी तो जो बचत होती है वह बेच देते हैं। भारत को दान करते हैं। भारत की गति देखो क्या हो गई है। बाप कहते हैं मैंने तुमको कितना राज्य भाग्य दिया था। तुम्हारा देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है। उनको ही कहा जाता है गोल्डन एज़। मुहम्मद गज़नवी कितने हीरे-जवाहरों के माल लूटकर ऊंट भराकर ले गया। कितना माल उठाया होगा? कोई हिसाब थोड़ेही कर सकेंगे। अब तुम फिर मालिक बन रहे हो। एक मुसाफिर सारी दुनिया को हसीन बनाने वाला है। कब्रिस्तान को बदल परिस्तान स्थापन करते हैं। यहाँ तुम बच्चे आये हो रिफ्रेश होने। मुसाफिर को याद करते हो। तुम भी मुसाफिर हो। यहाँ आकर 5 तत्वों का शरीर लिया है। सूक्ष्मवतन में 5 तत्व होते नहीं। 5 तत्व यहाँ होते हैं, जहाँ तुम पार्ट बजाते हो। हमारा असली देश वहाँ है। इस समय आत्मा पतित बन गई है इसलिए बाप को पुकारते हैं कि आप आओ - आकर हमको पावन बनाओ। रावण ने हमको पतित बनाकर काला कर दिया है। जबसे रावण आया है तो हम पतित बने हैं। अब समझते जरूर हैं हम पावन थे तब तो याद करते हैं - हे पतित-पावन आओ। कोई तो है जिसको बुलाते हैं। बच्चे बाप को बुलाते हैं ओ गॉड फादर। उनका नाम ही है हेविनली गॉड फादर। तो जरूर हेविन ही रचेगा।
बाबा ने समझाया है पढ़ाई में बाजे गाजे की दरकार ही नहीं है। बाबा ने कह दिया है कोई अच्छे-अच्छे रिकार्ड हैं, जो बाबा ने बनवाये हैं - तो जब देखो उदासी आती है तो अपने को रिफ्रेश करने के लिए भल ऐसे-ऐसे गीत बजाओ। परन्तु जितना आवाज कम करेंगे तो अच्छा है। रॉयल मनुष्य कम आवाज करते हैं। मुख से थोड़ा बोलना है। जैसे रत्न निकलते हैं। तुम ईश्वर के बच्चे हो तो कितनी रॉयल्टी, कितना तुम्हारे में नशा होना चाहिए। राजा के बच्चे को इतना नशा नहीं होगा जितना तुमको रहना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अपने को सदा रिफ्रेश रखना है। मुख से रत्न ही निकालने हैं। कभी उदासी आदि आये तो बाबा के बनवाये हुए गीत सुनने हैं।
2) देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करनी है। याद में रह खाद निकालने का पुरुषार्थ करना है।
 
वरदान:शान्ति की शक्ति द्वारा असम्भव को सम्भव करने वाले योगी तू आत्मा भव!
शान्ति की शक्ति सर्वश्रेष्ठ शक्ति है। और सभी शक्तियां इसी एक शक्ति से निकली हैं। साइन्स की शक्ति भी इसी शान्ति की शक्ति से निकली है। शान्ति की शक्ति द्वारा असम्भव को भी सम्भव कर सकते हो। जिसे दुनिया वाले असम्भव कहते वह आप योगी तू आत्मा बच्चों के लिए सहज सम्भव है। वह कहेंगे परमात्मा तो बहुत ऊंचा हजारों सूर्यो से तेजोमय है, लेकिन आप अपने अनुभव से कहते - हमने तो उसे पा लिया, शान्ति की शक्ति से स्नेह के सागर में समा गये।
 

स्लोगन:निमित्त बन निर्माण का कार्य करने वाले ही सच्चे सेवाधारी हैं।

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Details ( Page:- Murali 24th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 24.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Headline – Parchintan tatha par darshan se haani.
Vardan – Swaman mei sthit rah dehabhan ko samapt karnewale akal takhatnashin akalmurat bhav.
Slogan – Aapni sthiti unchhi banao toh paristhiya choti ho jayegi.

English Summary ( 24th Dec 2017 )
"The harm done by thinking about others and looking at others."
 Blessing: May you finish body consciousness by remaining stable in your self-respect and become an immortal image seated on the immortal throne.
At the confluence age you receive many types of self-respect from the Father. Every day, keep a new point of self-respect in your awareness. Then, in front of self-respect, body consciousness will run away, just as darkness is dispelled in front of light. It doesn't take any time or any effort. You have a direct connection with God's light. Simply put on the switch of awareness with the direct line. So much light will then come that not only will you be in the light, but you will become a lighthouse for others. Those who maintain such self-respect are the ones who are said to be immortal images seated on their immortal thrones.
 
Slogan: Make your stage elevated and any adverse situation will become small.

HINDI DETAIL MURALI

24/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 
"परचिन्तन तथा परदर्शन से हानियाँ"
सभी श्रेष्ठ आत्मायें संगमयुग का हीरे समान श्रेष्ठ मेला मनाने के लिए आई हैं अर्थात् हीरे समान अमूल्य जीवन का निरन्तर अनुभव करने का विशेष साधन फिर से स्मृति स्वरूप वा समर्थ स्वरूप बना रहे, उसका बाप से या अपने परिवार से या वरदान भूमि से अनुभव प्राप्त करने के लिए आये हैं। हीरे समान जीवन जन्म से प्राप्त हुआ। लेकिन हीरा सदा चमकता रहे, किसी भी प्रकार की धूल वा दाग न आ जाए उसके लिए फिर फिर पालिश कराने आते हैं, इसीलिए आते हो ना? तो बापदादा अपने हीरे समान बच्चों को देख हर्षित भी होते हैं और चेक भी करते - अभी तक किन बच्चों को धूल का असर हो जाता है वा संग के रंग में आने से कोई-कोई को छोटा वा बड़ा दाग भी लग जाता है। कौन सा संग दाग लगाता है! उसके मूल दो कारण हैं वा मुख्य दो बातें हैं:-
एक - परचिंतन, दूसरा - परदर्शन । परचिन्तन में व्यर्थ चिन्तन भी आ जाता है। यही दो बातें संग के रंग में स्वच्छ हीरे को दागी बना देती हैं। इसी परदर्शन, परचिन्तन की बातों पर कल्प पहले का यादगार रामायण की कथा बनी हुई है। गीता ज्ञान भूल जाता है। गीता ज्ञान अर्थात् स्वचिन्तन। स्वदर्शन चक्रधारी बनना, नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप बनना। गीता ज्ञान के सार को भूल कर रामायण की कथा प्रैक्टिकल में लाते हैं। सीता भी वह बनते हैं जो मर्यादा की लकीर से बाहर निकल गये। सीता के दो रूप दिखलाये हैं - एक सदा साथ रहने वाला और दूसरा शोकवाटिका में रहने वाला। तो संगदोष में आकर शोकवाटिका वाली सीता बन जाते हैं। वह एक है फरियाद का रूप और दूसरा है याद का रूप। जब फरियाद के रूप में आ जाते हैं तो फर्स्ट स्टेज से सेकण्ड स्टेज में आ जाते हैं इसलिए सदा बेदाग सच्चा हीरा, चमकता हुआ हीरा, अमूल्य हीरा बनो। इन दो बातों से सदा दूर रहो तो धूल और दाग लग नहीं सकता। चाहते नहीं हो लेकिन कर लेते हो, बातें बड़ी नई-नई रमणीक बताते हो। अगर वह बातें सुनावें तो बहुत लम्बा चौड़ा शास्त्र बन जायेगा। लेकिन कारण क्या है? अपनी कमजोरी। लेकिन अपनी कमजोरी को सफेदी लगा देते हो और छिपाने के लिए दूसरों के कारणों की कहानियाँ लम्बी बना देते हो। इसी से परदर्शन, परचिन्तन शुरू हो जाता है इसलिए इस विशेष मूल आधार को, मूल बीज को समाप्त करो। ऐसा विदाई का बधाई समारोह मनाओ। मेले में समारोह मनाते हो ना! इसी समारोह मनाने को ही मिलना अर्थात् बाप समान बनना कहा जाता है। अच्छा - महिमा तो अपनी बहुत सुनी है। महिमा में भी कोई कमी नहीं रही क्योंकि जो बाप की महिमा वह बच्चों की महिमा। बापदादा का यही विशेष स्नेह है कि हर बच्चा बाप समान सम्पन्न बन जाए। समय के पहले नम्बरवन हीरा बन जाए। अभी रिजल्ट आउट नहीं हुआ है। जो बनने चाहो, जितने नम्बर में आने चाहो, अभी आने की मार्जिन है इसलिए उड़ती कला का पुरूषार्थ करो। बेदाग नम्बरवन चमकता हुआ हीरा बन जाओ। समझा क्या करना है? सिर्फ यह नहीं जाकर सुनाना मधुबन से होके आये, बहुत मना के आये। लेकिन बन करके आये हैं! जब संख्या में वृद्धि हो रही है तो पुरूषार्थ की विधि में भी वृद्धि करो। अच्छा!
ऐसे सर्व उड़ती कला के पुरूषार्थी, सर्व व्यक्त संगों से दूर रहने वाले, एक ही सम्पूर्णता के रंग में रंगी हुई आत्मायें, समय के पहले स्वयं को सम्पन्न बनाने वाले, प्राप्ति स्वरूप विशेष आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
पार्टियों के साथ मुलाकात
1) सर्व सम्बन्धों से बाप को अपना बना लिया है? किसी भी सम्बन्ध में अभी लगाव तो नहीं है क्योंकि कोई एक सम्बन्ध भी अगर बाप से नहीं जुटाया तो नष्टोमोहा, स्मृति स्वरूप नहीं बन सकेंगे। बुद्धि भटकती रहेगी। बैठेंगे बाप को याद करने और याद आयेगा धोत्रा पोत्रा। जिसमें भी मोह होगा वही याद आयेगा। किसका पैसे में होता है, किसका जेवर में होता है, किसका किसी सम्बन्ध में होता - जहाँ भी होगा वहाँ बुद्धि जायेगी। अगर बार-बार बुद्धि वहाँ जाती है तो एकरस नहीं रह सकते। आधाकल्प भटकते-भटकते क्या हाल हो गया है, देख लिया ना! सब कुछ गँवा दिया। तन भी गया, मन का सुख-शान्ति भी गया, धन भी गया। सतयुग में कितना धन था, सोने के महलों में रहते थे, अभी ईटो के मकान में, पत्थर के मकान में रहते हो, तो सारा गँवा दिया ना! तो अभी भटकना खत्म। एक बाप दूसरा न कोई, यही मन से गीत गाओ। कभी भी ऐसे नहीं कहना कि यह तो बदलता नहीं है, यह तो चलता नहीं है, कैसे चलें, क्या करूँ... इस बोझ से भी हल्के रहो। भल भावना तो अच्छी है कि यह चल जाए, इसकी बीमारी खत्म हो जाए लेकिन इस कहने से तो नहीं होगा ना! इस कहने के बजाए स्वयं हल्के हो उड़ती कला के अनुभव में रहो तो उसको भी शक्ति मिलेगी। बाकी यह सोचना वा कहना व्यर्थ है। मातायें कहेंगी मेरा पति ठीक हो जाए, बच्चा चल जाए, धन्धा ठीक हो जाए यही बातें सोचते या बोलते हैं। लेकिन यह चाहना पूर्ण तब होगी जब स्वयं हल्के हो बाप से शक्ति लेंगे। इसके लिए बुद्धि रूपी बर्तन खाली चाहिए। क्या होगा, कब होगा, अभी तो हुआ ही नहीं, इससे खाली हो जाओ। सभी का कल्याण चाहते हो तो स्वयं शक्तिरूप बन सर्वशक्तिवान के साथी बन शुभ भावना रख चलते चलो। चिन्तन वा चिन्ता मत करो, बन्धन में नहीं फँसो। अगर बन्धन है तो उसको काटने का तरीका है याद। कहने से नहीं छूटेंगे, स्वयं को छुड़ा दो तो छूट जायेंगे।
2) संगमयुग के सर्व खजाने प्राप्त हो गये हैं? कभी भी अपने को किसी खजाने से खाली तो नहीं समझते हो? क्योंकि खाली होने का समय अभी बीत गया। अभी भरने का समय है। खज़ाना मिला है, इसका अनुभव भी अभी होता है। अप्राप्ति से प्राप्ति हुई तो उसका नशा रहेगा। तो भरपूर आत्मायें बनीं! ऐसे तो नहीं कहते कि सर्व शक्तियाँ हैं लेकिन सहन शक्ति नहीं है, शान्ति की शक्ति नहीं है। थोड़ा क्रोध या थोड़ा आवेश आ जाता है। भरपूर चीज़ में कोई दूसरी चीज़ आ नहीं सकती। माया की हलचल होती अर्थात् खाली है, जितना भरपूर उतना हलचल नहीं। तो क्रोध, मोह... सभी को विदाई दे दी या दुश्मन को भी मेहमान बना देते हो। यह दुश्मन जबरदस्ती भी अन्दर तब आता है जब अलबेलापन है। अगर लॉक मजबूत है तो दुश्मन आ नहीं सकता। आजकल भी सेफ रहने के लिए गुप्त लॉक रखते हैं। यहाँ भी डबल लॉक है। याद और सेवा - यह है डबल लॉक। इसी से सेफ रहेंगे। डबल लॉक अर्थात् डबल बिज़ी। बिज़ी रहना अर्थात् सेफ रहना। बार-बार स्मृति में रहना - यही है लॉक को लगाना। ऐसे नहीं समझो मैं तो हूँ ही बाबा का लेकिन बार-बार स्मृति स्वरूप बनो। अगर हैं ही बाबा के तो स्मृति स्वरूप होना चाहिए, वह खुशी होनी चाहिए। हैं तो वर्सा प्राप्त होना चाहिए। सिर्फ हैं ही के अलबेलेपन में नहीं लेकिन हर सेकण्ड स्वयं को भरपूर समर्थ अनुभव करो। इसको कहा जाता है स्मृति स्वरूप सो समर्थ स्वरूप। माया वार करने न आये लेकिन नमस्कार करने आये।
3) सभी अपने को पूज्य आत्मायें अनुभव करते हो? पुजारी से पूज्य बन गये ना! पूज्य को सदा ऊंचे स्थान पर रखते हैं। कोई भी पूजा की मूर्ति होगी तो नीचे धरती पर नहीं रखेंगे। तो आप पूज्य आत्मायें कहाँ रहती हो! ऊपर रहती हो! भक्ति में भी पूज्य आत्माओं का कितना रिगार्ड रखते हैं। जब जड़ मूर्ति का इतना रिगार्ड है तो आपका कितना होगा। अपना रिगार्ड स्वयं जानते हो? क्योंकि जितना जो अपना रिगार्ड जानता है उतना दूसरे भी उनको रिगार्ड देते हैं। अपना रिगार्ड रखना अर्थात् अपने को सदा महान श्रेष्ठ आत्मा अनुभव करना। तो कभी महान आत्मा से साधारण आत्मा तो नहीं बन जाते हो! पूज्य तो सदा पूज्य होगा ना! आज पूज्य कल पूज्य नहीं - ऐसे तो नहीं हो ना। सदा पूज्य अर्थात् सदा महान। सदा विशेष। कई बच्चे सोचते हैं कि हम तो आगे बढ़ रहे हैं लेकिन दूसरे हमको आगे बढ़ने का रिगार्ड नहीं देते हैं। इसका कारण क्या होता? सदा स्वयं अपने रिगार्ड में नहीं रहते हो। जो अपने रिगार्ड में रहते वह रिगार्ड माँगते नहीं स्वत: मिलता है। जो सदा पूज्य नहीं उन्हें सदा रिगार्ड नहीं मिल सकता। अगर मूर्ति अपने आसन को छोड़ दे, या उसे जमीन में रख दें तो उसकी क्या वैल्यु होगी! मूर्ति को मन्दिर में रखें तो सब महान रूप में देखेंगे। तो सदा महान स्थान पर अर्थात् ऊंची स्थिति पर रहो, नीचे नहीं आओ। आजकल दुनिया में कौन सी विशेषता दिखा रहे हैं? मरो और मारो - यही विशेषता दिखाते हैं ना। तो यहाँ भी सेकण्ड में मरने वाले। धीरे-धीरे मरने वाले नहीं। आज मोह छोड़ा, मास के बाद क्रोध छोड़ेंगे, साल के बाद मोह छोड़ेंगे... ऐसे नहीं। एक धक से झाटकू बनने वाले। तो सभी मरजीवा झाटकू बन गये या कभी जिंदा कभी मरे, कई ऐसे होते हैं जो चिता से भी उठकर चल देते हैं। जाग जाते हैं। आप सब तो एक धक से मरजीवा हो गये ना! जैसे लौकिक संसार में वे लोग अपना शो दिखाते, ऐसे अलौकिक संसार में भी आप अपना शो दिखाओ। सदा श्रेष्ठ, सदा पूज्य, हर कर्म, हर गुण का सभी लोग कीर्तन गाते रहें। कीर्तन का अर्थ ही है कीर्ति गाना। अगर सदा श्रेष्ठ कर्म अर्थात् कीर्ति वाले कर्म हैं तो फिर सदा ही लोग आपका कीर्तन गाते रहेंगे। जब किसी स्थान पर हंगामा हो, तो उस झगड़े के समय शान्ति के शक्ति की कमाल दिखाओ। सबकी बुद्धि में आवे कि यहाँ तो शान्ति का कुण्ड है। शान्ति कुण्ड बन शान्ति की शक्ति फैलाओ। जैसे चारों ओर अगर आग जल रही हो और एक कोना भी शीतल कुण्ड हो तो सब उसी तरफ दौड़कर जाते हैं, ऐसे शान्ति स्वरूप होकर शान्ति कुण्ड का अनुभव कराओ। उस समय वाचा की सेवा नहीं कर सकते लेकिन मंसा से अपने शान्ति कुण्ड की प्रत्यक्षता कर सकते हो। जहाँ भी शान्ति सागर के बच्चे रहते हैं वह स्थान शान्ति-कुण्ड हो। जब विनाशी यज्ञ कुण्ड अपनी तरफ आकर्षित करता है तो यह शान्ति कुण्ड अपने तरफ न खींचे यह हो नहीं सकता। सबको वायब्रेशन आने चाहिए कि बस यहाँ से ही शान्ति मिलेगी। ऐसा वायुमण्डल बनाओ। सब मांगने आयें कि बहन जी शान्ति दो। ऐसी सेवा करो।
सेवाधारी टीचर्स बहनों के प्रति:- टीचर्स अर्थात् सेवाधारी। सेवाधारी अर्थात् त्यागमूर्त और तपस्या मूर्त। जहाँ त्याग, तपस्या नहीं वहाँ सफलता नहीं। त्याग और तपस्या दोनों के सहयोग से सेवा में सदा सफलता मिलती है। तपस्या है ही एक बाप दूसरा न कोई। यह है निरन्तर की तपस्या। तो जो भी आये वह कुमारी नहीं देखे लेकिन तपस्वी कुमारी देखे। जिस स्थान पर रहते हो वह तपस्या-कुण्ड अनुभव हो। अच्छा स्थान है, पवित्र स्थान है यह भी ठीक लेकिन तपस्या कुण्ड अनुभव हो। तपस्या कुण्ड में जो भी आयेगा वह स्वयं भी तपस्वी हो जायेगा। तो तपस्या के प्रैक्टिकल स्वरूप में जाओ तब जयजयकार होगी। तपस्या के आगे झुकेंगे। बी.के. के आगे महिमा करते हैं तपस्वी कुमार/कुमारी के आगे झुकेंगे। तपस्या कुण्ड बनाओ फिर देखो कितने परवाने आपेही आ जाते हैं। तपस्या भी ज्योति है, ज्योति पर परवाने आपेही आयेंगे। सेवाधारी बनने का भाग्य बन चुका, अब तपस्वी कुमारी का नम्बर लो। सदा शान्ति का दान देने वाली महादानी आत्मायें बनो। बापदादा वर्तमान समय मंसा सेवा के ऊपर विशेष अटेन्शन दिलाते हैं। वाचा की सेवा से इतनी शक्तिशाली आत्मायें प्रत्यक्ष होंगी। वाणी तो चलती रहती है लेकिन अभी एडीशन चाहिए शुद्ध संकल्प के सेवा की। तो स्वरूप बन करके स्वरूप बनाने की सेवा करो, अभी इसी की आवश्यकता है। अभी सबका अटेन्शन इस प्वाइंट पर हो, इसी से नाम बाला होगा। अनुभवी मूर्त अनुभव करा सकेंगे, इसी पर विशेष अटेन्शन देते रहो। इसी से मेहनत कम सफलता ज्यादा होगी। मन्सा धरनी को परिवर्तन कर देती है। सदा इसी प्रकार से वृद्धि करते रहो। अभी यही विधि है वृद्धि करने की। अच्छा !
12 घण्टे बच्चों से मिलन मनाने के पश्चात सुबह 6 बजे बापदादा ने सतगुरूवार की याद-प्यार सभी बच्चों को दी।
सभी बृहस्पति की दशा वाले श्रेष्ठ भाग्य की लकीर वाले श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा आज के वृक्षपति दिवस की याद-प्यार दे रहे हैं। वृक्षपति बाप ने सभी बच्चों की श्रेष्ठ तकदीर, अविनाशी बना दी। इसी अविनाशी तकदीर द्वारा सदा स्वयं भी सम्पन्न रहेंगे और औरों को भी सम्पन्न बनाते रहेंगे। वृक्षपति दिवस सभी बच्चों के शिक्षा में सम्पन्न होने का विशेष यादगार दिवस है। इसी शिक्षा के यादगार दिवस पर शिक्षक के रूप में बापदादा सभी बच्चों को हर सबजेक्ट में सदा फुल पास होने का लक्ष्य रखते हुए पास विद आनर बनने की और औरों को भी ऐसे उमंग-उत्साह में लाने की, शिक्षक के रूप से शिक्षा में सम्पन्न बनने की याद-प्यार देते हैं। और बृहस्पति की तकदीर की लकीर खींचने वाले भाग्यविधाता बाप के रूप में सदा श्रेष्ठ भाग्य की बधाई देते हैं। अच्छा - यादप्यार और नमस्ते।
प्रश्न:- कौन सी स्मृति सदा रहे तो जीवन में कभी भी दिलशिकस्त नहीं बन सकते?
उत्तर:- मैं साधारण आत्मा नहीं हूँ, मैं शिव शक्ति हूँ, बाप मेरा और मैं बाप की। इसी स्मृति में रहो तो कभी भी अकेलापन अनुभव नहीं होगा। कभी दिलशिकस्त नहीं होंगे। सदा उमंग उत्साह रहेगा। ‘शिव-शक्ति' का अर्थ ही है शिव और शक्ति कम्बाइन्ड। जहाँ सर्वशक्तिवान, हज़ार भुजाओ वाला बाप है वहाँ सदा ही उमंग-उत्साह साथ है।
 
वरदान:स्वमान में स्थित रह देहभान को समाप्त करने वाले अकाल तख्तनशीन, अकालमूर्त भव!
 
संगमयुग पर बाप द्वारा अनेक स्वमान प्राप्त हैं। रोज़ एक नया स्वमान स्मृति में रखो तो स्वमान के आगे देहभान ऐसे भाग जायेगा जैसे रोशनी के आगे अंधकार भाग जाता है। न समय लगता, न मेहनत लगती। आपके पास डायरेक्ट परमात्म लाइट का कनेक्शन है सिर्फ स्मृति का स्वीच डायरेक्ट लाइन से आन करो तो इतनी लाइट आ जायेगी जो स्वयं तो लाइट में होंगे लेकिन औरों के लिए भी लाइट हाउस हो जायेंगे। जो ऐसे स्वमान में रहते हैं, उन्हें ही अकाल तख्तनशीन, अकालमूर्त कहा जाता है।
स्लोगन:अपनी स्थिति ऊंची बनाओ तो परिस्थितियां छोटी हो जायेंगी।

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Details ( Page:- Murali 25th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 25.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche -Ab kaliyug ki raat poori ho rahi hai,nav-yug banane Baap aaya hai,isiliye tum jaago,Baap ki yaad se apne bikarm binash karo.
Q-Jin baccho ki buddhi satopradhan banti jati hai,unki nishani kya hogi?
A-Unhe dusro ko aap samaan banane ke khyal aate rahenge.Woh apna aur dusro ka kalyan karne ki yuktiyan rachte rahenge.Din-raat service me lage rahenge.
Q-Tum baccho ko bade te badi kaun si kaarobaar mili huyi hai?
A-Saari duniya ko Baap ka parichay dene ki kaarobaar bahut badi hai.Koi bhi aatma Baap ke parichay bina rah na jaaye.Raat-din chintan chalta rahe ki kaise kisko samjhaye,sankhdhwani kare.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Gyan dhan daan karne me manhoos nahi banna hai.Apni aur dusro ki unnati ke liye yuktiyan nikaalni hain.
2)Manushya se Devta banne ki padhai padhni aur padhani hai.Service aur padhai par poora attention dena hai.Kade hisaab-kitaab ko yogbal se chuktu karna hai.
 
Vardan:-Companion ke saath dwara sada manoranjan ka anubhav karne wale Combined Roopdhari bhava.
Slogan:-Baap ki shrimat pramaan ji haazir karte raho to sarvshaktiyon ka adhikar mil jayega.

English Summary ( 25th Dec 2017 )
"Sweet children, the night of the iron age is now coming to an end. The Father has come to create the new age. Therefore, awaken and have your sins absolved with remembrance of the Father."
 
Question:What are the signs of children whose intellects continue to become satopradhan?
Answer: They continue to have thoughts of making others equal to themselves. They continue to create methods to benefit themselves and others. They remain engaged in service day and night.
 
Question: What is the biggest task that you children have received?
Answer:
The task of giving the Father's message to the whole world is huge. No soul should be left out of receiving the Father's introduction. Day and night, continue to think about how to blow the conch shell and explain to others.
 
Song:Awaken! O brides, awaken! The new age is about to come.   Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1) Don't be miserly in donating the wealth of knowledge. Create methods for your own benefit and also the benefit of others.
2) Study and teach others the study to change from human beings into deities. Pay full attention to doing service and to studying. Settle your severe karmic accounts with the power of yoga.
 
Blessing:May you become a combined form and constantly experience entertainment with the company of the Companion.
 
Whenever you experience loneliness, do not remember the Father in the Point form. That would be difficult and you would get bored. At that time, bring the stories of the entertaining experiences into your awareness and also bring in front of you a list of your attainments of self-respect. Do not just remember Him with your head, but be combined with the Companion in your heart and experience the sweetness of the love of all relationships. This is "Manmanabhav" and, to be "Manmanabhav" in this way is to have entertainment.
Slogan: Continue to say, "Yes, present indeed" according to the Father's shrimat and you will receive a right to all powers.
HINDI DETAIL MURALI

25/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 
''मीठे बच्चे - अब कलियुग की रात पूरी हो रही है, नव-युग बनाने बाप आया है, इसलिए तुम जागो, बाप की याद से अपने विकर्म विनाश करो''
प्रश्न:जिन बच्चों की बुद्धि सतोप्रधान बनती जाती है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:उन्हें दूसरों को आप समान बनाने के ख्याल आते रहेंगे। वह अपना और दूसरों का कल्याण करने की युक्तियाँ रचते रहेंगे। दिन-रात सर्विस में लगे रहेंगे।
प्रश्न:तुम बच्चों को बड़े ते बड़ी कौन सी कारोबार मिली हुई है?
उत्तर:
सारी दुनिया को बाप का परिचय देने की कारोबार बहुत बड़ी है। कोई भी आत्मा बाप के परिचय बिना रह न जाये। रात-दिन चिंतन चलता रहे कि कैसे किसको समझायें, शंखध्वनि करें।
 
गीत:-जाग सजनियाँ जाग.....  ओम् शान्ति।
 
यह किसने जगाया? सजनी कहने वाला कौन है? बच्चे जो समझते हैं कि बेहद का बाप एक ही है, जिसका असली नाम शिव है। बाकी जो अनेक नाम रखे हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग के। राइट नाम एक ही शिव है। जयन्ति भी मनाते ह़ैं वह हो गई परमात्म जयन्ति। गाते भी है निराकार शिव जयन्ती। आत्मा को जब शरीर मिलता है तब उस शरीर का नाम पड़ता है और शिव तो आत्मा का ही नाम है। उसको कहा जाता है सुप्रीम सोल। सोल का नाम क्या है? नाम गाया हुआ है शिव। गाया भी जाता है शिव जयन्ती। आत्मा की जयन्ती नहीं कहेंगे। गीता का भगवान तो शिव निराकार है - श्रीकृष्ण शरीर का नाम है, देहधारी है ना। यह तो शिवबाबा ही आकर सजनियों को जगाते हैं और अपनी पहचान भी देते हैं कि मैं आया हूँ नई दुनिया बनाने। अब मामेकम् याद करो। माया पर जीत पानी है। बाबा को कहते भी हैं पतित-पावन। देवतायें जो पावन थे, अभी पतित बने हैं, इसलिए सभी पुकारते हैं कि हे पतित-पावन आओ, आकर हमें लिबरेट करो। किससे? माया रावण से अथवा शैतान से। मनुष्यों को यह समझ में नहीं आता है कि अभी चलना है। नव-युग, सतयुग अब आया कि आया। गीत में भी कहते हैं नवयुग, वह है पवित्र दुनिया। बाप आते ही हैं पतित से पावन बनाने के लिए। नई दुनिया को नया युग अथवा सतयुग कहा जाता है। यह है कलियुग पुरानी दुनिया। कुम्भकरण की नींद में सब सोये हुए हैं, उनको आकर जगाते हैं। माया ने अज्ञान अंधकार की रात में सबको सुला दिया है। अब बाप कहते हैं बच्चे कुम्भकरण की नींद से जागो। अभी इस पुरानी दुनिया का अन्त है, मौत सामने खड़ा हुआ है। अब रात पूरी होती है, दिन आना है इसलिए तुम जागो। तुम समझते हो बाबा आया हुआ है। हम भी घोर अन्धियारे में सोये पड़े थे, अब बाबा आया है रात को दिन बनाने। बाबा कहते हैं मैं तुम्हारे लिए दिन अर्थात् नवयुग बनाने आया हूँ। अब मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे क्योंकि इस समय सब पतित हैं। सब कहते हैं हमको इस रावण से लिबरेट करो। यह कोई समझते नहीं हैं कि शैतान का राज्य कब से शुरू होता है। बाप आकर रावण के चम्बे से छुड़ाते हैं, कैसे? यह तो बाप ही जब आये तब आकर सुनाये, तब फिर अनुभव से हम किसको समझा सकें। सबको नीचे उतरते-उतरते पतित बनना ही है, मुझ पतित-पावन को आना ही है संगम पर। दुनिया के मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। समझते हैं कलियुग की आयु लाखों वर्ष पड़ी है क्योंकि शास्त्रों में उल्टा लिख दिया है। अब दैवी युग की स्थापना होनी है। दोज़क को बहिश्त बनाने वाला बाप ही है। बाप कोई दोज़क थोड़ेही रचेंगे। बच्चों को अब यह पक्का निश्चय है कि बाबा हमको पढ़ाते हैं। बहुत समय से पढ़ाते रहते हैं।
अब त्रिमूर्ति शिवजयन्ती आने वाली है। लिखना है शिवजयन्ती सो गीता जयन्ती। श्रीकृष्ण जयन्ती जब मनाते हैं तब गीता जयन्ती नहीं मनाते हैं। कृष्ण तो छोटा बच्चा है, जब वह बड़ा हो तब गीता सुनाये। त्रिमूर्ति शिव जयन्ती माना ही गीता जयन्ती। यह बहुत समझने की बातें हैं। वो लोग गीता जयन्ती को अलग कर देते हैं क्योंकि समझते हैं कृष्ण तो छोटा बच्चा है, वह कैसे गीता सुनायेगा। तुम बच्चों को ही बाप बैठ राजयोग सिखला रहे हैं। यह भी गाया हुआ है - सेकण्ड में जीवनमुक्ति। बैरिस्टर के स्कूल में बैठा तो बैरिस्टरी पढ़ने लग पड़ते, उसमें एम आब्जेक्ट है - मैं बैरिस्टर बनूँगा। बाकी उसमें ऊंच पद पाना यह फिर पढ़ाई पर मदार है। कोई फिर अच्छा पढ़ते हैं तो ऊंच पद पाते हैं। नहीं पढ़ते हैं तो पद भी कम, सारा मदार है पढ़ाई पर। तुम यहाँ मनुष्य से देवता बनने आये हो। परन्तु देवताओं में भी नम्बरवार मर्तबे हैं। कोई फर्स्टक्लास, कोई सेकण्ड क्लास, कोई थर्ड क्लास। यह सब गुप्त बातें हैं। कोई की बुद्धि में आ नहीं सकती। कैसे हम अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं। महाभारत लड़ाई भी लगने वाली है। परन्तु पाण्डव सप्रदाय तो लड़ते नहीं। असुर और कौरव सम्प्रदाय आपस में लड़ झगड़कर खत्म हो जाते हैं। तो अब तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है। समझाना भी है - बाबा समय प्रति समय डायरेक्शन देते रहते हैं। निराकार परमपिता परमात्मा राजयोग कैसे सिखलायेंगे? जरूर शरीर में आयेंगे। बाप श्रीमत दे रहे हैं - बच्चे तुमको याद की यात्रा पर रहना है। मुझे याद करो। यह है योग अग्नि, जिससे विकर्म विनाश होंगे। दिन-प्रतिदिन तुमको अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स मिलती रहती हैं। पतित-पावन की प्वाइंट भी अच्छी है। पतित-पावन बाप को बुलाते भी हैं फिर गंगा में जाकर स्नान करते हैं। तुम लिख भी सकते हो बड़े-बड़े अक्षरों में कि पतित-पावन तो परमपिता परमात्मा को कहा जाता है। ज्ञान का सागर भी वही है। सारी दुनिया को पावन बनाते हैं। सारी दुनिया का क्वेश्चन है ना। दुनिया पावन कैसे बने? गंगा, जमुना आदि यह नदियाँ तो चली आती हैं। अभी कलियुग का समय है तो कुछ गड़बड़ होती है। सतयुग में फिर सब नदियाँ अपने ठिकाने पर आ जायेंगी। परन्तु इनसे पावन तो कोई बनते नहीं। बहुत क्लीयर करके समझाना है। पर्चे भी बांटने हैं। वह भी आदमी-आदमी देखकर देना है। मुख्य दो तीन प्वाइंट्स जरूर समझानी हैं। वास्तव में इस समय सब पतित विकारी हैं। सबकी उतरती कला है। गुरूनानक ने भी कहा है कि मूत पलीती कपड़... भारत को श्रेष्ठाचारी तो बनना ही है। इसको भ्रष्टाचारी कहेंगे, श्रेष्ठाचारी सिर्फ देवतायें हैं। इस समय और कोई बन न सके क्योंकि माया का राज्य है ना। हाँ, बाकी भक्ति का सुख मिलता है। यहाँ रचना भी कोई योगबल से नहीं होती है, विकार से पैदाइस होती है। पहले थोड़े होते हैं फिर वृद्धि होने से आपस में लड़ते हैं। हर एक को पहले सुख फिर दु:ख देखना है। यह मनुष्यों की बात है। सतयुग में मनुष्य सुखी हैं तो जानवर आदि भी सुखी रहते हैं। तो बाप समझाते हैं ऐसे-ऐसे लिखो। त्रिमूर्ति शिव जयन्ती सो श्रीमत भगवत गीता जयन्ती। फिर समझाना भी है, जो समझते हैं उन्हों की दिल होती है कि यह बातें दूसरों को भी समझायें। समझाने बिगर वृद्धि कैसे होगी। ड्रामा अनुसार जिनका जो पार्ट है समझने और समझाने का वह अपना पार्ट बजाते हैं। भक्ति का पार्ट भी दिन-प्रतिदिन जोर होता जाता है। गाया भी हुआ है जब भंभोर को आग लगती है तब ऑख खुलती है। तुम बच्चों को शंखध्वनि करनी है। रात-दिन चिंतन चलना चाहिए - कैसे किसको समझायें। सारी दुनिया को बाप का परिचय देना, कितनी बड़ी कारोबार है। दुनिया कितनी बड़ी है। बहुत धर्म, बहुत खण्ड हैं। सतयुग में एक ही धर्म होता है फिर वृद्धि को पाते हैं। यह भी समझते हो - प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ही ब्राह्मण पैदा होते हैं। ब्राह्मण वर्ण भी नहीं दिखाते हैं तो पैदा करने वाला भी नहीं दिखाते हैं। तो यह समझाना है कौरव और पाण्डव दिखाते हैं। तुम हो ब्राह्मण। प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं तो प्रजापिता जरूर चाहिए, जिससे भिन्न-भिन्न बिरादरियाँ पैदा होती हैं। देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र दिखाते हैं। बाकी संगमयुगी ब्राह्मणों को गुम कर दिया है। गायन भी करते हैं त्रिमूर्ति ब्रह्मा, परन्तु त्रिमूर्ति ब्रह्मा का अर्थ नहीं निकलता। उन्हों को देने वाला कौन? तुम समझते हो निराकार बाप ने ब्रह्मा मुख द्वारा बैठ समझाया है। ब्रह्मा के मुख कमल से बच्चे पैदा होते हैं। जब तुमको सुनायें तब ब्रह्मा भी सुने। तुम न होते तो शिवबाबा क्या करते। एक को तो नहीं सुनाया जाता है। शास्त्रों में एक अर्जुन का नाम लिख दिया है। तो जिस समय जो प्वाइंट निकलती है, उस समय उसी सर्विस में लगना चाहिए। तुम्हें हर बात बहुत क्लीयर करके समझाई जाती है। परन्तु योग में रहें, पावन बनें - यह मेहनत है। विष छोड़ना, कितनी मेहनत है। विष पर ही झगड़ा होता है। तो बच्चों को सर्विस पर यह अटेन्शन देना है कि पढ़कर पढ़ाना है। इस सर्विस में ही कल्याण है। ओना रहना चाहिए। जो नये आते हैं, उनसे फार्म भराने वाले बहुत तीखे चाहिए। फार्म भराने समय यह भी पूछो तुम साधना करते हो, मुक्तिधाम जाने चाहते हो ना। मुक्तिधाम का मालिक तो एक ही परमपिता परमात्मा है, वह बाप ही आकर पावन बनाते हैं। यह स्नान आदि तो भारत में ही करते हैं और धर्मों में नहीं करते। वह फिर अपने धर्म स्थापक के आगे माथा टेकते हैं, फूल चढ़ाते हैं। महिमा गाते हैं। उन्हों को यह तो मालूम ही नहीं है कि पतित-पावन एक ही बाप है। अभी क्रिसमस में क्राइस्ट का कितना मनाते हैं। फिर भी गॉड फादर को याद करते हैं, कहते हैं ओ गॉड फादर, उनको पुकारते हैं। उन्हों को भी (क्रिश्चियन्स को भी) यह नॉलेज मिलेगी। बाबा तो कहते रहते हैं कि चित्र बनाओ तो विलायत में भी भेज दें। बेहद सृष्टि के कल्याण के लिए बुद्धि चलनी चाहिए। बाबा की बुद्धि चलती रहती है। इन चित्रों का कद्र बहुत थोड़ों को है। बाप ने दिव्य दृष्टि द्वारा यह बनाये हैं। कितना रिगार्ड होना चाहिए, इनसे तो बहुत भारी फर्स्टक्लास सर्विस होती है। ड्रामा अनुसार कोई निकलेंगे जो चित्र आदि बनायेंगे। आगे चलकर ऐसे बुद्धिवान बच्चे निकलेंगे जो सेवा में नई-नई इन्वेंशन करते रहेंगे, जिसे देखते ही दिल खुश हो जाए। अंग्रेजी तो सब तरफ फैली हुई है, भाषायें कितनी ढेर हैं। सब देशों में अंग्रेजी वाले जरूर होंगे इसलिए बाबा भी अंग्रेजी और हिन्दी को उठाते हैं। आखरीन सब भाषाओं में निकलेगा। किसको भी समझाना है बहुत सहज। परन्तु देखा जाता है किसकी बुद्धि में नहीं बैठता तो वह क्या काम करेंगे! धन है और दान नहीं करते हैं तो उनको मनहूस कहा जाता है। एक कान से सुनते हैं, दूसरे से निकाल देते हैं। हर एक को अपनी उन्नति का ख्याल जरूर होना चाहिए। संग के रंग में नहीं आना है। सर्विस में बिज़ी रहना है, नहीं तो बड़ा भारी घाटा पड़ जायेगा। अपनी उन्नति के लिए कोशिश जरूर करना चाहिए। बाबा मैं जाकर बहुतों को आप समान बनाने की सर्विस करती हूँ, ऐसे-ऐसे ख्याल आने चाहिए। उनको कहा जाता है सतोप्रधान बुद्धि। तमोप्रधान बुद्धि न अपना, न दूसरों का ख्याल करते हैं, उनको बेसमझ कहा जाता है। सतोप्रधान बुद्धि समझदार हैं। हिसाब-किताब भी कोई-कोई का बहुत कड़ा रहता है। समझते हुए भी फंसे हुए हैं। इस समय तो रात दिन सर्विस में लगा रहना चाहिए। खुद की ही कमाई है। मुझे बाप से पूरा वर्सा लेना है। नहीं तो कल्प-कल्प का घाटा पड़ जायेगा। पहले अपना कल्याण करेंगे तब दूसरों का भी कर सकेंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान धन दान करने में मनहूस नहीं बनना है। अपनी और दूसरों की उन्नति के लिए युक्तियाँ निकालनी हैं।
2) मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है। सर्विस और पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन देना है। कड़े हिसाब-किताब को योगबल से चुक्तू करना है।
 वरदान:कम्पैनियन के साथ द्वारा सदा मनोरंजन का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव!
जब भी अकेलेपन का अनुभव हो तो उस समय बिन्दू रूप को याद नहीं करो। वह मुश्किल होगा, उससे बोर हो जायेंगे। उस समय अपने रमणीक अनुभवों की कहानी को स्मृति में लाओ, अपने स्वमान की, प्राप्तियों की लिस्ट सामने लाओ। सिर्फ दिमाग से याद नहीं करो लेकिन दिल से कम्पैनियन के साथ कम्बाइन्ड बन सर्व सम्बन्धों के स्नेह का रस अनुभव करो - यही मनमनाभव है और यह मनमनाभव होना ही मनोरंजन है।

स्लोगन:बाप की श्रीमत प्रमाण जी हाजिर करते रहो तो सर्वशक्तियों का अधिकार मिल जायेगा।

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Details ( Page:- Murali 26th Dec 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 26.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche -Jitna gyan ratno ka daan karenge utna khazana bharta jayega,bichar sagar manthan chalta rahega,dharana achchi hogi.
Q-Jin aatmaon ke bhagya me behad ka sukh nahi hai,unki nishaani kya hogi?
A-Woh gyan ko soonenge lekin aise jaise oolta ghada.Buddhi me kuch bhi baithega nahi.Achcha-achcha karenge,mahima karenge.Kahenge han,sabko yah soonana chahiye,marg bahut achcha hai.Parantu khud us par nahi chalenge.Baba kehte yah bhi taqdeer.Tum baccho ka farz hai service karna.Hazaaro ko soonate raho.Praja to banti hai.Maa-Baap mishal behad ke Baap se varsha lene ka purusharth karo.Knowledge ko dharan kar aap samaan banate raho.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Baap se poora varsha lene ke liye ati mitha,sarvgoon sampann banna hai.Ravan ke varshe ko haath nahi lagana hai.
2)Knowledge ko dharan kar roohani nashe me rah service karni hai.Behad ka sukh paane ke liye Baap ki har raye ko maankar us par chalna hai.
Vardan:-Yog ki current ke vibration dwara kiley ko mazboot karne wale Yagyan Rakshak bhava.
Slogan:-Gyani tu aatma woh hai jiska karm sadharan hote bhi sthiti purushottam ho.
 
English Summary ( 26th Dec 2017 )
Sweet children, the more jewels of knowledge you donate, the fuller your treasure-store will become; your churning of the ocean of knowledge will continue and you will be able to imbibe jewels well.
 Question:What are the signs of souls who don't have unlimited happiness in their fortune?
Answer:They listen to this knowledge, but they are like an upside-down pot; nothing sits in their intellects. They say that this knowledge is good and they praise it. They agree that it should be given to everyone and that this path is very good, but they do not follow this path themselves. Baba says: That is their fortune. It is the duty of you children to do serv ice. Continue to relate this to thousands of people. At least subjects will be created. Make effort in the same way that the mother and father do and claim your inheritance from the unlimited Father. Imbibe knowledge and continue to make others equal to yourselves.
Song:I have come having awakened my fortune.  Om Shanti
Essence for Dharna:
1) In order to claim your full inheritance from the Father, become extremely sweet and full of all virtues. Don't touch the inheritance of Ravan.
2) Imbibe knowledge and do service with spiritual intoxication. In order to claim unlimited happiness, take all the advice that the Father gives and follow it.
Blessing:May you be a protector of the yagya and with the current of the vibrations of yoga, make the fortress strong.
Just as you Brahmins make plans to expand the family, similarly, also make plans so that no soul steps away from the Brahmin family. Make the fortress so strong that no one can go away. Just as they put up electric fences everywhere, you also put up fences with the current of the vibrations of yoga. When the thought has emerged in you to make the fortress of the yagya strong with powerful vibrations of yoga, you would then be called protectors of the yagya.

Slogan:Knowledgeable souls are those whose stage is the most elevated even while they perform ordinary actions.

HINDI DETAIL MURALI

26/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 मीठे बच्चे – ''मीठे बच्चे - जितना ज्ञान रत्नों का दान करेंगे उतना खजाना भरता जायेगा, विचार सागर मंथन चलता रहेगा, धारणा अच्छी होगी''
प्रश्न:जिन आत्माओं के भाग्य में बेहद का सुख नहीं है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:
वह ज्ञान को सुनेंगे लेकिन ऐसे जैसे उल्टा घड़ा। बुद्धि में कुछ भी बैठेगा नहीं। अच्छा-अच्छा करेंगे, महिमा करेंगे। कहेंगे हाँ, सबको यह सुनाना चाहिए, मार्ग बहुत अच्छा है। परन्तु खुद उस पर नहीं चलेंगे। बाबा कहते यह भी तकदीर। तुम बच्चों का फ़र्ज है सर्विस करना। हजारों को सुनाते रहो। प्रजा तो बनती है। माँ-बाप मिसल बेहद के बाप से वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो। नॉलेज को धारण कर आप समान बनाते रहो।
 
गीत:-तकदीर जगाकर आई हूँ...  ओम् शान्ति।
 
तकदीर सदैव दो प्रकार की होती है। एक अच्छी दूसरी बुरी। एक सुख की दूसरी दु:ख की। भारत के सुख की तकदीर भी है, तो दु:ख की तकदीर भी है। भारत ही सुखधाम था, भारत ही दु:खधाम है। मकान नया है तो अच्छी तकदीर है। पुराना है तो बुरी तकदीर। भारत ही पहले नया था, अब फिर पुराना हुआ है। इन बातों को भी तुम बच्चे ही समझ सकते हो, दुनिया नहीं जानती। तुम्हारा ध्यान इन बातों तरफ खिंचवाया जाता है कि बच्चे तुम कितने तकदीरवान थे। देवी-देवता विश्व के मालिक थे, अभी नहीं हैं। अच्छी तकदीर बदल अब बुरी हो गई है। अच्छी तकदीर कैसे और कब होती है, यह समझने की बात है। समझाने वाला एक ही बेहद का बाप है। भारत की ऊंची तकदीर कब थी? जब स्वर्ग था। बुरी तकदीर अब है। गाते भी हैं हे पतित-पावन आकर हमारी पावन तकदीर बनाओ। भारत पावन था तो जबरदस्त तकदीर थी। अभी वही भारत पतित है क्योंकि विकारी हैं। विकारी और निर्विकारी दोनों होते हैं। हम अगर इस समय निर्विकारी बनेंगे तो देवता बनेंगे। अब बाप को बुलाते रहते हैं। कुम्भ के मेले पर भी जरूर गाते होंगे - पतित-पावन सीताराम...। पतित-पावनी नदी तो है नहीं। मनुष्यों की जब तकदीर बुरी होती है तो कितने पत्थरबुद्धि हो जाते हैं। दु:ख और सुख का यह खेल है। दु:ख कौन देते हैं? सुख कौन देते हैं? दोनों के चित्र बहुत नामीग्रामी हैं। सुख के लिए परमपिता परमात्मा को याद करते हैं। हे दु:ख हर्ता सुखकर्ता। तो इससे सिद्ध है कि बाप कभी दु:ख नहीं देते। वो लोग समझते हैं भगवान ही दु:ख सुख दोनों देते हैं। पाई-पैसे की बात भी कोई समझते नहीं हैं। अभी तुमको बाप ने पारसबुद्धि बनाया है। बुद्धि का ताला खोला है। तुम जानते हो सृष्टि का चक्र फिरता रहता है। सृष्टि पुरानी होती है तो उसमें दु:ख है। अभी तुमको 3 ऑखें मिली हैं। तुम सबको समझा सकते हो जबकि गाते हो पतित-पावन आओ, फिर नदी पर क्यों आकर बैठे हो? यह यज्ञ तप आदि करना, वेद शास्त्र आदि पढ़ना सब भक्ति मार्ग है। बाप कहते हैं - मैं इनसे नहीं मिलता हूँ। जब तुम्हारी भक्ति पूरी होती है तब मैं आकर सद्गति देता हूँ। योग का भी ज्ञान चाहिए। पावन बनने के लिए भी ज्ञान चाहिए। शास्त्र पढ़ने से तो पावन बनने की कोई बात नहीं। विवेक कहता है भारत जब पावन था, सम्पूर्ण निर्विकारी था तब धनवान भी बहुत थे। ऐसा धनवान और पवित्र किसने बनाया? क्या गंगा स्नान करने से बनें या शास्त्रों को पढ़ने से बनें? यह तो तुम करते ही आये हो फिर भी पुकारते हैं कि हे पतित-पावन आओ। जब पतित दुनिया का समय पूरा होगा तब ही पतित-पावन बाप आकर स्वर्ग की स्थापना करेंगे। पावन दुनिया है सतयुग, पतित दुनिया है कलियुग। यह कोई समझते नहीं हैं कि पतित-पावन एक ही परमात्मा है। गाते हैं पतित-पावन सीताराम... उसका अर्थ भी बाप ही समझाते हैं कि सभी सीताओं का राम एक ही परमात्मा है। कहते हैं सबका दाता राम। दाता क्या? यह भी नहीं समझते हैं। बाप समझाते हैं सबका दाता राम तो एक निराकार ही है। बुद्धि को बिल्कुल ताला लगा हुआ है। बुद्धि में बैठता ही नहीं है। सतयुग में सब पारसबुद्धि हैं, नाम ही है पारसनाथ, पारसपुरी। तुम बच्चे भी इस समय पारसनाथ बनते हो। आत्मा गोल्डन एज बनती है। अभी आइरन एज बुद्धि है। गोल्डन एज बुद्धि सुख उठाते हैं, आइरन एज बुद्धि दु:ख उठाते हैं। मनुष्य विष के पीछे हैरान होते हैं। पवित्र बनने में देखो कितना हंगामा करते हैं। गाया भी हुआ है कंस, जरासन्धी, दु:शासन, पूतना, सूपनखा.... यह सब पास्ट की बातों का गायन है। जरूर संगमयुग का ही गायन है। हर बात संगम की ही गाई जाती है। बाप कहते हैं - मैं भी पतितों को पावन बनाने एक ही बार आता हूँ। तुम जानते हो कि बाबा का धन्धा ही है पतितों को पावन बनाना। बाप रचयिता है तो जरूर नई रचना ही रचेंगे। रावण है पतित बनाने वाला। बाप है पावन बनाने वाला। उसका यथार्थ नाम शिव है। शिवरात्रि भी मनाते हैं। रात्रि का भी अर्थ तुम समझते हो। बाप आयेगा तब जब भक्ति अर्थात् रात पूरी हो दिन होगा।
अब बाप कहते हैं बच्चे पावन बनो। अब वापिस जाने का है। सतयुग था अब फिर चक्र रिपीट होगा। तुम बच्चों को मनुष्य से देवता बना रहा हूँ। देवतायें भी मनुष्य ही थे और कोई फ़र्क नहीं है। सिर्फ वह गोरे अर्थात् पावन हैं और अभी के मनुष्य सांवरे अर्थात् पतित हैं। भारत गोल्डन एजेड था, अभी आइरन एजेड है। आत्मा में खाद पड़ गई है - वह निकलेगी योग अग्नि से। आगे मनमनाभव अक्षर पढ़ते थे। अर्थ कुछ भी नहीं समझते थे। परमपिता परमात्मा के साथ बुद्धियोग लगाना है, परन्तु उनके रूप का ही किसको पता नहीं है तो योग कैसे लग सकता है। कहते हैं परमात्मा नाम रूप से न्यारा है तो योग किससे लगायें? भगवानुवाच - मनमनाभव। देह का अभिमान छोड़ो, अपने को आत्मा समझो। आत्मा का रूप क्या है? कहते हैं आत्मा स्टार है, भ्रकुटी के बीच में रहती है। तो आत्माओं का बाप भी ऐसा ही होगा। उनको फिर नाम रूप से न्यारा कहते हैं। बाप के लिए कहते हैं ब्रह्म है, अखण्ड ज्योति तत्व है। ब्रह्म तो बेअन्त हो गया। जैसे आकाश का अन्त नहीं पा सकते। अच्छा कोई करके अन्त पा भी लेवे। परन्तु उससे मुक्ति जीवनमुक्ति तो कोई को मिलती नहीं है। मुक्ति जीवनमुक्ति का अर्थ भी तुम बच्चे ही समझते हो। दुनिया तो कुछ भी नहीं जानती। गाते भी हैं ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। सत है, चैतन्य है, पतित-पावन है तो जरूर पतित दुनिया में आयेंगे। तुम समझाते हो जब ज्ञान है तो भक्ति हो न सके। ज्ञान है दिन सतयुग त्रेता। भक्ति है रात। ज्ञान का सागर परमपिता परमात्मा है न कि पानी - यह सबको समझाना है। सारे भारत को कैसे पैगाम देना है उनके लिए बाबा अच्छी-अच्छी युक्तियाँ समझाते रहते हैं। मेला तो वास्तव में आत्मा और परमात्मा का ही गाया हुआ है। परमात्मा तो एक ठहरा। परमात्मा सर्वव्यापी है - यह कोई हिसाब नहीं बनता है। बाप ही आकर सबको दु:ख से छुड़ाते हैं। दु:ख में सिमरण सब करते हैं। कितनी रड़ियाँ मारते हैं। पूछो यह कब से करते आये हो? कहते हैं परम्परा से। फिर पावन तो कोई हुए नहीं और पतित होते गये।
तुम्हारी बुद्धि में अब सारा ज्ञान भरा हुआ है। ज्ञान को कहा जाता है ब्रह्मा का दिन। विष्णु का दिन नहीं कहते क्योंकि ज्ञान अभी ही मिलता है। दिन-प्रतिदिन प्वाइंट्स रिफाइन निकलती जाती हैं। जीवनमुक्ति है भी सेकेण्ड की बात, फिर कहते हैं ज्ञान का सागर है, कितना भी लिखते जाओ अन्त नहीं आयेगा। बाप जब समझाकर पूरा करते हैं तो फिर इम्तहान भी पूरा हो जाता है। शुरू से लेकर कितना सुनते आये हो। गीता तो बिल्कुल छोटी बना दी है। कितनी ज्ञान की बातें हैं। समझाना भी बहुत सहज है। बरोबर सतयुग में एक धर्म था। अभी तो कितने धर्म हैं। कितना हंगामा है। आपस में ही हंगामा हो गया है। एक धर्म था तो लड़ाई आदि का नाम नहीं था, सुख ही सुख था। चक्र का राज़ बुद्धि में है। बच्चों को समझाया है तुम 84 जन्म कैसे लेते हो। चक्र रिपीट होता है। अभी तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन रहे हो, योगबल से। तुम अभी आस्तिक बने हो। त्रिकालदर्शी भी बने हो। दुनिया में और कोई भी रचता और रचना को नहीं जानते हैं। तुम बच्चे ही जानते हो परन्तु धारणा कर औरों को नहीं समझाते हैं तो प्वाइंट्स भूल जाती हैं। एक माल बुद्धि में नहीं बैठता है तो दूसरा कैसे बैठेगा। दान देते जायेंगे तो खजाना भरता जायेगा। विचार सागर मंथन चलता रहेगा। किसको कैसे समझायें। भक्ति की महिमा तब है जब ज्ञान नहीं है। जो सर्विस पर हैं उन्हों की बुद्धि में नशा रहता है। नम्बरवार तो हैं ही। महारथी वह जो दूसरों को आप समान बनाते रहते हैं। नॉलेज धारण करते हैं। पद भी उनको ऐसा मिलता है। यह मेहनत सारी गुप्त है। तुम बाप के बने हो तो समझते हो बाप से जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलेगा। वहाँ रावण होता नहीं। रावण का राज्य ही अलग है, रामराज्य अलग है। तुम बच्चे अभी समझते हो कि रामायण, भागवत आदि में सब इस समय की बातें हैं। गुड़ियों का खेल है। बाप समझाते हैं इस समय सारा झाड़ तमोप्रधान है। खत्म होने का है। तुम्हारी बुद्धि में सारा राज़ है। समझाने लिए कितनी युक्तियाँ बताते रहते हैं। समझेंगे फिर भी कोटों में कोई, सैपलिंग लग रहा है। जो और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं वह सब निकल आयेंगे। हिन्दू वास्तव में हैं असुल देवी-देवता धर्म के। समझाना है तुम भारतवासी देवी-देवता नसल के हो ना। देवी-देवताओं को ही पूजते हो। देवता ही तुम्हारा धर्म है। पहले तुम देवता थे फिर तुम क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने। अब फिर तुम ब्राह्मण बन देवता बनो। हम समझायेंगे भारतवासियों को। अब सैपलिंग लगता है। बाप बैठ समझाते हैं मैं कैसे शूद्र से कनवर्ट करता हूँ। ब्राह्मण बन फिर देवता बनेंगे। कितनी समझानी अच्छी है। तुमसे कोई पूछे शास्त्र पढ़े हुए हो? बोलो, भक्ति मार्ग में शास्त्र सब पढ़े हैं, परन्तु सद्गति तो बाप ही आकर करते हैं, तब तो तुम उनको बुलाते हो ना कि हे पतित-पावन आओ। युक्ति से समझाओ तो समझेंगे जरूर। समझाने के लिए बच्चों में हिम्मत चाहिए। ड्रामा तुमसे सर्विस करायेगा - ऐसा देखने में आता है। कल्प पहले भी इसने इतना पुरुषार्थ कर यह पद पाया, बाबा से वर्सा पाने का पुरुषार्थ पूरा करना है। जबकि बाप का वर्सा मिलता है तो हम रावण के वर्से को हाथ क्यों लगायें? क्यों न मीठे बन जायें। सर्वगुण सम्पन्न बनना है। यह है राजयोग - नर से नारायण बनने का अर्थात् राजाई पाने का योग।
बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ। यह है चढ़ती कला का युग। बाकी सब हैं उतरती कला के युग। उतरती कला और चढ़ती कला होती है। यह चक्र बुद्धि में रहना चाहिए। बाप बैठ आत्माओं (बच्चों) से बात करते हैं कि मुझे याद करो। यह अन्तिम जन्म पतित नहीं बनो तो मैं तुमको विश्व का मालिक बनाऊंगा। क्या तुम मेरी नहीं मानेंगे? फिर तो बेहद का सुख भी तुम पा नहीं सकेंगे। तुम यह जन्म तो पवित्र बनो। मैं गैरन्टी करता हूँ, तुमको विश्व का मालिक बनाऊंगा। बाप की भी नहीं मानेंगे क्या? जो फूल बनने वाला होगा उनको झट तीर लगेगा। भाग्य में नहीं होगा तो सुनेगा ऐसे जैसे उल्टा घड़ा। प्रदर्शनी में तुम कितनों को समझाते हो, अच्छा-अच्छा करते हैं। कहेंगे मार्ग बहुत सहज है, परन्तु खुद कुछ भी करेंगे नहीं। सिर्फ महिमा की औरों को कहा अच्छा है, परन्तु खुद चलना नहीं है, इससे क्या हुआ। कहेंगे तकदीर में नहीं है। ऐसे-ऐसे प्रजा में आ जायेंगे। परन्तु बच्चों में सर्विस का शौक होना चाहिए। हजारों को सुनाना पड़े। बेहद के बाप से वर्सा लेने के लिए माँ-बाप मिसल पुरुषार्थ करना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए अति मीठा, सर्वगुण सम्पन्न बनना है। रावण के वर्से को हाथ नहीं लगाना है।
2) नॉलेज को धारण कर रूहानी नशे में रह सर्विस करनी है। बेहद का सुख पाने के लिए बाप की हर राय को मानकर उस पर चलना है।
 वरदान:योग की करेन्ट के वायब्रेशन द्वारा किले को मजबूत करने वाले यज्ञ रक्षक भव!
जैसे ब्राह्मण फैमली बढ़ाने की प्लैनिंग करते हो, ऐसे अब यह भी प्लैन करो जो कोई भी आत्मा ब्राह्मण परिवार से किनारे नहीं हो जाए। किले को ऐसा मजबूत बनाओ जो कोई जा ही नहीं सके। जैसे चारों ओर करेन्ट की तारें लगा देते हैं तो आप भी योग के वायब्रेशन द्वारा करेन्ट की तारें लगा दो। जब इस यज्ञ के किले को अपने योग के पावरफुल वायब्रेशन द्वारा मजबूत बनाने का संकल्प इमर्ज हो तब कहेंगे यज्ञ रक्षक।
 स्लोगन:ज्ञानी तू आत्मा वह है जिसका कर्म साधारण होते भी स्थिति पुरूषोत्तम हो।

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Details ( Page:- Murali 27-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 27.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche -3 Baap ka raaz sabko kahani mishal soonao,jab tak behad Baap ko pehechankar pawan nahi bane hain tab tak varsha mil nahi sakta.
 Q- Baba bilkul he naya hai,usne tumko apna kaun sa naya parichay diya hai?
 A-Baba ko manushyo ne hazaaro surya se tezomaye kaha lekin Baba kehta main to bindi hoon.To naya Baba hua na.Pehle agar bindi ka sakshatkar hota to koi maanta he nahi isiliye jaisi jiski bhavana hoti hai unhe waisa he sakshatkar ho jata hai.
 Dharana ke liye mukhya saar:-
 1) Yogbal se aatma ko satopradhan banakar ekras karmathit avastha tak pahunchna hai.Yaad ki gupt mehnat karni hai,ekant me padhai karni hai.
2)Baap se mukti-jeevanmukti ka varsha lene ke liye is antim janm me pavitra zaroor banna hai.
 Vardan:- Sarv bikaro ke aansh ka bhi tyag kar sampoorn pavitra banne wale Number one Bijayi bhava.
 Slogan:- Himmat ka ek kadam rakho to hazaar goona madad mil jayega.
English Summary ( 27th Dec 2017 )
Sweet children, tell everyone the secret of the three fathers in the form of a story. You cannot receive your inheritance until you recognise the unlimited Father and become pure.
 Q- Baba is completely new. What new introduction of Himself has He given you?
 A- Human beings have said that Baba is brighter than a thousand suns. However, Baba says: I am a point. Therefore, Baba is new. If you first had a vision of a point, no one would believe that. This is why everyone receives a vision according to their belief and devotion.
 Essence of Dharna
 1. Make the soul satopradhan with the power of yoga and reach the constant, stable, karmateet stage. Make incognito effort for remembrance and also study in solitude.
2. In order to claim the inheritance of liberation and liberation-in-life, you definitely do have to become pure in this final birth.
 
 Blessing- May you be a “number one”, victorious soul who becomes completely pure by renouncing any trace of all the vices.
-Those who do not have the slightest trace of impurity are said to be completely pure. Purity is the personality of Brahmin life. It is this personality that enables you to have success easily in service. However, if there is a trace of even one vice, then its companions would definitely also be with that one. Just as happiness and peace are with purity, similarly, the five vices have a deep relationship with impurity. Therefore, let there not be any trace of even one of the vices for only then will you become “number one” victorious.

 Slogan- Take one step of courage and you will receive a thousand steps of help. 
HINDI DETAIL MURALI

27/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - 3 बाप का राज़ सबको कहानी मिसल सुनाओ, जब तक बेहद बाप को पहचानकर पावन नहीं बने हैं तब तक वर्सा मिल नही सकता''
 
प्रश्न:बाबा बिल्कुल ही नया है, उसने तुमको अपना कौन सा नया परिचय दिया है?
 
उत्तर:
बाबा को मनुष्यों ने हजारों सूर्य से तेजोमय कहा लेकिन बाबा कहता मैं तो बिन्दी हूँ। तो नया बाबा हुआ ना। पहले अगर बिन्दी का साक्षात्कार होता तो कोई मानता ही नहीं इसलिए जैसी जिसकी भावना होती है उन्हें वैसा ही साक्षात्कार हो जाता है।
 
गीत:-ओम् नमो शिवाए...  ओम् शान्ति।
 
निराकार भगवानुवाच, सिर्फ भगवानुवाच कहने से कृष्ण का नाम याद आ जाता है क्योंकि आजकल भगवान सब हो पड़े हैं इसलिए निराकार शिव भगवानुवाच कहते हैं। गॉड फादर कहा जाता है। निराकार भगवानुवाच, किसके प्रति? निराकार बच्चों, रूहों प्रति। रूहानी भगवानुवाच वा ईश्वर वाच यह अक्षर शोभता नहीं है। निराकार भगवानुवाच शोभता है। अब घड़ी-घड़ी तो नहीं कहेंगे। यह है बहुत गुप्त। इनका चित्र निकल न सके। बिन्दी बनाकर भगवानुवाच लिखें तो कोई मानेंगे नहीं। भगवान के यथार्थ नाम, रूप, देश, काल को कोई जानते ही नहीं। अगर बाप को जान जायें तो रचना को भी जान जायें। परन्तु न जानना ही उन्हों का ड्रामा में नूँधा हुआ है, तब तो फिर बाप आकर अपनी पहचान दे। बाप कहते हैं जब मेरा पार्ट होता है पतितों को पावन बनाने का, तब ही आकर मैं अपनी पहचान देता हूँ। पुरानी दुनिया को नया बनाता हूँ। पुरानी दुनिया में रहने वाले मनुष्य नई दुनिया में रहने वाले मनुष्यों को पूजते हैं। तुम बच्चों को समझाना है। जबकि ऋषि-मुनि आदि सब कहते हैं हम रचता और रचना को नहीं जानते फिर तुमने कहाँ से जाना। अगर तुम बाप को, रचना को जानते हो तो हमको नॉलेज दो। कभी कोई को दे नहीं सकते। वर्सा दे न सकें। तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिल रहा है। तुम जानते हो बेहद का बाप आया हुआ है, नई दुनिया का वर्सा अथवा सुख देने। तो जरूर दु:ख खत्म हो जायेगा। वह है सुखधाम, यह है दु:खधाम। अब इस दु:खधाम का विनाश होना है। नई दुनिया ही अब पुरानी हुई है, फिर नई बन जायेगी। नई दुनिया को सतयुग, पुरानी दुनिया को कलियुग कहा जाता है। नई दुनिया में जरूर मनुष्य थोड़े होने चाहिए। सतयुग में एक ही धर्म था। इस समय तो अनेक धर्म हैं, दु:ख भी है। सुख से दु:ख, दु:ख से फिर सुख होता है। यह खेल बना हुआ है। दु:ख कौन देते हैं, यह किसको पता ही नहीं है। रावण को माया कहा जाता है। धन को माया नहीं कहा जाता है। विकारी मनुष्य जानते हैं कि देवतायें निर्विकारी हैं। परन्तु उन्हों को विकारों का नशा चढ़ा हुआ है। देवताओं को है निर्विकारीपने का नशा। वहाँ अपवित्र कोई होते नहीं हैं। संगम पर ही तुम बच्चों को पवित्रता का राज़ समझाया जाता है। तुमको फिर औरों को समझाना है। बाप तो सारी दुनिया को बैठ समझायेगा नहीं। बच्चों को ही समझाना है परन्तु समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। सबको बताओ, भारत जो स्वर्ग नई दुनिया थी, वह अब पुरानी हो गई है। रचयिता तो बाप ही है। वह खुद कहते हैं मैं ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना करता हूँ। बच्चों को एडाप्ट करता हूँ। ब्रह्मा का नाम ही प्रजापिता है। तो जरूर इतने बच्चों को एडाप्ट ही करेंगे। जैसे सन्यासी फालोअर्स को एडाप्ट करते हैं। पुरुष, स्त्री को एडाप्ट करते हैं कि तुम मेरी हो। यहाँ भी तुम कहते हो शिवबाबा मैं आपका हूँ। घर बैठे भी बहुतों को टच हो जाता है फिर क्या कहते हैं? कि भल बाबा हमने आपको देखा नहीं हैं क्योंकि बंधन में हूँ - आ नहीं सकती परन्तु मैं हूँ आपकी। पवित्र तो जरूर बनना पड़े। पतित मुक्ति-जीवनमुक्ति में जा नहीं सकते। पतित पुकारते हैं कि आओ आकर पावन बनाओ।
तुम बच्चों को समझाना चाहिए कि भारत स्वर्ग था। यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे, जरूर डिनायस्टी चली होगी। नई दुनिया में नया राज्य था, अब वह नहीं है। और अनेक धर्म हैं, देवता धर्म है नहीं। यह पुरानी दुनिया कब तक चलेगी? वह सतयुग को लाखों वर्ष कह देते हैं। महाभारी लड़ाई का भी गायन है। बीच में थोड़ी खिटपिट हुई थी तो कहते थे महाभारत लड़ाई का समय है। यादवों की लड़ाई भी दिखाते हैं कि मूसलों द्वारा अपना विनाश किया। कभी लिखते हैं पाण्डवों और कौरवों की युद्ध, कभी लिखते हैं असुर और देवताओं की। आसुरी दुनिया के बाद फौरन दैवी दुनिया है। वह पतित, यह पावन। पावन देवता कैसे लड़ेंगे? वह हैं सतयुग में, यह कलियुग में दोनों की लड़ाई कैसे हो सकती है। देवतायें अहिंसक, असुर हिंसक। देवतायें नर्क में कैसे आयेंगे। अभी तुम संगम पर हो, नई दुनिया स्थापन होती है। उसके लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। दो बाप का राज़ भी कहानी मिसल समझाना चाहिए। सतयुग में है एक बाप। बेहद के बाप को याद करते ही नहीं क्योंकि सुखधाम है। द्वापरयुग में हैं दो बाप। लौकिक बाप होते भी पारलौकिक बाप को याद करते हैं। आत्मा ही अपने बाप को याद करती है क्योंकि आत्मा ही दु:ख सहन करती है। पुण्य आत्मा, पाप आत्मा। आत्मा ही सुनती है। संस्कार आत्मा में हैं। जिनमें दैवी संस्कार नहीं हैं, वह दैवी संस्कार वालों का गायन करते हैं। गाया भी जाता है आपेही पूज्य आपेही पुजारी। पुजारी बनते हैं तो गाते हैं मुझ निर्गुण हारे में... उनमें गुण हैं हमारे में नहीं हैं। पूज्य सो पुजारी। तुम ही पूज्य सो देवता थे, फिर तुम ही पुजारी बने हो। 84 जन्म लिए हैं। आधाकल्प पूज्य आधाकल्प पुजारी। हिसाब समझाना पड़े। देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र.... इस समय हम ब्राह्मण हैं। बी.के. हैं। इस समय हमको 3 बाप हो जाते हैं। लौकिक बाप, निराकार पारलौकिक बाप, तीसरा फिर प्रजापिता ब्रह्मा। जिस द्वारा हम ब्राह्मणों को पढ़ाते हैं। प्रजापिता नाम तो सुना है ना। ब्रह्मा द्वारा रचते हैं। तुम भी ब्राह्मण हो। तुम भी बाप को याद करो। बाप कहते हैं मैं आया हूँ - तुमको वापिस ले जाने। निराकार बाप आत्माओं से बात करते हैं। तुम कहते भी हो हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं। शरीर का नाम रूप बदल जाता है। आत्मा तो एक ही है। बाप का नाम भी एक ही शिव है। उनको शरीर तो है नहीं। यह प्वाइंट भी नोट करनी चाहिए। फिर जैसा आदमी वैसा ही समझाना है। हम बी.के. दादे से वर्सा ले रहे हैं। वही राजयोग और ज्ञान की नॉलेज देते हैं। मनुष्य से देवता बनना, यह भी नॉलेज है। नॉलेज मिलती है संगम पर। जिससे फिर नई दुनिया में वर्सा पाते हैं। पतित दुनिया में आकर पावन दुनिया स्थापन करते हैं। अभी बाप आया है घर ले जाने। ड्रामा अनुसार सबको घर जाना है फिर पहले सूर्यवंशी, फिर चन्द्रवंशी, फिर वैश्य, शूद्र वंशी बन जाते हैं। वह है निराकार आत्माओं का झाड़, यह है साकारी मनुष्यों का झाड़। ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र... इसमें सारा विराट रूप आ जाता है। ब्राह्मण वृद्धि को पाते रहते हैं। रूद्र माला और विष्णु की माला बनेगी। ब्रह्मा की माला नहीं कह सकते क्योंकि बदलते रहते हैं इसलिए रूद्र माला पूजी जाती है। यह हैं नई-नई बातें। यह बातें कोई की बुद्धि में जरा भी नहीं हैं। कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं, इसलिए तुम्हारी बातें सबको नई लगती हैं। नई दुनिया के लिए नई चीज़ मिलती है। बाबा भी वास्तव में नया है। वह तो कहते हैं नाम-रूप से न्यारा है या तो कह देते हैं हजारों सूर्य से तेजोमय है। सो तो जरूर जैसी भावना होगी वैसा साक्षात्कार होगा। बिन्दी का साक्षात्कार हो तो कोई माने ही नहीं। यह सब बातें नई होने कारण मूँझते हैं। जो यहाँ के होंगे, उनकी ही सैपलिंग लगेगी। तुम बच्चों ने अब अच्छी तरह समझा है तो पारलौकिक बाप के लिए भी समझाना है। तुम आधाकल्प से उनको याद करते आये हो। सुख देने वाले को ही याद किया जाता है। रावण सबका दुश्मन है, तब तो उनको जलाते हैं। पूछो - रावण को जलाते कितना समय हुआ? बोलेंगे अनादि। उन्हों को यह मालूम ही नहीं रावण कब से आता है। सतयुग में तो रावण होता नहीं। भारत का सबसे पुराना दुश्मन रावण है। रूह को पतित बनाने वाला है। आत्मा का दुश्मन कौन? रावण। आत्मा के साथ शरीर भी है। तो दोनों का दुश्मन कौन हो गया? (रावण) रावण में आत्मा है? रावण क्या चीज़ है? बस विकार हैं। ऐसे नहीं कि रावण में भी आत्मा है। रावण 5 विकारों को कहा जाता है। आत्मा में ही 5 विकार हैं, जिसका पुतला बनाते हैं। तुम जानते हो अभी है दु:ख फिर सुख में जाना है तो जरूर बाप आकर ले जायेंगे। वही पतित-पावन है। जैसे दूसरी आत्मा आती है वैसे यह भी आते हैं। श्राध खिलाते हैं तो आत्मा को बुलाते हैं। ब्राह्मण को ही अपने बाप की आत्मा समझ सब कुछ करते हैं। समझते हैं वह आत्मा आती है। आत्मा बोलती है। हाँ इनका आना न्यारा है। यह है भगवान का रथ। भागीरथ कहते हैं। पानी की बात नहीं, यह है सारी ज्ञान की बात। बाप समझाते हैं मैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ, इनका नाम ब्रह्मा रखा है। इनको एडाप्ट नहीं करता हूँ। इनमें प्रवेश करता हूँ फिर तुमको एडाप्ट करता हूँ। तुम कहते हो शिवबाबा मैं आपका हूँ। तुम्हारा बुद्धियोग ऊपर चला जाता है क्योंकि बाबा खुद कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। इस यात्रा पर रहो। समझो, यह बाबा कहाँ जाता है तो याद शिवबाबा को करना है। शिवबाबा इस रथ में देहली गया, कानपुर गया... बुद्धि में शिवबाबा की याद रहे। नीचे नहीं रहना है, बुद्धि ऊपर रहे। आत्मा, परमात्मा बाप को याद करे। बाप कहते मेरा रहने का स्थान तो वहाँ ऊपर है। हमारे पिछाड़ी यहाँ नहीं भटकना है। तुम मुझे भी वहाँ याद करो। तुम आत्मायें भी बाप के साथ रहने वाली हो। ऐसे नहीं बाबा का स्थान अलग, तुम्हारा अलग है, नहीं। यह बातें बुद्धि में बिठानी है। एक-एक को अलग जैसे तुम कराची में समझाते थे वैसे अच्छा रहता है। इकट्ठे एक दो के वायब्रेशन ठहरने नहीं देते हैं। भक्ति भी एकान्त में करते हैं। यह पढ़ाई भी एकान्त में करनी है। पहले बाप का परिचय देना है। बाप पतित-पावन है, उन द्वारा हम पावन बन रहे हैं।
बाप कहते हैं - बच्चे यह अन्तिम जन्म पावन बनेंगे तो विश्व के मालिक बनेंगे। कितनी बड़ी कमाई है। बाप कहते हैं - धन्धा आदि भल करो सिर्फ मुझे याद करो, पावन बनो तो योगबल से तुम्हारी खाद निकल जायेगी। तुम सतोप्रधान बन जायेंगे, एकरस कर्मातीत अवस्था बन जायेगी। बुद्धि में ज्ञान का सिमरण करते रहो। मित्र-सम्बन्धियों को भी यह समझाते रहो। कल्प पहले भी तुमको ऐसे समझाया था। कोई नई बात नहीं है। कल्प-कल्प बाबा आकर हमको समझाते हैं हम फिर दुनिया वालों को समझाते हैं। भारत बरोबर स्वर्ग था फिर बनेगा। यह चक्र फिरता रहता है। सतयुग को लाखों वर्ष कैसे हो सकते हैं। इतनी आदमशुमारी कहाँ है फिर तो अनगिनत हो जायें। 4 युग हैं, हर एक युग की आयु 1250 वर्ष है। जैसे तुमने समझा है वैसे समझाते रहेंगे। झाड़ की वृद्धि होती रहेगी। कभी ग्रहचारी बैठती है फिर उतरती जाती है। बाप कहते हैं - समझाना बहुत सहज है। अल्फ बे। मूल बात है याद की यात्रा। मेहनत भी है। कल्प के बाद यह याद का धन्धा मिलता है, परन्तु है गुप्त। यह मुश्किल सबजेक्ट है। अल्फ को याद करना, अल्फ को ही भूले हो। भगवान को कोई जानते नहीं। गाया भी जाता है सतगुरू बिगर घोर अन्धियारा। सोझरे में एक ही सतगुरू ले जाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बनाकर एकरस कर्मातीत अवस्था तक पहुँचना है। याद की गुप्त मेहनत करनी है, एकान्त में पढ़ाई करनी है।
2) बाप से मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा लेने के लिए इस अन्तिम जन्म में पवित्र जरूर बनना है।
 वरदान:सर्व विकारों के अंश का भी त्याग कर सम्पूर्ण पवित्र बनने वाले नम्बरवन विजयी भव!
सम्पूर्ण पवित्र वह है जिसमें अपवित्रता का अंश-मात्र भी न हो। पवित्रता ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है। यह पर्सनैलिटी ही सेवा में सहज सफलता दिलाती है। लेकिन यदि एक भी विकार का अंश है तो दूसरे साथी भी उसके साथ जरूर होंगे। जैसे पवित्रता के साथ सुख-शान्ति है, ऐसे अपवित्रता के साथ पांचों विकारों का गहरा संबंध है, इसलिए एक भी विकार का अंश न रहे तब नम्बरवन विजयी बनेंगे।
 स्लोगन:हिम्मत का एक कदम रखो तो हजार गुणा मदद मिल जायेगी।

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Details ( Page:- Murali 28-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 28.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche -Tumhe achche sanskar dharan kar patito ko pawan banane ki service karni hai,andho ki laathi banna hai.
 Q-Pichhadi ke samay kaun si avastha aani hai?
 A- Pichhadi ke samay nirantar roohani yatra karte rahenge.Baithe-baithe sakshatkar honge.Baap aur varsha yaad aata rahega.Baikunth dekhte rahenge,bas abhi hum yah pralabdh payenge.Harshit hote rahenge.Parantu achcha purusharth nahi kiya to pachtana bhi hoga.Sazaon ka bhi sakshatkar karenge.
 
 Dharana ke liye mukhya saar:-
 1)Roohani yatra par rehne ke liye ek do ko savdhan karte rehna hai.Karmathit avastha me jaane ke liye sara din yaad me rehne i mehnat karni ahi.
2)Koi bhi oolti chalan nahi chalni hai.Sabko sukhdham ka rashta batana hai.Serivce ka souk rakhna hai.
  Vardan:- Samay par sahayogi bano to padamgoona return mil jayega. Deha-ahankar wa abhimaan ke sukshm ansh ka bhi tyag karne wale Aakari so Nirakari bhava.
 Slogan:- Samay par sahayogi bano to Padamgoona return mil jayega.
English Summary ( 28th Dec 2017 )  
 Sweet children, imbibe good sanskars and serve to make impure ones pure. Become sticks for the blind.
 
 Q- What stage will you have in the final period?
 A- In the final period you will constantly be on the spiritual pilgrimage. You will have visions while just sitting down somewhere. You will continue to remember the Father and your inheritance. You will continue to see heaven: “We will soon receive this reward!” You will remain cheerful. However, if you haven't made good effort, there will be repentance. There will also be visions of punishment.
 
 Essence of Dharna
 1. In order to stay on the spiritual pilgrimage, continue to caution one another. In order to reach the karmateet stage, make effort to stay in remembrance throughout the day.
2. Don't have any wrong behaviour. Show everyone the path to the land of happiness. Have an interest in doing service.
 Blessing- May you renounce even any subtle traces of body consciousness and arrogance and become subtle to incorporeal.
--Some do not have any attachment to physical bodies nor do they have arrogance, but they do have ego in relation to their bodies. This means they have ego, intoxication and bossiness about having special sanskars, special intellects, special virtues, special talents or special powers. This is subtle ego of the body. This ego will never allow you to become a subtle angel or incorporeal. So, renounce even the slightest trace of that and you will easily be able to become subtle to incorporeal.
 Slogan- Be co-operative at a time of need and you will receive a multimillion-fold return. 
HINDI DETAIL MURALI

28/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 
''मीठे बच्चे - तुम्हें अच्छे संस्कार धारण कर पतितों को पावन बनाने की सर्विस करनी है, अंधों की लाठी बनना है''
प्रश्न:पिछाड़ी के समय कौन सी अवस्था आनी है?
उत्तर:
पिछाड़ी के समय निरन्तर रूहानी यात्रा करते रहेंगे। बैठे-बैठे साक्षात्कार होंगे। बाप और वर्सा याद आता रहेगा। वैकुण्ठ देखते रहेंगे, बस अभी हम यह प्रालब्ध पायेंगे। हर्षित होते रहेंगे। परन्तु अच्छा पुरुषार्थ नहीं किया तो पछताना भी होगा। सज़ाओं का भी साक्षात्कार करेंगे।
 
गीत:-
 
रात के राही... 
 
ओम् शान्ति।
 
यह है रूहानी यात्रा। सबसे जास्ती महत्व इस रूहानी यात्रा का है। यह है ईश्वरीय भाषा अथवा भाषण। तुम भी भाषण करते हो ना। बाप कहते हैं - सबसे जास्ती तो मैं भाषण करता हूँ क्योंकि मैं ज्ञान का सागर हूँ और फिर पतित-पावन सद्गतिदाता हूँ। ज्ञान से सद्गति होती है। बाप कहते हैं - वास्तव में मेरा नाम भी एक ही है। ज्ञान का सागर और सद्गति दाता तो एक को ही कहेंगे। बहुतों को तो नहीं कह सकते। दूसरे मनुष्य यह भी समझते हैं कि यह ड्रामा है। चक्र भी दिखाते हैं। परन्तु चक्र की आयु भिन्न-भिन्न दिखाते हैं। चक्र का भी ज्ञान चाहिए। लाखों वर्ष कह देने से कोई बात का विचार भी नहीं कर सकते। बाप को कहते हैं सर्व का सद्गति दाता, लिबरेटर। इतनी आत्मायें जो ऊपर से आई हैं, पहले यहाँ नहीं थी फिर जरूर नहीं होंगी। तो इतने सबको कौन आकर वापिस ले जायेंगे। गाइड तो है ही एक परमपिता परमात्मा। गाइड अर्थात् जो आगे रास्ता दिखाता चले। गाते भी हैं पतित-पावन, गाइड है। सर्व का सद्गति दाता है। गुरू होता ही है गति करने वाला। गुरू को आगे, फालोअर्स को पीछे रखा जाता है। यहाँ ऐसी बात नहीं है। यहाँ तो बाप कहते हैं बच्चे तुम आगे चलो क्योंकि गऊशाला भी है ना। गऊओं के पीछे-पीछे ग्वाला रहता है, नहीं तो गऊएं इधर-उधर चली जायें। बाप भी पिछाड़ी में रहते हैं। आजकल भगत लोग समझते हैं - आगे महात्मा जी हों। उनसे आगे जाना बेइज्जती समझते हैं। बाबा कहेंगे बच्चे तुम आगे हो। बाप को तो पिछाड़ी में सारी नज़र करनी पड़ती है कि कोई खा न जाये। मिसाल है ना शेर रे शेर.. परन्तु शेर था नहीं। तुम्हारे लिए भी कहते हैं कि यह बी.के. तो कहती हैं विनाश होगा, होता नहीं है। परन्तु होना तो जरूर है। आगे चल मनुष्य समझ जायेंगे बरोबर विनाश का समय है। तुम बच्चे जानते हो विनाश किसलिए है? दुनिया को कुछ मालूम नहीं। अच्छा महाभारत लड़ाई के बाद क्या हुआ? किसको पता नहीं। तुम बच्चे भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हो। हमको बाबा की मदद है। तुम जानते हो बाबा आया है पतितों को पावन बनाने। तो बच्चों को भी यही सर्विस कर ऊंच पद पाना है, पतितों को पावन बनाना है। अन्धों की लाठी बनना है। रास्ता बताया जाता है, अल्फ और बे का। बस फिर पढ़ाई बहुत सहज है। झाड़ सामने खड़ा है। त्रिमूर्ति तो नम्बरवन है शिव के साथ। त्रिमूर्ति मशहूर है। शिव परमात्मा तो उनसे भी ऊंच है। वह तो फिर भी सूक्ष्म है। उनसे ऊंच है परमात्मा। परन्तु उनका नाम, रूप, देश, काल कुछ भी नहीं जानते। तुम बच्चे भी पहले नहीं जानते थे। दिन-प्रतिदिन सब कुछ समझाया जा रहा है। अभी तुम समझ चुके हो हम आत्मा हैं। संस्कार आत्मा में भरते हैं। अच्छे वा बुरे संस्कार आत्मा में हैं। इस समय अच्छे संस्कार बहुत कम हैं। बाकी हैं बुरे गिरने के संस्कार। इस समय कोई के भी अच्छे संस्कार नहीं कहेंगे। जबकि है ही रावणराज्य। मायावी दुनिया में भी कोई अच्छे, कोई बुरे तो होते ही हैं। कोई पाप करते होंगे तो कहेंगे इनके संस्कार अच्छे नहीं हैं। बुरे संस्कार वाले अच्छे संस्कार वाले देवताओं के आगे जाकर उनकी महिमा गाते हैं। भारत बिल्कुल अच्छे संस्कार वाला था। अब बुरे संस्कार वाला है। मनुष्य को यह भी पता नहीं है। बाप समझाते हैं जो ऊपर से नई आत्मायें आती हैं, पहले अच्छे संस्कार वाली होती हैं फिर बुरी हो जाती हैं। फिर उन्हों को ही तमोप्रधान से सतोप्रधान जरूर होना है। भारत के ही चित्र सामने हैं। बुरे संस्कार वाले बैठ देवताओं का वर्णन करते हैं क्योंकि वह हैं दैवीगुण वाले। यह हैं आसुरी गुण वाले। समझते भी हैं विकार में जाना आसुरी स्वभाव है इसलिए सन्यासी भाग जाते हैं। फिर कहते हैं मैं फलाने सन्यासी का फालोअर्स हूँ। परन्तु सब तो फालो करते नहीं।
तुम जानते हो यह देवी-देवता पवित्र प्रवृत्ति मार्ग के थे, वही अब अपवित्र बने हैं। बाप समझाते हैं - तुमने पूरे 84 जन्म लिए हैं। दैवी दुनिया और आसुरी दुनिया गाई जाती है। अभी तुम समझते हो रावण के कारण ही इतना दु:ख हुआ है। बाप सम्मुख समझाते हैं तुम ही पूज्य थे सो अब पुजारी बने हो। फिर मैं आकर पूज्य बनाता हूँ। बाप तो सदा पूज्य है ब्रह्मा को एवर पूज्य नहीं कहेंगे। एवर पूज्य एक बाप ही है जो कहते हैं मैं आकर तुमको 21 जन्मों के लिए पूज्य बनाता हूँ। बहुत ढेर के ढेर देवियाँ हैं। तुम बहुतों ने मिलकर भारत को पावन बनाया है। अब तुम्हारी बुद्धि में फर्स्टक्लास नॉलेज है कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है। बाप ही सारा राज़ समझाकर अपने साथ रूहानी यात्रा पर ले जाते हैं। वह है प्रीचुअल फादर, आत्माओं का बाप। उनकी ही महिमा गाते हैं - हे पतित-पावन आओ। बहुत मनुष्य समझते हैं कि आत्मा पतित होती है। कई फिर नहीं भी समझते हैं। बुरे वा अच्छे संस्कार आत्मा में ही हैं, आत्मा ही दु:ख उठाती है। तो बाप समझाते हैं बच्चे सर्विस करो। पाप आत्माओं को पावन पुण्य आत्मा बनाओ। भारत का गायन है कि भारत जैसा पुण्य आत्मा कोई नहीं। शिव पर बलि भी भारत में चढ़ते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। समझते थे हम शिवपुरी मुक्तिधाम में चले जायेंगे। ऐसे नहीं कि सेकण्ड में उन्हों को मुक्ति मिलती है। हाँ जो पाप किये हुए हैं उनसे मुक्ति मिलती है। बाकी वापिस स्वीट होम में तो कोई जा नहीं सकते। स्वीट होम है मात-पिता का घर। मनुष्य तो कुछ भी जानते नहीं। अन्धश्रधा से सिर्फ ईश्वर कह देते हैं। जब ईश्वर एक है फिर मात-पिता क्यों कहते हो? वह है रचता तो जरूर माता भी होगी, नहीं तो रचना कैसे हो? तुम मात-पिता हम बालक तेरे.... तो बालक जिस्मानी ठहरे ना। शिवबाबा ब्रह्मा मुख द्वारा तुमको अपना बनाते हैं, इनमें प्रवेश कर एडाप्ट करते हैं। अभी तुम बाप द्वारा सम्मुख सुन रहे हो। फिर 5 हजार वर्ष के बाद सुनेंगे। अभी जो तुम लिख रहे हो वह सब खत्म हो जायेगा। फिर यह बातें बताये कौन? समझो कोई नीचे से पुराने कागज आदि निकलते हैं, जिससे शास्त्र बैठ बनाते हैं फिर भी भक्ति मार्ग वाले वही शास्त्र निकलेंगे। कोई नये नहीं बनाये हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार नीचे से वही निकले होंगे। गीता, भागवत, महाभारत, रामायण आदि फिर भी वही बनेंगे। स्वर्ग की सामग्री भी वही बननी है जो कल्प आगे थी। हम अभी समझते हैं स्वर्ग में जाकर ऐसे-ऐसे महल बनायेंगे।
तुम बच्चों को स्थाई खुशी रहनी चाहिए। हम जाकर प्रिन्स बनेंगे। अगर निश्चय नहीं है तो स्कूल में जैसा बेसमझ बैठा हो। यहाँ भी अगर नॉलेज समझकर किसको समझाते नहीं तो बेसमझ हुए ना। राजायें तो बनने हैं फिर कोई सूर्यवंशी में बनेंगे कोई चन्द्रवंशी में। पढ़ाई में बहुत-बहुत फ़र्क पड़ जाता है। बाप तो अच्छी रीति समझाते रहते हैं। बच्चों को अच्छी रीति पुरुषार्थ करना पड़े। बाप और क्या करेंगे? समझायेंगे रूहानी यात्रा पर रहो। और कुछ नहीं समझा सकते हो तो चित्रों पर समझाओ। यह भी देखते हो जिनको समझाते हैं वह तीखे हो जाते हैं। और धर्म वाले भी आते हैं। बाबा ने साक्षात्कार तो पहले ही कराये हैं कि यह इब्राहम, बौद्ध, क्राइस्ट भी आयेंगे। यह सब समझने की बातें बिल्कुल ही सहज हैं। सृष्टि चक्र को समझना बहुत सहज है। मुश्किल बात है - बाप की याद में रहना। पवित्र भी बन जायें। डिफीकल्ट है रूहानी यात्रा, जिसमें थक जाते हैं। अगर सारा दिन याद ठहर जाये फिर तो कर्मातीत अवस्था ही हो जाये। स्कूल में पास तो तब होंगे जब रिजल्ट निकलेगी। मुख्य है रूहानी यात्रा की बात। रूहानी यात्रा, यह अक्षर बहुत अच्छा है। योग में ही मेहनत है। हठयोग सिखलाने वाले तो बहुत हैं परन्तु यह है रूहानी योग। तुम्हारे सिवाए कोई समझा नहीं सकते। इस राजयोग से ही मनुष्य पतित से पावन हो सकते हैं। यह योग बाबा और तुम बच्चे ही सिखला सकते हो। बाहर में जब सभी सुनेंगे तो कहेंगे कि हमारा योग ठीक है और सभी झूठे योग हैं। बाहर में भी बच्चों को जाना तो है ना। इस योग को कोई जानते नहीं हैं। उसका नाम ही है हठयोग। यह है राजयोग। भगवानुवाच, मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, वह हठयोग मनुष्य सिखाते हैं। अब भगवान कौन? कृष्ण ने तो योग से इतना पद पाया। भगवान तो ऊंचे ते ऊंच निराकार है। तो बीज और झाड़ का ज्ञान बहुत सहज है। बाकी याद में नहीं रह सकते। झाड़ आदि का राज़ बहुत सहज है किसको समझाना। बच्चे बहुत अच्छी रीति समझाते भी हैं, बाकी योग में मेहनत है। घड़ी-घड़ी एक दो को सावधानी देते रहें तो भी अहो भाग्य। समझते हैं सहज भी है तो मुश्किल भी है। बहुत फेल होते हैं इसलिए कहते हैं हमको योग में बिठाओ, हमको शान्ति पसन्द आती है। शान्ति का नाम सुना है ना। कोई कहते हैं नेष्ठा में हमको शान्ति मिलती है। यह भी गपोड़ा है। आधा घण्टा योग में बैठकर चले गये वह कोई शान्ति नहीं, वह अल्पकाल की हो गई। शान्ति तब मिल सकती है जब गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बन रूहानी यात्रा पर रहें। ऑफिस में बैठे, घर में बैठे यात्रा करते रहे। जो अवस्था तुम्हारी पिछाड़ी में आनी है। बैठे-बैठे साक्षात्कार करते रहेंगे। बाप और वर्सा याद आता रहेगा। वैकुण्ठ देखते रहेंगे। बस अभी हम यह प्रालब्ध पायेंगे। पिछाड़ी में बहुत साक्षात्कार होंगे, पछताना भी यहाँ होगा। जब देखेंगे फलाने-फलाने क्या बनते हैं, हम क्या बनते हैं। सजायें भी बहुत खायेंगे। बाप कहेंगे हम तो तुमको समझाते रहे। तुमने समझा नहीं। सिवाए प्ऱूफ किसको सज़ा नहीं मिल सकती। साक्षात्कार कराकर फिर सज़ा देते हैं। तो बच्चों को अच्छी रीति समझाया जाता है। अभी पुरुषार्थ नहीं करेंगे तो कल्प-कल्प ऐसा ही ढीला पुरुषार्थ होगा। अभी तुम समझ सकते हो हमसे फलाने ऊंच पद पायेंगे, सर्विस का बहुत शौक है। कोई आये तो रास्ता बतायें। इतना हर्ष रहता है। डूबे हुए को पार कराना है, तैरने वाले जो होते हैं वह झट कूद पड़ते हैं, गाते हैं नईया मेरी पार लगा दो। बाप हमको सच्चा रास्ता बता रहे हैं। हमको फरमान मिला है कोई भी आये तो उनको अपना लक्ष्य बताना है। बाकी यह शास्त्र आदि सब भक्ति कल्ट के हैं। पतित-पावन एक बाप ही है जो आकर गीता ज्ञान सुनाते हैं। श्री-श्री 108 यह रूद्र अर्थात् शिव निराकार की माला है। निराकार आकर पढ़ाते हैं। यह कोई शास्त्र का ज्ञान नहीं है। हमको तो बाप ज्ञान सुनाते हैं। महिमा ही बाप की है। ज्ञान का सागर वह है। ऐसा समझाना चाहिए जो वह कोई बात बीच में कर न सके। हम बेहद के बाप से पढ़ते हैं। सर्व का सद्गति दाता वह बाप है। इस पर जोर देना चाहिए। नहीं समझते तो छोड़ दो। बोलो, तुम देवता धर्म के ही नहीं हो। यह रास्ता छोड़ दो। परन्तु समझाने की हिम्मत चाहिए। सन्यासी भी कोई-कोई आ जाते हैं। आगे चल वृद्धि को पायेंगे। कुम्भ मेले पर कितने ढेर आते हैं स्नान करने। दिन-प्रतिदिन भक्ति भी तमोप्रधान होती जाती है। इसको फाल ऑफ पाम्प कहा जाता है। यह भी एक खेल है, जिसमें दिखाते हैं दुनिया विनाश कैसे होती है। अभी उनकी पाम्प है। तुम बच्चों को सदैव नशा रहना चाहिए कि बाबा हमको पढ़ाते हैं। बाबा हमको सुखधाम का रास्ता बताते हैं। अगर हम औरों को रास्ता न बतायें तो बच्चे कैसे कहलायें। उल्टी चलन से इज्जत गँवा देते हैं। बहुत बच्चे समझते हैं हम पाप करते हैं, बाप को मालूम थोड़ेही पड़ता है। अरे भक्ति मार्ग में भी मुझे सब मालूम पड़ता है तब तो तुमको फल मिलता है। बाप को तो तरस पड़ता है - बच्चे अभी तक छिपाकर भूलें करते रहते हैं। समझते नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) रूहानी यात्रा पर रहने के लिए एक दो को सावधान करते रहना है। कर्मातीत अवस्था में जाने के लिए सारा दिन याद में रहने की मेहनत करनी है।
2) कोई भी उल्टी चलन नहीं चलनी है। सबको सुखधाम का रास्ता बताना है। सर्विस का शौक रखना है।
 वरदान:देह-अंहकार वा अभिमान के सूक्ष्म अंश का भी त्याग करने वाले आकारी सो निराकारी भव!
कईयों का मोटे रूप से देह के आकार में लगाव वा अभिमान नहीं है लेकिन देह के संबंध से अपने संस्कार विशेष हैं, बुद्धि विशेष है, गुण विशेष हैं, कलायें विशेष हैं, कोई शक्ति विशेष है-उसका अभिमान अर्थात् अंहकार, नशा, रोब - ये सूक्ष्म देह-अभिमान है। तो यह अभिमान कभी भी आकारी फरिश्ता वा निराकारी बनने नहीं देगा, इसलिए इसके अंश मात्र का भी त्याग करो तो सहज ही आकारी सो निराकारी बन सकेंगे।
 स्लोगन:समय पर सहयोगी बनो तो पदमगुणा रिटर्न मिल जायेगा।

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Details ( Page:- Murali 29-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 29.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche -Tum roohani aashik ho-ek mashuk Paramatma ke,tumhe ek ko he dil se yaad karna hai,dil ki preet ek Baap se rakhni hai.
 Q- Mahaveer baccho ki sthiti aur purusharth kya hoga-uski nishaani sunao?
 A- Wo yog se aatma ko pavitra(satopradhan) banane ka purusharth karte rahenge.Unhe baki koi bhi baat ki parwah nahi hogi.Unki buddhi me rahega ki ab purani duniya me transfer hona hai.Woh binash se darenge nahi.Unke dil ke andar roohani pyaar ki aag rahegi.Woh purusharth karte-karte rudra mala ka daana ban jayenge.
  Dharana ke liye mukhya saar:-
 1)Padhai achchi tarah padhni aur padhani hai.Sachcha aashik ban ek Baap se roohani love rakhna hai.Koi bhi bikarm nahi karne hain.
2)Koi bhi bighna ya aapdayein aaye lekin Baap se munh nahi modna hai.Bighno ko paar kar pahalwan banna hai.
  Vardan:- Nirmanta ki mahanta dwara sarv ki duwayein prapt karne wale Master Sukhdata bhava.
 Slogan:- Shrest jeevan ka anubhav karne ke liye nischay ka foundation mazboot ho.

English Summary ( 29th Dec 2017 )

Sweet children, you are spiritual lovers of the one Beloved, the Supreme Soul. You must only remember the One in your hearts; let the love in your hearts be for the one Father.
 Q- What is the stage and effort of mahavir children? What are their signs?
 A- Those souls continue to make effort to make themselves pure and satopradhan. They are not concerned about anything else. It remains in their intellects that they now have to be transferred from the old world to the new world. They have no fear of destruction. They have the fire of spiritual love in their hearts. By making effort, they become beads of the rosary of Rudra.
Essence of Dharna
1. Study and teach others very well. Become a true lover and have spiritual love for the Father.Don't perform sinful actions.-
2. If there are any obstacles or calamities, do not turn your face away from the Father. Overcome the obstacles and become very brave.
 
 Blessing - May you be a master bestower of happiness and receive everyone’s blessings with your greatness of humility.
-The sign of greatness is humility. To the extent that you are humble, you will automatically become great in everyone’s heart. Humility easily makes you egoless. The humility seed automatically enables you to attain the fruit of greatness. Humility is the easy way to receive everyone’s blessings. Humility makes you praise worthy. Humility makes a loving place in everybody’s mind. Such souls become master bestowers of happiness, the same as the Father.
 

 SLogan- In order to experience an elevated life, make your foundation of faith strong. 
HINDI DETAIL MURALI

29/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 ''मीठे बच्चे - तुम रूहानी आशिक हो - एक माशुक परमात्मा के, तुम्हें एक को ही दिल से याद करना है, दिल की प्रीत एक बाप से रखनी है''
 
प्रश्न:महावीर बच्चों की स्थिति और पुरुषार्थ क्या होगा - उसकी निशानी सुनाओ?
उत्तर:
वह योग से आत्मा को पवित्र (सतोप्रधान) बनाने का पुरुषार्थ करते रहेंगे। उन्हें बाकी कोई भी बात की परवाह नहीं होगी। उनकी बुद्धि में रहेगा कि अब पुरानी दुनिया से नई दुनिया में ट्रांसफर होना है। वह विनाश से डरेंगे नहीं। उनके दिल के अन्दर रूहानी प्यार की आग रहेगी। वह पुरुषार्थ करते-करते रुद्र माला का दाना बन जायेंगे।
 
गीत:-न वह हमसे जुदा होंगे...  ओम् शान्ति।
 
इसको कहा जाता है रूहानी प्यार अर्थात् रूहों का रूहानी बाप के साथ प्यार। दुनिया भी उस रूहानी बाप को ही याद करती है कि हमको दु:ख से लिबरेट करो या दु:ख हरो। अब दु:ख हरो के पिछाड़ी सुख करो भी कहेंगे। सुख है ही सतयुग आदि में तो जरूर कलियुग अन्त में दु:ख होगा। यह बातें तुम बच्चे समझते हो। सारी दुनिया तो नहीं जानती है। तुम्हारे में भी थोड़े हैं। कोटों में कोई कहा जाता है ना। यह है रूहानी लव आत्माओं का परमात्मा के साथ। सारी दुनिया का माशूक एक ही परमात्मा है। वह सभी आत्माओं का माशूक है, जिसको ही सब पुकारते हैं। आत्मायें तो छोटी-बड़ी नहीं होती हैं। अब तुम आत्माओं का लव हो गया है एक परमपिता परमात्मा के साथ। इनको रूहानी प्यार कहा जाता है। दुनिया में वह आशिक माशूक तो जिस्मानी होते हैं। उनका आपस में प्यार भी जिस्मानी होता है। तुम्हारा तो रूहानी प्यार है। बाप ही आकर तुम्हारे दु:ख हरकर सुख देते हैं। तुमको बहुत सुख मिलता है फिर दु:ख भी बहुत मिलता है। बाप कहते हैं - हे बच्चे, अब तुम्हारा प्यार मेरे साथ हुआ है क्योंकि तुम जानते हो बाबा हमको सुखधाम का मालिक बनाने वाला है। मुक्ति और जीवनमुक्ति का दाता है। बाप कहते हैं तुम रहो भी भल अपने-अपने घर में, जैसे जिस्मानी आशिक माशुक भी अलग-अलग अपने घर में रहते हैं, यह भी ऐसे है। मैं दूरदेश से आता हूँ तुमको पढ़ाने। तुमने बुलाया है कि हे पतित-पावन आओ, हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता अब आओ। वास्तव में आता तो मैं अपने टाइम पर हूँ। ऐसे नहीं तुम्हारी पुकार पर आ जाता हूँ। मैं आता तब हूँ जबकि तुमको कलियुग से सतयुग में चलना है वा मनुष्य से देवता, भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनना है। तो अब तुम्हारा बाप के साथ रूहानी लव है। तुम्हारे अन्दर रूहानी प्यार की आग लगी हुई है। जैसे अज्ञान में काम-क्रोध की आग लगती है। अब तुम आत्माओं का प्यार होता है बाप के साथ। दुनिया तो कुछ भी समझती नहीं है। कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है, नाम रूप से न्यारा है। एक तरफ कहते हैं नाम रूप से न्यारा, दूसरे तरफ कहते सर्वव्यापी है। तो उसमें मनुष्य जानवर आदि सब आ गये।
अब तुम बच्चे जानते हो - आत्माओं का माशूक है परमात्मा, उनसे प्रीत लगानी है। यह तो जानते हैं आपदायें बहुत आयेंगी। भिन्न-भिन्न प्रकार के विघ्न भी पड़ेंगे। विघ्न तो हर एक को पड़ते हैं। यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि नई दुनिया की स्थापना के लिए बाबा बिल्कुल नई बातें सुना रहा है। लिखा हुआ भी है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। परन्तु स्थापना और विनाश की बात को कोई समझते नहीं हैं। स्थापना किसकी? कहते हैं राजस्व अश्वमेध ज्ञान यज्ञ रचा। जरूर यज्ञ रचा स्वराज्य के लिए। नर से नारायण और नारी से लक्ष्मी बनने के लिए राजयोग सिखाते हैं। अच्छा फिर उसकी रिजल्ट कहाँ? यह है नई बात इसलिए मनुष्य मूँझते हैं। गुरू लोग तो किसको मुक्ति जीवनमुक्ति दे न सके। यह बस गपोड़े लगाये हैं कि फलाना पार निर्वाण गया अथवा वैकुण्ठवासी हुआ। बाबा ने समझाया है दिलवाला मन्दिर में ऊपर वैकुण्ठ के चित्र दिखाये हैं, नीचे तपस्या के। अब तुमको समझ मिली है कि यह भारत ही वैकुण्ठ था। कब था, यह भी तुम ही जानते हो। पुजारी लोग क्या जानें! मनुष्य ही कौड़ी जैसा, मनुष्य ही हीरे जैसा बनता है। आगे यह बातें ख्याल में भी नहीं थी। बाप ने बतलाया है कि पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है। अगर अच्छा पुरुषार्थ करेंगे तो नई राजधानी में ऊंच पद पायेंगे। अच्छा पुरुषार्थ करेंगे तो अच्छा पद मिलेगा। तुम्हारे लिए स्वर्ग कोई दूर नहीं है। जैसे स्कूल में बच्चे पढ़कर पास होते हैं तो एक क्लास से दूसरे में ट्रांसफर होते हैं। तुम भी ट्रांसफर होते हो पुरानी दुनिया से नई दुनिया में। तुम जानते हो हम पुरुषार्थ करते-करते जाकर पहले-पहले रूद्र माला का दाना बनेंगे। स्कूल में भी पास होते हैं तो फिर नम्बरवार जाकर बैठते हैं। यहाँ भी तुम बच्चे जानते हो हम पढते हैं फिर हम आत्मायें मूलवतन में चले जायेंगे, फिर नई दुनिया में आयेंगे। पिछाड़ी में सबको मालूम पड़ेगा। रिजल्ट पिछाड़ी में निकलेगी। जो महावीर होंगे वह कोई भी बात की परवाह नहीं रखेंगे। जानते हैं विनाश तो होना ही है। डरने की बात ही नहीं। अर्थक्वेक तो होनी ही है। तुमको तो जाना है नई दुनिया में। जैसे स्टूडेन्ट समझते हैं हम दूसरे क्लास में ट्रांसफर होंगे। अब हमारी आत्मा पढ़ रही है - परमपिता परमात्मा से। तुम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो। तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे, पढ़ाई भी फाईनल हो जायेगी, फिर हम पास होकर बाबा के पास पहुँच जायेंगे। यह तो जानते हो जो कल्प पहले हुआ है अब वही होना है। पुरुषार्थ तो बच्चों को हर बात में करना ही है। तुम बच्चे योगबल से अपने को पवित्र बना रहे हो। योग से ही आत्मा की खाद निकलती है। हमको पूरा-पूरा योगी बनना है। हम आधाकल्प के आशिक हैं। अभी हमें माशूक मिला है। वह हमको नई दुनिया में जाने के लिए लायक बना रहे हैं। कर्म भी करना है। यह सब कुछ करते हुए याद एक ही बाप को करना है। तुम्हारी बुद्धि में है - योग से हम अपने को पवित्र बना रहे हैं। योग से आत्मा की खाद निकलती है, हमको पूरा योगी बनना है। इसमें ही बड़ी पहलवानी चाहिए। आशिक-माशूक अपना धन्धाधोरी भी करते हैं और माशूक को भी याद करते रहते हैं। वह आशिक माशूक विकार के लिए नहीं होते हैं। वह शरीर पर आशिक होते हैं तब उनका गायन है। यह है रूहानी आशिक माशूक। तुमने आधाकल्प मुझे पूरा याद किया है। अब तुमको आकर मिला हूँ। मनुष्य समझते हैं भगवान से मुक्ति मिलेगी। बाप कहते हैं तुम्हारे लिए मुक्ति से जीवनमुक्ति भी अटैच है। मुक्ति में जाकर फिर जीवनमुक्ति में जरूर आयेंगे। माया के बंधन से छूट जाते हैं, फिर आते हैं सतोप्रधान में। पहले सुख के पीछे दु:ख का कायदा है। सबको सतो रजो तमो में आना ही है। अभी तमोप्रधान जड़जड़ीभूत अवस्था है झाड़ की। अब उनसे ही कलम लगानी है। दैवी झाड़ का कलम लग रहा है। वो लोग सैपलिंग बनाते हैं झाड़ों आदि की। उनकी सेरीमनी करते हैं। तुम्हारी क्या सेरीमनी होगी? उनकी है जंगल की सेरीमनी। तुम्हारी है बहिश्त की सेरीमनी। तुम कांटों को फूल बनाते हो। यह सारी संगम की बात है। अब पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है। निरन्तर याद की ही कोशिश करनी है। तुमको फायदा बहुत होगा। अच्छा वर्सा मिलेगा। बाप के साथ योग अथवा पूरा लव चाहिए। उनसे ही विकर्म विनाश होते हैं। तुम्हारे में जो खाद पड़ी है वो योग से ही निकलती है। सारा मदार है याद करने पर। नहीं तो माया विकर्म करा देती है। बाप कहते हैं जो कुछ विकर्म किया है। वह बाप के आगे रख माफी मांगनी है। बाप सम्मुख आये हैं तो तोबा भर लो (माफी ले लो)। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं जो बाप को पूरा लव करते हैं। लव करने वाले ही बाप की राय पर चलते होंगे। तुम सब सीताओं का राम एक ही बाप है। तुम तो समझ गये हो अब औरों को समझाना है। बाकी भक्ति तो एक प्रकार की दुकानदारी है। यह करते-करते ही मर जायेंगे। लड़ाईयाँ लगेंगी, विनाश होगा। फिर तो कुछ कर भी नहीं सकेंगे। भक्तिमार्ग भी ऐसे ही खत्म हो जायेगा। अभी तुम बच्चे बाप से वर्सा ले रहे हो। बाप कहते हैं बच्चे भूलो नहीं। तुम सबसे जास्ती लवली (प्यारे) हो। तुमको ही सबसे ऊंच पद मिलता है। नहीं पढ़ेंगे तो पद भी नहीं पायेंगे।
बाबा कहते हैं जो कुछ बीमारी आदि होती है यह तुम्हारे ही कर्मों का हिसाब-किताब है। तुमको तो पढ़ना और पढ़ाना है। यह राजधानी स्थापन हो रही है। इसमें गरीब, साहूकार, प्रजा, नौकर, चाकर आदि सब बनने हैं। जो बादशाह बनते हैं जरूर उन्होंने अच्छे कर्म किये हैं। श्रीमत पर चलते हैं तब अच्छा पद पाते हैं, बड़ा भारी स्कूल है। नम्बरवार मर्तबे हैं। कोई बैरिस्टर लाख रूपया कमाते हैं, कोई बैरिस्टर 500 भी नहीं कमाते। कहेंगे तकदीर। पढ़ाई पूरी नहीं पढ़ सकते हैं तो कहेंगे ड्रामा अनुसार इनकी तकदीर ऐसी है। पढ़ाई के अनुसार ही पद पायेंगे। आगे चलकर तुमको पूरा-पूरा साक्षात्कार होता रहेगा। कहेंगे तुम्हारे ऊपर इतनी मेहनत की फिर तुम पढ़े नहीं। अब तो सजा खानी पड़ेगी। जन्म-जन्मान्तर की सजाओं का साक्षात्कार होता है। कर्मातीत अवस्था में जाना है तो पिछाड़ी में सब साक्षात्कार करते रहेंगे। ऐसे-ऐसे किया है, उसकी यह-यह सज़ा है। सज़ाओं का भी साक्षात्कार कराते हैं। अभी तुम जानते हो हम आत्मायें बच्चे हैं। भक्ति मार्ग में माशूक के आशिक थे। अब तो वह मिल गया है। इस माशूक से क्या मिलता है? ओहो! वह हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। तुम अब बाप और वर्से को जान गये हो, इसलिए बाप समझाते हैं कोई भी मिले तो समझाओ - तुमको दो बाप हैं - एक हद का, दूसरा बेहद का। बेहद के बाप से 21 पीढ़ी सुख का वर्सा मिलता है। रावण के राज्य में दु:ख ही दु:ख है इसलिए बाबा को याद करते हैं - हे दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ। कितनी सहज बात है। सिर्फ ब्रह्मा का मुख देख मनुष्यों का माथा खराब हो जाता है। प्रजापिता ब्रह्मा कोई तो होगा ना। नहीं तो कहाँ से लायेंगे। बी.के. का प्रूफ देंगे। हम बी.के. बाप के पास बैठे हैं। यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ है तो प्रजापिता ब्रह्मा भी यहाँ ही होगा।
बाप कहते हैं - माया तुमसे बहुत लड़ेगी। बाप को याद करने नहीं देगी इसलिए खबरदार रहना। माया तुम्हारा बाप से मुख मोड़ने का पुरुषार्थ करेगी। परन्तु तुमको मोड़ना नहीं है। तुम्हारे पैर हैं नर्क की तरफ और मुख है स्वर्ग की तरफ। अब वैकुण्ठ में जाना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पढ़ाई अच्छी तरह पढ़नी और पढ़ानी है। सच्चा आशिक बन एक बाप से रूहानी लव रखना है। कोई भी विकर्म नहीं करने हैं।
2) कोई भी विघ्न या आपदायें आयें लेकिन बाप से मुँह नहीं मोड़ना है। विघ्नों को पार कर पहलवान बनना है।
 वरदान:निर्माणता की महानता द्वारा सर्व की दुआयें प्राप्त करने वाले मास्टर सुखदाता भव!
महानता की निशानी निर्माणता है, जितना निर्माण बनेंगे उतना सबके दिल में महान स्वत: बनेंगे। निर्माणता निरंहकारी सहज बनाती है। निर्माणता का बीज महानता का फल स्वत: प्राप्त कराता है। निर्माणता ही सबकी दुआयें प्राप्त करने का सहज साधन है। निर्माणता महिमा योग्य बना देती है। निर्माणता सबके मन में प्यार का स्थान बना देती है। वह बाप समान मास्टर सुखदाता बन जाते हैं।
 स्लोगन:श्रेष्ठ जीवन का अनुभव करने के लिए निश्चय का फाउण्डेशन मजबूत हो।

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Details ( Page:- Murali 30-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 30.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Mithe bacche -Tum karmkshetra par aaye ho part bajane,tumhe karm zaroor karne hain,aatma ka swadharm shanti hai,isiliye shanti nahi maangni hai,swadharm me tikna hai.
 Q- Bane banaye drama ko jaante huye bhi Baap tumhe kaun si baat nahi batlate?kaaran kya?
 A- Baap jaante hain-kal kya hone wala hai to bhi batayenge nahi.Aise nahi kal earthquake hogi-yah aaj he bata de.Agar batla de to drama real na rahe.Tumhe sab kuch sakshi hokar dekhna hai.Agar pehle se he pata ho to us samay Baap ki yaad bhi bhool jayegi.Picchadi ki scene dekhne ke liye tumhe Mahaveer banna hai.Achal-adol rehna hai.Baap ki yaad me sarir chhode,iske liye parivakwa avastha banani hai.
 
 Dharana ke lkye mukhya saar:-
 1)Kisi bhi baat me sansay buddhi ban padhai nahi chhodni hai.Apni sthiti achal,adol banani hai.Ek Baap se sachcha love rakhna hai.
2)Apna time bistaar ki baaton me waste nahi karna hai.Buddhi kisi bhi karm me malin na ho,iska poora dhyan rakhna hai.
 Vardan:- 'Main' sabd ki smriti dwara apne original swaroop me sthit hone wale Deha ke Bandhan se Mukt bhava.
 Slogan:- Nischit bijay aur nischint sthiti ka anubhav karne ke liye sampoorn nischay buddhi bano.
English Summary ( 30th Dec 2017 )
 Sweet children, you have come on to the field of action to play your parts. You definitely have to perform actions. The original religion of souls is peace. Therefore, you mustn't ask for peace but must remain stable in your original religion.
 Q- Knowing the predestined drama, what does the Father not tell you? What is the reason for that?
 A- The Father knows what is to happen tomorrow and yet He doesn’t tell you. It isn't that He would tell you today that an earthquake is to take place tomorrow. If He were to tell you this, the drama wouldn't be real. You have to observe everything as detached observers. If you were to know in advance, you would forget to have remembrance of the Father at that time. In order to see the final scenes, you have to become mahavirs. You have to remain unshakeable and immovable. In order to shed your bodies while in remembrance of the Father, you have to make your stage very strong.
 
 Essence of Dharna
 1. Don't develop doubt about anything and thereby stop studying. Make your stage unshakeable and immovable. Have true love for the one Father.-
2. Don’t waste your time in detailed matters. Pay full attention to your intellect not becoming dirty through any action.
 
Blessings- May you be free from any bondage of the body and remain stable in your original form with the awareness of the word “I”.
-The one word “I” can make you fly and the same word “I” can bring you down. When you say “I”, remember your original incorporeal form. Let this become natural. Let the “I” of body consciousness finish and you will then become free from any bondage of the body because the word “I” takes you into ego of the body and ties you in the bondage of karma. However, when you have the awareness that “I am an incorporeal soul”, you can then go beyond the consciousness of the body and go into a relationship not bondage of karma.
  Slogan- In order to experience guaranteed victory and a carefree stage, let your intellect have complete faith.
HINDI DETAIL MURALI

30/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 ''मीठे बच्चे - तुम कर्मक्षेत्र पर आये हो पार्ट बजाने, तुम्हें कर्म जरूर करने हैं, आत्मा का स्वधर्म शान्ति है, इसलिए शान्ति नहीं मांगनी है, स्वधर्म में टिकना है''
 प्रश्न: बने बनाये ड्रामा को जानते हुए भी बाप तुम्हें कौन सी बात नहीं बतलाते? कारण क्या?
 उत्तर:
बाप जानते हैं - कल क्या होने वाला है तो भी बतायेंगे नहीं। ऐसे नहीं कल अर्थक्वेक होगी - यह आज ही बता दें। अगर बतला दें तो ड्रामा रीयल न रहे। तुम्हें सब कुछ साक्षी होकर देखना है। अगर पहले से ही पता हो तो उस समय तुम्हें बाप की याद भी भूल जायेगी। पिछाड़ी की सीन देखने के लिए तुम्हें महावीर बनना है। अचल-अडोल रहना है। बाप की याद में शरीर छोड़ें, इसके लिए परिपक्व अवस्था बनानी है।
 ओम् शान्ति। 
ओम् शान्ति का अर्थ बच्चों को समझाया है। मनुष्य कहते हैं मन की शान्ति चाहिए, वह कैसे मिले? इस पर शायद एक किताब छपी हुई है। बाप ने बच्चों को समझाया है, तुम भी कहते हो ओम् शान्ति। अब इसका अर्थ क्या है? कोई तो ओम् का अर्थ भगवान समझते हैं। बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति। ओम् अर्थात् अहम् (मैं आत्मा)। पीछे फिर कहते हैं मेरा शरीर। तो आत्मा खुद ही कहती है ओम् शान्ति। मेरा स्वधर्म है ही शान्त और रहने का स्थान भी निर्वाणधाम, शान्तिधाम है। आत्मा खुद अपना परिचय देती है कि मैं शान्त स्वरूप हूँ फिर पूछने की दरकार ही नहीं रहती कि मन की शान्ति कैसे मिले? बाप भी कहते हैं - ओम् शान्ति। मैं भी परम आत्मा हूँ, तुम सब बच्चों का बाप हूँ। शान्तिधाम में रहने वाला हूँ। तुम आत्माओं ने यहाँ शरीर धारण किया है पार्ट बजाने। फिर मन की शान्ति का तो प्रश्न ही नहीं उठ सकता। ओम् का अर्थ भी कोई नहीं जानता, इसलिए धक्के खाते रहते हैं - मन की शान्ति के लिए। आत्मा जब अशरीरी है तो है ही शान्त। शरीर में आने से कर्मेन्द्रियाँ जरूर काम करेंगी। कर्मक्षेत्र पर जरूर काम करना पड़ता है तो शान्ति पर कोई किताब बनाने की दरकार नहीं। यह तो सेकण्ड की बात है समझने की। आत्मा खुद ही कहती है ओम् शान्ति। बाकी क्या चाहिए? कहाँ से शान्ति आयेगी? आत्मा का देश शान्तिधाम है। अभी तो वहाँ जाकर बैठेंगे नहीं। पार्ट जरूर बजाना है। वैसे ही परमपिता परमात्मा से जीवनमुक्ति पाने के लिए कोई किताब आदि की दरकार नहीं। यह तो सेकण्ड की बात है। किताब भक्ति मार्ग में बनाते हैं, न कि ज्ञान मार्ग में। फिर भी बाहर वालों को समझाने के लिए रीयल्टी की जो समझानी है - सच्चे मन की शान्ति पर, सच्ची गीता पर लिखना पड़ता है। नहीं तो बुद्धि कहती है - अपने को आत्मा निश्चय करो, सुखधाम और शान्तिधाम को याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी। बाकी यहाँ थोड़ेही मन की शान्ति हो सकती है। शान्तिधाम तो है निर्वाणधाम, जहाँ बाप भी रहते हैं और हम आत्मायें भी रहती हैं। रूद्र माला भी कहते हैं तो रूद्र ज्ञान यज्ञ भी एक ही है। ज्ञान सागर बाप ही यह ज्ञान सुना सकते हैं। बाकी ज्ञान तो बहुत प्रकार का है। साइन्स का भी ज्ञान, कारीगरी का भी ज्ञान होता है। परन्तु वह है व्यवहार की बातें। ज्ञान से मनुष्य बहुत अक्लमंद बनते हैं। अभी तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज मिली है। यह पाठशाला है, यहाँ पढ़ाया जाता है। बाप है ज्ञान का सागर, उनको सब नॉलेज है। सब वेद-शास्त्र आदि को जानते हैं। रांग-राइट, झूठ-सच क्या है, वह मैं समझाता हूँ। अब बताओ सच क्या है? सर्वव्यापी कहना यह सच है? मैं तो तुम्हारा बाप हूँ। सर्वव्यापी से तो कोई ज्ञान मिल न सके। पुरुषार्थ हो न सके। सर्वव्यापी होकर क्या करे? खुद मालिक है, भगवान तो कभी पतित होता नहीं। वह तो जब चाहे तो वापिस चला जाए। यहाँ तो पतित हैं इसलिए वापिस कोई जा न सके। पतित बनने से सारा ज्ञान उड़ जाता है, बुद्धि मलीन हो जाती है। योग नहीं लगता, याद में विघ्न पड़ जाते हैं इसलिए कोई भी पाप कर्म नहीं करना चाहिए। याद भी जरूर करना है। बाप के बिगर पुराने पाप कट नहीं सकते। ऐसे नहीं हरिद्वार में रहने से कोई पाप कट सकते हैं, नहीं। पाप तो करते रहते हैं। साधू-सन्तों को अगर पता होता कि हमारा घर शान्तिधाम है तो वहाँ से होकर आते। बाबा तुमको सब साक्षात्कार कराते हैं। गोया तुम होकर आये हो। भक्ति मार्ग में भी साक्षात्कार होता है - दिव्य दृष्टि से। तुम जब सतयुग में हो तो इन आंखों से लक्ष्मी-नारायण को देखेंगे। वह भी तुमको देखेंगे। अभी साक्षात्कार में देखते हो। बाबा के पास दिव्यदृष्टि की चाबी है, वह और किसको मिल न सके। बाबा ने समझाया है यह चाबी मैं किसको भी नहीं देता हूँ। इनकी एवज में मैं फिर स्वर्ग की राजाई नहीं करता हूँ। तराजू इक्वल रखते हैं। तुम विश्व के मालिक बनते हो, मैं नहीं बनता हूँ। भक्ति मार्ग में जो साक्षात्कार करते हैं वह भी मूर्ति में थोड़ेही ताकत है।
बाबा कहते हैं - मैं मनोकामना पूर्ण करने के लिए साक्षात्कार कराता हूँ। गणेश, हनूमान आदि जिसकी पूजा करते हैं तो साक्षात्कार मैं कराता हूँ। परन्तु वो लोग समझते हैं परमात्मा सबमें हैं इसलिए मुझे सर्वव्यापी कह दिया, उल्टा ज्ञान ले लिया। वास्तव में सब ब्रदर्स हैं। सबमें आत्मा है। सब फादर तो हो न सकें। सभी आत्मायें पुकारती हैं हे गाड फादर रहम करो, तो सब बच्चे हो गये। बच्चे बाप से वर्सा लेते हैं तो देह का अभिमान छोड़ना पड़े। बस मैं आत्मा बाप से वर्सा ले रही हूँ। आत्मा को मेल वा फीमेल नहीं कहते। भल चोला फीमेल का है परन्तु यह कहना ठीक है कि वर्सा ले रहा हूँ। बाप से वर्सा लेने का सबको हक है। मैं क्रिश्चियन हूँ, मैं फलाना हूँ। यह सब शरीर के धर्म हैं। आत्मा एक ही है। शरीर बदलता है, तब कहते हैं यह मुसलमान है, यह हिन्दू है। आत्मा का नाम नहीं बदलता, शरीर का बदलता है। बाप तो है ही पतित-पावन, ज्ञान का सागर। बाप की महिमा अलग हो जाती है। वह शान्ति का सागर, ज्ञान का सागर है। उनके साथ योग लगाने से हम शान्तिधाम चले जायेंगे, सो भी अभी। ऐसा योग कभी कोई लगा नहीं सकते। तुम शान्तिधाम को जानते हो। बाकी याद शिवबाबा को करते हो। सन्यासी कहते हैं हम ब्रह्म ज्ञानी हैं। ब्रह्म से योग लगाते हैं परन्तु उनसे विकर्म विनाश नहीं हो सकते। वो योग ही रांग है। ब्रह्म अर्थात् रहने का स्थान। ब्रह्म ज्ञानी अथवा तत्व ज्ञानी बात एक ही है। बाप कहते हैं यह इन्हों का भ्रम है। पतित-पावन ब्रह्मा नहीं हो सकता। आत्माओं का बाप शिव है, उनको ही पतित-पावन कहा जाता है। बाकी वापिस तो कोई जा नहीं सकते। सभी को सतोप्रधान से तमोप्रधान बनना ही है। जबकि पहला नम्बर श्री नारायण ही बनता है तो और सभी भी जरूर तमोप्रधान बनेंगे। पुनर्जन्म लेते आयेंगे। यह भी बुद्धि में रखा जाता है।
तुम जानते हो हर एक धर्म वाले कितने जन्म लेते होंगे? देवताओं को कहेंगे पूरे 84 जन्म लेते हैं। औरों के जन्म एक्यूरेट नहीं बता सकते। कोई हिसाब करे तो निकाल सकते हैं। परन्तु जरूरत नहीं है। हमारा अपने पुरुषार्थ से काम है और जास्ती बातों में नहीं जाना है। तुमको मुक्ति, जीवनमुक्ति चाहिए तो मनमनाभव। मैं हूँ ही पतित-पावन, आकर राजयोग सिखलाता हूँ। पतित-पावन जरूर कलियुग अन्त में आयेगा, ना कि द्वापर में। सिर्फ शिवरात्रि लिखने से अर्थ नहीं निकलता है। त्रिमूर्ति शिवरात्रि लिखना चाहिए। भक्ति में घोर अन्धियारा है तब कहते हैं ज्ञान सूर्य प्रगटा... जरूर कलियुग का अन्त होगा। रोशनी है सतयुग में। बाप जरूर संगम पर आयेगा। सब पतित बनें तब तो बाप आकर पावन बनाये क्योंकि सबका कनेक्शन है ना। बहुत सन्यासी लोग भी कहते हैं मन की शान्ति कैसे होगी। आत्मा का स्वधर्म ही शान्त है। जैसे भारतवासी देवी-देवताओं को भूले हुए हैं, वैसे आत्मा भी अपने स्वधर्म को भूली हुई है। आत्मा ही जानती है - मुझे रावण ने अशान्त किया है। यह ज्ञान अभी मिला है। यहाँ तो शान्ति कभी मिल नहीं सकती। शान्तिधाम में ही शान्ति मिल सकती है। वहाँ तो सबको जाना है। हम शान्तिधाम में जायेंगे फिर आयेंगे सुखधाम में। दूसरे धर्म वालों को शान्ति अधिक मिलती है, हमको सुख अधिक मिलता है। उन्हों को न इतना सुख, न दु:ख मिलेगा। यह हैं डीटेल की बातें। कोई ने लक्ष्य को अच्छी रीति पकड़ लिया है, वह भी काफी है। घर में रहते बाप और वर्से को याद करते रहो। परन्तु प्रजा नहीं बना सकेंगे। जो प्रजा बनायेंगे वही राजा-रानी, मालिक बनेंगे। मेहनत है ना। प्रोजेक्टर पर समझाना सहज है। बड़े-बड़े आदमियों को निमंत्रण दे उन्हों को समझाना चाहिए। तुम बच्चे बहुतों का कल्याण कर सकते हो। यह भी नये तरीके निकल रहे हैं। अंग्रेजी में भी प्रोजेक्टर स्लाईड्स विलायत में जाकर दिखला सकते हो। यह गोला आदि जब देखेंगे तो समझेंगे कि यह है भारत की फिलॉसाफी। यह नॉलेज बाप ही दे सकते हैं। यह है रूहानी ज्ञान। रूह से ही रूहानी ज्ञान मिलता है। सच्चे डॉक्टर आफ फिलॉसाफी भी तुम हो। बाप है रूहानी सर्जन। रूहों को इन्जेक्शन लगाते हैं। तुम्हारा है सब गुप्त। वो लोग तो बैठ शास्त्र आदि पढ़ते हैं तो उन्हों का बहुत मान होता है। वह रूहों को पतित समझते नहीं, निर्लेप कह देते हैं। तो सच्ची-सच्ची नॉलेज तुम ही दे सकते हो। यह भी समझाया है वह है हद का सन्यास, तुम्हारा है बेहद का सन्यास, जो बेहद का बाप ही सिखलाते हैं। वह है हठयोग, यह है राजयोग। वो हठयोग से कर्मेन्द्रियों को वश करने चाहते हैं। तुम राजयोग से कर्मेन्द्रियों को वश करते हो। बहुत फ़र्क है। अब बाप द्वारा तुम नॉलेजफुल बनते जा रहे हो। परन्तु बनेंगे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार। ऐसे बाप के साथ कितना लव रहना चाहिए। यह है गुप्त लव। आत्मा भी गुप्त है। आत्मा जानती है कि हमको बाबा मिला है। दु:ख से छुड़ा रहे हैं। बाबा आपने तो कमाल की है। कल्प-कल्प आप हमको ज्ञान देते हो फिर हम भूल जाते हैं। बाप कहते हैं - हाँ बच्चे, हमने तो कहा था यह ज्ञान प्राय:लोप हो जायेगा। सतयुग में यह नॉलेज नहीं रहेगी। यह सब ड्रामा बना हुआ है। ज़रा भी फर्क नहीं पड़ सकता। बना बनाया ड्रामा है, जो कुछ होता है साक्षी होकर देखते चलो। विनाश होना है, स्थापना होनी है, साक्षी होकर देखना है। समझो कल अर्थक्वेक होती है तो ऐसे नहीं मैं बताऊंगा कि यह होना है। फिर तो सब प्रबन्ध कर लें। साक्षी होकर देखते चलो। मूल बात है मुझे याद करो। नहीं तो मुझे भी भूल जायेंगे। तुम बच्चों को महावीर बनना है। महावीर-महावीरनी को गॉड आफ नॉलेज, गॉडेज ऑफ नॉलेज कहा जाता है। गॉड ही योग सिखलाए महावीर बनाते हैं। पिछाड़ी में जब अर्थक्वेक आदि होंगी उस समय महावीरपना चाहिए। अभी तो तुम पुरुषार्थी हो। अचल-अडोल रहना पड़े और साथ-साथ बाबा की याद में मरें तो बहुत अच्छा। जो ज्ञान में अचल-अडोल होंगे वह बैठे-बैठे शरीर छोड़ेंगे। फिर कर्मातीत अवस्था में जाकर सर्विस करेंगे। बच्चों को परिपक्व अवस्था में शरीर छोड़ सूक्ष्मवतन में जाकर फिर नई दुनिया में आना है।
अच्छा - बच्चों को सदैव अपना चार्ट देखना है जो हम बाबा से पूरा वर्सा पायें। कोई भी बात के संशय में आकर पढ़ाई कभी नहीं छोड़नी चाहिए। बाबा बार-बार कहते हैं - मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 धारणा के लिए मुख्य सार:
 1) किसी भी बात में संशयबुद्धि बन पढ़ाई नहीं छोड़नी है। अपनी स्थिति अचल, अडोल बनानी है। एक बाप से सच्चा लव रखना है।
 2) अपना टाइम विस्तार की बातों में वेस्ट नहीं करना है। बुद्धि किसी भी कर्म में मलीन न हो, इसका पूरा ध्यान रखना है।
 वरदान:मैं' शब्द की स्मृति द्वारा अपने ओरीज्नल स्वरूप में स्थित होने वाले देह के बंधन से मुक्त भव!
 एक ‘मैं' शब्द ही उड़ाने वाला है और ‘मैं' शब्द ही नीचे ले आने वाला है। मैं कहने से ओरीज्नल निराकार स्वरूप याद आ जाये, यह नेचुरल हो जाए, देह भान का मैं समाप्त हो जाए तो देह के बंधन से मुक्त बन जायेंगे क्योंकि यह मैं शब्द ही देह-अहंकार में लाकर कर्म-बंधन में बांध देता है। लेकिन मैं निराकारी आत्मा हूँ, जब यह स्मृति आती है तो देहभान से परे हो, कर्म के संबंध में आयेंगे, बंधन में नहीं।
 स्लोगन:निश्चित विजय और निश्चिंत स्थिति का अनुभव करने के लिए सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बनो।

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Details ( Page:- Murali 31-Dec-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 31.12.17      Pratah Murli Om Shanti Baapdada Madhuban
Headline – Baapdada ki sarv aloukik friends badhai.
Bardan – Vaani ke sath vriti dwara ruhani vibration failani ki sewa karne wale double sewadhari bhav.
Slogan – Fariyad karne k bajaye yaad mei rah otoh sarv adhikar mil jayenge.

 English Summary ( 31th Dec 2017 )

BapDada’s greetings for all His spiritual friends.
Blessings- May you be a double server who does the service of serving with spiritual vibrations as well as with words.

-Just as you serve with words, similarly, together with words, also serve with your attitude. Service will then take place fast because words can be forgotten at some time, but an imprint is made on the mind and intellect by vibrations. So, in order to serve in this way, let there not be any wasteful vibrations for anyone through your attitude. Wasteful vibrations become like a wall in front of spiritual vibrations. Therefore, keep your mind and intellect free from wasteful vibrations. Only then will you be able to do double service.
  Slogan- Instead of complaining (fariyaad), stay in remembrance (yaad) and you will receive all rights
HINDI DETAIL MURALI

31/12/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन (31-12-82 )

 
"बापदादा की सर्व अलौकिक फ्रैन्डस को बधाई"
 
आज सर्व ब्राहमण आत्माओं के मन के मीत, दिल के गीत, प्रीत की रीति निभाने के लिए वन्डरफुल रीति से रूहानी गुलाब फूलों के बगीचे में वा अल्लाह अपने बगीचे में मिलने के लिए आये हैं। वैसे भी मीत कहो वा फ्रैण्डस कहो, बगीचे में मिलन मनाते हैं। ऐसा बगीचा सारे कल्प में मिल नहीं सकता। आज चारों तरफ के बच्चे इसी एक लगन में हैं कि हम भी अपने मन के मीत के साथ यह न्यू ईयर डे मनावें। बापदादा आज सिर्फ साकारी स्वरूप में सन्मुख बैठे हुए रूहानी फ्रैन्डस से नहीं मिल रहे हैं। लेकिन साकार सभा से आकार रूपधारी बच्चों की वा मन के मीत स्नेही आत्माओं की बहुत बड़ी सभा देख रहे हैं। इतने रूहानी फ्रैन्डस, सच्चे फ्रैन्डस और किसको होंगे? बापदादा को भी रूहानी फखुर है कि ऐसे और इतने फ्रैन्डस न किसको मिले हैं, न मिलेंगे। सबके दिल का गीत दूर से वा समीप से सुनाई दे रहा है। कौन सा गीत? ओ बाबा। यही ''बाबा बाबा'' का गीत एक ही साज़ और राज़ से चारों ओर से सुनाई दे रहा है। बच्चे कहो वा फ्रैन्डस कहो, सभी का एक ही बोल है ''तुम ही मेरे'' और खुदा दोस्त भी एक एक को यही कहते कि तुम ही मेरे। ‘वाह मेरे फ्रैन्डस।' गीत गाओ -(बहनों ने साकार बाबा का प्यारा गीत गाया, तुम्हीं मेरे......)
यह मुख का गीत तो थोड़ा समय गा सकते लेकिन मन का गीत तो अविनाशी बजता रहता। आज के न्यू इयर डे पर अनेक बच्चों के बहुत अच्छे संकल्प, स्नेह के बोल बापदादा के पास पहले से पहुँच गये हैं। आज का दिन खुशियों का मनाते हो ना। एक दो को बधाई देते हो। बापदादा भी सर्व मन के मीत अलौकिक रूहानी फ्रैन्डस को बधाई देते हैं।
सदा विधि द्वारा वृद्धि को पाते रहेंगे। सदा सर्व खजानों से सम्पन्न रहेंगे। सदा फरिश्ता बन सर्व देह के रिश्तों से पार उड़ते रहेंगे। सदा नयनों में, दिल में बाप को समाते हुए एक बाप दूसरा न कोई - इसी लगन में मगन रहेंगे। सदा आई हुई परीक्षाओं को, समस्याओं को, व्यर्थ संकल्पों को पानी पर लकीर के समान पार कर पास विथ आनर बनेंगे। ऐसी श्रेष्ठ शुभ कामनाओं से बधाई दे रहे हैं। एक एक अमूल्य रत्न की विशेषताओं के गीत गा रहे हैं। आज के दिन नाचते गाते हैं ना। सिर्फ आज नहीं लेकिन सदा नाचते और गाते रहो। सदा हरेक को एक अलौकिक गिफ्ट देते रहना। जैसे बड़े आदमी कहाँ जाते हैं वा उनके पास कोई आते हैं तो खाली हाथ नहीं जाते हैं। आप सब भी बड़े ते बड़े हो ना। कभी भी किसी भी ब्राहमण आत्मा से वा किसी से भी मिलते हो तो कुछ देने के बिना कैसे मिलेंगे। हरेक को शुभ भावना और शुभ कामना की गिफ्ट सदा देते रहो। विशेषता दो और विशेषता लो। गुण दो और गुण लो। ऐसी गाडली गिफ्ट सभी को देते रहो। चाहे कोई किसी भी भावना वा कमाना से आये लेकिन आप शुभ भावना की गिफ्ट दो। शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना की गिफ्ट का स्टाक सदा भरपूर रहे। यह संकल्प मात्र भी उत्पन्न न हो कि आखिर भी कहाँ तक शुभ भावना से देखें। आखिर भी कोई हद है वा नहीं। यह संकल्प भी सिद्ध करता है कि इस गोल्डन गिफ्ट का स्टाक जमा नहीं है।
दाता, विधाता, वरदाता के बच्चे, भाग्य की लकीर खींचने वाले ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ हो इसलिए सदा भण्डारा भरपूर रहे। इस वर्ष खाली किसको नहीं रहने देना। न खाली हाथ जाना, न खाली हाथ आना। सबको देना भी और सबसे लेना भी। यह गिफ्ट बाँटने का वर्ष है। सिर्फ एक दिन नहीं, लेकिन सारा वर्ष हर दिन, हर घण्टा, हर सेकेण्ड, हर संकल्प जो बीता उससे और रूहानी नवींनता लाने वाला हो। नया दिन, नई रात तो सब कहते हैं लेकिन श्रेष्ठ आत्माओं का नया सेकण्ड, नया संकल्प हो तब ही आने वाली नई दुनिया की नई झलक विश्व की आत्माओं को स्वप्न के रूप में वा साक्षात्कार के रूप में दिखाई देगी। अब तक विश्व की आत्मायें जानने की इच्छुक हैं कि विनाश के बाद क्या होगा? लेकिन इस वर्ष सर्व आधार स्वरूप आत्माओं का हर सेकण्ड और हर संकल्प, नये ते नया, ऊंचे ते ऊंचा, अच्छे ते अच्छा रहे तो चारों ओर से नई दुनिया की झलक देखने का आवाज फैलेगा और क्या होगा इसके बजाए ऐसे होगा। ऐसी वन्डरफुल दुनिया जल्दी आवे और जल्दी तैयारी करें - इसमें जुट जायेंगे। जैसे स्थापना के आदि में स्वप्न और साक्षात्कार की लीला विशेष रही, ऐसे अन्त में भी यही विचित्र लीला प्रत्यक्षता करने के निमित्त बनेंगी। चारों ओर से ‘यही है, यही है', यही आवाज़ गूजेंगी और यह आवाज अनेकों के भाग्य की श्रेष्ठता के निमित्त होगा। एक से अनेक दीपक जग जायेंगे।
तो इस वर्ष क्या करना है? सच्ची दीपमाला मनाने की तैयारी करनी है। पुरानी बातें, पुराने संस्कार का दशहरा मनाओ क्योंकि दशहरे के बाद ही दीपमाला होगी। तो आज मन के मीत आत्माओं से मन की बात कर रहे हैं। मन की बात किससे करते हैं? फ्रेन्डस से करते हो ना। अच्छा बधाई तो मिली। बधाई के साथ-साथ नये साल की सौगात भी सदा साथ रखना। कितनी सौगात चाहिए? एक, एक में बहुत समाई हुई भी हैं और बहुत भी एक हैं। सबसे बढ़िया सौगात एक तो बापदादा ने सब बच्चों को डायमण्ड की (वब्) दी है, जिससे जो खजाना चाहो वह हाज़िर हो जायेगा। ‘डायमण्ड की' क्या है? एक ही बोल ''बाबा'', इससे बढ़िया चाबी कोई मिलेगी क्या? सतयुग में भी ऐसी चाबी नहीं मिलेगी। सबके पास यह ''डायमण्ड की'' सम्भाली हुई है ना। चोरी तो नहीं हो गई है ना। चाबी को खोया तो सब खजाने खोये इसलिए चाबी सदा साथ रखना। कीचेन है? वा अकेली चाबी है? ‘की' (खब्) की चेन है - सदा सर्व सम्बन्धों से स्मृति स्वरूप होते रहो। तो ‘की चेन' की गिफ्ट मिली ना। सबसे बढ़िया गिफ्ट तो है यह चाबी। उसके साथ-साथ वर्ष के लिए विशेष प्रतिज्ञा का कंगन भी दे रहे हैं। वह प्रतिज्ञा का कंगन क्या है? जो सुनाया हर सेकण्ड, हर संकल्प, हर आत्मा के सम्पर्क में सदा नये ते नया अर्थात् ऊंचे ते ऊंचा। नीचे की बात को न देखना है, न नीचे की स्टेज अपनानी है, सदा ऊंचा। ऊंचा बाप, ऊंचे बच्चे, ऊंची स्टेज और ऊंचे ते ऊंची सर्व की सेवा हो। यह प्रतिज्ञा का कंगन है।
साथ-साथ सर्व गुणों के श्रृंगार का बाक्स। वैरायटी सेट का श्रृंगार बाक्स। जिस समय जो श्रृंगार चाहिए उस समय वही सेट धारण कर सदा सजे-सजाये रहना। कभी सहनशीलता का सेट पहनना, लेकिन फुलसेट पहनना। सिर्फ एक सेट नहीं पहनना। कानों द्वारा भी सहनशीलता हो, हाथों द्वारा भी सहनशीलता का श्रृंगार हो। ऐसे समय-समय पर भिन्न-भिन्न श्रृंगार करते हुए विश्व के आगे फरिश्ते रूप और देव रूप में प्रख्यात हो जायेंगे। यह त्रिमूर्ति सौगात सदा साथ रखना।
फ्रैन्डशिप निभाने तो आती है ना। डबल विदेशी फ्रैन्डस तो बहुत अच्छे बनाते हैं लेकिन अविनाशी फ्रैन्डशिप रखना। डबल विदेशी छोड़ने में भी होशियार हैं, करने में भी होशियार हैं। अभी अभी हैं और अभी अभी नहीं, ऐसे तो नहीं करेंगे ना। बापदादा डबल विदेशी बच्चों को देख हर्षित होते हैं, कैसे चारों कोनों से इशारा मिलते पुरानी पहचान कर ली। बाप ने बच्चों को ढूंढा और बच्चों ने पहचान लिया। इसी विशेषता को देख बापदादा भी बधाई दे रहा है इसलिए सदा मायाजीत रहो। अच्छा।
ऐसे सिकीलधे बच्चों को अविनाशी प्रीत की रीति निभाने वाले अविनाशी फ्रैन्डस को, सदा फूलों के बगीचे में हाथ में हाथ दे साथी बन सैर करने वाले, सदा गाडली गोल्डन गिफ्ट को कार्य में लाने वाले सदा सम्पन्न, सदा मास्टर दाता, सर्व के मास्टर भाग्य विधाता, ऐसे स्नेही सहयोगी चारों ओर के बच्चों को, साकारी वा आकारी रूपधारी बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
विदेशी टीचर्स से:- निमित्त शिक्षक को देख बापदादा अति हर्षित हो रहे हैं। कितनी लगन से, स्नेह से अपने-अपने स्थान पर रहते सभी सदा शक्ति स्वरूप स्थिति में स्थित हो सर्व शक्तियों का अनुभव कराते रहते हैं। अभी साधारण नारी वा कुमारी का रूप नहीं लेकिन सर्व श्रेष्ठ सेवाधारी आत्मायें। बापदादा के शोकेस के शोपीस हो। आप सबको देख सर्व आत्मायें बाप को पहचानती हैं। हरेक निमित्त शिक्षक के ऊपर विश्व परिवर्तन की जिम्मेवारी है। बेहद के सेवाधारी हो - ऐसे अपने को समझती हो? एक एरिया के कल्याणकारी तो नहीं समझती? चाहे एक स्थान पर बैठे हो लेकिन हो तो लाइट हाउस ना। चारों ओर लाइट देने वाले। तो छोटा सा बल्ब बनकर एक ही स्थान पर रोशनी देते या लाइट हाउस बन विश्व को रोशनी देते? लाइट हो, सर्चलाइट हो या लाइट हाउस हो? हिम्मत तो बहुत अच्छी रखी है। बहुत अच्छा कर रहे हो, आगे भी अच्छे ते अच्छा करते रहो। टीचर्स तो सदा मायाजीत हैं ना? अगर टीचर्स के पास माया आयेगी तो स्टूडेन्ट का क्या हाल होगा? आपके पास यादि एक बार माया आयेगी तो उनके पास 10 बार आयेगी इसलिए टीचर्स के पास माया नमस्ते करने आवे, वैसे नहीं।
निमित्त शिक्षक का स्वरूप - सदा हर्षित, सदा मास्टर सर्वशक्तिमान, ऐसी सीट पर सदा सेट रहो। टीचर्स के रहने का स्थान ही ऊंची स्थिति है। सेन्टर पर नहीं रहती हो लेकिन ऊंची स्टेज पर रहती हो। ऊंची स्टेज अर्थात् दिलतख्त पर माया आ नहीं सकती। नीचे उतरे तो माया आयेगी। पाण्डव भी बापदादा के सहयोगी राइट हैण्ड हो ना। गद्दी सम्भालने वाले को राइट हैण्ड कहा जाता है। सभी पाण्डव विजयी हो ना। अभी तक माया से बहुत समय खेल खेला। अभी विदाई दो, आज से सदा के लिए विदाई की बधाई मनाना। बहुत अच्छा चान्स मिला है और चान्स ले भी रहे हो। अच्छा।
पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-
बापदादा हर एक बच्चे के भाग्य को देख हर्षित होते हैं। हरेक बच्चा अपना भाग्य ले रहा है। संगम पर हरेक आत्मा का भाग्य अपना अपना है। और हरेक का श्रेष्ठ भाग्य है क्यों? क्योंकि जब श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप के बच्चे बने तो श्रेष्ठ भाग्य हो गया ना। न इससे कोई बाप श्रेष्ठ है, न इससे कोई भाग्य श्रेष्ठ है। ऊंचे ते ऊंचा बाप। यही याद रहता है ना। भाग्य विधाता मेरा बाप है। इससे बड़ा नशा और क्या हो सकता है। लौकिक रीति से बच्चे को नशा रहता - मेरा बाप इन्जीनियर है, डाक्टर है, जज है या प्राइम मिनिस्टर है। लेकिन आपको नशा है कि हमारा बाप भाग्यविधाता है। ऊंचे ते ऊंचा भगवान है। यही नशा सदा रहता है या कभी कभी भूल जाते हा? भाग्य को भूला तो क्या होगा? फिर भाग्य को पाने का प्रयत्न करना पड़ेगा। खोई हुई चीज को पाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। बाप ने आकर मेहनत से बचाया। आधाकल्प मेहनत की, व्यवहार में भी मेहनत, भक्ति में, धर्म के क्षेत्र में, सबमें मेहनत ही की। और अभी सभी मेहनत से छूट गये। अभी व्यवहार भी परमार्थ के आधार पर सहज हो जाता है। निमित्त मात्र कर रहे हैं। निमित्त मात्र करने वाले को सदा सहज अनुभव होगा। व्यवहार नहीं है लेकिन खेल है। माया का तूफान नहीं लेकिन यह ड्रामा अनुसार आगे बढ़ने का तोफा है। तो मेहनत छूट गई ना। तोफा अर्थात् सौगात लेने में मेहनत नहीं होती है ना। तो ऐसे मेहनत से अपने को बचाने वाले, सदा भाग्य विधाता के साथ मास्टर भाग्य विधाता बन रहने वाले इसको कहा जाता है श्रेष्ठ आत्मा।
सैनअन्टानियो:- सभी अपने को विशेष आत्मा समझते हो? किस स्थान पर पहुँचे हो? सोचो कि ऐसा भाग्य विश्व में कितनी आत्माओं का होगा जो सम्मुख मिलन मनायें? इससे बड़ा भाग्य और क्या चाहिए। सदा अपने इसी भाग्य को स्मृति में रखो तो आपके भाग्य के प्राप्ति की खुशी को देख और समीप आयेंगे और अपना भाग्य बनायेंगे। सदा खुश रहो। बाप के बच्चे बने तो वर्से में क्या मिला? खुशी मिली ना। तो इस वर्से को सदा साथ रखना, छोड़कर नहीं जाना। खुशी के खजानों के मालिक बन गये। तो सदा खुशी में उड़ते रहना। इसमें ट्राई करने की बातें नहीं। अगर कहते ट्राई तो क्राई होते रहेंगे। क्या बच्चे बनने मे भी ट्राई करनी होती है। तो न ट्राई न क्राई। ट्राई करेंगे, यह शब्द यहाँ छोड़कर जाना। बाप और वर्सा सदा साथ रहे। कम्बाइन्ड रहना। तो जहाँ बाप है वहाँ सर्व खजाने स्वत: ही होंगे। यही एक बात सदा याद रखना कि बाप हमारे साथ है। वर्सा हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
नर्व वर्ष की मुबारक (रात्रि 12 बजे):- नये वर्ष की सभी बच्चों को सारे वर्ष के लिए बधाई हो। ऐसे अमूल्य रत्न जिन्होंने बाप को पहचाना और बाप को प्रत्यक्ष करने की जिम्मेवारी का ताज धारण किया, ऐसे सदा सेवाधारी अनन्य ताजधारी, तख्तनशीन बच्चों को अपने अपने नाम सहित बधाई स्वीकार हो।
लण्डन निवासी निमित्त जनक बेटी और साथ-साथ आदि-रत्न रजनी बच्ची, साथ में मुरली बच्चा और सबसे अति स्नेही छोटी समान बाप जयन्ती बच्ची को और जो साथ-साथ बच्चे सेवा पर उपस्थित हैं, जैसे बृजरानी अच्छा अपना शो दिखा रही है, जो सेवा कर रहे हैं उस सेवा में रूहानियत भरी हुई है - ऐसे सभी बच्चे अपने-अपने नाम से बधाई स्वीकार करें।
नया वर्ष, नया उमंग, नया उत्साह और इस वर्ष में सदा ही रोज उत्सव समझकर उत्साह दिलाते रहना। इसी सेवा में सदा तत्पर रहना। अच्छा - सभी बच्चों को बापदादा की दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार।
वरदान:वाणी के साथ वृत्ति द्वारा रूहानी वायब्रेशन फैलाने की सेवा करने वाले डबल सेवाधारी भव!
 जैसे वाणी द्वारा सेवा करते हो ऐसे वाणी के साथ वृत्ति द्वारा सेवा करो तो फास्ट सेवा होगी क्योंकि बोल तो समय पर भूल जाते हैं लेकिन वायब्रेशन के रूप में मन और बुद्धि पर छाप लग जाती है। तो यह सेवा करने के लिए वृत्ति में किसी के लिए भी व्यर्थ वायब्रेशन्स न हों। व्यर्थ वायब्रेशन रूहानी वायब्रेशन के आगे एक दीवार बन जाती है, इसलिए मन-बुद्धि को व्यर्थ वायब्रेशन से मुक्त रखो - तब डबल सेवा कर सकेंगे।
 स्लोगन:फरियाद करने के बजाए याद में रहो तो सर्व अधिकार मिल जायेंगे।

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