Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-09-19 23:50:33
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
See All pages in a SinglePage View
A
Article Rating
Participate in Rating,
See Result
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- )
B Quiz( Create, Edit, Delete )
Participate in Quiz,
See Result
Created/ Edited Time:- 07-09-2018 17:27:02
C Survey( Create, Edit, Delete) Participate in Survey, See Result Created Time:-
D
Page No Photo Page Name Count of Characters Date of Last Creation/Edit
1 Image Murali 01-Aug- 2018 125037 2018-09-07 17:27:03
2 Image Murali 02-Aug- 2018 115306 2018-09-07 17:27:03
3 Image Murali 03-Aug- 2018 122767 2018-09-07 17:27:03
4 Image Murali 04-Aug- 2018 131649 2018-09-07 17:27:03
5 Image Murali 05-Aug- 2018 122005 2018-09-07 17:27:03
6 Image Murali 06-Aug- 2018 122804 2018-09-07 17:27:03
7 Image Murali 07-Aug- 2018 120104 2018-09-07 17:27:03
8 Image Murali 08-Aug- 2018 127824 2018-09-07 17:27:03
9 Image Murali 09-Aug- 2018 127466 2018-09-07 17:27:03
10 Image Murali 10-Aug- 2018 121746 2018-09-07 17:27:03
11 Image Murali 11-Aug- 2018 122692 2018-09-07 17:27:03
12 Image Murali 12-Aug- 2018 111683 2018-09-07 17:27:03
13 Image Murali 13-Aug- 2018 123920 2018-09-07 17:27:03
14 Image Murali 14-Aug- 2018 111398 2018-09-07 17:27:03
15 Image Murali 15-Aug- 2018 128503 2018-09-07 17:27:03
16 Image Murali 16-Aug- 2018 127280 2018-09-07 17:27:03
17 Image Murali 17-Aug- 2018 107136 2018-09-07 17:27:03
18 Image Murali 18-Aug- 2018 120726 2018-09-07 17:27:03
19 Image Murali 19-Aug- 2018 108991 2018-09-07 17:27:03
20 Image Murali 20-Aug- 2018 124686 2018-09-07 17:27:03
21 Image Murali 21-Aug- 2018 119352 2018-09-07 17:27:03
22 Image Murali 22-Aug- 2018 131894 2018-09-07 17:27:03
23 Image Murali 23-Aug- 2018 124657 2018-09-07 17:27:03
24 Image Murali 24-Aug- 2018 130080 2018-09-07 17:27:03
25 Image Murali 25-Aug- 2018 132241 2018-09-07 17:27:03
26 Image Murali 26-Aug- 2018 132051 2018-09-07 17:27:03
27 Image Murali 27-Aug- 2018 125337 2018-09-07 17:27:03
28 Image Murali 28-Aug- 2018 119723 2018-09-07 17:27:03
29 Image Murali 29-Aug- 2018 114297 2018-09-07 17:27:03
30 Image Murali 30-Aug- 2018 124625 2018-09-07 17:27:04
31 Image Murali 31-Aug- 2018 109921 2018-09-07 17:27:04
Article Image
Details ( Page:- Murali 19-Aug- 2018 )
19-08-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 29-12-83 मधुबन
संगमयुग - सहज प्राप्ति का युग
 
आज रहमदिल, दिलवाला बाप अपने बड़ी दिल रखने वाले दिल खुश बच्चों से मिलने आये हैं। जैसे बापदादा सदा बड़ी दिल वाले बेहद की दिल वाले हैं, इसलिए सर्व की दिल लेने वाले दिलाराम हैं। ऐसे बच्चे भी बेहद की दिल, फ्राकदिल, दातापन की दिल रखने वाले सदा दिल खुश से जहान को खुश करते हैं। ऐसे खुशनसीब आत्मायें हो। आप श्रेष्ठ आत्माएं ही जहान के आधार हो। आप सभी जगते, जागती ज्योत बनते तो जहान वाले भी जगते। आप सोते हैं तो जहान सोता है। आप सबकी चढ़ती कला होती तो सर्व आत्माओं का कल्याण हो जाता। सर्व यथा-शक्ति समय प्रमाण मुक्ति और जीवन-मुक्ति को प्राप्त होते हैं। आप विश्व पर राज्य करते हो तो सर्व आत्माएं मुक्ति की स्थिति में रहती हैं। तीनों लोकों में आपके राज्य के समय दु: अशान्ति का नाम निशान नहीं। ऐसी सर्व आत्माओं को बाप द्वारा सुख-शान्ति की अंचली दिलाते हो जो उसी अंचली द्वारा बहुत समय की मुक्ति की आशा सर्व की पूर्ण हो जाती है। ऐसे सर्व आत्माओं को, विश्व को यथाशक्ति प्राप्ति कराने वाले स्व प्राप्ति स्वरूप हो ना! क्योंकि डायरेक्ट सर्व प्राप्तियों के दाता, सर्व शक्तियों के विधाता सेकण्ड में सर्व अधिकार देने वाले वरदाता, श्रेष्ठ भाग्य-विधाता, अविनाशी बाप के बच्चे बने। ऐसी अधिकारी आत्माओं को सदा अधिकार को याद करते रूहानी श्रेष्ठ नशा और सदा की खुशी रहती है? बेहद की दिल वाले किसी हद के प्राप्ति की तरफ दिल आकर्षित तो नहीं होती? सदा सहज प्राप्ति के अनुभवी मूर्त बने हो वा ज्यादा मेहनत करने के बाद थोड़ा-सा फल प्राप्त करते हो? वर्तमान समय सीजन है प्रत्यक्ष फल खाने की। एक शक्तिशाली संकल्प वा कर्म किया और एक बीज द्वारा पदमगुणा फल पाया। तो सीज़न का फल अर्थात् सहज फल की प्राप्ति करते हो? फल अनुभव होता है वा फल निकलने के पहले माया रूपी पंछी फल को खत्म तो नहीं कर देते हैं? तो इतना अटेन्शन रहता है वा मेहनत करते, योग लगाते, पढ़ाई भी पढ़ते, यथाशक्ति सेवा भी करते फिर भी जैसा प्राप्त होना चाहिए वैसा नहीं होता। होना सदा चाहिए क्योंकि एक का पदमगुणा है तो अनगिनत फल की प्राप्ति हुई ना। फिर भी सदा नहीं रहता। जितना चाहिए उतना नहीं रहता। उसका कारण? संकल्प, कर्म रूपी बीज शक्तिशाली नहीं। वातावरण रूपी धरनी शक्तिशाली नहीं वा धरनी और बीज ठीक है, फल भी निकलता है लेकिन "मैंने किया", इस हद के संकल्प द्वारा कच्चा फल खा लेते वा माया की भिन्न-भिन्न समस्याएं, वातावरण, संगदोष, परमत वा मनमत, व्यर्थ संकल्प रूपी पंछी फल को समाप्त कर देते हैं, इसलिए फल अर्थात् प्राप्तियों से अनुभूतियों के खजाने से वचिंत रह जाते। ऐसी वंचित आत्माओं के बोल यही होते कि पता नहीं क्यों! ऐसे व्यर्थ मेहनत करने वाले तो नहीं हो ना! सहज योगी हो ना? सहज प्राप्ति की सीज़न पर मेहनत क्यों करते हो! वर्सा है, वरदान है, सीज़न है, बड़ी दिल वाला दाता है। फ्राकदिल भाग्य विधाता है फिर भी मेहनत क्यों? सदा दिलतख्तनशीन बच्चों को मेहनत हो नहीं सकती। संकल्प किया और सफलता मिली। विधि का स्विच आन किया और सिद्धि प्राप्त हुई। ऐसे सिद्धि स्वरूप हो ना वा मेहनत कर करके थक जाते हो? मेहनत करने का कारण है - अलबेलापन और आलस्य। स्मृति स्वरूप के किले के अन्दर नहीं रहते हो वा किले में रहते हुए कोई कोई शक्ति की कमजोरी के दरवाजे वा खिड़की खोल देते हो इसलिए माया को चांस दे देते हो। चेक करो कि कौन-सी शक्ति की कमी है अर्थात् कौन-सा रास्ता खुला हुआ है? संकल्प में भी दृढ़ता नहीं है तो समझो थोड़ा सा रास्ता खुला हुआ हैइसलिए कहते हो चल तो ठीक रहे हैं, नियम तो सब पालन कर रहे हैं, श्रीमत पर चल रहे हैं लेकिन नम्बरवन खुशी और दृढ़ता से नहीं। नियम पर चलना ही पड़ेगा, ब्राह्मण परिवार की लोकलाज के वश, क्या कहेंगे, क्या समझेंगे... इस मजबूरी वा भय से नियम तो नहीं पालन करते? दृढ़ता की निशानी है सफलता। जहाँ दृढ़ता हैं वहाँ सफलता हो, यह हो नहीं सकता। जो संकल्प में भी नहीं होगा वह प्राप्ति होगी अर्थात् संकल्प से प्राप्ति ज्यादा होगी। तो वर्तमान समय सहज सर्व प्राप्ति का युग है इसलिए सदा सहज योगी भव के अधिकारी और वरदानी बनो। समझा। मास्टर सर्वशक्तिवान बन करके भी मेहनत की तो मास्टर बन के क्या किया! मेहनत से छुड़ाने वाला, मुश्किल को सहज करने वाला बाप मिला फिर भी मेहनत! बोझ उठाते हो इसलिए मेहनत करते। बोझ छोड़ो, हल्के बनो तो फरिश्ता बन उड़ते रहेंगे। अच्छा!
 
ऐसे सदा दिल खुश, सदा सहज फल की प्राप्ति स्वरूप, सदा वरदाता द्वारा सफलता को पाने वाले वरदानी, वारिस बच्चों को दिलाराम बाप का याद-प्यार और नमस्ते।
 
पार्टियों से
 
पंजाब ज़ोन:- सभी स्वदर्शन चक्रधारी हो? स्वदर्शन चक्र चलता रहता है? जहाँ स्वदर्शन चक्र है वहाँ सर्व विघ्नों से मुक्त हैं क्योंकि स्वदर्शन चक्र माया के विघ्नों को समाप्त करने के लिए हैं। जहाँ स्वदर्शन चक्र है वहाँ माया नहीं। बाप के बच्चे बने और स्व का दर्शन हुआ। बाप का बच्चा बनना अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी बनना। ऐसे स्वदर्शन चक्रधारी ही विश्व कल्याणकारी हैं क्योंकि विघ्न-विनाशक हैं। विघ्न-विनाशक गणेश को कहते हैं। गणेश की कितनी पूजा होती है। कितना प्यार से पूजा करते हैं, कितना सजाते हैं, कितना खर्चा करते हैं, ऐसे विघ्न-विनाशक हैं, यह संकल्प ही विघ्न को समाप्त कर देता है क्योंकि संकल्प ही स्वरूप बनाता है। विघ्न हैं, विघ्न हैं कहने से विघ्न स्वरूप बन जाते, कमजोर संकल्प से कमजोर सृष्टि की रचना हो जाती है क्योंकि एक संकल्प कमजोर है तो उसके पीछे अनेक कमजोर संकल्प पैदा हो जाते हैं। एक क्यों और क्या का संकल्प अनेक क्यों, क्या में ले आता है। समर्थ संकल्प उत्पन्न हुआ - मैं महावीर हूँ, मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, तो सृष्टि भी श्रेष्ठ होती है। तो जैसा संकल्प वैसी सृष्टि। यह सारी संकल्प की बाजी है। अगर खुशी का संकल्प रचो तो उसी समय खुशी का वातावरण अनुभव होगा। दु: का संकल्प रचो तो खुशी के वातावरण में भी दु: का वातावरण लगेगा। खुशी का अनुभव नहीं होगा। तो वातावरण बनाना, सृष्टि रचना अपने हाथ में है, दृढ़ संकल्प रचो तो विघ्न छू मंत्र हो जायेंगे। अगर सोचते पता नहीं होगा या नहीं होगा तो मंत्र काम नहीं करता। जैसे कोई डाक्टर के पास जाते हैं तो डाक्टर भी पहले यही पूछते हैं कि तुम्हारा मेरे में फेथ है। कितनी भी बढ़िया दवाई हो लेकिन अगर फेथ नहीं तो उस दवाई का असर नहीं हो सकता। वह विनाशी बात है, यहाँ है अविनाशी बात। तो सदा विघ्न-विनाशक आत्मायें हैं, पूज्य आत्मायें हैं, आपकी अभी भी किस रूप में पूजा हो रही है? यह लास्ट का विकारी जन्म होने के कारण इस रूप का यादगार नहीं रखते हैं लेकिन किस किस रूप में आपका यादगार है। तो सदा अपने को मास्टर सर्वशक्तिवान, विघ्न-विनाशक शिव के बच्चे गणेश समझकर चलो। अपना ही संकल्प रचते हो कि "पता नहीं, पता नहीं", तो इस कमजोर संकल्प के कारण ही फंस जाते हो। तो सदा खुशी में झूलने वाले सर्व के विघ्न हर्ता बनो। सर्व की मुश्किल को सहज करने वाले बनो। इसके लिए बस सिर्फ दृढ़ संकल्प और डबल लाइट। मेरा कुछ नहीं, सब कुछ बाप का है। जब बोझ अपने ऊपर रखते हो तब सब प्रकार के विघ्न आते हैं। मेरा नहीं तो निर्विघ्न। मेरा है तो विघ्नों का जाल है। तो जाल को खत्म करने वाले विघ्न-विनाशक। बाप का भी यही कार्य है। जो बाप का कार्य वह बच्चों का कार्य। कोई भी कार्य खुशी से करते हो तो उस समय विघ्न नहीं होता। तो खुशी-खुशी कार्य में बिज़ी रहो। बिज़ी रहेंगे तो माया नहीं आयेगी। अच्छा-
 
2- सदा सफलता के चमकते हुए सितारे हैं, यह स्मृति रहती है? आज भी इस आकाश के सितारों को सब कितना प्यार से देखते हैं क्योंकि रोशनी देते हैं, चमकते हैं इसलिए प्यारे लगते हैं। तो आप भी चमकते हुए सितारे सफलता के हो। सफलता को सभी पसन्द करते हैं, कोई प्रार्थना भी करते हैं तो कहते यह कार्य सफल हो। सफलता सब मांगते हैं और आप स्वयं सफलता के सितारे बन गये। आपके जड़ चित्र भी सफलता का वरदान अभी तक देते हैं, तो कितने महान हो, कितने ऊंच हो, इसी नशे और निश्चय में रहो। सफलता के पीछे भागने वाले नहीं लेकिन मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सफलता स्वरूप। सफलता आपके पीछे-पीछे स्वत: आयेगी।
 
3- सदा अपने को बाप के साथ रहने वाले सदा का सहयोग लेने वाली आत्मायें समझते हो? सदा साथ का अनुभव करते हो? जहाँ सदा बाप का साथ है वहाँ सहज सर्व प्राप्ति हैं। अगर बाप का साथ नहीं तो सर्व प्राप्ति भी नहीं क्योंकि बाप है सर्व प्राप्तियों का दाता। जहाँ दाता साथ है वहाँ प्राप्तियाँ भी साथ होंगी। सदा बाप का साथ अर्थात् सर्व प्राप्तियों के अधिकारी। सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्मायें अर्थात् भरपूर आत्मायें सदा अचल रहेंगी। भरपूर नहीं तो हिलते रहेंगे। सम्पन्न अर्थात् अचल। जब बाप साथ दे रहा है तो लेने वालों को लेना चाहिए ना। दाता दे रहा है तो पूरा लेना चाहिए थोड़ा नहीं। भक्त थोड़ा लेकर खुश हो जाते लेकिन ज्ञानी अर्थात् पूरा लेने वाले।
 
जर्मन ग्रुप से:- सदा अपने को बाप के समीप रत्न समझते हो? जितना दूर रहते, देश से दूर भले हो लेकिन दिल से नजदीक हो। ऐसे अनुभव होता है ना? जो सदा याद में रहते हैं, याद समीप अनुभव कराती है। सहज योगी हो ना। जब बाबा कहा तो "बाबा" शब्द ही सहज योगी बना देता है। बाबा शब्द जादू का शब्द है। जादू की चीज़ बिना मेहनत के प्राप्ति कराती है। आप सभी को जो भी चाहिए सुख चाहिए, शान्ति चाहिए, शक्ति चाहिए जो भी चाहिए " बाबा" शब्द कहेंगे तो सब मिल जायेगा। ऐसा अनुभव है। बापदादा भी बिछुड़े हुए बच्चे जो फिर से आकर मिले हैं, ऐसे बच्चों को देख खुश होते हैं। ज्यादा खुशी किसको? आपको है या बाप को? बापदादा सदा हर बच्चे की विशेषता सिमरण करते हैं। कितने लकी हो। अनुभव करते हो कि बाप हमको याद करते हैं? सभी अपनी-अपनी विशेषता में विशेष आत्मा हो। यह विशेषता तो सभी की है जो दूर देश में होते, दूसरे धर्म में जाकर फिर भी बाप को पहचान लिया। तो इस विशेष संस्कार से विशेष आत्मा हो गये। अच्छा - ओम् शान्ति।
 
वरदान:-सेवा के क्षेत्र में स्व-सेवा और सर्व की सेवा का बैलेन्स रखने वाले मायाजीत भव
 
सर्व की सेवा के साथ-साथ पहले स्व सेवा आवश्यक है। यह बैलेन्स सदा स्व में और सेवा में उन्नति को प्राप्त कराता है इसलिए सेवा के क्षेत्र में भाग-दौड़ करते दोनों बातों का बैलेन्स रखो तो मायाजीत बन जायेंगे। बैलेन्स रखने से कमाल होती है। नहीं तो सेवा में बाह्यमुखता के कारण कमाल के बजाए अपने वा दूसरों के भाव-स्वभाव की धमाल में जाते हो। सेवा की भाग-दौड़ में माया बुद्धि की भाग दौड़ करा देती है।
 
स्लोगन:-अपनी विशेषताओं के बीज को सर्वशक्तियों के जल से सींच कर उन्हें फलदायक बनाओ।
 
 
19/08/18              Madhuban          Avyakt BapDada               Om Shanti           29/12/83
The confluence age is the age of easy attainment.
 
Today, the Merciful Father, the Conqueror of the Hearts, has come to meet His children who have big and happy hearts. Just as BapDada constantly has a big and unlimited heart, and is therefore the Conqueror of everyone’s Hearts, the Comforter of everyone’s Hearts, in the same way, children who have unlimited hearts, generous hearts, and bestowers’ hearts, constantly please the world with their happy hearts. You are such souls who have the fortune of happiness. You elevated souls are supports for the world. When all of you awaken and become constantly ignited lamps, the world also awakens. When you fall asleep the world also falls asleep. When it is the stage of ascent of all of you, all souls benefit. Everyone attains liberation and liberation-in-life according to their capacity and the time. When you rule the world, all souls are in the state of liberation. During your rule, there is no name or trace of sorrow in any of the three worlds. You enable all souls to receive from the Father a drop of peace and happiness, so that from that drop the desire they have had for a long time for liberation is fulfilled. So, you yourselves are embodiments of attainments who enable all souls and the world to receive attainments according to their capacity, are you not? This is because you have become direct children of the eternal Father who is the Bestower of All Attainments, the Bestower of the Fortune of All Powers, the Bestower of Blessings who gives you all rights in a second and the Bestower of Elevated Fortune. Do you souls who have this right, experience this elevated spiritual intoxication and constant happiness whilst constantly remembering your rights? You are the ones with unlimited hearts, so your hearts are not attracted towards any limited attainment, are they? Have you become embodiments of constant and easy attainment? Or, is it that you attain a little fruit after making a lot of effort? At present, it is the season to eat instant fruit. Just have one powerful thought or perform one powerful deed and through that one seed, you attain multimillion-fold fruit. So, are you attaining the fruit of the season, that is, easy fruit? Do you experience the fruit or is that, before the fruit emerges, Maya, the bird, spoils it? So, do you pay this much attention, or is it that, even after making so much effort, after having yoga, studying everything and serving according to your capacity, you don't attain as much as you should? You need to pay constant attention because you receive multi- million fold return of one. So, that is the attainment of countless fruit, is it not? Nevertheless, that attention isn’t there all the time. It isn’t there to the extent that it needs to be. What is the reason for this? The seed of the thought and deed is not powerful, the ground of the atmosphere is not powerful - or the ground and the seed are all right and the fruit does emerge, but with the limited thought of, "I did this", you eat fruit that’s unripe. Or, the many different problems of Maya, the atmosphere, the influence of bad company, the dictates of the self and others and the birds of waste thoughts spoil the fruit - and this is why you remain deprived of the treasures of the experience of the fruit, that is, the attainments. The words of such deprived souls are, "I don't know why". You are not those who make such wasteful effort, are you? You are easy yogis, are you not? Why do you labour in the season of easy attainment? You have received an inheritance, a blessing; it is the season and you also have the Bestower with a big heart. The Bestower of Fortune has a generous heart and so why do you labour? The children who are constantly seated on the heart-throne don't need to labour. You have the thought and you achieve success. You put on the switch of the right method and you attain success. You are such embodiments of success, are you not? Or, do you make effort and become tired? The reason for having to labour is carelessness and laziness. You don't stay in the fortress of being an embodiment of awareness. Or, you do stay in the fortress, but you open a door or a window of the lack of one power or another. This is why you give a chance to Maya. Check which power you lack, that is, which way is open. If there is no determination in your thoughts, then understand that the door is a little open. This is why you say that you are moving along well, that you are observing all the disciplines, that you are following shrimat, but not with number one happiness and determination. You don’t observe the disciplines with a feeling of compulsion or fear and think that you have to observe the disciplines, or because of being concerned about what the Brahmin family would say or think, do you? The sign of determination is success. Where there is determination, it is not possible for there not to be success. You would attain what you never even imagined, that is, your attainment would be greater than you had even imagined. So, at present, this is the age of receiving all attainments easily. Therefore, become those who have constant rights to being easy yogis and bestowers of blessings. Do you understand? If you have to labour even after becoming a master almighty authority, then what did you gain by having become a master? You found the Father who makes you free from labouring and who also makes difficult things easy. So, why do you still labour? You carry a burden and this is why you have to make effort. Let go of the burden, become light and you will continue to fly like an angel. Achcha.
 
To those who constantly have happy hearts, to those who are embodiments of the attainment of easy fruit, to the blessed heir-souls who constantly achieve success from the Bestower of Blessing, love, remembrance and namaste from the Father, the Comforter of Hearts.
 
BapDada meeting groups: Punjab zone
 
Are you all the spinners of the discus of self-realisation? Does your discus of self-realisation spin all the time? Where there is the discus of self-realisation, you are free from all obstacles because the discus of self-realisation is for ending obstacles from Maya. Where there is the discus of self-realisation, there is no Maya. You have become the Father's children and have had self-realisation. To become a child of the Father means to be a spinner of the discus of self-realisation. Such spinners of the discus of self-realisation are world benefactors because you are destroyers of obstacles. Ganesh is called the destroyer of obstacles. Ganesh is worshipped so much. They worship him with so much love; they decorate him with so much love and they spend so much doing all of that. You are destroyers of obstacles in this way. This thought ends the obstacles, because the thought enables you to create the form. If you keep saying that you have an obstacle, you have an obstacle, then you become the form of an obstacle. By having weak thoughts, you create a weak world because if you have even one weak thought, then, after that one thought, many other weak thoughts are created. One thought of “Why?” or “What?” brings many other questions of “Why?” and What?” When you have a powerful thought: “I am a mahavir”, “I am an elevated soul”, the world will also be elevated. Therefore, as is the thought, so is the world. All of this is a game of thoughts. If you create thoughts of happiness, you experience the atmosphere to be one of happiness at that time. If you create a thought of sorrow, then even in an atmosphere of happiness, you would feel it to be an atmosphere of sorrow; you won't experience happiness. Therefore, it is in your own hands to create an atmosphere and to create a world. Have determined thoughts and the obstacles will vanish like magic. If you think, "I don't know if this will happen or not", the mantra doesn't work. For instance, when you go to a doctor, he would first of all ask you if you have faith in him. No matter how good the medicine may be, if you don't have that faith, the medicine will have no effect. That is something perishable, whereas here, it is a matter of something imperishable. So, always remember that you are the souls who are constant destroyers of obstacles and worthy-of-worship souls. In which form are you worshipped even now? Because this last birth of yours is vicious, there are no memorials kept of this present form, but your memorial does exist in one form or another. So move along constantly considering yourself to be a master almighty authority, a destroyer of obstacles, Ganesh, the son of Shiva. You create your own thoughts of not knowing about something, and so, because of those weak thoughts you get trapped. Therefore, become those who constantly dance in happiness and who remove everyone's obstacles. Become those who make the difficulties of others easy. For this, simply have determined thoughts and remain double light: Nothing belongs to me; everything belongs to the Father. When you keep the burden with you, you experience all sorts of obstacles. If nothing is yours, you remain free from obstacles. When you say, "It is mine", there is a web of obstacles. So, become destroyers of obstacles who destroy the web. This is also the Father's task. Whatever is the Father's task is the task of the children. When you happily carry out a task, you don't experience any obstacles in doing it. Therefore, happily keep yourself busy in your task. When you keep busy, Maya doesn’t come to you. Achcha.
 
2. Do you always have the awareness that you are sparkling stars of success? Even today, everyone looks at the stars in the sky with so much love because they give light. They are sparkling and this is why they are loved so much. So, you too are sparkling stars of success. Everyone loves success; some pray that their task will be successful. Everyone asks for success whereas you have become stars of success. Even your non-living images are still now giving blessings of success. Therefore, you are so great and elevated! Maintain this intoxication and faith. You are not those who chase after success, but master almighty authorities, that is, embodiments of success. Success will automatically chase after you.
 
3. Do you consider yourselves to be souls who are constantly with the Father and who constantly receive His co-operation? Do you constantly experience His company? When you have the constant company of the Father, you easily have all attainments. If you don't have the Father's company, then you don't have all attainments because the Father is the Bestower of all attainments. When the Bestower is with you, then all the attainments would also be with you. Constantly to have the Father's company means to have a right to all attainments. To be souls who are embodiments of all attainments means to be souls who are completely full and always unshakeable. If you are not full, you will continue to fluctuate. To be full means to be unshakeable. Since the Father is giving His company, those who are to take it should take it. The Bestower is giving it, so you should take it all, not just a little. Devotees are happy with just a little, but to be knowledgeable means to take it all. Achcha.
 
German Group:
 
Do you constantly consider yourselves to be jewels who are close to the Father? The further away you are in terms of the country you are living in, the closer you are with your heart. Do you experience this? Those who constantly stay in remembrance experience themselves to be close through that remembrance. You are easy yogis, are you not? Since you say "Baba", the word Baba makes you an easy yogi. The word “Baba” is a magic word. Something magical enables you to attain things without having to labour. All of you can receive whatever you want, whether it is happiness, peace or power. Just say "Baba" and you will receive everything. Do you experience this? BapDada is pleased to see the children who were separated and have come and met Him once again. Who has greater happiness? You or the Father? BapDada constantly remembers the speciality of every child. You are so lucky! Do you feel that Baba is remembering you? All of you are special souls with your own speciality. You all have the speciality that even whilst living in a faraway land and having gone into another religion, you have still recognised the Father. So, with this special sanskar you have become special souls. Achcha.
 
Blessing:
 
May you keep a balance of serving yourself and serving everyone on the field of service and become a conqueror of Maya.
 
As well as serving everyone, it is essential to serve yourself. This balance between self-service and the service of others will always enable you to make progress. Therefore, while running around on the field of service, keep a balance of both of these and you will become a conqueror of Maya. There are wonders by keeping a balance. Otherwise, because of being extroverted in service, instead of seeing wonders, you get caught up in the commotion of your own nature and the nature of others. In your running around for service, Maya makes your intellect run around.
 
Slogan:

Water the seeds of all your specialities with the water of all powers and make them fruitful.

End of Page