Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali Aug 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - AUG-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
Who can see this article:- All
Your last visit to this page was @ 2018-09-19 23:50:33
Create/ Participate in Quiz Test
See results
Show/ Hide Table of Content of This Article
See All pages in a SinglePage View
A
Article Rating
Participate in Rating,
See Result
Achieved( Rate%:- NAN%, Grade:- -- )
B Quiz( Create, Edit, Delete )
Participate in Quiz,
See Result
Created/ Edited Time:- 07-09-2018 17:27:02
C Survey( Create, Edit, Delete) Participate in Survey, See Result Created Time:-
D
Page No Photo Page Name Count of Characters Date of Last Creation/Edit
1 Image Murali 01-Aug- 2018 125037 2018-09-07 17:27:03
2 Image Murali 02-Aug- 2018 115306 2018-09-07 17:27:03
3 Image Murali 03-Aug- 2018 122767 2018-09-07 17:27:03
4 Image Murali 04-Aug- 2018 131649 2018-09-07 17:27:03
5 Image Murali 05-Aug- 2018 122005 2018-09-07 17:27:03
6 Image Murali 06-Aug- 2018 122804 2018-09-07 17:27:03
7 Image Murali 07-Aug- 2018 120104 2018-09-07 17:27:03
8 Image Murali 08-Aug- 2018 127824 2018-09-07 17:27:03
9 Image Murali 09-Aug- 2018 127466 2018-09-07 17:27:03
10 Image Murali 10-Aug- 2018 121746 2018-09-07 17:27:03
11 Image Murali 11-Aug- 2018 122692 2018-09-07 17:27:03
12 Image Murali 12-Aug- 2018 111683 2018-09-07 17:27:03
13 Image Murali 13-Aug- 2018 123920 2018-09-07 17:27:03
14 Image Murali 14-Aug- 2018 111398 2018-09-07 17:27:03
15 Image Murali 15-Aug- 2018 128503 2018-09-07 17:27:03
16 Image Murali 16-Aug- 2018 127280 2018-09-07 17:27:03
17 Image Murali 17-Aug- 2018 107136 2018-09-07 17:27:03
18 Image Murali 18-Aug- 2018 120726 2018-09-07 17:27:03
19 Image Murali 19-Aug- 2018 108991 2018-09-07 17:27:03
20 Image Murali 20-Aug- 2018 124686 2018-09-07 17:27:03
21 Image Murali 21-Aug- 2018 119352 2018-09-07 17:27:03
22 Image Murali 22-Aug- 2018 131894 2018-09-07 17:27:03
23 Image Murali 23-Aug- 2018 124657 2018-09-07 17:27:03
24 Image Murali 24-Aug- 2018 130080 2018-09-07 17:27:03
25 Image Murali 25-Aug- 2018 132241 2018-09-07 17:27:03
26 Image Murali 26-Aug- 2018 132051 2018-09-07 17:27:03
27 Image Murali 27-Aug- 2018 125337 2018-09-07 17:27:03
28 Image Murali 28-Aug- 2018 119723 2018-09-07 17:27:03
29 Image Murali 29-Aug- 2018 114297 2018-09-07 17:27:03
30 Image Murali 30-Aug- 2018 124625 2018-09-07 17:27:04
31 Image Murali 31-Aug- 2018 109921 2018-09-07 17:27:04
Article Image
Details ( Page:- Murali 08-Aug- 2018 )
08-08-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - यह पुरानी दुनिया अब मिट्टी में मिल धूलछाई हो जायेगी, इसलिए इस धूल में मिलने वाली दुनिया से अपना बुद्धियोग निकाल दो"
 
प्रश्नः-मनुष्यों की कौन-सी चाहना एक बाप ही पूरी कर सकते हैं?
 
उत्तर:-मनुष्य चाहते हैं शान्ति हो। लेकिन अशान्त किसने बनाया है, यह नहीं जानते हैं। तुम उन्हें बतलाते हो कि 5 विकारों ने ही तुम्हें अशान्त किया है। भारत में जब पवित्रता थी तो शान्ति थी। अब बाप फिर से पवित्र प्रवृत्ति मार्ग स्थापन करते हैं, जहाँ सुख-शान्ति सब होगी। मुक्ति-जीवनमुक्ति की राह बाप के सिवाए कोई बतला नहीं सकता।
 
गीत:-इस पाप की दुनिया से........ 
 
ओम् शान्ति।
 
यह किसका सतसंग है? मनुष्य सतसंगों में जब जाते हैं तो कोई कोई साधू सन्त महात्मा आदि गद्दी पर बैठ शास्त्र आदि सुनाते हैं परन्तु वहाँ एम ऑबजेक्ट कुछ भी नहीं रहती। सतसंग से क्या प्राप्ति है, यह कोई को पता नहीं। ऐसे भी नहीं गुरू के सिर्फ फालोअर्स ही उनके पास आते हैं। नहीं, जो चाहे जाकर बैठ जाते हैं, फालोअर्स हो या कोई भी हो, किसी भी धर्म वाला हो। समझते हैं फलाना महात्मा आया है, झट भागते हैं। उसको कहा जाता है सतसंग। महात्मा आदि कोई कोई वेद-शास्त्र की ही बातें समझाते हैं। वास्तव में सत परमात्मा तो एक ही है। बाकी है मनुष्यों का संग। सत परमात्मा ही नर से नारायण बनने की सत्य कथा सुनाते हैं। सत्य नारायण की कथा होती है पूर्णमासी के दिन। अभी तुम जानते हो कि सच्ची-सच्ची पूर्णमासी यह है जबकि रात से दिन होता है। तुम 16 कला सम्पूर्ण बनते हो। वास्तव में ज्ञान सूर्य को कभी ग्रहण नहीं लग सकता। ग्रहण तो इन सूर्य-चांद आदि को लगता है, जो पृथ्वी को रोशनी देते हैं। ज्ञान सूर्य तो है ही सबको रोशनी देने वाला। उसकी ही महिमा गाते हैं ज्ञान सूर्य प्रगटा....... यहाँ तो तुम सब बच्चे बैठे हो। बाहर वाले को एलाउ नहीं किया जाता है। वह तो कुछ समझेंगे नहीं। बाप कहते हैं - मैं तुम बच्चों के ही सम्मुख आता हूँ, पाप आत्माओं को आकर पुण्य आत्मा बनाता हूँ, मन्दिर में रहने लायक बनाता हूँ। वह है पावन दुनिया शिवालय। शिव ने स्वर्ग की रचना की, उसमें कौन रहते हैं? देवी-देवतायें, जिन्हों के चित्र मन्दिरों में रखते हैं। तुम जानते हो कि 5 हजार वर्ष पहले यह देवी-देवतायें भारत में रहते थे, स्वर्ग में राज्य करते थे। कब राज्य किया, कैसे राज्य पाया - यह दुनिया नहीं जानती। तुम बच्चे जानते हो - वह नई दुनिया थी, यह पुरानी दुनिया है। भारतवासी कहते हैं नई दुनिया, नया भारत हो, वर्ल्ड ऑलमाइटी राज्य हो। आत्मा को बुद्धि में आता है - यहाँ देवी-देवताओं का राज्य था। परन्तु यह बिचारों को पता नहीं कि यह आलमाइटी अथॉरिटी का राज्य कब और किसने स्थापन किया? कोई समय तो था जरूर। जानते हो कि भारत सोने की चिड़िया था। तुम अब किसके संग में बैठे हो? कौन-सा महात्मा आया हुआ है? श्रीकृष्ण तो नहीं कहेंगे कि भगवानुवाच, मैं तुम्हें राजयोग सिखलाता हूँ। तुम बच्चों की बुद्धि का ताला अब खुल गया है, जानते हो इतनी सारी पुरानी दुनिया मिट्टी में मिल धूलछांई हो जायेगी। मनुष्य शान्ति चाहते हैं परन्तु शान्ति कौन स्थापन कर सकता है? पहले तो पूछा जाता है कि तुमको अशान्त किसने किया? कुछ बता नहीं सकते कि इन पाँच विकारों ने ही अशान्त किया है। भारत में शान्ति तब थी जबकि पवित्रता थी। पवित्र प्रवृत्ति मार्ग में ही मनुष्य बहुत-बहुत सुखी थे। अभी अपवित्र, पतित प्रवृत्ति मार्ग हो गया है। निशानियाँ भी हैं - मन्दिर में देवताओं की महिमा करते हैं हम नींच पापी हैं, हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं। मनुष्य गाते हैं परन्तु जानते नहीं। जब बाप आते हैं तब बच्चों पर मेहनत करते हैं। बाप आते ही हैं बच्चों के पास। यहाँ कोई साधू-सन्त आदि नहीं बैठा है। यह तो देहधारी है। तुम्हारी नज़र ऊपर में है। हम शिवबाबा से सुनते हैं। किसी देहधारी तरफ दृष्टि नहीं है। कृष्ण भी देहधारी बच्चा है, गर्भ से जन्म लेता है। हर एक आत्मा को अपनी देह है। शिवबाबा को अपनी देह है नहीं। नाम तो देह (शरीर) पर पड़ता है। आत्मा का नाम तो आत्मा ही है। कहते भी हैं महान् आत्मा, पाप आत्मा। पाप परमात्मा तो कभी नहीं कहा जाता है। फिर अपने को परमात्मा कैसे कहला सकते? परमपिता परमात्मा तो एक ही है। वह है सुप्रीम बाप, परमधाम में रहते हैं। तुम कहते हो परम आत्मा, सुप्रीम, वह है निराकार। उनको मिलाकर नाम पड़ गया है - परमात्मा। उनको ही सभी याद करते हैं। नयनहीन को राह दिखाओ प्रभु, बुद्धि ऊपर चली जाती है परमपिता तरफ। जबकि सब राज़ बताने वाला वह परमपिता परमात्मा ही है। निर्वाणधाम को मुक्तिधाम कहा जाता है। जो-जो आत्मायें पहले आती हैं वह जीवनमुक्ति में हैं, पीछे फिर जीवनमुक्ति से जीवनबन्ध में आती हैं। बच्चे जानते हैं पवित्रता, सुख, शान्ति है ही सतयुग में, जबकि एक राज्य होता है। उसको ही अद्वेत राज्य कहा जाता है। फिर द्वेत राज्य अर्थात् डेविल का राज्य होता है। पहले तो एक धर्म था, अभी तो अनेकानेक धर्म हैं। बच्चे इस सारे सृष्टि चक्र को अच्छी रीति नम्बरवार पुरषार्थ अनुसार जानते हैं। और कहाँ एम ऑब्जेक्ट नहीं है।
 
तुम बच्चे जानते हो कि इस झाड़ का बीजरूप परमात्मा ऊपर में है। पहले-पहले सतयुग की रचना होती है। फिर सतयुग से त्रेता बनता है। सारी सृष्टि पुरानी तमोप्रधान बननी ही है। अब तुम पुरानी दुनिया में हो। नई नहीं कहेंगे। नई सृष्टि तो सतयुग थी, कलियुग को पुरानी सृष्टि कहा जाता है। पुरानी होने में भी टाइम लगता है। पहले नई थी अब पुरानी है। भारत में आजकल सब चाहते हैं नई दुनिया हो, उसमें नया भारत हो। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य हो। देवी देवताओं का राज्य आलमाइटी अथॉरिटी ने ही स्थापन किया था। उस समय दूसरा कोई राज्य हो सके। हर एक मनुष्य आलमाइटी अथॉरिटी अर्थात् ज्ञान का सागर हो सके। ज्ञान का सागर, सुख का सागर. . . . . यह महिमा एक परमात्मा की है। वर्सा भी तुमको उनसे ही मिलता है। बाप खुद कहते हैं कि मैं कल्प-कल्प आता हूँ, आकर इस भारत को स्वर्ग बनाता हूँ। फिर आधाकल्प बाद तुम वह राज्य भाग्य गवाँते हो, माया से हार खा लेते हो। मन से हारने की बात नहीं है। मन तो बिल्कुल घोड़ा बन जाता है, माया मन को उड़ा देती है। माया भी कहती है - वाह, हमारी सेना से कोई वहाँ कैसे जा सकता है? अच्छे-अच्छे महारथियों को भी जीत लेती है। तुम्हारी माया के साथ युद्ध है। बाकी यह कोई स्थूल हथियारों की लड़ाई की बात नहीं। यह तो माया पर जीत पाने की लड़ाई है। बाकी वह लड़ाईयाँ तो चलती आई हैं। पहले तलवारें थी, फिर बन्दूकें निकली, अब तो बाम्ब्स निकले हैं।
 
तो अब तुम बच्चों की बुद्धि में है हम सो देवी-देवता थे। और सतसंगों में कोई ऐसे नहीं कहेंगे कि हम सो देवता थे, हमने 84 जन्म लिए। अभी हम पतित बन गये हैं, अब फिर पावन बन रहे हैं। तुम भी नयनहीन थे, इन ऑखों की बात नहीं है। यह ज्ञान के दिव्य चक्षु की बात है। आत्मा तो अपने बाप को भूल गई है। सन्यासियों ने तो आत्मा सो परमात्मा कह दिया है। बाप ही आकर तीसरा नेत्र खोलते हैं। वह फिर देवताओं को तीसरा नेत्र दिखाते हैं, जैसे विष्णु को अलंकार दिखाये हैं वैसे देवताओं को तीसरा नेत्र दे दिया है। परन्तु उनका ज्ञान का तीसरा नेत्र तो खुलता नहीं। सतयुग में अगर यह ज्ञान होता कि हम ऐसे गिरते जायेंगे, फिर हम नर्कवासी बन पड़ेंगे तो राज्य-भाग्य की खुशी ही चली जाती। यह नॉलेज अभी ही रहती है। तुम मीठे-मीठे सिकीलधे लाडले बच्चे जानते हो कि हम बाबा के पास 5 हजार वर्ष बाद आये हैं फिर से अपना राज्य-भाग्य लेने। फिर 5 हजार वर्ष बाद हमको आना है। हम आलराउण्ड एक्टर्स हैं। हम सो देवता बने थे, हम सो क्षत्रिय बनें, अभी हम सो फिर ब्राह्मण बने हैं। यह ज्ञान किसको नहीं है। गीता पाठशाला माना भगवान् की पाठशाला। भगवानुवाच है। उन लोगों ने फिर कृष्ण का नाम डाल दिया है। कृष्ण भगवानुवाच तो कभी हो सके। वह तो बच्चा था। उन पर कितने कलंक लगाये हैं - इतने बच्चे थे, इतनी रानियाँ चुराई! यहाँ तो तुम सब आप ही भाग कर आये हो, कोई ने भगाया नहीं। गवर्मेन्ट के राज्य में अगर कोई किसको भगाये तो भी केस चल जाये। इन्हों का वण्डर हुआ, कितने बच्चे आये, भट्ठी बननी थी। बुढ़े, जवान, बच्चे सब वैराइटी भागकर गये। कोई झाड़ के झाड़ भी आये। तो यहाँ की बात कृष्ण के साथ लगाकर उल्टा-सुल्टा लिख दिया है। अ़खबारों में बड़ी धूमधाम हुई। अमेरिका के अ़खबार में भी पड़ गया कि एक कलकत्ते का जवाहरी कहता है कि मुझे 16108 रानियाँ चाहिए, अभी 400 मिली हैं। तो यह सब खेल है। नथिंगन्यु। कल्प बाद फिर भी ऐसे होगा। ऐसे ही तुम्हारी भट्ठी बनेगी। तुम देख रहे हो कि कैसे स्थापना होती है। तुम मनुष्य से देवता बन रहे हो। जीवनमुक्ति दाता को अपना बनाने से सेकेण्ड में तुम वर्सा पाने के हकदार बनते हो। जनक को भी सेकेण्ड में साक्षात्कार हुआ। कहते भी हैं हमको जनक मिसल ज्ञान दो। जनक ने तो त्रेता में राजाई पाई।
 
बाबा ने पहले-पहले समझाया अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हमारे सामने कौन बैठा है? शिव के मन्दिर के आगे बैल रख दिया है। बैल पर तो मनुष्य बैठेगा, निराकार शिव कैसे बैठेंगे? तो फिर शंकर को बिठा दिया है। कुछ भी समझते नहीं। गीत में भी सुना कि नैन हीन को राह दिखाओ... सब बुद्धिहीन अंधे हैं। प्रजा का प्रजा पर राज्य है। आगे राज्य राजा चलाते थे। कोई कड़ा विकर्म करते थे तो राजा फैंसला करते थे। अभी तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है। एक-दो को के ऊपर जज हैं। वन्डर है ना। यह बेहद का नाटक है। यह तुम जानते हो, और कोई कह सके। जूँ मिसल यह ड्रामा चलता ही रहता है। टिक-टिक होती ही रहती है। दुनिया का चक्र फिरता ही रहता है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कोई नहीं जानते। कहते हैं पत्ता भी ईश्वर के हुक्म पर चलता है। परन्तु यह तो ड्रामा है। मक्खी यहाँ से पास हुई फिर कल्प बाद रिपीट होगा। ड्रामा को समझना है। मनुष्य ही समझेंगे। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। बाबा वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी है। कहते हैं मैं भी ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ। मैं खुद आकर पतित को पावन बनाता हूँ। अभी तुम बाप से शक्ति लेते हो माया पर जीत पाने लिए। माया दुश्मन ने तुमको बिल्कुल कंगाल बना दिया है, हेल्थ, वेल्थ है। अभी तुम समझते हो कि हम विश्व के मालिक बनते हैं। वहाँ तो हेल्थ, वेल्थ, हैपी सब होगा।
 
परमात्मा को ही कहते हैं कि आकर राह बताओ, रहम करो, आकर मुक्ति-जीवनमुक्ति दो। आत्मा ही पुकारती है - बाबा, आकर हमें दु: से छुड़ाए स्वर्ग में सुखी बनाओ। गाया भी है दु: हर्ता, सुख कर्ता। बाप ने सुख दिया फिर उनको स्वर्ग में याद करने की दरकार नहीं रहती। सब बच्चों को सुखी बना देते हैं। आगे 60 वर्ष की आयु में बच्चों को राज्य-भाग्य दे खुद वानप्रस्थ में चले जाते थे। तो बेहद का बाप भी कहते हैं - मैं जानता हूँ तुम सबको माया ने बहुत दु:खी किया है, तो अब ले चलने आया हूँ। निर्वाण-धाम वा वानप्रस्थ एक ही बात है। वानप्रस्थ अर्थात् वाणी से परे स्थान स्वीट साइलेन्स होम। फिर जायेंगे अपनी स्वीट राजधानी में। अभी तो दु:खधाम है। तुम कहते हो हम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हैं और बनाते रहते हैं। सम्पूर्ण तो अन्त में ही बनेंगे। कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी विष्णु वा श्रीकृष्ण है। यह कैसे हो सकता है? यह बातें तो तुम ही समझ सकते हो। स्वदर्शन पाधारियों को नशा होना चाहिए - शिवबाबा हमको स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं। हम सम्पूर्ण अन्त में बनेंगे, इसलिए अलंकार देवताओं को दे दिये हैं क्योंकि तुम अभी सम्पूर्ण नहीं बने हो। तुमको अलंकार शोभेंगे ही नहीं। देवतायें हैं सम्पूर्ण, इसलिए उन्हों को दे दिये हैं। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बेहद ड्रामा के राज़ को बुद्धि में रख नथिंगन्यु का पाठ पक्का करना है। वाणी से परे रह वानप्रस्थ अवस्था में जाना है।
2) माया दुश्मन पर जीत पाने के लिए सर्वशक्तिमान बाप से शक्ति लेनी है। ज्ञान नयन हीन आत्माओं को ज्ञान नेत्र देना है।
 
वरदान:-सहनशक्ति का कवच पहन, सम्पूर्ण स्टेज को वरने वाले विघ्न जीत भव
 
अपनी सम्पूर्ण स्टेज को वरने अर्थात् प्राप्त करने के लिए अलबेलेपन के नाज़ नखरों को छोड़ सहनशक्ति में मजबूत बनो। सहनशक्ति ही सर्व विघ्नों से बचने का कवच है। जो यह कवच नहीं पहनते वह नाजुक बन जाते हैं। फिर बाप की बातें बाप को ही सुनाते हैं, कभी बहुत उमंग-उत्साह में रहते, कभी दिलशिकस्त हो जाते। अब इस उतरने चढ़ने की सीढ़ी को छोड़ सदा उमंग-उत्साह में रहो तो सम्पूर्ण स्टेज समीप जायेगी।
 
स्लोगन:-याद और सेवा की शक्ति से अनेक आत्माओं पर रहम करना ही रहमदिल बनना है।
 
 
08/08/18              Morning Murli   Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, this old world is to turn to dust and become completely useless. Therefore, remove your intellects’ yoga from the world that is going to turn to dust.
 
Question:
 
What desire do people have that only the one Father can fulfil?
 
Answer:
 
People desire peace, but they don’t know who made them peaceless. You tell them that the five vices have made them peaceless. When there was purity in Bharat, there was peace. The Father is now once again establishing the pure family household path where there will be peace, happiness; everything. No one, except the Father, can show the path to liberation and liberation-in-life.
 
Song:
 
Take us away from this world of sin to a place of rest and comfort. 
 
Om Shanti
 
Whose spiritual gathering (satsang) is this? When people go to a spiritual gathering, there is always one or another holy man or great soul sitting on a gaddi speaking knowledge from the scriptures, etc. However, they have no aim or objective there. No one knows what attainment they can have from a spiritual gathering. It isn't just the guru’s followers who go to him. No, anyone can go and sit there. They can be followers or anyone else of any religion. They believe that such-and-such a great soul has come and so they quickly run there. That is called a spiritual gathering. The mahatma would explain something from one or other Veda or scripture. In fact, the Truth, the Supreme Soul, is only the One. All the rest is the company of human beings. Only the Supreme Soul, the Truth, tells you the true story of becoming Narayan from an ordinary man. The true story of Narayan is told on the day of the full moon. You now know that the true full moon is when night changes into day; you become sixteen celestial degrees full. In fact, the Sun of Knowledge can never be eclipsed. It is this sun and moon etc. which give light to the earth that become eclipsed. The Sun of Knowledge is the One who gives light to everyone. His praise is sung: When the Sun of Knowledge rises, the darkness of ignorance is dispelled. All of you sitting here are the children. Outsiders are not allowed here; they wouldn't understand anything. The Father says: I only come in front of you children personally and change you from sinful souls into charitable souls and make you worthy of living in a temple. That is the pure world, Shivalaya (Temple of Shiva). Shiva created heaven. Who resides there? The deities, whose images are placed in the temples. You know that 5000 years ago those deities lived in Bharat and that they ruled heaven. No one in the world knows when they ruled the kingdom or how they attained their kingdom. You children know that that was the new world and that this is the old world. The people of Bharat say: There should be a new world and a new Bharat; there should be a World Almighty kingdom. It enters the intellects of souls that it used to be the kingdom of deities here, but those poor people have forgotten when and who established the kingdom of the Almighty Authority. It definitely existed at some point in time. You know that Bharat was the Golden Sparrow. In whose company are you now sitting? Which great soul has come? Shri Krishna would not say: God speaks: I teach you Raja Yoga. The lock on the intellects of you children has now opened. You know that the whole of this old world is to turn to dust and become completely useless. People want peace, but who can establish peace? First of all, ask them: Who made you peaceless? They won't be able to tell you anything about how the five vices made them peaceless. There was peace in Bharat when there was purity. They were very, very happy on the pure family household path. It has now become the impure household path. There are its signs. They sing praise in the temples: We are degraded sinners. We are without virtues; we do not have any virtues. People sing this, but they don't know anything. When the Father comes, He makes effort for you children. The Father comes to you children. Here, there isn’t any sage or holy person. This one is a bodily being. Your vision is up above. We are listening to Shiv Baba. Our vision is not on any bodily being. Krishna was a child, a bodily being who took birth through a womb. Each and every soul has his own body. Shiv Baba doesn't have a body of His own. The name is given to the body. The name of each soul is “soul”. It is said: A great soul, a sinful soul. ‘Sinful Supreme soul’ would never be said. In that case, how can they call themselves God? The Supreme Father, the Supreme Soul, is only One. He is the Supreme Father who resides in the supreme abode. You say: The Supreme Soul. The Supreme is the incorporeal One. They have confused this and given Him the name, Supreme Soul. Everyone remembers Him: “God, show the path to the blind ones …” Your intellects go up above to the Supreme Father. The One who tells you all the secrets is the Supreme Father, the Supreme Soul. The land of nirvana is called the land of liberation. The souls who come first have liberation-in-life and then, from a life of liberation, they go into a life of bondage. You children know that there is purity, peace and happiness in the golden age when there is one kingdom. That is called the undivided kingdom. Then there is the divided kingdom, that is, the devil's kingdom. First of all, there was just the one religion and now there are innumerable religions. You children know this whole world cycle very well, numberwise, according to your efforts. Nowhere else do they have an aim or objective. You children know that the Seed of this tree, the Supreme Soul, is up above. First, there is the creation of the golden age. Then, from the golden age, it becomes the silver age. The whole world has to become old and tamopradhan. You are now in the old world; it would not be called new. The golden age was the new world. The iron age is called the old world. It takes time for it to become old. At first, it was new and now it is old. Nowadays, everyone in Bharat wants there to be a new world and a new Bharat within it, a World Almighty Authority kingdom. The Almighty Authority established the kingdom of deities. At that time, there was no other kingdom. No human being can be the Almighty Authority, that is, human beings cannot be the Ocean of Knowledge. The praise ‘Ocean of Knowledge, Ocean of Happiness’ is only of the one God. It is from Him alone that you receive the inheritance. The Father Himself says: I come every cycle. I come and make this Bharat into heaven. Then, after half the cycle, you lose your fortune of that kingdom. You are then defeated by Maya. It is not a question of your mind being defeated. The mind becomes completely like a horse. Maya blows the mind away. Maya too says: It is a wonder! How can anyone from my army go to the other side? She even conquers very good maharathis. You battle with Maya. This is not a question of a battle with physical weapons. This is the battle to conquer Maya. Those battles have always gone on. At first they battled with swords, and then guns were invented and now there are bombs . It is now in the intellects of you children that you were deities. No one in other spiritual gatherings would say that they were deities and that they took 84 births, that they have now become impure and are now once again becoming pure. You too were without sight. This is not a question of physical eyes. This is a matter of the divine eye of knowledge. Souls have forgotten their Father. Sannyasis have said that each soul is the Supreme Soul. The Father Himself comes and opens your third eye. They have then portrayed deities with a third eye. Just as they have shown Vishnu with the ornaments, similarly they have shown deities with a third eye. However, their third eye of knowledge never opens. If they had the knowledge in the golden age of how they would descend and how they would then become residents of hell, they would lose the happiness of their fortune of the kingdom. This knowledge only exists at this time. You sweetest, beloved, long-lost and now-found children know that you have come to Baba after 5000 years to claim your fortune of the kingdom once again. We will then come again after 5000 years. We are all-round actors. We became deities and then we became warriors. We have now become Brahmins once again. No one has this knowledge. “Gita Pathshala” means God’s pathshala. There are the versions of God. Those people have then inserted Krishna’s name. There cannot be versions spoken by God Krishna. He was a small child. People have accused him of so many things: he had so many children, he abducted so many queens etc. All of you came running here by yourselves; no one abducted you. If anyone in the Government were to abduct anyone, there would be a case against that one. It was a wonder that so many children came. A bhatthi had to be created. Old people, young people, children, all varieties, came running here by themselves. Some whole trees (families) came. They have confused the things that happened here with Krishna and written all wrong things. There was sensational news in the newspapers. It was printed in the newspapers in America that a jeweller in Calcutta said that he wanted 16,108 queens and that he had so far found 400. All of this is a game. Nothing new! The same thing will happen after a cycle. Your bhatthi will be created in the same way. You can see how establishment is taking place. You are changing from human beings into deities. By making the Bestower of Liberation-in-Life belong to you, you claim a right to attain your inheritance in a second. Janak also had a vision in a second. People say: Give us the same knowledge that Janak received. Janak attained his kingdom in the silver age. Baba first of all explained to you: It is now in the intellects of you children who it is sitting in front of you. They have placed a bull in front of the Shiva Temple. A human being would sit on a bull; how could incorporeal Shiva ride it? Therefore, they have shown Shankar sitting on it. They don’t understand anything. You heard in the song: Show the path to the blind, dear God! All are blind, without intellects. It is the rule of the people over the people. In earlier days, the kingdom was ruled by a king. When anyone committed a great crime, the king would pass judgment. It is now the rule of the people over the people; they are all judges of one another. It is a wonder. This is an unlimited play. Only you know this; no one else can say this. This drama continues to move like a louse; it continues to tick away. The world cycle continues to turn. No one knows the world history and geography. They say that even each leaf moves on the directions of God. However, it is the drama: if a fly passes through here, that will repeat after a cycle. The drama has to be understood. Only human beings would understand. Baba explains so clearly. Baba is the World Almighty Authority. He says: I too am bound by the bondage of the drama. I Myself come and make impure ones pure. You now receive power from the Father in order to conquer Maya. Maya, the enemy, has made you completely poverty-stricken; there is no health or wealth. You now understand that you are becoming the masters of the world. There, you will have health, wealth and happiness; you will have everything. You say to God: Come and show us the path! Have mercy! Come and give us liberation and liberation-in-life! Souls call out: O Baba, come and liberate us from sorrow and make us happy in heaven! He is remembered as the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. The Father gives you happiness. Then there is no need to remember Him in heaven. He makes all the children happy. In earlier days, they would give everything to their children when they reached the age of 60 and go into retirement. The unlimited Father says: I know that Ravan has made you very unhappy. So I have now come to take you back. The land of nirvana and the stage of retirement are the same thing. The stage of retirement, which is beyond sound, is the sweet silence home. Then you will go into your sweet kingdom. It is now the land of sorrow. You say that you are becoming spinners of the discus of self-realisation and are continuing to make others that too. Only at the end will you become perfect. They say that Vishnu or Shri Krishna are spinners of the discus of self-realisation. How could that be possible? Only you can understand these things. Those who are spinners of the discus of self-realisation should have the intoxication: Shiv Baba is making us into spinners of the discus of self-realisation. We will become perfect at the end. It is because you have not yet become perfect that the ornaments have been given to the deities. It wouldn’t seem right to give you the ornaments at this time. Deities are perfect and this is why the ornaments have been given to them. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Keep the secret of the unlimited drama in your intellect and make the lesson of ‘nothing new’ firm. Stay beyond sound and go into the stage of retirement.
 
2. In order to conquer Maya, the enemy, take power from the Almighty Authority Father. Give the eye of knowledge to souls who don’t have the eye of knowledge.
 
Blessing:
 
May you be a conqueror of obstacles and attain the stage of perfection by wearing the armour of the power of tolerance.
 
In order to attain your stage of perfection, put aside the childish carelessness and become strong in the power of tolerance. The power of tolerance is the armour with which you can protect yourself from all obstacles. Those who do not wear this armour become delicate. They then tell the Father what the Father has told them: sometimes they have a lot of zeal and enthusiasm and sometimes they become disappointed. Now, put aside that ladder of climbing up and coming down and constantly maintain zeal and enthusiasm and your stage of perfection will come close.
 
Slogan:To have mercy on many souls with the power of remembrance and service is to be merciful.

End of Page