Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - FEBRUARY 2018 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 20-Feb-2018 )
HINGLISH SUMMARY - 20.02.18      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche -Nar se Narayan banne ke liye perfect Brahman bano,sachcha Brahman woh jisme koi bhi bikar roopi dushman na ho.
Q- Baap ka regard kin baccho ko prapt hota hai?Samajhdar kaun hai?
A- Baap ka regard unhe milta jo yagyan ka har ek karya responsibility se karte hain.Kabhi gaflat nahi karte.Pawan banane ki responsibility samajh isi seva par tatpar rehte hain.Chalan bahut royal hai,kabhi naam badnam nahi karte.Allrounder hain.Samajhdar woh jo full pass hone ki kosis karte hain.Kabhi dukhdayi nahi bante.Koi bhi oolta karya nahi karte.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1) Kisi ki dil ko kabhi bhi dukhana nahi hai.Pratigyan karni hai kabhi koi paap ka kaam nahi karenge.Sada sukhdayi banenge.
2)Karmendriyo se koi bhi oolta karm nahi karna hai.Baap aur Dada ki mat par chal apna bojh utaar dena hai.
 
Vardan:-Swayang ko badalne ki bhavana dwara sabhi baaton me bijay prapt karne wale Safalta Swaroop bhava.
Slogan:-Jaise naino me noor samaya hua hai waise buddhi me Shiv pita ki yaad samayi huyi ho.
 
English Summary -20-02-2018-

Sweet children, in order to become Narayan from an ordinary man, become a perfect Brahmin.A true Brahmin is one who has no enemy, no vice, in him.
Question:Which children does the Father have regard for? Who are sensible?
Answer: Those who carry out every task of the yagya with responsibility receive regard from the Father. They never make mistakes. They consider it their responsibility to be pure and to enable others to become pure and so they remain engaged in this service. Their behaviour is very royal. They never defame the Father's name. They are all-rounders . Sensible ones are those who try to pass fully. They never cause sorrow for others. They don't perform any wrong tasks.
Song:If not today, then tomorrow, these clouds will disperse.  Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1. Never cause sorrow for anyone's heart. Promise that you will never perform sinful actions and that you will become constant bestowers of happiness.
2. Don't do anything wrong through your physical senses. Follow the directions of Bap and Dada and remove your burden.
 
Blessing:May you be an embodiment of success who achieves victory in all situations with the motivation of transforming yourself.
On the field of service, aim to move along in harmony with everyone else. When you have the motivation to transform yourself you will easily be victorious in all situations. Those who wait for others to change are deceived. Therefore, you have to change; you have to do this. Put yourself first in every situation: not in ego, but in doing something and there will then be success and only success. Those who know how to mould themselves become real gold.
 
Slogan:Just as light is merged in the eyes, similarly, let the remembrance of Father Shiva be merged in your intellect.
 
HINDI DETAIL MURALI

20/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

'मीठे बच्चे - नर से नारायण बनने के लिए परफेक्ट ब्राह्मण बनो, सच्चा ब्राह्मण वह जिसमें कोई भी विकार रूपी दुश्मन न हो''
 
प्रश्न:बाप का रिगार्ड किन बच्चों को प्राप्त होता है? समझदार कौन हैं?
उत्तर:
बाप का रिगार्ड उन्हें मिलता जो यज्ञ का हर एक कार्य रेसपान्सिबिलिटी से करते हैं। कभी गफलत नहीं करते। पावन बनाने की रेसपान्सिबिलिटी समझ इसी सेवा पर तत्पर रहते हैं। चलन बहुत रॉयल है, कभी नाम बदनाम नहीं करते। आलराउन्डर हैं। समझदार वह जो फुल पास होने की कोशिश करते हैं। कभी दु:खदाई नहीं बनते। कोई भी उल्टा कार्य नहीं करते।
 
गीत:-आज नहीं तो कल बिखरेंगे यह बादल...  ओम् शान्ति।
 
यह बच्चों को कौन डायरेक्शन देते हैं? बेहद का बाप, जिसको बच्चे इतना पितावृता होकर याद नहीं करते। बाप कहते हैं बच्चे अब वापिस घर चलना है। बच्चे किसको कहते हैं? जो ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण हैं उन्हों को बाप बच्चे कहेंगे क्योंकि उनकी सन्तान बने हैं। बाप बैठ समझाते हैं जब नई सृष्टि रचनी है तो पुरानी सृष्टि की आत्माओं को घर चलना है। अब तुम बच्चे बाप और बाप के घर को जानते हो। इतना जरूर है कोई तो बाप को अच्छी रीति याद करते हैं। श्रीमत पर चलते हैं, कोई देह-अभिमान के कारण याद नहीं करते हैं। पावन नहीं रहते। ब्राह्मण हैं ही ईश्वरीय सन्तान, ब्रह्मा मुख वंशावली। रचयिता बाप गाया जाता है ना। ब्रह्मा मुख कमल से सन्तान रचते हैं। तुम बच्चे जानते हो बरोबर हम ईश्वर की सन्तान ब्रह्मा के मुख वंशावली ब्राह्मण बने हैं। ब्राह्मण उनको कहा जाता है जो पावन रहते हैं। सारा मदार है ही पवित्रता पर। इसको कहा जाता है अपवित्र पतित दुनिया। मनुष्य मात्र जो पतित हैं, वह पावन का अर्थ नहीं समझते। कलियुग पतित दुनिया, सतयुग पावन दुनिया है - यह कोई भी नहीं जानते। कई तो कह देते हैं सतयुग त्रेता में भी पतित लोग हैं। सीता चुराई गई..... यह हुआ पावन दुनिया की ग्लानी करना। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि देखने में आती है। पावन दुनिया में भी पतित हैं तो क्या बाप ने पतित दुनिया रची? बाप तो पावन दुनिया ही स्थापन करते हैं। गाया भी है पतित-पावन आओ, आकर इस सृष्टि को, उसमें भी खास भारत को पावन बनाओ। अब यह ब्रह्माकुमार-कुमारी नाम पड़ता ही उन पर है जो पावन होकर रहते हैं। पतित को ब्राह्मण ब्राह्मणी वा बी.के. कह नहीं सकते। वह हैं ही कुख वंशावली। तुम ब्राह्मण हो ब्रह्मा मुख वंशावली। ब्रह्मा कुख वंशावली तो नहीं कहा जाता। वह हैं ही पतित। अब तुम ईश्वरीय सन्तान बने ही इसलिए हो कि पावन दुनिया के मालिक बनें। ब्राह्मण ब्राह्मणी अथवा ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाकर यदि पतित होते हैं या विकार में जाते हैं तो वह बी.के. नहीं हुए। ब्राह्मण कभी विकार में नहीं जाते। विकार में जाने वाले को शूद्र कहा जाता है। ईश्वर की औलाद बनते ही इसलिए हैं कि ईश्वर से हम राज्य भाग्य लेवें। राजाई का वर्सा लेने के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। लक्ष्य रखना है कि हम नर से नारायण बनें।
तुम बच्चे जानते हो कि नम्बरवन है काम। सेकेण्ड नम्बर है क्रोध। क्रोध आदि का भूत रह जाता है तो वह पूरे वर्से के लायक नहीं बनते। कहा जाता है यह काम वा क्रोध के भूत-वश, परवश हो गया। बाप को याद न करने कारण रावण के वश हो जाते हैं। ऐसे क्रोधी वा कामी नर से नारायण पद पा नहीं सकते। यहाँ चाहिए परफेक्ट ब्राह्मण। बाप समझाते हैं पहले नम्बर का भूत आता है देह-अभिमान। अगर देही-अभिमानी हो बाप को याद करते रहें तो बाप मदद भी करे। जो जितना याद करते हैं उतनी उनको मदद मिलती है। ब्राह्मण सच्चा वह जिसमें यह विकार रूपी दुश्मन न हो। मुख्य देह-अभिमान के कारण ही और और दुश्मन आते हैं। यह भारत शिवालय था तब दु:ख की कोई बात नहीं थी। यह मनुष्यों को पता नहीं है। वह तो कह देते हैं माया भी है ही, ईश्वर भी है ही। अरे ईश्वर अपने समय पर आता, माया अपने समय पर आती। आधाकल्प है ईश्वरीय राज्य, आधाकल्प है माया का राज्य। यह समझानी शास्त्रों में नहीं है। वह है ही भक्ति मार्ग। ज्ञान का सागर एक ही बाप है जिसको पतित-पावन कहा जाता है। जो बाप को याद नहीं करते हैं उनसे पतित काम जरूर होते ही रहेंगे। उनको ब्राह्मण ब्राह्मणी कह नहीं सकते। बड़ी सूक्ष्म बातें हैं। शिवबाबा (दादे) को याद नहीं करेंगे तो वर्सा कहाँ से मिलेगा। फिर उनको इस पुरानी दुनिया के मित्र-सम्बन्धी आदि याद आते हैं। अच्छी रीति बाप को याद करेंगे तो बाप भी मदद देंगे। तुम कहाँ मुरली चलाने में मूंझ जायेंगे तो भी शिवबाबा प्रवेश कर आए मुरली चलायेंगे। बच्चों को पता नहीं पड़ता कि शिवबाबा आकर मदद करते हैं। समझते हैं हमने आज अच्छी मुरली चलाई। अरे आज अच्छी चलाई, कल क्यों नहीं चलाते थे। तुमको यह भी पता थोड़ेही पड़ता है - शिवबाबा बोलते हैं या ब्रह्मा बोलते हैं! शिवबाबा कहते हैं - बच्चे, तुम मेरी ईश्वरीय औलाद हो, मेरे को याद करो। ऐसे और कोई कह न सके। मैं ही इनमें प्रवेश कर कह सकता हूँ। मैं ज्ञान सागर हूँ ना। तुम ज्ञानी तू आत्मा बन रहे हो। तो जो बाप से योग रखते हैं तो बाप भी आकर मदद करते हैं। देह-अभिमानी याद थोड़ेही करेंगे। बाप को जरूर याद करना है। अहंकार नहीं आना चाहिए - मैंने अच्छी मुरली चलाई। नहीं, समझना चाहिए शिवबाबा ने आकर मुरली चलाई। घड़ी-घड़ी शिवबाबा को याद करना चाहिए। बहुत बच्चे हैं जो पूरा याद नहीं करते हैं तो कर्मभोग मिटता नहीं। बीमारियां आ जाती हैं। विकर्म विनाश नहीं होते हैं।
बच्चों को बाप के साथ योग लगाना है। हम राजयोगी हैं। बाप से राजाई लेनी है। हम नर से नारायण बनेंगे। दिल में समझना है मैं इतना पढ़ता हूँ जो सूर्यवंशी में जाऊं। ऐसे नहीं, पहले दास-दासी बन फिर राजाई पावें। बाप को याद करने से बाप की मदद मिलेगी। नहीं तो कुछ न कुछ पाप, नुकसान आदि होता है। वह दु:खदाई बहुत बनते हैं। लक्ष्मी-नारायण तो सुखदाई हैं ना। समझदार बच्चे कोशिश करेंगे फुल पास होने की। ऐसे नहीं, जो मिला सो ठीक। हर बात में आलराउन्ड पुरुषार्थ करना चाहिए। ऐसे भी नहीं कि यह काम इनका है हम क्यों करें, बाबा आलराउन्ड काम करते हैं ना। बच्चों की चलन ठीक नहीं रहती तो फिर नाम बदनाम कराते हैं। बाप कहते हैं मेरा बनकर और फिर उल्टा काम करते तो पद भ्रष्ट हो जाता है। ऐसे मत समझो कि यह ब्रह्मा बाबा डायरेक्शन देते हैं। शिवबाबा याद रहना चाहिए।
बच्चों को समझना है दुनिया को पावन बनाने का बोझा सिर पर है। हम रेसपॉन्सिबुल हैं। भारत को पावन बनाने की बहुत बड़ी रेसपॉन्सिबिल्टी है। यज्ञ का हर एक कार्य रेसपान्सिबिल्टी से करना है। कोई ग़फलत न हो तब बाबा भी रिगार्ड देंगे। नहीं तो धर्मराज ऐसी सजा खिलाते हैं जो कभी जेल में भी नहीं खाई होगी इसलिए बाप कहते हैं विनाश होने के पहले सब विकर्म योग से भस्म करो। नहीं तो जन्म-जन्मान्तर के विकर्मो की सजा धर्मराजपुरी में बहुत खानी पड़ेगी इसलिए ग़फलत मत करो। यह अन्तिम जन्म है। फिर तो जायेंगे ही स्वर्ग में। मोचरे खाकर फिर प्रजा पद पाना इसको पुरुषार्थ नहीं कहा जाता। उस समय त्राहि-त्राहि करना पड़ेगा। यह भी बाप साक्षात्कार करायेंगे कि बार-बार समझाया था, ब्राह्मण बनना कोई मासी का घर नहीं है। ईश्वर का बच्चा बनते हो तो फिर कोई विकार नहीं होना चाहिए। इसमें भी काम महाशत्रु है। जो काम वश हो जाते हैं उन्हें ब्राह्मण नहीं कह सकते। माया बहुत पिछाड़ेगी परन्तु कर्मेन्द्रियों से कोई काम नहीं करना है। फैमिलियरटी का हल्का नशा - यह भी माया का नशा है। बाबा ने समझाया है इससे भी बोझा चढ़ जायेगा। तुम व्यभिचारी बन गये। ईश्वरीय औलाद में यह काम-क्रोध आदि शैतान थोड़ेही होते हैं। वह शैतानी आसुरी गुण हैं। बहुत हैं जो ईश्वर के बनते फिर माया के बनन्ती हो जाते हैं। देह-अभिमान में आ जाते हैं। बाप की श्रीमत पर चलना है तब रेसपान्सिबुल वह रहेंगे। ब्रह्मा की मत भी गाई हुई है। इनकी मत पर चलने से भी रेसपान्सिबुल बाप हो जायेगा। तो क्यों न अपने से रेसपॉन्सिबिलिटी उतार देनी चाहिए। बाप-दादा, दोनों की मत मशहूर है। माता की मत पर भी चलना चाहिए क्योंकि माता गुरू बनती है। वह मात-पिता अलग हैं। इस समय माता को गुरू बनाने का सिलसिला चलता है।
तुम पुरुषार्थ कर रहे हो शिवालय के लिए। सतयुग को शिवालय कहा जाता है। परमात्मा का एक्यूरेट नाम शिव है। शिवजयन्ती ही गाई जाती है। शिव को कल्याणकारी कहा जाता है, वह है बिन्दी। परमपिता परमात्मा का रूप है ही स्टार। सोने अथवा चांदी का छोटा स्टॉर बनाकर टीका भी लगाते हैं। वास्तव में वह एक्यूरेट ठीक है और स्टार रहता भी भ्रकुटी में है। परन्तु मनुष्यों को ज्ञान नहीं है। कोई फिर त्रिशूल देते हैं। त्रिनेत्री, त्रिकालदर्शी की निशानी यानी दिव्य दृष्टि, दिव्य बुद्धि की निशानी देते हैं। अभी तुम बच्चों को इन बातों का ज्ञान है। तुम चाहो तो स्टार लगा सकते हो। अपनी निशानी सफेद स्टार है। आत्मा का रूप भी ऐसे स्टार मिसल है। बाप सभी राज़ समझाते हैं। सावधानी भी देते हैं। बी.के. वह जिनकी प्रतिज्ञा की हुई है कि पाप का काम कभी नहीं करेंगे। यह याद रखना है। किसकी दिल को दुखाना नहीं है। अगर दुखाते हैं तो शिवबाबा का बच्चा नहीं ठहरा। शिवबाबा आते ही हैं सुख देने। वहाँ यथा राजा रानी तथा प्रजा - सभी एक दो को सुख देते हैं। यहाँ सब सांवरे बने हैं, काम कटारी चलाते रहते हैं। यह है ही एक दो को दु:ख देने की दुनिया। सतयुग है एक दो को सुख देने की दुनिया। समझाना चाहिए कि हम ईश्वरीय सन्तान बने हैं। हम कोई पाप नहीं करते। नहीं तो पुण्य आत्माओं की दुनिया में इतना पद पा नहीं सकेंगे। हर एक की नब्ज से पता पड़ सकता है कि यह हमारे कुल का है वा नहीं।
हम कहते हैं भगवानुवाच तो गाया हुआ है कि हम तुमको राजयोग सिखलाते हैं। भगवान तो एक निराकार को कहा जाता है। तो कब आकर राजयोग सिखलायेंगे? जरूर जब नई दुनिया स्थापन होगी। नई दुनिया के लिए जरूर पुरानी में आना पड़े। भगवानुवाच - हम तुमको राजयोग सिखाते हैं। कहाँ के लिए? क्या नर्क के लिए? पावन दुनिया के लिए। भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ। बताओ कब आया था, वह कौन था फिर कब आयेगा? जरूर सतयुग के लिए ही सिखलायेगा। बहुत सहज है। परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो बुद्धि में बैठ नहीं सकता। जैसे तत्ते तवे। फिर समझना चाहिए यह हमारे सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राजाई का नहीं है बाकी प्रजा तो बहुत ही बननी है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे 5 हजार वर्ष बाद आकर मिले हो बाप से वर्सा लेने, ऐसे बच्चों को मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी की दिल को कभी भी दुखाना नहीं है। प्रतिज्ञा करनी है कभी कोई पाप का काम नहीं करेंगे। सदा सुखदाई बनेंगे।
2) कर्मेन्द्रियों से कोई भी उल्टा कर्म नहीं करना है। बाप और दादा की मत पर चल अपना बोझ उतार देना है।
 
वरदान:स्वयं को बदलने की भावना द्वारा सभी बातों में विजय प्राप्त करने वाले सफलता स्वरूप भव
सेवा के क्षेत्र में हर एक के साथ मिलकर चलने का लक्ष्य हो, स्वयं को बदलने की भावना हो तो सभी बातों में सहज विजयी बन सकते हो। दूसरा बदले - यह देखने वा सोचने वाले धोखा खा लेते हैं इसलिए मुझे बदलना है, मुझे करना है, पहले हर बात में स्वयं को आगे करो। अभिमान में नहीं, करने में आगे करो तो सफलता ही सफलता है। जो मोल्ड होना जानते हैं वह रीयल गोल्ड बन जाते हैं।
 स्लोगन:जैसे नयनों में नूर समाया हुआ है वैसे बुद्धि में शिव पिता की याद समाई हुई हो।

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