Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - FEBRUARY 2018 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 02-Feb-2018 )
HINGLISH SUMMARY - 02.02.18      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche -Kisi bhi chiz me aashakti nahi rakhni hai,deha sahit sabse poora beggar banna hai,Shiv puri aur Vishnu puri ko yaad karte rehna hai.
Q-Garib niwaz Baap garib baccho ko bhi kis baat me aap samaan bana dete hain?
A- Baba kehte jaise main frank dil hoon,kakhpan le tumhe badshahi deta hoon,aise tum bacche bhal garib ho lekin frank dil bano.Thode paise se bhi yah Godly University khol do,isme kharcha koi nahi.3-4 ne bhi is university se achcha fal pa liya to kholne wale ka aho saubhagya.Sirf sapoot bankar rehna.kabhi kaam,krodh ke bas Satguru ki ninda nahi karana.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1) Bhal koi ninda kare,hume ghusse me nahi aana hai.Kisi se bhi vaad bivad nahi karna hai.Refresh ho fir service karni hai.
2)Nind ko jeetne wala banna hai.Raat ko jaagkar bhi Baap ko yaad karna hai aur gyan ka simran karna hai.Dehi-abhimaani rehne ki practise karni hai.
 
Vardan:-Shanti ke avtaar ban Biswa me shanti ki kirne failane wale Shanti Deva bhava.
Slogan:-Jiska swayang par byaktigat attention hai way antarmukhi bankar fir bahyamukti me aate hain.
 
English Summary -02-02-2018-

Sweet children, don't be attracted to anything. Become complete beggars in relation to everything, including your bodies. Continue to remember the land of Shiva and the land of Vishnu.
 
Question:In which aspect does the Father, the Lord of the Poor, make the poor children the same as Himself?
Answer:Baba says: Just as I am generous hearted and I take everything worth straws and give you the sovereignty, in the same way, although you children are poor, you must become generous hearted. Open a Godly University with just a little money. There is no expense in this. If even three or four people receive good fruit from it, it is great fortune for those who opened the centre. Simply remain obedient. Never defame the Satguru under the influence of lust or anger.
Om Shanti
Essence for Dharna:
1. Even if someone defames you, you mustn't become angry. Never debate with anyone. Refresh yourself and then do service.
2. Become a conqueror of sleep. Stay awake at night and remember the Father and churn knowledge. Practise remaining soul conscious.
 
Blessing:May you be a bestower of peace and spread rays of peace into the world as an incarnation of peace.
A tiny firefly gives the experience of its light from a distance. Similarly, enable souls of the world and souls who come into connection and relationship with you to feel that they are receiving the power of silence from you special souls. Let their intellects experience incarnations of peace coming to give them peace. On the basis of the rays of peace, enable all peaceless souls to be pulled to the sacred area of peace (Shanti-kund). Now experiment with this power of silence.
Slogan:Those who pay personal attention to themselves first have to become introspective and then become extroverted.
 
 
 
HINDI DETAIL MURALI

02/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - किसी भी चीज़ में आसक्ति नहीं रखनी है, देह सहित सबसे पूरा बेगर बनना है, शिवपुरी और विष्णुपुरी को याद करते रहना है।''
प्रश्न:गरीब निवाज़ बाप गरीब बच्चों को भी किस बात में आप समान बना देते हैं?
उत्तर:बाबा कहते जैसे मैं फ़राख दिल हूँ, कखपन ले तुम्हें बादशाही देता हूँ, ऐसे तुम बच्चे भल गरीब हो लेकिन फ़राख दिल बनो। थोड़े पैसे से भी यह गॉडली युनिवर्सिटी खोल दो, इसमें खर्चा कोई नहीं। 3-4 ने भी इस युनिवर्सिटी से अच्छा फल पा लिया तो खोलने वाले का अहो सौभाग्य। सिर्फ सपूत बनकर रहना। कभी काम, क्रोध के वश सतगुरू की निन्दा नहीं कराना।
 
ओम् शान्ति।
बापदादा और मम्मा। मम्मायें दो होती हैं - दादी और माता। यह तुम्हारी बड़ी माँ है। परन्तु बच्चों को सम्भालने के लिए जगत अम्बा निमित्त बनी हुई है। शिवबाबा है बहुरूपी, वह बहुत खेलपाल भी करते हैं। स्वहेज़ होते हैं ना। जब सगाई होती है तो भी स्वहेज़ करते हैं और जब शादी का समय होता है तो दोनों फटे हुए कपड़े पहनते हैं, तेल लगाते हैं। यह रसम भी यहाँ की है। तुम बच्चों को भी बाप समझाते हैं कि पूरा बेगर बनना है। कुछ भी नहीं होगा तो सब कुछ मिल जायेगा। देह सहित कुछ भी न रहे। शिवपुरी, विष्णुपुरी तरफ ही बुद्धियोग लगाना है, और कोई भी चीज़ में आसक्ति न हो। पवित्र भी जरूर बनना है। देखो मीरा का कितना गायन है! लोकलाज खोई। सिर्फ इस पवित्रता के कारण कितना नाम निकला है। उनको तो ज्ञान अमृत भी नहीं मिला। सिर्फ कृष्ण से प्रीत थी। कृष्णपुरी में जाने के लिए विष को छोड़ा। जैसे स्त्री पति के पिछाड़ी सती बनती है ना। अब ऐसे तो नहीं मीरा याद करते-करते कोई कृष्णपुरी में गई। उस समय कृष्णपुरी तो है नहीं। मीरा को 5-7 सौ वर्ष हुए होंगे। भक्तिन बहुत अच्छी थी, इसलिए कोई अच्छे भक्त के घर जन्म लिया होगा। उनका नामाचार कितना चला आता है। वह तो मीरा भक्तिन थी। तुम सभी ज्ञान मीरायें बनती हो। तुम आये हो सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी महारानी बनने के लिए। भल पहले अनपढ़े, पढ़े के आगे भरी ढोते हैं परन्तु महारानी तो बनेंगे ना। अगर बचपन को भूल हाथ छोड़ दिया फिर तो कभी नहीं महारानी बनेंगी और ही प्रजा में भी कम पद पायेंगी। वैकुण्ठ में तो आयेंगे परन्तु कम पद। बाबा ने समझाया है - भक्ति करने वालों से पूछना चाहिए कि तुम क्या चाहते हो? कृष्ण की भक्ति क्यों करते हो? जरूर दिल होगी कि इनकी राजधानी में जायें। परन्तु वहाँ जायेंगे कैसे? बहुत मनुष्य कहते हैं हमको शान्ति चाहिए। परन्तु अशान्ति तो सारी दुनिया में है ना। तुम एक को शान्ति मिलने से क्या होगा, हम तुमको 21 जन्मों के लिए सदैव सुखी बना सकते हैं। देवतायें इस भारत में ही सदा सुखी थे। अब वह राजधानी स्थापन हो रही है। यहाँ तो है ही माया का राज्य, शान्ति मिल नहीं सकती। शान्ति के लिए अलग जगह है, सुख के लिए अलग जगह है। सुखधाम में सब सुखी होते हैं। कोई एक भी दु:खी नहीं रहता और दु:खधाम में फिर एक भी सुखी नहीं रहता। यथा राजा रानी तथा प्रजा सब दु:खी ही दु:खी हैं। सुखधाम में कभी जानवर भी दु:ख नहीं पाते। शान्ति की दुनिया ही अलग है, जिसको निर्वाणधाम कहते हैं। कहते हैं फलाना निर्वाणधाम गया। परन्तु गया कोई भी नहीं है। अगर खुद चला गया तो फिर क्या करके गया? सब दु:खी ही दु:खी हैं, कितने लड़ाई-झगड़े हैं। वह कहते हमारे देश से हिन्दू निकल जाएं, वह कहते फलाने निकल जायें। एक दो को सहन नहीं कर सकते। अब बाप भी देखते हैं अनेक धर्म हो गये हैं तो लड़ते रहते हैं, इसलिए सभी देह के धर्मों को निकाल देते हैं। बाप कहते हैं जो भी धर्म वाले हैं, सबको हम देह के धर्मों से निकाल देंगे। सतयुग में सिर्फ एक देवता धर्म रहता है। यह सब ज्ञान तुम बच्चों की बुद्धि में है। हाथ में चित्र उठाए जाकर वानप्रस्थियों को समझाना चाहिए। मन्दिरों में जाना चाहिए। उनसे पूछना चाहिए शंकर के आगे शिव दिखाते हैं तो जरूर वह शंकर से बड़ा हुआ ना। अगर शंकर भगवान का रूप है तो फिर उनके सामने शिवलिंग रखने की क्या दरकार है। सन्यासी अपने को ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी कहलाते हैं। शिव का उनको पता भी नहीं है। तत्व तो रहने का स्थान है। वह फिर ब्रह्म और तत्व को भी एक नहीं मानते। अच्छा ब्रह्म ज्ञानी, तत्व ज्ञानी हैं फिर अपने को शिव क्यों कहलाते? वह तो समझते हैं शिव भी एक ही है, ब्रह्म भी एक ही है। अब ब्रह्म तो है ही रहने का स्थान। मनुष्य तो बहुत मूंझे हुए हैं। तुम बच्चों को अब होशियार होना है। तुम सन्यासियों को भी समझा सकते हो। उनसे भी कोई निकलेंगे जो असुल देवता धर्म के होंगे, वह झट ज्ञान को समझ लेंगे। कोई 3-4 जन्मों से कनवर्ट हुए होंगे तो इतना जल्दी नहीं निकलेंगे, ताजे गये होंगे तो झट निकलेंगे। बाबा में कशिश है ना। बाप है चुम्बक। आत्मायें हैं सुईयां। अब सुईयों पर कट (जंक) चढ़ी हुई है। कट वाली सुई ऊपर कैसे जाये। पंख टूटे हुए हैं। कट वाली चीज़ मिट्टी के तेल में डाली जाती है। बाबा भी इस ज्ञान अमृत से सबकी कट निकालते हैं। फिर हम सच्चा सोना बन जायेंगे। तुम अभी पत्थरनाथ से पारसनाथ बनते हो। भारत पारसपुरी था। अब देखो सोने का दाम कितना चढ़ गया है। फिर वहाँ बहुत सस्ता हो जायेगा। तो भारत जो अब पत्थरपुरी बना है वह फिर पारसपुरी बनेगा। हमारी बुद्धि में यह चक्र फिरता रहता है। सारा दिन चक्र बुद्धि में फिरेगा तब ही चक्रवर्ती राजा रानी बनेंगे। दुनिया में इन बातों को कोई भी नहीं जानते हैं। तुम जानते हो सतयुग में जो राज्य करते हैं, उन्हों के 84 जन्म होते हैं। फिर त्रेता वालों के जरूर कम होंगे। कहाँ 84 जन्म, कहाँ फिर 84 लाख कह देते हैं। फिर तो कल्प भी इतना लम्बा होना चाहिए, जो इतने जन्म हों। यह हैं सब गपोड़े। हमेशा पहले तो चित्र सामने दे देना चाहिए। पैसा तो तुम कभी नहीं मांगना। तुम्हारा काम है उनको देना। कुछ भी उनको देना होगा तो आपेही देंगे। कोई दाम पूछे तो बोलो बाबा तो गरीब-निवाज़ है। गरीबों के लिए फ्री बांटा जाता है। बाकी साहूकार जितना देंगे उतना हम और भी छपायेंगे। पैसा कोई हम अपने काम में थोड़ेही लगाते हैं। जो मिलता है जनता की सेवा के काम में लगाया जाता है। साहूकार ही तो धर्मशाला आदि बनायेंगे। यहाँ गरीब भी सेन्टर बना सकते हैं, इसमें खर्चा कुछ भी नहीं है। समझो कहते हैं कि हम सेन्टर खोलूँ अथवा यह गॉडली युनिवर्सिटी खोलूं। ऐसी गॉडली युनिवर्सिटी से 3-4 ने भी अच्छा फल पा लिया तो अहो सौभाग्य, उन खोलने वालों का। इसमें फ़राख दिल होना चाहिए। बाबा देखो कितना फ़राख दिल है। कखपन ले और बादशाही दे देते हैं। सपूत बच्चे ही बाबा की सर्विस कर सकते हैं। कपूत क्या करेंगे। कपूत को थोड़ेही बाप वर्सा देंगे। तुमको सतगुरू का शो करना है। काम अथवा क्रोध में आये तो गोया सतगुरू की निन्दा कराई, फिर पद पा नहीं सकेंगे। बहुत सम्भाल करनी चाहिए। बाप कहते हैं विष का वर्सा तो बाप से, पति से लेते आये हो। अब यह पारलौकिक बाप, पति अमृत का वर्सा तुमको देते हैं।
 
तुम सभी धर्म वालों को रचयिता और रचना की नॉलेज बता सकते हो। वह (रचयिता) तो रहते ही हैं शान्तिधाम में। उनको याद करने से तुम शान्ति का वर्सा ले सकते हो। वर्सा लेते-लेते विकर्म विनाश हो जायेंगे और तुम उनके पास चले जायेंगे। यह ज्ञान सभी धर्म वालों के लिए है। यह है बिल्कुल नई बात। शास्त्र तो हैं भक्ति मार्ग के। दर-दर धक्का खाना, ब्राह्मण खिलाना, तीर्थों पर जाना। यहाँ तो एक ही ज्ञान से बेड़ा पार हो जाता है और कहीं जाने की दरकार ही नहीं। तो मीठे-मीठे बच्चे अब तुम स्वर्ग में चलते हो। जो विष पीने वाले हैं वह विघ्न तो जरूर डालेंगे क्योंकि सारी दुनिया धुंधकारी है। देखो भारत में पवित्रता नहीं है तो धक्के खाते रहते हैं। हंगामें हैं, स्ट्राइक करते रहते हैं। गवर्मेन्ट का नाक में दम चढ़ा देते हैं। गवर्मेन्ट साफ कह देती है कि इतना खर्चा हम लावें कहाँ से? तो वह कहते हैं तुम लोग मौज उड़ाते हो। धन इकट्ठा करते रहते हो, हमने क्या गुनाह किया है। हमको तनख्वाह चाहिए। स्ट्राइक कर लेते हैं तो धंधा ठहर जाता है। यह सब होना ही है। कहाँ सब्जी नहीं मिलेगी, कहाँ दूध नहीं मिलेगा, जहाँ तहाँ खिटपिट है। यह सब हंगामा हो फिर शान्ति होगी। विनाश का और फिर विष्णुपुरी का साक्षात्कार तो अर्जुन को भी कराया था ना। तुमको भी अभी हो रहा है। देखो, कहाँ बरसात नहीं पड़ती है तो भी यज्ञ रचते हैं। कहाँ बहुत अशान्ति होती है तो पीस के लिए यज्ञ रचते हैं। परन्तु पीसफुल तो एक ही भगवान है। वह जब आये तो शान्ति का दान देवे। देने वाला तो वह एक ही है ना। देखो तुम कितने लाडले बच्चे हो। बहुत जन्मों के बाद अन्त में आकर मिले हो। तो अब पूरा सौभाग्य लो। बच्चों को टोलपुट (मीठे बच्चे) कहा जाता है, मिठाई खिलाई जाती है। वह होती है जिस्मानी मिठाई, यह है रूहानी मिठाई, जो रूहानी बाप देते हैं। देही-अभिमानी हो रहना - बड़ी भारी मंजिल है। इसमें मेहनत है। बाबा कहते हैं 8 घण्टा तो देही-अभिमानी बनो फिर भल शरीर निर्वाह अर्थ काम भी करो। रात को जागो तो बहुत अच्छी लगन रहेगी। कमाई है ना। हे नींद को जीतने वाले बच्चे, मुझ बाप को श्वांसो श्वांस याद करो। विचार सागर मंथन करो। रात-दिन जितना योग में रहेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे और जितना ज्ञान सिमरण करेंगे उतनी कमाई होगी। बाकी तो सर्विस बहुत है। बाबा से पूछेंगे तो बाबा कहेंगे बैठे रहो, आराम करो, इसमें पूछने की दरकार नहीं है। बाबा ने लोक-लाज़ का कुछ ख्याल किया क्या? अरे बादशाही मिलती है तो इनको मारो ठोकर। बाकी हाँ, हर एक का अपना-अपना पार्ट है। हर एक का कर्मबन्धन अलग-अलग है। पैसे हैं तो अलौकिक सर्विस में पैसे को सफल करो। यह तो बच्चे समझते हो इस ज्ञान मार्ग में जरूर विघ्न पड़ते हैं क्योंकि पवित्रता का सवाल है। जो भी धर्म स्थापन करने आते हैं उन्हों को पवित्र जरूर बनाना पड़े। इस समय तो मनुष्य बहुत गन्दे हैं। विघ्न भी बहुत डालेंगे, झूठ कलंक भी लगायेंगे। इन बातों से डरना नहीं है। कुछ भी हो घबराना नहीं चाहिए। 5 हजार वर्ष पहले भी यह कलंक लगे थे। अब भी लगेंगे। झूठी-झूठी बनावटी बातें भी करेंगे। किसको रेसपान्ड ठीक न मिलने से भी हंगामा करते हैं। आहिस्ते-आहिस्ते सन्यासी उदासी आदि सब धर्म वाले आयेंगे। सबको बाप की नॉलेज जरूर लेनी है। यह चित्र भी सारी दुनिया में जाने हैं। कभी क्रोध में आकर वाद-विवाद नहीं करना है। भल जाए कोई निन्दा करे, गुस्से में कभी नहीं आना चाहिए। बच्चों को रिफ्रेश हो फिर सर्विस करनी है। दिन प्रतिदिन कायदे कानून भी सुधरते जायेंगे। दुनिया के कायदे कानून तो बिगड़ते जायेंगे क्योंकि वह तो तमोप्रधान बनती जाती है। हम तो सतोप्रधान बन रहे हैं। अच्छा।
 
तुम बच्चे हो राजऋषि। तुम कहेंगे हम अभी तपस्या कर रहे हैं - वानप्रस्थ में जाने के लिए। ऐसा जवाब देने का कोई मनुष्य को अक्ल नहीं है। वह तो वानप्रस्थ को समझते ही नहीं। तुम कहेंगे हम राजयोगी हैं। जीवनमुक्ति के लिए तपस्या कर रहे हैं। सिखलाने वाला है पारलौकिक परमपिता परमात्मा, ज्ञान का सागर। ऐसे-ऐसे माताएं बैठ समझायें तो सब वन्डर खायेंगे। बोलो, हमको पारलौकिक परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं। भविष्य ऊंच पद प्राप्त कराने के लिए। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) भल कोई निन्दा करे, हमें गुस्से में नहीं आना है। किसी से भी वाद विवाद नहीं करना है। रिफ्रेश हो फिर सर्विस करनी है।
2) नींद को जीतने वाला बनना है। रात को जागकर भी बाप को याद करना है और ज्ञान का सिमरण करना है। देही-अभिमानी रहने की प्रैक्टिस करनी है।
 
वरदान:शान्ति के अवतार बन विश्व में शान्ति की किरणें फैलाने वाले शान्ति देवा भव!
जैसे छोटा सा फायरफलाई (जुगनू) दूर से ही अपनी रोशनी का अनुभव कराता है। ऐसे विश्व की आत्माओं वा सम्बन्ध-सम्पर्क में आने वाली आत्माओं को महसूस हो कि शान्ति की किरणें इन विशेष आत्माओं द्वारा मिल रही हैं। बुद्धि द्वारा अनुभव करें कि शान्ति का अवतार शान्ति देने आ गये हैं। चारों ओर की अशान्त आत्मायें शान्ति की किरणों के आधार पर शान्ति कुण्ड की तरफ खिंची हुई आयें। इस शान्ति की शक्ति का अभी प्रयोग करो।
 
स्लोगन:जिनका स्वयं पर व्यक्तिगत अटेन्शन है वे अन्तर्मुखी बनकर फिर बाह्यमुखता में आते हैं।

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