Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - FEBRUARY 2018 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 07-Feb-2018 )
HINGLISH SUMMARY - 07.02.18      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche - Tumhe Kshirkhand hokar rehna hai,matbhed me nahi aana hai,koi bhi gandi aadat hai to usey chhod dena hai,kisi ko bhi dukh nahi dena hai.
Q-Janm-janmantar ke liye oonch pad paane ke liye kaun sa raham swayang par zaroor karna hai?
A-Swayang ki andar se jaanch karke jo bhi buri aadate hain,krodh adi bikar hai unhe nikaal dena,Kshirkhand hokar rehna,ek ki Shrimat par chalna,matbhed me na aana,koi bhi evil baatein na soonna,na soonana-yahi apne upar raham karna hai.Isse he janm-janmantar ke liye oonch pad mil jata hai.Jo apne upar raham nahi karte oh 21 janmo ke sukh ko lakeer laga dete hain.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Gyan aur yog seekh,bhagat se gyani tu aatma banna hai.Grihast byavahar me rehte maya ko jitna hai.pavitra zaroor banna hai.
2)Gyan marg me bahut achche manners dharan karne hain.Bahut-bahut mitha,nirahankari banna hai.Evil baatein nahi bolni hain.Matbhed me nahi aana hai.
Vardan:-Har aatma se aatmik atoot pyaar rakh sneh sampann byavahar karne wale Safaltamurt bhava.
Slogan:-Antarmukhi woh hai jo jis samay chahe awaaz me aaye aur jis samay chahe awaaz se pare ho jaye.
 
English Summary -07-02-2018-

Sweet children, you have to live like milk and sugar and not have any conflict. Renounce any bad habits you may have. Don’t cause anyone sorrow.
Question:What mercy must you definitely have for yourself in order to claim a high status for birth after
Answer:
Look within yourself and remove any bad habits such an anger etc. or any vices from yourself.Stay together like milk and sugar. Follow the shrimat of the One. Don't have any conflict.Don't listen to or speak of evil things. All of this means to have mercy for yourself. It is through this that you receive a high status for birth after birth. Those who don't have mercy for themselves cross out their line of happiness for 21 births.
 
Song:Salutations to Shiva  Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1. Study knowledge and yoga and become a knowledgeable soul from a devotee soul. While living at home with your family, you have to conquer Maya. Definitely become pure.
2. You have to imbibe very good manners on the path of knowledge. Become very, very sweet and egoless. Don't say anything evil. Don't have any conflict of opinion.
Blessing: May you be an image of success and have unbroken, soul-conscious love for every soul and interact with others with love.
Just as with elevated feelings and faith you have unbroken, constant, strong love for the Father, in the same way, let there be unbroken and constant soul-conscious love for Brahmins soul. No matter what type of sanskars others have or what their behaviour is like, Brahmin souls have an unbroken relationship throughout the whole cycle. This is a Godly family: the Father has chosen every soul and brought them into the Godly family. By having this awareness and unbroken soul-conscious love, your interaction with one another will be filled with love and you will easily become an image of success
 
Slogan:An introspective person is one who is able to come into sound when he wants and go beyond sound when he wants.
 
HINDI DETAIL MURALI

07/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम्हें घर बैठे भगवान बाप मिला है तो तुम्हें अपार खुशी में रहना है, विकारों के वश खुशी को दबा नहीं देना है
प्रश्न:तुम बच्चों में लकी किसको कहेंगे और अनलकी किसको कहेंगे?
उत्तर:लकी वह है जो बहुतों को आप समान बनाने की सेवा करते, सबको सुख देते हैं और अनलकी वह हैं जो सिर्फ सोते और खाते हैं। एक दो को दु:ख देते रहते हैं। पुरुषार्थ में कमी होने से ही अनलकी बन जाते हैं।
 
प्रश्न:जिन बच्चों के तीसरे नेत्र का आपरेशन सक्सेसफुल होता है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:वह माया के तूफानों में घड़ी-घड़ी गिरेंगे नहीं, ठोकर नहीं खायेंगे। उनकी दैवी चलन होगी। धारणा अच्छी होगी।
 
गीत:-छोड़ भी दे आकाश सिंहासन....  ओम् शान्ति।
 
शिव भगवानुवाच वा ऐसे भी कह सकते हैं कि गीता के भगवान शिव भगवानुवाच। गीता का नाम लिया जाता है क्योंकि गीता को ही खण्डन किया गया है। सारा मदार इस पर है कि गीता श्रीकृष्ण साकार देवता ने नहीं गाई है अर्थात् कृष्ण ने राजयोग नहीं सिखाया है वा कृष्ण द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना नहीं हुई है। कृष्ण को निराकार भगवान तो नहीं कह सकते। कृष्ण का चित्र ही अलग है। निराकार का रूप अलग है, वह है परम आत्मा। उनका कोई शरीर नहीं है। पुकारते ही हैं हे भगवान रूप बदलकर आओ। वह कोई जानवर का रूप तो नहीं धरेगा। मनुष्यों ने तो जानवर का भी रूप दे दिया है। कच्छ मच्छ अवतार, वाराह अवतार.. परन्तु खुद कहते हैं मैंने यह रूप धरे ही नहीं है। मुझे तो नई सृष्टि रचनी है। कृष्ण को सृष्टि नहीं रचनी है। ब्राह्मण कुल को रचने वाला ब्रह्मा। ब्रह्मा और कृष्ण में तो बहुत फर्क है। ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण रचे गये। कृष्ण के मुख से देवतायें रचे गये - ऐसे तो कहाँ भी नहीं लिखा हुआ है। अभी तुम बच्चे जानते हो दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसकी बुद्धि में यह हो कि निराकार परमात्मा साकार में आकर आत्माओं को ज्ञान देते हैं। ज्ञान लेने वाली भी आत्मा है तो देने वाली भी आत्मा है। अब आधाकल्प से भिन्न-भिन्न रूप से मात-पिता, गुरू गोसाई आदि सब देहधारी एक दो को कुछ न कुछ मत देते आये हैं। अभी इस समय त्वमेव माताश्च पिता.... पर समझाया जाता है। यह महिमा एक की ही गाई जाती है। बाप कहते हैं तुम्हारे जो भी लौकिक माँ बाप बन्धु गुरू गोसाई हैं, इन सभी की मत को छोड़ो। मैं ही आकर तुम्हारा बाप टीचर गुरू बन्धु आदि बनता हूँ। मेरी मत में सभी की मत समाई हुई है इसलिए मुझ एक की मत पर चलना अच्छा है। परमपिता परमात्मा जरूर अभी ही मत देंगे ना। यह परम आत्मा तुम आत्माओं को मत देते हैं और वह सभी मनुष्य मत देते हैं। वास्तव में तो वह भी आत्मायें आरगन्स द्वारा मत देती हैं परन्तु मनुष्य नाम रूप में फँसे हुए हैं तो इस राज़ को नहीं जानते हैं। जैसे कहते हैं बुद्ध पार निर्वाण गया। अब बुद्ध तो शरीर का नाम हो गया। वह शरीर तो कहाँ जाता नहीं वा कहेंगे फलाना वैकुण्ठ गया, वह नाम शरीर का लेंगे। ऐसे नहीं कहेंगे कि वह शरीर छोड़ उनकी आत्मा गई। ऐसे कोई जाते ही नहीं। तुम समझते हो आत्मा को ही स्वर्ग में जाना है। आत्मा कोई स्वर्ग से यहाँ नहीं आती, आते सब परमधाम से हैं। यह नॉलेज तुम बच्चों की बुद्धि में है। तुम जानते हो इस सृष्टि पर पहले देवी-देवताओं की आत्मायें थी, जिन्होंने सतयुग में पार्ट बजाया। तुम्हारी बुद्धि में आत्मा और परमात्मा का पूरा परिचय है। भल तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो, देह-अभिमान में आ जाते हो, पूरी रीति कोई से मेहनत होती नहीं। माया ऐसी है जो पुरुषार्थ करने नहीं देती। खुद भी सुस्त हैं तो माया और ही सुस्त बना देती है। विश्व का मालिक खुद बैठ पढ़ाते हैं, जिसमें मात-पिता, बन्धु सखा, गुरू आदि सभी सम्बन्धों की ताकत आ जाती है। यह महिमा है ही एक निराकार परमात्मा की, परन्तु मनुष्य समझते नहीं। लक्ष्मी-नारायण आदि सबके आगे जाकर महिमा गाते रहते हैं।
तुम जानते हो हम आत्मायें 84 जन्मों का चक्र लगाकर आई हैं। अब यह अन्तिम जन्म है। यह घड़ी-घड़ी बुद्धि में याद रहना चाहिए। यह नॉलेज बड़ी खुशी की है। ऐसा बेहद का बाप स्वयं तुम बच्चों के और कोई को मिलता नहीं है। विवेक भी कहता है परमपिता परमात्मा का जो बच्चा बना है उनकी खुशी का पारावार नहीं होना चाहिए। परन्तु लोभ मोह आदि विकार आने से खुशी को दबा देते हैं। इन विकारों ने ही सारी दुनिया की खुशी को दबा दिया है। तुमको तो घर बैठे बाप आकर मिला है। भारत में आये हैं। भारतवासियों का तो भारत घर है ना। परन्तु आयेंगे तो जरूर एक घर में। ऐसे तो नहीं घर-घर में आयेंगे। फिर तो सर्वव्यापी हो गया। वह आयेंगे तो जरूर आकर पतितों को पावन बनायेंगे। दुनिया तो समझती है कृष्ण आयेगा। परन्तु तुम जानते हो परमपिता परमात्मा आया हुआ है, जो पतित-पावन, ज्ञान का सागर है, उनका नाम वास्तव में रूद्र है। यह बड़े से बड़ी भूल है। जब यह समझें कि वह बेहद का बाप सारी सृष्टि का रचयिता है तो खुशी का पारा चढ़ जाये। ऐसे बाप से तो जरूर वर्सा मिलेगा। कृष्ण से तो वर्सा मिल न सके। इन बातों पर भी किसकी बुद्धि नहीं चलती। दुनिया तो सारी शूद्र सम्प्रदाय है। ब्राह्मण भी सिर्फ कहलाने मात्र हैं। तुम ब्राह्मण जब विचार सागर मंथन करो तब औरों को भी परिचय दे सको। कृष्ण को तो सब जानते हैं। सिर्फ कोई कहते राधे-कृष्ण स्वर्ग के हैं, कोई फिर द्वापर में ठोक देते, यह भी मूँझ कर दी है। ईश्वर तो ज्ञान का सागर है। तुम ईश्वरीय सम्प्रदाय में ही ज्ञान आ सकता है। आसुरी सम्प्रदाय में ज्ञान कहाँ से आया? भल गाते भी हैं पतित-पावन.. परन्तु अपने को पतित समझते नहीं। स्वर्ग को तो बिल्कुल जानते ही नहीं। सिर्फ नाम मात्र कहते हैं, यह भी नहीं समझते हैं कि देवतायें स्वर्गवासी हैं। तुम जब समझाते हो तब आंखे खुलती हैं। माया ने आंखें ही बन्द कर दी हैं। प्राचीन भारत स्वर्ग था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था यह भी नहीं जानते। हम भी नहीं मानते थे। यह तो समझ सकते हैं कि अन्य धर्म तो बाद में आये हैं। देवताओं के समय यह धर्म नहीं थे। तो जरूर वहाँ सुख ही सुख होगा। बाप बच्चों को रचते ही हैं सुख के लिए। ऐसे नहीं सुख दु:ख दोनों देते हैं। लौकिक बाप भी बच्चा मांगता है तो उनको धन सम्पत्ति देने लिए, न कि दु:ख देने लिए। यह तो अभी हम समझाते हैं कि द्वापर से लेकर लौकिक बाप भी दु:ख ही देते आये हैं। सतयुग त्रेता में तो दु:ख नहीं देते। यहाँ माँ बाप प्यार तो बहुत करते हैं, परन्तु उनको फिर काम कटारी नीचे डाल देते हैं। तो दु:ख आरम्भ हो जाता है। सतयुग में तो ऐसे नहीं होता। वहाँ तो दु:ख की बात नहीं। यह बाप बैठ समझाते हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार समझते हैं। तुम्हारा यह ज्ञान योग से आपरेशन हो रहा है। परन्तु कोई का सक्सेसफुल होता है, कोई का नहीं होता है। जैसे आंखों का आपरेशन कराते हैं तो कोई की ठीक हो जाती हैं, कोई में थोड़ी खराबी रह जाती है, कोई की आंखें बिल्कुल खराब हो जाती हैं। तुमको भी अभी ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल रहा है। तो बुद्धि रूपी नेत्र खुल जाता है तो अच्छा पुरुषार्थ करने लग पड़ते हैं। कोई का पूरा नहीं खुलता है, धारणा नहीं होती, दैवी चलन भी नहीं होती। माया के तूफान में घड़ी-घड़ी गिरते रहते हैं। एक तरफ है 21 जन्मों का सुख देने वाला उस्ताद, दूसरे तरफ है दु:ख देने वाला रावण। उसे भी उस्ताद कहेंगे। बाप कहते हैं मैं तो कोई को दु:ख नहीं देता। मैं तो सुख देने वाला नामीग्रामी हूँ। सतयुग त्रेता में सब सुखी हैं, सुख देने वाला और है। यह भी किसको पता नहीं है कि रावण राज्य कब आरम्भ होता है। आधाकल्प रामराज्य, आधाकल्प रावण राज्य। यह है राम राज्य और रावण राज्य की कहानी। परन्तु यह भी कोई की बुद्धि में मुश्किल बैठता है। कोई तो बिल्कुल जड़जड़ीभूत अवस्था में हैं, जो कुछ भी नहीं समझते। जितना मनुष्य पढ़ते हैं उतना मैनर्स भी आते हैं। दबदबा रहता है। हमारा फिर गुप्त दबदबा है। आन्तरिक नारायणी नशा चढ़ा होगा तो वर्णन भी करेंगे, औरों को समझायेंगे। यह पढ़ाई तो राजाओं का राजा बनाने वाली है। कांग्रेसी लोग तो राजाओं का नाम सुनकर गर्म हो जाते हैं क्योंकि पिछाड़ी के राजायें ऐशी बन गये थे। परन्तु यह भूल गये हैं कि आदि सनातन देवी-देवतायें राजा रानी थे। अभी तुम फिर बाप से शक्ति ले 21 पीढ़ी राज्य भाग्य लो। यह सत्य नारायण की कथा तो मशहूर है। परन्तु विद्वान, आचार्य भी नहीं जानते। गीता का कितना आडम्बर बनाया है। लाखों सुनते हैं, परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। अब इन विचारों को कौन सुजाग करे। यह तुम बच्चों का काम है। परन्तु बहुत थोड़े बच्चे हैं जो औरों को सुजाग कर सकते हैं, जो जितना आप समान बनायेंगे उतना पद भी ऊंच पायेंगे। बाप कहते हैं बीती सो बीती देखो। ड्रामा में ऐसे था। आगे के लिए पुरुषार्थ करो। अपना चार्ट देखो - इतने समय में क्या धारणा की है? कोई 25-30 वर्ष के हैं। कोई एक मास, कोई 7 रोज़ के बच्चे हैं। परन्तु 15-20 वर्ष वालों से गैलप कर रहे हैं। वन्डर है ना। या तो कहेंगे माया प्रबल है या तो ड्रामा पर रखेंगे। परन्तु ड्रामा पर रखने से पुरुषार्थ ठण्डा हो जाता है। समझते हैं हमारे भाग्य में नहीं है।
तुम सब लकी स्टार्स हो। तुम्हारी भेंट ऊपर के स्टार्स से की जाती है। तुम सृष्टि के सितारे हो। वह तो सिर्फ रोशनी देते हैं। तुम तो मनुष्यों को जगाने की सेवा करते हो। दु:खियों को सुखी बनाते हो। मनुष्य इन सितारों को नक्षत्र देवता कहते हैं, सच्चे देवता तो तुम बनते हो। उन सितारों को देवता कहते हैं क्योंकि वह ऊपर रहते हैं। परन्तु देवतायें कोई ऊपर नहीं रहते। रहते तो इसी सृष्टि पर हैं परन्तु मनुष्यों से ऊंच जरूर हैं। सबको सुख देते हैं, जो एक दो को दु:ख देते हैं उनको थोड़ेही लकी स्टार कहेंगे। लकी और अनलकी इस समय हैं। जो आप समान बनाते हैं उन्हें लकी कहेंगे। जो सिर्फ सोते और खाते हैं उनको अनलकी कहेंगे। स्कूल में भी ऐसे होते हैं। यह भी पढ़ाई है। बुद्धि से काम लेना पड़ता है। राधे-कृष्ण को 16 कला लकी कहेंगे। राम-सीता दो कला कम हो गये। नापास हुए। सबसे नम्बरवन लकी लक्ष्मी-नारायण हैं। वह भी इस पढ़ाई से ऐसे बने हैं। पुरुषार्थ में कमी करने से अनलकी बन पड़ते हैं। तुमको तो बाप खुद पढ़ाते हैं। तुम स्टूडेन्ट ही गोप-गोपियां हो। वास्तव में यह अक्षर सतयुग से निकला है। वहाँ प्रिन्स प्रिन्सेज खेलपाल करते हैं तो प्रिय नाम गोप गोपियां रखा है। कृष्ण के साथ दिखाते हैं। बड़े हो जाते हैं तो गोप गोपियां नहीं कहा जाता है। होंगे तो सभी प्रिन्स ना। कोई दास दासियां वा बाहर के गांवड़े के लोगों से तो नहीं खेलेंगे। महल में बाहर वाले तो आ न सकें। कृष्ण बाहर जमुना आदि पर नहीं जाते हैं। अपने महल में ही अन्दर खेलते हैं। भागवत में तो कई फालतू बातें बैठ लिखी हैं। मटकी फोड़ी आदि... है कुछ भी नहीं। वहाँ तो बड़े कायदे हैं। तो बाप कितना समझाते हैं, कहते हैं श्रीमत पर चलो। इस समय तुमको सुख ही सुख मिलता है। उनकी कितनी महिमा है। सबके दु:ख कैन्सिल कराए सभी को सुख देते हैं। कहते हैं मामेकम् याद करो। यह बाप आकर न पढ़ाते तो हम क्या पढ़ सकते? नहीं। यह मोस्ट लवली बाप है। सबसे अच्छी मत देते हैं - मनमनाभव। मुझे याद करो। स्वर्ग को याद करो, चक्र को याद करो। इसमें सारा ज्ञान आ जाता है। वह तो सिर्फ विष्णु को स्वदर्शन चक्र दिखाते हैं, परन्तु अर्थ का पता नहीं। हम अभी जानते हैं कि शंख है ज्ञान का, जो निराकार बाप देते हैं। विष्णु थोड़ेही देते हैं। और देते हैं मनुष्यों को। जो फिर देवता अथवा विष्णु बनते हैं। कितना मीठा ज्ञान है। तो कितना खुशी से बाप को याद करना चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे ब्राह्मण कुल भूषण स्वदर्शन चक्रधारी बच्चों को यादप्यार। परन्तु बच्चे स्वदर्शन चक्र चलाते बहुत थोड़ा है। कोई तो बिल्कुल नहीं फिराते। बाप तो रोज़ कहते हैं स्वदर्शन चक्रधारी बच्चे.. यह भी आशीर्वाद मिलती है। अच्छा - मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप की नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) एक बाप की मत में बाप, टीचर, गुरू, बन्धु आदि की सब मतें समाई हुई हैं, इसलिए उनकी मत पर ही चलना है। मनुष्य मत पर नहीं।
2) बीती को बीती कर पुरुषार्थ में गैलप करना है। ड्रामा कहकर ठण्डा नहीं होना है। आप समान बनाने की सेवा करनी है।
वरदान:अटेन्शन और अभ्यास के निज़ी संस्कार द्वारा स्व और सर्व की सेवा में सफलतामूर्त भव !
ब्राह्मण आत्माओं का निज़ी संस्कार “अटेन्शन और अभ्यास है इसलिए कभी अटेन्शन का भी टेन्शन नहीं रखना। सदा स्व सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ करो। जो स्व सेवा छोड़ पर सेवा में लगे रहते हैं उन्हें सफलता नहीं मिल सकती, इसलिए दोनों का बैलेन्स रख आगे बढ़ो। कमजोर नहीं बनो। अनेक बार के निमित्त बने हुए विजयी आत्मा हो, विजयी आत्मा के लिए कोई मेहनत नहीं, मुश्किल नहीं।
स्लोगन:ज्ञानयुक्त रहमदिल बनो तो कमजोरियों से दिल का वैराग्य आयेगा।

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