Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - FEBRUARY 2018 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 19-Feb-2018 )
HINGLISH SUMMARY - 19.02.18      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche -Ek Ishwar ki mat he shrest mat hai,jis mat par chalne se he tum sachcha sona banenge,baki sab mate asatya banane wali hai.
Q- Kaun sa part ek gyan sagar Baap me bhara hai,jo kisi manushya-aatma me nahi?
A- Baba kehte-mujh aatma me bhakto ki sambhal karne ka,sabko sukh dene ka part hai.Main Gyan sagar Baap sabhi baccho par abinashi gyan ki barshat karta hoon,jin gyan ratno ka koi mulya nahi kar sakta.Main liberator hoon,roohani panda ban tum aatmaon ko wapis Shantidham le jata hoon.Yah sab mera part hai.Main kisi ko dukh nahi deta,isiliye sab mujhe aankho par rakhte hain.Ravan dushman dukh deta hai isiliye uski effigies jalate hain.
 
Dharana ke liye mukhya saar:-
1) Sarir aur aatma dono ko pavitra banane ke liye is purane sarir sahit sab kuch bhoolna hai.Deha sahit baap par poora bali chadh philanthropist(mahadani) banna hai.
2)Baap ki shrimat par chal behad ka sukh lena hai.Yah sudh lobh rakhna hai,jisse sari Biswa sukhi bane.Baki asudh lobh tyag dena hai.
 
Vardan:-Mahavir ban har sankalp ko swaroop me lane wale Sada Bijayi Safaltamurt Bhava
Slogan:-Chehre par khushi ki jhalak ho to cheerful chehra board ka kaam karega.
 

English Summary -19-02-2018-

Sweet children, God's directions are the most elevated directions and by following them you become real gold. All other directions make you false.
Question:What part is recorded in the one Father, the Ocean of Knowledge, a part that is not in any human soul?
Answer:Baba says: The part I, the soul, have recorded in Me is of looking after the devotees and of giving happiness to everyone. I, the Father, the Ocean of Knowledge, shower imperishable knowledge on everyone. No one can put a value on these jewels of knowledge. I, the Liberator, become the spiritual Guide and take you souls back to the land of peace. All of this is in My part . I don't cause sorrow for anyone and this is why everyone places Me on their eyes. Ravan, the enemy causes sorrow and this is why people burn effigies of him.
 
Song:The shower of knowledge is for those who are with the Beloved.  Om Shanti
 
Essence for Dharna:
1. In order to make both the soul and the body pure, forget everything including that old body. Surrender yourself completely with your body and become a complete philanthropist.
2. Follow the Father's shrimat and receive unlimited happiness. Have pure greed and renounce impure greed, through which the whole world can remain happy.
 
Blessing:May you be a constantly victorious embodiment of success and as a mahavir put every thought into its practical form.
Remain firm in whatever special thought you have. As soon as you have the thought, become the form of that and the flag of victory will be hoisted. Do not think: I will see to it, I will do it. To postpone something means to become weak. To have such weak thoughts means to be defeated by Maya. Always have this immortal and imperishable thought: I am constantly victorious, a mahavir and I will constantly move forward and be victorious. You will become an embodiment of success by having this thought.
Slogan:When you have the sparkle of happiness on your face, your cheerful face will then work like a board.
 
HINDI DETAIL MURALI

19/02/18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

'मीठे बच्चे - एक ईश्वर की मत ही श्रेष्ठ मत है, जिस मत पर चलने से ही तुम सच्चा सोना बनेंगे, बाकी सब मतें असत्य बनाने वाली हैं''
 
प्रश्न:कौन सा पार्ट एक ज्ञान सागर बाप में भरा है, जो किसी मनुष्य-आत्मा में नहीं?
 
उत्तर:
बाबा कहते - मुझ आत्मा में भक्तों की सम्भाल करने का, सबको सुख देने का पार्ट है। मैं ज्ञान सागर बाप सभी बच्चों पर अविनाशी ज्ञान की बरसात करता हूँ, जिन ज्ञान रत्नों का कोई मूल्य नहीं कर सकता। मैं लिबरेटर हूँ, रूहानी पण्डा बन तुम आत्माओं को वापिस शान्तिधाम ले जाता हूँ। यह सब मेरा पार्ट है। मैं किसी को दु:ख नहीं देता, इसलिए सब मुझे आंखों पर रखते हैं। रावण दुश्मन दु:ख देता है इसलिए उसकी एफ़ीजी जलाते हैं।
 
गीत:-जो पिया के साथ है...  ओम् शान्ति।
 
बाप ने ओम् का अर्थ तो बच्चों को समझा दिया है। ओम् अर्थात् अहम आत्मा। बस, अर्थ ही इतना छोटा है। ऐसे नहीं कि आई एम गॉड। पण्डितों आदि से पूछेंगे ओम् का अर्थ क्या है? तो वह बहुत लम्बा-चौड़ा सुनायेंगे और यथार्थ भी नहीं सुनायेंगे। यथार्थ और अयथार्थ, सत्य और असत्य। सत्य तो है ही एक बाप। बाकी इस समय तो है ही असत्यता का राज्य। रामराज्य को ही सत्य का राज्य कहेंगे। रावण राज्य को असत्यता का राज्य कहेंगे। वह अयथार्थ ही सुनाते हैं। बाप है सत्य, वह सब सत्य सुनाकर सच्चा सोना बना देते हैं। फिर माया असत्य बनाती है। माया की प्रवेशता के कारण मनुष्य जो कुछ कहेंगे वह असत्य ही कहेंगे, जिसको आसुरी मत कहा जाता है। बाप की है ईश्वरीय मत। आसुरी मत वाले झूठ ही बतायेंगे। आसुरी मतें दुनिया में अनेकानेक हैं। गुरू भी अनेक हैं। उन्हों की श्रीमत नहीं कहेंगे। एक ईश्वर की मत को ही श्रीमत कहेंगे। अभी तुम बच्चे समझते हो हम श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनते हैं। सबसे श्रेष्ठ तो है ही परमपिता परमात्मा। जो रहते भी ऊंचे ते ऊंचे हैं। सब भक्त उनको याद करते हैं। भक्त श्रीमत को याद करते हैं, तो जरूर कोई आसुरी मत पर हैं। अभी तुम श्रीमत पर श्रेष्ठ बनते हो, फिर वहाँ भगवान कहकर याद करने की दरकार ही नहीं। देवी-देवताओं को कोई दु:ख नहीं जो याद करना पड़े। भक्तों को तो अपार दु:ख है। अभी तो बहुत दु:ख के पहाड़ गिरने हैं। महाभारी लड़ाई, यह दु:खों का पहाड़ है - मनुष्यों के लिए। तुम बच्चों के लिए सुख का पहाड़ है। दु:ख के बाद सुख जरूर आना है। इस विनाश के बाद फिर तुम्हारा ही राज्य होना है। अनेक धर्मों का विनाश होता है और जो धर्म अब प्राय:लोप है, उनकी स्थापना होती है। गोया इस महाभारी लड़ाई द्वारा स्वर्ग के गेट्स खुलते हैं। इस गेट से कौन जायेंगे? जो राजयोग सीख रहे हैं। सिखलाने वाला बाप है। जो पिया के साथ है उनके लिए यह ज्ञान बरसात है। पिया बाप को कहा जाता है। वह वर्षा तो पानी के सागर से निकलती है। यह अविनाशी ज्ञान रत्नों की बरसात है। जो पिया ज्ञान सागर के साथ है, उनके लिए अविनाशी ज्ञान रत्नों की बरसात है। इन अविनाशी ज्ञान रत्नों की तुम्हारी बुद्धि रूपी झोली में धारणा होती है। एज्यूकेशन बुद्धि में धारण की जाती है ना। आत्मा है मन-बुद्धि सहित तो जैसेकि आत्मा ग्रहण (धारण) करती है। जैसे आत्मा को यह शरीर है, वैसे आत्मा को मन-बुद्धि है। बुद्धि से ग्रहण करते हैं। ग्रहण तब होता है, (धारणा तब होती है) जबकि योग है। यह बाप बैठ बहुत सहज बातें समझाते हैं। मनुष्यों ने तो बहुत डिफीकल्ट बातें सुना दी हैं। शास्त्रों में भी बहुत मतें हैं। गीता का बहुत प्रचार है। अध्याय का अर्थ बहुत करते हैं। कितनी अनेकानेक गीतायें बना दी हैं और कोई शास्त्र नहीं, जिसके लिए कहें फलाने का वेद, फलाने का शास्त्र। गीता के लिए कहते हैं - गांधी गीता, टैगोर गीता, ज्ञानेश्वर गीता, अष्टापा गीता .... बहुत नाम गीता के रख दिये हैं और वेद शास्त्र के कभी इतने नाम नहीं सुनेंगे। परन्तु मनुष्य समझते कुछ भी नहीं हैं। यह ज्ञान ही प्राय:लोप हो जाता है। अब डीटी सावरन्टी कहाँ से मिलेगी? जरूर जो सतयुग की स्थापना करने वाला होगा वही देगा। अब बाप आया हुआ है, तुम बच्चों को स्वर्ग की राजाई देने। सो भी 21 जन्मों के लिए। गाया जाता है कुमारी वह जो 21 कुल का उद्धार करे। अब वह कुमारी कौन सी? तुम सब कुमार कुमारी हो। तुम कोई को भी 21 जन्मों के लिए राज्य भाग्य प्राप्त करा सकते हो। श्रीमत से अथवा बाप की मत से। पाठशाला में जो पढ़ते हैं वह जानते हैं कि हम स्टूडेन्ट हैं। और सतसंगों में अपने को स्टूडेन्ट नहीं समझेंगे। स्टूडेन्ट को एम आब्जेक्ट बुद्धि में रहती है। तुम हो ईश्वरीय स्टूडेन्ट्स। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ, मनुष्य से देवता बनाता हूँ। देवताओं की राजधानी थी। यथा राजा रानी देवी-देवता तथा प्रजा... नर से नारायण बनते हैं। यह एम आब्जेक्ट है फर्स्ट। ऐसे नहीं राजा राम वा रानी सीता बनायेंगे। यह है ही राजयोग। राजाओं का राजा बनायेंगे। कल्प-कल्प मैं फिर से आता हूँ, गँवाया हुआ राज्य देने। तुम्हारा राज्य कोई मनुष्यों ने नहीं छीना है। छीना है माया ने। अब जीत भी माया पर पानी है। वह लड़ाई होती है राजाओं की। एक दो के ऊपर जीत पाने लिए लड़ते हैं। अब तो प्रजा का प्रजा पर राज्य हो गया है। हद के राजाओं की अनेकानेक लड़ाईयां लगी हैं। उनसे हद की राजाई मिलती है और इस योगबल से तुम विश्व की राजधानी स्थापन करते हो, इसको अहिंसक लड़ाई कहा जाता है। लड़ाई अथवा मरने मारने की बात नहीं है। यह है योगबल। कितना सहज है। बाबा के साथ योग लगाने से हम विकर्माजीत बनते हैं। फिर कोई माया का वार नहीं होगा। हातमताई का खेल दिखाते हैं। वह मुहलरा मुख में डालते थे तो माया गुम हो जाती थी। मुहलरा निकालते थे तो माया आ जाती थी। अल्लाह अवलदीन का भी नाटक है। ठका करने से बहिश्त निकल आता था। वह है बहिश्त अथवा स्वर्ग। तो बाप बैठ बहिश्त की स्थापना करते हैं ब्रह्मा द्वारा। परमपिता परमात्मा कोई नर्क की स्थापना थोड़ेही करेंगे। ऐसा होता तो उनकी एफ़ीज़ी बनाते। एफ़ीज़ी तो रावण की निकाली जाती है, क्योंकि रावण ही सबका दुश्मन है। बाप जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं उनको तो आंखों पर रखा जाता है। बाप कहते हैं मुझे भक्त याद करते हैं कि आकर दु:ख से छुड़ाओ इसलिए आकर लिबरेट करता हूँ। बाप लिबरेटर भी है, रूहानी पण्डा भी है। तुमको ले जाते हैं अपने शान्तिधाम। जो पिया के साथ है, उनके लिए अविनाशी ज्ञान रत्नों की बरसात है, जिन ज्ञान रत्नों का मूल्य नहीं किया जाता। बाबा है ज्ञान सागर तो जरूर आत्मा में पार्ट भरा हुआ है। परमपिता परमात्मा खुद भी कहते हैं मेरी जो आत्मा है, जिसको तुम परमात्मा कहते हो, मेरे में भी पार्ट भरा हुआ है। भक्तों की सम्भाल करना, सबको सुख देना। दु:ख तो माया देती है। भक्तों को अल्पकाल के लिए सुख देने का भी मेरा पार्ट है। मैं ही साक्षात्कार कराता हूँ और दिव्य बुद्धि देता हूँ। जिसको ज्ञान का तीसरा नेत्र कहा जाता है। जिससे तुम्हारी बुद्धि का गॉडरेज का ताला खुलता है। मेरा भी पार्ट है तो जो बाप के साथ हैं उनके लिए ज्ञान बरसात है। अब इतने सब बच्चे कैसे साथ रह सकते! तुम बाप को याद करते रहेंगे तो गोया बाप के साथ ही हो। कोई लन्दन, कोई कहाँ हैं, फिर साथ कहाँ हैं? उनको भी मुरली जाती है। जो सयाने समझदार होते हैं वह एक हफ्ता भी अच्छी रीति समझें तो उनको स्वदर्शन चक्रधारी बना देता हूँ। 84 जन्मों के स्वदर्शन चक्र का राज़ अभी तुम बच्चों ने समझा है। जिस स्वदर्शन चक्र फिराने से माया रावण का सिर काट देते हो अर्थात् उन पर जीत पाते हो। बाकी सिर काटने की कोई बात नहीं है। उन्होंने फिर हिंसक अस्त्र शस्त्र दे दिये हैं। वास्तव में शंख यह मुख है। चक्र फिराना यह बुद्धि का काम है। तो यह अलंकार भक्तिमार्ग में बहुत दे दिये हैं। शास्त्र आदि जो भक्ति मार्ग में चल रहे हैं ड्रामा अनुसार फिर वही निकलेंगे। हो सकता है यह सच्ची गीता भी कोई न कोई के हाथ में आ जाये तो कुछ इनसे भी डाल देंगे। बाकी सभी वही निकलेंगे। कोई-कोई अक्षर उनमें यहाँ के आये हैं। भगवानुवाच ठीक है। राजयोग भी ठीक है। बाप कहते हैं अब वापिस जाना है। इस शरीर सहित सब कुछ भूलना है, इसके बदले तुमको प्योर शरीर मिलेगा। आत्मा भी प्योर हो जायेगी। धन भी तुम्हारे पास अथाह होगा। तुमको बहुत लोभ है। परन्तु इनको शुद्ध कहा जाता है, इससे भारत सारा शुद्ध बनता है। भारतवासी चाहते हैं रामराज्य, वन गवर्मेन्ट, वन नेशन हो, एक मत, अद्वेत मत हो। अद्वेत का अर्थ ही है देवता। यह है आसुरी मत। श्रीमत बिगर सब आसुरी मतें हैं। जिस कारण एक दो में लड़ते झगड़ते रहते हैं। ईश्वर के बच्चे न होने कारण निधन के बन पड़े हैं। सतयुग में देवतायें हैं धनी के। वहाँ जानवर भी कभी लड़ते नहीं। यहाँ तो सब लड़ते झगड़ते हैं। सतयुग में है सबको बेहद का सुख।
अब तुम बच्चे जानते हो हम बाप से ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार ले रहे हैं। ईश्वर सम्मुख है ना। कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ - स्वर्ग स्थापन करने। तुम बच्चों के लिए वण्डरफुल सौगात ले आता हूँ। बाप कहते हैं मेरे लाडले सिकीलधे बच्चों 5 हजार वर्ष बाद आकर तुम मिलते हो। ऐसे और कोई कह न सके। भल अपने को ब्रह्मा, विष्णु, शंकर कहलावें। परन्तु ऐसी बातें किसको कहने आयेंगी ही नहीं। इसमें कोई कॉपी कर न सके। बाप कहते हैं मेरे लाडले सिकीलधे बच्चों 5 हजार वर्ष के बाद फिर से आकर तुम मिले हो। सिर्फ तुम ही। बहुत बच्चे मिलते रहेंगे। राजधानी स्थापन करने में बहुत मेहनत लगती है। राजा रानी एक, फिर उनके बच्चे वृद्धि को पायेंगे। भारत में प्रिन्स प्रिन्सेज कितने होंगे। समझो लाख दो हैं, प्रजा होगी 40-50 करोड़। तो मंजिल बहुत बड़ी है। यह बाप की कॉलेज है। तो कितना अच्छी रीति पुरुषार्थ करना चाहिए। बाप तो कहेंगे राजाओं का राजा बनो, न कि प्रजा। बनेंगे वही जो कल्प पहले बने होंगे। हम साक्षी होकर देखेंगे कौन किस प्रकार का वर्सा लेते हैं। कोई तो एकदम पकड़ लेते हैं। मोस्ट बिलवेड बाप है। चुम्बक पर सुईयां खींचकर आती हैं। कोई में कट (जंक) जास्ती होती है, कोई में कम। नजदीक वाले तो एकदम आकर मिलेंगे, साफ सुई झट खींच आयेगी। बाप कट को निकाल कर ऐसा चमकाते हैं जो तुम बच्चे वहाँ साथ रहेंगे। तुमको रूद्र माला में पिरोना है। गायन भी है परन्तु जानते नहीं हैं कि यह माला किसकी बनी हुई है। बाप कहते हैं मेरी माला जो होगी वह स्वर्ग की मालिक होगी। भक्त माला को भी तुम समझ गये हो। वह रावण की माला है। पहले रावण की माला में कौन आते हैं, पूज्य से पुजारी कौन बनते हैं? आपेही पूज्य देवता, फिर पुजारी बनते हैं। यह कितनी गुह्य बातें समझने की हैं।
तुम हो फ्लैन्थ्रोफिस्ट। देह सहित सब कुछ बाबा को बलि चढ़ते हो। सन्यासी फ्लैन्थ्रोफिस्ट नहीं बनते। वह तो घरबार छोड़ जंगल में चले जाते हैं। तुम सब कुछ ईश्वर अर्पण करते हो। एवरीथिंग फार गॉड फादर। तो बाप फिर कहते हैं मेरा सब कुछ तुम बच्चों के लिए है। मनुष्य जब मरते हैं तो सब सामग्री करनीघोर को देते हैं। बाप कहते हैं मैं भी करनीघोर हूँ। तुम्हारे पास पुराना कखपन है, सब दान करते हो। बाप पर बलिहार जाते हो। काम तो फिर भी तुम्हारे ही आता है। बाबा तो मकान आदि भी अपने लिए नहीं बनाते हैं। शिवबाबा है दाता। सारे स्वर्ग की राजाई तुमको दे देते हैं, इसलिए इनको सौदागर भी कहते हैं। कितनी मीठी-मीठी बातें हैं। इम्तहान पूरा होने वाला है। बाबा आखिर इम्तहान कभी पूरा होगा? बाबा कहते हैं - जब तुम मरने पर आयेंगे, ज्ञान पूरा होगा तब यह विनाश आरम्भ होगा। फिर गोल्डन स्पून इन माउथ। जन्म लेंगे और स्पून मिलेगा। यहाँ तो 30-40 वर्ष पढ़ते हैं, तो यहाँ ही उसका फल मिल जाता है। तुम्हारा तो है भविष्य के लिए। भविष्य जन्म तुमको मिलेगा तो तुम प्रिन्स बनेंगे। तो इम्तहान तब पूरा होगा जब विनाश शुरू होगा। एक तरफ पढ़ाई पूरी होगी और विनाश शुरू हो जायेगा। बाकी रिहर्सल तो होती रहेगी। तुमको इस पढ़ाई का फल फिर नई दुनिया में मिलना है। वहाँ आत्मा, शरीर, राजाई सब नया होता है। यह बड़ी गुह्य धारणा की बातें हैं। पढ़ाई कभी छोड़नी नहीं चाहिए। बाप बैठ समझाते हैं वण्डरफुल बातें हैं ना। देरी से आने वाले भी झट योग और ज्ञान में लग जाते हैं तो वह भी ऊंच पद पा सकते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) शरीर और आत्मा दोनों को पवित्र बनाने के लिए इस पुराने शरीर सहित सब कुछ भूलना है। देह सहित बाप पर पूरा बलि चढ़ फ्लैन्थ्रोफिस्ट (महादानी) बनना है।
2) बाप की श्रीमत पर चल बेहद का सुख लेना है। यह शुद्ध लोभ रखना है, जिससे सारी विश्व सुखी बनें। बाकी अशुद्ध लोभ त्याग देना है।
 
वरदान:महावीर बन हर संकल्प को स्वरूप में लाने वाले सदा विजयी सफलतामूर्त भव
जो भी विशेष संकल्प लेते हो उसमें दृढ़ रहो, संकल्प करते ही उसका स्वरूप बन जाओ तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। ऐसे नहीं सोचो देखेंगे, करेंगे... गे गे करना अर्थात् कमजोर बनना। ऐसे कमजोर संकल्प करना अर्थात् माया से हार खाना। सदा यही अमर अविनाशी संकल्प करो कि हम सदा के विजयी, महावीर हैं, सदा आगे बढ़ेंगे, विजयी बनेंगे। तो इस संकल्प से सफलतामूर्त बन जायेंगे।
 स्लोगन:चेहरे पर खुशी की झलक हो तो चेयरफुल चेहरा बोर्ड का काम करेगा।

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