Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 27th Sep 2018 )
27-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - याद के अभ्यास को सहज बनाने के लिए बाप को कभी बाप रूप में, कभी टीचर रूप में तो कभी सतगुरू रूप में याद करो''
 
प्रश्नः-
 
तुम बच्चों को अभी सारे विश्व में कौन-सा ढिंढोरा पिटवाना है?
 
उत्तर:-
 
अब ढिंढोरा पिटवाओ कि सुख की दुनिया (स्वर्ग) का रचयिता स्वयं राजयोग सिखलाने आया हुआ है। वो बच्चों के लिए हथेली पर बहिश्त लेकर आया है इसलिए राजयोग सीखो। बाप स्वयं कहते हैं - बच्चे, अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए हैं, तुम्हें मेरे साथ घर चलना है इसलिए देह का भान छोड़ अशरीरी बनो। दैवीगुण धारण करो तो दैवी दुनिया में चले जायेंगे।
 
गीत:-
 
कौन आया मेरे मन के द्वारे....... 
 
ओम् शान्ति।
 
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना कि अभी हमारी बुद्धि में किसकी याद आई है? सबकी बुद्धि में है कि पतित-पावन एक बाप है। अंग्रेजी में उनको लिबरेटर कहते हैं। लिबरेट करते हैं दु: से। दु: हर्ता, सुख कर्ता है, यह कोई मनुष्य वा देवता का नाम नहीं है। यह है ही एक पतित-पावन बाप की महिमा। पतित-पावन, सद्गति दाता गॉड फादर को कहते हैं। मनुष्य की यह महिमा हो सके। लक्ष्मी-नारायण को, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को पतित-पावन नहीं कह सकते। पतित-पावन ऊंच ते ऊंच एक ही है। परमपिता परमात्मा ऊंचा उनका नाम भी है तो ऊंचा उनका ठांव (रहने का स्थान) भी है। तुमको निश्चय है कि यह हमारा बाबा है। शिव को ही बाबा कहते हैं, शिव ही निराकार है। शिव का चित्र अलग, शंकर का चित्र अलग है। वह (शिव) बाप, शिक्षक, सतगुरू है। आज सतगुरूवार है। तुम्हारा तो सतगुरूवार रोज़ है। सतगुरू रोज़ तुमको पढ़ाते हैं और वह तुम्हारा बाप भी है, यह तो निश्चय होना चाहिए ना। उनको सर्वव्यापी नहीं कहेंगे। तुम्हारी बुद्धि में है - पतित-पावन परमपिता परमात्मा हमको राजयोग सिखलाते हैं, वह ज्ञान का सागर है। यह तो बुद्धि में निश्चय रहना चाहिए। यह एक ही बाप है, जिसको कोई भी रूप में याद करो। बुद्धि ऊपर निराकार तरफ चली जाती है। कोई आकार वा साकार नहीं है। आत्माओं को परमपिता परमात्मा से अब काम पड़ा है परन्तु जानते नहीं हैं। गाते हैं कि वह ज्ञान का सागर है। तो ज्ञान का सागर माना जो ज्ञान सुनाकर सद्गति करे। लक्ष्मी-नारायण को यह ज्ञान नहीं है। ज्ञान वह जो ज्ञान सागर से मिले, इसलिए शास्त्रों में भी ज्ञान नहीं है। ज्ञान सागर को ही मनुष्य सृष्टि का बीजरूप कहते हैं। बाप क्रियेटर है। वह है बेहद का बाप और सब हैं हद के बाप। अब बेहद के बाप को सब याद करते हैं, जो बापों का बाप, पतियों का पति, गुरूओं का भी गुरू है, सब उनको याद करते हैं, साधना करते हैं। आजकल चित्रों के आगे, राम के आगे, शंकर के आगे लिंग रखते हैं। है निराकार, ऊंच ते ऊंच है, वह लिबरेट करते हैं। अभी तो सब आत्मायें पतित हैं। 5 हजार वर्ष पहले जब आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य था तो उस समय एक ही राज्य था, सुखधाम था। पवित्रता, सुख, शान्ति सब थी। उसका नाम ही है स्वर्ग, हेविन। हेविन को सूक्ष्मवतन वा मूलवतन नहीं कहेंगे। हेविन के अगेन्स्ट है हेल। यह बुद्धि में रखना है। एक बेहद के बाप को ही याद करना है, उनसे स्वर्ग का वर्सा मिलता है। सतगुरू राजयोग सिखलाते हैं, पावन दुनिया में ले जाते हैं। एक की कितनी महिमा है! लक्ष्मी-नारायण को यह महिमा नहीं दे सकते। एक ही निराकार बाप है। आत्मायें भी निराकार हैं, जब शरीर से अलग हैं। बाप कहते हैं तुम अपना शरीर लेकर पार्ट बजाते हो। तुम कितने जन्म पार्ट बजाते हो - यह भी जानते हो। ब्रह्मा का भी चोला है। सूक्ष्मवतन में भी चोला है। शरीर तो है ना। कहेंगे उनमें भी आत्मा है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी सूक्ष्म शरीर है। मुझे कहते हैं निराकार। बच्चों को समझाया है - कोई को भी बोलो तुमको दो बाप हैं, तुम्हारे बाप को भी दो बाप हैं। सब उस बेहद के बाप को याद करते हैं। लौकिक बाप तो अनेक हैं, यह बेहद का बाप तो एक ही है। बाप भूल जाए तो टीचर याद पड़े, टीचर भूल जाए तो सतगुरू याद पड़े।
 
बाप समझाते हैं - भारत अभी पतित है। पहले पावन था तो इतनी आत्मायें कहाँ निवास करती होंगी? मुक्तिधाम, वानप्रस्थ अवस्था में अर्थात् वाणी से परे। मनुष्य बूढ़े होते हैं तो वाणी से परे जाने के लिए गुरू की शरण लेते हैं कि हमको निर्वाणधाम पहुँचावें, परन्तु वह पहुँचा नहीं सकते। झाड़ को तो बढ़ना ही है। मुख्य पार्ट है भारत का, उनमें भी जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं वह 84 जन्म लेते हैं। आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल...... तो हिसाब करना चाहिए ना। बहुकाल अर्थात् जो पहले-पहले इस सृष्टि पर पार्ट बजाने आते हैं। बरोबर 84 जन्म उनके ही हैं। 84 का चक्र ही कहते हैं, 84 लाख का चक्र नहीं कहते। तुम बच्चों को 84 का चक्र समझाया गया है, आगे नहीं जानते थे। इनसे पूछेंगे तो इनकी आत्मा भी जानती है ना। दो आत्माओं का राज़ भी समझाया है। दूसरी आत्मा प्रवेश कर सकती है। अशुद्ध आत्मा का भी प्रवेश हो सकता है। तो परमपिता परमात्मा भी सकते हैं। बाकी कहते हैं मैं निराकार आऊं तो राजयोग कैसे सिखलाऊं? मुझे ही ज्ञान सागर कहते हैं, मनुष्य स्वर्ग की स्थापना तो नहीं करेंगे ना। बाप को ही कहा जाता है हेविनली गॉड फादर। वैकुण्ठ की राजधानी है। एक तो नहीं है ना। श्रीकृष्ण है नम्बरवन प्रिन्स, सतोप्रधान। सतोप्रधान को ही महात्मा कहा जाता है। अकेले को कुमार-कुमारी कहा जाता है। कुमारी का मान बहुत होता है। सगाई हो गई फिर भल पवित्र रहते हैं फिर भी युगल तो हो गये ना। फिर कुमारी का नाम बदल जाता है। फिर माता-पिता बन जाते हैं। बच्चा पैदा हुआ तब कहेंगे माता-पिता। शादी के बाद समझेंगे यह मात-पिता हैं, अन्डरस्टुड है कि सन्तान भी होगी। फिर उनको कुमार-कुमारी नहीं कहेंगे।
 
तुम बच्चे जानते हो अभी कृष्णपुरी स्थापन हो रही है। वहाँ एक ही देवी-देवता धर्म है। बाकी हर एक धर्म का शास्त्र भी अलग-अलग होता है। कहते हैं फलाने का धर्मशास्त्र यह है, हम फलाने धर्म अथवा मठ में जाते हैं। आत्माओं को आकर अपना पार्ट बजाना है। कोई से पूछो - गुरूनानक फिर कब आयेगा? वह तो कह देते ज्योति ज्योत समाया। तो क्या उनको फिर आना नहीं है? सृष्टि चक्र कैसे रिपीट होगा? गुरूनानक की जब सोल आई तो उनके पिछाड़ी सिक्ख धर्म वाले आते जाते हैं। अभी तो देखो कितने हो गये हैं! फिर भी रिपीट करेंगे ना। बताओ फिर कब आयेंगे? तो बता नहीं सकेंगे। तुम कहेंगे यह तो 5 हजार वर्ष का चक्र है। गुरूनानक को 500 वर्ष हुए, फिर 4500 वर्ष के बाद आकर सिक्ख धर्म स्थापन करेंगे। हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। फिर और भी नम्बरवार आकर धर्म स्थापन करेंगे। कोई-कोई बच्चे कहते हैं हमारी बुद्धि में इतना नहीं बैठता है। अच्छा, थोड़ी बात तो बैठती है ना। भक्तों का भगवान् बाप एक ठहरा। कहा भी जाता है पाप आत्मा, पुण्य आत्मा। परमात्मा तो किसको कहा नहीं जाता। ऐसे नहीं, आत्मा जाकर परमात्मा बनेगी। जैसे मिसाल देते हैं - बुदबुदा सागर में लीन हो जायेगा। कोई कहेंगे पार निर्वाण गया। जैसे बुद्ध के लिए कहते हैं। कोई फिर कहते ज्योति ज्योत समाया। अब राइट कौन? पार निर्वाण तो ठीक है। आत्मा भी निराकार है। निराकारी दुनिया में रहती है। सूक्ष्मवतन में है मूवी। वह भी जैसे वहाँ की एक भाषा है, जो वहाँ वह समझते हैं, समझ कर डायरेक्शन ले आते हैं। यह भी वन्डरफुल बात है ना। मूवी, टॉकी और साइलेन्स - तीन हैं। पहले मूवी के बाइसकोप भी थे फिर उनसे किसको मजा नहीं आया तो टॉकी कर दिया। सूक्ष्मवतन में सिर्फ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं। समझाया जाता है ऊंच ते ऊंच है परमपिता परमात्मा, जो साइलेन्स वर्ल्ड में रहते हैं। हम आत्मायें भी वहाँ रहती हैं। पतित-पावन एक ही सतगुरू है। सर्व का सद्गति दाता वही है। बाकी भल कोई अपने को गुरू कहलाये, ऋषि कहलाये, महात्मा कहलाये परन्तु हैं सब भक्त। पावन बनाने वाले को जानते ही नहीं।
 
कहते हैं परमात्मा सबको कब्र से निकाल ले जाते हैं। देखते भी हो यह वही महाभारी महाभारत लड़ाई है। तुम सतयुग के लिए राजयोग सीख रहे हो। विनाश के बाद फिर सतयुग के गेट खुलते हैं। बाप ने समझाया है इस समय तुम बाप से राजयोग सीखते हो। तुम योगबल से राज्य लेते हो। यह है नानवायोलेन्स। कोई भी यह नहीं जानते हैं कि नानवायोलेन्स किसको कहा जाता है। काम कटारी भी नहीं चलानी है। यह भी हिंसा है। अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म था। विकारों के कारण ही तुमने आदि, मध्य, अन्त दु: पाया है। वहाँ है ही निर्विकारी दुनिया, जिस कारण आदि, मध्य, अन्त दु: नहीं होता है। वह है अमरलोक, यह है मृत्युलोक। मृत्युलोक में बैठ कथा सुनाते हैं अमरलोक में जाने लिए। बाप कहते हैं मैं त्रिकालदर्शी हूँ। तुमको भी त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बनाता हूँ अर्थात् तीनों लोकों, तीनों कालों को जानने वाले। यह भगवान् की महिमा है। तुम बच्चों को आप समान बनाकर साथ ले जाते हैं। ज्ञान सागर के बच्चे तुम भी मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हो। बाप कहते हैं मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, चैतन्य, नॉलेजफुल हूँ। हाँ, हम जान सकते हैं बीज से ऐसे झाड़ निकलता है फिर फल निकलता है। अब यह है मनुष्य सृष्टि का झाड़। बाबा कहते हैं मैं इस उल्टे झाड़ के आदि, मध्य, अन्त को, सृष्टि चक्र को जानता हूँ। मनुष्य कहते भी हैं परमात्मा सत है, चैतन्य है, आनन्द का सागर है, सुख का सागर है, तो उनसे जरूर वर्सा मिलना चाहिए। तुम मुझ अपने बाप से वर्सा ले रहे हो। तुम 21 जन्मों के लिए पावन बन जायेंगे। मैं एवर पावन हूँ। तुमको तो पार्ट बजाना है। इस समय सिर्फ तुम्हारी चढ़ती कला है। तुम मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हो। फिर सतयुग से लेकर तुम्हारी कलायें कमती होती जायेंगी। चढ़कर फिर उतरना ही है। अभी तुम बच्चे बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेते हो। बहुत सर्विस करते हो। बाप है पतित-पावन। तुम शिव शक्ति, पाण्डव सेना हो। पतित दुनिया को पावन दुनिया बनाने में मदद करते हो। तुमको ही वन्दे मातरम् कहते हैं। पतित को कभी वन्दे मातरम् नहीं कहेंगे। बाप आकर शक्ति-दल द्वारा गुप्त सर्विस कराते हैं। तुम डबल अहिंसा वाले हो, राज्य लेते हो परन्तु कोई हथियार आदि नहीं हैं। पवित्र रहते हो। वह सब हैं डबल हिंसक। एक तो विकार में जाते हैं, काम-कटारी से एक दो को दु: देते हैं और फिर आपस में लड़ते-झगड़ते भी रहते हैं। आजकल कितने दु: के पहाड़ गिरते हैं। मनुष्यों में क्रोध कितना भारी है। अपने आपको आपेही चमाट मारते हैं। सबकी ग्लानी करते रहते हैं। यह भी ड्रामा में नूँध हैं। सबको गिरना ही है। अभी तुम्हारी है चढ़ती कला। तुम ढिंढोरा पिटवाओ कि स्वर्ग का रचयिता राजयोग सिखलाने वाला वह भगवान् आया हुआ है। वह हथेली पर बहिश्त ले आया है। कृष्ण को हम भगवान् नहीं कहेंगे। वह दैवी गुणों वाला मनुष्य है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहेंगे, उनको दैवी गुण वाले मनुष्य नहीं कहेंगे। दैवीगुण सतयुगी मनुष्यों में हैं, आसुरी गुण कलियुगी मनुष्यों में हैं। दैवी गुणवान और आसुरी गुणवान मनुष्य ही बनते हैं। तो बाप बैठ समझाते हैं - तुम बाप को क्यों भूलते हो? घड़ी-घड़ी मुझे याद करो। तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए, अब मैं तुमको राजयोग सिखलाने आया हूँ। फिर भी तुम घड़ी-घड़ी भूल जाते हो। देह-अभिमान छोड़ अपने को अशरीरी समझो। अच्छा!
 
मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिये मुख्य सार :-
 
1) बाप समान त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, त्रिलोकीनाथ बनना है। बाप की महिमा में स्वयं को मास्टर बनाना है।
 
2) डबल अहिंसक बनना है। किसी भी विकार के वशीभूत हो हिंसा नहीं करनी है। बाप का मददगार बन सबको पावन बनाने की सेवा करनी है।
 
वरदान:-
 
रूहानी आकर्षण द्वारा सेवा और सेवाकेन्द्र को चढ़ती कला में ले जाने वाले योगी तू आत्मा भव
 
जो योगी तू आत्मायें रूहानियत में रहती हैं, उनकी रूहानी आकर्षण सेवा और सेवाकेन्द्र को स्वत: चढ़ती कला में ले जाती है। योगयुक्त हो रूहानियत से आत्माओं का आह्वान करने से जिज्ञासु स्वत: बढ़ते हैं। इसके लिए मन सदा हल्का रखो, किसी भी प्रकार का बोझ नहीं रहे। दिल साफ मुराद हांसिल करते रहो, तो प्राप्तियां आपके सामने स्वत: आयेंगी। अधिकार ही आप लोगों का है।
 
स्लोगन:-
 
परमात्म ज्ञानी वह है जो सर्व बन्धनों एवं आकर्षणों से मुक्त है।
 
 
27/09/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, in order to make the practice of remembrance easy, remember the Father sometimes in the form of the Father, sometimes in the form of the Teacher and sometimes in the form of the Satguru.
 
Question:
 
What must you now beat the drums about throughout the whole world?
 
Answer:
 
You now have to beat the drums saying that the Creator of the land of happiness (heaven) has Himself come to teach you Raja Yoga. He has come with heaven on the palm of His hand for you children. Therefore, study Raja Yoga. The Father Himself says: Children, you have now completed your 84 births and you have to return home with Me. Therefore, renounce body consciousness and become bodiless. Imbibe divine virtues and you will go to the divine world.
 
Song:
 
Who has come to the door of my mind with the sound of ankle-bells? 
 
Om Shanti
 
You sweetest children heard the song whose remembrance has come to your mind. It is in the intellects of all of you that the one Father is the Purifier. In English, He is called the Liberator; He liberates you from sorrow. He is the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. This is not the name of any human being or deity. This is the praise of the Purifier Father alone. God, the Father, is called the Purifier and the Bestower of Salvation. This cannot be the praise of human beings. Neither Lakshmi and Narayan nor Brahma, Vishnu and Shankar can be called the Purifier. The Purifier, the Highest on High, is only the one Supreme Father, the Supreme Soul. His name is elevated and His place of residence is also elevated. You have the faith that that One is your Baba. Shiva alone is called Baba. Shiva is incorporeal. The images of Shiva and Shankar are distinct from one another. That One (Shiva) is the Father, Teacher and Satguru. Today is Thursday, the day of the Satguru. For you, every day is the day of the Satguru. The Satguru teaches you every day and you should have the faith that He is also your Father. He cannot be called omnipresent. It is in your intellects that the Purifier, the Supreme Father, the Supreme Soul, is teaching you Raja Yoga. He is the Ocean of Knowledge. You should have this faith in your intellects. It is only the one Father whom you can remember in any form. Your intellects go up above to the incorporeal One. He is not a subtle or corporeal being. Souls now need the Supreme Father, the Supreme Soul, but they don't know Him. You sing that He is the Ocean of Knowledge. The Ocean of Knowledge means the One who grants salvation by giving you knowledge. Lakshmi and Narayan do not have this knowledge. Knowledge is that which is received from the Ocean of Knowledge and this is why the scriptures too don't have any knowledge. Only the Ocean of Knowledge is called the Seed of the human world tree. The Father is the Creator. He is the unlimited Father whereas all others are limited fathers. Everyone now remembers the unlimited Father who is the Father of all fathers, the Husband of all husbands and the Guru of all gurus. Everyone remembers Him and makes spiritual endeavour to attain Him. Nowadays, they place a Shivalingam in front of the images of Rama and Shankar. He is the incorporeal Highest on High; He liberates everyone. All souls are now impure. When it was the kingdom of the original, eternal deities 5000 years ago, there was just the one kingdom, the land of happiness. There was everything - purity, peace and happiness. That is called swarg, heaven. Heaven cannot be called the subtle region or the incorporeal world. In contrast to heaven, there is hell. You have to keep this in your intellects. Only remember the one unlimited Father. You receive your inheritance of heaven from Him. The Satguru teaches you Raja Yoga and takes you to the pure world. There is so much praise of just the One. Lakshmi and Narayan cannot be praised in this way. There is just the one incorporeal Father. Souls too are incorporeal when they are separate from bodies. The Father says: You play your parts by adopting bodies. You also know for how many births you play your parts. There is the costume of this Brahma and also the costume in the subtle region. He has a body. It would be said that he too has a soul. Brahma, Vishnu and Shankar also have subtle bodies. I am called the Incorporeal. It has been explained to you children that you should tell everyone: You have two fathers and your father also has two fathers. Everyone remembers that unlimited Father. There are many physical fathers, but only one unlimited Father. If you forget the Father, then remember the Teacher and if you forget the Teacher, then remember the Satguru. The Father explains that Bharat is now impure. At first, it was pure; so where did all the other souls reside at that time? In the land of liberation, in the land beyond sound. When people become old, they seek refuge with their guru to enable them to reach the land of nirvana, beyond sound. However, they (the gurus) cannot enable them to reach there. The tree has to grow. The main part is Bharat’s. In that too, those who belong to the original eternal deity religion take 84 births. Souls remained separated from the Supreme Soul for a long time, and so that has to be taken into account. ‘A long time’ means those who come to play their parts in this world at the beginning. They are the ones who truly take 84 births. It can only be said to be a cycle of 84, not a cycle of 8.4 million. The cycle of 84 has been explained to you children; you didn't know it previously. If you ask this one, this one's soul also knows. The secret of two souls has also been explained to you. A second soul can enter one being. There can also be interference by an impure soul. Therefore, the Supreme Father, the Supreme Soul, can also come. He says: If I, the Incorporeal, didn't come here, how could I teach you Raja Yoga? I alone am called the Ocean of Knowledge. Human beings would not establish heaven. The Father alone is called Heavenly God, the Father. There is the kingdom of Paradise. There isn't just one. Shri Krishna is the number one satopradhan prince. Only those who are satopradhan are said to be great souls. When someone is single, he or she is called a kumar or kumari. A kumari is given a lot of respect. When she becomes engaged, then, even though she remains pure, she is still part of a couple and her title of kumari changes. Then they become a mother and father. They will be called mother and father when they have children. After marriage, it would be said that they are a mother and father, and so it is understood that they would also have children. They wouldn't then be called a kumar and kumari. You children know that the land of Krishna is now being established. There is just the one deity religion there. Each religion has its own scripture. They say: This is the religious scripture of so-and-so. We belong to such-and-such a religion, such-and-such a sect. Souls have to come and play their own parts. Ask anyone when Guru Nanak will come again, and they will reply that he has merged into the light. So, does that mean he is not going to come again? How would the world cycle repeat? After the Guru Nanak soul comes, the souls of the Sikh religion continue to follow him down. Look how many of them there are now! This will repeat. Tell us when he will come again. They won't be able to tell you. You would say that this is a cycle of 5000 years. It is 500 years since Guru Nanak existed. He will then come and establish the Sikh religion again after 4,500 years. We are establishing the original, eternal deity religion. Then others will come and establish their religions, numberwise. Some children say: Not all of this sits in our intellects. OK, a little of this knowledge sits in your intellects, does it not? The God of the devotees is the one Father. It is said: Sinful soul and charitable soul. No one else can be called Supreme Soul. It isn't that a soul will go and become the Supreme Soul. They give the example of a bubble merging into an ocean. Some would say that the soul went to nirvana, the land beyond, as they have said about Buddha. Some then say that the soul merged into the light. So, who is right? It is right to say that the soul went to the land beyond, to nirvana. Souls are incorporeal and they reside in the incorporeal world. In the subtle region, they have ‘movie’. That is like the language of that place which you are able to understand when you go there. They understand it there and then bring directions here. These are wonderful things. There are the three: movie, talkie and silence. At first they had movie (silent) films, but there was not that much enjoyment in them and so they invented ‘talkie’ films. In the subtle region, there are just Brahma, Vishnu and Shankar. It is explained that the Highest on High is the Supreme Father, the Supreme Soul, who resides in the world of silence. We souls also reside there. The Purifier is only the one Satguru. He alone is the Bestower of Salvation for all. Even though they might call themselves gurus, rishis or great souls, they are still devotees. They don't know the One who makes them pure. It is said that God removes everyone from the graveyard and takes them back. You can see that that is the same great Mahabharat War. You are studying Raja Yoga for the golden age. The gates to the golden age will open after destruction. The Father has explained: At this time, you are studying Raja Yoga with the Father. You are claiming your kingdom with the power of yoga. This is non-violence. No one knows what non-violence is. The sword of lust must not be used. That too is violence. Non-violence is the supreme religion of the deities. It is because of the vices that you received sorrow from their beginning through the middle to the end. There, it is the viceless world and, due to that, there is no sorrow from its beginning through the middle to the end. That is the land of immortality whereas this is the land of death. They sit and relate stories in the land of death in order to go to the land of immortality. The Father says: I am Trikaldarshi. I also make you trikaldarshi and trinetri, that is, I make you into those who know the three worlds and the three aspects of time. This is God's praise. I make you children the same as Myself and take you back with Me. You children of the Ocean of Knowledge also become master oceans of knowledge. The Father says: I am the Seed of the human world tree. I am the Living Being and knowledge-full. Yes, we can understand how a tree emerges from its seed and how the fruit then emerges. This is the tree of the human world. Baba says: I know the beginning, middle and end of this inverted tree and the world cycle. People say: God is the Truth, the Living Being, the Ocean of Bliss and the Ocean of Happiness. Therefore, you should surely receive the inheritance from Him. You are claiming your inheritance from Me, your Father. You will become pure for 21 births. I am ever pure. You have to play your parts. At this time, it is the stage of ascent of you alone. You become master oceans of knowledge. Then, from the golden age, your degrees begin to decrease. You have to ascend and then descend. You children are now claiming your unlimited inheritance from the unlimited Father. You are doing a lot of service. The Father is the Purifier. You are the Shiv Shakti Pandava Army. You are helping to make the impure world pure. “Salutations to the mothers” is said to you alone. Salutations are never said to those who are impure. The Father comes and makes incognito service take place through the Shakti Army. You are those who are doubly non-violent. You claim the kingdom, but you don't have weapons etc. You remain pure. All of those are doubly violent. One is that they indulge in vice and cause sorrow for one another with the sword of lust and the other is that they continue to fight and quarrel among themselves. Nowadays, so many mountains of sorrow fall. People have so much anger in them; they slap themselves. They continue to defame everyone. This too is fixed in the drama. Everyone has to fall. It is now the stage of ascent for you. Beat the drums that God, the Creator of Heaven, who teaches you Raja Yoga, has come. He has brought heaven on the palm of His hand. We do not call Krishna God; he is a human being with divine virtues. Brahma, Vishnu and Shankar are called (subtle) deities. They cannot be called human beings with divine virtues. Golden-aged human beings have divine virtues and iron-aged human beings have devilish traits. It is human beings who become those with divine virtues and those with devilish traits. So, the Father sits here and explains: Why do you forget your Father? Repeatedly remember Me. Your 84 births are now coming to an end. I have now come to teach you Raja Yoga. In spite of that, you repeatedly forget Me. Renounce body consciousness and consider yourself to be bodiless. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Become trikaldarshi, trinetri and trilokinath, the same as the Father. Make yourself a master of the Father’s praise.
 
2. Become doubly non-violent. Don't become influenced by any vice and thereby commit violence. Become a helper of the Father and serve to make everyone pure.
 
Blessing:
 
May you be a yogi soul who, with your spiritual attraction, takes service and your service centre into the ascending stage.
 
The spiritual attraction of yogi souls who maintain their spirituality automatically takes their service and their service centre into the ascending stage. By being yogyukt you invoke souls with your spirituality and the number of students automatically increase. For this, always keep your mind light and do not let there be any type of burden. When your heart is clean, your desires will continue to be fulfilled and all attainments will automatically come in front of you. This is your right.
 
Slogan:
 

A soul with Godly knowledge is one who is free from all ties and attractions.

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