Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali - 10-Sep - 2018 )
10-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - सत का संग एक ही है जिससे तुम्हारी सद्गति होती है, आत्मा पावन बनती है, बाकी सब हैं कुसंग, इसलिए कहा जाता - संग तारे कुसंग बोरे''
 
प्रश्नः-
 
बाप का ऐसा कौनसा कर्तव्य है जो कोई भी धर्म स्थापक नहीं कर सकता?
 
उत्तर:-
 
बाप का कर्तव्य है सबको पतित से पावन बनाकर वापिस घर ले जाना। बाप आते हैं - सबको इन शरीरों से मुक्त करने अर्थात् मौत देने। यह काम कोई धर्म स्थापक नहीं कर सकता। उनके पिछाड़ी तो उनके धर्म की पावन आत्मायें ऊपर से उतरती हैं और अपना-अपना पार्ट बजाए पावन से पतित बनती हैं।
 
गीत:-
 
जाग सजनिया जाग........ 
 
ओम् शान्ति।
 
बच्चों ने गीत सुना। किसने सुनाया? साजन ने। सब हैं सजनियां जिसको भक्तियां कहा जाता है। भगवान् एक है, जिसको भक्त याद करते हैं। तो उसको कहा जाता है साजन। भक्त कहने से मेल अथवा फीमेल दोनों उसमें जाते हैं। तो सब हो गई सीतायें। राम एक है। भक्त अनेक हैं, भगवान् एक है। उस भगवान् को कहा जाता है परमपिता। लौकिक बाप को परमपिता नहीं कहेंगे। वह है लौकिक शरीर देने वाला पिता। परमपिता है परमधाम में रहने वाला, सब आत्माओं का पिता। हर एक मनुष्य को दो बाप हैं - एक लौकिक, दूसरा पारलौकिक बाप। लौकिक बाप का जन्म बाई जन्म वर्सा अलग होता है। हर एक जन्म में बाप अलग-अलग रहते हैं। तुम विचार करो कितने जन्म लेते हैं, कितने बाप मिलते होंगे? (84) हाँ 84 जन्मों में जरूर 84 बाप और 84 माँ मिलेंगे। हर जन्म में एक ही लौकिक बाप और एक ही माँ रहती है। दूसरा बाप है परमपिता परमात्मा। परन्तु सतयुग-त्रेता में कभी गॉड फादर कह याद नहीं करते। हे परमपिता परमात्मा मेहर करो - ऐसे कभी नहीं कहते इसलिए समझाया जाता है - सतयुग-त्रेता में एक ही बाप होता है। फिर द्वापर-कलियुग, जिसको भक्ति मार्ग कहा जाता है - वहाँ सबको दो बाप हैं। मेल अथवा फीमेल सबको दो बाप हैं। पारलौकिक बाप को याद करते हैं क्योंकि यह दु:खधाम है। दु:खधाम में दो बाप, सुखधाम में है एक ही बाप। यहाँ तो एक लौकिक बाप है, दूसरा फिर सबके दु: निवारण करने वाला बाप है। जिसको सभी याद करते हैं कि इस दु: से छुड़ाओ, रहम करो। आधाकल्प है दु:खधाम, आधाकल्प है सुखधाम। सतयुग है नया युग, कलियुग है पुराना युग। बाप कहते हैं अब हम सतयुग नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं। कलियुग पुराने युग का विनाश होना है। कलियुग के बाद फिर सतयुग आना है। कलियुग के अन्त, सतयुग के आदि को कल्प का संगम कहा जाता है। यह है कल्याणकारी युग क्योंकि पतित से पावन बनना होता है। कलियुग में हैं पतित मनुष्य, सतयुग में हैं पावन देवतायें। बाप समझाते हैं कि यह आसुरी रावण सम्प्रदाय है। हरेक के अन्दर 5 विकारों की प्रवेशता है। उसको कहेंगे रावण ओमनी प्रेजेन्ट, गॉड ओमनी प्रेजेन्ट नहीं। 5 विकार प्रवेश हैं, इसलिए इनको पतित दुनिया कहा जाता है। सतयुग-त्रेता को पावन दुनिया शिवालय कहा जाता है। कलियुग है वेश्यालय। तो शिव परमपिता परमात्मा आकर नव युग की स्थापना करते हैं। बाप समझाते हैं अब जागो, नव युग अथवा सुखधाम का समय अब आया है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य रहा है। यह है ही राजयोग। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। एक होता है सत संग, दूसरा होता है झूठा संग, कुसंग। सत का संग तारे, कुसंग बोरे....... सत तो एक ही बाप है। उनको कहते हैं पतित-पावन आओ। वही आकर पावन बनाते हैं - आधाकल्प के लिए। फिर माया रावण आकर आधाकल्प पतित बनाती है। ऐसे नहीं, बाप ही पतित बनाते हैं। अभी है ही रावण राज्य। जब तक सत बाप आये तब तक सतसंग नहीं। सब हैं झूठ संग अथवा कुसंग। तुम हो सीतायें, तुम भक्ति करती हो। समझती हो भक्ति का फल भगवान् आकर देंगे। तो जरूर जब भक्ति का समय समाप्त होना होगा तब तो आयेंगे ना। आधाकल्प है ज्ञान की प्रालब्ध और आधाकल्प है भक्ति की प्रालब्ध। अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो भगवान् की श्रीमत पर। भगवान् एक होता है, वह है निराकार परमपिता परमात्मा, आत्माओं का बाप। वह आते ही हैं संगम पर। द्वापर-कलियुग को भक्ति काण्ड कहा जाता है। सतयुग-त्रेता को ज्ञान काण्ड कहा जाता है। ज्ञान है ही ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा के पास। शास्त्रों का ज्ञान कोई ज्ञान नहीं। अगर उनमें ज्ञान होता तो सद्गति होती। भारत जो हीरे जैसा था अब है नहीं। फिर बाप बनाते हैं। तुम अब हीरे जैसा बन रहे हो। तुम्हारा जीवन पलट रहा है। आत्मा दैवीगुण धारण कर रही है। यूँ तो मनुष्य बैरिस्टर, इन्जीनियर, सर्जन आदि बनते हैं। बाकी मनुष्य को देवता बनाना यह परमपिता परमात्मा, ज्ञान सागर का कर्तव्य है। उनको ही ट्रुथ कहा जाता है। वही सच बतलाते हैं अर्थात् सचखण्ड की स्थापना करते हैं। बाकी सब हैं झूठ बोलने वाले, झूठ खण्ड की स्थापना करते हैं। रावण की मत पर चलते हैं। तुम श्रीमत से श्रेष्ठ बनते हो। नये युग में भारत नया था। वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी कहा जाता था। लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। उन्हों को किसने यह राज्य भाग्य दिया? जरूर जो स्वर्ग की स्थापना करने वाला होगा। अभी वह वर्सा गँवाया है - 84 जन्म लेकर। अब फिर चक्र पूरा होता है। सबको वापिस जाना है। लिबरेटर एक ही बाप है। वही लिबरेट कर सबको ले जाते हैं इसलिए उनको कालों का काल भी कहा जाता है। बाप कहते हैं अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए। अब वापिस चलना है। यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है - सो बाप बैठ समझाते हैं अर्थात् त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तीनों लोकों, तीनों कालों की नॉलेज देते हैं। वही पतित-पावन, ज्ञान सागर, बीजरूप है। उनसे ही सचखण्ड का तुमको वर्सा मिलता है। यहाँ तुम आये हो परमपिता परमात्मा से वर्सा लेने के लिए, जो स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। तुम जानते हो हम ही फिर स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
 
सतयुग के लक्ष्मी-नारायण आदि को कहा जाता है डीटी रिलीजन, वह है श्रेष्ठ धर्म। उन्हों का धर्म भी श्रेष्ठ है तो कर्म भी श्रेष्ठ है। वहाँ भ्रष्टाचारी कोई नहीं रहते। द्वापर-कलियुग में फिर एक भी श्रेष्ठाचारी नहीं रहते। बाप को भूलने के कारण ही बुरी गति होती है। फिर बाप आकर पतित से पावन बनाते हैं। धर्म स्थापक कोई पतित से पावन बनाने नहीं आते। पतित-पावन तो एक ही बाप है। वही सच्चा गुरू है। बाकी वह तो आकर अपना धर्म स्थापन करते हैं। ऊपर से पावन आत्मायें आती हैं फिर पतित बनती हैं। इस समय सब पतित हैं। सबको पावन बनाना बाप का ही काम है। वही पतित-पावन है। गुरूनानक ने भी उस सतगुरू की महिमा की है। इस पुरानी दुनिया के विनाश लिए ही यह महाभारत लड़ाई है। बाकी ऐसे नहीं, तुमको लड़ाई के मैदान में ज्ञान देते हैं। ज्ञान के लिए तो एकान्त चाहिए। 7 रोज भट्ठी में रहना पड़े। बाकी तो है भक्ति की सामग्री। भक्तों में भी कोई बड़े तीखे-तीखे होते हैं। रूद्र माला भी है तो भक्त माला भी है। वह है भक्तों की माला, यह है ज्ञान माला। ऊपर में शिव फिर युगल दाना फिर है उनकी वंशावली जो माला मनुष्य सिमरते हैं। राम-राम कहते रहते हैं क्योंकि दु:खी हैं, रावण सम्प्रदाय राम को याद करते हैं कि आकर अपना बनाओ। अभी तुम ईश्वरीय गोद में आये हो। वास्तव में सब आत्मायें परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। मनुष्य सृष्टि प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि रची है। आत्मा तो अविनाशी है। आत्माओं का अविनाशी बाप है। अभी तुमको दो बाप हैं - एक विनाशी, दूसरा अविनाशी। ब्रह्मा भी शरीर छोड़ देते हैं। शिवबाबा को तो अपना शरीर है नहीं। वह तो जन्म-मरण रहित है। जन्म-मरण में तुम बच्चे आते हो। तुम आदि सनातन देवी-देवताओं के ही 84 जन्म हैं। हिसाब है ना। गुरूनानक को तो 500 वर्ष हुए। तो इतने में 84 जन्म कैसे लेंगे। बाकी लाखों जन्म की तो बात ही नहीं। बाप समझाते हैं अभी सबके जन्म आकर पूरे हुए हैं। फिर नयेसिर खेल सतयुग से शुरू होगा। सतयुग में तो थोड़े चाहिए। बाकी इतने सब कहाँ जायेंगे? उन्हों के लिए ही यह भंभोर को आग लगनी है। इन बाम्बस नैचरल कैलेमिटीज आदि से सब ख़त्म हो जायेंगे। बाकी आत्मायें सब चली जायेंगी मुक्तिधाम। यह कयामत का समय है, सबको वापिस जाना है। भारत को अविनाशी खण्ड कहा जाता है क्योंकि भारत ही बाप का जन्म स्थान है। शिवबाबा भारत में ही आते हैं। पतित-पावन बाप यहाँ जन्म लेते हैं तो गोया सभी धर्म वालों के लिए भारत बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। इतना भारत का महत्व है परन्तु महत्व को उड़ा दिया है। यह भी ड्रामा का खेल है जो बाप ही आकर समझाते हैं। बाप कहते हैं मैं ही ज्ञान का सागर हूँ। लक्ष्मी-नारायण को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता। उनमें रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान नहीं है।
 
वह ज्ञान जरूर तुम्हारे में है। तुम ही मनुष्य से देवता बनते हो। तुम यहाँ आते हो पतित से पावन बन पावन दुनिया का मालिक बनने। बाप आत्माओं से बैठ बात करते हैं। निराकार बाप इनके आरगन्स का लोन लेकर पढ़ाते हैं। तुम्हारी आत्मा भी इन आरगन्स से सुनती है। बाबा ने समझाया है आत्मा स्टॉर है, जो भ्रकुटी के बीच रहती है और वह बाप है सुप्रीम आत्मा। वह सुप्रीम आकर इनको आप समान सुप्रीम बनाए साथ ले जाते हैं। सब आत्माओं का गाइड है। उनको ही दु: हर्ता, सुख कर्ता कहा जाता है। दु: से तुमको लिबरेट कर ले जायेंगे। सतयुग में दु: होता नहीं। नवयुग की नॉलेज भी नई है ना। यह बातें मनुष्यों ने कभी सुनी नहीं हैं। भल अच्छे और बुरे मनुष्य हैं। परन्तु हैं सब पतित, तब तो गंगा पर स्नान करने, पावन बनने जाते हैं। गंगा का पतित-पावनी नाम रख दिया है। वास्तव में पतित-पावन तो बाप को ही कहा जाता है। पतित दुनिया के बाद फिर पावन दुनिया की स्थापना होती है। सतयुग को वाइसलेस वर्ल्ड कहा जाता है। और वह है साइलेन्स इनकारपोरिअल वर्ल्ड। आत्मायें यहाँ आकर पार्ट बजाती हैं। पार्ट है 84 जन्मों का। तुम आलराउन्ड पार्ट बजाते हो। यह है बना-बनाया ड्रामा। हरेक में अपना-अपना पार्ट अविनाशी है। वह कभी मिटता नहीं है। तुम 84 जन्म भोगते रहेंगे। चक्र का आदि, अन्त नहीं है। ड्रामा कब शुरू हुआ - यह प्रश्न नहीं उठता। आदि है, अन्त है। सतयुग आदि सत, है भी सत, होसी भी सत...... इस चक्र को समझने से तुम स्वर्ग के चक्रवर्ती महाराजा महारानी बनते हो। उसको वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य कहा जाता है, जो वर्ल्ड आलमाइटी बाप से मिलता है। तुम बेहद के बाप से 21 पीढ़ी के लिए सदा सुख का वर्सा पाते हो। बाप को कहा जाता है हेविनली गॉड फादर। हेविन का वर्सा देने वाला बाप कहते हैं मैं कल्प के संगमयुग पर आकर स्वर्ग का वर्सा देता हूँ। जो पुरुषार्थ करेंगे वह सूर्यवंशी राजाई में आयेंगे। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं। यह है गाडली युनिवर्सिटी। भगवानुवाच है ना। भगवान् पढ़ाकर मनुष्य को देवता बनाते हैं। ऐसा कोई सतसंग नहीं होगा जिसमें कहें कि हम मनुष्य से देवता बनायेंगे।
 
अभी तुम बच्चे नई दुनिया में देवी-देवता पद पाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। समझाना चाहिए दो बाप होते हैं - एक बेहद का बाप, एक हद का। हम बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं। तुमको भी राय देते हैं वर्सा लो। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ परमपिता परमात्मा की मत पर चलने से तुम स्वर्ग का मालिक बनेंगे। सच्चा है ही एक बाप। वह आकर पढ़ाते हैं। इनके आरगन्स द्वारा कहते हैं ब्रह्मा तन से ब्रह्मा मुख वंशावली को वर्सा देता हूँ। ब्रह्मा द्वारा तुमको दादे का वर्सा मिलता है। दादे के वर्से पर सभी आत्माओं का हक है। लौकिक सम्बन्ध में सिर्फ मेल को वर्सा मिलता है। तुम तो आत्मायें हो। सब ब्रदर्स ठहरे। सबको शिवबाबा से वर्सा मिलता है। तुमको दादे से वर्सा मिल रहा है।
 
बाप कहते हैं हम तुमको मन्दिर लायक बनाते हैं। मनुष्यों में देखो क्रोध कितना है। एक-दो का विनाश कर देते हैं। यह है वेश्यालय। शिवालय था, सो फिर अब बनना है। परमपिता परमात्मा शिव आकर शिवालय बनाते हैं। वेश्यालय से लिबरेट कर फिर गाइड बन सबको वापिस शिवालय में ले जाते हैं। सभी अपने पुराने शरीरों से मुक्त हो मेरे साथ चलेंगे। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
 
1) दैवी गुण धारण कर स्वयं की जीवन को पलटाना है। सचखण्ड में चलने के लिए सच्चे बाप से सच्चा रहना है।
 
2) एक सत बाप के संग में रहना है। मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई अच्छी तरह पढ़कर बेहद का वर्सा लेना है।
 
वरदान:-
 
श्रेष्ठ कर्मधारी बन ऊंची तकदीर बनाने वाले पदमापदम भाग्यशाली भव
 
जिसके जितने श्रेष्ठ कर्म हैं उसकी तकदीर की लकीर उतनी लम्बी और स्पष्ट है। तकदीर बनाने का साधन है ही श्रेष्ठ कर्म। तो श्रेष्ठ कर्मधारी बनो और पदमापदम भाग्यशाली की तकदीर प्राप्त करो। लेकिन श्रेष्ठ कर्म का आधार है श्रेष्ठ स्मृति। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बाप की स्मृति में रहने से ही श्रेष्ठ कर्म होंगे इसलिए जितना चाहो उतना लम्बी भाग्य की लकीर खींच लो। इस एक जन्म में अनेक जन्मों की तकदीर बन सकती है।
 
स्लोगन:-
 
अपने सन्तुष्टता की पर्सनैलिटी द्वारा अनेकों को सन्तुष्ट करना ही सन्तुष्टमणि बनना है।
 
 
10/09/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, there is only the one company of the Truth through which you attain salvation; you souls become pure. All the rest is bad company. This is why it is said: The company of the Truth takes you across and bad company drowns you.
 
Question:
 
What is the Father’s task which no other founder of a religion can do?
 
Answer:
 
The Father’s task is to make everyone pure from impure and take them back home. The Father comes to liberate everyone from their bodies, that is, to grant death to everyone. No founder of a religion can accomplish this task. In fact, when all the souls follow the founder of their religion down from up above, they are pure. Then, while playing their own parts, they become impure from pure.
 
Song:
 
Awaken, o brides, awaken! The new age is about to come. 
 
Om Shanti
 
You children heard the song. Who sang it? The Bridegroom. All are brides; they are also called devotees. God is the One whom devotees remember and so He is called the Bridegroom. Both males and females are included in ‘devotee’. Therefore everyone becomes a Sita, whereas there is only the one Rama. There are many devotees, but only the one God. That God is called the Supreme Father. A physical father cannot be called the Supreme Father. That is a father who gives you a physical body. The Supreme Father resides in the supreme region. He is the Father of all souls. Every human being has two fathers: one is a physical father and the other is the spiritual Father. The inheritance you receive in each birth from a physical father is different. In each birth you have a different father. Just consider how many births you take and how many fathers you would have had. (84.) Yes, in 84 births you surely had 84 fathers and 84 mothers. In every birth you would have one physical mother and one physical father. The other father is the Supreme Father, the Supreme Soul. However, in the golden and silver ages you never remember Him or say: O God, the Father! O Supreme Father, Supreme Soul, have mercy! You never say these words there. This is why it is explained that you just have one father in the golden and silver ages. Then, in the copper and iron ages, which are called the path of devotion, everyone has two fathers. Both males and females have two fathers. Everyone remembers the spiritual Father because this is the land of sorrow. You have two fathers in the land of sorrow and just one father in the land of happiness. Here, one is your physical father, and the other is the Father who liberates everyone from sorrow, whom everyone remembers and to whom they say: Liberate us from sorrow and have mercy on us! For half a cycle there is the land of sorrow and for the other half it is the land of happiness. The golden age is the new age, and the iron age is the old age. The Father says: I am now establishing the golden age, the new world. The old iron age is to be destroyed. The golden age will come after the iron age. The end of the iron age and the beginning of the golden age is called the confluence of the cycles. This is the beneficial age, because it is the age when you have to become pure from impure. There are impure human beings in the iron age and pure deities in the golden age. The Father explains that this is the devilish community of Ravan; the five vices are present in everyone. It can be said that Ravan is omnipresent; God is not omnipresent. The five vices are present in everyone, which is why this is called the impure world. The golden and silver ages are called the pure world, Shivalaya (Temple of Shiva). The iron age is a brothel. Therefore, the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva, comes to establish the new age. The Father explains: Awaken now! The time has come for the new age, that is, for the land of happiness. The kingdom of Lakshmi and Narayan is about to come. This is Raja Yoga. This is not a common satsang. One is the company of the Truth and the other is the company of falsehood, bad company. The company of the Truth takes you across and bad company makes you drown. Only the one Father is the Truth. People call out to Him: O Purifier come! It is He who comes and purifies you for half the cycle. Then, Maya, Ravan, comes and makes you impure for the other half cycle. It is not that the Father makes you impure. It is now the kingdom of Ravan. There can be no company of the Truth until the true Father comes. All other types of company are false; they are bad company. You are the Sitas who do devotion. You understand that God will come and give you the fruit of your devotion. Therefore, He would definitely come when the time of devotion is about to end. For half a cycle there is the reward of knowledge and for half a cycle it is the reward of devotion. You are now making effort on the basis of God’s shrimat. There is only one God and He is the incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, the Father of souls. He only comes at the confluence age. The copper and iron ages are called the period of the activity of devotion. The golden and silver ages are called the period of the activity of knowledge. It is the Ocean of Knowledge, the Supreme Father, the Supreme Soul, who has this knowledge. Knowledge of the scriptures is not knowledge. If they contained knowledge, you would attain salvation. Bharat was like a diamond; it is no longer that. The Father comes and makes it like that again. You are now becoming like diamonds. Your life is being transformed. You souls are imbibing divine virtues. Normally, people become barristers, engineers and surgeons etc., but it is the task of the Supreme Father, the Supreme Soul, the Ocean of Knowledge, to make human being into deities. He alone is called the Truth. Only He tells the truth, that is, He is the One who establishes the land of truth, whereas all the rest tell lies. They are the ones who establish the land of falsehood. They follow the dictates of Ravan. You become elevated on the basis of following shrimat. Bharat was new in the new age. It was called the kingdom of the World Almighty Authority. It was the kingdom of Lakshmi and Narayan. Who gave them their fortune of that kingdom? Surely, it must have been the One who established heaven. While taking 84 births, you lost that inheritance. The cycle is now coming to its completion and everyone has to go back. Only the one Father is the Liberator. Only He liberates everyone and takes everyone back home. This is why He is also called the Death of Deaths. The Father says: Your 84 births are now over and you have to return home. The Father sits here and explains how this world cycle turns, that is, He makes you into knowers of the three aspects of time. He gives you the knowledge of the three worlds and the three aspects of time. He alone is the Purifier, the Ocean of Knowledge and the Seed. It is from Him that you receive your inheritance of the land of truth. You have come here in order to claim your inheritance from the Supreme Father, the Supreme Soul, the One who establishes heaven. You understand that you are the ones who become the masters of heaven again. Lakshmi and Narayan etc. of the golden age are said to belong to the deity religion, which is the most elevated religion. Their religion is elevated and their actions are also elevated. No one there is degraded, whereas in the copper and iron ages there is not a single elevated person. It is because of forgetting the Father that everyone has reached such a bad state. Then, the Father comes and makes you pure from impure. The founders of religions do not come to purify the impure. Only the one Father is the Purifier. He alone is the True Guru. All the others come to establish their own religions. Pure souls come from up above and then become impure. At this time, all are impure. It is the Father’s task to purify everyone. He alone is the Purifier. Guru Nanak also sang praise of that Satguru. The great (Mahabharat) war is for the destruction of this old world. It is not that you are given knowledge on a battlefield. You need solitude to study knowledge. You have to stay in a bhatthi for seven days. All the rest is the paraphernalia of the path of devotion. Even some of the devotees are very powerful. There is the rosary of Rudra as well as the rosary of devotees. That is the rosary of devotees and this is the rosary of knowledge. At the beginning (of the rosary) is Shiva, then the dual-bead and then their clan. Human beings turn this. They chant “Rama, Rama” because they are unhappy. The community of Ravan remembers Rama (God) and says: Come and make us belong to You. You have now come into God’s lap. In fact, all souls are children of the Supreme Father, the Supreme Soul. All human beings of this world are the children of Prajapita Brahma. The human world was created through Prajapita Brahma. Souls are imperishable and the Father of souls is also imperishable. You now have two fathers; one is perishable and the other is imperishable. Brahma also sheds his body. Shiv Baba doesn’t have a body of His own; He is beyond birth and death. It is you children who come into birth and death. Only you original, eternal deities take 84 births. There is an account of this. It is only 500 years since Guru Nanak existed. Therefore, how could he take 84 births? There is no question of hundreds of thousands of births. The Father explains that everyone’s births have now come to an end and that the play will begin anew in the golden age. Very few are required for the golden age, so where will everyone else go? It is for them that this haystack is to be set ablaze. Everything will be destroyed by bombs and natural calamities etc., and all souls will return to the land of liberation. This is the time of settlement for everyone; everyone has to go back. Bharat is called the imperishable land because it is Bharat that is the Father’s birthplace. Shiv Baba only comes in Bharat. Since the Purifier Father takes birth here, Bharat must be the greatest pilgrimage place for the people of all religions. Such is the importance of Bharat. However, this importance has been blown away. The Father comes and explains that this too is part of the drama. The Father says: Only I am the Ocean of Knowledge. Lakshmi and Narayan cannot be called the Ocean of Knowledge. They do not have the knowledge of the Creator or the beginning, the middle and the end of creation. That knowledge is definitely in you. It is you who become deities from human beings. You come here to become pure from impure and to become the masters of the pure world. The Father sits here and speaks to you souls. The incorporeal Father takes this one’s organs on loan and teaches you souls and you souls listen through your organs. Baba has explained that a soul is like a star and that it resides in the centre of the forehead and that that Father is the Supreme Soul. That Supreme comes and makes you souls as supreme as He is and takes you back with Him. He is the Guide for all souls. He alone is called the Bestower of Happiness and the Remover of Sorrow. He will liberate you from sorrow and take you back with Him. There is no sorrow in the golden age. The knowledge of the new age is also new. People have never even heard these things. Although there are good and bad people, everyone is still impure. This is why they go to the Ganges to bathe and be purified. The Ganges has been given the name of “Purifier”. In fact, only the Father can be called, “The Purifier”. At the end of the impure world, the pure world is established. The golden age is called the viceless world. The world above is the incorporeal, silence world. Souls come down here to play their parts. Your parts are of 84 births: you play all-round parts. This drama is predestined. Everyone has his own imperishable part within him which can never be erased. You will continue to experience 84 births. The cycle has no beginning or end. The question “When did the drama begin?” can never arise; it doesn’t have a beginning or an end. The beginning of the golden age was the truth, it is the truth and it will be the truth. By understanding this cycle, you become the rulers of the globe, emperors and empresses of heaven. That is called the world almighty authority kingdom and it is received from the World Almighty Father. You receive your inheritance of constant happiness for 21 generations from the unlimited Father. The Father is called Heavenly God, the Father. The Father who gives you the inheritance of heaven says: I come at the confluence age of the cycle to give you your inheritance of heaven. Those who make effort will come into the kingdom of the sun dynasty. This is not a common satsang; this is the Godly University. These are God’s versions. God teaches human beings and makes them into deities. There is no other satsang where they say that they will make you into deities from human beings. You children are now making effort to claim a deity status in the new world. You should explain that there are two fathers: one is the unlimited Father and the other is a limited father. We are claiming our inheritance from the unlimited Father and we also advise you to claim your inheritance from Him. By following the directions of the most elevated One of all, the Supreme Father, the Supreme Soul, you can become the masters of heaven. Only the one Father is the Truth. He comes and teaches you. He says through this one’s organs: Through the body of Brahma, I grant My inheritance to you mouth-born children of Brahma. You receive the Grandfather’s inheritance through Brahma. All souls have a right to the Grandfather’s inheritance. In worldly relationships, only males receive an inheritance. You are all souls and you are therefore all brothers. You all receive the inheritance from Shiv Baba. You are receiving your inheritance from the Grandfather. The Father says: I make you worthy of being in a temple. Just look how much anger there is in human beings. They destroy one another. This is a brothel. It used to be the Temple of Shiva and it will become that again. The Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva, comes and makes it into the Temple of Shiva. He liberates you from the brothel and then, as the Guide, takes you back to the Temple of Shiva. Everyone will be liberated from their old bodies and return home with Me. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
 
1. Imbibe divine virtues and transform your own life. In order to go to the land of truth, remain true to the true Father.
 
2. Stay in the true company of the one true Father. Study this knowledge very well to become deities from human beings and claim your unlimited inheritance.
 
Blessing:May you be multimillion times fortunate and make your fortune elevated by performing elevated acts.

 
The lines of fortune of those whose acts are elevated, are just as long and clear. The way to make your fortune is with your elevated acts. So, be one who performs elevated acts and attain the fortune of being multimillion times fortunate. However, the basis of elevated acts is having an elevated awareness. It is only by staying in the awareness of the most elevated Father of all that you will perform elevated acts and thereby draw a line of fortune as long as you want. You can create a fortune for many births in this one birth.
 
Slogan:To make others content with your personality of contentment is to be a jewel of contentment.

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