Published by – Goutam Kumar Jena
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali Sep 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Sep-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali -1st Sep 2018 )
01-09-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे-विचार सागर मंथन कर श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव के महान् अन्तर को स्पष्ट करो''
 
प्रश्नः-ब्रह्मा बाबा अपने आपसे क्या बातें करते हैं? उन्हें वन्डर क्या लगता है?
उत्तर:-ब्रह्मा बाबा अपने आपसे बातें करते-पता नहीं क्या होता जो शिवबाबा घड़ी-घड़ी भूल जाता है। ऐसे तो नहीं, बाप जब प्रवेश करते हैं तब याद रहती है, बाबा चले जाते हैं तो याद भूल जाती है। परन्तु मैं तो उनका बच्चा हूँ, याद भूल क्यों जाती? क्या मेरी याद से ही बाबा आते हैं? ऐसे-ऐसे बाबा अपने आपसे बातें करके वन्डर खाते रहते हैं।
 
गीत:-तू प्यार का सागर है........  ओम् शान्ति।
शिवबाबा बैठ करके अपने सिकीलधे बच्चों को समझाते हैं कि गीता का भगवान् कौन है? क्योंकि इस समय भारत में है अज्ञान अन्धियारा। इसको कहा जाता है घोर अन्धियारा, अज्ञान अन्धियारा। फिर सोझरा चाहिए ज्ञान का। परमपिता परमात्मा को ही मनुष्य मानते हैं कि वह ज्ञान का सागर है, नॉलेजफुल है। अच्छा, वह ज्ञान का सागर है, उनसे क्या मिलता है? नदियों से पानी मिलता है तो भर-भर कर स्नान भी करते हैं। तुमको ज्ञान सागर से क्या मिलता है? एक बूँद। बाप आकर बच्चों को समझाते हैं-मैं ज्ञान का सागर हूँ, तुमको बूँद देता हूँ। कौन सी बूँद? सिर्फ कहता हूँ-मैं तुम्हारा बाप हूँ। तुम मुझे याद करो। समझो कि हम अपने शान्तिधाम-सुखधाम जाते हैं।
 
ज्ञान सागर एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति वैकुण्ठ में भेज देते हैं। घर बैठे भी दिव्य दृष्टि दे देते हैं। मनुष्य तो एक-दो को सामने दृष्टि देते हैं। बाबा घर बैठे साक्षात्कार करा लेते हैं। एक बूँद मिलने से तुम यहाँ से चले जाते हो। यहाँ बैठे-बैठे तुम वैकुण्ठ मे चले जाते हो। अब बाप बैठ समझाते हैं। गीता का भगवान् कौन है? वह है ज्ञान का सागर निराकार। मनुष्य तो गाते हैं श्रीकृष्ण के लिए। अब तुमको समझाना है श्रीकृष्ण ने ज्ञान नहीं सुनाया। पहले-पहले तो कहते हैं कृष्ण ने माता के गर्भ से जन्म लिया। कंसपुरी थी। फिर आवाज हुआ-हे कंस, तुमको मारने वाला आया है। यह तो जानते हो सब असुर हैं। कंस, जरासन्धी, अकासुर, बकासुर पाप आत्मायें सबका विनाश करने लिए उनका जन्म दिखाते हैं। तो श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। वह तो छोटा था। फिर ज्ञान कब दिया? वह तो युद्ध के मैदान में कृष्ण का बड़ा रूप दिखाते हैं, छोटा तो नहीं दिखाते हैं। वैसे ही कृष्ण जयन्ती के बाद फिर गीता जयन्ती दिखाते हैं। कुछ समय के बाद जब वह बड़ा हुआ तब ज्ञान दिया होगा। यह भी दिखाते हैं-जन्म लिया है। टाइम भी दिखाते हैं-रात्रि के समय। यहाँ तुम देखते हो शिवबाबा की पधरामनी हुई है। कोई को पता नहीं कि कब प्रवेशता हुई। शिवबाबा तो बच्चा बना नहीं है। वह तो बुढ़े वानप्रस्थ अवस्था में आया है। कब आया-उसकी डेट है नहीं। कृष्ण की तो तिथि-तारीख है और वह गर्भ से पैदा हुआ है। यहाँ शिवबाबा तो ज्ञान का सागर है। उनको छोटा होना नहीं है, जो फिर बड़ा होकर ज्ञान सुनाये। कृष्ण तो मनुष्य था। मनुष्य को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता है। उनका तो जन्म ही स्वर्ग में हुआ। वह किसको राजयोग सिखला सके, क्योंकि खुद ही राजा है। बरोबर तुम जानते हो निराकार बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं। पतितों को पावन, राजाओं का राजा बनाते हैं।
 
उस हद के रात और दिन तथा इस बेहद के रात और दिन के अर्थ में भी फ़र्क है। यह है संगम जबकि ब्रह्मा की रात पूरी हो ब्रह्मा का दिन शुरू होता है। यह है बेहद की रात्रि, अज्ञान अन्धियारा। सतयुग में है सोझरा। उस रात की बात नहीं। वह तो कृष्ण का जन्म रात में मनाते हैं। वह हुई हद की बात, यह है बेहद की। बाप कहते हैं मैं आता हूँ, मेरी कोई तिथि-तारीख नहीं। कृष्ण-राम आदि की तो तिथि-तारीख है। मुख्य हैं ही दो।
 
अभी कृष्ण जयन्ती आती है ना। उन्हों को समझाना है कृष्ण तो छोटा बच्चा है। रात और दिन तो ब्रह्मा का गाया जाता है। ब्रह्मा का दिन कृष्ण है और ब्रह्मा की रात ब्रह्मा है। ब्रह्मा ही फिर सो कृष्ण बनता है। कृष्ण की रात वा कृष्ण का दिन नहीं कहेंगे। वह तो समझते हैं कृष्ण भगवान् है, वह हाजिराहजूर है। तो इस पर भी समझाना है। तुम्हारी है शिवजयन्ती वा शिव रात्रि कहो। शिव जयन्ती कहना ठीक है। यह भी समझाना होता है। वह गर्भ में तो आते नहीं हैं। साधारण तन में आते हैं। कृष्ण की तो 8 पीढ़ी चलती हैं। छोटेपन में उनको मोहन अथवा कृष्ण कहते हैं। जैसे प्रिन्स ऑफ वेल्स है वैसे पहले-पहले गद्दी इन्द्रप्रस्थ की-प्रिन्स आफ इन्द्रप्रस्थ। फिर वह प्रिन्स से किंग होगा। कृष्ण अक्षर नहीं, महाराजा नाम ही गाया जाता है। श्री लक्ष्मी-नारायण को महाराजा-महारानी कहते हैं। किंग अक्षर अंग्रेजों का है, असुल नाम महाराजा-महारानी है। ऐसे नहीं कि नारायण ने ज्ञान दिया था। स्वयंवर बाद कृष्ण फिर श्री नारायण बनता है। अब इस ज्ञान सागर शिव का नाम तो बदलता नहीं। एक ही नाम है। उनका वह रथ तो बड़ा है। आने से ही ज्ञान सुनाना शुरू कर दिया है। यह (ब्रह्मा) तो कुछ नहीं जानते थे। समझ में आता है इनमें आया हुआ है, जो साक्षात्कार कराते हैं। नॉलेज दे रहे हैं। यह साक्षात्कार का राज़ अथवा यह नॉलेज शुरू में पहले समझ में नहीं आती थी। बाबा अपना अनुभव बतलाते हैं-शुरू में बनारस गये तो दीवारों पर गोले आदि निकालते रहते थे। समझ में कुछ भी नहीं आता था-यह क्या है? क्योंकि यह तो जैसे बेबी बन गये। नया जन्म लिया ना। कहते हैं ना-बाबा, हम 8-10 मास का आपका बच्चा हूँ तो मैं भी बच्चा हो गया। तो पहले कुछ समझ में नहीं आता था। वह ज्ञान की बातें ही और थी। अगड़म-बगड़म क्या-क्या बैठ निकालते थे। अभी तो सीखते-सीखते कितने वर्ष हो गये हैं! अभी बाप की बातें समझ में आती हैं। बच्चों को कृष्ण जयन्ती पर समझाना है। चित्र तो बरोबर हैं। झाड़ में ब्रह्मा का चित्र भी है। मक्खन तो यह हप कर लेते हैं। विश्व के मालिकपने का माखन है। कृष्ण सतयुग की प्रालब्ध लेकर के आया है। श्रीकृष्ण है सतयुग का पहला प्रिन्स फिर उनके बच्चे भी प्रिन्स बनेंगे। यह है उनकी प्रालब्ध जो कलियुग में तो थी नहीं। तो यह सूर्यवंशी की प्रालब्ध किसने बनाई? गाया जाता है-ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अन्धेर विनाश। ज्ञान सागर तो शिवबाबा है। वह आये हैं और स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। कान्ट्रास्ट बतलाना है। कृष्ण कैसे गीता सुना सकता, वह तो बच्चा है। गर्भ में आया है। दिखाते हैं-वहाँ कंस, जरासन्धी आदि थे। परन्तु वहाँ असुर तो हो सकें। असुरों और देवताओं की लड़ाई दिखाते हैं। तो जरूर असुर कलियुग अन्त में होंगे, देवतायें सतयुग आदि में होंगे। दोनों की लड़ाई तो लगी नहीं है। महाभारत लड़ाई बरोबर है। देवतायें तो यहाँ हो सकें। असुरों की असुरों में लड़ाई चली है। मुसलमानों का राज्य भी देखते हो। बरोबर यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं।
 
पाण्डव हैं नानवायोलेन्स, योगबल वाले। यहाँ तो रक्त की नदियां बहती रहती हैं। दुश्मनी तो है ना। पार्टीशन में रक्त की नदी अच्छी ही बही थी ना। भाई-भाई की युद्ध हुई, भाई-भाई तो हैं ना। लड़ाई उन्हों की लगती है, नहीं तो रक्त की नदी कैसे बहे? यह तो एक-दो का खून करते हैं। तलवारें चलाते हैं तब रक्त की नदी बहती है। और है यह संगम का समय। रक्त की नदियों बाद फिर घी की नदियां बहनी है। कृष्ण तो छोटा प्रिन्स है। फिर उनकी भी बैठ ग्लानी की है। उनको तो ज्ञान सागर कह नहीं सकते। देवताओं की महिमा तो गाई जाती है-सर्वगुण सम्पन्न, मर्यादा पुरुषोत्तम...... यह महिमा बच्चे की नहीं हो सकती। महिमा हमेशा राजा-रानी की चलती है। वह फिर लक्ष्मी-नारायण को सतयुग में और कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं। कितनी बड़ी भूल कर दी है! लक्ष्मी-नारायण की छोटेपन की कहानी भी कोई बता नहीं सकते। राम-सीता की भी कुछ कुछ बतलाते हैं। कृष्ण की भी उल्टी-सुल्टी बात बतलाते हैं। कुछ तो सुल्टी कहानी भी बताओ। लक्ष्मी-नारायण की तो महिमा गाई जाती है-सर्वगुण सम्पन्न, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा परमो धर्म..... अच्छा, उन्हों को राज्य किसने दिया? मनुष्य का नाम सुन मूँझ जाते हैं। लक्ष्मी-नारायण कहने से तुम चले जाते हो सतयुग में। यह है नर से नारायण बनने की कथा। कृष्ण बनने की कथा नहीं कहते, इसको सत्य नारायण की कथा कहेंगे। सत्य कृष्ण की कथा नहीं कहा जाता। सच्चा बाबा ज्ञान सागर यह कथा सुनाते हैं। सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की कथा है। उसमें श्री लक्ष्मी-नारायण की कथा भी जाती है। उनके 84 जन्मों की कथा दिखलाते हैं। श्री नारायण की कथा से बेड़ा पार हुआ। बरोबर बाप बैठ बच्चों को नर से नारायण बनने की सच्ची कथा सुनाते हैं। श्री नारायण तो बड़ा है ना। स्वयंवर से पहले कौन थे? क्या लक्ष्मी-नारायण ही नाम था या दूसरा और कोई नाम था? हैं राधे-कृष्ण, जिनका स्वयंवर बाद लक्ष्मी-नारायण नाम रखा है। बाबा एसे (निबन्ध) देते हैं फिर तुमको विचार सागर मंथन करना चाहिए। पहले नम्बर की भूल है यह। तुम जानते हो अभी है कलियुग। यादव, कौरव, पाण्डव भी हैं। कलियुग का समय भी है। कलियुग के बाद जरूर सतयुग होगा। बाप कहते हैं-मैं गाइड बन आया हूँ, रावण के चम्बे से छुड़ाए वापिस ले जाने। आत्माओं को ही ले जाऊंगा।
 
गाया जाता है आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल....... ऐसे नहीं कि कृष्ण अलग रहे बहुकाल। महिमा ही उस निराकार की है-सुन्दर मेला कर दिया जब वह सतगुरू मिला दलाल। यहाँ तो सब गुरू ही हैं। गाया हुआ है-सतगुरू मिला दलाल...... सत परमपिता परमात्मा दलाल के रूप में मिलते हैं। सौदा दलाल द्वारा होता है। यह भी सगाई होती है। आत्मा और परमात्मा अलग हैं। परमात्मा है निराकार वह आकर इसमें प्रवेश कर तुम्हारी सगाई करते हैं। खुद दलाल बनते हैं। कहते हैं मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो। इस शरीर में बैठ कहते हैं मामेकम् याद करो। मैं तुमको माया रावण से लिबरेट कर साथ ले जाऊगाँ, तुमको फिर राजाई देकर मैं निर्वाणधाम में बैठ जाऊंगा। कृष्ण थोड़ेही ऐसे कहेंगे। यह है ही आत्मा और परमात्मा। कृष्ण तो छोटा बच्चा है। बातें तो बहुत हैं समझाने की। तो बाबा ने समझाया है कैसे इसमें प्रवेशता हुई? फिर समझने लगा-मैं राजाओं का राजा बनता हूँ। विष्णु का साक्षात्कार हुआ और दिल में बहुत खुशी हुई। फिर विनाश का साक्षात्कार भी हुआ। परन्तु इतना समझ में नहीं आया। अभी समझते हैं बाबा ने यह साक्षात्कार कराया-तुम नर से नारायण बनेंगे। परन्तु उस समय इतनी समझ नहीं थी। जैसे बाबा रात को बतला रहे थे-पता नहीं क्या होता है जो शिवबाबा को याद करना भूल जाता हूँ। ऐसे तो नहीं बाप जब प्रवेश करते हैं तब समझता हूँ बाबा आया है, याद रहती है, बाबा चला जाता है तो भूल जाता हूँ। प्वाइन्ट सुनाते हैं तो फील होता है-बेहद का बाप आकर सुनाते हैं। परन्तु मैं खुद ही भूल जाता हूँ। क्या मेरी याद से ही आता है? ऐसे कहें-मैं घड़ी-घड़ी याद करता हूँ। भल आवे इसमें तो सबका कल्याण है। याद ही मुख्य हो जाती है। आये, आये, बाप को याद जरूर करना है। बाबा ने समझाया है कि गीता जयन्ती के बाद होती है कृष्ण जयन्ती। पहले है शिवजयन्ती फिर गीता जयन्ती फिर कृष्ण जयन्ती। शिव तो बड़ा है। फट से आया और गीता सुनाई। छोटा तो नहीं है। इन बातों पर विचार सागर मंथन करना चाहिए-कैसे हम समझायें?
 
पहले ख्याल करो-शिव किसको कहते हैं, जिसकी रात्रि मनाई जाती है। सतयुग है श्रीकृष्ण की राजधानी। नर से नारायण बनने की नॉलेज तो जरूर फादर ही देंगे, वह नॉलेजफुल है। और किसको नॉलेजफुल नहीं कहा जाता। गॉड इज नॉलेजफुल, रचयिता, बीजरूप है। वही ड्रामा की नॉलेज सुनायेंगे। ड्रामा कब शुरू होता है और फिर कब पूरा होता है, किसको पता ही नहीं है। सतयुग से कलियुग अन्त तक वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है-यह कोई समझा नहीं सकते। सुनावे वह जो त्रिकालदर्शी हो। त्रिकालदर्शी तो कोई है नहीं, सिवाए एक के। वही तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) मास्टर नॉलेजफुल और त्रिकालदर्शी बन श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव के महान् अन्तर को स्पष्ट कर घोर अन्धियारे से निकालने की सेवा करनी है।
2) बाबा जो एसे (निबन्ध) देते हैं उस पर विचार सागर मंथन करना है। ख्याल करना है-कैसे किसको समझायें।
 
वरदान:-खुशी के खजाने से सम्पन्न बन सदा खुश रहने और खुशी का दान देने वाले महादानी भव
 
संगमयुग पर बापदादा ने सबसे बड़ा खजाना खुशी का दिया है। रोज़ अमृतवेले खुशी की एक प्वाइंट सोचो और सारा दिन उसी खुशी में रहो। ऐसे खुशी में रहते दूसरों को भी खुशी का दान देते रहो, यही सबसे बड़े ते बड़ा महादान है क्योंकि दुनिया में अनेक साधन होते हुए भी अन्दर की सच्ची अविनाशी खुशी नहीं है, आपके पास खुशियों का भण्डार है तो दान देते रहो, यही सबसे बड़ी सौगात है।
 
स्लोगन:-महान आत्माओं का परम कर्तव्य है - उपकार, दया और क्षमा।
 
 
01/09/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada-Madhuban
Sweet children, churn the ocean of knowledge and clarify the great difference between Krishna and the Supreme Father, the Supreme Soul, Shiva. (Related to Krishna Janamasthmi)
 
Question:What conversation does Brahma Baba have with himself and what is he amazed about?
Answer:Brahma Baba talks to himself and says: I don’t know what happens to me. I forget Shiv Baba again and again. It is not that I remember the Father when He enters and that I forget Him when He leaves. I am His child; how can I forget to remember Him? Is it only when I remember Baba that He comes? Brahma Baba continues to be amazed as he talks to himself in this way.
 
Song:You are the Ocean of Love; we thirst for one drop. ….Om Shanti
 
Shiv Baba sits here and explains to His long-lost and now-found children who the God of the Gita is, because Bharat is in the darkness of ignorance at this time. This is called extreme darkness, the darkness of ignorance, and so the light of knowledge is therefore needed. The Supreme Father, the Supreme Soul, is the One that human beings accept as the Ocean of Knowledge, knowledge-full. Achcha, if He is the Ocean of Knowledge, what do you receive from Him? You receive water from rivers and so people bathe in plenty of water. What is it that you receive from the Ocean of Knowledge? One drop! The Father comes and explains to the children: I am the Ocean of Knowledge. I give you one drop. What drop is that? I simply tell you that I am your Father and that you have to remember Me. Have the consciousness that you are returning to your land of peace and the land of happiness. The Ocean of Knowledge sends you to Paradise, to the land of liberation, within a second. He gives you a divine vision while you are sitting at home. Human beings give dristhi to one another when they are facing one another. Baba grants you a vision while you sit at home. By receiving just one drop, you go beyond. While sitting here, you go to Paradise. The Father now sits here and explains who the God of the Gita is. He is the Ocean of Knowledge, the incorporeal One. Human beings sing this praise of Shri Krishna. You now have to explain to them that Shri Krishna did not speak knowledge. First of all, they say that Krishna took birth from his mother’s womb in the land of Kans. Then the sound was heard that the one who was to kill Kans had come. You understand that all of those are devils. They have shown the birth of Krishna to portray the destruction of sinful souls like Kans, Jarasandha, Akasur and Bakasur. Therefore, Shri Krishna took birth. However, he was a young child, so when did he give this knowledge? They show Shri Krishna on a battlefield in the mature form; they don’t show him as a baby. In fact, after the birth of Krishna, they show the birth of the Gita. Perhaps he would have given this knowledge when he grew a little older. They also show his birth, the time he took birth, during the night. Here, you can see that Shiv Baba has entered this one. However, no one knows when He enters. Shiv Baba doesn’t become a child. He comes when this one is old and has reached the age of retirement. There is no date for when He comes. There is a time and date given for Krishna, and he takes birth through a womb. Here, Shiv Baba is the Ocean of Knowledge. He doesn’t have to become a young baby and then grow older before giving knowledge. Krishna was a human being. No human being can be called the Ocean of Knowledge. Krishna’s birth takes place in heaven. He cannot teach Raja Yoga to anyone, because he himself becomes a king. You understand that it is definitely the incorporeal Father who comes and teaches Raja Yoga. He purifies the impure and makes you into the kings of kings. There is a difference in the meaning of a limited night and day and this unlimited night and day. This is the confluence when the night of Brahma ends and the day of Brahma begins. This is the unlimited night when there is the darkness of ignorance. In the golden age, there is light. It is not a question of that night. They celebrate the birth of Krishna in the night. That is limited, whereas this is unlimited. The Father says: There is no date or time for when I come. Krishna and Rama etc. have a date and time for when they come. There are just two main ones. Now the festival of the birth of Krishna is coming and you have to explain to them that Krishna was a small child. The night and day of Brahma is remembered. Krishna exists in the day of Brahma and Brahma exists in the night of Brahma. Brahma is the one who later becomes Krishna. It cannot be said: The night of Krishna and the day of Krishna. They believe that Krishna is God and that he is present everywhere, so you have to explain to them about this: Your celebration is the birth of Shiva or it can also be called the night of Shiva (Shivratri). It is accurate to use the term Shiv Jayanti; this too has to be explained. He doesn’t enter a womb. He enters an ordinary body. There are the eight generations of Krishna. In his childhood, he is called Mohan (the one who attracts others) or Krishna. Just as there is the Prince of Wales, in the same way, there is the first throne of Indraprasth and he is the Prince of Indraprasth. Then, from a prince, he becomes a king. The name Krishna is not used; he is remembered as an emperor. Shri Lakshmi and Shri Narayan are known as the emperor and empress. The word ‘king’ is used in English. In reality it should be emperor and empress. It is not that Narayan gave knowledge. When Krishna marries, he becomes Shri Narayan. The name of Shiva, the Ocean of Knowledge, doesn’t change. He has only one name. His chariot is big. He begins to give knowledge as soon as He comes. This Brahma didn’t know anything. It is understood that Shiva has entered this one and is granting visions and giving knowledge. The significance of the visions and the knowledge was not understood initially. Baba shares his experience. In the beginning, when he went to Benaras, he used to draw circles etc. on a wall, but didn’t understand what they were. It was as if this one had become like a baby; he had taken a new birth. Some say: Baba, I am a child of eight months or ten months. I too had become like a child. Initially, I did not understand anything. The aspects of knowledge were something else. I used to sit and write all sorts of things. Now, many years have passed while studying all of these things. I can now understand the things that the Father is teaching. You children have to explain about the festival of Krishna Jayanti. The pictures are absolutely accurate. There is also the picture of Brahma in the picture of the tree. It is this one who eats the butter; it is the butter of the sovereignty of the world. Krishna comes with his reward of the golden age. Shri Krishna is the first prince of the golden age and his children will also become princes. That is his reward which he didn't have in the iron age. So, who created this reward of the sun dynasty? It has been remembered that when the Sun of Knowledge rises, the darkness of ignorance is dispelled. Shiv Baba is the Ocean of Knowledge. He has come and is establishing heaven. You have to explain the contrast. How could Krishna have spoken the Gita? He was a small child; he entered a womb. It has been shown that Kans and Jarasandha etc. existed at the same time as him. In fact, devils cannot exist there. They show a war between devils and deities. Surely, devils must have existed at the end of the iron age and deities in the beginning of the golden age. There was no war between the two. There is definitely the Mahabharat War, but deities cannot exist here at this time. It is devils that fight with devils. The kingdom of the Muslims has also been shown. There are definitely the Yadavas, the Kauravas and the Pandavas. The Pandavas are non-violent ones with the power of yoga. Rivers of blood continue to flow here because there is a great deal of enmity. Rivers of blood flowed very forcefully at the time of partition. It was a war between brother and brother. They are brothers after all. They are the ones who battle; how else would there be the river of blood? They kill one another. They use the sword and then the river of blood flows. This is the period of the confluence. After the rivers of blood, rivers of ghee will flow. Krishna is a young prince and yet they have defamed him. He cannot be called the Ocean of Knowledge. The praise of the deities has been sung as: Those who are completely virtuous, full of all divine qualities, the ones who follow the highest code of conduct. This praise cannot be given to a child. The praise is always given to the kings and queens. They have shown Lakshmi and Narayan in the golden age, whereas Krishna has been shown in the copper age. This is such a huge mistake! No one can even tell you anything of Lakshmi and Narayan’s childhood, although they do mention a little about Rama and Sita. They also relate wrong things about Krishna. At least they should tell a story that is correct! The praise of Lakshmi and Narayan is: Completely virtuous, those who follow the highest code of conduct and the highest religion of non-violence. Achcha, who gave them the kingdom? People become confused when reference is made to human beings. By hearing the names of Lakshmi and Narayan, your intellects are drawn to the golden age. This is the story of changing from an ordinary man into Narayan. It is not the story of becoming Krishna. This is called the story of becoming true Narayan. It is not called the story of becoming the true Krishna. The true Baba, the Ocean of Knowledge, tells you this story. It is a story of the beginning, the middle and the end of the whole world. The story of Shri Lakshmi and Narayan is also included in it. The story of their 84 births is shown. The boat goes across by hearing the story of Shri Narayan. The Father sits here and tells you children the true story of changing from an ordinary man into Narayan. Shri Narayan is an adult. Who was he before his marriage? Were they called Lakshmi and Narayan or were they called something else? They are Radhe and Krishna and their names are changed on their marriage to Lakshmi and Narayan. Baba gives you essays to write about this so you have to churn the ocean of knowledge. This is the foremost mistake. You understand that it is now the iron age. There are the Yadavas, the Kauravas and the Pandavas. It is now the period of the iron age. The golden age will definitely come after the iron age. The Father says: I have come here as your Guide to liberate you from the claws of Ravan and to take you back. I will only take souls back. It has been remembered that souls and the Supreme Soul were separated for a long period of time. It was not that Shri Krishna was separated for a long period of time. This praise is of that incorporeal One: A beautiful meeting takes place when you find the Satguru, the Agent. Here, all are gurus. It has been remembered that the Satguru, the Agent, is found. You find the true Supreme Father, the Supreme Soul, in the form of an agent. A deal is made through an agent. This is also an engagement. Souls are separate from the Supreme Soul. The Supreme Soul is incorporeal. He comes and enters this one and enables you to become engaged to Him. He Himself becomes the Agent. He says: Remember Me, the Supreme Father, the Supreme Soul. He sits in this body and says: Constantly remember Me alone. I will liberate you from Maya, Ravan and take you back with Me. I will give you the kingdom and then go and sit in the land of nirvana. Krishna cannot say this. Here, it is souls and the Supreme Soul. Krishna is a small child. There are many things that have to be explained. Therefore, Baba has explained how He entered this one. I then began to understand that I am to become a king of kings. I had a vision of Vishnu and I experienced a great deal of happiness in my heart. Then I had a vision of destruction. However, I didn’t understand that much. It is now that I understand that Baba gave me a vision of how I will change from an ordinary man into Narayan, but I didn’t have that much understanding then. Similarly, Baba told you last night: I don’t know what happens when I forget to remember Shiv Baba. It is not that when Baba enters I think that Baba has come and there is then remembrance, and that when Baba leaves I forget to remember Him. When points of knowledge are being spoken, I feel that the unlimited Father comes and speaks these aspects. However, I myself forget Him. Is it that Baba comes because of my remembrance? Can it be said that I remember Baba again and again? It is good that He comes in this one, because everyone can experience benefit. Remembrance is the main thing. Whether the Father comes or not, it is essential to remember Him. Baba has explained that it is after the birth of the Gita that there is the birth of Krishna. First there is Shiv Jayanti, then the birth of the Gita and then the birth of Krishna. Shiva is mature, and so He speaks the Gita as soon as He comes. He is not young. You have to churn the ocean of knowledge about how you can explain these things. First think: Who is the One called Shiva? Who is the One whose night is celebrated? The golden age is the kingdom of Shri Krishna. It is only the Father who can give you knowledge for changing from an ordinary man into Narayan. He is knowledge-full. No one else can be called knowledge-full. God is knowledge-full, the Creator, the Seed. He is the One who gives the knowledge of the drama. No one knows when the drama begins or when it ends. No one can explain how the history and geography of the world repeat from the beginning of the golden age to the end of the iron age. Only those who are trikaldarshi can give this knowledge. No one except the One is trikaldarshi. Only He is the One who makes you trikaldarshi. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
1. Become master knowledge-full and trikaldarshi and clarify the great difference between Shri Krishna and God Shiva. Do the service of removing human beings from immense darkness.
2. Churn the topics that Baba gives you to write essays on and think about how you can explain to others.
 
Blessing:May you a great donor who donates happiness while constantly remaining happy by being filled with the treasure of happiness.
 
At the confluence age, BapDada has given you the greatest treasure of happiness. Every day at amrit vela, think of a point of happiness and maintain that happiness throughout the day. While staying in happiness in this way, continue to donate happiness to others. This is the greatest donation because while everyone in the world has all facilities, they do not have true, imperishable happiness inside. You each have a treasure store of happiness and so you have to continue to donate; this is the greatest gift of all.
 

Slogan:The supreme task of great souls is to uplift others, to have mercy and to forgive.

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