Published by – DILLIP KUMAR BARIK on behalf of Dillip Tiens
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - BK Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta for OCTOBER 2017 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali Dtd 1st Oct- 2017 )
Hinglish Summary

01/10/17  MADHUBAN , AVYAKT – BAPDADA – OMSHANTI ( 15-01-83 )

Headline 1 – Sahaj Yogi Aur Prayogi ki vyakhya
Headline -2 Sangam par baba aur Brahman sada sath sath.
Vardan – Sarv khajano ki vidhi purvak jama kar sampoornta ki siddhi prapt karnewale sidhhi swaroop BHav.
Slogan – Parmatam pyar ka anubhav hai toh koi bhi rukavat rok ni sakti.
 

Hindi Version in Details - 01/10/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 15-01-83

"सहजयोगी और प्रयोगी की व्याख्या"
 
आज बापदादा अपने सहयोगी भुजाओं को देख रहे हैं। कैसे मेरी सहयोगी भुजायें श्रेष्ठ कार्य को सफल बना रही हैं। हर भुजा के दिव्य अलौकिक कार्य की रफ्तार को देख बापदादा हर्षित हो रूहरिहान कर रहे थे। बापदादा देखते रहते हैं कि कोई-कोई भुजायें सदा अथक और एक ही श्रेष्ठ उमंग-उत्साह और तीव्रगति से सहयोगी हैं और कोई-कोई कार्य करते रहते लेकिन बीच-बीच में उमंग-उत्साह की तीव्रगति में अन्तर पड़ जाता है। लेकिन सदा अथक तीव्रगति वाली भुजाओं के उमंग-उत्साह को देखते-देखते स्वयं भी फिर से तीव्रगति से कार्य करने लग पड़ते हैं। एक दो के सहयोग से गति को तीव्र बनाते चल रहे हैं।
बापदादा आज तीन प्रकार के बच्चे देख रहे थे। एक सदा सहज योगी। दूसरे हर विधि को बार-बार प्रयोग करने वाले प्रयोगी। तीसरे सहयोगी। वैसें हैं तीनों ही योगी लेकिन भिन्न-भिन्न स्टेज के हैं। सहजयोगी, समीप सम्बन्ध और सर्व प्राप्ति के कारण सहज योग का सदा स्वत: अनुभव करता है। सदा समर्थ स्वरूप होने के कारण इसी नशे में सदा अनुभव करता कि मैं हूँ ही बाप का। याद दिलाना नहीं पड़ता स्वयं को मैं आत्मा हूँ, मैं बाप का बच्चा हूँ। 'मैं हूँ ही' सदा अपने को इस अनुभव के नशे में प्राप्ति स्वरूप नैचुरल निश्चय करता है। सहजयोगी को सर्व सिद्धियाँ स्वत: ही अनुभव होती हैं इसलिए सहजयोगी सदा ही श्रेष्ठ उमंग-उत्साह खुशी में एकरस रहता है। सहजयोगी सर्व प्राप्तियों के अधिकारी स्वरूप में सदा शक्तिशाली स्थिति में स्थित रहते हैं।
प्रयोग करने वाले प्रयोगी सदा हर स्वरूप के, हर प्वाइंट के, हर प्राप्ति स्वरूप के प्रयोग करते हुए उस स्थिति को अनुभव करते हैं। लेकिन कभी सफलता का अनुभव करते, कभी मेहनत अनुभव करते। लेकिन प्रयोगी होने के कारण, बुद्धि अभ्यास की प्रयोगशाला में बिजी रहने के कारण 75 परसेन्ट माया से सेफ रहते हैं। कारण? प्रयोगी आत्मा को शौक रहता है कि नये ते नये भिन्न-भिन्न अनुभव करके देखें। इसी शौक में लगे रहने के कारण माया से प्रयोगशाला में सेफ रहते हैं, लेकिन एकरस नहीं होते। कभी अनुभव होने के कारण बहुत उमंग-उत्साह में झूमते और कभी विधि द्वारा सिद्धि की प्राप्ति कम होने के कारण उमंग-उत्साह में फ़र्क पड़ जाता है। उमंग-उत्साह कम होने के कारण मेहनत अनुभव होती है इसलिए कभी सहजयोगी, कभी मेहनत वाले योगी। 'हूँ ही' के बजाय 'हूँ हूँ' 'आत्मा हूँ', 'बच्चा हूँ', 'मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ' - इस स्मृति द्वारा सिद्धि को पाने का बार-बार प्रयत्न करना पड़ता है इसलिए कभी तो इस स्टेज पर स्थित होते जो सोचा और अनुभव हुआ। कभी बार-बार सोचने द्वारा स्वरूप की अनुभूति करते हैं। इसको कहा जाता है - प्रयोगी आत्मा। अधिकार का स्वरूप है सहजयोगी। बार-बार अध्ययन करने का स्वरूप है प्रयोगी आत्मा। तो आज देख रहे थे - सहज योगी कौन और प्रयोगी कौन हैं? प्रयोगी भी कभी-कभी सहजयोगी बन जाते हैं लेकिन सदा नहीं। जिस समय जो पोजीशन होती है, उसी प्रमाण स्थूल चेहरे के पोज़ भी बदलते हैं। मन की पोजीशन को भी देखते हैं और पोज को भी देखते हैं। सारे दिन में कितनी पोज़ बदलते हो। अपने भिन्न-भिन्न पोज़ को जानते हो? स्वयं को साक्षी होकर देखते हो? बापदादा सदा यह बेहद का खेल जब चाहे तब देखते रहते हैं।
जैसे यहाँ लौकिक दुनिया में एक के ही भिन्न-भिन्न पोज़ हंसी के खेल में स्वयं ही देखते हैं। विदेश में यह खेल होता है? यहाँ प्रैक्टिकल में ऐसा खेल तो नहीं करते हो ना। यहाँ भी कभी बोझ के कारण मोटे बन जाते हैं और कभी फिर बहुत सोचने के संस्कार के कारण अन्दाज से भी लम्बे हो जाते हैं और कभी फिर दिलशिकस्त होने के कारण अपने को बहुत छोटा देखते हैं। कभी छोटे बन जाते, कभी मोटे बन जाते, कभी लम्बे बन जाते हैं। तो ऐसा खेल अच्छा लगता है?
सभी डबल विदेशी सहजयोगी हो? आज के दिन का सहज योगी का चार्ट रहा? सिर्फ प्रयोग करने वाले प्रयोगी तो नहीं हो ना। डबल विदेशी मधुबन से सदाकाल के लिए सहजयोगी रहने का अनुभव लेकर जा रहे हो? अच्छा - सहयोगी भी योगी हैं इसका फिर सुनायेंगे।
सभी टीचर्स नीचे हाल में मुरली सुन रही हैं
बापदादा के साथ निमित्त सेवाधारी कहो, निमित्त शिक्षक कहो तो आज साथियों का ग्रुप भी आया हुआ है ना। छोटे तो और ही अति प्रिय होते हैं। नीचे होते भी सब ऊपर ही बैठे हैं। बापदादा छोटे वा बड़े लेकिन हिम्मत रखने वाले सेवा के क्षेत्र में स्वयं को सदा बिजी रखने वाले सेवाधारियों को बहुत-बहुत यादप्यार दे रहे हैं इसलिए त्यागी बन अनेकों के भाग्य बनाने के निमित्त बनाने वाले सेवाधारियों को बापदादा त्याग की विशेष आत्मायें देख रहे हैं। ऐसी विशेष आत्माओं को विशेष रूप से बधाई के साथ-साथ यादप्यार। डबल कमाल कौन सी है? एक तो बाप को जानने की कमाल की। दूरदेश, धर्म का पर्दा रीति रसम, खान-पान सबकी भिन्नता के पर्दे के बीच रहते हुए भी बाप को जान लिया। इसलिए डबल कमाल। पर्दे के अन्दर छिप गये थे। सेवा के लिए अब जन्म लिया है। भूल नहीं की लेकिन ड्रामा अनुसार सेवा के निमित्त चारों ओर बिखर गये थे। नहीं तो इतनी विदेशों में सेवा कैसे होती। सिर्फ सेवा के कारण अपना थोड़े समय का नाम मात्र हिसाब-किताब जोड़ा, इसलिए डबल कमाल दिखाने वाले सदा बाप के स्नेह के चात्रक, सदा दिल से 'मेरा बाबा' के गीत गाने वाले, 'जाना है, जाना है,' 12 मास इसी धुन में रहने वाले, ऐसे हिम्मत कर बापदादा के मददगार बनने वाले बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
सेवाधारी भाई-बहनों से:- महायज्ञ की महासेवा का प्रसाद खाया? प्रसाद तो कभी भी कम होने वाला नहीं है। ऐसा अविनाशी महाप्रसाद प्राप्त किया? कितना वैरायटी प्रसाद मिला? सदाकाल के लिए खुशी, सदा के लिए नशा, अनुभूति ऐसे सर्व प्रकार का प्रसाद पाया? तो प्रसाद बांटकर खाया जाता है। प्रसाद आंखों के ऊपर, मस्तक के ऊपर रखकर खाते हैं। तो यह प्रसाद ऑखों मे समा जाए। मस्तक में स्मृति स्वरूप हो जाए अर्थात् समा जाए। ऐसा प्रसाद इस महायज्ञ में मिला? महाप्रसाद लेने वाले कितने महान भाग्यवान हुए, ऐसा चान्स कितनों को मिलता है? बहुत थोड़ों को, उन थोड़ों में से आप हो। तो महान भाग्यवान हो गये ना। जैसे यहाँ बाप और सेवा इसके सिवाए तीसरा कुछ भी याद नहीं रहा, तो यहाँ का अनुभव सदा कायम रखना। वैसे भी कहाँ जाते हैं तो विशेष वहाँ से कोई कोई यादगार ले जाते हैं, तो मधुबन का विशेष यादगार क्या ले जायेंगे? निरन्तर सर्व प्राप्ति स्वरूप हो रहेंगे। तो वहाँ भी जाकर ऐसे ही रहेंगे या कहेंगे वायुमण्डल ऐसा था, संग ऐसा था। परिवर्तन भूमि से परिवर्तन होकर जाना। कैसा भी वायुमण्डल हो लेकिन आप अपनी शक्ति से परिवर्तन कर लो। इतनी शक्ति है ना। वायुमण्डल का प्रभाव आप पर आवे। सभी सम्पन्न बन करके जाना। अच्छा।
माताओं के साथ - माताओं के लिए तो बहुत खुशी की बात है - क्योंकि बाप आया ही है माताओं के लिए। गऊपाल बनकर गऊ माताओं के लिए आये हैं। इसी का तो यादगार गाया हुआ है। जिसको किसी ने भी योग्य नहीं समझा लेकिन बाप ने योग्य आपको ही समझा - इसी खुशी में सदा उड़ते चलो। कोई दु: की लहर नहीं सकती क्योंकि सुख के सागर के बच्चे बन गये। सुख के सागर में समाने वालों को कभी दु: की लहर नहीं सकती है - ऐसे सुख स्वरूप।
 
 
01/10/17 मधुबन "अव्यक्त-बापदादा" ओम् शान्ति 21-01-83

संगम पर बाप और ब्राह्मण सदा साथ साथ
आज बापदादा अपने राइट हैन्डस से सिर्फ हैन्डशेक करने के लिए आये हैं। तो हैन्डशेक कितने में होती है? सभी ने हैन्डशेक कर ली? फिर भी एक दृढ़ संकल्प कर सच्चे साजन की सजनियाँ तो बन गई हैं। तब ही विश्व की सेवा का कार्य सम्भालने के निमित्त बनी हो? वायदे के पक्के होने के कारण बापदादा को भी वायदा निभाना पड़ा। वायदा तो पूरा हुआ ना। सबसे नजदीक से नजदीक गॉड के फ्रैन्डस कौन हैं? आप सभी गॉड के अति समीप के फ्रैन्डस हो क्योंकि समान कर्तव्य पर हो। जैसे बाप बेहद की सेवा प्रति है वैसे ही आप छोटे बड़े बेहद के सेवाधारी हो। आज विशेष छोटे-छोटे फ्रैन्डस के लिए खास आये हैं क्योंकि हैं छोटे लेकिन जिम्मेदारी तो बड़ी ली है ना इसलिए छोटे फ्रैन्डस ज्यादा प्रिय होते हैं। अभी उल्हना तो नहीं रहा ना। अच्छा। (बहनों ने गीत गाया - जो वायदा किया है, निभाना पड़ेगा)
बापदादा तो सदा ही बच्चों की सेवा में तत्पर ही है। अभी भी साथ हैं और सदा ही साथ हैं। जब हैं ही कम्बाइन्ड तो कम्बाइन्ड को कोई अलग कर सकता है क्या? यह रूहानी युगल स्वरूप कभी भी एक दो से अलग नहीं हो सकते। जैसे ब्रह्मा बाप और दादा कम्बाइन्ड हैं, उन्हों को अलग कर सकते हो? तो फालो फादर करने वाले श्रेष्ठ ब्राहमण और बाप कम्बाइन्ड हैं। यह आना और जाना तो ड्रामा में ड्रामा है। वैसे अनादि ड्रामा अनुसार अनादि कम्बाइन्ड स्वरूप संगमयुग पर बन ही गये हो। जब तक संगमयुग है तब तक बाप और श्रेष्ठ आत्मायें सदा साथ हैं इसलिए खेल में खेल करके गीत भले गाओ, नाचो गाओ, हंसो-बहलो लेकिन कम्बाइन्ड रूप को नहीं भूलना। बापदादा तो मास्टर शिक्षक को बहुत श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं, वैसे तो सर्व ब्राह्मण श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हैं लेकिन जो मास्टर शिक्षक बन अपने दिल जान, सिक प्रेम से दिन रात सच्चे सेवक बन सेवा करते वह विशेष में विशेष और विशेष में भी विशेष हैं। इतना अपना स्वमान सदा स्मृति में रखते हुए संकल्प, बोल और कर्म में आओ। सदा यही याद रखना कि हम नयनों के नूर हैं। मस्तक की मणि हैं, गले के विजय माला के मणके हैं और बाप के होठों की मुस्कान हम हैं। ऐसे सर्व चारों ओर से आये हुए छोटे-छोटे और बड़े प्रिय फ्रैन्डस को वा जो भी सभी बच्चे आये हैं, वह सभी अपने-अपने नाम से अपनी याद स्वीकार करना। चाहे नीचे बैठे हैं, चाहे ऊपर बैठे हैं, नीचे वाले भी नयनों में और ऊपर वाले नयनों के सम्मुख हैं इसलिए अभी वायदा निभाया, अभी सभी फ्रैन्डस से, सर्व साथियों से यादप्यार और नमस्ते। थोड़ा-थोड़ा मिलना अच्छा है। आप लोगों ने इतना ही वायादा किया था। (गीत - अभी जाओ छोड़ के, कि दिल अभी भरा नहीं.....) दिल भरने वाली है कभी? यह तो जितना मिलेंगे उतना दिल भरेगी। अच्छा - (दीदी जी को देखते हुए) - ठीक है ना। दीदी से वायदा किया हुआ है, साकार का। तो यह भी निभाना पड़ता है। दिल भर जाए तो खाली करना पड़ेगा, इसलिए भरता ही रहे तो ठीक है।
(दीदी जी से) इनका संकल्प ज्यादा रहा था। आप सब छोटी-छोटी बहनों से दादी-दीदी का ज्यादा प्यार रहता है। दीदी-दादी जो निमित्त हैं, उन्हों का आप लोगों से विशेष प्यार है। अच्छा किया, बाप दादा भी आफरीन देते हैं। जिस प्यार से आप लोगों को यह चांस मिला है, उस प्यार से मिलन भी हुआ। नियम प्रमाण आना यह कोई बड़ी बात नहीं, यह भी एक विशेष स्नेह का, विशेष प्यार का रिटर्न मिल रहा है इसलिए जिस उमंग से आप लोग आये, ड्रामा में आप सबका बहुत ही अच्छा गोल्डन चांस रहा। तो सब गोल्डन चान्सलर हो गये ना। वह सिर्फ चांसलर होते हैं, आप गोल्डन चांसलर हो। अच्छा।
 
वरदान:
सर्व खजानों को विधिपूर्वक जमा कर सम्पूर्णता की सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव!
 
63 जन्म सभी खजाने व्यर्थ गंवाये, अब संगमयुग पर सर्व खजानों को यथार्थ विधि पूर्वक जमा करो, जमा करने की विधि है - जो भी खजाने हैं उन्हें स्व प्रति और औरों के प्रति शुभ वृत्ति से कार्य में लगाओ। सिर्फ बुद्धि के लॉकर में जमा नहीं करो लेकिन खजानों को कार्य में लगाओ। उन्हें स्वयं प्रति भी यूज करो, नहीं तो लूज़ हो जायेंगे इसलिए यथार्थ विधि से जमा करो तो सम्पूर्णता की सिद्धि प्राप्त कर सिद्धि स्वरूप बन जायेंगे।
 
स्लोगन:
परमात्म प्यार का अनुभव है तो कोई भी रूकावट रोक नहीं सकती।
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