Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Nov - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Nov-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 1st Nov 2018 )
01-11-2018       प्रात:मुरली       ओम्  शान्ति     "बापदादा"     मधुबन

"मीठे बच्चे - भारत जो हीरे जैसा था, पतित बनने से कंगाल बना है, इसे फिर पावन हीरे जैसा बनाना है, मीठे दैवी झाड़ का सैपलिंग लगाना है।''

 

प्रश्नः-बाप का कर्तव्य कौन-सा है, जिसमें बच्चों को मददगार बनना है?

 

उत्तर:-सारे विश्व पर एक डीटी गवर्मेन्ट स्थापन करना, अनेक धर्मों का विनाश और एक सत धर्म की स्थापना करना - यही बाप का कर्तव्य है। तुम बच्चों को इस कार्य में मददगार बनना है। ऊंच मर्तबा लेने का पुरुषार्थ करना है, ऐसे नहीं सोचना है कि हम स्वर्ग में तो जायेंगे ही।

 

गीत:-तुम्हीं हो माता, पिता........ 

 

ओम् शान्ति।

 

दुनिया में मनुष्य गाते हैं तुम मात-पिता...... परन्तु किसके लिए गाते हैं, यह नहीं जानते। यह भी वन्डरफुल बात है। सिर्फ कहने मात्र कह देते हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में है कि बरोबर यह मात-पिता कौन हैं। यह परमधाम का रहवासी है। परमधाम एक ही है, सतयुग को परमधाम नहीं कहा जाता। सतयुग तो यहाँ होता है ना, परमधाम में रहने वाले तो हम सब हैं। तुम जानते हो हम आत्मायें परमधाम, निर्वाण देश से आती हैं इस साकार सृष्टि में। स्वर्ग कोई ऊपर नहीं है। आते तो तुम भी परमधाम से हो। तुम बच्चे अब जानते हो हम आत्मायें शरीर द्वारा पार्ट बजा रहे हैं। कितने जन्म लेते हैं, कैसे पार्ट बजाते हैं, यह अब जानते हैं। वह है दूर देश का रहने वाला, आया देश पराये। अब पराया देश क्यों कहा जाता है? तुम भारत में आते हो ना। परन्तु पहले-पहले तुम बाप के स्थापन किये हुए स्वर्ग में आते हो फिर वह नर्क रावण राज्य हो जाता है, अनेक धर्म, अनेक गवर्मेन्ट हो जाती हैं। फिर बाप आकर एक राज्य बनाते हैं। अभी तो बहुत गवर्मेन्ट हैं। कहते रहते हैं सब मिलकर एक हों। अब सब मिलकर एक हों-यह कैसे हो सकता? 5 हजार वर्ष पहले भारत में एक गवर्मेन्ट थी, वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी लक्ष्मी-नारायण थे। विश्व में राज्य करने वाली और कोई अथॉरिटी है नहीं। सब धर्म एक धर्म में नहीं सकते। स्वर्ग में एक ही गवर्मेन्ट थी इसलिए कहते हैं कि सब एक हो जाएं। अब बाप कहते हैं हम और सबका विनाश कराए एक आदि सनातन डीटी गवर्मेन्ट स्थापन कर रहे हैं। तुम भी ऐसे कहते हो ना-सर्वशक्तिमान् वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी के डायरेक्शन अनुसार हम भारत में एक डीटी गवर्मेन्ट का राज्य स्थापन कर रहे हैं। डीटी गवर्मेन्ट के सिवाए और कोई एक गवर्मेन्ट होती नहीं। 5 हजार वर्ष पहले भारत में अथवा सारे विश्व में एक डीटी गवर्मेन्ट थी, अब बाप आया है विश्व की डीटी गवर्मेन्ट फिर से स्थापन करने। हम बच्चे उनके मददगार हैं। यह राज़ गीता में है। यह है रुद्र ज्ञान यज्ञ। रुद्र निराकार को कहा जाता है, कृष्ण को नहीं कहेंगे। रुद्र नाम ही है निराकार का। बहुत नाम सुन मनुष्य समझते हैं रुद्र अलग है और सोमनाथ अलग है। तो अब एक डीटी गवर्मेन्ट स्थापन होनी है। सिर्फ इसमें खुश नहीं होना है कि स्वर्ग में तो जायेंगे ही। देखो नर्क में मर्तबे के लिए कितना माथा मारते हैं। एक तो मर्तबा मिलता दूसरा फिर कमाते बहुत हैं। भक्तों के लिए तो एक भगवान् होना चाहिए, नहीं तो भटकेंगे। यहाँ तो सबको भगवान् कह देते हैं, अनेकों को अवतार मानते हैं। बाप कहते हैं मैं तो एक ही बार आता हूँ। गाते भी हैं पतित-पावन आओ। सारी दुनिया पतित है, उसमें भी भारत ज्यादा पतित है। भारत ही कंगाल है, भारत ही हीरे जैसा था। तुमको नई दुनिया में राजाई मिलनी है। तो बाप समझाते हैं कृष्ण को भगवान् कह नहीं सकते। भगवान् तो एक निराकार परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है, जो जन्म-मरण रहित है। मनुष्य तो फिर कह देते हैं वह भी भगवान्, हम भी भगवान्, बस यहाँ आये हैं मौज करने। बड़े मस्त रहते हैं। बस, जिधर देखता हूँ तू ही तू है, तेरी ही रंगत है। हम भी तुम, तुम भी हम, बस डांस करते रहते हैं। हजारों उनके फालोअर्स हैं। बाप कहते हैं भक्त, भगवान् की बन्दगी करते रहते हैं। भक्ति में भावना से पूजा करते हैं। बाबा कहते मैं उन्हें साक्षात्कार करा देता हूँ। परन्तु वो मेरे से मिलते नहीं, मैं तो स्वर्ग का रचयिता हूँ। ऐसे नहीं कि उन्हों को स्वर्ग का वर्सा देता हूँ। भगवान् तो है ही एक। बाप कहते हैं सब पुनर्जन्म लेते-लेते अबला हो गये हैं। अब मैं परमधाम से आया हूँ। मैं जो स्वर्ग स्थापन करता हूँ उसमें फिर मैं नहीं आता। बहुत मनुष्य कहते हम निष्काम सेवा करते हैं। परन्तु चाहें चाहें फल तो जरूर मिलता है। दान करते हैं तो फल जरूर मिलेगा ना। तुम साहूकार बने हो, क्योंकि पास्ट में दान-पुण्य किया है, अब तुम पुरुषार्थ करते हो, जितना पुरुषार्थ करेंगे उतना भविष्य में ऊंच पद पायेंगे। अभी तुम्हें अच्छे कर्म सिखलाये जाते हैं - भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए। मनुष्य करते हैं दूसरे जन्म के लिए। फिर कहेंगे पास्ट कर्मों का फल है। सतयुग-त्रेता में ऐसे नहीं कहेंगे। कर्मों का फल 21 जन्मों के लिए अभी तैयार कराया जाता है। संगमयुग के पुरुषार्थ की प्रालब्ध 21 पीढ़ी चलती है। सन्यासी ऐसे कह सकें कि हम तुम्हारी ऐसी प्रालब्ध बनाते हैं जो तुम 21 जन्म सुखी रहेंगे। अच्छा वा बुरा फल तो भगवान् को देना है ना। तो एक ही भूल हुई है जो कल्प की आयु लम्बी कर दी है। बहुत हैं जो कहते हैं 5 हजार वर्ष का कल्प है। तुम्हारे पास मुसलमान आये थे, बोले कल्प की आयु बरोबर 5 हजार वर्ष है। यहाँ की बातें सुनी होंगी। चित्र तो सबके पास जाते हैं, सो भी सब थोड़ेही मानेंगे। तुम जानते हो यह रुद्र ज्ञान यज्ञ है, जिससे यह विनाश ज्वाला निकली है। इसमें सहज राजयोग सिखलाया जाता है। कृष्ण की आत्मा अब अन्तिम जन्म में शिव (रुद्र) से वर्सा ले रही है, यहाँ बैठी है। बाबा अलग और यह अलग है। ब्राह्मण खिलाते हैं तो आत्मा को बुलाते हैं ना। फिर वह आत्मा ब्राह्मण में आकर बोलती है। तीर्थों पर भी खास जाकर बुलाते हैं। अब आत्मा को कितना समय हो गया फिर वह आत्मा कैसे आती है, क्या होता है? बोलती है मैं बहुत सुखी हूँ, फलाने घर जन्म लिया है। यह क्या होता है? क्या आत्मा निकलकर आई? बाप समझाते हैं मैं भावना का भाड़ा देता हूँ और वे खुश हो जाते हैं। यह भी ड्रामा में राज़ है। बोलते हैं तो पार्ट चलता है। कोई ने नहीं बोला तो नूंध नहीं है। बाप की याद में रहो तो विकर्म विनाश होंगे, अन्य कोई उपाय नहीं। हर एक को सतो-रजो-तमो में आना ही है। बाप कहते हैं तुमको नई दुनिया का मालिक बनाता हूँ। फिर से मैं परमधाम से पुरानी दुनिया, पुराने तन में आता हूँ। यह पूज्य था, पुजारी बना फिर पूज्य बनता है। तत त्वम्। तुमको भी बनाता हूँ। पहला नम्बर पुरुषार्थी यह है। तब तो मातेश्वरी, पिताश्री कहते हो। बाप भी कहते हैं तुम तख्तनशीन होने का पुरुषार्थ करो। यह जगत अम्बा सबकी कामना पूर्ण करती है। माता है तो पिता भी होगा और बच्चे भी होंगे। तुम सबको रास्ता बताते हो, सब कामनायें तुम्हारी पूरी होती है सतयुग में। बाबा कहते हैं घर में रहते भी यदि पूरा योग लगायें तो भी यहाँ वालों से ऊंच पद पा सकते हैं।

 

बांधेलियां तो बहुत हैं। रात को भी होम मिनिस्टर को समझा रहे थे ना कि इसके लिए कोई उपाय निकलना चाहिए जो इन अबलाओं पर अत्याचार हों। परन्तु जब दो-चार बार सुनें तब ख्याल में आये। तकदीर में होगा तो मानेंगे। पेंचीला ज्ञान है ना। सिक्ख धर्म वालों को भी पता पड़े तो समझें - मनुष्य से देवता किये..... किसने? एकोअंकार सतनाम, यह उनकी महिमा है ना। अकाल मूर्त। ब्रह्म तत्व उनका तख्त है। कहते हैं ना सिंहासन छोड़कर आओ। बाप बैठ समझाते हैं, सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, ऐसे नहीं सबकी दिल को जानते हैं। भगवान् को याद करते हैं कि सद्गति में ले जाओ। बाबा कहते हैं मैं वर्ल्ड आलमाइटी डीटी गवर्मेन्ट की स्थापना कर रहा हूँ। यह जो पार्टीशन हुए हैं, यह सब निकल जायेंगे। हमारे देवी-देवता धर्म के जो हैं उनका ही कलम लगाना है। झाड़ तो बहुत बड़ा है। उनमें मीठे ते मीठे हैं देवी-देवतायें। उनका फिर सैपलिंग लगाना है। अन्य धर्म वाले जो आते हैं वह कोई सैपलिंग थोड़ेही लगाते हैं। अच्छा!

 

आज सतगुरूवार है। बाप कहते हैं - बच्चे, श्रीमत पर चलकर पवित्र बनो तो साथ ले चलूँ। फिर चाहे मखमल की रानी बनो, चाहे रेशम की रानी बनो। वर्सा लेना है तो मेरी मत पर चलो। याद से ही तुम अपवित्र से पवित्र बन जायेंगे। अच्छा, बापदादा और मीठी मम्मा के सिकीलधे बच्चों को याद-प्यार और सलाम-मालेकम्।

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-

 

1) संगमयुग के पुरूषार्थ की प्रालब्ध 21 जन्म चलनी है-यह बात स्मृति में रख श्रेष्ठ कर्म करने हैं। ज्ञान दान से अपनी प्रालब्ध बनानी है।

 

2) मीठे दैवी झाड़ का सैपलिंग लग रहा है इसलिए अति मीठा बनना है।

 

वरदान:-कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन कर सेवा के निमित्त बनने वाले भाग्यवान भव

तन का हिसाब-किताब कभी प्राप्ति वा पुरुषार्थ के मार्ग में विघ्न अनुभव हो। तन कभी भी सेवा से वंचित होने नहीं दे। भाग्यवान आत्मा कर्मभोग के समय भी किसी किसी प्रकार से सेवा के निमित्त बन जाती है। कर्मभोग चाहे छोटा हो या बड़ा, उसकी कहानी का विस्तार नहीं करो, उसे वर्णन करना माना समय और शक्ति व्यर्थ गंवाना। योगी जीवन माना कर्मभोग को कर्मयोग में परिवर्तन कर देना-यही है भाग्यवान की निशानी।

 

स्लोगन:-दृष्टि में रहम और शुभ भावना हो तो अभिमान अपमान की दृष्टि समाप्त हो जायेगी।

 

मातेश्वरी जी के मधुर महावाक्य - आत्मा परमात्मा में अन्तर, भेद

आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहुकाल सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरु मिला दलाल... जब अपन यह शब्द कहते हैं तो उसका यथार्थ अर्थ है कि आत्मा, परमात्मा से बहुतकाल से बिछुड़ गई है। बहुतकाल का अर्थ है बहुत समय से आत्मा परमात्मा से बिछुड़ गई है, तो यह शब्द साबित (सिद्ध) करते हैं कि आत्मा और परमात्मा अलग-अलग दो चीज़ हैं, दोनों में आंतरिक भेद है परन्तु दुनियावी मनुष्यों को पहचान होने के कारण वो इस शब्द का अर्थ ऐसा ही निकालते हैं कि मैं आत्मा ही परमात्मा हूँ, परन्तु आत्मा के ऊपर माया का आवरण चढ़ा हुआ होने के कारण अपने असली स्वरूप को भूल गये हैं, जब वो माया का आवरण उतर जायेगा फिर आत्मा वही परमात्मा है। तो वो आत्मा को अलग इस मतलब से कहते हैं और दूसरे लोग फिर इस मतलब से कहते हैं कि मैं आत्मा सो परमात्मा हूँ परन्तु आत्मा अपने आपको भूलने के कारण दु:खी बन पड़ी है। जब आत्मा फिर अपने आपको पहचान कर शुद्ध बनती है तो फिर आत्मा परमात्मा में मिल एक ही हो जायेंगे। तो वो आत्मा को अलग इस अर्थ से कहते हैं परन्तु अपन तो जानते हैं कि आत्मा परमात्मा दोनों अलग चीज़ है। आत्मा, परमात्मा हो सकती और आत्मा परमात्मा में मिल एक हो सकती है और फिर परमात्मा के ऊपर आवरण चढ़ सकता है।

 

01/11/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban

Sweet children, the Bharat that was like a diamond has become poverty-stricken by becoming impure. You now have to make it as pure as a diamond once again. You have to plant the sapling of the sweet deity tree.

 

Question:What are the Father's tasks in which children have to become His helpers?

Answer:To establish the deity government over the whole world, to destroy the innumerable religions and establish the one true religion are the Father's tasks. You children have to become helpers in these tasks. You have to make effort to claim a high status. Don't think that you will go to heaven anyway.
Song:You are the Mother and You are the Father.  - Om Shanti
People of the world sing: “You are the Mother and You are the Father,” but they don't know to whom they are referring. This is also something wonderful. They simply say this for the sake of saying it. It is truly in your intellects who this Mother and Father is. He is the Resident of the supreme abode. There is only one supreme abode. The golden age cannot be called the supreme abode. The golden age is here whereas we are all the ones who reside in the supreme abode. You souls know that you came from the supreme abode, the land of nirvana, to this corporeal world. Heaven is not up above. You come from the supreme abode. You children now know that you souls are playing your parts through your bodies. You now know how many births you take and how you play your parts. That One is the Resident of the faraway land and has come to this foreign land. Why is this called a foreign land? You come to Bharat, do you not? However, first of all, you go to heaven established by the Father and then that becomes hell, the kingdom of Ravan. There are innumerable religions and innumerable governments. Then the Father comes and creates the one kingdom. Now there are many governments. They all continue to say that all should unite and become one. How could all of them be united and become one? Five thousand years ago there was one government in Bharat. Lakshmi and Narayan were the world almighty authority. There is no other authority that can rule the world. All the religions cannot come into one religion. There was just the one government in heaven and this is why they say that all should become one. The Father says: I now inspire the destruction of the others and I establish the one original eternal deity government. You too say: We are establishing the kingdom of the one deity government in Bharat according to the directions of the World Almighty Authority, the One with all Powers. There cannot be one government anywhere apart from the deity government. Five thousand years ago, there was the one deity government in Bharat, that is, in the whole world. The Father has now come once again to establish the deity government in the world once again. We children are His helpers. This secret is mentioned in the Gita. This is the sacrificial fire of the knowledge of Rudra. The incorporeal One is called Rudra. Krishna cannot be called that. The name “Rudra” is that of the incorporeal One. Hearing many names, people think that Rudra is separate from Somnath. So, the one deity government now has to be established. Don't become happy thinking that you will go to heaven anyway. Look how people beat their heads so much for a status in hell! First, they receive a status and second, they earn a lot of money. There has to be one God for the devotees, otherwise they would be wandering around. Here, they call everyone God. They consider many to be incarnations. The Father says: I only come once. They sing: O Purifier, come! The whole world is impure and, in that, Bharat is the most impure. Bharat is poverty-stricken but Bharat was like a diamond. You are to receive a kingdom in the new world. The Father explains that Krishna cannot be called God. Only the one incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, who is beyond birth and death, can be called God. People say: He is God and I am God. We have come here simply to enjoy ourselves. They remain very intoxicated. “Wherever I look, I only see You. This is all Your wonder! I am You and You are me.” They simply continue to dance and they have thousands of followers. The Father says: Devotees continue to pray to God. On the path of devotion, they worship God with a lot of devotional feeling. Baba says: I grant them visions, but they don't meet Me. I am the Creator of heaven. It isn't that I give them the inheritance of heaven. There is only one God. The Father says: Having taken rebirth, everyone has now become weak. I have now come from the supreme abode. I don't enter the heaven that I establish. Many people say that they do altruistic service, but whether they want it or not, they definitely do receive the fruit of what they do. They make donations and so they definitely receive the fruit of that. You became wealthy because you made donations and performed charity in the past. You are now making effort. The more effort you make, the higher the status you will claim in the future. You are now being taught to perform good actions for your future many births. People do that for their next birth. They also say that that is the fruit of their past actions. You would not say this in the golden and silver ages. The fruit of actions for 21 births is being prepared now. The reward of the efforts of the confluence age continues for 21 generations. Sannyasis cannot say that they are creating such a reward for you that you will remain happy for 21 births. God has to give good or bad fruit. So they have made just the one mistake in which they have lengthened the duration of the cycle. There are many who say that the cycle is 5000 years. A Muslim came to you and said that the duration of the cycle really is 5000 years. He would have heard the things that we speak of here. The pictures go everywhere, but not everyone would believe this. You know that this is the sacrificial fire of the knowledge of Rudra through which the flames of destruction emerged. Easy Raja Yoga is taught here. The Krishna soul is now in his final birth and is receiving his inheritance from Shiva (Rudra) . He is sitting here. Baba is separate from this one. When they feed a brahmin priest and invoke a soul, that soul then enters the body of the brahmin and speaks. People especially go on pilgrimages and invoke souls. That soul has been gone for so long, so how does he come? What happens? The soul says: I am very happy. I have taken birth in such-and-such a home. What happens there? Is it that the soul left that place and came here? The Father explains: I give them the fruit of their devotion and they become happy. This too is a secret in the drama. They speak and so that part continues. If someone doesn’t speak, it is because it is not fixed. Stay in remembrance of the Father and your sins will be absolved. There is no other method. Everyone has to go through the stages of sato, rajo and tamo. The Father says: I make you into the masters of the new world. I have once again come from the supreme abode into the old world and entered an old body. This one was worthy of worship. He became a worshipper and is now becoming worthy of worship again. The same applies to you. I also make you the same. This one is the number one effort -maker. This is why you say, "Mateshwari, PitaShri". The Father also says: Make effort to be seated on the throne. This Jagadamba fulfils everyone's desires. Since there is the mother, there must also be the father and the children too. You show everyone the path. All your desires are fulfilled in the golden age. Baba says: If, while living at home, you have full yoga, you can claim a status higher than that of those who live here. There are many who are in bondage. Last night, Baba explained to the Home Minister that a solution should be found for this so that weak ones are not assaulted. However, they would only think about this when they hear it two or four times. They will accept this if it is in their fortune. This knowledge is very slippery. If those of the Sikh religion were to know this, they would understand the verse “It didn't take long to create deities from human beings.” Who did that? They sing His praise: The Incorporeal is only One, the One whose name is the Truth, the Immortal Image. The brahm element is His throne. They say: Leave Your throne and come here! The Father sits here and explains to you. He knows the beginning, middle and end of the whole world. It isn't that He knows what is in the heart of each one. People remember God for Him to take them into salvation. Baba says: I am establishing the World Almighty Authority Deity Government. All of those partitions that have taken place will be removed. The sapling of those who belong to our deity religion has to be planted. The tree is very big. The sweetest among it are the deities. Their sapling has to be planted.
Those of the other innumerable religions who come do not plant saplings. Achcha.

Today it is the day of the Satguru. The Father says: Children, follow shrimat and become pure and I will take you back with Me. Then, whether you become a velvet queen or a silk queen, if you want to claim the inheritance, follow My directions. It is only by having remembrance that you will become pure from impure. Achcha. Love, remembrance and salutations from BapDada and sweet Mama to the long-lost and now-found children.
Essence for Dharna:
1. The reward of the efforts made at the confluence age is to last for 21 births. Perform elevated deeds while keeping this in your awareness. Create your reward by donating knowledge.
2. The sapling of the sweet deity tree is being planted. Therefore, become extremely sweet.
Blessing:May you become fortunate by transforming any suffering of karma into karma yoga and become an instrument for service.
Do not experience your karmic accounts as an obstacle to your attainment on your path of effort. Do not let your body prevent you from doing service. Fortunate souls become instruments for one or another type of service even at a time of suffering of their karma. Whether the suffering of karma is very little or huge, do not expand its story. To speak about it means to waste your time and energy. A yogi life means to transform any suffering of karma into karma yoga; this is the sign of being fortunate.
Slogan:When you have mercy and good wishes in your vision, then any vision of insult or arrogance will finish.

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