Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 30th Oct 2018 )
30-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - ज्ञान का सुख 21 पीढ़ी चलता है, वह है स्वर्ग का सदा सुख, भक्ति में तीव्र भक्ति से अल्पकाल क्षण भंगुर सुख मिलता है''
 
प्रश्नः-किस श्रीमत पर चलकर तुम बच्चे सद्गति को प्राप्त कर सकते हो?
 
उत्तर:-बाप की तुम्हें श्रीमत है - इस पुरानी दुनिया को भूल एक मुझे याद करो। इसी को ही बलिहार जाना अथवा जीते जी मरना कहा जाता है। इसी श्रीमत से तुम श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनते हो। तुम्हारी सद्गति हो जाती है। साकार मनुष्य, मनुष्य की सद्गति नहीं कर सकते। बाप ही सबका सद्गति दाता है।
 
गीत:-ओम् नमो शिवाए......... 
ओम् शान्ति।
 
बच्चों ने गीत सुना। गाया जाता है ऊंचे ते ऊंचा भगवान्। अब भगवान् का नाम तो मनुष्यमात्र नहीं जानते। भक्त भगवान् को नहीं जानते, जब तक कि भगवान् आकर भक्तों को अपनी पहचान दे। यह तो समझाया गया है - ज्ञान और भक्ति। सतयुग त्रेता है ज्ञान की प्रालब्ध। अभी तुम ज्ञान सागर से ज्ञान पाकर पुरुषार्थ से अपनी सदा सुख की प्रालब्ध बना रहे हो फिर द्वापर-कलियुग में भक्ति होती है। ज्ञान की प्रालब्ध सतयुग-त्रेता तक चलती है। ज्ञान का सुख तो 21 पीढ़ी चलता है। वह हैं स्वर्ग के सदा सुख। नर्क का है अल्पकाल क्षण भंगुर सुख। बच्चों को समझाया जाता है सतयुग-त्रेता ज्ञान मार्ग था, नई दुनिया, नया भारत था। उसको स्वर्ग कहा जाता है। अभी तमोप्रधान भारत नर्क हो गया है। अनेक प्रकार के दु: हैं। स्वर्ग में दु: का नाम-निशान नहीं रहता। गुरू करने की दरकार ही नहीं। भक्तों का उद्धार भगवान् को ही करना है। अभी कलियुग का अन्त है, विनाश सामने खड़ा है। बाप आकर ब्रह्मा द्वारा ज्ञान देकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं और शंकर द्वारा विनाश, विष्णु द्वारा पालना कराते हैं। परमात्मा के कर्तव्य को कोई समझते नहीं। मनुष्य को पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है, पाप परमात्मा, पुण्य परमात्मा नहीं कहा जाता। महात्मा को भी महान् आत्मा कहेंगे, महान् परमात्मा नहीं कहेंगे। आत्मा पवित्र बनती है। बाप ने समझाया है - पहले-पहले मुख्य है देवी देवता धर्म, उस समय सूर्यवंशी ही राज्य करते थे, चन्द्रवंशी नहीं थे, एक धर्म था। भारत में सोने-चांदी के महल थे, हीरे जवाहरों से छतें-दीवारें सब सजी हुई थी। भारत हीरे जैसा था, वही भारत अब कौड़ी मिसल बना है। बाप कहते हैं मैं कल्प के अन्त में, सतयुग आदि के संगम पर आता हूँ। भारत को माताओं द्वारा फिर से स्वर्ग बनाता हूँ। यह है शिव शक्ति, पाण्डव सेना। पाण्डवों की प्रीत एक बाप से है। उन्हों को बाप पढ़ाते हैं। शास्त्र आदि हैं सब भक्ति मार्ग की सामग्री। वह है भक्ति कल्ट। अभी बाप आकर सबको भक्ति का फल ज्ञान देते हैं, जिससे तुम सद्गति में जाते हो। सद्गति दाता सबका बाप एक ही है। बाप को ही ज्ञान सागर कहा जाता है। बाकी मनुष्य, मनुष्य को मुक्ति-जीवनमुक्ति दे नहीं सकते। यह ज्ञान कोई शास्त्रों में नहीं है। ज्ञान सागर एक बाप को ही कहा जाता है, उनसे तुम वर्सा लेते हो फिर सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बन जायेंगे। यह देवताओं की महिमा है। लक्ष्मी-नारायण हैं 16 कला सम्पूर्ण, राम-सीता हैं 14 कला। यह पढ़ाई है। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। सत है ही एक, वही आकर सत समझाते हैं। यह है ही पतित दुनिया। पावन दुनिया में पतित होते ही नहीं, पतित दुनिया में पावन होते नहीं। पावन बनाने वाला एक ही बाप है। आत्मा कहती है शिवाए नम:, आत्मा ने अपने बाप को कहा नमस्ते। अगर कोई कहते शिव मेरे में है तो फिर नमस्कार किसको करते हैं। यह अज्ञान फैला हुआ है। अब तुम बच्चों को बाप त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तुम जानते हो सब आत्मायें जहाँ रहती हैं वह है निर्वाणधाम, स्वीट होम। मुक्ति को तो सभी याद करते हैं, जहाँ हम बाप के साथ रहते हैं। अभी तुम बाप को याद करते हो। सुखधाम में जायेंगे तो बाप को याद नहीं करेंगे। अभी यह है ही दु:खधाम, सभी दुर्गति में हैं। नई दुनिया में भारत नया था, सुखधाम था, सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राज्य था। मनुष्यों को तो यह पता नहीं है कि लक्ष्मी-नारायण और राधे-कृष्ण का क्या कनेक्शन है? वह राजकुमारी, वह राजकुमार अलग-अलग राज्य के हैं। ऐसे नहीं कि दोनों ही आपस में भाई-बहिन हैं। वह अलग अपनी राजधानी में थी, कृष्ण अपनी राजधानी का राजकुमार था। उन्हों का स्वयंवर होता है तो लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। सतयुग में हर चीज सुख देने वाली है, कलियुग में हर चीज दु: देने वाली है। सतयुग में किसी की अकाले मृत्यु नहीं होती। तुम बच्चे जानते हो हम अपने परमपिता परमात्मा बाप से सहज राजयोग सीखते हैं - नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने के लिये। यह स्कूल है। उन सतसंगों आदि में तो कोई एम आब्जेक्ट नहीं होती। वेद-शास्त्र आदि सुनाते रहते हैं। बाप के द्वारा तुम इस मनुष्य सृष्टि चक्र को अब जान गये हो। बाप को ही नॉलेजफुल, ब्लिसफुल, रहमदिल कहा जाता है। गाते हैं - बाबा, आकर रहम करो। हेविनली गॉड फादर ही आकर हेविन स्थापन करते हैं संगम पर।
 
हेविन में बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। बाकी इतने सभी कहाँ जायेंगे? बाप सभी को मुक्तिधाम में ले जाते हैं। स्वर्ग में सिर्फ भारत ही था, फिर भी भारत ही रहेगा। भारत सचखण्ड यहाँ गाया हुआ है। अभी तो भारत कंगाल बन गया है। पैसे-पैसे के लिए भीख मांगते रहते हैं। भारत हीरे जैसा था, अब कौड़ी मिसल है। यह ड्रामा के राज़ को समझना है। तुम रचयिता बाप को और उनकी रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। कांग्रेसी लोग गाते भी हैं वन्दे मातरम्। परन्तु वन्दना पवित्र की ही की जाती है। परमात्मा ही आकर वन्दे मातरम् कहना शुरू करते हैं। शिवबाबा ने ही आकर कहा है - नारी स्वर्ग का द्वार है। शक्ति सेना है ना। यह स्वर्ग का राज्य दिलाने वाली है। जिसको ही वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी राज्य कहा जाता है। तुम शक्तियों ने स्वराज्य स्थापन किया था, अब फिर से स्थापन हो रहा है। रामराज्य कहा जाता है सतयुग को। अभी भी कहते हैं रामराज्य हो। परन्तु वह कोई मनुष्य तो कर सके। इनकारपोरियल गॉड फादर ही आकर पढ़ाते हैं। उनको भी जरूर शरीर चाहिए। जरूर ब्रह्मा तन में आना पड़े। शिवबाबा तो तुम सब आत्माओं का बाप है। प्रजापिता भी गाया हुआ है। पिता तो बाप ठहरा ना। ब्रह्मा को ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहा जाता है। आदि देव और आदि देवी दोनों बैठे हैं, तपस्या कर रहे हैं। तुम भी तपस्या कर रहे हो। यह है राजयोग। सन्यासियों का है हठयोग। वह कभी राजयोग सिखला नहीं सकते। गीता आदि जो भी शास्त्र हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग की सामग्री। पढ़ते आये हैं परन्तु तमोप्रधान बन गये हैं। यह वही महाभारत लड़ाई है जिससे विनाश होना है। साइन्स कोई वेदों में नहीं है। उनमें तो ज्ञान की बातें हैं। यह साइन्स बुद्धि का चमत्कार है जो इन्वेन्शन निकालते रहते हैं। विमान आदि बनाते हैं सुख के लिए। फिर पिछाड़ी में इनके द्वारा ही विनाश होता है। यह सुख का हुनर भारत में रह जायेगा। दु: का हुनर, मारने आदि का ख़लास हो जायेगा। साइन्स का अक्ल चला आता है। यह बाम्ब्स आदि कल्प पहले भी बने थे। पतित दुनिया का विनाश फिर नई दुनिया की स्थापना होनी है। बाप कहते हैं तुमने 84 जन्म पूरे किये हैं, अब इस देह का अहंकार छोड़ मुझ बाप को याद करो तो याद की योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे। रावण ने तुमसे बहुत विकर्म कराये हैं। पावन बनने का तो एक ही उपाय है। तुम आत्मा तो हो ही। कहते भी हो मैं आत्मा, ऐसे नहीं कहेगे मैं परमात्मा हूँ। कहते हो मेरी आत्मा को रंज (नाराज) मत करो। आत्मा सो परमात्मा कहना यह तो बहुत बड़ी भूल है। अभी है तमोप्रधान व्यभिचारी भक्ति। जो आया उनको बैठ पूजते हैं। अव्यभिचारी एक की याद को कहा जाता है। अब व्यभिचारी भक्ति का भी अन्त होना है। बाप आकर बेहद का वर्सा देते हैं। सभी को सुख देने वाला एक बाप है, दूसरा कोई। बाप कहते हैं मुझ एक के साथ बुद्धियोग जोड़ने से ही अन्त मती सो गति हो जायेगी। मैं हूँ ही स्वर्ग का रचयिता। यह कांटों की दुनिया है। एक-दो में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। अभी यह पुरानी दुनिया बदल रही है। ज्ञान अमृत का कलष माताओं पर रखते हैं। यह है नॉलेज। परन्तु विष की भेंट में अमृत कहा गया है। कहा भी जाता है अमृत छोड़ विष काहे को खाए..... श्रीमत से ही तुम श्रेष्ठ बनेंगे। परमपिता परमात्मा आकर श्रीमत देते हैं। कृष्ण भी श्रीमत से ऐसा बना है। यह समझने की बातें हैं। इस सारी पुरानी दुनिया को भूल एक बाप को याद करना है। बलिहार भी अभी जाना होता है। इनको ही जीते जी मरना कहा जाता है। भक्ति मार्ग की बातें अलग हैं। वह है भक्ति कल्ट। भक्ति के तो ढेर गुरू हैं। परन्तु सद्गति दाता एक ही निराकार परमपिता परमात्मा है। साकार मनुष्य, मनुष्य की सद्गति कर नहीं सकते। सदा के लिए सुख दे नहीं सकते। सदा सुख देने वाला बाप है। यह पाठशाला है। एम आब्जेक्ट भी बाप बतलाते हैं। कहते हैं तुमको स्वर्ग के सुख का वर्सा मिलेगा। बाकी सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे। शान्तिधाम, सुखधाम और यह है दु:खधाम। यह चक्र फिरता रहता है। इसको स्वदर्शन चक्र कहा जाता है। इस ड्रामा के चक्र से कोई छूट नहीं सकता है। बना बनाया अविनाशी पार्ट है हरेक का। बाप तुमको पढ़ाकर मनुष्य से देवता बना रहे हैं। फिर जितना जो पढ़ेंगे, तो कोई राजा बनेंगे, कोई प्रजा बनेंगे। सूर्यवंशी डिनायस्टी है ना। सतयुग में सूर्यवंशी थे तो और कोई नहीं थे। भारत खण्ड ही ऊंच ते ऊंच सचखण्ड था, अब झूठ खण्ड बना है, इसको रौरव नर्क कहा जाता है। पैसे के लिए कितनी मारामारी होती है। वहाँ तो कोई अप्राप्त वस्तु नहीं रहती, जिसकी प्राप्ति के लिए कोई पाप करना पड़े। बाप ही इस भ्रष्टाचारी दुनिया को श्रेष्ठाचारी बना रहे हैं, इन माताओं द्वारा। इन्हों को बाप वन्दे मातरम् कहते हैं। सन्यासी नहीं कहते वन्दे मातरम्। उनका है हद का सन्यास। यह है बेहद का सन्यास। सारी दुनिया का बुद्धि से सन्यास करना है। शान्तिधाम, सुखधाम को याद करना है। दु:खधाम को भूल जाना है। बाप का यह फ़रमान है। बाप आत्माओं को समझाते हैं, तुम इन कानों से सुनते हो। शिवबाबा इन आरगन्स द्वारा तुमको समझाते हैं। वह है ज्ञान सागर। यह कोई साधू, सन्त, महात्मा नहीं है। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप पर पूरा बलिहार जाना है। देह का अहंकार छोड़ योग अग्नि से विकर्म विनाश करने हैं।
2) एम ऑब्जेक्ट को बुद्धि में रखकर पढ़ाई करनी है। बने बनाये ड्रामा को बुद्धि में रखकर स्वदर्शन चक्रधारी बनना है।
 
वरदान:-सन्तुष्टता के सर्टीफिकेट द्वारा भविष्य राज्य-भाग्य का तख्त प्राप्त करने वाले सन्तुष्ट मूर्ति भव
 
सन्तुष्ट रहना है और सर्व को सन्तुष्ट करना है -यह स्लोगन सदा आपके मस्तक रूपी बोर्ड पर लिखा हुआ हो क्योंकि इसी सर्टीफिकेट वाले भविष्य में राज्य-भाग्य का सर्टीफिकेट लेंगे। तो रोज़ अमृतवेले इस स्लोगन को स्मृति में लाओ। जैसे बोर्ड पर स्लोगन लिखते हो ऐसे सदा अपने मस्तक के बोर्ड पर यह स्लोगन दौड़ाओ तो सभी सन्तुष्ट मूर्तियां हो जायेंगे। जो सन्तुष्ट हैं वह सदा प्रसन्न हैं।
 
स्लोगन:-आपस में स्नेह और सन्तुष्टता सम्पन्न व्यवहार करने वाले ही सफलता मूर्त बनते हैं।
 
 
30/10/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, the happiness of knowledge continues for 21 generations. That is the constant happiness of heaven. On the path of devotion, when they do intense devotion, they receive momentary happiness.
 
Question:By following which shrimat can you children attain salvation?
 
Answer:The Father's shrimat is: Forget this old world and remember Me alone. This is known as surrendering yourself or dying alive. By following this shrimat, you become the most elevated of all. You then receive salvation. Corporeal human beings cannot grant salvation to human beings. The Father alone is the Bestower of Salvation for all.
 
Song:Salutations to Shiva. 
Om Shanti
 
You children heard the song. It is sung: God is the Highest on High. Human beings don't know God’s name. Devotees cannot know God until God comes and gives the devotees His own introduction. It has been explained that there is knowledge and devotion. The golden and silver ages are the reward of knowledge. You are now receiving knowledge from the Ocean of Knowledge and, by making effort, you are creating your reward of constant happiness. Then, in the copper and iron ages, there will be devotion. The reward of knowledge continues through the golden and silver ages. The happiness of knowledge continues for 21 generations. That is the constant happiness of heaven. In hell, there is momentary happiness. It is explained to you children that when there were the golden and silver ages, the path of knowledge, there was the new world, new Bharat. That is called heaven. Bharat has now become tamopradhan hell. There are many types of sorrow. In heaven, there is no name or trace of sorrow. There is no need to adopt a guru. It is God alone who has to uplift the devotees. It is now the end of the iron age and destruction is just in front of you. The Father comes, gives you knowledge through Brahma and establishes heaven. He inspires destruction through Shankar and sustenance through Vishnu. No one understands the acts of God. Human beings are said to be sinful souls or charitable souls. It is not said: Sinful Supreme Soul or Charitable Supreme Soul. A great soul would be called a great soul; he wouldn’t be called a great Supreme Soul. Souls become pure. The Father has explained: First of all, the main religion is the deity religion. At that time, it was just the sun dynasty that ruled the kingdom; there wasn’t the moon dynasty. There was just the one religion. There were palaces of gold and silver in Bharat. All the roofs and walls were decorated with diamonds and jewels. Bharat was like a diamond. That same Bharat has now become like shells. The Father says: I come at the end of the cycle. I come at the confluence of the end of the iron age and the beginning of the golden age. I make Bharat into heaven once again through you mothers. You are the Shiv Shaktis, the Pandava Army. Pandavas have love for the one Father. The Father is teaching them. All the scriptures etc. are the paraphernalia of the path of devotion. Those are the devotion cults. The Father now comes and gives everyone knowledge, the fruit of devotion, through which you go into salvation. The Bestower of Salvation, the Father of all, is just the One. The Father alone is called the Ocean of Knowledge. Human beings cannot grant liberation or liberation -in-life to human beings. This knowledge is not in any of the scriptures. The Father alone is called the Ocean of Knowledge. You claim your inheritance from Him and you will then become full of all virtues, 16 celestial degrees full. This is the praise of the deities. Lakshmi and Narayan are 16 celestial degrees full and Rama and Sita are 14 degrees. This is a study. This is not a common spiritual gathering. Only the One is the Truth. He alone comes and explains the truth. This is the impure world. There are no impure beings in the pure world and no pure beings in the impure world. Only the one Father is the One who makes you pure. The soul says: Salutations to Shiva. The soul said salutations to his Father. If someone says that Shiva exists in him, in that case, to whom is he bowing down? This ignorance has spread. The Father is now making you children trikaldarshi. You know that the place where all souls reside is the land of nirvana, your sweet home. Everyone remembers liberation where we souls reside with the Father. You are now remembering the Father. When you go to the land of happiness, you will not remember the Father. This is the land of sorrow; everyone is in degradation. There was new Bharat in the new world. That was the land of happiness. There were the sun dynasty and the moon dynasty kingdoms. People don't know what the connection is between Lakshmi and Narayan and Radhe and Krishna. That princess and prince are each from separate kingdoms. It isn't that they are brother and sister. She was in her separate kingdom and Krishna was a prince in his own kingdom. When they married, they became Lakshmi and Narayan. In the golden age, everything gives happiness whereas in the iron age, everything causes sorrow. In the golden age, no one has untimely death. You children know that you study easy Raja Yoga with the Supreme Father, the Supreme Soul, in order to change from an ordinary man into Narayan and an ordinary woman into Lakshmi. This is a school. There is no aim or objective in those spiritual gatherings. They simply continue to relate the Vedas and scriptures etc. You have now come to know the human world cycle from the Father. The Father alone is called the Knowledge-full One, the Blissful and Merciful One. You sing: O Baba, come and have mercy! Only Heavenly God, the Father, comes and establishes heaven at the confluence age. There are very few human beings in heaven. Where will all the rest of the people go? The Father takes everyone to the land of liberation. There was just Bharat in heaven, and later on, too, just Bharat will remain. Bharat, the land of truth, is remembered here. At present, Bharat has become poverty-stricken. It continues to beg for every penny. Bharat was like a diamond and is now worth a shell. This secret of the drama has to be understood. You know the Father, the Creator, and the beginning, middle and end of His creation. The Congress people sing: Salutations to the mothers. However, it is only pure ones who are praised. God Himself comes and begins to say: Salutations to the mothers. Shiv Baba Himself came and said: Women are the gateway to heaven. There is the Shakti Army. They are the ones who will bring about the kingdom of heaven. That is called the World Almighty Authority Kingdom. You Shaktis established self-sovereignty and it is now once again being established. The golden age is called the kingdom of Rama. Even now, they say: There should be the kingdom of Rama. However, no human being can do this. Incorporeal God, the Father, Himself comes and teaches you. He too definitely needs a body. He definitely has to enter the body of Brahma. Shiv Baba is the Father of all of you souls. Prajapita has also been remembered. Pita is the Father. Brahma is called the great-great-grandfather. Both Adi Dev and Adi Devi are sitting here doing tapasya. You too are doing tapasya. This is Raja Yoga. Sannyasis have hatha yoga; they can never teach Raja Yoga. The scriptures and the Gita etc. are the paraphernalia of the path of devotion. They have been studying those but have continued to become impure. This is the same Mahabharat War through which destruction is to take place. There is no science in the Vedas. There are things of knowledge in that. It is the wonder of a scientific intellect that it invents inventions. They invent vimans (planes) etc. for happiness. Then, later, destruction takes place through them. Skills for happiness will remain in Bharat, and the skills for sorrow and for killing one another will end. The wisdom of science will continue. These bombs etc. were manufactured in the previous cycle too. The new world has to be established and the impure world then has to be destroyed. The Father says: You have completed your 84 births. Now renounce the arrogance of those bodies and remember Me, your Father, and your sins will be absolved in the fire of the yoga of remembrance. Ravan has made you perform many sinful actions. There is just one way to become pure. You are souls anyway. You say: I am a soul. You would not say that you are the Supreme Soul. You say: Do not upset my soul! It is a very big mistake to say that the soul is the Supreme Soul. Devotion is now tamopradhan and adulterated. They just sit and worship whoever comes in front of them. The remembrance of One is called unadulterated. Adulterated devotion is now to end. The Father comes and gives you your unlimited inheritance. It is the Father and none other who gives everyone happiness. The Father says: By connecting your intellects in yoga to Me alone, your final thoughts will lead you to your destination. I am the Creator of heaven. This is the world of thorns. They continue to fight and quarrel among themselves. This old world is now changing. The urn of the nectar of knowledge is placed on the mothers. This is knowledge but, in comparison to poison, it is called nectar. It is said: Why should I renounce nectar and drink poison? You will become elevated by following shrimat. The Supreme Father, the Supreme Soul, comes and gives shrimat. Krishna also became that by following shrimat. These matters have to be understood. You have to forget the whole of the old world and remember the one Father. It is now that you have to surrender yourselves. This is known as dying alive. The things of the path of devotion are separate. Those are the devotion cults. There are many gurus of devotion. However, only the one incorporeal Supreme Father, the Supreme Soul, is the Bestower of Salvation. Corporeal human beings cannot grant salvation to human beings. They cannot give happiness for all time. It is the Father who gives happiness for all time. This is a school. The Father tells you the aim and objective. He says: You are to receive your inheritance of the happiness of heaven. All the rest will go to the land of liberation. There is the land of peace, the land of happiness and this is the land of sorrow. This cycle continues to turn. This is called the discus of self -realisation. No one can be liberated from the cycle of this drama. Each one has a predestined, imperishable part. The Father is teaching you and changing you from human beings into deities. Then, it depends on how much each one of you studies. Some will become kings and others will become subjects. There is the sun dynasty. When there was the sun dynasty in the golden age, there wasn't anyone else. The land of Bharat was the highest-on-high land of truth. It has now become the land of falsehood. This is called the extreme depths of hell. There is so much violence over money. There, nothing is lacking for which they would have to commit sin. The Father Himself is making this degraded world elevated through you mothers. The Father says to them: Salutations to the mothers. Sannyasis do not say: Salutations to the mothers. Their renunciation is limited. This is unlimited renunciation. The whole world has to be renounced by the intellect. You have to remember the land of silence and the land of happiness. Forget the land of sorrow. This is the Father's order. The Father is explaining to you souls and you are listening through your ears. Shiv Baba is explaining to you through these organs. He is the Ocean of Knowledge. That One is not a sage, saint or great soul. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
1. Surrender yourself totally to the Father. Renounce the arrogance of the body and have your sins absolved in the fire of yoga.
2. Study while keeping your aim and objective in your intellect. Keeping the predestined drama in your intellect, become a spinner of the discus of self-realisation.
 
Blessing:May you be a contented idol who attains the throne of a future kingdom with the certificate of contentment.
 
“I have to remain content and make everyone content”. Let this slogan be written on the board of your forehead because those who have this certificate will claim the certificate of the fortune of the future kingdom. So, every morning at amrit vela, bring this slogan into your awareness. Just as you write slogans on boards, in the same way, let this slogan always be written on the board of your forehead and you will all become contented idols. Those who are content are always happy.
 
Slogan:Those who have loving and contented interaction with everyone become images of success.
 
 
31-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे-बच्चे - तुम आत्माओं को अपना-अपना रथ है, मैं हूँ निराकार, मुझे भी कल्प में एक ही बार रथ चाहिए, मैं ब्रह्मा का अनुभवी वृद्ध रथ उधार लेता हूँ''
 
प्रश्नः-किस निश्चय के आधार पर शरीर का भान भूलना अति सहज है?
 
उत्तर:-
तुम बच्चों ने निश्चय से कहा - बाबा, हम आपके बन गये, तो बाप का बनना माना ही शरीर का भान भूलना। जैसे शिवबाबा इस रथ पर आता और चला जाता, ऐसे तुम बच्चे भी प्रैक्टिस करो इस रथ पर आने-जाने की। अशरीरी बनने का अभ्यास करो। इसमें मुश्किल का अनुभव नहीं होना चाहिए। अपने को निराकारी आत्मा समझ बाप को याद करो।
 
गीत:-ओम् नमो शिवाए........  ओम् शान्ति।
 
शिवबाबा बच्चों को इस ब्रह्मा के रथ द्वारा समझाते हैं क्योंकि बाप बच्चों से ही पूछते हैं मुझे अपना रथ तो है नहीं। मुझे रथ तो जरूर चाहिए। जैसे तुम हर एक आत्मा को अपना-अपना रथ है ना। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी सूक्ष्म शरीर है ना। लक्ष्मी-नारायण आदि सब आत्माओं को शरीर रूपी रथ है जरूर, जिसको अश्व कहते हैं। हैं तो मनुष्य ना। मनुष्यों की ही बात समझाई जाती है, जानवरों की बातें जानवर जानें। यहाँ तो मनुष्य सृष्टि है तो बाप भी मनुष्यों को बैठ समझाते हैं। मनुष्य में भी जो आत्मा है, उनको बैठ समझाते हैं। डायरेक्ट पूछते हैं तुम हर एक को अपना-अपना शरीर है ना। हर एक आत्मा शरीर लेती और छोड़ती है। मनुष्य तो कह देते कि आत्मा 84 लाख जन्म लेती है। यह भूल है जबकि तुम 84 जन्म लेकर ही बिल्कुल फाँ हो गये हो (थक गये हो), कितने तंग हो गये हो। तो 84 लाख जन्मों की तो बात ही नहीं। यह हैं मनुष्यों के गपोड़े। तो बाप समझाते हैं तुम आत्माओं का भी अपना-अपना रथ है। मुझे भी तो रथ चाहिए ना। मैं तुम्हारा बेहद का बाप हूँ। गाते भी हैं पतित-पावन, ज्ञान का सागर...तुम और कोई को पतित-पावन नहीं कहेंगे। लक्ष्मी-नारायण आदि को भी नहीं कहेंगे। पतित सृष्टि को पावन बनाने वाला अर्थात् पावन सृष्टि स्वर्ग का रचयिता, परमपिता परमात्मा बिगर कोई हो नहीं सकता। सुप्रीम फादर वही है। बाप जानते हैं तुम नम्बरवार पत्थरबुद्धि से पारस बुद्धि बन रहे हो। बाहर वाले मनुष्य यह नहीं जानते। तो बाप समझाते हैं मुझे भी जरूर रथ तो चाहिए ना। मुझ पतित-पावन को जरूर पतित दुनिया में आना पड़े ना। प्लेग की बीमारी होती है तो डॉक्टर को प्लेगियों के पास आना पड़ेगा। बाप कहते हैं तुम्हारे में 5 विकारों की बीमारी आधाकल्प की है। मनुष्य तो दु: देने वाले हैं। इन 5 विकारों से तुम बिल्कुल ही पतित बन गये हो। तो बाप समझाते हैं मुझे पतित दुनिया में ही आना पड़े ना। पतित को ही भ्रष्टाचारी कहा जाता है, पावन को श्रेष्ठाचारी कहेंगे। बरोबर तुम्हारा भारत पावन श्रेष्ठाचारी था, लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। जिसकी ही महिमा गाते हो सर्वगुण सम्पन्न... वहाँ सब सुखी थे। यह तो कल की बात है। तो बाप कहते हैं मैं आऊं तो कैसे आऊं, किसके शरीर में आऊं? पहले तो मुझे प्रजापिता चाहिए। सूक्ष्म वतनवासी को यहाँ कैसे ले सकता? वह तो फरिश्ता है ना। उनको पतित दुनिया में ले आऊं - यह तो दोष हो जाए। कहेंगे मैंने क्या गुनाह किया? बाप बड़ी रमणीक बातें समझाते हैं। समझेगा वही जो बाप का बना होगा। घड़ी-घड़ी बाप को याद करता रहेगा।
 
बाप कहते हैं मैं आता ही तब हूँ जब धरती पर पाप बढ़ जाता है। कलियुग में मनुष्य कितने पाप करते हैं। तो बाप पूछते हैं - बच्चे, बताओ मैं आऊं तो किस तन में आऊं? मुझे चाहिए भी जरूर वृद्ध अनुभवी रथ। यह जो मैंने रथ लिया है, बरोबर इनके बहुत गुरू किये हुए हैं। शास्त्र आदि पढ़ा हुआ है। यह भी लिखा हुआ है ना कि बहुत पढ़ा हुआ था। अर्जुन की बात नहीं। मुझे कोई अर्जुन वा कृष्ण का रथ थोड़ेही चाहिए। मुझे तो चाहिए ब्रह्मा का रथ, उनको ही प्रजापिता कहेंगे। कृष्ण को तो प्रजापिता नहीं कहेंगे। बाप को तो ब्रह्मा का ही रथ चाहिए जिससे ब्राह्मणों की प्रजा रचे। ब्राह्मणों का है सर्वोत्तम कुल। विराट रूप दिखाते हैं ना। देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, बाकी ब्राह्मण कहाँ गये? यह किसको भी पता नहीं। ऊंच ते ऊंच है ब्राह्मणों की चोटी। चोटी हो तब ही समझा जाता है कि यह ब्राह्मण है। सच्ची-सच्ची चोटी तो तुम्हारी है। तुम राजऋषि हो, बड़ी चोटी वाले। ऋषि उनको कहा जाता जो पवित्र रहते हैं। तुम हो राज-योगी, राजऋषि। राजाई के लिए तपस्या कर रहे हो। वह मुक्ति के लिए हठयोग की तपस्या करते हैं, तुम जीवनमुक्ति, राजाई के लिए राजयोग की तपस्या कर रहे हो। तुम्हारा नाम ही है शिव शक्ति। शिवबाबा तुम्हें रीइनकारनेट करते हैं। तो तुम फिर से भारत में जन्म लेते हो। जन्म लिया है ना। कोई-कोई ने भल जन्म लिया है परन्तु समझते नहीं कि हम शिवबाबा के बने हैं, उनके पास जन्म लिया है। अगर ऐसा समझें तो शरीर का भान बिल्कुल ही निकल जाना चाहिए। जैसे शिवबाबा निराकार इस रथ में है, तुम भी अपने को निराकार आत्मा समझो। बाप कहते हैं - बच्चे, मुझे याद करो। अब वापिस घर चलना है। तुम तो पहले अशरीरी थे फिर देवी वा देवता का शरीर लिया, फिर क्षत्रिय शरीर, फिर वैश्य शरीर, फिर शूद्र शरीर लिया। अभी फिर तुम अशरीरी बनो। तुम मुझ निराकार को ही कहते हो - बाबा, अभी हम आपके बने हैं, हमको वापिस जाना है। देह को तो ले नहीं चलना है। हे आत्मायें, अब मुझ बाप को और स्वीट होम को याद करो। मनुष्य जब विलायत से लौटते हैं तो कहते हैं - चलो, अपने स्वीट होम भारत में चलें। जहाँ जन्म लिया था वहाँ लौटें। मनुष्य मरते हैं तो जहाँ जन्म लिया था उनको वहाँ ले जाते हैं। समझते हैं भारत की मिट्टी का बना हुआ है तो वह मिट्टी भारत में ही छोड़ें।
 
बाप कहते हैं मेरा जन्म भी भारत में है। शिव जयन्ती भी मनाते हो। मेरे नाम तो ढेर रख दिये हैं। कहते हैं हर-हर महादेव, सबके दु: काटने वाला, वह भी मैं ही हूँ, शंकर नहीं है। ब्रह्मा सर्विस पर हाज़िर है। और फिर जो स्थापना करते हैं वही विष्णु के दो रूप से पालना करेंगे। मुझे प्रजापिता ब्रह्मा जरूर चाहिए। आदि देव का बरोबर मन्दिर भी है। आदि देव किसका बच्चा है? कोई बताये। इस देलवाड़ा मन्दिर के जो ट्रस्टी लोग हैं वह भी यह नहीं जानते कि आदि देव है कौन? उनका बाप कौन था? आदि देव प्रजापिता ब्रह्मा है, उनका बाप है शिव। यह जगतपिता, जगत अम्बा का यादगार मन्दिर है। इस आदि देव ब्रह्मा के रथ में बाप ने बैठ ज्ञान सुनाया है। कोठरी में सब बच्चे बैठे हैं। सभी का मन्दिर तो नहीं बनायेंगे। मुख्य है 108 की माला, तो 108 कोठरियां बना दी हैं। 108 की ही पूजा होती है। मुख्य है शिवबाबा फिर ब्रह्मा-सरस्वती युगल। वह शिवबाबा है फूल। उनको अपना शरीर नहीं है। ब्रह्मा-सरस्वती को अपना शरीर है। माला शरीरधारियों की बनी हुई है। सब माला को पूजते हैं। पूजकर पूरा करेंगे फिर शिवबाबा को नमस्कार करेंगे, माथा झुकायेंगे क्योंकि उसने इन सबको पतित से पावन बनाया है इसलिए पूजी जाती है। माला हाथ में ले बैठ राम-राम कहते हैं। परमपिता परमात्मा के नाम का किसको पता नहीं है। शिवबाबा है मुख्य फिर प्रजापिता ब्रह्मा और सरस्वती भी मुख्य हैं। बाकी ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ जो-जो पुरुषार्थ करते रहते हैं उन्हों के नाम होंगे। आगे चल तुम सब देखते रहेंगे। जब पिछाड़ी होगी तब तुम यहाँ आकर रहेंगे। जो पक्के योगी होंगे वही रह सकेंगे। भोगी तो थोड़ा ठका सुनने से ख़त्म हो जायेंगे। कोई का आपरेशन देखने से भी मनुष्य अनकॉन्सेस हो जाते हैं। अभी पार्टीशन में कितने मनुष्य मरे। वो लोग तो गपोड़े मारते रहते हैं कि हमने बिगर कोई लड़ाई राज्य ले लिया। परन्तु मरे इतने जो बात मत पूछो। यह है ही झूठी माया.... अभी सच्चा बाप बैठ तुमको सच सुनाते हैं। बाप कहते हैं मुझे रथ तो जरूर चाहिए। मैं साजन बड़ा हूँ तो सजनी भी बड़ी चाहिए। सरस्वती है ब्रह्मा मुख वंशावली। वह कोई ब्रह्मा की युगल नहीं है, ब्रह्मा की बेटी है। उनको फिर जगत अम्बा क्यों कहते हैं? क्योंकि यह मेल है ना, तो माताओं की सम्भाल के लिए उनको रखा है। ब्रह्मा मुख वंशावली सरस्वती तो ब्रह्मा की बेटी हो गई। मम्मा तो जवान है, ब्रह्मा तो बूढ़ा है। सरस्वती जवान, ब्रह्मा की स्त्री शोभती भी नहीं। हाफ पार्टनर कहला सके। अभी तुम समझ गये हो। तो बाप कहते हैं मुझे इस ब्रह्मा का शरीर लोन लेना पड़ता है। उधार पर तो बहुत लेते हैं। ब्राह्मण को खिलाते हैं तो वह आत्मा आकर ब्राह्मण के शरीर का आधार लेगी। आत्मा वह शरीर छोड़कर आती है क्या? नहीं, यह तो बच्चों को समझाया गया है कि ड्रामा में साक्षात्कार की रस्म-रिवाज पहले से नूँध है। यहाँ भी बुलाते हैं। ऐसे नहीं कि आत्मा शरीर छोड़कर आयेगी। नहीं, यह ड्रामा में नूँध है। बाप के लिए तो यह रथ नंदीगण है। नहीं तो शिव के मन्दिर में बैल क्यों दिखाते? सूक्ष्म वतन में शंकर के पास बैल कहाँ से आया? वहाँ तो है ही ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और वह युगल दिखाते हैं। प्रवृत्ति मार्ग दिखाते हैं। बाकी वहाँ जानवर कहाँ से आया? मनुष्यों की बुद्धि कुछ भी काम नहीं करती, जो आता है सो कहते रहते। जिससे वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ एनर्जी होती है।
 
तुम कहते हो हम सो पावन देवता थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते हम पतित पुजारी बने हैं। आपे ही पूज्य, आपेही पुजारी। पूज्य और पुजारी कोई भगवान् नहीं बनता। उनको थोड़ेही 84 जन्म लेने पड़ते। माया मनुष्यों को बिल्कुल पत्थरबुद्धि बना देती है। हम सो का अर्थ यह नहीं कि हम आत्मा सो परमात्मा हैं, नहीं। हम सो ब्राह्मण, सो देवता बनेंगे। पुनर्जन्म लेते आयेंगे। कितनी अच्छी समझानी है। बाप कहते हैं मैंने जिसमें प्रवेश किया है, इसने बहुत गुरू किये, शास्त्र पढ़े हैं, जन्म भी पूरे 84 लिए हुए हैं। यह नहीं जानता, हम तुमको इन सहित बताता हूँ। ब्रह्मा को भी बतलाता हूँ। सदैव भी तो सवारी नहीं कर सकता हूँ। ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों को बतलाता हूँ। मुझे रथ भी चाहिए ना। तुम बच्चे याद करते हो और मैं जाता हूँ। मुझे तो सर्विस करनी है तो श्री श्री शिव की मत से भारत पावन बनता है। नर्कवासियों को श्री श्री का टाइटिल देना रांग है। आगे श्री नाम नहीं था। अभी तो सबको श्री अर्थात् श्रेष्ठ बना दिया है। श्री श्री तो है शिवबाबा। फिर सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर श्री लक्ष्मी-नारायण। यह समझने की बातें हैं। नॉलेज बड़ी मज़े की है। परन्तु कोई-कोई पढ़ते-पढ़ते रफू-चक्कर हो जाते हैं। माया हाथ छुड़ा देती है। दुकान भी नम्बरवार हैं। बड़ी दुकान में जरूर अच्छे सेल्स मैन होंगे। छोटे-छोटे में कम होंगे। तो बड़ी दुकान पर जाना चाहिए जहाँ महारथी हों। माताओं को तो टाइम बहुत रहता है। पुरुषों को धंधा आदि करना है तो बिजी रहते हैं। मातायें तो फ्री हैं। खाना पकाया बस। वह तुम पर फिर बंधन डालते हैं। सुनते हैं ब्रह्माकुमारियों पास जाने से विष बंद हो जायेगा, तो रोकते हैं।
 
शिवबाबा ऐसी तिरकनी (फिसलने वाली) चीज़ है जो घड़ी-घड़ी भूल जाती है। बाप बिल्कुल सहज रास्ता बताते हैं कि मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप भी कट जायेंगे और मेरे पास भी जायेंगे। याद नहीं करेंगे तो पाप भी नहीं कटेंगे और साथ भी नहीं ले जाऊंगा। फिर सजा खानी पड़ेगी। भक्ति मार्ग में छांछ पीते आये। मक्खन तो तुमने सतयुग-त्रेता में खाकर पूरा कर दिया। बाकी पीछे छांछ रह जाती है। छांछ भी पहले अच्छी मिलती फिर पानी मिलता है। सतयुग-त्रेता में घी दूध की नदी बहती है। अभी तो घी कितना महंगा हो गया है। अच्छा!
 
मात-पिता बापदादा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) राजऋषि बन तपस्या करनी है। पूज्यनीय माला में आने के लिए बाप समान सर्विस करनी है। पक्का योगी बनना है।
2) नॉलेज बड़ी मज़े की है, इसलिए रमणीकता से पढ़ना है, मूँझना नहीं है।
 
वरदान:-वरदानों की दिव्य पालना द्वारा सहज और श्रेष्ठ जीवन का अनुभव करने वाले सदा खुशनसीब भव
 
बापदादा संगमयुग पर सभी बच्चों की तीन संबंधों से पालना करते हैं। बाप के संबंध से वर्से की स्मृति द्वारा पालना, शिक्षक के संबंध से पढ़ाई की पालना और सतगुरू के संबंध से वरदानों के अनुभूति की पालना.. एक ही समय पर सबको मिल रही है, इसी दिव्य पालना द्वारा सहज और श्रेष्ठ जीवन का अनुभव करते रहो। मेहनत और मुश्किल शब्द भी समाप्त हो जाए तब कहेंगे खुशनसीब।
 
स्लोगन:-बाप के साथ-साथ सर्व आत्माओं के स्नेही बनना ही सच्ची सद्भावना है।
 
 
31/10/18              Morning Murli  Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, you souls have your own chariots. I am incorporeal. Only once in the cycle do I need a chariot. I borrow the old experienced chariot of Brahma.
 
Question:On the basis of what faith is it very easy to forget the awareness of the body?
 
Answer:
 
You children have said with faith: Baba, I now belong to You. Therefore, to belong to the Father means to forget the awareness of your body. Just as Shiv Baba enters this chariot and then leaves, in the same way, you children also have to practise entering your chariots and then leaving. Practise becoming bodiless. It shouldn't be difficult to do this. Consider yourselves to be incorporeal souls and remember the Father.
 
Song:
 
Salutations to Shiva. 
 
Om Shanti
 
Shiv Baba explains to you children through this chariot of Brahma. The Father tells you children: I do not have a chariot of My own. I definitely do need a chariot, just as each of you souls has a chariot of your own. Brahma, Vishnu and Shankar also have their subtle bodies. Lakshmi and Narayan etc. and all souls definitely have their bodies as chariots. They are also called horses. They are, in fact, human beings. Everything that is explained to you is about human beings. Animals would know about animals. This is the human world and so the Father sits here and explains to human beings. He sits and explains to the souls in human forms. He asks you directly: Each of you has your own body, do you not? Every soul takes a body and sheds it. People say that souls take 8.4 million births. This is a mistake, because you become completely tired when you just take 84 births. You have become so distressed. So, there is no question of 8.4 million births. Those are lies told by human beings. Therefore, the Father explains: You souls have your own chariots. I too need a chariot. I am your unlimited Father. You sing: O Purifier, Ocean of Knowledge. You would not call anyone else the Purifier. You would not call Lakshmi and Narayan etc. that. It cannot be anyone except the Supreme Father, the Supreme Soul, who makes the impure world pure, that is, who is the Creator of the pure world of heaven. He alone is the Supreme Father. The Father knows that, from being those with stone intellects, you are becoming those with divine intellects, numberwise. People outside do not know this. The Father explains: I too definitely need a chariot. I, the Purifier, definitely have to come into the impure world. When the plague spreads everywhere, doctors have to go to those who have the plague. The Father says: You have had the illness of the five vices in you for half the cycle. Human beings only cause sorrow. You have become completely impure with those five vices. Therefore, the Father explains: I have to come into the impure world. Those who are impure are called corrupt whereas those who are pure are called elevated. Truly, your Bharat was pure and elevated when it was the kingdom of Lakshmi and Narayan. You sing praise of it: Full of all virtues… Everyone there was happy. It is a matter of only yesterday. The Father says: When I come, how do I come? In whose body would I come? First of all, I need Prajapita. How could the one who is a resident of the subtle region be brought here? He is an angel. It would be a crime if I were to bring him into the impure world. He would say: What crime have I committed? The Father explains very entertaining things to you. Only those who belong to the Father will understand these things. They will repeatedly continue to remember the Father. The Father says: I come when sin has increased on earth. In the iron age, people commit so much sin. So the Father asks: Children, tell Me: if I come, in whose body should I come? I surely need an old experienced chariot. The one whose chariot I have chosen has truly adopted many gurus. He has studied the scriptures etc. It is also written that he was very well educated. It is nothing to do with Arjuna. I do not need the chariot of Arjuna or Krishna. I need the chariot of Brahma. Only he can be called Prajapita. Krishna cannot be called Prajapita. The Father only wants the chariot of Brahma through which he can create the Brahmin people. The Brahmin clan is the most elevated clan. They show the variety-form image. There are the deities, warriors, merchants and shudras and so where did the Brahmins go? No one knows this. The highest of all is the topknot of brahmins. Only when they have a topknot can it be understood that they are brahmins. Yours is the true topknot. You are Raj Rishis, those with big topknots. Those who remain pure are called Rishis. You are Raj Yogis, Raj Rishis. You are doing tapasya for a kingdom. Those people do hatha yoga tapasya to attain liberation. You are doing Raja Yoga tapasya for liberation-in-life, for the kingdom. Your name is Shiv Shaktis. Shiv Baba makes you re-incarnate. So you take birth in Bharat once again. You have taken birth, have you not? Although some have taken a new birth, they don’t understand that they belong to Shiv Baba or that they have taken birth to Him. If they were to understand this, they would completely forget the awareness of their bodies. Just as incorporeal Shiv Baba is in this chariot, in the same way, you also have to consider yourselves to be incorporeal souls. The Father says: Children, remember Me. You now have to return home. At first you were bodiless, then you took deity bodies, then warrior bodies, then a merchant bodies and then shudra bodies. You now have to become bodiless once again. You say to Me, the incorporeal One: Baba, I now belong to You. I want to return home. You are not going to take those bodies with you. O souls, now remember Me, your Father, and your sweet home. When people have gone abroad and are about to come back from there, they say: Let’s go back to our sweet home in Bharat. Let’s go back to where we took birth. When a person dies, they take his body back to the place he took birth. They believe that since he was created out of the soil of Bharat, he should also leave his soil (body) there. The Father says: My birth too is in Bharat. People celebrate Shiv Jayanti. They have given Me many names. They say: Har Har Mahadev (Mahadev, the One who removes everyone's sorrow.) He is the One who removes everyone's sorrow. I, not Shankar, am that. Brahma is present on service. The one who carries out establishment will, in the dual-form of Vishnu, carry out sustenance. I definitely need Prajapita Brahma. There is truly the temple to Adi Dev. Whose child is Adi Dev? Can anyone tell Me? Even the trustees of the Dilwala Temple don't know who Adi Dev was or who his Father was. Adi Dev is Prajapita Brahma and his Father is Shiva. That temple is the memorial of Jagadamba and Jagadpita. The Father sat in the chariot of this Adi Dev Brahma and gave knowledge. All the children are sitting in the alcoves. There wouldn’t be temples built to all of them. The main ones are in the rosary of 108 and so 108 alcoves have been built. Only 108 are worshipped. The main ones are Shiv Baba and then it is the couple Brahma and Saraswati. Shiv Baba is the tassel at the top. He doesn't have a body of His own. Brahma and Saraswati have their own bodies. The rosary is created of bodily beings. Everyone worships the rosary. Once they have worshipped it and turned the beads all the way through, they then say: Salutations to Shiv Baba, and bow their heads to it because He made all the impure ones pure. That is why it is worshipped. They hold a rosary in their hands and sit and chant Rama’s name. No one knows the name of the Supreme Father, the Supreme Soul. Shiv Baba is the main One and then there are also the other main ones, Prajapita Brahma and Saraswati. Then there are also the names of the Brahma Kumars and Kumaris who continue to make effort. As you progress further, you will continue to see all of this. When it is the end, you will come and stay here. Only those who are firm yogis will be able to stay here. Those who indulge in sensual pleasures will hear just a little sound and die there. Some people become unconscious just watching an operation being performed. So many people died when there was partition. Those people boast that they claimed the kingdom without having a war etc. However, so many died, don't even ask! This is false Maya, the false body and the false world. The true Father now sits and tells you the truth. The Father says: I definitely need a chariot. I am the Senior Bridegroom and so I need a senior bride. Saraswati is also a mouth-born creation of Brahma. She is not the partner of Brahma, she is the daughter of Brahma. Why then is she called Jagadamba? Because this one is a male and so she has been appointed to look after the mothers. Saraswati, the mouth-born creation of Brahma, becomes the daughter of Brahma. Mama is young whereas Brahma is old. Young Saraswati, as the wife of Brahma, doesn't seem right. She cannot be called a half-partner. You have now understood this. So the Father says: I have to take this body of Brahma on loan. Many people take loans. When a brahmin priest is fed, he invokes a soul who comes and takes the support of the body of that brahmin. Does that soul leave his body and come here? No. It has been explained to you children that the system of visions has been fixed in the drama from the beginning. Souls are also called here. It isn't that that soul will shed his body and come here. No; that is fixed in the drama. For the Father, this chariot is Nandigan, the sacred bull. Why else would they show a bull in a Shiva Temple? How could there be a bull with Shankar in the subtle region? There, there are just Brahma, Vishnu and Shankar; they show the form of a couple. They show the family path. Where did animals etc. come there from? The intellects of people do not work at all! They continue to say whatever enters their minds through which there is a waste of time and waste of energy. You say that you were pure deities and that you then became impure worshippers by taking rebirth. You yourselves were worthy of worship and you yourselves became worshippers. God doesn't become worthy of worship or a worshipper. He doesn't have to take 84 births. Maya makes people's intellects completely like stone. The meaning of "Hum so" is not: “I, a soul, am the Supreme Soul.” “No, it is I, a Brahmin, will then become a deity.” You will continue to take rebirth. This is such a good explanation. The Father says: The one I have entered has had many gurus, studied many scriptures and has taken the full 84 births. He didn’t know that. I tell you as well as him. I also tell Brahma all of this. I cannot always be riding in the chariot. I tell everything to the Brahmins, the mouth-born creation of Brahma. I need a chariot. You children remember Me and I come. I have to do service and so Bharat becomes pure through the directions of Shri Shri Shiva. It is wrong to give the residents of heaven the title ‘Shri Shri’. Previously, they didn't have the name Shri. Now they have made everyone Shri, that is, elevated. Shri Shri is Shiv Baba. Then it is Brahma, Vishnu and Shankar, the residents of the subtle region, and then Shri Lakshmi and Shri Narayan. These matters have to be understood. This knowledge is very entertaining. However, while studying, some disappear. Maya makes them let go of Baba's hand. Shops are also numberwise. There would definitely be many salesmen in a big shop. There would be fewer salesmen in smaller shops. So, you should go to the big shops where there are the maharathis. The mothers have plenty of time whereas the men have to do business etc. and so they remain busy. The mothers are free. Once they have finished cooking, that’s it. The men then create bondages for you. They stop the mothers going to the Brahma Kumaris because they have heard that their vice would stop if the mothers went to them. Shiv Baba is something so slippery that you repeatedly forget Him. The Father shows you a very easy method: Remember Me and your sins will be absolved and you will come to Me. If you don't remember Me, your sins won't be cut away and I won't take you back with Me. You will then have to experience punishment. On the path of devotion, you have been drinking buttermilk. You ate up all the butter in the golden and silver ages. So, at the end, just buttermilk is left. At first, you receive good buttermilk and then it is just like water. In the golden and silver ages, rivers of ghee and milk flow. Now ghee has become so expensive. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
1. Become a Raj Rishi and do tapasya. In order to enter the rosary that is worthy of worship, do service the same as the father. Become a firm yogi.
2. Knowledge is very entertaining. Therefore, study with enjoyment and don't become confused.
 
Blessing:May you constantly have the fortune of happiness and experience an easy and elevated life with the divine sustenance of blessings.
 
At the confluence age BapDada sustains all the children with three relationships. In terms of the relationship of the Father, He sustains you with the awareness of the inheritance. In terms of the Teacher, He sustains you with the study and in terms of the Satguru, He sustains you with the experience of blessings. You are all receiving this at the same time. Therefore, continue to experience an easy and elevated life through this divine sustenance. Let the words “effort” and “difficult” finish and you will then be said to have the fortune of happiness.
 

Slogan:To be loving to all souls as well as to the Father is to have true feelings of faith and good wishes.

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