Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 28th Oct 2018 )
28-10-18 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 22-02-84 मधुबन
संगम पर चार कम्बाइन्ड रूपों का अनुभव
 
आज बापदादा सभी बच्चों के कम्बाइन्ड रूप को देख रहे हैं। सभी बच्चे भी अपने कम्बाइन्ड रूप को अच्छी रीति जानते हो? एक - श्रेष्ठ आत्मायें, इस अन्तिम पुराने लेकिन अति अमूल्य बनाने वाले शरीर के साथ कम्बाइन्ड हो। सभी श्रेष्ठ आत्मायें इस शरीर के आधार से श्रेष्ठ कार्य और बापदादा से मिलन का अनुभव कर रही हो। है पुराना शरीर लेकिन बलिहारी इस अन्तिम शरीर की है जो श्रेष्ठ आत्मा इसके आधार से अलौकिक अनुभव करती है। तो आत्मा और शरीर कम्बाइन्ड है। पुराने शरीर के भान में नहीं आना है लेकिन मालिक बन इस द्वारा कार्य कराने हैं इसलिए आत्म-अभिमानी बन, कर्मयोगी बन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराते हैं।
 
दूसरा-अलौकिक विचित्र कम्बाइन्ड रूप। जो सारे कल्प में इस कम्बाइन्ड रूप का अनुभव सिर्फ अब कर सकते हो। वह है ''आप और बाप'' इस कम्बाइन्ड रूप का अनुभव। सदा मास्टर सर्वशक्तिवान सदा विजयी सदा सर्व के विघ्न-विनाशक। सदा शुभ भावना, श्रेष्ठ कामना, श्रेष्ठ वाणी, श्रेष्ठ दृष्टि, श्रेष्ठ कर्म द्वारा विश्व कल्याणकारी स्वरूप का अनुभव कराता है। सेकण्ड में सर्व समस्याओं का समाधान स्वरूप बनाता है। स्वयं के प्रति वा सर्व के प्रति दाता और मास्टर वरदाता बनाता है। सिर्फ इस कम्बाइन्ड रूप में सदा स्थित रहो तो सहज ही याद और सेवा के सिद्धि स्वरूप बन जाओ। विधि निमित्त मात्र हो जायेगी और सिद्धि सदा साथ रहेगी। अभी विधि में ज्यादा समय लगता है। सिद्धि यथा शक्ति अनुभव होती है। लेकिन जितना इस अलौकिक शक्तिशाली कम्बाइन्ड रूप में सदा रहेंगे तो विधि से ज्यादा सिद्धि अनुभव होगी। पुरुषार्थ से प्राप्ति ज्यादा अनुभव होगी। सिद्धि स्वरूप का अर्थ ही है हर कार्य में सिद्धि हुई पड़ी है। यह प्रैक्टिकल में अनुभव हो।
 
तीसरा कम्बाइन्ड रूप - हम सो ब्राह्मण सो फरिश्ता। ब्राह्मण रूप और अन्तिम कर्मातीत फरिश्ता स्वरूप। इस कम्बाइन्ड रूप की अनुभूति विश्व के आगे साक्षात्कार मूर्त बनायेगी। ब्राह्मण सो फरिश्ता इस स्मृति द्वारा चलते-फिरते अपने को व्यक्त शरीर, व्यक्त देश में पार्ट बजाते हुए भी ब्रह्मा बाप के साथी अव्यक्त वतन के फरिश्ते, व्यक्त देश और देह में आये हैं विश्व सेवा के लिए। ऐसे व्यक्त भाव से परे अव्यक्त रूपधारी अनुभव करेंगे। यह अव्यक्त भाव अर्थात् फरिश्तेपन का भाव स्वत: ही अव्यक्त अर्थात् व्यक्तपन के बोल-चाल, व्यक्त भाव के स्वभाव, व्यक्त भाव के संस्कार सहज ही परिवर्तन कर लेंगे। भाव बदल गया तो सब कुछ बदल जायेगा। ऐसा अव्यक्त भाव सदा स्वरूप में लाओ। स्मृति में है कि ब्राह्मण सो फरिश्ता। अब स्मृति को स्वरूप में लाओ। स्वरूप निरन्तर स्वत: और सहज हो जाता है। स्वरूप में लाना अर्थात् सदा हैं ही अव्यक्त फरिश्ता। कभी भूले, कभी स्मृति में आवे - इस स्मृति में रहना पहली स्टेज है। स्वरूप बन जाना यह श्रेष्ठ स्टेज है।
 
चौथा है - भविष्य चतुर्भुज स्वरूप। लक्ष्मी और नारायण का कम्बाइन्ड रूप क्योंकि आत्मा में इस समय लक्ष्मी और नारायण दोनों बनने के संस्कार भर रहे हैं। कब लक्ष्मी बनेंगे, कब नारायण बनेंगे। भविष्य प्रालब्ध का यह कम्बाइन्ड स्वरूप इतना ही स्पष्ट हो। आज फरिश्ता, कल देवता। अभी-अभी फरिश्ता, अभी-अभी देवता। अपना राज्य, अपना राज्य स्वरूप आया कि आया। बना कि बना। ऐसे संकल्प स्पष्ट और शक्तिशाली हों क्योंकि आपके इस स्पष्ट समर्थ संकल्प के इमर्ज रूप से आपका राज्य समीप आयेगा। आपका इमर्ज संकल्प नई सृष्टि को रचेगा अर्थात् सृष्टि पर लायेगा। आपका संकल्प मर्ज है तो नई सृष्टि इमर्ज नहीं हो सकती। ब्रह्मा के साथ ब्राह्मणों के इस संकल्प द्वारा नई सृष्टि इस भूमि पर प्रत्यक्ष होगी। ब्रह्मा बाप भी नई सृष्टि में नया पहला पार्ट बजाने के लिए आप ब्राह्मण बच्चों के लिए, साथ चलेंगे के वायदे कारण इन्तजार कर रहे हैं। अकेला ब्रह्मा सो कृष्ण बन जाए, तो अकेला क्या करेगा? साथ में पढ़ने वाले, खेलने वाले भी चाहिए ना इसलिए ब्रह्मा बाप ब्राह्मणों प्रति बोले, कि मुझ अव्यक्त रूपधारी बाप समान अव्यक्त रूपधारी, अव्यक्त स्थितिधारी फरिश्ता रूप बनो। फरिश्ता सो देवता बनेंगे। समझा। इन सब कम्बाइन्ड रूप में स्थित रहने से ही सम्पन्न और सम्पूर्ण बन जायेंगे। बाप समान बन सहज ही कर्म में सिद्धि का अनुभव करेंगे।
 
डबल विदेशी बच्चों को बापदादा से रूह-रूहान करने वा मिलन मनाने की इच्छा तीव्र है। सभी समझते हैं कि हम आज ही मिल लेवें। परन्तु इस साकार दुनिया में सब देखना पड़ता है। सूर्य चांद के अन्दर की दुनिया है ना। उनसे परे की दुनिया में जाओ तो सारा समय बैठ जाओ। बापदादा को भी हर बच्चा अपनी-अपनी विशेषताओं से प्रिय है। कोई समझे यह प्रिय है, हम कम प्रिय हैं। ऐसी बात नहीं है। महारथी अपनी विशेषता से प्रिय हैं और बाप के आगे अपने-अपने रूप से सब महारथी हैं। महान आत्मायें हैं इसलिए महारथी हैं। यह तो कार्य चलाने के लिए किसको स्नेह से निमित्त बनाना होता है। नहीं तो कार्य के निमित्त अपना-अपना स्थान मिला हुआ है। अगर सभी दादी बन जाएं तो काम चलेगा? निमित्त तो बनाना पड़े ना। वैसे अपनी रीति से सब दादियां हो। सभी को दीदी वा दादी कहते तो हैं ना। फिर भी आप सबने मिलकर एक को निमित्त तो बनाया है ना। सभी ने बनाया वा सिर्फ बाप ने बनाया। या सिर्फ निमित्त कारोबार अर्थ अपने-अपने कार्य अनुसार निमित्त बनाना ही पड़ता है। इसका यह मतलब नहीं कि आप महारथी नहीं हो। आप भी महारथी हो। महावीर हो। माया को चैलेन्ज करने वाले महारथी नहीं हुए तो क्या हुए!
 
बापदादा के लिए सप्ताह कोर्स करने वाला बच्चा भी महारथी है क्योंकि सप्ताह कोर्स भी तब करते जब समझते हैं कि यह श्रेष्ठ जीवन बनानी है। चैलेन्ज किया तो महारथी, महावीर हुआ। बापदादा सदैव एक स्लोगन सभी बच्चों को कार्य में लाने लिए याद दिलाते रहते। एक है अपनी स्वस्थिति में रहना, दूसरा है कारोबार में आना। स्वस्थिति में तो सभी बड़े हो कोई छोटा नहीं। कारोबार में निमित्त बनाना ही पड़ता है इसलिए कारोबार में सदा सफल होने का स्लोगान है - रिगार्ड देना, रिगार्ड लेना। दूसरे को रिगार्ड देना ही रिगार्ड लेना है। देने में लेना भरा हुआ है। रिगार्ड दो तो रिगार्ड मिलेगा। रिगार्ड लेने का साधन ही है देना। आप रिगार्ड दो और आपको नहीं मिले, यह हो नहीं सकता। लेकिन दिल से दो, मतलब से नहीं। जो दिल से रिगार्ड देता है उसको दिल से रिगार्ड मिलता है। मतलब का रिगार्ड देंगे तो मिलेगा भी मतलब का। सदैव दिल से दो और दिल से लो। इस स्लोगन द्वारा सदा ही निर्विघ्न, निरसंकल्प, निश्चिन्त रहेंगे। मेरा क्या होगा यह चिन्ता नहीं रहेगी। मेरा हुआ ही पड़ा है, बना ही पड़ा है, निश्चिन्त रहेंगे। और ऐसी श्रेष्ठ आत्मा की श्रेष्ठ प्रालब्ध वर्तमान और भविष्य निश्चित ही है। इसको कोई बदल नहीं सकता। कोई किसकी सीट ले नहीं सकता, निश्चित है। निश्चित है इसलिए निश्चिंत है, इसको कहा जाता है बाप समान फालो फादर करने वाले। समझा।
 
डबल विदेशी बच्चों पर तो विशेष स्नेह है। मतलब का नहीं। दिल का स्नेह है। बापदादा ने सुनाया था एक पुराना गीत है - ऊंची-ऊंची दीवारें... यह डबल विदेशियों का गीत है। समुद्र पार करते हुए, धर्म, देश, भाषा सब ऊंची-ऊंची दीवारें पार करके बाप के बन गये, इसलिए बाप को प्रिय हो। भारतवासी तो थे ही देवताओं के पुजारी। उन्होंने ऊंची दीवारें पार नहीं की। लेकिन आप डबल विदेशियों ने यह ऊंची-ऊंची दीवारें कितना सहज पार की इसलिए बापदादा दिल से बच्चों की इस विशेषता का गीत गाते हैं। समझा। सिर्फ खुश करने के लिए नहीं कह रहे हैं। कई बच्चे रमत-गमत में कहते हैं कि बापदादा तो सभी को खुश कर देते हैं। लेकिन खुश करते हैं अर्थ से। आप अपने से पूछो बापदादा ऐसे ही कहते हैं या यह प्रैक्टिकल है! ऊंची-ऊंची दीवारें पार कर गये हो ना! कितनी मेहनत से टिकेट निकालते हो। यहाँ से जाते ही पैसे इकट्ठे करते हो ना। बापदादा जब बच्चों का स्नेह देखते हैं, स्नेह से कैसे पहुँचने के लिए साधन अपनाते हैं, किस तरीके से पहुँचते हैं, बापदादा स्नेही आत्माओं का स्नेह का साधन देख, लगन देख, खुश होते हैं। दूर वालों से पूछो कैसे आते हैं? मेहनत करके फिर भी पहुँच तो जाते हैं ना। अच्छा।
 
सदा कम्बाइन्ड रूप में स्थित रहने वाले, सदा बाप समान अव्यक्त भाव में स्थित रहने वाले, सदा सिद्धि स्वरूप अनुभव करने वाले, अपने समर्थ समान स्वरूप द्वारा साक्षात्कार कराने वाले, ऐसे सदा निश्चिन्त, सदा निश्चित विजयी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
 
सानफ्रंसिसको ग्रुप से:- सभी स्वयं को सारे विश्व में विशेष आत्मायें हैं - ऐसे अनुभव करते हो? क्योंकि सारे विश्व की अनेक आत्माओं में से बाप को पहचानने का भाग्य आप विशेष आत्माओं को मिला है। ऊंचे ते ऊंचे बाप को पहचानना यह कितना बड़ा भाग्य है! पहचाना, सम्बन्ध जोड़ा और प्राप्ति हुई। अभी अपने को बाप के सर्व खजानों के मालिक अनुभव करते हो? जब सदा बच्चे हैं तो बच्चे माना ही अधिकारी। इसी स्मृति से बार-बार रिवाइज़ करो। मैं कौन हूँ! किसका बच्चा हूँ! अमृतवेले शक्तिशाली स्मृति स्वरूप का अनुभव करने वाले ही शक्तिशाली रहते हैं। अमृतवेला शक्तिशाली नहीं तो सारे दिन में भी बहुत विघ्न आयेंगे इसलिए अमृतवेला सदा शक्तिशाली रहे। अमृतवेले स्वयं बाप बच्चों को विशेष वरदान देने आते हैं। उस समय जो वरदान लेता है उसका सारा दिन सहजयोगी की स्थिति में रहता है। तो पढ़ाई और अमृतवेले का मिलन यह दोनों ही विशेष शक्तिशाली रहें। तो सदा ही सेफ रहेंगे।
 
जर्मनी ग्रुप से:- सदा अपने को विश्व कल्याणकारी बाप के बच्चे विश्व कल्याणकारी आत्मायें समझते हो? अर्थात् सर्व खजानों से भरपूर। जब अपने पास खजाने सम्पन्न होंगे तब दूसरों को देंगे ना! तो सदा सर्व खजानों से भरपूर आत्मायें बालक सो मालिक हैं! ऐसा अनुभव करते हो? बाप कहा माना बालक सो मालिक हो गया। यही स्मृति विश्व कल्याणकारी स्वत: बना देती है। और यही स्मृति सदा खुशी में उड़ाती है। यही ब्राह्मण जीवन है। सम्पन्न रहना, खुशी में उड़ना और सदा बाप के खजानों के अधिकार के नशे में रहना। ऐसे श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्मायें हो। अच्छा।
 
वरदान:-अपने हर कर्म और बोल द्वारा चलते फिरते हर आत्मा को शिक्षा देने वाले मास्टर शिक्षक भव
 
जैसे आजकल चलती-फिरती लाइब्रेरी होती है, ऐसे आप भी चलते-फिरते मास्टर शिक्षक हो। सदा अपने सामने स्टूडेन्ट देखो, अकेले नहीं हो, सदा स्टूडेन्ट के सामने हो। सदा स्टडी कर भी रहे हो और करा भी रहे हो। योग्य शिक्षक कभी स्टूडेन्ट के आगे अलबेले नहीं होंगे, अटेन्शन रखेंगे। आप सोते हो, उठते हो, चलते हो, खाते हो, हर समय समझो हम बड़े कालेज में बैठे हैं, स्टूडेन्ट देख रहे हैं।
 
स्लोगन:-आत्म निश्चय से अपने संस्कारों को सम्पूर्ण पावन बनाना ही श्रेष्ठ योग है।
 
 
28/10/18              Madhuban          Avyakt BapDada               Om Shanti           22/02/84
The experience of the four combined forms of the confluence age.
 
Today, BapDada is seeing the combined forms of all the children. Does each of you children know your combined form very well? Firstly, you elevated souls are combined with your last old bodies, but bodies that make you extremely valuable. All of you elevated souls are carrying out an elevated task with the support of those bodies and are also experiencing a meeting with BapDada through them. Each one has an old body, but the greatness of that final body is that you elevated souls have an alokik experience through it. Therefore, the soul and body are combined. You mustn't have any consciousness of it being an old body, but be the master of it and make it work. Therefore, become soul conscious and a karma yogi and enable the physical organs to work.
 
Secondly, there is the combined form of your alokik form and the Form without an image. Out of the whole cycle, it is only now that you can experience this combined form. This is the experience of the combined form of you and the Father. By always remaining a master almighty authority, always being victorious, always being a destroyer of obstacles for everyone, always having good wishes and elevated feelings, elevated words, elevated drishti and elevated actions, you give others the experience of your being a world benefactor. This makes you an embodiment of solutions to all problems in a second. It makes you a bestower and master bestower of blessings for yourself and for others. Simply remain constantly stable in this combined form and you will easily become an embodiment of success in remembrance and service. The method will just be in name and success will always be with you. At this time, a lot more time is taken up following the method. Success is experienced according to your capacity. However, the more you constantly remain in this alokik, powerful, combined form, the more success you will experience through the method. You will then experience greater attainment than the effort you make. The meaning of being an embodiment of success is that success is already guaranteed for every task. Let this be your practical experience.
 
 
The third combined form is: "I, the Brahmin, who am an angel” – the Brahmin form and the final karmateet angelic form. The experience of this combined form will make you into an image that grants this world visions. By having the awareness of being a Brahmin and an angel as you walk and move around and as you play your part in the corporeal world through your physical body, you will experience yourself to be a companion of Father Brahma, an angel of the subtle region, who has come to the corporeal world into a body for world service. You will experience yourself to be beyond corporeal feelings and one who has adopted an avyakt form. These avyakt feelings, that is, feelings of being an angel, will automatically make you avyakt, that is, they will easily transform the sanskars of gross words and behaviour, of a gross nature and gross feelings. When feelings change, everything changes. Let there always be such avyakt feelings in your form. Let your awareness be that you are Brahmins who are angels. Let that awareness now take a practical form. The form is constantly easily and automatically maintained. To put it into a practical form means that you are always an avyakt angel. To stay in the awareness of sometimes forgetting and sometimes remembering is the first stage. To become the form is the elevated stage.
 
Fourthly, the future four-armed image – the combined form of Lakshmi and Narayan – because, at this time, you souls are being filled with the sanskars of becoming like both Lakshmi and Narayan. Sometimes, you will become Lakshmi and sometimes, you will become Narayan. Let the combined form of the future reward be just as clear. Today an angel and tomorrow a deity. One moment an angel and the next moment a deity. Your kingdom and your royal form are about to come. They are almost ready. Let your thoughts be clear and powerful in this way, because when your clear and powerful thoughts emerge, your kingdom will come close. When your thoughts have emerged, they will create the new world, that is, they will bring it into this world. When your thoughts are merged, the new world cannot be made to emerge. The thought of Brahma, along with that of Brahmins too, will reveal the new world on this earth. Father Brahma is still waiting to play the first part in the new world with you Brahmin children because of his promise to go with you. If Brahma alone were simply to become Krishna, then what would he do by himself? He also needs those who are to play with him and study with him. This is why Father Brahma says to the Brahmins: Become equal to me, the father who has adopted the avyakt form, that is, be those with an avyakt form and an angelic stage. Angels will become deities. Do you understand? Only by remaining stable in all these combined forms, will you become complete and perfect. You will become equal to the Father and easily experience success in your deeds.
 
Double foreigners have a deep desire to have a conversation and to celebrate a meeting with BapDada. You all feel that you should meet Baba today. However, everything has to be considered in this corporeal world. It is the world under the sun, moon and stars. Come to the world beyond all of this and you can sit there all the time. BapDada also loves every child for his or her speciality. Some of you think that certain ones are loved more and that you yourselves are not loved as much. It is not like that. Maharathis are loved because of their own speciality and, in front of the Father, each of you is a maharathi in your own way. You are great souls and therefore maharathis. In order to carry on with the task, someone has to be made an instrument with love. Otherwise, you have all received your own places for the sake of the task. Would anything work if everyone were to become a Dadi? Someone has to be made an instrument. In fact, in your own way, all of you are Dadis. Everyone is called Didi or Dadi. Nevertheless, all of you together have made one an instrument. Did all of you make her the instrument or was it just the Father who made her an instrument? Someone has to be made an instrument for the sake of the activities and according to each one's task. This doesn't mean that all of you are not maharathis. You too are maharathis. You are mahavirs. If those who challenge Maya are not maharathis, then what are they?
 
For BapDada, even the children who do the seven days’ course are maharathis because they only do the weekly course and they then understand that they want to make their lives this elevated. They have issued a challenge and so they are maharathis and mahavirs. BapDada constantly reminds all of you children to put a slogan into practice. One thing is to maintain your original stage and the other is to interact with others. In your original stage, all of you are big, none of you are small. In business activity, someone has to be made an instrument. Therefore, in order to remain constantly successful in your business and activity, the slogan is: Give regard and receive regard. To give regard to others is to receive regard. Receiving is merged in the giving. Give regard and you will receive regard. The way to receive regard is to give it. It is not possible not to receive regard when you give regard. However, give it from your heart, not just superficially for your own gain. Those who give regard from their hearts receive regard in their hearts. If you give superficial regard, you will receive superficial regard. Always give from your heart and receive with your heart. With this slogan, you will always remain free from obstacles, free from waste thoughts and carefree. You won't then have the worry: What will happen to me? Everything to do with me is already accomplished. It is already guaranteed. You will remain carefree, and the elevated reward of the present and the future is already fixed for such elevated souls. No one can change this. No one can take anyone else's seat; it is fixed. It is fixed and you are therefore carefree. This is called being equal to the Father and being one who follows the Father. Do you understand?
 
Baba has special love for the double-foreign children - not superficial love, but love from the heart. BapDada has told you that there is an old song: I came having crossed very high barriers of the world. This is the song of the double foreigners. You crossed all the high barriers of the ocean, religions, countries and languages and belonged to the Father. This is why you are loved by the Father. The people of Bharat were worshippers of the deities anyway; they have not crossed high barriers. However, you double-foreigners have crossed the high barriers so easily. This is why BapDada sings songs from His heart of this speciality of you children. Do you understand? Baba is not telling you this just to please you. Some children playfully say that BapDada pleases everyone. However, Baba pleases each one meaningfully. Ask yourselves whether BapDada is saying this just for the sake of it or whether it is practical. You have crossed high barriers and come here, have you not? You get your ticket with so much effort. As soon as you leave here, you start to save money for it. BapDada sees the love of you children, and the methods you adopt to come here with so much love, and how you actually arrive here, then, seeing the methods of love and the deep love of you loving souls, BapDada is pleased. Ask those from far away how they come here. Even though they have to make effort, at least they arrive here. Achcha.
 
To those who remain constantly stable in the combined form, to those who remain constantly stable in the avyakt feeling, the same as the Father, to those who constantly experience being an embodiment of success, to those who grant a vision through their powerful equal form, to those who are constantly carefree and are guaranteed to be victorious, to such children, BapDada's love, remembrance and namaste.
 
BapDada speaking to the group from San Francisco:
 
Do all of you experience yourselves to be special souls of the whole world? This is because, out of all the souls of the world, you special souls have received the fortune of recognising the Father. To recognise the highest-on-high Father is such great fortune! You recognised Him, forged a relationship with Him and experienced benefit. Now, do you experience yourselves to be the masters of all of the Father's treasures? Since you are always His children, then to be a child of His means always to have a right. Revise this awareness again and again: "Who am I? Whose child am I?" Only those who experience a powerful form of awareness at amrit vela remain powerful. If amrit vela is not powerful, then many obstacles will come throughout the day. Therefore, let amrit vela always be powerful. At amrit vela, the Father Himself comes to give you children special blessings. Those who take these blessings at that time are able to have the stage of an easy yogi throughout the day. So let the combination of study and amrit vela always remain especially powerful. You will then always remain safe.
 
Speaking to the German group:
 
Do you always consider yourselves to be world benefactor souls, children of the World Benefactor Father? This means to be full of all treasures. Only when you yourself are full of all treasures can you give to others. Therefore, you are souls who are always full of all treasures, children and so masters. Do you experience this? To say "Father" means to be a child and a master. This awareness automatically makes you a world benefactor, and this awareness makes you constantly fly in happiness. This Brahmin life means to remain full, to fly with happiness and always to have the intoxication of having a right to the Father's treasures. You are such elevated Brahmin souls. Achcha.
 
Blessing:May you be a master teacher who gives teachings through your every act and word while you walk and move around.
 
Just as they have mobile libraries nowadays, similarly, you too are walking and moving master teachers. Always see your students in front of you; you are not alone, your students are always in front of you. You are constantly studying and also teaching. Worthy teachers are never careless in front of their students, they pay attention. When you go to sleep, when you wake up, when you walk and when you eat, think at every moment that you are in a big college and that your students are watching you.
 

Slogan:To purify your sanskars completely with faith in the self (soul) is elevated yoga.

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