Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 26th Oct 2018 )
26-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - श्रीमत पर चलो तो तुम्हारे सब भण्डारे भरपूर हो जायेंगे, तुम्हारी तकदीर ऊंची बन जायेगी''
 
प्रश्नः-
 
इस कलियुग में किस चीज़ का देवाला निकल चुका है? देवाला निकलने से इसकी गति क्या हुई है?
 
उत्तर:-
 
कलियुग में पवित्रता, सुख और शान्ति का देवाला निकल चुका है इसलिए भारत सुखधाम से दु:खधाम, हीरे से कौड़ी जैसा बन गया है। यह खेल सारा भारत पर है। खेल के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान अभी बाप तुम्हें सुना रहे हैं। तकदीरवान, सौभाग्यशाली बच्चे ही इस ज्ञान को अच्छी रीति समझ सकते हैं।
 
गीत:-भोलेनाथ से निराला .........  ओम् शान्ति।
 
भगवानुवाच। कौन-सा भगवान्? भोलानाथ शिव भगवानुवाच। बाप भी समझाते हैं, टीचर का भी काम है समझाना। सतगुरू का भी काम है समझाना। शिवबाबा को ही सत बाबा, भोलानाथ कहा जाता है। शंकर को भोला नहीं कहेंगे। उनके लिए तो कहते हैं आंख खोली तो सृष्टि को भस्म कर दिया। भोला भण्डारी शिव को कहते हैं अर्थात् भण्डारा भरपूर करने वाला। कौनसा भण्डारा? धन-दौलत, सुख-शान्ति का। बाप आये ही हैं पवित्रता-सुख-शान्ति का भण्डारा भरपूर करने। कलियुग में पवित्रता-सुख-शान्ति का देवाला है क्योंकि रावण ने श्राप दिया हुआ है। सब शोक वाटिका में रोते पीटते रहते हैं। भोलानाथ शिव बैठ सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं अर्थात् तुम बच्चों को त्रिकालदर्शी बनाते हैं। ड्रामा को तो और कोई जानते नहीं। माया ने बिल्कुल ही बेसमझ बना दिया है। भारत का ही यह हार-जीत, दु:-सुख का नाटक है। भारत हीरे जैसा सालवेन्ट था, अब कौड़ी जैसा इनसालवेन्ट है। भारत सुखधाम था, अब दु:खधाम है। भारत हेविन था, अब हेल है। हेल से फिर हेविन कैसे बनता है, उसके आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सिवाए ज्ञान सागर के कोई समझा सके। यह भी बुद्धि में निश्चय होना चाहिए। निश्चय उनको होता है जिनकी तकदीर खुलनी होती है, जो सौभाग्यशाली बनने वाले हैं। दुर्भाग्यशाली तो सब हैं ही। दुर्भाग्यशाली माना तकदीर बिगड़ी हुई है। भ्रष्टाचारी हैं। बाप आकर श्रेष्ठाचारी बनाते हैं। परन्तु उस बाप को भी कोई मुश्किल समझ सकते हैं क्योंकि उनको देह नहीं है। सुप्रीम आत्मा बात करती है। पावन आत्मायें होती ही हैं सतयुग में। कलियुग में सब पतित हैं। अनेक मनोकामनायें लेकर जगदम्बा के पास जाते हैं, जानते कुछ भी नहीं फिर भी बाप कहते हैं जो-जो, जिस-जिस भावना से पूजा करते हैं तो मैं उनको अल्पकाल क्षणभंगुर लिए फल दे देता हूँ। जड़ मूर्ति कभी उसका फल नहीं दे सकती। फल देने वाला, अल्पकाल सुख देने वाला मैं ही हूँ और बेहद के सुख का दाता भी मैं ही हूँ। मैं दु:खदाता नहीं हूँ। मैं तो दु: हर्ता सुख कर्ता हूँ। तुम आये हो सुखधाम में स्वर्ग का वर्सा पाने। इसमें परहेज बहुत है। बाप समझाते हैं आदि में है सुख, फिर मध्य में भक्ति मार्ग शुरू होता है तो सुख पूरा हो दु: शुरू होता है। फिर देवी-देवता वाम मार्ग, विकारी मार्ग में गिर पड़ते हैं। जहाँ से ही फिर भक्ति शुरू होती है। तो आदि में सुख, मध्य में दु: शुरू होता है। अन्त में तो महान् दु: है। बाप कहते हैं अब सर्व का शान्ति, सुख दाता मैं हूँ। तुमको सुखधाम में चलने लिए तैयार कर रहा हूँ। बाकी सब हिसाब-किताब चुक्तू कर शान्तिधाम में चले जायेंगे। सजायें तो बहुत खायेंगे। ट्रिब्युनल बैठती है। बाबा ने समझाया है काशी में भी बलि चढ़ते थे। काशी कलवट कहते हैं ना। अब काशी में है शिव का मन्दिर। वहाँ भक्ति मार्ग में शिवबाबा की याद में रहते हैं। कहते हैं - बस, अब आपके पास आऊं। बहुत रो-रो कर शिव पर बलि चढ़ते हैं तो अल्पकाल क्षण भंगुर थोड़ा फल मिल जाता है। यहाँ तुम बलि चढ़ते हो अर्थात् जीते जी शिवबाबा का बनते हो 21 जन्म का वर्सा पाने के लिए। जीवघात की बात नहीं। जीते जी बाबा मैं आपका हूँ। वह तो शिव पर बलि चढ़ते हैं, मर जाते हैं, समझते हैं हम शिवबाबा का बन जाऊंगा। परन्तु बनते नहीं हैं। यहाँ तो जीते जी बाप का बने, गोद में आये फिर बाप की मत पर चलना पड़े, तब ही श्रेष्ठ देवता बन सकते हैं। तुम अब बन रहे हो। कल्प-कल्प तुम यह पुरुषार्थ करते आये हो। यह कोई नई बात नहीं।
 
दुनिया पुरानी होती है। फिर जरूर नई चाहिए ना। भारत नया सुखधाम था, अब पुराना दु:खधाम है। मनुष्य इतने पत्थरबुद्धि हैं जो यह नहीं समझते कि सृष्टि एक ही है। वह सिर्फ नई और पुरानी होती है। माया ने बुद्धि को ताला लगाए बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि बना दिया है, इसलिए आक्यूपेशन जानने बिगर ही देवताओं की पूजा करते रहते हैं, इसको ब्लाइन्डफेथ कहा जाता है। देवियों की पूजा में करोड़ों रूपया खर्च करते हैं, उनकी पूजा कर खिला-पिलाकर फिर समुद्र में डुबो देते हैं तो यह गुड़ियों की पूजा हुई ना। इससे क्या फायदा? कितना धूमधाम से मनाते हैं, खर्चा करते हैं, हफ्ता बाद जैसे शमशान में दफन करते हैं वैसे यह फिर सागर में डुबो देते हैं। भगवानुवाच - यह आसुरी सम्प्रदाय का राज्य है, मैं तुमको दैवी सम्प्रदाय बनाता हूँ। कोई को निश्चय बैठना बड़ा कठिन है क्योंकि साकार में नहीं देखते। आगाखां साकार में था तो उनके कितने फालोअर्स थे, उनको सोने-हीरों में वज़न करते थे। इतनी महिमा कोई बादशाह की भी नहीं होती। तो बाप समझाते हैं - इसको अन्धश्रधा कहा जाता है क्योंकि स्थाई सुख तो नहीं है ना। बहुत गन्दे भी होते हैं, बड़े-बड़े आदमियों से बड़े पाप होते हैं। बाप कहते हैं मैं गरीब निवाज हूँ। गरीबों से इतने पाप नहीं होंगे। इस समय सब पाप आत्मायें है। अभी तुमको बेहद का बाप मिला है फिर भी घड़ी-घड़ी उनको भूल जाते हो। अरे, तुम आत्मा हो ना! आत्मा को भी कभी कोई ने देखा नहीं है। समझते हैं स्टॉर मिसल भ्रकुटी के बीच रहती है। जब आत्मा निकल जाती है तो शरीर खलास हो जाता है। आत्मा स्टॉर मिसल है तो जरूर मुझ आत्मा का बाप भी हमारे जैसा होगा। परन्तु वह सुख का सागर, शान्ति का सागर है। निराकार वर्सा कैसे देंगे? जरूर भ्रकुटी के बीच आकर बैठेंगे। आत्मा अब ज्ञान धारण कर दुर्गति से सद्गति में जाती है। अब जो करेगा सो पायेगा। बाप को याद नहीं करते तो वर्सा भी नहीं पायेंगे। कोई को आप समान वर्सा पाने लायक नहीं बनाते हैं तो समझते हैं पाई-पैसे का पद पा लेंगे। श्रेष्ठाचारी और भ्रष्टाचारी किसको कहा जाता है, यह बाप बैठ समझाते हैं। भारत में ही श्रेष्ठाचारी देवतायें होकर गये हैं। गाते भी हैं हेविनली गॉड फादर...... परन्तु जानते नहीं हैं कि हेविनली गॉड फादर कब आकर सृष्टि को हेविन बनाते हैं। तुम जानते हो, सिर्फ पूरा पुरुषार्थ नहीं करते हो, वह भी ड्रामा अनुसार होना है, जितना जिसकी तकदीर में है। बाबा से अगर कोई पूछे तो बाबा झट बता सकते हैं कि इस चलन में अगर तुम्हारा शरीर छूट जाए तो यह पद पायेंगे। परन्तु पूछने की भी हिम्मत कोई नहीं रखते हैं। जो अच्छा पुरुषार्थ करते हैं वह समझ सकते हैं हम कितने अंधों की लाठी बनते हैं? बाप भी समझ जाते हैं - यह अच्छा पद पायेंगे, यह बच्चा कुछ भी सर्विस नहीं करता तो वहाँ भी दास-दासी जाकर बनेंगे। झाड़ू आदि लगाने वाले, कृष्ण की पालना करने वाले, महारानी का श्रृंगार करने वाले दास-दासियां भी होते हैं ना। वह हैं पावन राजायें, यह हैं पतित राजायें। तो पतित राजायें पावन राजाओं के मन्दिर बनाकर उन्हों की पूजा करते हैं। जानते कुछ भी नहीं।
 
बिरला मन्दिर कितना बड़ा है। कितने लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर बनाते हैं, परन्तु जानते नहीं कि लक्ष्मी-नारायण कौन हैं? फिर उनको कितना फ़ायदा मिलेगा? अल्पकाल का सुख। जगत अम्बा के पास जाते हैं, यह थोड़ेही जानते कि यह जगत-अम्बा ही लक्ष्मी बनती है। इस समय तुम जगत अम्बा से विश्व की सब मनोकामनायें पूरी कर रहे हो। विश्व का राज्य ले रहे हो। जगत अम्बा तुमको पढ़ा रही है। वही फिर लक्ष्मी बनती है। जिससे फिर वर्ष-वर्ष भीख मांगते हैं। कितना फ़र्क है! लक्ष्मी से हर वर्ष पैसे की भीख मांगते हैं। लक्ष्मी को ऐसे नहीं कहेंगे हमको बच्चा चाहिए या बीमारी दूर करो। नहीं, लक्ष्मी से सिर्फ धन मांगते हैं। नाम ही है लक्ष्मी-पूजन। जगत अम्बा से तो बहुत कुछ मांगते हैं। वह सब कामनायें पूरी करने वाली है। अभी तुमको जगत अम्बा से मिलती है - स्वर्ग की बादशाही। लक्ष्मी से हर वर्ष कुछ कुछ धन का फल मिलता है, तब तो हर वर्ष पूजा करते हैं। समझते हैं धन देने वाली है। धन से फिर पाप करते रहते। धन प्राप्ति के लिए भी पाप करते हैं।
 
अभी तुम बच्चों को मिलते हैं अविनाशी ज्ञान रत्न, जिससे तुम मालामाल बन जायेंगे। जगत अम्बा से स्वर्ग की राजाई मिलती है। वहाँ पाप होता नहीं। कितनी समझ की बातें हैं। कोई तो अच्छी रीति समझते हैं, कोई तो कुछ समझते नहीं हैं क्योकि तकदीर में नहीं है। श्रीमत पर नहीं चलते तो श्रेष्ठ थोड़ेही बनेंगे। फिर पद भ्रष्ट हो जाता है। सारी राजधानी स्थापन हो रही है - यह समझना है। गॉड फादर हेविनली किंगडम स्थापन कर रहे हैं फिर भारत हेविन बन जायेगा। इसको कहा जाता है कल्याणकारी युग। यह है बहुत से बहुत 100 वर्ष का युग। और सभी युग 1250 वर्ष के हैं। अजमेर में वैकुण्ठ का मॉडल है, दिखलाते हैं स्वर्ग कैसा होता है। स्वर्ग तो जरूर यहाँ ही होगा ना। थोड़ा भी सुना तो स्वर्ग में आयेंगे, परन्तु पढ़ेंगे नहीं तो जैसे भील हैं। प्रजा भी नम्बरवार होती है ना। परन्तु वहाँ गरीब, साहूकार सुख सबको रहता है। यहाँ तो दु: ही दु: है। भारत सतयुग में सुखधाम था, कलियुग में दु:खधाम है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होनी है। गॉड एक है। वर्ल्ड भी एक है। नई वर्ल्ड में पहले है भारत। अभी भारत पुराना है जिसको फिर नया बनना है। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी ऐसे रिपीट होती रहती है और कोई इन बातों को नहीं जानते। सब तो एक जैसे नहीं होते हैं। मर्तबे तो वहाँ भी रहेंगे। वहाँ सिपाही लोग होते नहीं क्योंकि वहाँ डर होता नहीं। यहाँ तो डर है इसलिए सिपाही आदि रखते हैं। भारत में टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं। सतयुग में पार्टीशन होता नहीं। लक्ष्मी-नारायण का एक ही राज्य चलता है। पाप कोई होता नहीं। अब बाप कहते हैं - बच्चे, मेरे से सदा सुख का वर्सा लो, मेरी मत पर चलकर। सद्गति का मार्ग एक ही बाप दिखाते हैं। यह है शिव शक्ति सेना, जो भारत को स्वर्ग बनाती है। यह तन-मन-धन सब इस सेवा में लगाते हैं। उस बापू जी ने क्रिश्चियन को भगाया, यह भी ड्रामा में था। परन्तु उनसे कोई सुख नहीं हुआ और ही दु: है। अन्न है नहीं, गपोड़े मारते रहते हैं, यह मिलेगा, यह होगा...... मिलना है सिर्फ बाप से। बाकी यह तो सब ख़त्म हो जायेगा। कहते हैं बर्थ कन्ट्रोल करो, उसके लिए माथा मारते रहते हैं, होगा कुछ भी नहीं। अभी थोड़ी लड़ाई शुरू हो जाए तो फेमन पड़ जायेगा। एक-दो में मारामारी हो जायेगी। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जीते जी बाप पर बलि चढ़ना है अर्थात् बाप का बनकर बाप की ही श्रीमत पर चलना है। आप समान बनाने की सेवा करनी है।
2) अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान कर जगदम्बा समान सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाला बनना है।
 
वरदान:-हर बात में कल्याण समझकर अचल, अडोल महावीर बनने वाले त्रिकालदर्शी भव
 
कोई भी बात एक काल की दृष्टि से नहीं देखो, त्रिकालदर्शी होकर देखो। क्यों, क्या के बजाए सदा यही संकल्प रहे कि जो रहा है उसमें कल्याण है। जो बाबा कहे वह करते चलो, फिर बाबा जाने बाबा का काम जाने। जैसे बाबा चलाये वैसे चलो तो उसमें कल्याण भरा हुआ है। इस निश्चय से कभी डगमग नहीं होंगे। संकल्प और स्वप्न में भी व्यर्थ संकल्प आयें तब कहेंगे अचल, अडोल महावीर।
 
स्लोगन:-तपस्वी वह है जो श्रीमत के इशारे प्रमाण सेकण्ड में न्यारा और प्यारा बन जाये।
 
 
26/10/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, follow shrimat and all your treasure-stores will be completely full. Your fortune will become elevated.
 
Question:
 
What has this iron age become bankrupt in? Because of becoming bankrupt, what has its condition become?
 
Answer:
 
The iron age has become bankrupt of purity, happiness and peace. This is why Bharat has become the land of sorrow from the land of happiness and like shells from diamonds. This whole play is based on Bharat. The Father is now telling you children the beginning, middle and end of this play. Only the fortunate children can understand this knowledge very clearly.
 
Song:
 
No one is as unique as the Innocent Lord. 
 
Om Shanti
 
God speaks. Which God? The Innocent Lord, God Shiva speaks. The Father explains to you. The Teacher's duty is also to explain to you. The duty of the Satguru too is to explain to you. Only Shiv Baba is called the true Baba. He is called the Innocent Lord. Shankar cannot be called innocent. It is said of him that when he opened his eye, he burnt the world. Shiva is called the Innocent Lord of the Treasures, that is, He is the One who makes your treasure-stores completely full. Which treasure-stores? Those of wealth, happiness and peace. The Father has come to make your treasure-stores of purity, happiness and peace completely full. In the iron age, there is bankruptcy of purity, happiness and peace because Ravan has cursed it. Everyone continues to weep and wail in the cottage of sorrow. The Innocent Lord Shiva sits here and explains to you the secrets of the beginning, middle and end of the world, that is, He makes you children trikaldarshi. No one else knows the drama. Maya has made everyone completely senseless. This play of victory and defeat and happiness and sorrow is of Bharat. Bharat was solvent like a diamond and is now insolvent like a shell. Bharat was the land of happiness and is now the land of sorrow. Bharat was heaven and is now hell . No one except the Ocean of Knowledge can give you the knowledge of its beginning, middle and end or how it becomes hell from heaven. Your intellects have to have this faith. Those whose fortune is to open, that is, those who are to become fortunate have this faith. All are unfortunate now. To be unfortunate means to have one’s fortune spoilt. They are corrupt; the Father comes and makes them elevated. However, hardly anyone understands that Father because He doesn't have a body. The Supreme Soul speaks. There are only pure souls in the golden age. In the iron age, all are impure. People go to Jagadamba with so many desires. They don’t know anything. Even then, the Father says: Whatever feelings people worship someone with, I give them the temporary fruit of that. A non -living idol can never give them the fruit. I alone am the One who gives them the fruit and temporary happiness. I am also the Bestower of unlimited happiness. I am not a bestower of sorrow. I am the Remover of Sorrow and the Bestower of Happiness. You have come to claim your inheritance of heaven in the land of happiness. There are a lot of precautions to be observed in this. The Father explains: In the beginning there is happiness. Then, in the middle, the path of devotion begins and so happiness ends and sorrow begins. At that time, when devotion begins the deities fall onto the path of sin, the vicious path. So there is happiness in the beginning, whereas sorrow begins in the middle. At the end, there is great sorrow. The Father says: I am the Bestower of Peace and Happiness to All. I am making you ready to go to the land of happiness. All the rest will settle their accounts and go to the land of peace. There will be a lot of punishment experienced; the Tribunal will sit. Baba has explained that people used to sacrifice themselves at Kashi. They speak of Kashi Kalvat (the sacrifice at Kashi). There is a temple to Shiva at Kashi. On the path of devotion, they stay there in remembrance of Shiv Baba. They say: This is it! I am now going to come to You. They cry a great deal and sacrifice themselves to Shiva and so they receive temporary happiness for that. Here, you sacrifice yourselves, that is, you belong to Shiv Baba while alive in order to claim your inheritance for 21 births. There is no question of suicide. While alive you say: Baba, I am Yours. Those people sacrifice themselves to Shiva. They believe that, by dying, they will belong to Shiv Baba, but they don't belong to Him. Here, you belong to the Father while alive. You go into His lap and you therefore have to follow the Father's directions. Only then can you become elevated deities. You are now becoming that. You have been making this effort for cycle after cycle. This is not anything new. The world becomes old. In that case, a new one is surely needed. Bharat was the new land of happiness and it is now the old land of sorrow. People have such stone intellects that they don't understand that there is just one world, that it simply becomes new and old. Maya has locked their intellects and made them completely degraded. This is why they continue to worship the deities without knowing their occupation. That is called blind faith. They spend millions of rupees worshipping the goddesses. They worship them, feed them and then sink them in the sea. Therefore, that is the worship of dolls, is it not? What is the benefit of that? They celebrate with a lot of pomp and joy and spend so much money. Then, after a week, they sink them in the sea just as people are buried in a cemetery. God speaks: this is the rule of the devilish community and I make you into the deity community. It is very difficult to make someone have faith because Baba does not have a physical form. The Aga Khan had a physical form and he had so many followers. They used to weigh him in gold. The Father explains: That is called blind faith. At this time, no one has permanent happiness. There are many who are very bad. Important people commit big sins. The Father says: I am the Lord of the Poor. The poor don't commit as much sin. At this time, all are sinful souls. You have now found the unlimited Father and yet you repeatedly forget Him. Ah! but you are a soul, are you not? No one has ever seen a soul. They understand that it resides in the centre of the forehead like a star. When the soul leaves the body, the body is finished. A soul is like a star, and so surely, the Father of myself, a soul, would also be like me. However, He is the Ocean of Happiness and the Ocean of Peace. How would the Incorporeal give the inheritance? He would surely come and sit in the centre of the forehead. The soul now imbibes knowledge and goes from degradation into salvation. Those who do something will receive the reward of it. If you don't remember the Father, you won't receive your inheritance. If you don't make others the same as you, worthy of claiming their inheritance, it is then understood that you will claim a status worth a few pennies. The Father sits here and explains who the elevated ones are and who the corrupt ones are. The elevated deities have been and gone from Bharat. People sing of Heavenly God, the Father, but they don't know when Heavenly God, the Father , comes and makes the world into heaven. You know this, but it is just that you don't make full effort. This also has to happen according to the drama. However much each of you has in your fortune, that is how much you will receive. If any of you were to ask Baba, Baba would instantly tell you what status you would claim if you were to leave your body with your current behaviour. However, no one has the courage to ask. Those who make good effort can understand to what extent they become sticks for the blind. The Father also understands when someone is to claim a good status or that a particular child is not doing any service and so will become a maid or servant there. There are maids and servants who sweep the floors, those who sustain Krishna and those who decorate the empress. Those are pure kings whereas these are impure kings. So, the impure kings make a temple to the pure kings and worship them. They don't know anything. The Birla temple is so big. They make so many temples to Lakshmi and Narayan, but they don't know who Lakshmi and Narayan are. So, how much benefit would they receive? Temporary happiness. They go to Jagadamba, but they don't know that this Jagadamba is the one who then becomes Lakshmi. At this time, your desires of the world are being fulfilled through Jagadamba. You are claiming the kingdom of the world. Jagadamba is teaching you now. She is the same one who then becomes Lakshmi. She is the one to whom people continue to beg every year. There is so much difference! They beg Lakshmi for wealth every year. They do not say in front of Lakshmi: I want a child. Or: Remove my illness. No, they only ask Lakshmi for wealth. The very name is ‘worship of Lakshmi’. They ask Jagadamba for a lot of things. She is the one who fulfils all their desires. You are now receiving the sovereignty of heaven through Jagadamba. From Lakshmi they receive some fruit of wealth every year, and this is why they worship her every year. They believe that she is the one who gives them wealth. They then continue to commit sin with that wealth. They even commit sin to attain wealth. You children are now receiving the imperishable jewels of knowledge with which you will become prosperous. You receive the kingdom of heaven through Jagadamba. There are no sins committed there. These matters have to be understood. Some understand this very well whereas others don't understand it at all because it is not in their fortune. If you don't follow shrimat, you won't become elevated and your status is destroyed. It has to be understood that the whole kingdom is being established. God, the Father, is establishing the heavenly kingdom and then Bharat will become heaven. This is called the benevolent age. At the most, this age is 100 years long. All the other ages are 1250 years long. In Ajmer, there is a model of Paradise. They show what heaven is like. Heaven would definitely be here, would it not? If someone hears even a little, he will go to heaven. However, if they don't study, they are like uneducated ones. Subjects too are numberwise. However, there, all the poor and the wealthy have happiness. Here, there is nothing but sorrow. In the golden age, Bharat is the land of happiness whereas in the iron age, it is the land of sorrow. The history and geography of the world have to repeat. God is only One. There is also just one world. In the new world, Bharat is first. Bharat has now become old and it has to become new again. No one else knows how the world history and geography have to repeat. Not everyone is the same. There will be different levels of status there too. There are no policemen there because there is no fear there. Here, there is fear and this is why they have policeman etc. They have divided Bharat into pieces. There are no partitions in the golden age. Only the one kingdom of Lakshmi and Narayan continues. There are no sins committed there. The Father says: Children, claim your inheritance of constant happiness from Me by following My directions. Only the one Father shows you the path to salvation. You are the Shiv Shakti Army that makes Bharat into heaven. You use your body, mind and wealth, everything, for this service. That Bapuji chased away the Christians. That was also fixed in the drama. However, there hasn't been any happiness through that; instead there is greater sorrow. There is no food, and they continue to tell lies: “You will receive this and this will happen”. Only from the Father are you going to receive something. Everything else is going to end. They ask for there to be birth control. They continue to beat their heads for that. Nothing is going to happen. If a small war breaks out, there will be famine. There will be a lot of violence between one another. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
1. You have to sacrifice yourself to the Father while alive, that is, you have to belong to the Father and follow the shrimat of the Father alone. Do the service of making others the same as yourself.
2. Donate the imperishable jewels of knowledge and become like Jagadamba, one who fulfils everyone's desires.
 
Blessing:May you be trikaldarshi and become an unshakeable and immovable Mahavir by considering there to be benefit in everything.
 
Do not look at any situation with the vision of one aspect of time, but look at it while being trikaldarshi. Instead of asking “Why?” or “What?” consider there to be benefit in whatever happens. Continue to do as Baba says and it is then up to Baba and His work. Move along as Baba makes you move for benefit is merged in that. By having this faith you will never fluctuate. Let there be no waste thoughts in your dreams or in your mind and you will then be called an unshakeable and immovable Mahavir.
 

Slogan:A tapaswi is one who becomes detached and loving in a second according to the signals from shrimat.

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