Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Murali - Oct - 2018
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month - Oct-2018 ( Daily Murali - Prajapita Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 10-Oct-2018 )
10-10-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - नई दुनिया के लिए बाप तुम्हें सब नई बातें सुनाते, नई मत देते इसलिए उनकी गत-मत न्यारी गाई जाती है''
 
प्रश्नः-रहमदिल बाप सभी बच्चों को किस बात में सावधान कर ऊंच तकदीर बना देते हैं?
 
उत्तर:-बाबा कहते - बच्चे, ऊंच तकदीर बनानी है तो सर्विस करो। अगर खाया और सोया, सर्विस नहीं की तो ऊंची तकदीर नहीं बना सकेंगे। सर्विस के बिगर खाना हराम है, इसलिए बाबा सावधान करते। सारा मदार पढ़ाई पर है। तुम ब्राह्मणों को पढ़ना और पढ़ाना है, सच्ची गीता सुनानी है। बाप को रहम पड़ता है इसलिए हर बात की रोशनी देते रहते हैं।
 
गीत:-जिस दिन से मिले हम तुम........ 
 
ओम् शान्ति।
 
रूहानी बाप समझाते हैं। जब बच्चों को बेहद का बाप मिलता है तो हर एक बात नई सुनाते हैं क्योंकि यह बाप नई दुनिया स्थापन करने वाला है। मनुष्य तो ऐसी नई बातें सुना सकें। बाप, जिसको हेविनली गॉड फादर कहा जाता है, वह बेहद का बाप स्वर्ग की स्थापना करने वाला है। नर्क की स्थापना करने वाला है रावण। 5 विकार स्त्री में, 5 विकार पुरुष में, वह हो गई रावण सम्प्रदाय। तो यह नई बात सुनाई ना! स्वर्ग बनाने वाला है परमपिता परमात्मा, जिसको राम कहते हैं। नर्क बनाने वाला है रावण, जिसका चित्र बनाकर वर्ष-वर्ष जलाते हैं। एक बार जल गया तो फिर उनका एफीजी देखने में थोड़ेही आयेगा। वह आत्मा जाकर दूसरा शरीर लेती है। फीचर्स आदि बदल जाते हैं। यह तो रावण के वही फीचर्स वर्ष-वर्ष बनाते और जलाते हैं। वास्तव में जैसे निराकार शिवबाबा का कोई फीचर नहीं, वैसे रावण का भी कोई फीचर नहीं। यह रावण तो विकार हैं। बाप यह समझाते हैं। मनुष्य भक्ति मार्ग में क्या चाहते हैं? भगवान् आते ही हैं भक्ति का फल देने वा रक्षा करने क्योंकि भक्ति में दु: बहुत है। सुख है अल्प-काल क्षण भंगुर। भारतवासियों का बिल्कुल दु:खी जीवन है। कोई का बच्चा मरा, कोई का देवाला निकला, जीवन तो दु:खी रहता है ना। बाप कहते हैं मैं आता हूँ सभी का जीवन सुखी बनाने। बाप आकर के नई बात बताते हैं, कहते हैं मैं आया हूँ स्वर्ग की स्थापना करने। वहाँ तुम विकार में नहीं जायेंगे। वह है निर्विकारी राज्य, यह है विकारी राज्य। अगर तुमको स्वर्ग का राज्य चाहिए तो वह बाप ही स्थापन करते हैं। नर्क का राज्य रावण स्थापन करते हैं। तो बाप पूछते हैं तुम स्वर्ग में चलेंगे? वैकुण्ठ की महारानी-महाराजा विश्व के मालिक बनेंगे? यह कोई वेद-शास्त्र आदि की बातें नहीं हैं। बाप ऐसे नहीं कहते कि राम-राम कहो वा दर-दर धक्के खाओ, मन्दिरों, तीर्थो आदि में जाओ वा गीता, भागवत आदि बैठकर पढ़ो। नहीं, सतयुग में तो शास्त्र होते नहीं। तुम भल कितने भी वेद-शास्त्र आदि पढ़ो, यज्ञ, जप, दान-पुण्य आदि करो - यह है ही धक्के खाना, इनसे प्राप्ति कुछ भी नहीं। भक्ति मार्ग में कोई एम आब्जेक्ट नहीं है। मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने आया हूँ। इस समय सब नर्कवासी हैं। अगर कोई को कहो तुम नर्कवासी हो तो बिगड़ेंगे। वास्तव में तुम जानते हो नर्क कलियुग को और स्वर्ग सतयुग को कहा जाता है। बाप वैकुण्ठ की बादशाही ले आये हैं। कहते हैं स्वर्ग का मालिक बनना है तो पवित्र जरूर बनना पड़ेगा। मूल बात सारी पवित्रता की है। कई मनुष्य कहते हैं हम पवित्र तो कभी नहीं रह सकते। अरे, तुमको पावन बनाते हैं स्वर्ग में चलने लिए। पहले वापिस शान्तिधाम में जाकर फिर स्वर्ग में आना है। सभी धर्म वालों को कहते हैं देह को छोड़ अशरीरी बनकर जाना है इसलिए देह के अभिमान को तोड़ो। मैं क्रिश्चियन हूँ, बौद्धी हूँ, यह सब हैं देह के धर्म। आत्मा तो स्वीट होम में रहती है।
 
तो अब बाप कहते हैं वापिस मुक्तिधाम चलेंगे? वहाँ तुम शान्ति में रहेंगे। बताओ तुम वापिस कैसे चल सकते हो? मुझ बाप को और अपने स्वीट होम को याद करो। देह के सब धर्म छोड़ो। यह मामा है, काका है, चाचा है इन सब देह के सम्बन्धों को छोड़ो। अपने को देही समझो। मुझे याद करो। बस यह है मेहनत और मैं कुछ नहीं सुनाता हूँ। शास्त्र आदि जो पढ़े हो वह सब छोड़ो। मैं नई दुनिया के लिए तुमको नई मत देता हूँ। कहा जाता है ना - ईश्वर की गत और मत न्यारी है। गति कहा जाता है मुक्ति को। बाप नई बात सुनाते हैं ना। मनुष्य भी जब सुनते हैं तो कहते हैं यहाँ तो नई बातें हैं। शास्त्रों की कोई बात नहीं। यूँ तो है गीता की बात परन्तु मनुष्यों ने गीता को भी खण्डन कर दिया है। मैंने तो गीता पुस्तक कुछ भी नहीं उठाई है। वह तो बाद में बनती है। मैं तो तुमको ज्ञान सुनाता हूँ। ऐसे कभी कोई नहीं कहेंगे कि तुम मेरे सिकीलधे बच्चे हो। यह निराकार परमात्मा ही कहते हैं। निराकार आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा सुनती है, यह शरीर है आरगन्स। यह बात कभी कोई समझते नहीं। वह मनुष्य, मनुष्य को सुनाते हैं, यह परमात्मा बैठ आत्माओं को सुनाते हैं। हम आत्मायें सुनती हैं इन कानों द्वारा। तुम जानते हो परमपिता परमात्मा बैठ समझाते हैं। मनुष्य तो यह वन्डर खाते हैं - भगवान् कैसे समझायेगा। वह तो समझते हैं कृष्ण भगवानुवाच। अरे, कृष्ण तो देहधारी था। मैं तो देहधारी नहीं, मैं विदेही हूँ और विदेही आत्माओं को सुनाता हूँ। तो यह नई बातें सुनने से मनुष्य चकित हो जाते हैं। जो कल्प पहले बच्चे सुनकर गये हैं उन्हों को तो बहुत अच्छा लगता है, पढ़ते हैं, मम्मा-बाबा कहते हैं। इसमें अन्धश्रधा की तो कोई बात हो सके। लौकिक रीति भी बच्चे माँ-बाप को, माँ-बाप कहते हैं। अभी तुम उन लौकिक माँ-बाप की याद छोड़ पारलौकिक मात-पिता को याद करो। यह पारलौकिक माँ-बाप तुम्हें अमृत की लेन-देन सिखलाने वाले हैं। कहते हैं - हे बच्चे, अब विष की लेन-देन छोड़ो। मैं तुमको जो शिक्षा देता हूँ वह एक-दो को दो तो तुम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। थोड़ा सुनेंगे तो भी स्वर्ग में जायेंगे। परन्तु औरों को आपसमान नहीं बना सकते तो दास-दासी जाकर बनेंगे। दास-दासियों में भी नम्बरवार होते हैं। बच्चों को सम्भालने वाले दास-दासियां जरूर अच्छे मर्तबे वाले होंगे। यहाँ रहते हुए फिर अगर पढ़ते नहीं तो दास-दासी बन पड़ते हैं। प्रजा में भी नम्बरवार होते हैं। जो अच्छी रीति पढ़ते हैं वह इतना ऊंच पद पाते हैं। प्रजा में साहूकारों के भी दास-दासियां होंगे। हर एक को अपनी शक्ल देखनी है - हम क्या बनने लायक हैं? बाबा से अगर कोई पूछे तो बाबा झट बता देंगे। बाप तो सब-कुछ जानते हैं और सिद्ध कर बतलाते हैं कि इस कारण यह तुम बनेंगे। भल सरेन्डर किया है, उसका भी हिसाब-किताब है। सरेन्डर किया है परन्तु कुछ सर्विस नहीं करते, सिर्फ खाते-पीते रहते तो जो दिया वह खाकर ख़त्म करते हैं। दिया सो खाया, सर्विस नहीं की तो थर्ड क्लास दास-दासी जाकर बनेंगे। हाँ, सर्विस करते हैं और खाते हैं तो ठीक है। धंधा कुछ नहीं करते तो खा-खा कर ख़त्म कर देते हैं फिर और भी बोझा चढ़ जाता है। यहाँ रहते हैं जो दिया सो खाया। जो भल नहीं देते हैं परन्तु सर्विस बहुत करते हैं तो वह ऊंच पद पा लेते हैं। मम्मा ने धन कुछ नहीं दिया, परन्तु पद बहुत ऊंच पाती है क्योंकि बाबा की रूहानी सर्विस करती है। हिसाब है ना। कइयों को नशा रहता है हमने तो सब कुछ दिया है, सरेन्डर हुए हैं। परन्तु खाते भी तो हैं ना। बाबा मिसाल तो सब बताते हैं। सर्विस नहीं की खाया और ख़लास किया। कहते हैं ना - जिन सोया तिन खोया। 8 घण्टा सर्विस करने बिगर खाना हराम है। खाते रहेंगे तो जमा कुछ नहीं होगा फिर सर्विस करनी पड़ेगी। बाप को तो सब बतलाना पड़ता है ना, जो कोई ऐसे नहीं कहे कि हमको बतलाया क्यों नहीं? बाबा ने सब-कुछ दिया और फिर सर्विस भी करते रहते हैं, तो ऊंच पद भी है। सरेन्डर हुए और बैठ खाया, सर्विस नहीं की तो क्या बनेगा? श्रीमत पर चलते नहीं। बाबा ख़ास समझा रहे हैं। ऐसे नहीं कि पिछाड़ी को कहे कि हमारा पद ऐसा क्यों हुआ? तो बाप समझाते हैं सर्विस करना, मुफ्त में खाना, उसका नतीजा कल्प-कल्पान्तर का यह हो जायेगा इसलिए बाबा सावधान करते हैं। समझना चाहिए कल्प-कल्पान्तर के लिए हमारा पद भ्रष्ट हो जायेगा। बाबा को रहम पड़ता है इसलिए हर बात की रोशनी देते हैं। सर्विस नहीं करेंगे तो ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। जो गृहस्थ व्यवहार में रहते सर्विस करते हैं, उनका पद बहुत ऊंच है।
 
सारा मदार पढ़ाई और पढ़ाने पर है। तुम ब्राह्मण हो, तुमको सच्ची गीता सुनानी है। वह तो कच्छ में कुरम उठाते हैं। तुम्हारे कच्छ में कुछ नहीं। तुम हो सच्चे ब्राह्मण। तुमको सच सुनाना है, सच्ची प्राप्ति करानी है, और सबने घाटा ही दिलाया है इसलिए लिखा जाता है वह सब झूठ है। बाबा सच सुनाकर सचखण्ड का मालिक बनाते हैं। यह तो समझने की बात है। विश्व का मालिक बनना कम बात है क्या! सेन्सीबुल बच्चे जो होंगे वह तो प्लैन बनाते रहेंगे - हम सोने की ईटों का ऐसे-ऐसे मकान बनायेंगे, यह करेंगे। साहूकार का बच्चा जैसे बड़ा होता जायेगा तो उनके ख्यालात चलेंगे - हम ऐसे करेंगे, यह बनायेंगे। तुम भी भविष्य में प्रिन्स बनते हो तो शौक होगा ना - हम ऐसे-ऐसे महल बनायेंगे। जो और कोई का नहीं होगा। यह ख्यालात उनके चलेंगे जो अच्छी रीति पढ़कर पढ़ाते हैं। बादशाही तो होगी ना। तो बुद्धि में यह ख्यालात चलनी चाहिए - हम कितने नम्बर से पास होंगे? बड़ा भारी स्कूल है, इसमें लाखों करोड़ों पढ़ेंगे, ढेर आयेंगे। यह सब बातें बाप ही बैठ समझाते हैं। भगवान् एक है, उनको ही मात-पिता कहते हैं - वह आकर एडाप्ट करते हैं। कितनी गुह्य बातें हैं। यह नया स्कूल है, नया पढ़ाने वाला है। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। झोली उनकी भरेगी जो लायक होंगे, बाप को याद करेंगे। माँ-बाप को कभी कोई भूलता नहीं है। फिर संगमयुगी बच्चे बाप को भूल कैसे सकते हैं। अच्छा!
 
दुनिया धमपा में है और तुम बच्चे चुप हो। चुप में है शान्ति, शान्ति में है सुख। तुम जानते हो मुक्ति के बाद फिर है जीवनमुक्ति। तुम बच्चों को सिर्फ दो अक्षर याद हैं - अल्फ अल्लाह और बे बादशाही। सिर्फ एक अल्फ को याद करने से बादशाही मिल गई। बाकी क्या बचा? बाकी रही छांछ। अल्फ मिला गोया मक्खन मिला, बाकी सब है छांछ। ऐसे हैं ना? हम चुप रहते हैं। जानते हैं चुप रहकर हम श्रीमत पर चलते हैं। परन्तु वन्डर यह है कि बच्चे अल्फ को भी पूरा याद नहीं करते, भूल जाते हैं। माया तूफान लाती है। बाप भी कहते हैं मनमनाभव, मध्याजीभव। गीता में अक्षर हैं। तो तुमको गीता वालों से अर्थ पूछना चाहिए कि मनमनाभव, मध्याजीभव का अर्थ क्या है? बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुमको बादशाही मिलेगी। सब देह के धर्म छोड़ देही बन जाओ और बाप को याद करो तो बादशाही मिलेगी। ग्रंथ में भी कहते हैं - जपो अल्फ को तो बादशाही मिलेगी। सचखण्ड की राजाई मिलती है। हम दुनिया से बिल्कुल न्यारे हैं, और कोई भी ऐसे नहीं कहेंगे। बाप तुम्हें नई बातें सुनाते हैं, बाकी सब पुरानी बातें ही सुनाते हैं। बात बड़ी सहज है। अल्फ के बनो तो बादशाही मिलेगी। फिर भी पुरुषार्थ तो करना पड़े। आपसमान बनाने की जितनी सर्विस करेंगे उतना फल मिलेगा। मनुष्य अल्फ को जानते हैं, बे को जानते हैं। बे माना बादशाही का मक्खन। कृष्ण के मुख में मक्खन दिखाते हैं ना। जरूर स्वर्ग की स्थापना करने वाले ने ही बादशाही दी होगी। अच्छा!
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) वापिस स्वीट होम (घर) जाना है इसलिए देह के धर्मों और सम्बन्धों को भूल स्वयं को देही समझना है। इसी अभ्यास में रहना है।
2) बाप की जो शिक्षायें मिली हैं, वह दूसरों को देनी है, आप समान बनाना है। 8 घण्टे सर्विस जरूर करनी है।
 
वरदान:-दृष्टि द्वारा शक्ति लेने और शक्ति देने वाले महादानी, वरदानी मूर्त भव
 
आगे चलकर जब वाणी द्वारा सेवा करने का समय वा सरकमस्टांश नहीं होगा तब वरदानी, महादानी दृष्टि द्वारा ही शान्ति की शक्ति, प्रेम, सुख वा आनंद की शक्ति का अनुभव करा सकेंगे। जैसे जड़ मूर्तियों के सामने जाते हैं तो फेस (चेहरे) द्वारा वायब्रेशन मिलते हैं, नयनों से दिव्यता की अनुभूति होती है। तो आपने जब चैतन्य में यह सेवा की है तब जड़ मूर्तियां बनी हैं इसलिए दृष्टि द्वारा शक्ति लेने और देने का अभ्यास करो तब महादानी, वरदानी मूर्त बनेंगे।
 
स्लोगन:-फीचर्स में सुख-शान्ति और खुशी की झलक हो तो अनेक आत्माओं का फ्यूचर श्रेष्ठ बना सकते हो।
 
 
 
10/10/18 Morning Murli               Om Shanti           BapDada              Madhuban
Sweet children, everything the Father tells you is new for the new world. He gives you new directions and this is why His ways and means are remembered as unique.
 
Question:In which aspect does the merciful Father caution all you children in order for you to make your fortune elevated?
 
Answer:Baba says: If you want to make your fortune elevated, do service. If you simply eat and sleep and don't do service, you won't be able to make your fortune elevated. To eat without doing service is wrong. Therefore, Baba cautions you. Everything depends on how you study. You Brahmins have to study and teach others. You have to relate the true Gita. The Father has mercy for you and this is why He continues to enlighten you about everything.
 
Song:From the day that You and I met, everything has seemed new. 
Om Shanti
 
The spiritual Father explains to you. When children find the unlimited Father, everything He tells them is new because this Father is the One who establishes the new world. Human beings cannot say such new things. The Father, who is also called Heavenly God, the Father, is the unlimited Father who establishes heaven. It is Ravan who establishes hell. There are five vices in the female and five vices in the male. That is the Ravan community. So, these things that Baba has told you about are new, are they not? It is the Supreme Father, the Supreme Soul, who is called Rama, who creates heaven. It is Ravan who creates hell. People make an effigy of him every year and burn it. Once someone has been burnt, you wouldn’t be able to see his effigy (form) again. That soul goes and takes another body; his features etc. all change. Here, they make a Ravan with the same features every year and then burn it. In fact, just as incorporeal Shiv Baba doesn't have any features, in the same way, Ravan doesn't have any features either. Ravan is the vices. The Father explains what the people on the path of devotion want. God comes to give the fruit of devotion and to give protection because there is a lot of sorrow in devotion. There is temporary happiness. The lives of the people of Bharat are very unhappy. Someone's child might have died, someone might have gone bankrupt; their lives are unhappy. The Father says: I come to make everyone's life happy. The Father comes and tells you new things. He says: I have come to establish heaven. There, you will not indulge in vice. That is the viceless kingdom and this is the vicious kingdom. If you want the kingdom of heaven, then only the Father establishes that. Ravan establishes the kingdom of hell. The Father asks you: Will you come to heaven? Will you become the emperors and empresses of Paradise, the masters of the world? These things are not mentioned in the Vedas or scriptures. The Father doesn't tell you to say, "Rama, Rama" or to stumble from door to door or go to the temples and pilgrimage places or study the Gita and Bhagawad etc; no. There are no scriptures in the golden age. No matter how many Vedas and scriptures you study or how many sacrificial fires you hold or chanting you do or donations you give or charity you perform, all of that is simply stumbling. There is no attainment through that. There is no aim or objective on the path of devotion. I have come to make you into the masters of heaven. At this time, all are residents of hell. If you tell anyone that he is a resident of hell, he would get upset. In fact, you know that the iron age is called hell and that the golden age is called heaven. The Father has brought the sovereignty of Paradise. He says: If you want to become the masters of heaven, you definitely have to become pure. The main thing is purity. Some people say that they would never be able to remain pure. Oh! but you are made pure so that you can go to heaven. First of all, you have to return to the land of peace and then go to heaven. You tell those of all religions: You have to renounce your body, become bodiless and then return home. Therefore, you have to break body consciousness. It is a bodily religions when you say, "I am a Christian" or "I am a Buddhist". Souls reside in the sweet home. So, the Father says: Will you return to the land of liberation? There, you will remain in peace. Tell Me, how will you be able to go back? Remember Me, your Father, and your sweet home. Renounce all the religions of the body. “This one is a maternal uncle, this one is a paternal uncle”. Renounce all those bodily relations. Consider yourself to be a bodiless soul. Remember Me! That’s all. This is the only effort. I do not tell you anything else. Renounce all the scriptures etc. that you have studied. I am giving you new directions for the new world. It is said that God's ways and means are unique. ‘Gati’ is said to be liberation. The Father tells you new things. When people hear these things, they say that whatever you tell them here are new things. These are not the things of the scriptures. In fact, these are the things of the Gita, but people have falsified the Gita. I have not taken up the Gita, the religious book. That is written later. I speak knowledge to you. No one else would ever say: You are My long-lost and now-found children. Only the incorporeal, Supreme Soul says this. He speaks to incorporeal souls. The souls listen to Him. This body is the organ. No one understands these things. There, human beings speak to human beings whereas the Supreme Soul sits here and speaks to souls. We souls listen to Him through these ears. You know that the Supreme Father, the Supreme Soul, sits here and explains to us. People wonder how God would explain. They think that it is God Krishna who speaks. Oh! but Krishna is a bodily being. I am not a bodily being. I am bodiless and I speak to bodiless souls. So, people are amazed when they hear these new things. The children who heard this in the previous cycle like this a lot. They study here and they say: Mama, Baba. There cannot be blind faith here. In a worldly way too, children would call their parents mother and father. You now have to stop remembering those worldly parents and remember the parlokik Mother and Father. This parlokik Mother and Father is the One who teaches you the exchange of nectar. He says: O children, now stop giving and taking poison. Give one another the teachings that I give you and you will become the masters of heaven. If you listen to even a little, you will go to heaven. However, if you are unable to make others the same as yourselves, you will go and become maids and servants. Maids and servants are numberwise. The maids and servants who look after the children would surely be those with a good status. If, while staying here, you don't study, you become maids and servants. Subjects too are numberwise. Those who study well receive a very high status. The wealthy subjects would have maids and servants. Each one of you has to look at your own face: What am I worthy of becoming? If any of you were to ask Baba, Baba would quickly tell you. The Father knows everything and He also shows you the evidence for why that is what you will become. Even though someone may have surrendered himself or herself, there is an account in that too. If they have surrendered themselves but don't do service and simply continue to eat and drink, they use up and finish what they gave. They eat away all they gave and don't do service and they therefore become third-class maids and servants. Yes, if someone does service and eats, that’s fine. If someone doesn't do any service, but simply eats away, he would use everything up and would then accumulate a burden. Some stay here and eat away whatever they gave. Some don't give anything, but they do perform a lot of service and so they claim a high status. Mama didn't give any wealth, but she attains a very high status because she does Baba's spiritual service. There is an account. Some have the intoxication that they gave everything they had to Baba and that they have surrendered themselves. However, they do eat, do they not? Baba gives you all the examples. If you don’t do service, you just eat and finish it all. It is said: Those who sleep lose out. To eat without doing eight hours of service is wrong. If you continue to eat, you won't be able to accumulate anything and you will then have to do service. The Father has to tell you everything so that no one can say: Why didn't You tell us before? Baba gave everything and he also continued to do service and that’s why he receives a high status. If you surrender yourself but simply sit and eat away and don't do service, what would you become? Some don't follow shrimat. Baba is especially explaining to you so that, at the end, no one can ask: Why is my status like this? The Father explains: This will be the consequence cycle after cycle if you do not do service and eat for free. Therefore, Baba continues to caution you. You should understand that your status would be destroyed for cycle after cycle. Baba feels mercy and this is why He enlightens you about everything. If you don't do service, you won't be able to claim a high status. Those who live at home with their families and do service receive a very high status. Everything depends on studying and teaching others. You are Brahmins. You have to relate the true Gita. Those people carry a religious book under their arms. You don’t carry anything under your arms. You are true Brahmins. You have to relate the truth and enable them to have true attainment. All the rest have made you go into loss. This is why it is written that all of that is false. Baba tells you the truth and makes you into the masters of the land of truth. These matters have to be understood. It is not a small thing to become a master of the world! Those who are sensible children will continue to make plans: We will build such buildings with golden bricks. We will do this. While a child of a wealthy person is growing up, he would have such thoughts as: I will do this and I will build this. You too are going to become princes in the future and so you would have the interest: I will build such palaces that no one else would have. Those who study well and teach others would have these thoughts. There will be the sovereignty. So, you should have such thoughts in your intellects: With which number will I pass? This is a very big school. Many hundreds of thousands and millions will come here to study. Only the Father sits here and explains all of these things. God is One. He is called the Mother and Father. He comes and adopts you. These are such deep matters. This is a new school and the One teaching you is new. He explains to you so well. The aprons of those who are worthy will be filled. They will remember the Father. The Mother and Father never forget anyone. So, how can the children of the confluence age forget the Father? Achcha. The world is in chaos whereas you children are in silence. There is peace in silence and happiness in peace. You know that, after liberation, there is liberation-in-life. You children simply have to remember two words: Alpha, Allah, and beta, the sovereignty. By simply remembering one Alpha, you received the sovereignty. What else remains? There is then just buttermilk left. When you have found Alpha, it means you have found the butter and all the rest is buttermilk. It is like that, is it not? We stay in silence. You know that you stay in silence and follow shrimat. However, it is a wonder that some children don't remember Alpha fully; they forget Him. Maya brings storms. The Father also says: Manmanabhav, madhyajibhav. These words are mentioned in the Gita. You should ask those who study the Gita: What is the meaning of “Manmanabhav and Madhyajibhav”? The Father says: Remember Me and you will receive the sovereignty. Renounce all bodily religions and become bodiless and remember the Father and you will receive the sovereignty. It is also mentioned in the Granth: Chant the name of Alpha and you will receive the sovereignty. You receive the sovereignty of the land of truth. Compared to the world, you are completely unique. No one else would say this. The Father is telling you new things. All the rest only speak of old things. This is something very easy. Belong to Alpha and you will receive the sovereignty. You still have to make effort. The more service you do to make others the same as yourself, the more fruit you will receive. People neither know Alpha nor beta. Beta means the butter of the sovereignty. They show butter in the mouth of Krishna. Surely, the One who established heaven would have given the sovereignty. Achcha.
 
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
 
Essence for Dharna:
1. You have to return to the sweet home. Therefore, forget bodily religions and relations and consider yourself to be bodiless. Maintain this practice.
2. Give others the teachings that you have received from the Father. Make others the same as yourself. You definitely have to do eight hours of service.
 
Blessing:May you give and take power through your drishti and be a great donor and become an image that grant blessings.
 
As you progress further, there will be no time or circumstances to serve with words. Then, it is only by being a bestower of blessings and a great donor that you will be able to give an experience of the powers of peace, love, happiness and bliss. When you used to go in front of the non-living idols, you received vibrations from their faces and you experienced divinity from their eyes. It is because you did this service in the corporeal form that the non-living images were created. Therefore, practise giving and taking power through your drishti and you will become a great donor and an image that grants blessings.
 

Slogan:Let there be the sparkle of happiness, peace and joy in your features and you can make the future elevated for many souls.

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