Published by – Bk Ganapati
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Shiva
Summary - Why Shiv Ratri Celebrated, Who is Shiva, Difference between Shiva & Shankara, Supreme Soul ( Paramatama )
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1 Image Shiv Ratri - Birthday of Shiva 55409 2018-02-22 19:36:14
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Details ( Page:- Shiv Ratri - Birthday of Shiva )
शिवरात्रि एवं परमात्मा का दिव्य अवतरण


[left]शिव एवं शंकर में अंतर[/left]
?परमात्मा शिव कल्याणकारी परमधामवासी तथा रचयिता है
जबकि महादेव शंकर जी कलयुगी सुष्टि का संहार करने वाले सूक्ष्मलोकवासी तथा परमात्मा शिव की रचना है
?परमात्मा शिव ज्योतिबिंदु स्वरूप है .
जब की शंकर जी पिता शिव के ध्यान में मग्न रहने वाले आकारी देवता है .
?दोनों के ही कार्य गुप्त होने तथा साथ साथ सम्पन्न होने के कारण लोग शिव शंकर को एक ही मानते है.
?परमात्मा शिव सर्व आत्माओं का मातपिता है   अत:   वे किसी माता के गर्भ से जन्म नही लेते
?अति धर्मग्लानी के काल में वे जिस साधारण एवं वुद्ध मनुष्य के तन में परकाया प्रवेश कर अवतरित होते है. उसे वे प्रजापिता ब्रह्मा नाम देते है
?ब्रह्मा के शरीर द्वारा परमात्मा आत्माओं का परमपिता परमशिक्षक एवं परमसतगुरु के रूप में मिलते है
?परमात्मा ज्ञानसूर्य के समान है जिनके प्रकट होने पर विकार बुराइयाँ एवं अज्ञान रूपी अन्धकार दूर होता है
?परमात्मा शिव चूँकि अति धर्मग्लानी के समय घोर अज्ञान रूपी रात्रि में अवतरित होते है ,    अत:
उनके इस दिव्यजन्म को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है
?बड़े ही हर्ष की बात है की वर्तमान में परमधाम शिव का दिव्य अवतरण हो चूका है तथा विश्व परिवर्तन स्वर्ग की स्थापना का उनका दिव्य कर्तव्य सन 1937 से प्रारम्भ हो चूका है .अत:  वर्तमान का पूरा समय ही शिवरात्रि का समय है

[left]त्रिमूर्ति शिव जयंती का आध्यात्मिक   रहस्य[/left]
?शिवलिंग पर अंकित तीन पत्तों वाले बेलपत्र का रहस्य:शिवलिंग पर सदा तीन रेखाएँ अंकित करते हैं और तीन पत्तो वाला बेलपत्र भी चढ़ाते हैं।
?वस्तुतःपरमात्मा शिव त्रिमूर्ति हैं अर्थात ब्रह्मा-विष्णु-शंकर के भी रचयिता हैं। वे करन -करावनहार हैं। ब्रह्मा द्वारा सतयुगी दैवी सृष्टि की स्थापना कराते हैं, शंकर द्वारा कलियुगी आसुरी सृष्टि का विनाश कराते हैं तथा विष्णु द्वारा सतयुगी दैवी सृष्टि की पालना कराते हैं। जब परमात्मा का अवतरण होता है तब ही तीन देवताओं का कार्य भी सूक्ष्मलोक में आरंभ हो जाता है।        
?अतः            शिव जयंती ब्रह्मा विष्णु शंकर जयंती है तथा गीता-जयंती भी है क्योंकि अवतरण के साथ ही परमात्माशिव गीता ज्ञान सुनाने लगते हैं।
शिव-विवाह के बारे में वास्तविकता: बहुत से लोग शिवरात्रि को शिव-विवाह की रात्रि मानते हैं। इसका भी आध्यात्मिक रहस्य है।

निराकार परमात्मा शिव का विवाह कैसे:
?यहाँ यह स्पष्ट समझ लेना आवश्यक है कि शिव और शंकर दो हैं। ज्योति-बिंदु ज्ञान-सिंधु निराकार परमपिता परमात्मा शिव ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के भी रचयिता हैं। शंकर सूक्ष्मलोक के निवासी एक आकारी देवता हैं जो कि कलियुगी सृष्टि के महाविनाश के निमित्त बनते हैं। शंकर को सदा तपस्वी रूप में दिखाते हैं। अवश्य इनके ऊपर कोई हैं जिनकी ये तपस्या करते हैं। निराकार परमात्माशिव की शक्ति से ही ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर स्थापना, पालना और विनाश का कर्तव्य करते हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा शिव के विवाह का तो प्रश्न ही नहीं उठता। वे एक हैं और निराकार हैं। हाँ,आध्यात्मिक भाषा में जब भी आत्मा रूपी सजनियाँ जन्म-मरण के चक्र में आते-आते शिव साजन से विमुख होकर घोर दुखी और अशांत हो जाती हैं तब स्वयंभू, अजन्मे परमात्मा शिव, प्रजापिता ब्रह्मा के साकार साधारण वृद्ध तन में दिव्य प्रवेश करते हैं और आत्मा रूपी पार्वतियों को अमर् कथा सुनाकर सतयुगी अमरलोक के वासी बनाते हैं जहाँ मृत्यु का भय नहीं होता, कलह-क्लेश का नाम-निशान नहीं रहता तथा संपूर्ण पवित्रता-सुख-शांति का अटल, अखंड साम्राज्य होता है। पुरुषोत्तम संगम युग पर भूली-भटकी आत्माओं का परम प्रियतम परमात्मा शिव से मंगल-मिलन ही शिव-विवाह है।
?अतः  भगवान शिव कादिव्य-जन्मोत्सवही उनका आध्यात्मिक विवाहोत्सव भी है।
?वर्तमान काल में परमात्मा शिव का अवतरण: अब पुनः धर्म की अति ग्लानि हो चुकी है तथा तमोप्रधानताचरम सीमा पर पहुँच चुकी है। सर्वत्र घोर अज्ञान-अंधकार फैला हुआ है। घोर कलिकाल की काली रात्रि में सतयुगी दिन का प्रकाश फैलाने के लिए ज्ञानसूर्य पतित- पावन परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के साकार, साधारण, वृद्ध तन में पुनः अवतरित हो चुके हैं और इस वर्ष हम उनके दिव्य अवतरण की प्रतीक, 82वीं शिव जयंती मना रहे हैं।

?आप सभी जन्म-जन्मांतर से पुकारते आए हैं कि हे पतित पावन परमात्मा , आकर हमें पावन बनाओ। आपकी पुकार पर विश्वपिता परमात्मा इस पृथ्वी पर मेहमान बनकर आए हैं और कहते हैं,   मीठे बच्चों, मुझे काम, क्रोधादि पाँच विकारों का दान दे दो तो तुम पावन, सतोप्रधान बन नर से श्री नारायण तथा नारी से श्री लक्ष्मी पद कि प्राप्ति कर लोगे।
?शिवरात्रि पर भक्तजन व्रत करते हैं तथा रात्रि का जागरण भी करते हैं। वस्तुतः पाँच विकारों के वशीभूत होने का व्रत ही सच्चा व्रत है और माया की मादक किन्तु दुखद नींद से जागरण ही सच्चा जागरण है।
 ?ज्ञान सागर परमात्मा हमें प्रायःलोप गीता-ज्ञान सुनाकरपरधर्म अर्थात शरीर के धर्मसे ऊपर उठा, स्वधर्म अर्थात आत्मा के धर्म में टिका रहे हैं।
?अतःआइये अब हम ईश्वरीय ज्ञान तथा सहज राजयोग की शिक्षा द्वारा पाँच विकारों पर पूर्ण विजय प्राप्त करस्वधर्ममें टिकने अर्थात आत्माभिमानी बनने का सच्चा व्रत लें और आनंद सागर निराकार परमात्मा शिव की आनंददायिनी स्मृति में रह उस अनुपम, अलौकिक, अतींद्रिय आनंद की प्राप्ति करें जिसके लिए गोप-गोपियों का इतना गायन है।
? निराकार आत्मा का निराकार परमात्मा से आनंददायक मंगल-मिलन ही सच्चा शिव-विवाह है। इस मंगल-मिलन से हम जीवनमुक्त बन जाते हैं और गृहस्थ जीवन आश्रम बन जाता है जहां हम कमल पुष्प सदृश्य अनासक्त हो अपना कर्तव्य करते हुए निवास करते हैं।
?इस कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग पर जिसने यह मंगल- मिलन नहीं मनाया वह पश्चाताप करेगा कि हे पतित पावन परमात्मा, आप आये और हमें पावन बनने का आदेश दिया लेकिन हम अभागे आपके आदेश दिया लेकिन हम अभागे आपके आदेश पर चल अपने जीवन को कृतार्थ कर सके।
 
?अतः
मानवमात्र का यह परम कर्तव्य है कि वे 82वीं शिव जयंती के इस पावनतम अवसर पर सुखदाता, दुखहर्ता परमात्मा शिव पर, जीवन में दुखअशान्ति पैदा करने वाले पाँच विकारों रूपी अक-धतूरे अर्पण कर दें और निर्विकारी बन पावन सतयुगी दैवी सृष्टि पुनर्स्थापना के ईश्वरीय कार्य में सहयोगी बनें।
? ओम शान्ति ?


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