Published by – DILLIP KUMAR BARIK on behalf of Dillip Tiens
Category - Religion, Ethics , Spirituality & New Age & Subcategory - Bk Murali
Summary - Satya Shree Trimurti Shiv Bhagawanubach Shrimad Bhagawat Geeta. Month -November 2017 ( Daily Murali - Brahmakumaris - Magic Flute )
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Details ( Page:- Murali 01-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 01.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe bacche - Shrimat par chal swachh suddh ban dharana kar fir yuktiyukt seva karni hai, ahankar me nahi aana hai, suddh ghamand me rehna hai.
Ques- Kis ek baat ke kaaran Baap ko itni badi knowledge deni padti hai?
Ans- Gita ke rachayita nirakar Parampita Parmatma ko siddh karne ke liye Baap tumhe itni badi knowledge dete hain. Sabse badi bhool yahi hai jo Gita me patit-pawan Baap ki jagah Sri Krishna ka naam dala hai, isi Baap ko siddh karna hai. Iske liye bhinn-bhinn yuktiyan rachni hai. Baap ki mahima aur Sri Krishna ki mahima alag-alag batani hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Har kaam bahut yuktiyukt karna hai. Harshitmukh, achal, sthir aur gyan ki masti me rehkar Baap ka show karna hai._
2)Gyan ki nayi aur nirali baatein siddh karni hai.
Vardaan:--   Manjil ko saamne rakh Brahma Baap ko follow karte huye first number lene wale Tibra Purusharthi bhava.
Slogan:-- Jo baat avastha ko bigadne wali hai - usey soonte huye bhi nahi suno.
HINDI DETAIL MURALI

01/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - श्रीमत पर चल स्वच्छ शुद्ध बन धारणा कर फिर युक्तियुक्त सेवा करनी है, अहंकार में नहीं आना है, शुद्ध घमण्ड में रहना है
प्रश्नकिस एक बात के कारण बाप को इतनी बड़ी नॉलेज देनी पड़ती है?
उत्तर:
गीता के रचयिता निराकार परमपिता परमात्मा को सिद्ध करने के लिए बाप तुम्हें इतनी बड़ी नॉलेज देते हैं। सबसे बड़ी भूल यही है जो गीता में पतित-पावन बाप की जगह श्रीकृष्ण का नाम डाला है, इसी बात को सिद्ध करना है। इसके लिए भिन्न-भिन्न युक्तियां रचनी है। बाप की माहिमा और श्रीकृष्ण की महिमा अलग-अलग बतानी है।
गीत:- मरना तेरी गली में .....  ओम् शान्ति।
बच्चों ने गीत सुना, कहते हैं आये हैं तेरे दर पर जीते जी मरने के लिए। किसके दर पर? फिर भी यही बात निकलती कि अगर गीता का भगवान कृष्ण को कहें तो यह सब बातें हो सकें। वह है सतयुग का प्रिन्स। गीता कृष्ण ने नहीं सुनाई। गीता परमपिता परमात्मा ने सुनाई। सारा मदार इस बात पर है। एक बात को समझ जाएं तो भारत के जो इतने शास्त्र हैं - सब झूठे सिद्ध हो जाएं। यह हैं सब भक्तिमार्ग के, इनमें कर्मकान्ड तीर्थ यात्रा, जप-तप आदि की कहानियां लिखी हुई हैं। भक्ति मार्ग में तुम इतनी मेहनत करते आये हो, वह तो दरकार नहीं। यह तो सेकेण्ड की बात है। सिर्फ यह एक बात सिद्ध करने के लिए भी बाप को कितनी नॉलेज देनी पड़ती है। प्राचीन नॉलेज जो भगवान ने ही दी है, वही नॉलेज है। सारी बात गीता पर है। परमपिता परमात्मा ने ही आकर देवी-देवता धर्म की स्थापना अर्थ सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाया है, जो अब प्राय:लोप है। मनुष्य समझते हैं कृष्ण फिर आकर गीता सुनायेगा। परन्तु अब तुमको यह अच्छी तरह सिद्ध करना है कि गीता परमपिता परमात्मा ने, जो ज्ञान का सागर है, उसने सुनाई है। कृष्ण की महिमा और परमपिता परमात्मा की महिमा अलग-अलग है। वह है सतयुग का प्रिन्स, जिसने सहज राजयोग से राज्य-भाग्य पाया है। पढ़ते समय नाम रूप और है फिर जब राज्य पाया है तब और है। पहले पतित है फिर पावन बना है, यह सिद्ध कर बताना है। पतित-पावन कृष्ण को कभी नहीं कहेंगे। पतित-पावन है ही एक बाप। अब वही श्रीकृष्ण की आत्मा जो काली अर्थात् श्याम बन गई है। अब फिर से पतित-पावन द्वारा राजयोग सीख भविष्य पावन दुनिया का प्रिन्स बन रही है। यह सिद्ध कर समझाने में युक्तियां चाहिए। फारेनर्स को सिद्धकर बताना है। नम्बरवन है ही गीता सर्वशास्त्रमई श्रीमत भगवत गीता माता। अब माता को जन्म किसने दिया? बाप ही माता को एडाप्ट करते हैं। ऐसे नहीं कहेंगे कि क्राइस्ट ने बाइबिल को एडाप्ट किया। क्राइस्ट ने जो शिक्षा दी उनका बाइबिल बनाकर पढ़ते रहते हैं। अब गीता की शिक्षा किसने दी जो पुस्तक बनाकर पढ़ते रहते हैं। यह किसको पता नहीं और सबके शास्त्रों का पता है। यह जो सहज राजयोग की शिक्षा है वह किसने दी, यह सिद्ध करना है। दुनिया तो दिन-प्रतिदिन तमोप्रधान होती जाती है। यह सब ख्यालात स्वच्छ बुद्धि में ही बैठ सकते हैं। जो श्रीमत पर नहीं चलते उनको धारणा भी नहीं हो सकती। श्रीमत कहेगी तुम बिल्कुल समझा नहीं सकते हो। बाबा फट से कह देंगे - मुख्य बात यह है कि गीता का भगवान परमपिता परमात्मा है। वही पतित-पावन है। मनुष्य तो सर्वव्यापी कह देते हैं वा ब्रह्म तत्च कह देते। जो आता है वह कह देते हैं - बिगर समझ। भूल सारी गीता से निकली है, जो गीता का रचयिता कृष्ण को कह दिया है। तो समझाने के लिए युक्तियां रचनी पड़े। गुप्ता जी को भी कहते थे कि बनारस में यह सिद्धकर समझाओ कि गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं।
अब देहली में सम्मेलन होता है। सब रिलीज़स मनुष्यों को बुला रहे हैं क्या उपाय करें जो शान्ति हो जाए? अब शान्ति स्थापन करना इनके हाथ में तो है नहीं। कहते भी हैं पतित-पावन आओ। फिर यह पतित कैसे शान्ति स्थापन कर सकते? जबकि बुलाते रहते हैं। परन्तु पतित-पावन को जानते नहीं। कह देते हैं रघुपति राघो राजाराम। वह तो है नहीं। झूठा बुलावा करते हैं, जानते कुछ भी नहीं। अब यह कौन जाकर बताये। बड़े अच्छे बच्चे चाहिए। ऐसे बहुत हैं जो अपने को बहुत ज्ञानी समझते हैं। परन्तु है कुछ भी नहीं। मिसाल है चूहे को मिली हल्दी की गांठ.. नम्बरवार हैं। इसमें बड़ी युक्ति चाहिए, जिससे सिद्ध हो जाए - गीता भगवान ने रची है। वह कह देते कोई भी हो, हैं तो सब भगवान। बाबा कहते हैं - भगवानुवाच, मैं उस कृष्ण की आत्मा, जो 84 जन्म पूरे कर अन्तिम जन्म में है, उनको एडाप्ट कर ब्रह्मा बनाए उन द्वारा गीता ज्ञान देता हूँ। वह ब्रह्मा फिर इस सहज राजयोग से फर्स्ट प्रिन्स सतयुग का बन जाता है। यह समझानी और कोई की बुद्धि में नहीं है। तुम बच्चों में भी यथार्थ रीति अभी वह शुद्ध घमण्ड आया नहीं है। इतनी प्रदर्शनी आदि करते हैं - अजुन सिद्ध नहीं करते। पहले यह भूल सिद्धकर बतानी है कि श्रीमत भगवत गीता है सब शास्त्रों की माई बाप। उसका रचयिता कौन था? जैसे क्राइस्ट ने बाइबिल को जन्म दिया। वह है क्रिश्चियन धर्म का शास्त्र। अच्छा बाइबिल का बाप कौन? क्राइस्ट। उनको माई बाप नहीं कहेंगे। मदर की तो वहाँ बात नहीं। यह तो यहाँ माता पिता है। क्रिश्चियन ने रीस की है कृष्ण के धर्म से। वह क्राइस्ट को मानने वाले हैं। अब गीता किसने सुनाई? उससे कौन सा धर्म स्थापन हुआ? यह कोई नहीं जानते। कभी नहीं कहते कि पतित-पावन परमपिता परमात्मा ने यज्ञ रचा। गोले के चित्र से समझ सकेंगे कि बरोबर परमपिता परमात्मा ने ज्ञान दिया है। राधे कृष्ण तो सतयुग में बैठे हैं, उन्होंने अपने को ज्ञान नहीं दिया। ज्ञान देने वाला दूसरा चाहिए। कोई ने तो उसको पास कराया होगा ना। यह राजाई प्राप्त करने का ज्ञान किसने दिया? किस्मत आपेही तो नहीं बनती। किस्मत बनाने वाला बाप या टीचर होता है। गुरू तो गति देते, परन्तु गति सद्गति का भी कोई अर्थ नहीं समझते। सद्गति प्रवृत्ति मार्ग वालों की होती है। गति माना सब बाप के पास जाते हैं। यह बातें कोई समझते नहीं हैं। वह तो भक्ति के बड़े-बड़े दुकान खोल बैठे हैं। सच्चे ज्ञान का एक भी दुकान नहीं। सब हैं भक्ति के। बाप कहते हैं यह वेद शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। यह जप तप आदि करने से मैं नहीं मिलता हूँ। मैं तो बच्चों को ज्ञान देकर पावन बनाता हूँ। सारे सृष्टि की सद्गति करता हूँ। वाया गति में जाकर सद्गति में आना है। सब तो सतयुग में नहीं आयेंगे, यह ड्रामा बना हुआ है। जो कल्प पहले तुमको सिखाया था, जो चित्र बनाये थे, वह अब भी बनवा रहे हैं। यह जो बड़ी भूल है, वह सिद्ध हो जाए फिर युक्ति से चित्र बनायेंगे। कहते हैं 3 धर्मो की टांगों पर सृष्टि खड़ी है। एक देवता धर्म की टांग टूटी हुई है, इसलिए हिलती रहती है। पहले एक टांग पर सृष्टि बड़ी फर्स्टक्लास रहती। एक ही धर्म था, जिसको अद्वैत राज्य कहा जाता है। फिर वह एक टांग गुम हो 3 टांगे निकली हैं, जिसमें कुछ भी ताकत नहीं रहती। आपस में ही लड़ाई झगड़ा चलता रहता है। धनी को जानते ही नहीं। निधनके बन पड़े हैं। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। प्रदर्शनी में भी मुख्य यह बात समझानी है कि गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं, परमपिता परमात्मा है, जिसका बर्थ प्लेस भारत है। कृष्ण है साकार, वह है निराकार। उनकी महिमा अलग है। ऐसे युक्ति से कार्टून बनाना चाहिए जो सिद्ध हो जाए कि गीता परमात्मा ने गाई और कृष्ण को ऐसा बनाया। कहते हैं ब्रह्मा का दिन ज्ञान और ब्रह्मा की रात भक्ति। अभी है रात। सतयुग स्थापन करने वाला कौन? ब्रह्मा आया कहाँ से? सूक्ष्मवतन में भी कहाँ से आया? प्रजापिता ब्रह्मा को परमात्मा एडाप्ट करते हैं। परमपिता परमात्मा ही पहले-पहले सूक्ष्म सृष्टि रचते हैं। वहाँ ब्रह्मा दिखाते हैं। वहाँ प्रजापिता होता नहीं। प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ से आया? यह बातें कोई समझ सकें। कृष्ण के अन्तिम जन्म में इनको परमपिता परमात्मा ने अपना रथ बनाया है। यह किसकी बुद्धि में नहीं है। यह बड़ा भारी क्लास है। टीचर जानते हैं यह स्टूडेण्ट कौन सा है? तो क्या बाप नहीं समझते होंगे? यह बेहद के बाप का बेहद का क्लास है। यहाँ की बात ही निराली है। शास्त्रों में प्रलय दिखाकर रोला कर दिया है।
तुम जानते हो कृष्ण ने गीता नहीं सुनाई। उसने तो गीता का ज्ञान सुनकर राज्य पद पाया है। तुमको सिद्ध कर बताना है - गीता का भगवान निराकार शिव है, उनके गुण यह हैं। इस भूल के कारण ही भारत कौड़ी जैसा बना है। अभी परमापिता परमात्मा ने ज्ञान का कलष माताओं पर रखा है। मातायें ही स्वर्ग का द्वार खोलती हैं। यह सब बातें नोट कर समझानी चाहिए। भक्ति वास्तव में गृहस्थियों के लिए है। ये है प्रवृत्ति मार्ग का सहज राजयोग। हम सिद्ध कर समझाने के लिए आये हैं। बच्चों को युक्तियुक्त काम करना है। बच्चों को ही बाप का शो करना है। सदैव हर्षित मुख, अचल, स्थेरियम, मस्त रहना है, आगे चलकर ऐसे बच्चे निकलते जरूर हैं। ब्रह्माकुमार कुमारी वह जो 21 जन्म के लिए बाप से वर्सा दिलाये। कुमारियों की महिमा भारी है, मुख्य मम्मा है। वह ज्ञान सूर्य है, यह है गुप्त मम्मा (ब्रह्मा) इस राज़ को मुश्किल ही कोई समझते हैं। मन्दिर भी उस मम्मा के हैं। इस गुप्त बूढ़ी मम्मा का कोई मन्दिर नहीं। यह माता-पिता कम्बाइन्ड है। कृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स है। कृष्ण में भगवान सके। गीता के भगवान की महिमा अलग है। वह पतित-पावन, लिबरेटर, गाइड है। तो परमात्मा की महिमा बिल्कुल अलग है। एक कैसे हो सकते। मुख्य बात ही यह है कि गीता किसने सुनाई? वेद शास्त्र आदि सब गीता के बाल बच्चे हैं और सब भक्ति की सामग्री है, ज्ञान मार्ग में कुछ होता नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) हर काम बहुत युक्तियुक्त करना है। हर्षितमुख, अचल, स्थिर और ज्ञान की मस्ती में रहकर बाप का शो करना है।
2) ज्ञान की नई और निराली बातें सिद्ध करनी है।
वरदान:मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए फर्स्ट नम्बर लेने वाले तीव्र पुरुषार्थी भव!
तीव्र पुरुषार्थी के सामने सदा मंजिल होती है। वे कभी यहाँ वहाँ नहीं देखते। फर्स्ट नम्बर में आने वाली आत्मायें व्यर्थ को देखते हुए भी नहीं देखती, व्यर्थ बातें सुनते हुए भी नहीं सुनती। वे मंजिल को सामने रख ब्रह्मा बाप को फालो करती हैं। जैसे ब्रह्मा बाप ने अपने को करनहार समझकर कर्म किया, कभी करावनहार नहीं समझा, इसलिए जिम्मेवारी सम्भालते भी सदा हल्के रहे। ऐसे फालो फादर करो।
स्लोगन: जो बात अवस्था को बिगाड़ने वाली है - उसे सुनते हुए भी नहीं सुनो।
 
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य

1- आत्मा परमात्मा में अन्तर, भेद:- आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहुकाल सुन्दर मेला कर दिया जब सतगुरु मिला दलाल... जब अपन यह शब्द कहते हैं तो उसका यथार्थ अर्थ है कि आत्मा, परमात्मा से बहुतकाल से बिछुड़ गई है। बहुतकाल का अर्थ है बहुत समय से आत्मा परमात्मा से बिछुड़ गई है, तो यह शब्द साबित (सिद्ध) करते हैं कि आत्मा और परमात्मा अलग-अलग दो चीज़ हैं, दोनों में आंतरिक भेद है परन्तु दुनियावी मनुष्यों को पहचान होने के कारण वो इस शब्द का अर्थ ऐसा ही निकालते हैं कि मैं आत्मा ही परमात्मा हूँ, परन्तु आत्मा के ऊपर माया का आवरण चढ़ा हुआ होने के कारण अपने असली स्वरूप को भूल गये हैं, जब वो माया का आवरण उतर जायेगा फिर आत्मा वही परमात्मा है। तो वो आत्मा को अलग इस मतलब से कहते हैं और दूसरे लोग फिर इस मतलब से कहते हैं कि मैं आत्मा सो परमात्मा हूँ परन्तु आत्मा अपने आपको भूलने के कारण दु:खी बन पड़ी है। जब आत्मा फिर अपने आपको पहचान कर शुद्ध बनती है तो फिर आत्मा परमात्मा में मिल एक ही हो जायेंगे। तो वो आत्मा को अलग इस अर्थ से कहते हैं परन्तु अपन तो जानते हैं कि आत्मा परमात्मा दोनों अलग चीज़ है। आत्मा, परमात्मा हो सकती और आत्मा परमात्मा में मिल एक हो सकती है और फिर परमात्मा के ऊपर आवरण चढ़ सकता है।
 
2- “कर्म बन्धन टूटने से ही मन की शान्ति अर्थात् जीवनमुक्त स्थिति को पा सकते हैं
वास्तव में हरेक मनुष्य की यह चाहना अवश्य रहती है कि हमको मन की शान्ति प्राप्त हो जावे इसलिए अनेक प्रयत्न करते आये हैं मगर मन को शान्ति अब तक प्राप्त नहीं हुई, इसका यथार्थ कारण क्या है? अब पहले तो यह सोच चलना जरुरी है कि मन के अशान्ति की पहली जड़ क्या है? मन की अशान्ति का मुख्य कारण है - कर्मबन्धन में फंसना। जब तक मनुष्य इन पाँच विकारों के कर्मबन्धन से नहीं छूटे हैं तब तक मनुष्य अशान्ति से छूट नहीं सकते। जब कर्मबन्धन टूट जाता है तब मन की शान्ति अर्थात् जीवनमुक्त स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। अब सोच करना है - यह कर्मबन्धन टूटे कैसे? और उसे छुटकारा देने वाला कौन है? यह तो हम जानते हैं कोई भी मनुष्य आत्मा किसी भी मनुष्य आत्मा को छुटकारा दे नहीं सकती। यह कर्मबन्धन का हिसाब-किताब तोड़ने वाला सिर्फ एक परमात्मा है, वही आकर इस ज्ञान योगबल से कर्मबन्धन से छुड़ाते हैं इसलिए ही परमात्मा को सुख दाता कहा जाता है। जब तक पहले यह ज्ञान नहीं है कि मैं आत्मा हूँ, असुल में मैं किसकी सन्तान हूँ, मेरा असली गुण क्या है? जब यह बुद्धि में जाए तब ही कर्मबन्धन टूटे। अब यह नॉलेज हमें परमात्मा द्वारा ही प्राप्त होती है गोया परमात्मा द्वारा ही कर्मबन्धन टूटते हैं। ओम् शान्ति।

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Details ( Page:- Murali 2nd-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY  02.11.17Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe bacche - bikaro ka daan dene ke baad bhi yaad me rehne ka purusharth zaroor karna hai kyunki yaad se he aatma pawan banengi.
Q- Takhtnashin banne wa Rudra mala me pirone ki biddhi kya hai?
A- Baap samaan dukh harta sukh karta bano. Sabhi par gyan jal ki chhinte daal sital banane ki seva karo. Kisi ko bhi dukh dene ki bsstein chhod do. Koi bhi bikarm nahi karo. Acche manners dharan karo. Apna time Baap ki yaad me safal karo to Baap ke diltakhtnashin ban Rudra mala me piroh jayenge. Agar koi apna time waste karta hai to muft apna pad bhrast karta hai. Jhoot bolna, bhool karke chhipana, kisi ki dil ko dukhana - yah sab paap hain, jiski 100 gonna saza milegi.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Pawan banne ke liye jab tak jeena hai, maya ke bighno ki parwah nahi karni hai.
2) Sabhi par gyan ki chhinte daal sital banane ki seva karni hai, kisi ki dil ko kabhi bhi dukhana nahi hai. Baap samaan dukh harta, sukh karta banna hai.
Vardaan:-- Chharo aur ki halchal ke samay avyakt sthiti wa asariri banne ki abhyas dwara Bijayi bhava.
Slogan:- Purusharth ko tibra karna hai to albele pan ke loose screw ko tight karo.
HINDI DETAIL MURALI

02/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे, विकारों को दान देने के बाद भी याद में रहने का पुरुषार्थ जरूर करना है क्योंकि याद से ही आत्मा पावन बनेंगी''
प्रश्न:तख्तनशीन बनने वा रूद्र माला में पिरोने की विधि क्या है?
उत्तर:
बाप समान दु: हर्ता सुख कर्ता बनो। सभी पर ज्ञान जल के छींटे डाल शीतल बनाने की सेवा करो। किसी को भी दु: देने की बातें छोड़ दो। कोई भी विकर्म नहीं करो। अच्छे मैनर्स धारण करो। अपना टाइम बाप की याद में सफल करो तो बाप के दिलतख्तनशीन बन रूद्र माला में पिरो जायेंगे। अगर कोई अपना टाइम वेस्ट करता है तो मुफ्त अपना पद भ्रष्ट करता है। झूठ बोलना, भूल करके छिपाना, किसी की दिल को दु:खाना - यह सब पाप हैं, जिसकी 100 गुणा सजा मिलेगी।
गीत:- वह हमसे जुदा होंगे...   ओम् शान्ति।
यह हैं गोपिकाओं के गीत। कौन सी गोपिकायें? यह हैं प्रजापिता ब्रह्मा मुख वंशावली। फिर इनको कहा जाता है गोपी वल्लभ अर्थात् बाप के गोप गोपियां। बाकी वह सब कहानियां हैं। यह तो समझने की बात है कि बरोबर जब तुम ईश्वर के बनते हो तो आसुरी विकारी सम्प्रदाय दुश्मन बनते हैं। हंस और बगुले इक्ट्ठे रह सकें। हंस थोड़े होते हैं। बगुले बहुत करोड़ों की अन्दाज में हैं। तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है। इसका गायन भी है। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहो। हाँ विघ्न बहुत पड़ेंगे। आधाकल्प के पतित हैं वह इतना जल्दी पावन नहीं बनते। विकार के लिए कितनी कशमकस चलती है, अबलाओं पर अत्याचार होते हैं, तब तो द्रोपदी ने पुकारा है। द्रोपदी एक नहीं। इस समय सब द्रोपदियां और दुशासन हैं। चीर उतारते हैं। यह है ही पतित विकारी दुनिया और सतयुग को कहा जाता है वाइसलेस दुनिया। यह है विशश दुनिया, रावण राज्य। इस दुनिया में कितना दु: है, रोना, पीटना, लड़ाई-झगड़ा क्या लगा पड़ा है। जब नई दुनिया में देवतायें राज्य करते थे तो पवित्रता सुख-शान्ति थी, अशान्ति वाले कोई धर्म नहीं थे। अभी तो अशान्ति फैलाने वाले कितने धर्म हैं। तुम फिर सिद्धकर बतलाते हो सबसे पुराना दुश्मन है रावण, जिसने भारत को कौड़ी जैसा पतित बनाया है। बाप बैठ कर्म-अकर्म-विकर्म की गति समझाते हैं। रावणराज्य में कोई कितना भी दान पुण्य करे, यज्ञ, जप-तप करे तो भी नीचे उतरना ही है। जिसको दान करते वह भी विकारी पाप आत्मा हैं। विकर्म करते करते अब सिर पर बहुत बोझा है। तुम्हारी आत्मा जो सतोप्रधान थी सो अब तमोप्रधान बन पड़ी है। यह सब बाप समझाते हैं - कल्प पहले मुआफिक बाप ही आकर कल्प-कल्प हमको देवता बनाते हैं। सहज राजयोग और ज्ञान सुनाते हैं। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो। यह तो सहज है ना। सब कहते हैं कि हे भगवान आओ। हम पतितों को आकर पावन बनाओ। तो पतित-पावन बाप ही ठहरा। तुम जानते हो बाप हमको पावन बनाने का पुरुषार्थ कराते हैं। भल कोई 5 विकार दान में दे देते हैं परन्तु फिर योग भी लगाना है। जन्म-जन्मान्तर के जो सिर पर पाप हैं, जिससे तुम तमोप्रधान बने हो, वो योग के सिवाए कैसे भस्म होंगे?
तुम 5 विकारों का दान करते हो कि हम कोई पाप नहीं करेंगे। परन्तु जन्म-जन्मान्तर के जो पापों का हिसाब है, वह कैसे चुक्तू होगा? उसकी युक्ति है जहाँ तक जीना है बाप की याद में रहना है। इस याद से ही विकर्म विनाश होंगे। पतित आत्मा वहाँ जा नहीं सकती। हर एक को अपना-अपना पार्ट और अपना-अपना मर्तबा मिला हुआ है। जैसा मनुष्य का मर्तबा वैसे आत्मा का भी मर्तबा। पहले-पहले आत्मा स्वर्ग में आयेगी। पहले नम्बर में हैं लक्ष्मी-नारायण, उनका सबसे बड़ा पार्ट है। ड्रामा में देवी-देवता धर्म की आत्मायें सबसे अच्छा पार्ट बजाकर सबसे जास्ती सुख भोगती हैं। फिर सतो रजो तमो में आना है। खाद पड़ती जाती है। अब वह खाद निकले कैसे? सोने को अग्नि में डालने से खाद निकलती है। यह योग अग्नि है जिससे विकर्म विनाश होते हैं। यह कोई नहीं जानते कि योग अग्नि से विकर्म विनाश हो सकते हैं। बच्चे कहते हैं घड़ी- घड़ी योग टूट पड़ता है। हम बाप को भूल जाते हैं। यह माया के विघ्न हैं। विघ्न आयें, जल्दी योग लग जाये तो जल्दी विनाश हो जाए, परन्तु ऐसा हो नहीं सकता। टाइम लगता है। जब तक योग लगाते रहो, अन्त में कर्मातीत अवस्था होगी। फिर दुनिया भी खत्म हो जायेगी। तुम श्रीमत से रावण पर जीत पाते हो। गीता, महाभारत, रामायण सबमें भक्ति की सामग्री है। तुमने संगम पर जो कर्तव्य किया है, उसका यादगार यह मन्दिर आदि बने हैं। यादगार बनना द्वापर से शुरू होता है।
पहले परमपिता परमात्मा शिव का यादगार बनता है, जो आकर पतितों को पावन बनाते हैं। देवताओंकी महिमा गाई जाती है। लक्ष्मी-नारायण का बड़ा मन्दिर है। उन्हों की इतनी पूजा क्यों होती है? यह किसको मालूम नहीं है। पूज्य से फिर पुजारी जरूर बनना पड़े, पूज्य हैं तो प्रालब्ध भोगते हैं। जैसे बड़े राजाओं के जीवन चरित्र गाते हैं तो सतयुग के पहले नम्बर में महाराजा महारानी, लक्ष्मी-नारायण की जरूर महिमा गायेंगे। परन्तु वह कैसे बनें, यह नहीं जानते। जैसे ब्रह्मा और सरस्वती इन दोनों को सिखलाने वाला शिव है। उनका नाम शास्त्रों से गुम कर अगड़म बगड़म कर दिया है। इन बातों को सेन्सीबुल बच्चे नम्बरवार जानते हैं। यह ड्रामा चल रहा है - कल्प पहले भी तुम ऐसे बने थे जैसे अब बन रहे हो। यह झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। फल भी जरूर पकेगा। झाड़ को बढ़ने में टाइम लगता है। जब झाड़ तैयार हो जायेगा तो तुम देवी देवता बन जायेंगे। बाकी सबका विनाश हो जायेगा। तुम बच्चे अब पक रहे हो। कोई पूरा पकते, कोई कम, कोई को तूफान लगते हैं। कमाई में ग्रहचारी आती है। बाबा कहते हैं योग लगाते रहो ताकि तुम्हारे सब पाप दग्ध हो जाएं। कितनी भारी कमाई है, इसलिए भारत का प्राचीन योग मशहूर है। परन्तु उससे क्या होता है, यह किसको पता नहीं। अब बाप समझाते हैं - तुम्हारी आत्मा में खाद पड़ी हुई है। आपेही पूज्य और आपेही पुजारी मनुष्य की आत्मा बनती है। भगवान तो बन नहीं सकता। अगर वह भी पुजारी बने तो फिर पूज्य कौन बनावे! हमको पूज्य बनाने वाला बाप है। हम पूज्य, पावन देवता थे फिर उतरते-उतरते हम शूद्र बन गये। सतयुग के देवी-देवताओं को कहेंगे - ईश्वर की नई रचना। गाते हैं - मनुष्य को देवता किये.... बाप समझाते हैं अच्छी तरह पढ़ो। बाप, टीचर, गुरू का काम होता है - ताकीद करना (पुरुषार्थ कराना), बच्चे टाइम वेस्ट मत करो। मुफ्त पद भ्रष्ट हो जायेगा, फिर बहुत पछतायेंगे। कहेंगे कल्प-कल्प हमारी ऐसी अवस्था होगी! फिर कुछ कर नहीं सकेंगे। साक्षात्कार हो जायेगा। पक्का निश्चय हो जायेगा कि कल्प-कल्प ऐसे दुर्गति को पाऊंगा। बाप समझाते रहते हैं - यह नतीजा निकलेगा, फिर बहुत रोना पड़ेगा। जैसे क्लास ट्रांसफर होती है, नम्बरवार बैठते हैं। हम भी नई दुनिया में ट्रांसफर होते हैं। ब्रह्मणों की माला गाई हुई नहीं है, रूद्र माला ही पूजी जाती है। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि यह माला क्या है? ऊपर में मेरू दिखाते हैं। मेरू विष्णु है। ऊपर में फूल शिवबाबा है, फिर है माला। अब तुम ब्रह्मण पुरुषार्थ कर रहे हो फिर रूद्र माला में पिरोना है इसलिए पुरुषार्थ ऐसा करो जो तख्तनशीन बनो। किसको दु: देने की बातें छोड़ दो। बाप दु: हर्ता, सुख कर्ता है। अगर बच्चे दु: देंगे तो कौन समझेंगे - यह ईश्वर के बच्चे हैं। विकर्म करना अथवा जीवघात करना, झूठ पाप नहीं करना चाहिए। हार खाते हैं तो क्षमा मांगनी पड़े, भक्ति में भी कुछ हो जाता है तो तोबां-तोबां करते हैं। यह ज्ञान मार्ग है, इसमें किसकी दिल कभी नहीं दु:खानी है। ज्ञान का छींटा तो शीतल करने वाला है, यहाँ तुम बच्चे आये हो पढ़ने के लिए। पढ़ाई में मैनर्स अच्छे रखने होते हैं। यह भी पढ़ाई है। निराकार बाप पढ़ाते हैं। वह तुम्हारे अन्दर की सब बातें जानते हैं। एक सेन्टर से समाचार आया था - एक बच्चे ने भूल की तो धर्मराज ने सटका लगाया। इस बाबा को मालूम ही नहीं था। ऐसे बहुत हैं जो विकार में जाते हैं फिर सच नहीं बताते। अपने को बचाने के लिए भूल छिपाते हैं। परन्तु शिवबाबा से तो छिप नहीं सकते। तुमको पढ़ाने वाला शिवबाबा है। उनको भी भूल जाते हैं। यह तो कमबख्ती कहेंगे। यहाँ किसका भी झूठ वा सच छिप नहीं सकता। यह बाबा कहते हैं मैं अन्तर्यामी नहीं हूँ। शिवबाबा अन्तर्यामी है। बाप खुद कहते हैं - मैं निराकार सब जानता हूँ। यह तो साकार में है। मैं पुनर्जन्म रहित, यह जन्म मरण में आने वाला, तब तो इनको कहते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, हम तुमको सुनाते हैं। जो भी सूर्यवंशी घराने के हैं, उन सबको सुनाता हूँ। बहुत बच्चे छिपाते हैं। बाबा के आगे आते ही नहीं हैं। बाबा ने कहा है इनसे मत छिपाओ, इनको सब कुछ सुनाओ। तो माफ हो जायेगा। फिर भी मेरा बच्चा है। मैं तो सब कुछ जानता हूँ, इनको कैसे पता पड़े इसलिए सब इनको सुनाओ। आगे जन्म-जन्मान्तर का हिसाब तो मेरे पास जमा है। बाकी इस जन्म का जो है वह इनको सुनाओ तो मैं भी सुनूँगा। बाकी घर बैठे समझेंगे शिवबाबा तो सब कुछ जानते हैं। नहीं। वह तो भक्ति मार्ग में करते आये हो। अब तो मैं सम्मुख आया हूँ, तो बताना पड़े तब फिर सावधानी भी मिलेगी। बाप तो समझायेंगे काला मुँह नहीं करना। नहीं तो बहुत सजा खायेंगे। पिछाड़ी का समय बहुत नाजुक होता है। बहुत सजायें मिलती हैं। मिसाल भी तुम देखते सुनते रहते हो। पाप कभी भी सर्जन से छिपाओ मत। माफ वह करेंगे, यह नहीं। इस समय पाप करने से तो सौगुणा हो जायेगा, और फालतू झूठ भी मत बोलो। बाबा सब बच्चों को वारनिंग देते हैं। कितनी बड़ी बेहद की पाठशाला है।
तुम गोप गुप्त वेष में बहुत काम कर सकते हो। समझायेंगे तो दिल में जरूर लगेगा कि बरोबर यह भी गवर्मेन्ट है। यह ज्ञान गुप्त है। बीज, झाड़ और सृष्टि चक्र को जानना है। यह 4 युगों का चक्र है। उन्होंने फिर चर्खा रख दिया है। तुम हो बी.के. पाण्डव सेना, वह कोट आफ आर्मस ले जाना चाहिए। चर्खा चलाने से सत्यमेव जयते होगी क्या? यह तो सृष्टि चक्र की बात है। तुमको डरना नहीं चाहिए। गुप्त वेष में तुम कहाँ भी जा सकते हो। बहुरूपी के बच्चे बहुरूपी होने चाहिए। परन्तु बच्चों की बुद्धि में आता नहीं है। थोड़ी ही सर्विस में खुश हो जाते हैं। दिमाग एकदम आसमान में चढ़ जाता है। अजुन तो बहुत काम करना है। किसम-किसम से पुरुषार्थ करना है। बाबा अनेक पॉइंट्स देते हैं। यह ज्ञान यज्ञ तो चलना ही है। हर एक पंथ वाले को बुलाते रहो। राजाओं को भी बुला सकते हो। कानफ्रेंस भी कर सकते हो। जैसा आदमी वैसा-वैसा कार्ड छपाना पड़े। आकर समझो यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, आओ तो हम आपको परमपिता परमात्मा की और 5 हजार वर्ष की जीवन कहानी सुनायें। वन्डर है ना। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) पावन बनने के लिए जब तक जीना है, माया के विघ्नों की परवाह नहीं करनी है।
2) सभी पर ज्ञान के छीटें डाल शीतल बनाने की सेवा करनी है, किसी की दिल को कभी भी दु:खाना नहीं है। बाप समान दु: हर्ता, सुख कर्ता बनना है।
वरदान:चारों ओर की हलचल के समय अव्यक्त स्थिति वा अशरीरी बनने के अभ्यास द्वारा विजयी भव!
लास्ट समय में चारों ओर व्यक्तियों का, प्रकृति का हलचल और आवाज होगा। चिल्लाने का, हिलाने का वायुमण्डल होगा। ऐसे समय पर सेकण्ड में अव्यक्त फरिश्ता सो निराकारी अशरीरी आत्मा हूँ - यह अभ्यास ही विजयी बनायेगा इसलिए बहुत समय का अभ्यास हो कि मालिक बन जब चाहें मुख द्वारा साज बजायें, चाहें तो कानों द्वारा सुनें, अगर नहीं चाहें तो सेकण्ड में स्टाप - यही अभ्यास सिमरणी अर्थात् विजय माला में ले आयेगा।
स्लोगन: पुरूषार्थ को तीव्र करना है तो अलबेलेपन के लूज स्क्रू को टाइट करो।

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Details ( Page:- Murali 03-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY  03.11.17Pratah Murli Om Shanti BaaPDada Madhuban
Mithe bacche - Koi bhi dehadhari ko yaad karne se mukti-jeevanmukti nahi mil sakti, Baap he tumhe direct yah varsha dete hain.
Q- Baap ka banne ke baad bhi maya kin baccho ko apni aur ghasit leti ?
A- Jinka buddhiyog purane sambandhiyo me bhatakta hai, pura gyan nahi hai ya koi purani aadat hai, aise baccho ko maya apni aur ghasit leti hai. Bahar ka sang bhi bahut kharab hai, jo khatam kar deta hai. Sang ka ashar bahut jaldi lagta hai, isiliye Baba kehte bacche ek Baap ke saath buddhiyog rakho. Baap ko he follow karo. Koi bhi dehadhari me pyaar nahi rakho.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Karmbandhano ke chintan me nahi rahna hai. Buddhi ko deha-dhariyon se hatana hai. Behad ka sannyas karna hai._
2) Bandhano se chhotne ke liye poora-poora nastmoha banna hai. Sachchi dil rakhni hai. Gyan me mazboot (pakka) aur himmatvan banna hai.
Vardaan:-- Mere pan ki khot ko samapt kar bharpoorta ka anubhav karne wale Sampoorn Trusty bhava.
Slogan- Baap samaan banna hai to samajhna, chahna aur karna - tino ko samaan banao.
HINDI DETAILs MURALI

03/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''बापदादा'' मधुबन
मीठे बच्चे - कोई भी देहधारी को याद करने से मुक्ति-जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती, बाप ही तुम्हें डायरेक्ट यह वर्सा देते हैं
प्रश्न:बाप का बनने के बाद भी माया किन बच्चों को अपनी ओर घसीट लेती है?
उत्तर:
जिनका बुद्धियोग पुराने सम्बन्धियों में भटकता है, पूरा ज्ञान नहीं है या कोई पुरानी आदत है, ऐसे बच्चों को माया अपनी ओर घसीट लेती है। बाहर का संग भी बहुत खराब है, जो खत्म कर देता है। संग का असर बहुत जल्दी लगता है, इसलिए बाबा कहते बच्चे एक बाप के साथ बुद्धियोग रखो। बाप को ही फालो करो। कोई भी देहधारी में प्यार नहीं रखो।
गीत:- तुम्हें पाके हमने...   ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि अभी बेहद के बाप से हमें वर्सा मिल रहा है। यह बहुत समझने की बात है। कहावत है परमपिता परमात्मा सभी धर्म स्थापकों को भेज देते हैं - अपना-अपना धर्म स्थापन करने के लिए। तो वह आकर धर्म स्थापन करते हैं। ऐसे नहीं कि वह कोई को वर्सा देते हैं। नहीं। वर्से की बात ही नहीं निकलती। वर्सा देने वाला एक बाप है। क्राइस्ट की आत्मा कोई सभी का बाप थोड़ेही है, जो वर्सा देगी। वह तो क्रिश्चियन का भी बाप नहीं जो वर्सा देवे। भला वह कौनसा वर्सा देंगे? प्रश्न उठता है। और वर्सा किसको देंगे? वह तो धर्म स्थापन करने आते हैं। उनके पीछे दूसरे क्रिश्चियन धर्म की आत्मायें आती जाती हैं। वर्से की बात ही नहीं। बाप से वर्सा लेना होता है। समझो इब्राहम, बुद्ध, क्राइस्ट आदि आये। उन्होंने क्या किया? किसको वर्सा दिया? नहीं। वर्सा देना बाप का ही काम है। वह तो खुद आते हैं। आत्मायें आती जाती, वृद्धि को पाती रहती हैं। वर्सा हमेशा क्रियेटर से मिलता है। क्रियेटर एक है लौकिक बाप, दूसरा है पारलौकिक बाप। यह धारण करने की बातें हैं। धारणा भी उन्हों को होगी जो औरों को दान करते होंगे। अभी बेहद का बाप सब बच्चों को वर्सा देने आये हैं। बेहद का बाप ही बच्चों को बेहद का वर्सा देते हैं। क्रिश्चियन, इस्लामी, बौद्धी आदि सबका बाप एक है। सब गाड फादर कहते हैं। क्राइस्ट ने भी कहा है गाड फादर। फादर को कभी भूलते नहीं हैं। गाड फादर एक ही निराकार को कहा जाता है। सब निराकार आत्माओंका बाप एक ही है। धर्म स्थापकों का भी वह निराकार एक बाप है, उनसे ही वर्सा मिलता है। सब गाड फादर कहकर पुकारते हैं। एक भारत ही है जिसमें कहते हैं- ईश्वर सर्वव्यापी है। भारत से ही और सभी सर्वव्यापी कहना सीखे हैं। अगर ईश्वर सर्वव्यापी है फिर ईश्वर को याद क्यों करते हो? साधू लोग साधना वा प्रार्थना किसकी करते हैं? बाप तो पूछेंगे ना। क्रियेटर सबका एक है, वही पतित-पावन है। सतयुग में सभी पावन ही होते हैं, फिर पतित कैसे बनते हैं? लिखा हुआ है-देवतायें ही वाम मार्ग में जाते हैं। अब फिर पावन दुनिया बन रही है। द्वापर आदि से पतित दुनिया शुरू होती है। ईश्वरीय राज्य और आसुरी राज्य आधा-आधा है। भारत की ही बात है। रावण को भारत में ही जलाते हैं। तो बाबा ने समझाया है और धर्म स्थापक किसको भी वर्सा नहीं देते हैं। बाकी धर्म स्थापन करते हैं, इसलिए उनको याद करते हैं। बाकी क्राइस्ट को, ब्रह्मा को, विष्णु को वा शंकर को याद करने अथवा उनकी प्रार्थना करने से वह कुछ भी नहीं दे सकते। देने वाला बाप ही है। उनको सम्मुख आना पड़ता हैं। कृष्ण में परमात्मा आते हैं-ऐसा कोई भी मानते नहीं हैं।
बाप कहते हैं मैं तुम आत्माओं को वर्सा देने एक ही टाइम पर आता हूँ। वर्सा बाप बच्चों को देते हैं। बाबा दो को ही कहा जाता है-एक शरीर का बाबा, दूसरा आत्माओं का बाबा, और कोई बाबा हो नहीं सकता। तुमको इस बाबा अर्थात् प्रजापिता ब्रह्मा से वर्सा मिल नहीं सकता। वर्सा एक शिवबाबा से मिलता है, ब्रह्मा भी वर्सा उनसे लेते हैं। वह सर्व के सद्गति दाता हैं। सर्व के मुक्ति-जीवनमुक्ति दाता हैं इसलिए पहले-पहले कोई को भी बाप का परिचय देना पड़े। भल कोई बुजुर्ग को भी बाबा वा पिता जी कह देते हैं। परन्तु बाप है नहीं। बाप एक लौकिक, दूसरा पारलौकिक ही होता है। यह ब्रह्मा भी जिस्मानी बाप है। तुम बच्चों को एडाप्ट करते हैं। भल तुम ब्रह्मा को बाबा कहते हो परन्तु वर्सा तो उनसे मिलता है ना। कौन सा वर्सा? सद्गति का। दुर्गति वा जीवनबंध से तो सब छूटते हैं। इस समय भारत खास, सारी दुनिया आम रावण के बंधन में है। आत्मायें जो पहले-पहले आती हैं तो पहले जीवनमुक्त फिर जीवनबंध बनती हैं। पहले सुख फिर दु: भोगना है।
यह बुद्धि में बिठाना चाहिए। कोई भी देहधारी को याद करने से मुक्ति-जीवनमुक्ति मिल नहीं सकती। मैसेन्जर लोग भी किसको वर्सा देते नहीं हैं। मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा बाप ही आकर देते हैं। परन्तु किनको डायरेक्ट, किनको इनडायरेक्ट। तुम बच्चों के सम्मुख ही बाप होता है। दिन-प्रतिदिन तुम देखेंगे-बाबा मधुबन से बाहर कहाँ जायेंगे नहीं। इस पुरानी दुनिया में रखा ही क्या है। शिवबाबा कहते हैं हमको स्वर्ग में जाने अथवा स्वर्ग को देखने की भी खुशी नहीं है तो बाकी इस दुनिया में कहाँ जायेंगे। मेरा पार्ट ही ऐसा है, पतित दुनिया में आता हूँ। 7 वन्डर्स आफ वर्ल्ड कहते हैं, परन्तु उनमें कोई स्वर्ग बताते नहीं। स्वर्ग तो पीछे आता है। मुझे पतित दुनिया, पतित शरीर में पराये राज्य में आना पड़ता है। गाते भी हैं दूरदेश के रहने वाला... इसका अर्थ तुम बच्चे ही समझ सकते हो। अभी हम पुरूषार्थ करते हैं फिर अपने देश में आयेंगे। अच्छा द्वापर के बाद जो आत्मायें आयेंगी, वह तो पराये राज्य अर्थात् रावण राज्य में आयेंगी। पावन राज्य में तो नहीं आयेंगी। उन्हों का थोड़ा सुख, थोड़ा दु: का पार्ट है। तुम सतयुग से लेकर फुल सुख देखते हो। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। बाप तुम बच्चों को बैठ राज समझाते हैं कि मैं कैसे देवी-देवता धर्म स्थापन करता हूँ, इसमें सुख ही सुख है और उसके लिए तुमको लायक बनाता हूँ। तुम समझते हो हम स्वर्ग के मालिक थे फिर माया ने पूरा ना लायक बनाया है। बाप कहते हैं अभी तुम कितने बेसमझ बन पड़े हो, नारद की कहानी है ना। तुम समझ सकते हो-भगत झांझ बजाने वाला लक्ष्मी को कैसे वरेगा? जब तक राजयोग सीख पवित्र बने। भल शरीर तो सबके भ्रष्टाचारी हैं क्योंकि भ्रष्टाचार से पैदा होते हैं। तुम तो मुख वंशावली हो। यह बड़ी समझने की बातें हैं। यह रचता और रचना की नालेज बाप खुद ही आकर देते हैं। सब पॉइंट्स कोई समझ भी नहीं सकेंगे। यहाँ से बाहर गये-कोई का संग मिला और खत्म। कहा भी जाता है संग तारे कुसंग बोरे... भल यहाँ भी बैठे हैं परन्तु पूरा बुद्धियोग नहीं है। ज्ञान नहीं है तो संगदोष में गिर पड़ते हैं। कोई भी किसी में आदत है तो उनका संग करने से वह असर झट पड़ जाता है। यहाँ है बाबा का संग। फिर जो बाप को फालो कर औरों का भी उद्धार करते हैं, वही ऊंच पद पाते हैं। कई नये-नये बच्चे कहते हैं बाबा हम नौकरी आदि छोड़ इस सर्विस में लग जायें? बाबा कहते हैं-आगे चल माया नाक से ऐसे पकड़ेगी जो बात मत पूछो। अनुभव कहता है-ऐसे बहुतों ने छोड़ा फिर चले गये। ईश्वरीय जन्म तो लिया फिर माया ने घसीट लिया। बड़े अच्छे-अच्छे बच्चों को माया एक घूसा लगाए बेहोश कर देती है, जिनका बुद्धियोग बाहर भटकता रहता है, पुराने सम्बन्धियों आदि में इसलिए बाबा कहते हैं देहधारियों से बुद्धियोग जास्ती मत रखो। इस बाबा से भी भल तुम्हारा कितना भी प्यार है तो भी इनसे बुद्धियोग मत लगाओ। बाप को याद नहीं करेंगे तो विकर्म विनाश नहीं होंगे। कोई भी शरीरधारी में प्यार मत रखो। सतसंगों में सब शरीरधारी ही सुनाते हैं। कोई महात्मा का नाम लेते हैं। ऐसे थोड़े ही कहते हैं कि परमपिता परमात्मा शिव हमको पढ़ाते हैं। बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं-इस रचना का चैतन्य बीज मैं हूँ। मुझे सारे झाड़ की नालेज है। वह तो जड़ बीज है। चैतन्य होता तो सुनाता। मुझ बीज में जरूर झाड़ के आदि-मध्य-अन्त की नालेज होगी। यह है बेहद की बात। इस समय तमोप्रधान राज्य है, तो उसका भभका जरूर होगा। कितने बड़े-बड़े नाम रखाते हैं - ज्ञानेश्वर, गंगेश्वरानंद... लेकिन आनंद तो कोई को मिल नहीं सकता। सन्यासी खुद कहते हैं सुख काग विष्टा समान है। लेकिन स्वर्ग का नाम भूलते नहीं हैं। कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा फिर पित्रों को बुलाते हैं। आत्मा कोई में प्रवेश कर बोलती है। परन्तु आत्मा कैसे आती है, कोई नहीं जानते। शरीर दूसरे का है, खायेगी भी उनकी आत्मा। उनके पेट में पड़ेगा। हाँ बाकी वासना वह लेती है। शिवबाबा तो है ही अभोक्ता। कुछ खाते नहीं। मम्मा की आत्मा आती है तो खाती है। पित्र भी आते हैं तो खाते हैं, यह बातें समझने की हैं। तो सिवाए एक के किसको बाबा नहीं कहा जाता, इनसे क्या वर्सा मिल सकता? कुछ नहीं मिल सकेगा। क्राइस्ट ने वर्सा दिया है क्या? उन्होंने तो लड़ाई कर राजाई स्थापन की है। क्रिश्चियन लोगों ने लड़ाई की। जब धन की वृद्धि हो, धन इकट्ठा हो तब राजाई चल सके। ऐसे थोड़े ही है कि क्रिश्चियन ने राजाई दी। राजाई अपने पुरूषार्थ से ड्रामा प्लैन अनुसार मिलती है ऐसे कहेंगे, बाकी मनुष्य किसको कुछ दे नहीं सकते। अगर देते हैं तो अल्पकाल का सुख। अभी तो तमोप्रधान हैं। माया का बहुत जोर है, अब माया से युद्ध करना है। माया जीते जगतजीत, मनुष्य शान्ति में रहने के लिए कितना माथा मारते हैं। मन ऐसे थोड़े ही शान्त हो सकता है। यह तो कुछ सीखते हैं जो हिप्नोटाइज आदि कर अनकानसेस कर देते हैं। मेहनत लगती है, किसकी तो ब्रेन ही खराब हो जाती है। बाप कहते हैं अगर कोई कर्मबन्धन में अथवा सम्बन्धी आदि में बुद्धि जाती रहेगी तो विकर्म विनाश नहीं होंगे। देहधारी से बुद्धि को हटाना है। सबको भूल जाओ, आप मुये मर गई दुनिया। दुनिया को याद करते हो तो तुमको दण्ड पड़ता है। तुम कहते हो कि बाबा हम मर चुके हैं। हम आपके हैं तो फिर मित्र सम्बन्धी आदि तरफ बुद्धि क्यों जाती है? गोया तुम मरे नहीं हो! बाप के बने नहीं हो! बहुत हैं जिनको रात-दिन कर्मबन्धन का ही चिंतन रहता है। याद में बैठते भी वही संकल्प आते रहते हैं। यहाँ बाबा की गोद में रहते तो मर चुके ना। तो बुद्धियोग कहाँ जाना नहीं चाहिए। सन्यासी तो घरबार छोड़ते हैं, गोया मर गये। अगर याद पड़ता रहेगा तो योग में कैसे रहेंगे। कोई फिर घर में लौट भी आते हैं। कोई पक्के होते हैं, बिल्कुल याद भी नहीं करते। तुम बच्चों की भी बुद्धि अगर बाहर जाती रहती है तो ऊंच पद पा सकेंगे। बच्चे बने हो तो फालो फादर पूरा करना चाहिए। कुछ भी मोह नहीं जाना चाहिए। परन्तु तकदीर में नहीं है तो मरकर भी उस तरफ चले जाते हैं। 5 प्रतिशत बुद्धि यहाँ है, 95 प्रतिशत बुद्धि बाहर है, भटकती रहती है ना। इधर के, उधर के। बाप के बने फिर बुद्धि ही खत्म। मर गये। इस बेहद के सन्यास में विरला ही कोई सकता है। माला का दाना भी वही बन सकता है। यह तो तकदीर है। यहाँ जो आकर रहते हैं-उन्हों को मेहनत नहीं लगनी चाहिए। परन्तु देखा जाता है कि यहाँ वालों को जास्ती मेहनत लगती है। बाहर में रहने वाले बड़े तीखे चले जाते हैं। किसी में मोह नहीं जाता। समझते हैं कहाँ यह बन्धन छूटे तो सर्विस में लग जायें। वह भी देखना पड़ता है - ज्ञान में पक्के हैं? अगर कच्चे होंगे और पति मर गया तो जैसे जख्म पर नमक पड़ जाता है। जब तक अच्छी रीति नहीं मरे हैं तो जैसे जख्म पर नमक पड़ता रहता है। यहाँ तो बाबा कहा, बस। बाबा के बन गये। पुराना सम्बन्ध छूटा। वह जानें उसके कर्म जानें। हम क्या जानें। इतनी उछल होनी चाहिए। ऐसे बहुत थोड़े हैं। बाप मिला बस और किसकी परवाह नहीं, इतनी हिम्मत चाहिए। सच्ची दिल हो, श्रीमत पर चलता रहे तो कोई भी रोक नहीं सकते हैं। पवित्र बनने में कोई विघ्न डाल नहीं सकते। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कर्मबन्धनों के चिन्तन में नहीं रहना है। बुद्धि को देह-धारियों से हटाना है। बेहद का सन्यास करना है।
2) बन्धनों से छूटने के लिए पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। सच्ची दिल रखनी है। ज्ञान में मजबूत (पक्का) और हिम्मतवान बनना है।
वरदान:मेरे पन की खोट को समाप्त कर भरपूरता का अनुभव करने वाले सम्पूर्ण ट्रस्टी भव!
यदि बाप की श्रीमत प्रमाण निमित्त बनकर रहो तो मेरी प्रवृत्ति है, मेरा सेन्टर है। प्रवृत्ति में हो तो भी ट्रस्टी हो, सेन्टर पर हो तो भी बाप के सेन्टर हैं कि मेरे इसलिए सदा शिव बाप की भण्डारी है, ब्रह्मा बाप का भण्डारा है - इस स्मृति से भरपूरता का अनुभव करेंगे। मेरा पन लाया तो भण्डारा भण्डारी में बरक्कत नहीं होगी। किसी भी कार्य में अगर कोई खोट अर्थात् कमी है तो इसका कारण बाप की बजाए मेरेपन की खोट अर्थात् अशुद्धि मिक्स है।
स्लोगनबाप समान बनना है तो समझना, चाहना और करना-तीनों को समान बनाओ।

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Details ( Page:- Murali 4th Nov 2017 )
HINGLISH SUMMARY  04.11.17Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe bacche - tumhe jitna Baba kehne se sukh feel hota hai, utna bhakto ko Bhagwan wa Ishwar kehne se nahi feel ho sakta.
Q- Lobh ke bas lokik baccho ki bhavna kya hoti jo tumhari nahi ho sakti?
A- Lokik bacche jo lobhi hote wo sochte hain ki kab Baap mare to property ke hum mallik bane. Tum bacche behad ke Baap ke prati aisa kabhi soch he nahi sakte kyunki Baap to hai he asariri. Yahan tumko abinashi Baap se abinashi varsha milta hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
 1) Savere-savere oothkar Baap ko pyaar se yaad karne ki aadat pakki daalni hai. Kam se kam 3-4 baje zaroor oothna hai.
2)Behad Baap se sachcha love rakhna hai. Shrimat par chal poora varsha lena hai.
Vardaan:-- Sarv shaktiyon se sampann ban har shakti ko karya me lagane wale Master Sarvshaktimaan bhava
Slogan:-- Praptiyon ko bhoolna he thakna hai isiliye praptiyon ko sada saamne rakho.
 
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04/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''बापदादा'' मधुबन
मीठे मीठे बच्चे - तुम्हें जितना बाबा कहने से सुख फील होता है, उतना भक्तों को भगवान वा ईश्वर कहने से नहीं फील हो सकता।
प्रश्न: लोभ के वश लौकिक बच्चों की भावना क्या होती जो तुम्हारी नहीं हो सकती?
उत्तर:
लौकिक बच्चे जो लोभी होते वह सोचते हैं कि कब बाप मरे तो प्रापर्टी के हम मालिक बनें। तुम बच्चे बेहद के बाप के प्रति ऐसा कभी सोच ही नहीं सकते क्योंकि बाप तो है ही अशरीरी। यहाँ तुमको अविनाशी बाप से अविनाशी वर्सा मिलता है।
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी.....    ओम् शान्ति।
ओम् शान्ति। जब दो बारी कहें तो एक बाबा कहते हैं, एक दादा कहते हैं। एक को आत्मा, दूसरे को परम आत्मा कहा जाता है अर्थात् परमधाम में निवास करने वाले हैं इसलिए उनको परम आत्मा (परमात्मा) कहा जाता है। अब आत्मा और परमात्मा का सम्बन्ध क्या है? एक बाप और अनेक बच्चे हैं। मनुष्य जब पुकारते हैं तो अंग्रेजी में भी कहते हैं गॉड फादर। तो पिता हुआ ना। सिर्फ परमात्मा वा प्रभु, ईश्वर आदि कहने से इतना मज़ा नहीं आता। बाप कहने से सुख मिलता है। पारलौकिक बाप है ही सुख देने वाला तब तो भक्ति मार्ग में इतना याद करते हैं। गॉड फादर अर्थात् वह हमारा पिता है। यह भी कहते हैं हम सब ब्रदर्स हैं। ब्रदरहुड कहते हैं। यह भारतवासी जब कहते हैं हम सब भाई-भाई हैं तो आत्मा की तरफ ध्यान नहीं जाता। देह-अभिमान में चले जाते हैं। यह समझते नहीं कि हम आत्मायें आपस में भाई-भाई हैं। हम सबका बाप एक है। अगर परमात्मा सर्वव्यापी होता तो भाई-भाई नहीं कहते। आत्मा ही समझकर भाई-भाई कहते हैं। अभी तुम बच्चे बाप के सम्मुख बैठे हो और बाप तुमको पढ़ाते हैं। अब आत्मा कहती है हमको बाप मिला है। बाप मिला गोया सब कुछ मिला। बाप द्वारा वर्सा मिलता है। बच्चा पैदा हुआ और समझते हैं वारिस आया। बाबा कहने से ही बच्चे का वारिसपना सिद्ध हो जाता है। अक्सर करके बच्चियां माँ, माँ कहती हैं। माँ तरफ जास्ती लव रहता है। बच्चा होगा तो बा,बा कहता रहेगा। बच्चे का बाप की तरफ लव जाता है, माँ से वर्सा नहीं मिल सकता। बाप से वर्सा मिलता है। अब यहाँ तो तुम सब आत्मायें भाई-भाई हो। तुम हर एक बाप से वर्सा ले रहे हो। बाप की श्रीमत है हर एक अपने को बाप का बच्चा समझ और सबको बाप का परिचय देते रहें और सृष्टि चक्र का राज़ भी समझायें। बाप से ही स्वर्ग का वर्सा मिलता है। बेहद का बाप कहते हैं तुम स्वर्गवासी थे फिर तुम नर्कवासी कैसे बनें, 84 जन्मों का चक्र कैसे लगाया - यह है डिटेल की बातें। बाकी बाप ने पहचान तो दी है और बाप से जरूर सतयुग का वर्सा मिलेगा। अच्छा किसको मिला हुआ है? यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र खड़े हैं। इन्हों को बाप का वर्सा मिला था फिर कहाँ गया? यह है चक्र की बात। तुमको अभी सतयुग का वर्सा मिलता है फिर पुनर्जन्म लेते-लेते 84 जन्म तो भोगने ही हैं। अब तुमको नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार 84 का चक्र बुद्धि में है और यह भी निश्चय है कि हमारा अन्तिम जन्म है। 84 जन्मों का चक्र लगाकर पूरा किया है। अब तुम जायेंगे तो तुम्हारे पीछे सब चले जायेंगे। तुम बच्चे तो बाप से अपना वर्सा पा चुके हो, राजयोग सीख चुके हो। तो तुम जानते हो हम फिर नई दुनिया में राज्य करने आयेंगे। फिर यह सब इतने धर्म वहाँ होंगे नहीं, सब वापिस चले जायेंगे। फिर पहले-पहले हमको यानी डिटीज्म को आना है। हम शूद्र कुल के थे, अब ब्रह्मण कुल के बने हैं। फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी कुल के बनेंगे। हम ब्रह्मण कुल, सूर्यवंशी कुल और चन्द्रवंशी कुल के तीनों वर्से एक ही बाप से ले रहे हैं। सतयुग त्रेता में कोई धर्म स्थापन करने आता ही नहीं है। भारत का एक ही धर्म रहता है। पीछे बाहर वाले इस्लामी, बौद्धी आदि आते हैं। भारत बहुत प्राचीन देश है। पहले देवी-देवता ही थे, अभी और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं। कितनी भिन्न भिन्न भाषायें हैं। जैसे यूरोपियन हैं तो अमेरिका की भाषा अलग, फ्रांस की अलग। हैं तो सब क्रिश्चियन लोग। वैसे चीन की देखो। एक ही बौद्ध धर्म के हैं, परन्तु चीन की भाषा और, जापान की भाषा और। हैं तो सब बौद्ध परन्तु वृद्धि हो जाने से अलग-अलग हो जाते है। आपस में दुश्मन भी बन जाते हैं, भारत का दुश्मन कोई नहीं है। यह तो दूसरे धर्म वाले आकर लड़ते हैं। आपस में फूट डाल भारत को भी लड़ा देते हैं, नहीं तो भारतवासियों की आपस में लड़ाई ऐसे कभी हुई नहीं है। दूसरों ने लड़ाया, लोभ के कारण। यह भी खेल है। भारतवासी यह भी भूल गये हैं कि हम ही विश्व के मालिक थे। हमको बाप ने राज्य दिया था। सतयुग में यह नौलेज़ रहती नहीं कि यह राज्य हमने कैसे पाया। अभी तुम जानते हो हम यह राज्य कैसे पा रहे हैं। यह बाप बैठ समझाते हैं। है भी बहुत सहज। परन्तु मनुष्यों की बुद्धि को ऐसा ताला लगा हुआ है जो यह नहीं जानते कि इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य किसने और कब दिया? इन्हों के बच्चे कितने हुए, कुछ नहीं जानते। सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। सतयुग की आयु कितनी है? कह देते लाखों वर्ष फिर लाखों वर्ष में गद्दियां कितनी हुई? वृद्धि कितनी हुई होगी? कितने महाराजा महारानी होंगे। लाखों वर्ष में तो अनगिनत हो जाएं। लाखों वर्ष सतयुग के, फिर त्रेता के लाखों वर्ष, कलियुग के भी अभी 40 हजार वर्ष और कह देते हैं। इन बातों में किसकी बुद्धि नहीं चलती। इतनी लम्बी आयु दे दी है। क्रियेटर, डायरेक्टर, समय आदि सबका मालूम होना चाहिए। परन्तु किसको भी पता नहीं है। कहते हैं क्राइस्ट से 5 हजार वर्ष पहले भारत स्वर्ग था। गॉड गाडेज का राज्य था। कितना वर्ष चला, कैसे चला? यह कुछ भी जानते नहीं। अगर राधे-कृष्ण सतयुग के प्रिन्स प्रिन्सेज हैं तो उन्होंने भी कोई द्वारा पद पाया होगा? अगर कृष्ण ने गीता सुनाई तो कब? यह सब बातें बाप ही समझाते हैं। स्कूल में पहले अल्फ बे पढ़ाया जाता है। फिर धीरे-धीरे बड़ा इम्तहान पास करते हैं। तो अल्फ बे की पढ़ाई और पिछाड़ी की पढ़ाई में कितना फर्क होगा। यहाँ भी ऐसे है। जितना पहले समझाते थे, उससे सहज अभी समझाते हैं, उससे जास्ती आगे समझायेंगे। कोई नया आता है तो पहले उनसे फार्म भराया जाता है, फिर समझाते हैं। परमपिता परमात्मा के साथ आपका क्या सम्बन्ध है? जरूर सबका बाप हुआ ना। इन बातों को समझने वाले ही समझते हैं। जब तक हड्डी निश्चय हो कि बेहद के बाप से वर्सा लेना है। बाप स्वर्ग रचते हैं तो जरूर स्वर्ग का वर्सा देंगे। यह उन्हों की बुद्धि में बैठेगा - जिन्होंने कल्प पहले निश्चय किया होगा।
तुम देखते हो कई बच्चे सवेरे उठ नहीं सकते। 10-15 वर्ष मेहनत करते आये हैं तो भी समय पर उठ नहीं सकते। कम से कम 3-4 बजे उठो। भक्त लोग भी सवेरे उठकर ध्यान करते हैं। जाप करते हैं हनुमान का, शिव का। परन्तु उनसे कोई फायदा नहीं। भल करके कोई के लक्षण अच्छे होते हैं परन्तु उनसे कोई को मुक्ति-जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती है। उतरती कला होती है। लक्ष्मी-नारायण जो सतयुग में राज्य करते थे। वह भी दूसरे तीसरे जन्म में नीचे आते जाते हैं, उतरती कला होती जाती है। आधाकल्प पूरा होगा तो वाम मार्ग में चले जायेंगे। फिर भक्तिमार्ग शुरू होगा, कितने ढेर मन्दिर बनते हैं। अभी भी कितने मन्दिर हैं। कोई टूट भी गये हैं। वाम मार्ग में जाने के चित्र भी हैं। ड्रेस देवताओं की पड़ी है। वास्तव में ड्रेस उन्हों की अलग थी। पीछे बदलती आई है। कोई की पाग कैसी, कोई की कैसी, कोई का ताज कैसा, अलग-अलग ताज पहनने का भी अलग-अलग नमूना होता है। सूर्यवंशी राजायें जो हैं उनकी पहरवाइस अपनी-अपनी होती है। यह फलाने की पगड़ी है। बाबा ने साक्षात्कार भी किया है। द्वारिकाधीश की टेढ़ी पगड़ी थी। यह सब ड्रामा आदि से अन्त तक जो कुछ हो रहा है, वह फिर भी ऐसे ही होगा। फिर वाम मार्ग में जायेंगे, सबका मतभेद हो जायेगा। रसमरिवाज अलग हो जायेगा। सूर्यवंशी अलग, चन्द्रवंशियों का अलग.... यह बना बनाया खेल है जो फिर रिपीट होना है।
तुम जानते हो हम भी बेहद के बाप से फिर से गति सद्गति को पाते हैं। पुरानी दुनिया का विनाश होना है। बेहद का बाप राजयोग सिखला रहे हैं। यह दुनिया नहीं जानती कि राजयोग सिखाते हैं। तुम बच्चे अच्छी रीति जानते हो और तुम्हारा बाप से लव है। सबका एक जैसा तो हो नहीं सकता। अज्ञान में भी सबका एक जैसा लव नहीं होता। कोई लोभ वश कहते हैं बाप मरे तो प्रापर्टी मिले.. यहाँ शिवबाबा का शरीर तो है नहीं। बाबा तो अविनाशी है। यह शरीर लोन पर लिया है। तुम जानते हो हमने पूरे 84 जन्म लिए हैं। बाबा तो पुनर्जन्म नहीं लेते, इस शरीर में प्रवेश कर आते हैं। नहीं तो क्या लक्ष्मीनारायण के तन में आये? वह तो हैं ही पावन दुनिया के मालिक। यह तो है ही पतित दुनिया, पतित शरीर क्योंकि विष से पैदा होते हैं। बाबा कल्प पहले मुआफिक कहते हैं मैं साधारण तन में प्रवेश करता हूँ। मुझे जरूर अनुभवी रथ चाहिए। कोई अच्छे एक्टर होते हैं तो उनको अच्छा इनाम मिलता है। यह भी बाबा का रथ गाया हुआ है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, ब्रह्मा को बूढ़ा भी दिखाते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा, विष्णु और शंकर का रूप ही अलग है। ब्रह्मा का रूप बिल्कुल ठीक है। बाप ने ही इनका नाम रखा है प्रजापिता ब्रह्मा, इसने पूरे 84 जन्म लिए हैं। तुम भी कहेंगे हम सबने पूरे 84 जन्म लिए हैं तब पहले पहले बाप से मिले हैं हमारी राजाई फिर से स्थापन हो रही है। समझाना भी पड़ता है हे परमपिता परमात्मा, हे भगवान। तो भगवान जरूर बाप को समझना चाहिए। परन्तु मनुष्यों की समझ में नहीं आता है कि सभी आत्माओं का बाप निराकार है। पिता है तब तो भक्ति मार्ग में सब याद करते हैं। आत्माओं को सुख मिला था तब दु: में याद करते हैं। तुम भी आधाकल्प बाप को याद करते आये हो। शुरू-शुरू में ही सोमनाथ का मन्दिर बनता है। तो जरूर बाप को ही याद करेंगे। जानते हैं यह बाप का मन्दिर है। बाप ने ही वर्सा दिया है। तो पहले-पहले मन्दिर भी बाप का बना है। तुम अभी बाप के वारिस बने हो। बाप विश्व का रचयिता है। उनसे ही वर्सा मिलता है। बाकी जो भी हैं उन्होंने क्या किया? हम उनकी पूजा क्यों करते हैं? 84 जन्म वह लेते हैं। परन्तु भक्ति भी व्यभिचारी होनी ही है। आधाकल्प के लिए सामग्री चाहिए। सतयुग त्रेता में सामग्री की दरकार नहीं होती। यह सब बुद्धि में धारण करना है। वास्तव में कुछ भी लिखने की दरकार नहीं है। अगर सालवेंट बुद्धि हैं तो झट धारणा हो जाती है। बाकी किसको सुनाने लिए नोट्स लेते हैं। किताबें आदि रखने की जरूरत नहीं। हमारे किताब पिछाड़ी में कौन पढ़ेगा? औरों के शास्त्र तो पिछाड़ी में चले आते हैं। पढ़ने वाले हैं। तुमको तो पढ़ना ही नहीं है, प्रालब्ध मिल गई। आधाकल्प तो शास्त्र आदि की कोई बात नहीं। यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है। शास्त्र सब खत्म हो जाते हैं। पहले सबको यह समझाओ कि तुमको दो बाप हैं। जिस्मानी बाप तो है, वह भी उस बाप को याद करते हैं। गाया जाता है - दु: में सिमरण सब करें... यह भारत की बात है। बाप भी भारत में आते हैं। शिव जयन्ती आती है। तुम कहेंगे हम अपने बाप का फलाना जन्म मना रहे हैं। भल पूछें ब्रह्माकुमार कुमारियां हैं तो जरूर बाप आया होगा। यह है शिव का ज्ञान यज्ञ। तो ब्रह्मण जरूर चाहिए। ब्रह्मा कहाँ से आया? ब्रह्मा को एडोप्ट किया फिर बच्चे पैदा होते हैं तो भी इनके मुख कमल से रचते हैं। पहले सबको बाप का परिचय देना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सवेरे-सवेरे उठकर बाप को प्यार से याद करने की आदत पक्की डालनी है। कम से कम -4 बजे जरूर उठना है।
2) बेहद बाप से सच्चा लव रखना है। श्रीमत पर चल पूरा वर्सा लेना है।
वरदान:सर्व शक्तियों से सम्पन्न बन हर शक्ति को कार्य में लगाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव!
जो बच्चे सर्व शक्तियों से सदा सम्पन्न हैं वही मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं। कोई भी शक्ति अगर समय पर काम नहीं आती तो मास्टर सर्वशक्तिमान् नहीं कह सकते। एक भी शक्ति कम होगी तो समय पर धोखा दे देगी, फेल हो जायेंगे। ऐसे नहीं सोचना कि हमारे पास सर्व शक्तियां तो हैं, एक कम हुई तो क्या हर्जा है! एक में ही हर्जा है, एक ही फेल कर देगी इसलिए एक भी शक्ति कम हो और समय पर वह शक्ति काम में आये तब कहेंगे मास्टर सर्वशक्तिमान्।
स्लोगन: प्राप्तियों को भूलना ही थकना है इसलिए प्राप्तियों को सदा सामने रखो।
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Details ( Page:- Murali 5th Nov 2017 )
HINGLISH SUMMARY 
05.11.17Pratah Murli Om Shanti AVYAKT BapDada Madhuban
Headline 1 ( revise – 24/02/83 ) – Dilaram baap ka dilruba bachhon se milan.
Headline 2 ( revise – 27/02/83 ) – sangam yug par srungara hua madhur aloukik mela
Vardan – Parmatam pyar ki Shakti se asambhav ko sambhav karnewale padmapadam bhagyawan bhav.
Slogan – Apne sresth karm wa sresth challan dwara duayen jama karlo toh pahad jese baat rui ke saman anubhav hogi.
 
 
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05/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' रिवाइज-24/02/83
"दिलाराम बाप का दिलरूबा बच्चों से मिलन"
आज विशेष मिलन मनाने के लिए सदा उमंग-उल्लास में रहने वाले बच्चों से मिलने के लिए आये हैं। दिन रात यही संकल्प रहता है कि मिलन मनाना है। आकार रूप में भी मिलन मनाते फिर भी साकार रूप द्वारा मिलने की शुभ आशा सदा ही रहती है, सब दिन गिनती करते रहते कि आज हमको मिलना है, यह संकल्प हर बच्चे का बापदादा के पास पहुँचता रहता है और बापदादा भी यही रेसपान्ड देने के लिए हर बच्चे को याद करते रहते हैं इसलिए आज मुरली चलाने नहीं लेकिन मिलने का सकंल्प पूरा करने आये हैं। कोई-कोई बच्चे दिल ही दिल में मीठे-मीठे उल्हनें भी देते हैं कि हमें तो बोल द्वारा मुलाकात नहीं कराई। बापदादा भी हरेक बच्चे से दिल भर-भर के मिलने चाहते हैं। लेकिन समय और माध्यम को देखना पड़ता है। आकारी रूप से एक ही समय पर जितने चाहें जितना समय चाहें उतना समय और उतने सब मिल सकते हैं उसके लिए टर्न आने की बात नहीं है। लेकिन जब साकार सृष्टि में, साकार तन द्वारा मिलन होता है तो साकारी दुनिया और साकार शरीर के हिसाब को देखना पड़ता है। आकारी वतन मे कभी दिन मुकरर होता है क्या कि फलाना ग्रुप फलाने दिन मिलेगा वा एक घण्टे के बाद, आधा घण्टे के बाद मिलने के लिए आना। यह बन्धन आपके वा बाप के सूक्ष्मवतन में सूक्ष्म शरीर में नहीं है। आकारी रूप से मिलन मनाने के अनुभवी हो ना। वहाँ तो भल सारा दिन बैठ जाओ, कोई उठायेगा नहीं यहाँ तो कहेंगे अभी पीछे जाओ, अभी आगे जाओ। फिर भी दोनों मिलना मीठा है। आप डबल विदेशी बच्चे वा देश में रहने वाले बच्चे जो साकार रूप में ड्रामा अनुसार पालना वा प्रैक्टिकल स्वरूप नहीं देख पाये हैं। ऐसे बहुत समय से ढूंढने पर फिर से आकर मिले हुए बच्चों को ब्रह्मा बाप बहुत याद करते हैं। ब्रह्मा बाप ऐसे सिकीलधे बच्चों का विशेष गुणगान करते हैं कि आये भल पीछे हैं लेकिन आकार रूप द्वारा भी अनुभव साकार रूप का करते हैं, ऐसे अनुभव के आधार से बोलते हैं कि हमें ऐसा नहीं लगता कि साकार को हमने नहीं देखा। साकार में पालना ली है और अब भी ले रहे हैं। तो आकार रूप में साकार का अनुभव करना यह बुद्धि की लगन का, स्नेह का प्रत्यक्ष स्वरूप है। ऐसे लगता है आकार में भी साकार को देख रहे हैं। ऐसे अनुभव करते हो ना। तो यह बच्चों की बुद्धि के चमत्कार का सबूत है। और दिलाराम बाप के समीप दिलाराम के दिलरूबा बच्चे हैं, यह सबूत है। दिलरूबा बच्चे हो ना। दिल रूबा पर सदा क्या गीत बजता है? वाह बाबा, वाह मेरा बाबा।
 
बापदादा हर बच्चे को याद करते हैं। ऐसे नहीं समझना इनको याद किया, मेरे को पता नहीं याद किया वा नहीं। इनसे ज्यादा प्यार है मेरे से कम प्यार है, नहीं। आप सोचो 5 हजार वर्ष के बाद बापदादा को बिछड़े हुए बच्चे मिले हैं तो 5 हजार वर्ष का इकट्ठा प्यार हर बच्चे को मिलेगा ना। तो 5 हजार वर्ष का प्यार 5-6 वर्ष में या 10-12 वर्ष में देना तो कितना स्टाक थोड़े समय में देंगे। ज्यादा से ज्यादा दें तब तो पूरा हो। इतना प्यार का स्टाक हरेक बच्चे के लिए बाप के पास है। प्यार कम हो नहीं सकता। दूसरी बात कि बापदादा सदा बच्चों की विशेषता देखता। चाहे कोई समय बच्चे माया के प्रभाव कारण थोड़ा डगमग होने का खेल भी करते हैं। फिर भी बापदादा उस समय भी उसी नजर से देखते कि यह बच्चा आया हुआ विघ्न लगन से पार कर फिर भी विशेष आत्मा बन विशेष कार्य करने वाला है। विघ्न में भी लगन रूप को ही देखते हैं तो प्यार कम कैसे होगा! हरेक बच्चे से ज्यादा से ज्यादा सदा प्यार है और हर बच्चा सदा ही श्रेष्ठ है। समझा।
 
पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
न्यूयार्क:- बाप का बनना अर्थात् विशेष आत्मा बनना। जब से बाप के बने उस घड़ी से विश्व के अन्दर सर्व से श्रेष्ठ गायन योग्य और पूज्यनीय आत्मा बने। अपनी मान्यता, अपना पूजन फिर से चैतन्य रूप में देख भी रहे हो और सुन भी रहे हो। ऐसे अनुभव करते हो? कहाँ भारत और कहाँ अमेरिका लेकिन बाप ने कोने से चुनकर एक ही बगीचे में लाया। अभी सब कौन हो? अल्लाह के बगीचे के रूहे गुलाब। यह तो नाम लेना पड़ता है फलाना देश, फलाना देश, वैसे एक ही बगीचे के, एक ही बाप की पालना में आने वाले, रूहे गुलाब हो। अभी ऐसे महसूस होता है ना हम सब एक के हैं। और हम सब एक रास्ते पर एक मंजिल पर जाने वाले हैं। बाप भी हरेक को देख हर्षित होते हैं। सबकी शुभ भावना, सबके सेवा की अथक लगन ने दृढ़ संकल्प ने प्रत्यक्ष सबूत दिया। चारों ओर के उमंग-उत्साह के सहयोग ने रिजल्ट अच्छी दिखाई है। बाहर का आवाज भारत वालों को जगायेगा, इसलिए बापदादा मुबारक देते हैं।
 
2) बारबेडोज:- बापदादा सदा बच्चों को नम्बरवन बनने का साधन बताते हैं। चाहे कितना भी कोई पीछे आये लेकिन आगे जाकर नम्बरवन ले सकता है। ऐसे तो नहीं सोचते हो पता नहीं हमारा ऊंचा पार्ट होगा या नहीं, हम आगे कैसे जायेंगे। बापदादा के पास चाहे पीछे आने वाले हों, चाहे किस भी देश के हों, चाहे किस भी धर्म के हों, किस भी मान्यता के हो लेकिन सबके लिए एक ही फुल अधिकार है। बाप एक है तो हक भी एक जैसा है। सिर्फ हिम्मत और लगन की बात है। कभी भी हिम्मतहीन नहीं बनना। चाहे कोई कितना भी दिलशिकस्त बनाए, कहे पता नहीं आपको क्या हुआ है, कहाँ चले गये हो लेकिन आप उनकी बातों में नहीं आना। पक्का जान पहचान कर सौदा किया है ना! हम बाप के, बाप हमारा। बाप हर बच्चे को अधिकारी आत्मा समझते हैं। जितना जो ले उसके लिए कोई रूकावट नहीं। अभी कोई सीट्स बुक नहीं हुई हैं। अभी सब सीट खाली हैं। सीटी बजी ही नहीं है इसलिए हिम्मत रखते रहेंगे तो बाप भी पदमगुणा मदद देते रहेंगे।
 
3) कैनाडा - सदा उड़ती कला में जाने का आधार क्या है? डबल लाइट। तो सदा उड़ते पंछी हो ना। उड़ता पंछी कभी किसके बन्धन में नहीं आता। नीचे आयेंगे तो बन्धन में बधेंगे इसलिए सदा ऊपर उड़ते रहो। उड़ते पंछी अर्थात् सर्व बन्धनों से मुक्त, जीवन मुक्त। कैनाडा में साइन्स भी उड़ने की कला सिखाती है ना। तो कैनाडा निवासी सदा ही उड़ते पंछी हैं।
 
4) सैनफ़्रानसिसको - सभी अपने को विश्व के अन्दर विशेष पार्ट बजाने वाले हीरो एक्टर समझकर पार्ट बजाते हो? (कभी-कभी) बापदादा को बच्चों का कभी-कभी शब्द सुनकर आश्चर्य लगता है। जब सदा बाप का साथ है तो सदा उसकी ही याद होगी ना। बाप के सिवाए और कौन है जिसको याद करते हो। औरों को याद करते-करते क्या पाया और कहाँ पहुँचे, इसका भी अनुभव है। जब यह भी अनुभव कर चुके तो अब बाप के सिवाए और याद ही क्या सकता! सर्व सम्बन्ध एक बाप से अनुभव किया है या कोई रह गया है? जब एक द्वारा सर्व सम्बन्ध का अनुभव कर सकते हो तो अनेक तरफ जाने की आवश्यकता ही नहीं। इसको ही कहा जाता है एक बल एक भरोसा। अच्छा।
 
सभी ने अच्छी मेहनत कर विशेष आत्माओं को सम्पर्क में लाया, जिन्होंने भी सेवा में सहयोग दिया उस सहयोग का रिर्टन अनेक जन्मों तक सहयोग प्राप्त होता रहेगा। एक जन्म की मेहनत और अनेक जन्म मेहनत से छूट गये। सतयुग में मेहनत थोड़े ही करेंगे। बापदादा बच्चों की हिम्मत और निमित्त बनने का भाव देखकर खुश होते हैं। अगर निमित्त भाव से नहीं करते तो रिजल्ट भी नहीं निकलती। अच्छा।
 
05/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' रिवाइज-27/02/83 मधुबन
 
"संगमयुग पर श्रृंगारा हुआ मधुर अलौकिक मेला"
 
आज बाप और बच्चे मिलन मेला मना रहे हैं। मेले में बहुत ही वैरायटी और सुन्दर-सुन्दर वस्तु बहुत सुन्दर सजावट और एक दो में मिलना होता है। बापदादा इस मधुर मेले में क्या देख रहे हैं, ऐसा अलौकिक श्रृंगारा हुआ मेला सिवाय संगमयुग के कोई मना नहीं सकता। हरेक, एक दो से विशेष श्रृंगारे हुए अमूल्य रत्न हैं। अपने श्रृंगार को जानते हो ना। सभी के सिर पर कितना सुन्दर लाइट का ताज चमक रहा है। इसी लाइट के क्राउन के बीच आत्मा की निशानी कितनी चमकती हुई मणि मुआफिक चमक रही है। अपना ताजधारी स्वरूप देख रहे हो? हरेक दिव्य गुणों के श्रृंगार से कितने सुन्दर सजी-सजाई मूर्त हो। ऐसा सुन्दर श्रृंगार, जिससे विश्व की सर्व आत्मायें आपके तरफ चाहते हुए भी स्वत: ही आकर्षित होती हैं। ऐसा श्रेष्ठ अविनाशी श्रृंगार किया है? जो इस समय के श्रृंगार के यादगार आपके जड़ चित्रों को भी सदा ही भक्त लोग सुन्दर से सुन्दर सजाते रहेंगे। अभी का श्रृंगार आधा कल्प चैतन्य देव-आत्मा के रूप में श्रृंगारे जायेंगे और आधाकल्प जड़ चित्रों के रूप में श्रृंगारे जायेंगे। ऐसा अविनाशी श्रृंगार बापदादा द्वारा सर्व बच्चों का अभी हो गया है। बापदादा आज हर बच्चे के तीनों ही स्वरूप वर्तमान और अपने राज्य का देव आत्मा का और फिर भक्ति मार्ग में यादगार चित्र, तीनों ही स्वरूप हरेक बच्चे के देख हर्षित हो रहे हैं। आप सब भी अपने तीनों रूपों को जान गये हो ना। तीनों ही अपने रूप नालेज के नेत्र द्वारा देखे हैं ना!
 
आज तो बापदादा मिलने का उल्हना पूरा करने आये हैं। कमाल तो बच्चों की है जो निरबन्धन को भी बन्धन में बाँध देते हैं। बापदादा को भी हिसाब सिखा देते कि इस हिसाब से मिलो। तो जादूगर कौन हुए - बच्चे वा बाप? ऐसा स्नेह का जादू बच्चे बाप को लगाते हैं जो बाप को सिवाए बच्चों के और कुछ सूझता ही नहीं। निरन्तर बच्चों को याद करते हैं। तुम सब खाते हो तो भी एक का आह्वान करते हो। तो कितने बच्चों के साथ खाना पड़े! कितने बारी तो भोजन पर बुलाते हो। खाते हैं, चलते हैं, चलते हुए भी हाथ में हाथ देकर चलते, सोते भी साथ में हैं। तो जब इतने अनेक बच्चों साथ खाते, सोते, चलते तो और क्या फुर्सत होगी! कोई कर्म करते तो भी यही कहते कि काम आपका है, निमित्त हम हैं। करो कराओ आप, निमित्त हाथ हम चलाते हैं। तो वह भी करना पड़े ना। और फिर जिस समय थोड़ा बहुत तूफान आता तो भी कहते आप जानो। तूफानों को मिटाने का कार्य भी बाप को देते। कर्म का बोझ भी बाप को दे देते। साथ भी सदा रखते, तो बड़े जादूगर कौन हुए? भुजाओं के सहयोग बिना तो कुछ हो नहीं सकता इसलिए ही तो माला जपते हैं ना। अच्छा।
 
आस्ट्रेलिया निवासी बच्चों ने बहुत अच्छा त्याग किया है और हर बार त्याग करते हैं। सदा ही लास्ट सो फास्ट जाते और फर्स्ट आते हैं। जितना ही वह त्याग करते हैं, औरों को आगे करते हैं उतना ही जितने भी मिलते रहते उन सबका थोड़ा-थोड़ा शेयर आस्ट्रेलिया वालों को भी मिल जाता है। तो त्याग किया या भाग्य लिया! और फिर साथ-साथ यू.के. का भी बड़ा ग्रुप है। यह दोनों ही पहले-पहले के निमित्त बने हुए सेन्टर्स हैं और विशाल सेन्टर्स हैं। एक से अनेक स्थानों पर बाप को प्रत्यक्ष करने वाले बच्चे हैं इसलिए दोनों ही (आस्ट्रेलिया और यू.के.) बड़ों को, औरों को आगे रखना पड़ेगा। दूसरों की खुशी में आप सब खुश हो ना। जहाँ तक देखा गया है दोनों ही स्थान के सेवाधारी, सहयोगी, स्नेही बच्चे सब बातों में फराखदिल हैं। इस बात में भी सहयोगी बनने में महादानी बच्चे हैं। बापदादा को सब बच्चे याद हैं। सबसे मिल लेंगे, बापदादा को तो खुशी होती है कि कितना दूर-दूर से बच्चे मिलने के उमंग से अपने स्वीट होम में पहुँच जाते हैं। उड़ते-उड़ते पहुँच जाते हो। भले स्थूल में किसी भी देश के हैं लेकिन हैं तो सब एक देशी। सब ही एक हैं। एक बाप, एक देश, एक मत और एकरस स्थिति में स्थित रहने वाले। यह तो निमित्त मात्र देश का नाम लेकर थोड़ा समय मिलने के लिए कहा जाता है। हो सब एक देशी। साकार के हिसाब में भी इस समय तो सब मधुबन निवासी हैं। मधुबन निवासी अपने को समझना अच्छा लगता है ना।
 नये स्थान पर सेवा की सफलता का आधार:-
जब भी किसी नये स्थान पर सेवा शुरू करते हो तो एक ही समय पर सर्व प्रकार की सेवा करो। मन्सा में शुभ भावना, वाणी में बाप से सम्बन्ध जुड़वाने और शुभ कामना के श्रेष्ठ बोल और सम्बन्ध सम्पर्क में आने से स्नेह और शान्ति के स्वरूप से आकर्षित करो। ऐसे सर्व प्रकार की सेवा से सफलता को पायेंगे। सिर्फ वाणी से नहीं लेकिन एक ही समय साथ-साथ सेवा हो। ऐसा प्लैन बनाओ, क्योंकि किसी की भी सर्विस करने के लिए विशेष स्वयं को स्टेज पर स्थित करना पड़ता है। सेवा में रिजल्ट कुछ भी हो लेकिन सेवा के हर कदम में कल्याण भरा हुआ है, एक भी यहाँ तक पहुँच जाए यह भी सफलता तो समाई हुई है ही। अनेक आत्माओं के भाग्य की लकीर खींचने के निमित्त हैं। ऐसी विशेष आत्मा समझकर सेवा करते चलो। अच्छा - ओम् शान्ति।
वरदान:परमात्म प्यार की शक्ति से असम्भव को सम्भव करने वाले पदमापदम भाग्यवान भव!
पदमापदम भाग्यवान बच्चे सदा परमात्म प्यार में लवलीन रहते हैं। परमात्म प्यार की शक्ति किसी भी परिस्थिति को श्रेष्ठ स्थिति में बदल देती है। असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। मुश्किल सहज हो जाता है क्योंकि बापदादा का वायदा है कि हर समस्या को पार करने में प्रीति की रीति निभाते रहेंगे। लेकिन कभी-कभी प्रीत करने वाले नहीं बनना। सदा प्रीत निभाने वाले बनना।

स्लोगन:अपने श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ चलन द्वारा दुआयें जमा कर लो तो पहाड़ जैसी बात भी रुई के समान अनुभव होगी।

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Details ( Page:- Murali 6th Nov 2017 )
HINGLISH SUMMARY 
06.11.17Pratah Murli Om Shanti  BapDada Madhuban
 Mithe bacche - tumne jeete ji behad ke Baap ki goud li hai, unki santan bane ho to Shrimat par zaroor chalna hai, har direction amal me lana hai.
Q- Shristi ki banaprasth avastha kab se suru hoti hai aur kyun?
A- Jab Shiv Baba is Brahma tan me prabesh karte hain tab se saari shristi ki banaprasth avastha suru hoti hai kyunki Baap sab ko wapis le jane ke liye aaye hain. Is samay choote bade sabki banaprasth avastha hai. Sabko mithe ghar Muktidham wapas jana hai fir jeevanmukti me aana hai. Waise bhi Baap jab is Brahma tan me prabesh karte hain to inki aayu 60 varsh ki hoti hai. Inki bhi banaprasth avastha hoti hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:
1)     Yah dharmau yug hai. Is samay dharmatma banna hai. Sabka kalyan karna hai. Mukti aur jeevanmukti me chalne ka raasta batana hai._
2)      Humari yah Godly student life hai. Behad ka Baap humko padha raha hai. Is khushi me rehna hai.
Vardaan:- Shikshak banne ke saath rahemdil ki bhavna dwara kshama karne wale Master Merciful bhava
Slogan:- Jinki jholi Parmatm duwaon se bharpoor hai unke paas maya aa nahi sakti.
 
 
HINDI DETAILs MURALI
06/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति '' बापदादा'' मधुबन
"मीठे बच्चे - तुमने जीते जी बेहद के बाप की गोद ली है, उनकी सन्तान बने हो तो श्रीमत पर जरूर चलना है, हर डायरेक्शन अमल में लाना है"
प्रश्न: सृष्टि की वानप्रस्थ अवस्था कब से शुरू होती है और क्यों?
उत्तर:
जब शिवबाबा इस ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं तब से सारी सृष्टि की वानप्रस्थ अवस्था शुरू होती है क्योंकि बाप सबको वापिस ले जाने के लिए आये हैं। इस समय छोटे बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। सबको मीठे घर मुक्तिधाम वापस जाना है फिर जीवनमुक्ति में आना है। वैसे भी बाप जब इस ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं तो इनकी आयु 60 वर्ष की होती है। इनकी भी वानप्रस्थ अवस्था होती है।
गीत:-मरना तेरी गली में    ओम् शान्ति।
यह किसकी गली में आकर मरना होता है? मनुष्य चाहते हैं कि हम मुक्तिधाम में जायें। परमपिता परमात्मा, शिवबाबा की विजय माला में पिरो जाएं। बच्चे जानते हैं जो भी मनुष्य मात्र की आत्मायें हैं वह बाप के गले का हार जरूर हैं। जैसे लौकिक बाप की रचना, लौकिक बाप के गले का हार है। बच्चे बाप को, बाप बच्चे को याद करते हैं। वैसे वास्तव में जो भी आत्मायें हैं वह सब याद करती हैं परमपिता परमात्मा बाप को। वह है हद का बाप, यह है बेहद का बाप। हर एक मनुष्य चाहते हैं - हम मुक्ति प्राप्त करें क्योंकि निराकार के गले का हार अर्थात् मुक्ति और विष्णु के गले का हार अर्थात् जीवनमुक्ति। बाप मुक्ति और जीवनमुक्ति देते हैं। बेहद के बाप के बच्चे बनेंगे तो उनके गले का हार होंगे। लौकिक माँ बाप के गले का हार हैं बच्चे। वह खुद माँ बाप भी किसी के बच्चे होते हैं। गाते हैं तुम मात-पिता.. जब हम तुम्हारे गले का हार बनेंगे तब हम सदा सुखी होंगे। बेहद के बाप को याद करते हैं परन्तु उनके गले का हार कैसे बनेंगे, वह आश रहती है। सो तो जब त्रिमूर्ति शिवबाबा आये, आकर तीनों को रचे - ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को, तब ब्रह्मा द्वारा बेहद बाप के गले का हार बन सकें। पहले लौकिक माँ बाप के गले का हार हैं। उनसे जीते जी मरकर पारलौकिक बाप का बनें तब वर्सा मिले। जैसे कोई साहूकार, गरीब के बच्चे को एडाप्ट करते हैं तो आकर साहूकार की गोद लेते हैं - जीते जी। वह गरीब भी जीते तो हैं ना। दोनों याद रहते हैं। तुमको भी लौकिक और पारलौकिक दोनों सम्बन्ध याद हैं। दोनों से मिलन होता है। तुमने पारलौकिक माँ बाप की गोद ली है, उनसे सुख घनेरे लेने लिए। वह हुई हद की गोद, यह है बेहद की गोद। जीते जी गोद ली है। जानते हो इनकी गोद लेने से हम देवी-देवता कुल में सुख घनेरे पायेंगे। तो जिस मात-पिता की सन्तान बने हो उनको जरूर याद करना पड़े। श्रीमत तो गाई हुई है ना। अब तुम प्रैक्टिकल उनकी मत पर चल रहे हो। ऐसे भी नहीं झट से सब एडाप्ट हो जाते हैं। नहीं। आहिस्ते-आहिस्ते बनते हैं। अब देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है। झाड़ धीरे-धीरे वृद्धि को पाता है। क्रिश्चियन का भी पहले क्राइस्ट आता है। फिर 10-20-50 बढ़ते जाते हैं। यह झाड़ यहाँ सामने बढ़ता है। क्राइस्ट चला जाता है फिर भी आकर अन्त में शामिल होता है। यह तो बेहद का बाप है। बहुतों को शिवबाबा के गले का हार बनना पड़ेगा तब फिर विष्णु के गले का हार बनेंगे। शिवबाबा तो है निराकार। ब्रह्मा द्वारा मुख वंशावली रचते हैं। त्रिमूर्ति शिव का भी अर्थ है। त्रिमूर्ति ब्रह्मा का अर्थ नहीं निकलता। बाबा करेक्शन भी करते रहते हैं। गोले के नीचे लिखना है स्वदर्शन चक्र ( कि चर्खा) उस गवर्मेन्ट का चर्खा लगा हुआ है। यहाँ स्वदर्शन चक्र है। दिन-प्रतिदिन करेक्शन होती रहती है।
बाबा ने समझाया है - हमेशा त्रिमूर्ति शिव जयन्ती कहना है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं। शिव बाबा है तो वर्सा भी साथ में जरूर चाहिए। तो यह विष्णु है वर्सा। फिर शंकर द्वारा विनाश गाया हुआ है, इसलिए त्रिमूर्ति का चित्र है मुख्य। त्रिमूर्ति चित्र चला आया है। वहाँ भी तुम राज्य करते हो तो तख्त के पिछाड़ी विष्णु का चित्र रहता है। यह जैसे कोट आफ् आर्मस है। इसका अर्थ मनुष्य नहीं जानते। बाप ने तुम बच्चों को समझाया है, यह ज्ञान अभी तुमको मिला है, देवताओं के पास यह ज्ञान नहीं रहता। तीसरा नेत्र तुम ब्राह्मणों का खुलता है। बाप कितना सहज समझाते हैं, मनमनाभव। बाप और वर्से को याद करो। ब्रह्मा मुख वंशावली हो ना। तुम ज्ञान गंगायें भी ठहरे। तुम हो ज्ञान सागर द्वारा ब्रह्मा मुख कॅवल से निकली हुई मुख वंशावली, ज्ञान कुमार, कुमारियां। तो तुम हो ज्ञान सागर के बच्चे।
वास्तव में सच्चा-सच्चा तीर्थ तो यह है। आत्माओं और परमात्मा का यह है सच्चा संगम। ज्ञान सागर और ज्ञान गंगायें। यह बड़ी गुप्त समझने की बातें हैं। मोटी बुद्धि वाले यह नहीं समझ सकेंगे। उन्हों के लिए फिर सहज युक्ति है - शिवबाबा और वर्से को याद करो - इन द्वारा। यह बुद्धि में होने से खुशी का पारा चढ़ेगा। गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ है ना। बेहद का बाप हमको पढ़ा रहे हैं। कृष्ण मनुष्य नहीं पढ़ाते। ज्ञान सागर कृष्ण को नहीं कहा जाता। कृष्ण त्रिकालदर्शी नहीं था। राजयोग का ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है, जिससे तुम प्रालब्ध पाते हो। वहाँ इस नॉलेज की दरकार नहीं। दरकार यहाँ है। बाप कहते हैं कल्प-कल्प मैं आकर राजयोग सिखलाता हूँ। रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाता हूँ कि यह चक्र कैसे फिरता है। महिमा सारी संगम की है, जबकि पतित-पावन बाप आकर पुरानी दुनिया से नई दुनिया में ले जाते हैं। पुरानी दुनिया के विनाश के लिए तैयारियां हो रही हैं। देखते हो आजकल दुनिया में क्या हो रहा है। आज बादशाह है कल मिलेट्री बिगड़ती तो बादशाह को भी कैदी बना देते हैं। कोई को भी मार डालते हैं। ऐसे बहुत केस होते रहते हैं। आजकल कोई बात पर भरोसा नहीं। दु: ही दु: है। आज किसको बच्चा हुआ, खुशी होगी। कल मर गया तो दु:ख। है ही दु: की दुनिया। अब बाप नई सुख की दुनिया का लायक बना रहे हैं। बाप खुद कहते हैं। तुम कितने नालायक अर्थात् लायक बने हो। अब तुम लायक बन स्वर्ग के मालिक बन सकते हो। तुम सो देवी-देवता थे, अभी असुर बन पड़े हो। कल देवताओं की महिमा गाते थे, अपने को पापी नीच कहते थे। कहते हैं हम निर्गुण हारे में... तो जरूर कोई पर तरस किया होगा। इन देवताओं को किसने गुणवान बनाया, यह अभी तुम जानते हो। परमपिता परमात्मा बिगर कोई देवता बना सके। मनुष्य बिल्कुल विकारी पतित बन पड़े हैं। बूढ़े हो जाते हैं तो भी विकार नहीं छोड़ते। नहीं तो कायदा है 60 वर्ष के बाद वानप्रस्थ लेना चाहिए। पहले ऐसे करते थे। 60 वर्ष के अन्दर अपना बोझा उतारकर बच्चों को दे देते थे। अब 60 वर्ष की आयु में भी बच्चे पैदा करते रहते हैं। बाप कहते हैं इनकी 60 वर्ष की आयु में बहुत जन्मों के अन्त के अन्त में, जब इनकी वानप्रस्थ अवस्था हुई तब मैंने प्रवेश किया, तब इसने भी सब कुछ छोड़ा। बाप के आने से सारी दुनिया के लिए वानप्रस्थ अवस्था हो जाती है क्योंकि सबको जाना है वापिस इसलिए बाप कहते हैं मामेकम् याद करो। छोटा वा बड़ा कोई भी रहेगा नहीं।
बाप आकर सबको मीठा बनाते हैं। मुक्ति-जीवनमुक्ति दोनों मीठे धाम हैं। विनाश सबका होना है। हिसाब-किताब चुक्तू भी सबका होता है। सज़ा खाने में देरी नहीं लगती। जैसे काशी कलवट खाते हैं तो पापों से मुक्त हो जाते हैं। फिर नयेसिर हिसाब शुरू हो जाता है। बाकी मुक्ति में एक भी नहीं जाते। वह समझते हैं शिव पर कुर्बान हो निर्वाणधाम चले जायेंगे। बाप कहते हैं वापिस कोई जा नहीं सकते। पुनर्जन्म तो सबको लेना है। यह पहला नम्बर ही पूरे पुनर्जन्म लेते हैं। तो जरूर पीछे वाले भी लेंगे। तुमने 84 जन्म लिए हैं। शुरू से ही तुम्हारा पार्ट चलता है। तुम्हारा यह है कल्याणकारी लीप जन्म। इस जन्म में अथवा इस धर्माऊ युग में तुम धर्मात्मा बनते हो। वह सब हैं हद की बातें। वह है धर्माऊ मास, धर्माऊ वर्ष, यह है धर्माऊ युग। यह लीप जन्म ब्राह्मणों का एक ही है। ब्राह्मण हैं चोटी फिर तुम देवता बनेंगे। अब तुम जानते हो बाबा हमको गले का हार बनाते हैं। हम आत्मायें निराकारी दुनिया में रहती हैं। बाप खुद कहते हैं तुम जब अशरीरी थे तो मेरे पास रहते थे। अभी तुम समझ गये हो - हम पहले-पहले सतयुग में आयेंगे। वहाँ है देवी-देवता धर्म। वहाँ पुरुषार्थ करने की जरूरत नहीं। पुरुषार्थ संगम पर ही किया जाता है। संगमयुग यह है और जो संगम होते हैं, उनकी आयु नहीं गिनी जाती। इस संगम की आयु है। बहुत छोटा सा युग है। इस संगमयुग में ही बाप आकर इनको बदली करते हैं। बाकी उन युगों का कुछ नहीं है। दो कला कम होने से राज्य बदली होता है। यह तुमको साक्षात्कार होता है, कैसे राज्य देते हैं? संगमयुग में बाप आकर पतितों को पावन बनाते हैं इसलिए इस युग की आयु - जब से बाप आया है तब से गिनेंगे। तो जरूर वह आया हुआ है, वही ज्ञान का सागर है। उनकी मुख वंशावली, ज्ञान नदियां यह ब्रहमाकुमार, कुमारियां हैं, इनसे ही ज्ञान पाना है। बाबा ने कहा है कोई ऐसी नई चीज़ बनाओ जो समझाना सहज हो। उसमें त्रिमूर्ति शिव जयन्ती लिखो। बाबा डायरेक्शन देते हैं परन्तु बनाने वाला होशियार चाहिए। इस ज्ञान यज्ञ में विघ्न भी किसम-किसम के पड़ते हैं, फिर सर्विस ढीली हो जाती है। शिवजयन्ती आई कि आई। बड़े धूमधाम से मनानी है। देहली में तो बहुत धूमधाम हो सकती है। दोनों के कोट आफ आर्मस दिखायेंगे। हम अपनी ईश्वरीय बात करते हैं। बाप है ही कल्याणकारी। बच्चे भी औरों का कल्याण करते रहते हैं। तो बाप देखकर खुश होता है। कहा जाता है चैरिटी बिगन्स एट होम। मित्र सम्बन्धियों को भी समझाना है। नहीं तो उल्हना देंगे। प्वाइंट्स बहुत अच्छी मिलती हैं। चित्र भी अच्छे हैं। माला भी कितनी अच्छी है। रुद्र माला बन फिर विष्णु की माला बनती है।
तुम ब्राह्मण हो सच्ची-सच्ची गीता सुनाने वाले। सच्ची-सच्ची यात्रा का राज़ तुम समझाते हो। यहाँ बैठे तुम याद की यात्रा में रहो तो पाप भस्म हो जायेंगे। तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने का और कोई उपाय नहीं। योग की बहुत महिमा है। मेहनत भी इसमें है। बहुत तूफान आते हैं। सहज भी है तो मुश्किल भी है। तुम्हारी योग तपस्या के भी चित्र हैं। राजाई का भी चित्र है। राजयोग से तुम देवता बनते हो। तुम राजऋषि हो, वह हठयोग ऋषि हैं। तुमको नेचरल जटायें हैं। अभी हम सब बाबा के गले का हार हैं, सब भाई-भाई हैं। बाप से वर्सा भी मिलता होगा। प्रजापिता ब्रह्मा भी गाया हुआ है। वह निराकार पिता यह साकार पिता। शंकर के लिए दिखाते हैं ऑख खोली विनाश हुआ। शंकर को पार्वती, गणेश आदि दिखलाकर गृहस्थी बना दिया है। अन्धश्रधा बहुत है। बाप कहते हैं मैंने तुमको साहूकार बनाया था। तुमने मन्दिर बनाकर, शास्त्र बनाकर, दान कर फालतू खर्चा करते-करते दुर्गति को पा लिया। यह भी ड्रामा में नूँध थी तब तो बाप बैठ समझाते हैं। बाबा तुमको त्रिकालदर्शी बनाते हैं। तीनों कालों का ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) यह धर्माऊ युग है। इस समय धर्मात्मा बनना है। सबका कल्याण करना है। मुक्ति और जीवनमुक्ति में चलने का रास्ता बताना है।
2) हमारी यह गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ है। बेहद का बाप हमको पढ़ा रहा है। इस खुशी में रहना है।
वरदान:शिक्षक बनने के साथ रहमदिल की भावना द्वारा क्षमा करने वाले मास्टर मर्सीफुल भव!
सर्व की दुआये लेनी हैं तो शिक्षक बनने के साथ-साथ मास्टर मर्सीफुल बनो। रहमदिल बन क्षमा करो तो यह क्षमा करना ही शिक्षा देना हो जायेगा। सिर्फ शिक्षक नहीं बनना है, क्षमा करना है - इन संस्कारों से ही सबको दुआयें दे सकेंगे। अभी से दुआयें देने के संस्कार पक्के करो तो आपके जड़ चित्रों से भी दुआयें लेते रहेंगे, इसके लिए हर कदम श्रीमत प्रमाण चलते हुए दुआओं का खजाना भरपूर करो।
स्लोगन:जिनकी झोली परमात्म दुआओं से भरपूर है उनके पास माया नहीं सकती।
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Details ( Page:- Murali 7th-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 07.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe bacche - patit-pawan Baap aaye hain pawan banakar pawan duniya ka varsha dene, pawan banne walo ko he sadgati prapt hogi.
Q- Bhogi jeevan, yogi jeevan me parivartan hone ka mukhya aadhar kya hai?
A- Nischay. Jab tak nischay nahi ki humko padhane wala swayang behad ka Baap hai tab tak na yog lagega, na padhai he padh sakenge. Bhogi ke bhogi he rah jayenge. Kayi bacche class me aate hain lekin padhane wale me nischay nahi. Samajhte hain han koi shakti hai lekin nirakar Shiv Baba padhate hain - yah kaise ho sakta? Yah to nayi baat hai. Aise patthar buddhi bacche parivartan nahi ho sakte.
 
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Kisi bhi dehadhari ke naam roop me atakna nahi hai. Apni deha me bhi nahi fanshna hai, isme bahut khabardari rakhni hai.
2) Gyan marg me nastmoha zaroor banna hai. Pavitrata ki agyan manni hai aur dusro ko bhi pavitra banane ki yukti rachni hai.
Vardaan:-- Swa parivartan dwara biswa parivartan ke nimitt banne wale Sarv khazano ke Mallik bhava
Slogan:-- Sarv shaktiyon ki light sada saath rahe to maya door se he bhaag jayegi.
HINDI DETAIL MURALI

07/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - पतित-पावन बाप आये हैं पावन बनाकर पावन दुनिया का वर्सा देने, पावन बनने वालों को ही सद्गति प्राप्त होगी''
प्रश्न: भोगी जीवन, योगी जीवन में परिवर्तन होने का मुख्य आधार क्या है?
उत्तर:
निश्चय। जब तक निश्चय नहीं कि हमको पढ़ाने वाला स्वयं बेहद का बाप है तब तक योग लगेगा, पढ़ाई ही पढ़ सकेंगे। भोगी के भोगी ही रह जायेंगे। कई बच्चे क्लास में आते हैं लेकिन पढ़ाने वाले में निश्चय नहीं। समझते हैं हाँ कोई शक्ति है लेकिन निराकार शिवबाबा पढ़ाते हैं - यह कैसे हो सकता? यह तो नई बात है। ऐसे पत्थरबुद्धि बच्चे परिवर्तन नहीं हो सकते।
गीत:-   ओम् नमो शिवाए   ओम् शान्ति।
बच्चे यह तो समझ गये हैं कि शिवबाबा हमको समझाते हैं। घड़ी-घड़ी तो नहीं कहेंगे भगवानुवाच। यह तो कायदा नहीं कि घड़ी-घड़ी अपनी महिमा करनी है। शिवबाबा जो सबका बाप है, वह हम बच्चों को बैठ समझाते हैं। भविष्य 21 जन्मों के लिए अटल अखण्ड दैवी स्वराज्य प्राप्त कराते हैं। जैसे स्कूल अथवा कॉलेज में बच्चे जानते हैं कि टीचर हमें आप समान बैरिस्टर बना रहे हैं, एम आब्जेक्ट है। बाकी सतसंगों में जो जाते हैं वेद शास्त्र आदि सुनने के लिए, उससे तो कुछ मिलता नहीं है इसलिए टीचर फिर भी अच्छे होते हैं जो शरीर निर्वाह अर्थ कोई जिस्मानी विद्या सिखलाते हैं, जिससे आजीविका होती है। बाकी सब दुर्गति ही करते हैं, बच्चे शादी करना चाहें तो बाप कहेगा कि वर्सा भी नहीं मिलेगा। जहाँ चाहे वहाँ चले जाओ। यहाँ तो बाप अमृत भी पिलाते हैं और वर्सा भी देते हैं कहते हैं कि पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे। कितना फ़र्क है - हद के बाप में और बेहद के बाप में। वह रात में ले जाते हैं, यह दिन में ले जाते हैं। यह है ही पतित-पावन। कहते भी हैं कि सद्गति दाता एक है - जो आकर सबकी सद्गति करते हैं, फिर दुर्गति किसने की? यह नहीं जानते। बाप समझाते हैं - सब आसुरी मत वाले हैं। यहाँ आते हैं असुरों से देवता बनने। यह इन्द्रप्रस्थ है। कई असुर भी छिपकर आए बैठते हैं। सब सेन्टर्स पर ऐसे छिपे असुर (विकारी) बहुत आते हैं, फिर घर में जाकर विष पीते हैं। दो काम तो चल सकें। वह पत्थरबुद्धि बन पड़ते हैं। बाप को पहचानते ही नहीं। निश्चय बिल्कुल ही नहीं कि हमको बेहद का बाप पढ़ाते हैं। ऐसे ही आकर बैठ जाते हैं। तो योग लगेगा, पढ़ाई ही पढ़ सकते। भोगी के भोगी ही होंगे। बहुत समझते हैं कि कोई शक्ति है बस। निराकार शिवबाबा कैसे सकता! कोई शास्त्र में भी लिखा हुआ नहीं है। यह हैं नई बातें। गाते भी हैं शिव जयन्ति.. परन्तु पत्थरबुद्धि होने के कारण समझते नहीं हैं। शिव है तब तो सब भक्त याद करते हैं। कहते भी हैं शिवाए नम:, समझते हैं वह परमधाम में रहते हैं। हमारा बाप भी है परमपिता, तो वह सबका फादर हो गया ना। भारत में ऐसे भी हैं जो फादर को नही मानते। मनुष्यों को समझाना बहुत मुश्किल है। मनुष्य तो यह भी नहीं समझते कि अभी दुर्गति का समय चल रहा है। भक्ति मार्ग में पहले अव्यभिचारी भक्ति थी अब व्यभिचारी बन गई है। व्यभिचारी और अव्यभिचारी में कितना अन्तर है। वह पाप आत्मा, वह पुण्य आत्मा। अव्यभिचारी भक्ति है ही सच्ची भक्ति। उस समय यानी द्वापर में मनुष्य सुखी भी रहते हैं। धन-दौलत आदि सब रहता है। कलियुग में जास्ती दुर्गति को पाते हैं। जब व्यभिचारी भक्ति में आते हैं तब विकारी भी बहुत बनते जाते हैं। दिन-प्रतिदिन विकार भी जोर भरते जाते हैं। पहले सतोप्रधान विकार थे, अभी तमोप्रधान विकार हैं। सब बिल्कुल ही तमोप्रधान हैं। घर-घर में कितने झगड़े हैं। शिवबाबा बैठ बच्चों को समझाते हैं। कृष्ण तो बाप नहीं ठहरा। कोई की भी बायोग्राफी नहीं जानते हैं। यह है पतित-पावन। परमपिता परमात्मा को मानते हैं कि वह ज्ञान का सागर है, पानी का सागर थोड़ेही पतित-पावन, नॉलेजफुल है। मनुष्य तो पानी के सागर से निकली हुई पानी की नदियों को पतित-पावनी समझ लेते हैं। उनसे पूछना चाहिए कि जैसे गीता के भगवान का आक्यूपेशन पूछा जाता है - निराकार परमपिता परमात्मा है रचयिता और श्रीकृष्ण है रचना, अब बताओ गीता का भगवान कौन? भगवान तो एक को ही कहेंगे। फिर व्यास को भगवान कैसे कह सकते। तो ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछना चाहिए - पतित-पावन, परमपिता परमात्मा ज्ञान का सागर है, उनसे यह ज्ञान गंगायें कैसे निकलती हैं? परमपिता परमात्मा ब्रह्मा मुख कमल द्वारा ब्राह्मण मुख वंशावली रचते हैं। उन्हों को ब्रह्मा मुख से ज्ञान मिल रहा है, जिससे सद्गति को पाते हैं। अब पानी के सागर से पावन बनते हैं वा ज्ञान सागर से। पानी से मनुष्य तो पावन हो सकें। तो यह पहेली भी पूछनी पड़े, इनको पूछने से पावन दुनिया का मालिक बन सकते हैं। बुलाते तो उनको ही हैं कि हे पतित-पावन सीताराम। फिर गंगा में स्नान आदि करते हैं, तो यह पहेली भी एड करनी चाहिए। समय पर हर एक चीज़ शोभती है। जैसे वो गीता के भगवान वाली पहेली है, वैसे यह भी पहेली है। ख्याल चलते तो हैं ना - क्या ऐसी चीज़ें बनायें जो मनुष्य सदैव अपने पास यादगार रखें। अच्छी चीज़ होगी तो अपने पास रखेंगे। कागज आदि तो फेंक देते हैं। देवताओं की अच्छी चीज़ होगी तो वह फाड़ेंगे नहीं। सर्विस की प्रैक्टिस वालों का सारा दिन विचार सागर मंथन चलता रहेगा और काम करके दिखायेंगे। सिर्फ कहना नहीं है कि ऐसा करना चाहिए। यह किसको कहते हो? बाबा करेगा वा बच्चे करेंगे? बोलो कौन? बाप तो डायरेक्शन देते हैं। ऐसे अच्छे चित्र, कैलेन्डर छपाओ, त्रिमूर्ति शिव के कैलेन्डर्स निकलने चाहिए। त्रिमूर्ति शिव जयन्ती कहना राइट है। सिर्फ शिव जयन्ति कहना रांग है। एक बच्चे की दिल है त्रिमूर्ति शिव जयन्ती का कलैन्डर बनावें सो भी रंगीन। त्रिमूर्ति से समझानी अच्छी मिलती है। बाबा लॉकेट भी इसलिए बनवाते हैं कि उनसे अच्छा समझा सकते हैं। ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा सद्गति करते हैं। तो जो मेहनत करता है वही विष्णुपुरी का मालिक बनता है। बाकी जो ज्ञान नहीं लेते उनका विनाश हो जाता है। वह सज़ायें भी खाते हैं, पद भी नहीं पाते। भगत भगवान को याद करते हैं परन्तु जब भगवान आते हैं तब कितने थोड़े उन्हें पहचानकर उनका बनते हैं। कोटों में कोई। जो मुक्ति के लिए पुरुषार्थ करते हैं वह पद अच्छा पा नहीं सकेंगे। विकर्म विनाश नहीं होंगे इसलिए साक्षात्कार कराया था - धर्म स्थापक भी आते हैं दृष्टि लेने। याद करते-करते विकर्म विनाश करते जायें तो पद ऊंचा पा सकते हैं, और धर्म वाले भी आयेंगे सो भी पिछाड़ी में, जो बड़े होंगे। ऐसे नहीं कि अभी का पोप आयेगा, ना ना .... पहले नम्बर का पोप, जो अभी अन्तिम जन्म में है, वह आयेगा। हिसाब है बड़ा भारी। अब यह कुम्भ का मेला है। यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है। जब दुर्गति को पाने का पूरा ग्रहण लग जाता है, तब बाप आकर 16 कला सम्पूर्ण बनाते हैं। ग्रहण को स्वदर्शन चक्र से निकाला जाता है। यह जो अपना गोला है, उसमें नीचे लिखना चाहिए यह है स्वदर्शन पा। यह बहुत अच्छी चीज़ है। यह ईश्वरीय कोट आफ आर्मस है। यह तो ईश्वरीय बातें हैं। स्लाइड्स जो बना रहे हैं उनके लिए भी बाबा समझानी देते रहते हैं। अगर समझो वो मुरली सुनें तो डायरेक्शन अमल में ला सकें। मुरली तो रोज़ पढ़नी चाहिए। सर्विस में जो हैं उनको एक्ट में आना चाहिए। त्रिमूर्ति का भी स्लाईड्स बनाते हैं, उनमें अक्षर बहुत अच्छे हैं। स्थापना और विनाश - दो गोले भी चाहिए। यह नर्क, यह स्वर्ग। यह आज का भारत और कल का भारत। बाप सेकण्ड में जीवनमुक्ति देने वाला बैठा है। बाबा को पहचाना, निश्चय हुआ बस। जीवनमुक्ति पाने का पुरुषार्थ चल पड़ता है। जन्म तो लिया ना। बाप से पूरा वर्सा लेना है। फिर विकार की मांग नहीं कर सकते। बाप कहते हैं भ्रष्टाचारी को वर्सा मिल सके। प्रैक्टिकल में इनका (ब्रह्मा का) ही मिसाल देखा ना। ऐसे बहुत मुश्किल निकलते हैं। अपनी इज्ज़त आदि भी बहुत देखते हैं ना। क्रियेटर बाप है, सबको उनकी आज्ञा पर चलना है। तुम भी श्रीमत पर नहीं चलते हो तो पद भ्रष्ट हो जाता है।
बाप कहते हैं - इस ज्ञान मार्ग में नष्टोमोहा अच्छा चाहिए। बाबा की आज्ञा मिली हुई है, जो बच्चे आज्ञाकारी नहीं, वह कपूत ठहरे। वह बच्चा, बच्चा नहीं। पवित्रता की आज्ञा तो अच्छी है ना। राजयोग तो बाप अभी सिखलाते हैं। मनुष्य तो बिचारे समझते नहीं। बच्चों में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार समझते हैं। बाप इतना डायरेक्शन देते हैं, कोई बच्चे मुश्किल करके दिखाते हैं। बाप कहते हैं - त्रिमूर्ति का कैलेन्डर बनाना है। सारा मदार है त्रिमूर्ति शिव के चित्र पर। लिखा हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना। जरूर शिवबाबा स्वर्ग की स्थापना करेंगे ना। कलियुग आसुरी राज्य का विनाश होगा। आसुरी राज्य में कितने ढेर हैं। दैवी राज्य में कितने थोड़े हैं। लिखा हुआ भी है कि अनेक धर्मों का विनाश, एक सत धर्म की स्थापना। बाप कहते हैं - मैं कितना श्रृंगारता हूँ फिर भी सुधरते नहीं हैं, उल्टा सुल्टा बोलते रहते हैं। यहाँ बाबा कहते हैं देह सहित जो कुछ है सब कुछ भूल मामेकम् याद करो। अपनी देह में भी फंसो। किसकी देह में फंसने से गिर पड़ते हैं। जैसे मम्मा की देह से प्यार था तो मम्मा के जाने के बाद कितने मर गये क्योंकि नाम रूप में फंसे हुए थे। बाप कितना कहते हैं कि देह-अभिमानी मत बनो, मामेकम् याद करो। तुम इस ब्रह्मा के शरीर को भी याद नहीं करो। शरीर को याद करने से पूरा ज्ञान उठा नहीं सकते। देही-अभिमानी बनने में बहुत मेहनत है। बाप की याद में रहना - यह बहुत डिफीकल्ट है। ज्ञान तो बहुत अच्छा-अच्छा सुनाते हैं। योग में मुश्किल रहते हैं। जितना रूसतम, उतना माया के तूफान आयेंगे। किसी किसी के नामरूप में फंस धोखा खा लेते हैं, इसमें बड़ी खबरदारी चाहिए। योग में ही बड़ी मेहनत है। नॉलेज तो सहज है। योग में ही घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं इसलिए बाप कहते हैं विकर्माजीत कैसे बनेंगे। योग में रहो तो पाप भी नहीं होंगे। नहीं तो सौगुणा हो जाता है। यहाँ तो खुद धर्मराज और बाप दोनों साथ हैं इसलिए खुद कहते हैं कि बाप के आगे कोई पाप नहीं करना, नहीं तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। योग से ही विकर्माजीत बनना है। स्वदर्शन चक्र को तो जानना सहज है। इस गोले के नीचे लिखना है पा, कि चर्खा। बाबा युक्तियाँ तो बहुत बतलाते हैं। बच्चों को एक्ट में आना है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी देहधारी के नाम रूप में अटकना नहीं है। अपनी देह में भी नहीं फंसना है, इसमें बहुत खबरदारी रखनी है।
2) ज्ञान मार्ग में नष्टोमोहा जरूर बनना है। पवित्रता की आज्ञा माननी है और दूसरों को भी पवित्र बनाने की युक्ति रचनी है।
वरदान: स्व परिवर्तन द्वारा विश्व परिवर्तन के निमित्त बनने वाले सर्व खजानों के मालिक भव!
आपका स्लोगन है ''बदला लो बदलकर दिखाओ'' स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन। कई बच्चे सोचते हैं यह ठीक हो तो मैं ठीक हो जाऊं, यह सिस्टम ठीक हो तो मैं ठीक रहूँ। क्रोध करने वाले को शीतल कर दो तो मैं शीतल हो जाऊं, इस खिटखिट करने वाले को किनारे कर दो तो सेन्टर ठीक हो जाए..यह सोचना ही रांग है। पहले स्व को बदलो तो विश्व बदल जायेगा। इसके लिए सर्व खजानों के मालिक बन समय प्रमाण खजानों को कार्य में लगाओ।
स्लोगन:सर्व शक्तियों की लाइट सदा साथ रहे तो माया दूर से ही भाग जायेगी।

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Details ( Page:- Murali 8th-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 08.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe  Mithe bacche - tumhara dhanda hai sabka bhala karna, pehle apna bhala karo fir dusro ka bhala karne ke liye seva karo.
Q- Brahman banne ke baad bhi valuable jeevan banne ka aadhar kya hai?
A- Vacha aur karmana seva. Jo vacha aur karmana seva nahi karte hain - unke jeevan ki koi value nahi. Seva se sabki aashirvad milti hai. Jo Ishwariya seva nahi karte wo apna time, energy sab waste karte hain, unka pad kam ho jata hai..


Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Andar bahar saaf rehna hai. Baap se kuch bhi chhipana nahi hai. Sachche dil se seva karni hai.
2) Apna time safal karna hai. Sarv ki aashirvade lene ke liye vacha wo karmana seva zaroor karni hai. Rahemdil banna hai. Sabka kalyan karne ka dhanda karte rehna hai.
Vardaan:- Shrest smruti dwara sukhmay sthiti banane wale Sukh swaroop bhava
Slogan:-- Samay roopi khazane ko byarth se bachana - yahi tibra purusharthi ki nishaani hai.
 
HINDI DETAIL MURALI

08/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

''मीठे बच्चे - तुम्हारा धन्धा है सबका भला करना, पहले अपना भला करो फिर दूसरों का भला करने के लिए सेवा करो''
प्रश्न: ब्राह्मण बनने के बाद भी वैल्युबुल जीवन बनने का आधार क्या है?
उत्तर:
वाचा और कर्मणा सेवा। जो वाचा या कर्मणा सेवा नहीं करते हैं - उनके जीवन की कोई वैल्यु नहीं। सेवा से सबकी आशीर्वाद मिलती है। जो ईश्वरीय सेवा नहीं करते वह अपना टाइम, एनर्जी सब वेस्ट करते हैं, उनका पद कम हो जाता है।
गीत:-  तुम्हीं हो माता  ओम् शान्ति।
बच्चे जानते हैं कि यह महिमा किसकी है? भारतवासी मनुष्य नहीं जानते। हो तुम भी मनुष्य परन्तु तुम अब जान गये हो - यह किसकी महिमा है। उस मात-पिता द्वारा तुम विष्णुपुरी की राजाई ले रहे हो। ऊपर में है मात-पिता। शिवलिंग की विद्वान आदि पूजा नहीं करने देते हैं क्योंकि वह उल्टी बात समझते हैं। वास्तव में शिवलिंग की पूजा जब करते हैं तो उनको मात-पिता नहीं समझते हैं। लक्ष्मी-नारायण की पूजा करेंगे तो उनको मात-पिता कहेंगे क्योंकि दोनों हैं। पत्थरबुद्धि मनुष्य कुछ भी समझते नहीं कि हम किसकी पूजा करते हैं। त्वमेव माताश्च पिता कौन है? जहाँ दो देखते हैं तो उनके आगे महिमा गाते हैं। परन्तु लक्ष्मी-नारायण तो मात-पिता हैं, खिवैया हैं। ज्ञान सागर, पतित-पावन हैं। तुम बच्चे अच्छी तरह जानते हो - पतित-पावन निराकार परमपिता परमात्मा को ही कहा जाता है। त्वमेव माताश्च पिता... यह महिमा साकार की हो नहीं सकती। लौकिक मात-पिता के लिए यह गाते हैं। उस लौकिक माँ बाप से तो अल्पकाल का काग विष्टा के समान सुख मिलता है। द्वापर कलियुग में है दु:, अभी तुम बाप द्वारा समझदार बने हो। किसको भी समझाना बहुत सहज है। त्रिमूर्ति चित्र ले जाओ, ऊपर में है शिव। यह है त्वमेव माताश्च पिता... जो ब्रह्मा द्वारा हमको विष्णुपुरी का राज्य देते हैं। ब्रह्मा द्वारा हमको सहज राजयोग सिखला रहे हैं, जिससे हम राजाओं का राजा बनते हैं। विष्णुपुरी कैसे और किसने स्थापन की, यह कोई जानते नहीं। कोई ने तो स्थापन की होगी? बाप का परिचय मिलता है तो बाप से बर्थ राईट ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार जरूर चाहिए। बाप का जन्म सिद्ध अधिकार है विष्णुपुरी, नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी पद प्राप्त कराते हैं। राजयोग सिखलाते हैं। समझाने का तरीका बहुत अच्छा चाहिए, जो किसकी बुद्धि में बैठे। लक्ष्मी-नारायण के चित्र पर तुम बहुत अच्छा ज्ञान दे सकते हो। लक्ष्मी-नारायण को जरूर 84 जन्म लेने पड़ते हैं। यह नई दुनिया के नम्बरवन मनुष्य हैं। गायन भी है परमपिता परमात्मा से 21 पीढ़ी राज्य-भाग्य मिलता है। वह भी क्लीयर कर दिखाया हुआ है। कहाँ भी शादी पर वा किसके निमंत्रण पर जाना होता है तो वहाँ तुम बहुत सर्विस कर सकते हो। परन्तु बाबा को याद ही नहीं करते हैं, तो मदद ही क्या मिलेगी? कई हैं जिनमें ज्ञान-योग कुछ भी नही है, फिर भी सेन्टर सम्भालते हैं तो बाबा आकर मदद करते हैं। बाकी जो अपना कल्याण नहीं करते तो दूसरों का क्या करेंगे? जैसे गुरु लोग खुद ही मुक्ति नहीं पा सकते तो दूसरों को कैसे दे सकते। बाप समझाते बहुत सहज हैं। एक त्रिमूर्ति का राज़ और नई दुनिया, पुरानी दुनिया के चक्र का राज़ लिखा हुआ है। सर्विस करने वालों की बुद्धि में यह सब राज़ रहते हैं। कहाँ शादी आदि पर जाओ तो कोशिश करो तीर लगाने की। बिच्छू का मिसाल.. तुम्हारा धन्धा है सबका भला करना, परन्तु जिसने अपना भला नहीं किया तो दूसरों का कैसे करेंगे। सर्विस तो बहुत है। कर्मणा सर्विस भी बहुतों को सुख देती है। सबकी आशीर्वाद मिलती है। जो वाचा, कर्मणा सर्विस करते उनका क्या पद होगा, वेस्ट ऑफ टाइम और वेस्ट ऑफ एनर्जी करते हैं। जैसे भक्तिमार्ग में तुम्हारा वेस्ट ऑफ टाइम और वेस्ट ऑफ एनर्जी हुआ ना। ईश्वरीय सर्विस आधा घण्टा भी नहीं करते, ऐसे भी बहुत हैं। पद पाना नहीं है तो चाल ही ऐसी चलते रहते हैं। बहुत चलते-चलते फिर गिर भी पड़ते हैं। लिखते हैं बाबा हम गटर में गिर पड़े, चोट लग गई। उनको शर्म आना चाहिए। कोई मल्लयुद्ध में हार जाते हैं तो उनका मुँह काला हो जाता है। पिछाड़ी में जब ट्रांसफर होने का समय आयेगा तो तुम सबको साक्षात्कार होगा कि हमारा क्या पद है। फिर पछताने से क्या होगा। समझेंगे कल्प-कल्प यही गति होगी। कहते हैं शल तुमको ईश्वर मत दे, परन्तु यहाँ तो ईश्वर की मत पर भी नहीं चलते जैसेकि प्रण किया है कि हम कभी श्रीमत पर नहीं चलेंगे। पढ़ते ही नहीं हैं। नहीं तो समझाना बहुत सहज है। छोटे बच्चे भी चित्र लेकर बैठ समझायें, यह प्रजापिता ब्रह्मा है, जरूर बी.के. को ज्ञान देते होंगे। यह वर्सा मिलता है 21 जन्मों के लिए। बच्चे इतना भी समझायें तो भी कुर्बान जायें। नीचे लिखा हुआ है यह तुम्हारा ईश्वरीय जन्म सिद्ध अधिकार है। यह जगत पिता, जगत अम्बा है। यही जगत अम्बा फिर लक्ष्मी बनती है। अभी परमात्मा आकर 21 जन्मों का राज्य-भाग्य देते हैं। यह है ज्ञान मार्ग। फिर भक्तिमार्ग में दीपमाला पर लक्ष्मी से भीख मांगते हैं।
बाबा कहते हैं तुम बच्चे कहाँ भी जाओ जाकर समझाओ - हम यह पढ़े हैं। हमारा फ़र्ज है, घर-घर में पैगाम देना। यह त्रिमूर्ति क्या है, आओ तो हम आपको समझायें। बाबा ने इनको बैठ 84 जन्मों का राज़ समझाया हुआ है। जैसे ब्रह्मा का दिन और रात वैसे विष्णु का भी दिन और रात। बहुत सहज है समझाना। कोई का भी कल्याण करना है। यही धन्धा तुमको करना है। सबको रास्ता बताने का, बस दो रोटी मिले वह भी बहुत हैं। मनुष्य का पेट जास्ती नहीं खाता। अगर सेन्सीबुल है तो थोड़े रूपये में भी काम चल सकता है। यहाँ तो कई ऐसे हैं जो थोड़ा ही ठीक मिले तो भाग जायें। राजाई को भी ठोकर मार दें। बीच में बेगरी पार्ट चला, यह भी परीक्षा हुई थी। बहुत चले गये। यह सब शिवबाबा का क्या राज़ था वह भी गुड़ जाने, गुड़ की गोथरी जाने। कितने डरकर भाग गये। नहीं तो दो रोटी खाने पर खर्चा बहुत कम लगता है। दो रोटी खाना, प्रभु के गुण गाना अर्थात् बाप और वर्से को याद करना। बाप को बहुत प्यार से याद करना है। बाप कहते हैं मैं सेकेण्ड में तुमको जीवनमुक्ति का राज़ समझाता हूँ। कलियुग में है जीवनबंध, जरूर मुक्ति-जीवनमुक्ति दूसरे जन्म में मिली होगी। बाप ने संगम पर ही ज्ञान दिया है। है भी बरोबर सेकेण्ड की बात। अच्छी तरह कोई सिर्फ समझाये। चित्र बहुत फाईन बने हुए हैं। त्रिमूर्ति तो कामन है, सिर्फ अर्थ नहीं समझते। यह भी समझते हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना, शंकर द्वारा विनाश। परन्तु कब आकर यह कार्य करते हैं, यह नहीं जानते। ब्रह्मा के बच्चे जरूर ब्रह्माकुमार कुमारियां होंगे। जानते हैं बाप से हमको वर्सा मिलता है। परन्तु फिर भी सर्विस नहीं कर सकते तो समझते हैं इन पर ग्रहण है। श्रीमत पर चलने के लिए ना कर देते हैं। जैसे यहाँ कोई पढ़ने नहीं आये हैं। ऐसे तो पिछाड़ी में एकदम चले जायेंगे।
बाबा तो बहुत युक्तियां बताते हैं। बाबा से पूछते हैं बाबा मैं शादी पर जाऊं? फलानी जगह जाऊं... अरे तुमको जहाँ तहाँ यह सर्विस ही जाकर करनी है। त्रिमूति का चित्र लेकर इस पर ही समझाओ। त्रिमूर्ति मार्ग भी है, कोई भी अर्थ को नहीं जानते। यहाँ कई बच्चे हैं जो सेन्टर पर आते रहते हैं, बाहर से कहते हैं हम पवित्र रहते हैं, परन्तु अन्दर गंद करते रहते हैं। शिवबाबा कहते हैं मैं अन्तर्यामी हूँ, बहुत विकार में गिरते रहते हैं। कुछ बतलाते नहीं, उनको यह पता ही नहीं पड़ता कि कितनी सज़ा मिलेगी। बाबा कहते हैं उन्हों को बहुत सज़ा मिलेगी। महसूस करेंगे बरोबर हमने छिपाया था, इतना झूठ बोला था इसलिए यह सज़ा मिल रही है। बाबा कहते हैं समय आयेगा सबको अपनी चलन का साक्षात्कार कराऊंगा कि कितने पाप, झूठ किये हैं। बहुत विकार में जाते रहते हैं, सेन्टर पर भी आते रहते हैं। शास्त्रों में भी इन्द्रसभा की बात है। यह एक की बात नहीं। बहुत ऐसे होते हैं। फिर जाकर दुश्मन बनते हैं, अबलाओं पर विघ्न डालते रहते हैं। बातें सब यहाँ की हैं। तुम सर्विस बहुत कर सकते हो। यह झाड़ का फर्स्टक्लास चित्र है। बोलो, सिर्फ नॉलेज सुनो। हम आपको यह भी नहीं कहते हैं निर्विकारी बनो। सिर्फ यहाँ आओ तो हम आपको अच्छी बातें सुनायेंगे। तुम शादी की खुशी में हो, हम आपको उनसे भी जास्ती खुशी का पारा चढ़ा सकते हैं, हमेशा के लिए। बात करने की ताकत चाहिए। गोले का चित्र भी अच्छा है। कोई किताबों में भी यह गोला दिखाया है। सिर्फ आयु लम्बी कर दी है। दिल में आना चाहिए हम अपने मित्र सम्बन्धियों का उद्धार करते हैं। एक दिन आयेगा जो तुम चित्र लेकर जाए सबको समझायेंगे कि शिवबाबा इस ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी का राज्य दे रहे हैं। शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश हो रहा है। बाकी देवताओं, असुरों की लड़ाई नहीं लगी। यह तो यवन और कौरवों की है। उनका बाम छूटेगा और इनकी लड़ाई शुरू होगी। विनाश के बाद फिर स्वर्ग की स्थापना, कितना सहज है। बोलो, सिर्फ बाप और वर्से को याद करना है। मनमना भव, बस। हमको कुछ भी नहीं चाहिए। हम पैसे के भूखे नहीं हैं। पैसे तो अपने पास रखो। युक्तियुक्त बोलना चाहिए। आगे चलकर बहुत निकलेंगे। थोड़ी तुम्हारी भी वृद्धि हो जाए। कई हैं जो बाहर से बड़े अच्छे हैं, बड़े मीठे हैं। परन्तु अन्दर किचड़ा भरा हुआ है। यहाँ अन्दर बाहर बड़ा साफ चाहिए। सबके अन्दर को जानने वाला शिवबाबा है। खुद कहते हैं जो जिस भावना से भक्ति करते हैं, उनको उसका फल मिलता है। यह ड्रामा में नूँध है। तो जब बाप को पाया है तो वर्सा भी पूरा पाना चाहिए। वर्सा सर्विस से मिलता है। बाप तो फिर भी पुरुषार्थ करायेगा। ठण्डा थोड़ेही छोड़ेगा। प्रोजेक्टर पर भी अच्छी तरह समझा सकते हैं। चक्र में कितना बड़ा ज्ञान समाया हुआ है। बड़े मण्डप में बड़े-बड़े चित्र रखने चाहिए, जितना बड़ा होगा उतना अच्छी तरह पढ़ सकेंगे। बहुत सहज है समझाना। यह नर्क है, यह स्वर्ग है। यह 84 का चक्र फिरता है। बाप से बेहद का वर्सा संगम पर ही मिलता है। नाम ही है अति सहज राजयोग, अति सहज ज्ञान। ड्रामा आनुसार झाड को जानना है। चित्र तो बाबा ने बनवा दिये हैं। स्वर्ग में इन देवताओं का राज्य था। आर्य और अनआर्य। आर्य अर्थात् पारसबुद्धि, अनआर्य अर्थात् पत्थरबुद्धि। सच बताने वाले तुम हो, बहुत रहमदिल बनना है। कहाँ भी जाकर तुम सर्विस कर दिखाओ। कोई कोई निकल पड़ेंगे जो अपना जीवन बनायेंगे। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अन्दर बाहर साफ रहना है। बाप से कुछ भी छिपाना नहीं है। सच्ची दिल से सेवा करनी है।
2) अपना टाइम सफल करना है। सर्व की आशीर्वादें लेने के लिए वाचा कर्मणा सेवा जरूर करनी है। रहमदिल बनना है। सबका कल्याण करने का धन्धा करते रहना है।
वरदानश्रेष्ठ स्मृति द्वारा सुखमय स्थिति बनाने वाले सुख स्वरूप भव!
स्थिति का आधार स्मृति है। आप सिर्फ स्मृति स्वरूप बनो, तो स्मृति आने से जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: हो जायेगी। खुशी की स्मृति में रहो तो स्थिति भी खुशी की बन जायेगी और दु: की स्मृति करो तो दु: की स्थिति हो जायेगी। संसार में तो दु: बढ़ने ही हैं, सब अति में जाना है लेकिन आप सुख के सागर के बच्चे सदा खुश रहने वाले दु:खों से न्यारे सुख-स्वरूप हो, इसलिए क्या भी होता रहे लेकिन आप सदा मौज में रहो।

स्लोगन: समय रूपी खजाने को व्यर्थ से बचाना - यही तीव्र पुरूषार्थी की निशानी है।

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Details ( Page:- Murali 9th Nov 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 09.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe bacche - Purusharth kar sarv goon sampann banna hai, devi goon dharan karne hain, dekhna hai mere me ab tak kya-kya avgoon hain, hum aatma abhimaani kahan tak bane hain.
Q- Serviceable baccho ki buddhi me ab kaun si taat lagi rehni chahiye?
A- Manushyo ko Devta kaise banaye, kaise sabko Laxmi-Narayan, Ram-Sita ki biography soonaye - yah taat baccho me lagi rehni chahiye. Laxmi-Narayan ke mandir me bahuroopi ban, bhesh badalkar tiptop hokar jana chahiye. Unke pujariyon se wa trustiyon se alag samay lekar milna chahiye. Fir yukti se poochna hai ki aapne yah jo mandir banaya hai, inki jeevan kahani kya hai? Yukti se baat karte, unhe parichay dena hai.
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Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Gyan ke nashe me rehna hai. Ninda-stooti me samaan sthiti rakhni hai. Avastha dagmag nahi karni hai.
2) Sabko Baap ka parichay de Laxmi-Narayan ki sachchi jeevan kahani soonani hai. Kalyankari ban sarv ka kalyan kar shrimat par badhte rehna hai.
Vardaan:-- Samasyaon ke pahad ko udti kala se paar karne wale Tibra Purusharthi bhava.
Slogan:-- Yaad ki briti se bayumandal ko powerful banana - yahi mansa seva hai.
HINDI DETAIL MURALI

09/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - पुरुषार्थ कर सर्वगुण सम्पन्न बनना है, दैवीगुण धारण करने हैं, देखना है मेरे में अब तक क्या-क्या अवगुण हैं, हम आत्म-अभिमानी कहाँ तक बने हैं।"
प्रश्न: सर्विसएबुल बच्चों की बुद्धि में अब कौन सी तात लगी रहनी चाहिए?
उत्तर:
मनुष्यों को देवता कैसे बनायें, कैसे सबको लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता की बायोग्राफी सुनायें - यह तात बच्चों में लगी रहनी चाहिए। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में बहुरूपी बन, वेष बदलकर टिपटाप होकर जाना चाहिए। उनके पुजारियों से वा ट्रस्टियों से अलग समय लेकर मिलना चाहिए। फिर युक्ति से पूछना है कि आपने यह जो मन्दिर बनाया है, इनकी जीवन कहानी क्या है? युक्ति से बात करते, उन्हें परिचय देना है।
गीत:-हमारे तीर्थ न्यारे हैं....   ओम् शान्ति।
गीत का अर्थ बहुत बारी समझाया है। हम अभी यात्रा कर रहे हैं। वापिस अपने स्वीट होम जाने की। हम अभी 84 जन्म पूरे कर वापिस जा रहे हैं। यह कौन कहते हैं? ब्रह्मा मुख वंशावली ब्रह्मण। तुम कर्मयोगी तो हो ही। धन्धाधोरी आदि यह भी कर्म है। नींद भी कर्म है। कर्म तो करना ही है। तुम जब इस यात्रा पर बाप की याद में रहेंगे तो तुम देवता जैसा बन जायेंगे। मनमनाभव का अर्थ भी यह है, मामेकम् याद करो तो तुम मनुष्य से देवता बन जायेंगे। देवतायें भी भारत के मनुष्य ही थे। सिर्फ उन्हों के चित्र दिखाये जाते हैं कि ऐसे होकर गये हैं। भारत में लक्ष्मी-नारायण होकर गये हैं। भारत में बहुत मन्दिर बनाते हैं। ऐसे और कोई राजायें आदि नहीं हैं, जिनके मन्दिर बने हैं और मनुष्य बैठ उन्हों की महिमा गाते हैं। लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण, राम-सीता सबकी महिमा गाते हैं। सबसे जास्ती महिमा है लक्ष्मी-नारायण की, वो 16 कला सम्पूर्ण, वह 14 कला वाले। यह बातें तुम अभी समझते हो और तुम फिर से ऐसे बन रहे हो। उन्हों को भी कोई ने जरूर ऐसा बनाया होगा। बाप ने ही संगम पर कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को समझाए देवता बनाया है। भारतवासी देवताओं की महिमा गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न...... अपने को देवता नहीं समझते। भारत के महाराजा महारानी होकर गये हैं। उन्हों में दैवीगुण थे इसलिए उन्हों को देवता कहा जाता है। थे मनुष्य ही। क्राइस्ट, बुद्ध आदि भी मनुष्य थे। मनुष्यों की ही यह दुनिया है। लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर भी मनुष्य बनाते हैं। लाखों रूपया खर्च कर मन्दिर बनाते हैं। परन्तु यह नहीं जानते तो उन्हों को यह राजाई कैसे मिली? ऐसे गुणवान वह कैसे बनें? हम अपने को पापी, नीच क्यों कहते हैं? यह तो बहुत फर्क हो जाता है। सब एक ही देश भारत के रहने वाले, वह भी मनुष्य, हम भी मनुष्य। परन्तु उन्हों की सीरत देवताओं जैसी है और इस दुनिया के मनुष्यों की सीरत असुरों जैसी है। यह भी आदत पड़ गई है। मन्दिरों में जाकर महिमा गाते हैं। हैं वह भी मनुष्य परन्तु उनमें दैवीगुण, हमारे में आसुरी गुण। गोया हम असुर हैं वह देवता हैं। कहते हैं असुर और देवताओं की लड़ाई लगी। अब देवतायें हैं स्वर्ग में, असुर हैं नर्क में, देवतायें यहाँ कैसे आये जो लड़ाई लगी। नाम है देवता, वह लड़ाई कैसे करेंगे? देवताओं के राज्य में असुरों का नाम निशान नहीं। असुरों का युग - कलियुग पुरानी पृथ्वी, देवताओं का युग - सतयुग नई पृथ्वी, फिर दोनों की युद्ध कैसे होगी? देवताओं को युद्ध करने की दरकार नहीं। वह तो वहाँ राज्य करते हैं। बात बहुत सहज है समझने और समझाने की। हम त्रिमूर्ति भी दिखाते हैं। लक्ष्मी-नारायण को शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा यह राज्य दिया, परन्तु मनुष्य समझते नहीं। जो भगवान आकर समझाते हैं कि मनुष्य से देवता बनना है। दैवीगुण धारण करो तो भी समझते नहीं। जैसे बाप ने लक्ष्मी-नारायण को ऐसा बनाया, वह अब तुमको भी बना रहे हैं। तो पुरुषार्थ कर सर्वगुण सम्पन्न बनना चाहिए। देखना चाहिए मेरे में क्या अवगुण हैं। देह-अभिमान बहुत है। देवतायें आत्म-अभिमानी थे वहाँ यह जानते हैं कि हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेंगी। वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होता, बीमार नहीं होते। सम्पूर्ण थे, यथा राजा तथा प्रजा .... इसलिए नाम ही स्वर्ग था। यहाँ है नर्क। किसको कहो तुम नर्कवासी हो तो बिगड़ पड़ते हैं। तुम समझा सकते हो जब भारत स्वर्ग था तो लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। यह नर्क है, तो उन्हों का राज्य ही नहीं। देवतायें जो पूज्य थे वही पुजारी बनें। सतोप्रधान से तमोप्रधान हर चीज को बनना है। ऐसी कोई वस्तु नहीं जो नई से पुरानी हो। तुम वेष बदलकर भी जा सकते हो। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में बहुत मेला लगता है। तुमको यह तात लगनी चाहिए कि मनुष्यों को यह बतायें कि उन्हों को बाप ने यह राज्य-भाग्य कैसे दिया। अब तो कोई अपने को देवता नहीं कहलाता, सब हिन्दू हैं। हिन्दू कोई धर्म नहीं। हिन्दू धर्म किसने स्थापन किया? कोन्फ्रेंस में लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी ले जाना पड़े। यह फर्स्टक्लास चित्र है। बम्बई में लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर फर्स्टक्लास बना हुआ है। बड़े रमणीक चित्र हैं। फर्स्टक्लास कारीगर होते हैं तो चित्र भी फर्स्टक्लास बनाते हैं। लक्ष्मी-नारायण की झांकी दिखलाकर उन्हों को समझाना है कि यह कौन हैं, इन्होंने कैसे यह पद पाया? इन्होंने पूरे 84 जन्म लिए हैं। अभी फिर से यह राजयोग सीख रहे हैं - भविष्य में देवता बनने के लिए। मूल बात अच्छी तरह समझानी है। बच्चे समझते हैं - प्रदर्शनी पर हमने बहुत अच्छा समझाया। परन्तु बहुत अच्छा तो आगे चलकर समझाना है। अभी तो पुरुषार्थ अनुसार समझाया। सुनते बहुत हैं, एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं। बाबा घड़ी-घड़ी कहते हैं, पहले-पहले बाप का परिचय दो। बाप ने स्वर्ग बनाया था। यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र खड़े हैं। हम यह बनने का पुरुषार्थ कर रहे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा है शिवबाबा का बच्चा। ब्रह्मा को भगवान नहीं कहेंगे, वह रचना है। इन देवी-देवताओं को राज्य-भाग्य हेविनली गाड फादर ने दिया - ब्रह्मा द्वारा। अभी शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा राज्य स्थापन कर रहे हैं। हम कहते शिव भगवानुवाच - ब्रह्मा द्वारा। वह हमको पढ़ाने वाला है। इस पर जोर देना है - भभके से। ढेर बी.के. हैं। तो नशे से कहना चाहिए कि मैं बी.के. शिवबाबा का पोत्रा हूँ। शिवबाबा से हमको वर्सा मिल रहा है, ब्रह्मा द्वारा हमको राजयोग सिखला रहे हैं। हमको एडाप्त किया है। शिवबाबा तुम्हारा भी दादा है। प्रजापिता ब्रह्मा के तुम भी बच्चे हो। सिर्फ हम जानते हैं और वर्सा ले रहे हैं। तुम नहीं जानते हो, हम तुमको परिचय देते हैं। परन्तु किसके भाग्य में नहीं है तो समझते नहीं। निश्चय नहीं करते कि हम बी.के. हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखलाते हैं। हमको भी देवता बनाते हैं। शिव जयन्ती मनाते हैं। यह भारत परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस है। बहुत फखुर से बोलना चाहिए। सर्व का सद्गति दाता एक बाप है, भारत उनका बर्थ प्लेस है। अब बाप फिर आया हुआ है। जयन्ती मनाते हैं परन्तु वह कब और किसके तन में आता है, यह नहीं जानते। जरूर ब्रह्मा के तन में आयेंगे। नहीं तो राज्य भाग्य कैसे दें, राजयोग कैसे सिखलाये? ऐसे क्लीयर कर समझाना है। तुम भी बाप से राज्य-भाग्य लो। महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है। अब बाप से अपनी भक्ति का फल लो, हम आपको राय दे रहे हैं। आते बहुत हैं। शक्ल मनुष्य जैसी है परन्तु सीरत बन्दर जैसी है। तुम समझाओ कि हम श्रीमत पर चलते हैं - इस यज्ञ में विघ्न पड़ेंगे। विष के कारण अबलाओं पर अत्याचार होते हैं। ब्रह्माकुमारियों की निंदा इसीलिए होती है क्योंकि विष (विकार) छुड़ाती हैं। इस पर मारामारी होती है। बाप ने कहा है काम महाशत्रु है। इस समय सब धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हैं, सब नर्कवासी हैं। बाप आकर स्वर्ग वासी बनाते हैं। अब पुरुषार्थ कर बाप से वर्सा लेना है। परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं। ब्रह्मा द्वारा भक्ति का फल दे रहे हैं। ऐसा निश्चय हो जाए तो फौरन भागें। परन्तु विरला कोई भागता है। तुमको चित्र बहुत अच्छे बनाने चाहिए। इनके साथ त्रिमूर्ति, झाड़ का भी कनेक्शन है। कई बच्चे बहुत अच्छी सर्विस करते हैं, दूसरे फिर डिससर्विस भी करते हैं। बाप जानते हैं यह सब कुछ होना ही है। नौकर चाकर आदि सब चाहिए। अगर ब्राह्मण बनना है तो श्रीमत पर चलो। किसको दु: मत दो। बाप का परिचय सबको देते रहो। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प के संगमयुग पर भारत में ही आता हूँ। सर्व की सद्गति करता हूँ। मेरे पास तो सबको आना पड़े। तुम जानते हो सबका लिबरेटर और गाइड यहाँ भारत में ही जन्म लेते हैं। बाप को नाम रूप से न्यारा और सर्वव्यापी कह दिया है। भारतवासियों ने ही ग्लानी कर दी है। उनका ही बेड़ा गर्क होता है। धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो अपने को हिन्दू कहला रहे हैं। बाप सम्मुख कहते हैं - तुमने कितनी धर्म ग्लानी की है। मेरी भी ग्लानी की है। तुम ही पवित्र देवी देवता थे। अब अपवित्र बन पड़े हो। यही देवी-देवता भारत के मालिक थे और भारत स्वर्ग था। यह तो सब कहते हैं अभी कलियुग है फिर जरूर चक्र रिपीट होना है। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प दुनिया को नया बनाता हूँ। तुम लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाकर ट्रस्टी से मिल सकते हो। आजकल माताओं का मान कम है क्योंकि भीख मांगने वाली बहुत निकली हैं। तुम राखी बांधने जाती हो तो वह समझेंगे - भीख माँगने आई हैं। कह देंगे फुर्सत नहीं है, भगाने की कोशिश करेंगे। सफेद वस्त्रधारी भी बहुत निकले हैं इसलिए बाबा समझाते हैं - बहुरूपी बनो, टिपटाप होकर जाओ। मोटर में चढ़कर जाओ। युक्ति से बात करो। हमने सुना है आपने लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर बनाया है, हम आपका दर्शन करने आये हैं। भला आपको मालूम है - यही स्वर्ग के महाराजा महारानी थे। हमको मन्दिर बहुत अच्छा लगा तब हमारी दिल हुई बनाने वाले का दर्शन करें। आप जरूर उनकी जीवन कहानी जानते होंगे, हमको भी थोड़ा परिचय दो। ऐसे पूछकर फिर उन्हें यथार्थ बात सुनानी चाहिए। सन्यासियों आदि को भी तुमसे ही मुक्ति का रास्ता मिलना है, उन्हें भी समझाओ। तुम्हारे बिगर तो उन्हों का भी कल्याण होना नहीं है। तो इतना ज्ञान का नशा होना चाहिए। सर्विस पर होगा तो नशा भी रहेगा। ऐसे नहीं थोड़ी बात में अवस्था डगमग हो जाए। गाया जाता है - स्तुति-निंदा में समान रहना चाहिए। लक्ष्मी-नारायण को बाबा कितना याद करते हैं। क्यों नहीं याद करेंगे? बन रहे हैं ना। मनुष्य बहुत बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं, लक्ष्मी-नारायण का चित्र ऐसा हो जो देख खुश हो जाएं। सारा दिन ख्यालात चलना चाहिए - कैसे जाकर सर्विस करें? जांचकर भाषण करना चाहिए। लक्ष्मी-नारायण की महिमा करनी चाहिए। ऐसी जगह जाना चाहिए जो बड़ों-बड़ों से आवाज निकले तो अच्छा है। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान के नशे में रहना है। निंदा-स्तुति में समान स्थिति रखनी है। अवस्था डगमग नहीं करनी है।
2) सबको बाप का परिचय दे लक्ष्मी-नारायण की सच्ची जीवन कहानी सुनानी है। कल्याणकारी बन सर्व का कल्याण कर श्रीमत पर बढ़ते रहना है।
वरदान: समस्याओं के पहाड़ को उड़ती कला से पार करने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव!
जैसे समय की रफ्तार तीव्रगति से सदा आगे बढ़ती रहती है। समय कभी रूकता नहीं, यदि उसे कोई रोकना भी चाहे तो भी रूकता नहीं। समय तो रचना है, आप रचयिता हो इसलिए कैसी भी परिस्थिति अथवा समस्याओं के पहाड़ भी जायें तो भी उड़ने वाले कभी रुकेंगे नहीं। अगर उड़ने वाली चीज बिना मंजिल के रुक जाए तो एक्सीडेंट हो जायेगा। तो आप बच्चे भी तीव्र पुरूषार्थी बन उड़ती कला में उड़ते रहो, कभी भी थकना और रुकना नहीं।
स्लोगन:याद की वृत्ति से वायुमण्डल को पावरफुल बनाना - यही मन्सा सेवा है।

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Details ( Page:- Murali 10-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 10.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Mithe Mithe bacche - tumhe shrimat par poora-poora dhyan dena hai, Baap ka farmaan hai bacche mujhe yaad karo aur knowledge ko dharan kar dusro ki seva karo.

Q- Baba baccho ki unnati ke liye kaun si raye bahut achchi dete hain?

A- Mithe bacche, apna hisaab-kitab(potamel) rakho. Amritvele pyaar se yaad karo, lachari yaad me nahi baitho, shrimat par dehi-abhimaani ban poora-poora rahemdil bano to bahut achchi unnati hoti rahegi.

Q- Yaad me bighna roop kaun banta hai?

A- Past me jo bikarm kiye huye hain, wohi yaad me baithne samay bighna roop bante hain. Tum bacche yaad me Baap ka avahan karte ho, maya bhoolane ki kosis karti hai. Tum yaad ka chart rakho, mehnat karo to mala me piroh jayge.

Dharna Ke liye mukhya Saar:-

1) Har act shrimat par karni hai. Sabka kalyankari rahemdil ban seva karni hai.

2) Yaad ki aadat pakki daalni hai. Yaad me baithne samay koi bhi mitra sambandhi, khaan-paan adi yaad na aaye, iska attention rakhna hai. Yaad ka chart rakhna hai.

Vardaan:-- Apni sarv jimmevariyon ka bojh Baap ko de swayang halka rehne wale NimiUtt aur Nirmaan bhava.

Slogan:-- Santoostmani wo hai - jiske jeevan ka shringar santoosta hai.

HINDI DETAIL MURALI

10/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 ''मीठे बच्चे - तुम्हें श्रीमत पर पूरा-पूरा ध्यान देना है, बाप का फरमान है बच्चे मुझे याद करो और नॉलेज को धारण कर दूसरों की सेवा करो''

प्रश्न: बाबा बच्चों की उन्नति के लिए कौन सी राय बहुत अच्छी देते हैं?

उत्तर:

मीठे बच्चे, अपना हिसाब-किताब (पोतामेल) रखो। अमृतवेले प्यार से याद करो, लाचारी याद में नहीं बैठो, श्रीमत पर देही-अभिमानी बन पूरा-पूरा रहमदिल बनो तो बहुत अच्छी उन्नति होती रहेगी।

प्रश्न:याद में विघ्न रूप कौन बनता है?

उत्तर:

पास्ट में जो विकर्म किये हुए हैं, वही याद में बैठने समय विघ्न रूप बनते हैं। तुम बच्चे याद में बाप का आह्वान करते हो, माया भुलाने की कोशिश करती है। तुम याद का चार्ट रखो, मेहनत करो तो माला में पिरो जायेंगे।

गीत:-तू प्यार का सागर है       ओम् शान्ति।

यहाँ जब बैठते हो तो बाबा की याद में बैठना है। माया बहुतों को याद करने नहीं देती क्योंकि देह-अभिमान है। कोई को मित्र सम्बन्धी, कोई को खान-पान आदि क्या-क्या याद आता रहता है। यहाँ जब आकर बैठते हो तो बाप का आह्वान करना चाहिए। जैसे जब लक्ष्मी की पूजा होती है तो लक्ष्मी का आह्वान करते हैं। लक्ष्मी कोई आती नहीं है। यहाँ भी कहा जाता है तुम बाप को याद करो अथवा आह्वान करो, बात एक ही है। याद से विकर्म विनाश होंगे। धारणा नहीं हो सकती है क्योंकि विकर्म बहुत हैं। बाप को भी याद नहीं कर सकते हैं। जितना बाप को याद करेंगे उतना विकर्माजीत, निरोगी बनेंगे। है बहुत सहज। परन्तु माया अथवा पास्ट के विकर्म सामने आते हैं जो याद में विघ्न डालते हैं। बाप कहते हैं तुमने ही आधाकल्प अयथार्थ रीति से याद किया। अभी तो तुम प्रैक्टिकल में आह्वान करते हो क्योंकि तुम जानते हो कि बाबा आया हुआ है। परन्तु यह याद की आदत पक्की हो जानी चाहिए। तुमको एवर निरोगी बनने के लिए अविनाशी सर्जन दवाई देते हैं कि मुझे याद करो फिर तुम मेरे से आकर मिलेंगे। मेरे द्वारा मेरे को याद करने से ही तुम मेरा वर्सा पायेंगे। बाप और स्वीट होम को याद करना है, जहाँ जाना है, वह बुद्धि में रहता है। बाप वहाँ से आकर सच्चा पैगाम देते हैं और कोई भी ईश्वरीय पैगाम नहीं देते। वह तो यहाँ स्टेज पर पार्ट बजाने आते हैं और ईश्वर को भूल जाते हैं। लक्ष्मी-नारायण यहाँ आते हैं तो ईश्वर का पता नहीं रहता। उनको भी पैगम्बर नहीं कह सकते। यह तो मनुष्यों ने नाम लगा दिये हैं। वह आते ही हैं पार्ट बजाने। वह याद कैसे करेंगे? उनको पार्ट बजाते-बजाते पतित बनना ही है, फिर अन्त में पतित से पावन बनना है। वह तो बाप ही आकर बनाते हैं। बाप की याद से ही पावन बनना है। बाप कहते हैं बच्चे मेरे पास पावन बनाने का एक ही उपाय है। देह सहित जो भी देह के सम्बन्ध हैं उनको भूल जाना है। तुम जानते हो मुझ आत्मा को बाप को याद करने का फरमान मिला हुआ है। उस पर चलने वाले को ही फरमानवरदार कहा जाता है। जो कम याद करते हैं, वह कम फ़रमानवरदार। फ़रमानवरदार पद भी ऊंचा पाते हैं। बाबा का एक फ़रमान है याद करो, दूसरा है नॉलेज को धारण करो। याद नहीं करेंगे तो सज़ायें बहुत खानी पड़ेगी। स्वदर्शन चक्र फिराते रहेंगे तो धन बहुत मिलेगा। भगवानुवाच, मेरे द्वारा मुझे भी जानो और सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त को भी जानो। यह दो बातें मुख्य हैं जिस पर ध्यान देना है। श्रीमत पर पूरा ध्यान देंगे तो ऊंच पद पायेंगे फिर रहमदिल बनना है, सबको रास्ता बताना है, सबका कल्याण करना है। मित्र सम्बन्धियों आदि को भी सच्ची यात्रा पर ले जाने की युक्ति रचनी है। वह है जिस्मानी यात्रा, यह है रूहानी यात्रा। यह प्रीचुअल नॉलेज कोई के पास नहीं है। वह है सब शास्त्रों की फिलॉसाफी। यह है रूहानी नॉलेज, सुप्रीम रूह यह नॉलेज देते हैं रूहों को। रूहों को ही वापिस ले जाना है। अमृतवेले जब आकर बैठते हैं, कोई तो लाचारी आकर बैठते हैं। उन्हों को अपनी उन्नति का कुछ भी ख्याल नहीं है। बच्चों में देह-अभिमान बहुत है। देही-अभिमानी हो तो रहमदिल बन श्रीमत पर चलें।

बाप कहते हैं अपना चार्ट लिखो - कितना समय याद करते हैं? आगे चार्ट रखते थे। अच्छा बाबा को न भेजो अपने पास तो रखो। अपनी शक्ल देखनी है। हम लक्ष्मी को वरने लायक बने हैं? व्यापारी लोग अपना पोतामेल रखते हैं। कोई-कोई सारे दिन की दिनचर्या रखते हैं। हॉबी होती है लिखने की। यह बाबा बहुत अच्छी राय देते हैं कि अपना हिसाब-किताब रखो। कितना समय याद किया? कितना समय किसको समझाया? ऐसा चार्ट रखें तो बहुत उन्नति हो जाये। बाबा मम्मा को तो नहीं लिखना है। माला के दाने जो बनते हैं उन्हों को पुरुषार्थ बहुत करना है, बाबा ने कहा ब्राह्मणों की माला अभी नहीं बन सकती, अन्त में बनेंगी, जब रुद्र की माला बनेंगी। ब्राह्मणों की माला तो बदलती रहती है। आज 3-4 नम्बर में हैं, कल लास्ट 16108 में चले जाते हैं। कोई गिरते हैं तो बिल्कुल दुर्गति को पा लेते हैं। माला से तो गये, प्रजा में भी चण्डाल जाकर बनते हैं। अगर माला में पिरोना है तो मेहनत करो। बाबा सबके लिए बहुत अच्छी राय देते हैं। भल गूँगा हो, कोई को भी ईशारे से बाबा की याद दिला सकते हैं। अन्धे, लूले कैसे भी हों - तन्दरूस्त से भी ज्यादा ऊंच पद पा सकते हैं। सेकण्ड में जीवनमुक्ति गाई हुई है। बाबा का बना और वर्सा मिल गया। उनमें नम्बरवार पद हैं। बच्चा पैदा हुआ, वर्से के हकदार बन गया। यहाँ तुम हो मेल्स बच्चे। बाप से वर्से का हक लेना है। सारा मदार पुरुषार्थ पर है। फिर कहते हैं कल्प पहले भी हार खाई होगी। बॉक्सिंग है ना। पाण्डवों की थी माया रावण के साथ लड़ाई। कोई तो पुरूषार्थ कर विश्व के मालिक डबल सिरताज बनते हैं। कोई फिर प्रजा में भी नौकर चाकर बनते हैं। सभी यहाँ पढ़ रहे हैं। राजधानी स्थापन हो रही है। अटेन्शन आगे वाले दानों तऱफ जायेगा। 8 दाने कैसे चल रहे हैं। पुरूषार्थ से मालूम पड़ जाता है। ऐसे नहीं अन्तर्यामी है, सबकी दिल को जानते हैं। नहीं, जानी-जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल है। सृष्टि के आदि मध्य अन्त को जानते हैं। बाकी एक-एक के दिल को थोड़ेही रीड करेंगे। मुझे थाट रीडर समझा है। वास्तव में मैं जानी जाननहार अर्थात् नॉलेजफुल हूँ। सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की मेरे पास नॉलेज है। यह चक्र फिर से कैसे रिपीट होता है। मैं उस रिपीटेशन के राज़ को जानता हूँ। वह सब राज़ तुम बच्चों को समझाता हूँ। हर एक समझ सकते हैं कि परमात्मा कौन है और कितनी सर्विस करते हैं! बाकी बाबा एक-एक की दिल को जानने का धन्धा नहीं करता है। वह चैतन्य मनुष्य सृष्टि का बीज, नॉलेजफुल है। जानी जाननहार अक्षर बहुत पुराना है। हम तो जो नॉलेज जानता हूँ वह तुमको पढ़ाता हूँ। बाकी तुम क्या-क्या करते हो वह सारा दिन बैठ देखूँगा क्या? मैं तो सहज राजयोग ज्ञान सिखलाने आता हूँ। बाबा कहते हैं बच्चे तो बहुत हैं, बच्चे ही पत्र आदि लिखते हैं और मैं भी बच्चों के आगे ही प्रत्यक्ष होता हूँ। फिर वह सगा है वा लगा है - सो फिर मैं समझ सकता हूँ। हर एक की पढ़ाई है। श्रीमत पर सभी को एक्ट में आना है। कल्याणकारी बनना है।

तुम जानते हो ब्रह्स्पति को वृक्षपति डे भी कहा जाता है। वृक्षपति सोमनाथ भी ठहरा, शिव भी ठहरा। बच्चों को बहुत करके गुरुवार के दिन स्कूल में बिठाते हैं। गुरू भी करते हैं। तुमको सोमनाथ बाप पढ़ाते हैं। रूद्र भी सोमनाथ को कहते हैं। कहते हैं रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा। यह एक ही यज्ञ चलता है, जिसमें सारी पुरानी दुनिया की सामग्री स्वाहा होनी है। तत्व भी उथल पाथल में आ जाते हैं। सब इसमें स्वाहा हुए हैं। सामने महाभारत लड़ाई खड़ी है। यह सब शान्ति के लिए यज्ञ रचते हैं, परन्तु मटेरियल यज्ञ से शान्ति हो न सके। इस यज्ञ से विनाश ज्वाला प्रगट होती है। यह भ्रष्टाचारी दुनिया इसमें स्वाहा होने वाली है। यह सब बच्चों को देखना है। देखने वाले बड़े महावीर चाहिए। मनुष्य तो हाय-हाय करेंगे। तुम्हारे लिए लिखा हुआ है - मिरुआ मौत मलूका शिकार...सतयुग में बहुत थोड़े मनुष्य थे, एक धर्म था। अब कलियुग के अन्त में देखो कितने मनुष्य हैं? कितने धर्म हैं? यह सब धर्म कहाँ तक चलेंगे? सतयुग जरूर आना है। अब सतयुग की स्थापना कौन करेंगे? रचता बाप ही करेंगे। कलियुग का विनाश भी सामने खड़ा है। तुम भूल गये हो कि गीता का भगवान कौन है? भगवान ने स्वर्ग की स्थापना की, इसमें लड़ाई की कोई बात नहीं। उसने माया पर जीत पहनाई है। इस राज़ को न समझ उन्होंने असुर और देवताओं की लड़ाई दिखाई है। वह तो होती नहीं। तुम बच्चों को बाप द्वारा जो पास्ट, प्रेजन्ट, फ्युचर की नॉलेज मिली है, यह स्वदर्शन चक्र तुमको फिराना है। बाप और रचना को याद करना है। कितनी सहज बात है।

गीत:- तू प्यार का सागर है। आज बाबा ने लिखा है, तुम ओशन आफ नॉलेज, ओशन आफ ब्लिस लिखते हो बाकी ओशन आफ लव भी जरूर लिखना है। बाप की महिमा बहुत है। परन्तु सर्वव्यापी कहने से बाप की महिमा गुम कर दी है। कृष्ण के लिए भी लिखा है 16108 रानियाँ थी...जन्माष्टमी के दिन कृष्ण को झूले में झुलाते हैं। परन्तु किसको भी पता नहीं कि कृष्ण ही नारायण बनते हैं। राधे फिर लक्ष्मी बनती है। लक्ष्मी ही फिर जगत अम्बा बनती है, यह कोई नहीं जानते। अब बाप कहते हैं मेरे को जानने से तुम सब कुछ जान जायेंगे। परन्तु जो देही-अभिमानी नहीं बनते उनको धारणा भी नहीं होती है। आधा कल्प तो देह-अभिमान चला है। सतयुग में भी परमात्मा का ज्ञान नहीं रहता है। यहाँ पार्ट बजाने आते हैं और परमात्मा को भूल जाते हैं। यह तो समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परन्तु वहाँ दु:ख की बात नहीं। यह परमात्मा की महिमा है। ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर...एक बूँद है मनमनाभव, मध्याजीभव। यह मिलने से हम विषय सागर से क्षीर सागर में चले जाते हैं। स्वर्ग में घी दूध की नदियाँ बहती हैं। यह सब महिमा है। बाकी घी दूध की नदी थोड़ेही हो सकती है। यह भी तुम जानते हो स्वर्ग किसको कहा जाता है। भल अजमेर में मॉडल है परन्तु जानते कुछ नहीं। तुम कोई को समझाओ तो झट समझ जायेंगे। बाकी यह रास-विलास तो खेल कूद है। जैसे बाबा के पास आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है तो तुम बच्चों की बुद्धि में फिरना चाहिए। बाप की महिमा एक्यूरेट सुनानी है। उनकी महिमा अपरमअपार है। सब एक जैसे नहीं हो सकते। हर एक को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। पोप का भी अगर ड्रामा अनुसार पार्ट होगा तो मिलेगा। अगर दूसरा होगा तो फिर आगे चलकर देखेंगे। जो दिव्य दृष्टि से दिखाया था, वह सब इन आंखों से देखेंगे। विष्णु का साक्षात्कार किया है। वहाँ भी प्रैक्टिकल जायेंगे। फिर साक्षात्कार होना बन्द हो जाता है। सतयुग त्रेता में न साक्षात्कार, न भक्ति। फिर भक्ति मार्ग से यह सब बातें शुरू होती हैं। कितनी अच्छी-अच्छी बातें बाबा समझाते हैं। जो फिर बच्चों को औरों को समझानी हैं। बहनों भाइयों आकर बाप से वर्सा लो। उस ज्ञान से परमात्मा को सर्वव्यापी कह महिमा गुम कर दी है और ग्लानी कर दी है। तुम बच्चे यथार्थ महिमा को जानते हो। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) हर एक्ट श्रीमत पर करनी है। सबका कल्याणकारी रहमदिल बन सेवा करनी है।

2) याद की आदत पक्की डालनी है। याद में बैठने समय कोई भी मित्र सम्बन्धी, खान-पान आदि याद न आये, इसका अटेन्शन रखना है। याद का चार्ट रखना है।

वरदान:अपनी सर्व जिम्मेवारियों का बोझ बाप को दे स्वयं हल्का रहने वाले निमित्त और निर्माण भव!

जब अपनी जिम्मेवारी समझ लेते हो तब माथा भारी होता है। जिम्मेवार बाप है, मैं निमित्त मात्र हूँ - यह स्मृति हल्का बना देती है। इसलिए अपने पुरूषार्थ का बोझ, सेवाओं का बोझ, सम्पर्क-सम्बन्ध निभाने का बोझ...सब छोटे-मोटे बोझ बाप को देकर हल्के हो जाओ। अगर थोड़ा भी संकल्प आया कि मुझे करना पड़ता है, मैं ही कर सकता हूँ, तो यह मैं-पन भारी बना देगा और निर्माणता भी नहीं रहेगी। निमित्त समझने से निर्माणता का गुण भी स्वत: आ जाता है।

स्लोगन:सन्तुष्टमणी वह है - जिसके जीवन का श्रृंगार सन्तुष्टता है।
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Details ( Page:- Murali 11-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 11.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Mithe Mithe bacche - Baap samaan khudayi khidmatgar ban ashuri society ko devi society banane ki seva karo, service ka souk rakho.

Q- Kayi bacche poorani duniya ko bhoolate bhi nahi bhool paate hain, uska kaaran kya hai?

A- Unka karm bandhan bahut kada hai. Agar nayi duniya me buddhi yog nahi lagta hai. Buddhi baar-baar purani duniya taraf bhagti rehti hai, to kaha jata hai inki takdeer me nahi hai arthat karm he inke khote hain.

Q- Kaun sa shwad aa jaye to tum service ke bigar rah nahi sakte?

A- Rahemdil banne ka shwad. Jise gyan ka shwad aaya hai, wohi rahemdil banna jaante hain. Rahemdil bacche service ke bigar rah nahi sakte.

Dharna Ke liye mukhya Saar:-

1) Aap samaan banane ki seva karni hai. Koi aisi kartoot nahi karni hai, jiski saja khani pade. Bahut-bahut mitha banne ka purusharth karna hai.

2) Baap hume chal aur achal(mukti aur jeevanmukti) property ka mallik banate hain- isi khushi aur nashe me rehna hai.

Vardaan:-- Sarv karmendriyon ko law aur order pramaan chalane wale Master Sarvshaktimaan bhava.-

Slogan:-- Samay par sarv shaktiyon ko karya me lagana he Master Sarvshaktimaan banna hai.

 

HINDI DETAIL MURALI

11/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

से ''मीठे बच्चे - बाप समान खुदाई खिदमतगार बन आसुरी सोसायटी को दैवी सोसायटी बनाने की सेवा करो, सर्विस का शौक रखो''

प्रश्न:कई बच्चे पुरानी दुनिया को भुलाते भी नहीं भूल पाते हैं, उसका कारण क्या है?

उत्तर:

उनका कर्मबन्धन बहुत कड़ा है। अगर नई दुनिया में बुद्धियोग नहीं लगता है। बुद्धि बार-बार पुरानी दुनिया तरफ भागती रहती है, तो कहा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है अर्थात् कर्म ही इनके खोटे हैं।

प्रश्न: कौन सा स्वाद आ जाए तो तुम सर्विस के बिगर रह नहीं सकते?

उत्तर:

रहमदिल बनने का स्वाद। जिसे ज्ञान का स्वाद आया है, वही रहमदिल बनना जानते हैं। रहमदिल बच्चे सर्विस के बिगर रह नहीं सकते।

गीत:-   तू प्यार का सागर है    ओम् शान्ति।

यह जो अक्षर सुने तू प्यार का सागर है। तुम बच्चे जानते हो कि यह बाप सबसे प्यारा है। बाप को जब याद करते हो तो वर्सा याद आ जाता है। जिसको बाप याद आयेगा, निश्चय हो जायेगा तो जरूर खुशी होगी। यूँ तो शिव के मन्दिर में भी जाते हैं तो शिवलिंग को शिवबाबा ही कहते हैं। परन्तु उन्हों को इतनी खुशी क्यों नहीं होती है? वह तो शिवलिंग पर दूध, फल, फूल आदि चढ़ाते हैं। तुमको तो दूध आदि चढ़ाने की दरकार ही नहीं। निराकार भगवान, वह तो पिता हुआ ना। भक्तों का भगवान वह रचयिता भी है। उन्होंने इस मनुष्य सृष्टि को रचा है। यह भी गाया जाता है। उनकी भक्ति करते हुए भी जितना तुम बच्चों को खुशी का पारा चढ़ता है उतना और कोई को नहीं चढ़ता। भगवान का नाम सुनने से ही तुम्हारे रोमांच खड़े हो जाते हैं। बुद्धि में आता है कि बाप से हमको बाप के घर का भी वर्सा मिलता है और बाप की मिलकियत का भी वर्सा मिलता है। बच्चा तो बाप के घर में ही जन्म लेता है, इसमें कोई अदली-बदली नहीं हो सकती। जायदाद का कारखाना, जमीनें आदि बाहर में इधर उधर रहती हैं। भल घर भी जायदाद है परन्तु प्रापर्टी की फिरती-घिरती (अदली-बदली) होती है। घर को अचल सम्पत्ति कहा जाता है। प्रापर्टी को चल सम्पत्ति कहा जाता है। तुम बच्चे जानते हो कि हम बाप के घर के मालिक बनते हैं, जो कभी बदल-सदल नहीं हो सकता। स्वीट होम की बदल सदल नहीं होगी। बाकी राजाई तो कितना बदल-सदल होती है। वह चल है, वह अचल है। मुक्तिधाम अचल है। यहाँ तो अदली-बदली होती है। सूर्यवंशी से चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी में आते हैं। मुक्ति और जीवनमुक्ति। तुम बच्चे बाप की प्रापर्टी के मालिक बनते हो। जानते हो बाप की जो अचल सम्पत्ति है उनके तो सब मालिक बनते हैं। बाकी जो चल सम्पत्ति है वह बच्चों को नम्बरवार मिलती है। तुमको सबसे जास्ती अच्छी प्रापर्टी मिलती है। स्वर्ग में तुम राज्य करते हो। चार युग जो हैं उसमें तो भारतवासी ब्राह्मण कुल ही मुख्य है। जो देवी-देवता धर्म वाले हैं, सब तो सारा चक्र लगाते नहीं। तो इस धर्म वाला कोई और धर्म में कनवर्ट हो गया तो निकल आयेगा। क्रिश्चियन धर्म में, बुद्ध धर्म में बहुत कनवर्ट हो गये हैं वह सब निकल आयेंगे। ऐसे बहुत कनवर्ट हो गये हैं। देखने में आता है, कोई समय ऐसा भी आयेगा। यह जो नॉलेज है उसे कोई भी समझ सकते हैं। इस सृष्टि चक्र को जानना तो कॉमन बात है। भल कितना भी डलहेड हो तो भी बुद्धि में तो यह आता है ना। ऐसे नहीं कि सृष्टि चक्र को जानने से सर्वगुण सम्पन्न बन जाते हैं। नहीं, यह तो पढ़ाई है। वह है हद की पढ़ाई, यह है बेहद की पढ़ाई। सिर्फ तुम जानते हो तुम्हारी बुद्धि में यह रहता है कि यह चक्र कैसे फिरता है और धर्म तो बाद में आते हैं। यह नॉलेज बहुत सहज है। कोई तो मुश्किल समझते हैं, परन्तु फिर इतना योगी बनना है। सब उनको याद करते हैं। सृष्टि चक्र को तो जाना है परन्तु वह अवस्था भी तो चाहिए ना। सर्वगुण सम्पन्न बनने में अच्छी ही मेहनत लगती है। कोई न कोई विघ्न निकल पड़ते हैं। खुद भी कहते हैं कि मेरे में मीठा बोलने का गुण नहीं है। पुरुषार्थ करना पड़ता है। एम आब्जेक्ट तो सीधी है। बाबा ने कल रात को भी समझाया कि यह तुम लिख सकते हो कि हम 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से यह राजयोग सीख रहे हैं। कहाँ भी प्रदर्शनी वा प्रोजेक्टर दिखाया जाए तो यह वन्डरफुल बात जरूर लिखनी चाहिए कि 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से तुमको हम इस प्रदर्शनी के द्वारा राजयोग सीखने के लिए युक्ति बतलाते हैं।

बाप कहते हैं कि 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक श्रीमत द्वारा यह पुरुषार्थ कर रहे हो। वह तो कहते हैं कि कल्प की आयु ही लाखों वर्ष की है। कलियुग तो अभी बच्चा है। तुम कहते हो हम 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक दैवी स्वराज्य पद पाने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। तो मनुष्य वन्डर खायेंगे कि यह क्या लिखते हैं? अगर कहें कि सतयुग को लाखों वर्ष हुए हैं तो पूछो देवताओं की इतनी जनसंख्या (आदमशुमारी) कहाँ है! हिन्दुओं की आदमशुमारी कम निकलती है। हिन्दू और-और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं। हिन्दू ही कितने मुसलमान बने होंगे। उनको शेख कहते हैं। ऐसे भी बहुत हैं। कोई तो अपने को आदि सनातन देवी-देवता धर्म का मानते भी नहीं हैं। आदि सनातन हिन्दू धर्म कह देते हैं। परन्तु हिन्दू धर्म तो आदि सनातन था नहीं। तुम अखबार में भी डाल सकते हो, मैंगजीन की तो बात नहीं। अखबारें तो लाखों की अन्दाज में छपती हैं। हाँ वह पैसे तो बहुत लेते हैं। समझाने से वह डाल सकते हैं। चक्र भी डाल सकते हैं। बाबा ने जो प्रश्न लिखा था कि गीता का भगवान कृष्ण वा शिव? वह भी अखबार में डाल सकते हैं। कभी खर्चे पर डालते हैं, कभी लोन पर भी देते हैं। बड़ी अच्छी अखबार में डालो, परन्तु हमेशा पड़े तब मनुष्यों की ऑख खुले। एक बार डाला कोई ने पढ़ा, कोई ने नहीं भी पढ़ा। रोज़ डालने से मनुष्यों की ऑख खुलेगी। फिर आकर ज्ञान समझेंगे। पुरुषार्थ करने में भी कितनी मेहनत लगती है। बहुत माया के तूफान आते हैं। मेहनत तो है ना। अखबार में डालना, प्रदर्शनी करना। प्रदर्शनी तो एक गांव में होगी। अखबार तो चारों ही ओर जाती है। सारा ही दिन ख्यालात चलते रहते हैं। वर्णन करना पड़ता है कि क्या किया जाए? कैसे सर्विस को आगे बढ़ाया जाए? तुम हो सच्चे-सच्चे खुदाई खिदमतगार बच्चे। सोसायटी की सर्विस करना, यह खिदमत है ना। तुम बच्चे जानते हो कि वह सब आसुरी सोसायटी हैं, अब उनको दैवी सोसायटी बनाना है। सारी दुनिया की सोसायटी को स्वर्ग में पहुँचाना है। सारी दुनिया का बेड़ा गर्क है। दुनिया पहले स्वर्ग थी। अब नर्क बन गई है। यह चक्र कैसे फिरता रहता है। ड्रामा है ना। जब स्वर्ग है तब नर्क नहीं। कहाँ गया? नीचे। ड्रामा को फिर फिरना है। यह चैतन्य ड्रामा है। सेकेण्ड बाई सेकेण्ड जो एक्ट करते हैं, यह तुम्हारी बुद्धि में है और तो कुछ भी नहीं समझ सकते। ड्रामा को समझ जाएं तो फिर यह बातें ठहर न सकें कि यह कल्प लाखों वर्ष का है। स्वास्तिका भी बिल्कुल ठीक निकाला हुआ है। स्वास्तिका की पूजा भी करते हैं। परन्तु उनको यह पता नहीं है कि क्या चीज़ है। अर्थ कुछ नहीं। तो यह चक्र समझाना पड़ता है। तुम्हारी बुद्धि में यह चक्र फिरता रहता है। तुम कहते हो कि हम मनुष्य से देवता, नर से नारायण बन रहे हैं। यह राजयोग है। त्रिमूर्ति का चित्र तो सारा दिन बुद्धि में रहता है। ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की राजाई मिलती है। शंकर द्वारा यह आसुरी सृष्टि खलास होती है। बस बुद्धि में यही ख्यालात चलते रहें। बहुत खुशी में रहना होता है। बाबा लाकेट भी बनवा रहे हैं, जिससे तुम बहुत सहज रीति समझा सकते हो। बैग्स में भी यह चित्र लगवा सकते हो। त्रिमूर्ति और पा। भल लक्ष्मी-नारायण के चित्र में और सब हैं। कृष्ण का भी है, सिर्फ चक्र में नहीं है। एक चित्र में सब चीज़ें कहाँ तक डाल सकते हैं इसलिए वह फिर समझाया जाता है। बाबा की बुद्धि सारा दिन चलती रहती है कि लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर बहुत अच्छा बनाते हैं। कृष्ण के मन्दिर भी बहुत अच्छे बने हुए हैं। परन्तु यह किसको पता नहीं कि यह लक्ष्मी-नारायण वा राधे-कृष्ण कौन हैं? तुमको अब कितनी नॉलेज मिली है। कितनी खुशी होनी चाहिए। कहाँ भी जाकर तुम सर्विस कर सकते हो। श्रीनाथ द्वारे पर भी जाकर समझा सकते हो। ट्रस्टी लोगों को समझाओ। कासकेट ले कोई भी बड़े आदमी को खोलकर समझाने से बहुत खुशी होगी। समझेंगे कि यह तो जैसे भगवान स्वयं रूप धारण कर समझा रहे हैं। कोई-कोई बच्चों में सर्विस का बहुत शौक है। परन्तु बड़ों-बड़ों के पास जाते नहीं हैं। कहाँ भी जाकर तुम मुलाकात कर सकते हो। खर्चे की बात नहीं है। पहले तो वह समझेंगे कि यह कुछ शायद लेने के लिए आये हैं। सर्विस के लिए अनेक प्रकार की युक्तियां रचनी चाहिए। नहीं तो टाइम वेस्ट जाता है। हर एक को अपनी दिल से पूछना चाहिए। बहुत रहमदिल बन बहुतों का कल्याण करना है। ज्ञान का स्वाद नहीं तो रहमदिली का स्वाद नहीं आता। नहीं तो तुम बच्चे बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हो। बाबा तो सर्विस की युक्तियां बहुत बतलाते हैं। सुना बस भागे। अगर फुर्सत हुई। सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए तब तो ऊंच पद पा सकेंगे। इस त्रिमूर्ति, चक्र पर बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हो। फारेनर्स भी कोई आये तो उनको समझाओ। कितनी अच्छी नॉलेज है। यह तो वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी की नॉलेज है। सन्यासी लोग बाहर जाते हैं भारत के प्राचीन राजयोग की नॉलेज देने, परन्तु वह दे नहीं सकते। तुम्हारे पास फैक्ट फिगर्स सब हैं परन्तु समझाने की हिम्मत चाहिए। प्रोजेक्टर पर भी तुम सब चित्र दिखाए नॉलेज दो तो है बहुत अच्छा। विलायत में भी प्रोजेक्टर पर बहुत अच्छी नॉलेज दे सकते हो। वह सुनकर बहुत खुश होंगे। क्राइस्ट अभी कहाँ है फिर कब आयेगा? उनको पता पड़ जायेगा। ड्रामा के चक्र का ज्ञान तो मिल जायेगा ना। साथ में प्रोजेक्टर है तो उस पर बहुत अच्छी सर्विस कर सकते हैं। इसमें कोई मना नहीं कर सकते। कोई को भी समझा सकते हो, स्लाइडस सब ले जाओ। अंग्रेजी में हो तो अच्छा है। मेहनत भी करनी है। सबका बुद्धियोग शिवबाबा से लग जाये तो जल्दी-जल्दी स्थापना हो जाए। बाप भी ड्रामा प्लैन अनुसार समझाते रहते हैं। मत देते रहते हैं। चीज़ लेने वाला भी बड़ा समझू, सयाना, अक्लमंद चाहिए। स्लाइड्स में अक्षर बहुत क्लीयर चाहिए, जो मनुष्य पढ़ सकें, हिन्दी इंगलिश दोनों हों। उर्दू, मद्रासी भी बनाने पड़े। फिर प्रोजेक्टर पर कहाँ भी समझाना सहज हो जायेगा। आप समान बनाने की सर्विस करनी है तब अच्छा पद पाने की उम्मींद हो सकती है। नहीं तो क्या पद मिलेगा। मनुष्य बिचारे बहुत दु:खी हैं। बाप का परिचय देने से खुशी होती है ना। बाबा को कभी देखा नहीं है। पत्रों में लिखते हैं बाबा हम आपसे वर्सा जरूर लेंगे। कितनी बांधेलियां हैं। वह भी तब छूट सकती हैं जब तुम्हारा नाम निकले, प्रभाव निकले। अपनी हमजिन्स को जेल से छुड़ाना है। सर्विस नहीं तो क्या पद पायेंगे। अन्त में सब साक्षात्कार होंगे। फिर अपने किये हुए करतूत सब याद आयेंगे। बाप साक्षात्कार कराते रहेंगे। बाप का बनकर फिर क्या-क्या डिससर्विस की, फिर पछताना होता है इसलिए बाप समझाते रहते हैं कि सर्विस पर अच्छी रीति लगना है। बाबा को अच्छी-अच्छी बच्चियां चाहिए - सर्विस करने वाली। विचार करना चाहिए कि बाबा की सर्विस में क्या मदद करें जो हमारे स्वराज्य की जल्दी स्थापना हो जाए। सर्विस का शौक होना चाहिए। सर्विसएबुल बच्चों को पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि बनाने में कितना माथा मारना पड़ता है। कम बात नहीं है फिर बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए कि हम स्वर्ग का वर्सा बाबा से ले रहे हैं। परन्तु है गुप्त। कर्मबन्धन का भी हिसाब-किताब कितना कड़ा है, जो पुरानी दुनिया को भूलते नहीं। धूलछांई में जाकर बुद्धियोग लटकता है। नई दुनिया में लगता नहीं, इसको कहा जाता है कर्म खोटे। अच्छा !

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) आप समान बनाने की सेवा करनी है। कोई ऐसी करतूत नहीं करनी है, जिसकी सज़ा खानी पड़े। बहुत-बहुत मीठा बनने का पुरुषार्थ करना है।

2) बाप हमें चल और अचल (मुक्ति और जीवनमुक्ति) प्रापर्टी का मालिक बनाते हैं - इसी खुशी और नशे में रहना है।

वरदान:सर्व कर्मेन्द्रियों को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान् भव!

मास्टर सर्वशक्तिमान् राजयोगी वह है जो राजा बनकर अपनी कर्मेन्द्रियों रूपी प्रजा को लॉ और आर्डर प्रमाण चलाये। जैसे राजा राज्य-दरबार लगाते हैं ऐसे आप अपने राज्य कारोबारी कर्मेन्द्रियों की रोज़ दरबार लगाओ और हालचाल पूछो कि कोई भी कर्मचारी आपोजीशन तो नहीं करते हैं, सब कन्ट्रोल में हैं। जो मास्टर सर्वशक्तिमान् हैं, उन्हें एक भी कर्मेन्द्रिय कभी धोखा नहीं दे सकती। स्टॉप कहा तो स्टॉप।

स्लोगन:समय पर सर्व शक्तियों को कार्य में लगाना ही मास्टर सर्वशक्तिमान् बनना है।

 
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Details ( Page:- Murali 12-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 12.11.17      Pratah Murli Om Shanti –


AVYAKT BapDada Madhuban ( Revise 1/3/83 & 21/03/83 )


Headline1 ( Revise – 01-03 – 83 ) – Viswa ke har sthan par adhyatmiklight aur gyan jal pahunchao

Headline 2 ( Revise – 21-03-83 ) – Geeta pathsala chalanewale bhai bahan ke sanmukh avyakt mahavakya.

Vardan – jinmewari ki smruti dwara sada alert rahnewale subh bhavna subh kamna sampan bhav.

Slogan – Apne hark arm dwara  saharedata baap ko pratyaksh karo toh anek atmao ko kinara mil jayega

 

HINDI DETAIL MURALI

12/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"विश्व के हर स्थान पर आध्यात्मिक लाइट और ज्ञान जल पहुंचाओ"

आज बापदादा वतन में रूहरिहान कर रहे थे। साथ-साथ बच्चों की रिमझिम भी देख रहे थे। वर्तमान समय मधुबन वरदान भूमि पर कैसे बच्चों की रिमझिम लगी हुई है, वह देख-देख हर्षा रहे थे। बापदादा देख रहे थे कि मधुबन पावर हाउस से चारों ओर कितने कनेक्शन्स गये हुए हैं। जैसे स्थूल पावर हाउस से अनेक तरफ लाइट के कनेक्शन जाते हैं। ऐसे इस पावर हाउस से कितने तरफ कनेक्शन गये हैं। विश्व के कितने कोनों में लाइट के कनेक्शन गये हैं और कितने कोनों में अभी कनेक्शन नहीं हुआ है। जैसे आजकल की गवर्मेन्ट भी यही कोशिश करती है कि अपने राज्य में सभी कोनों में, सभी गाँवों में चारों तरफ लाइट और पानी का प्रबन्ध जरूर हो। तो पाण्डव गवर्मेन्ट क्या कर रही है? ज्ञान गंगायें चारों ओर जा रही हैं, पावर हाउस से चारों ओर लाइट का कनेक्शन जा रहा है। जैसे ऊपर से किसी भी शहर को या गाँव को देखो तो कहाँ-कहाँ रोशनी है, नजदीक की रोशनी है या दूर-दूर है, वह दृश्य स्पष्ट दिखाई देता है। बापदादा भी वतन से दृश्य देख रहे थे कि कितने तरफ लाइट है और कितने तरफ अभी तक लाइट नहीं पहुँची है। रिजल्ट को तो आप लोग भी जानते हो कि देश विदेश में अभी तक कई स्थान रहे हुए हैं जहाँ अभी कनेक्शन्स देने हैं। जैसे लाइट और पानी बिगर उस स्थान की वैल्यु नहीं होती। ऐसे जहाँ आध्यात्मिक लाइट और ज्ञान जल की पूर्ति नहीं हुई है, वहाँ की चैतन्य आत्मायें किस स्थिति में हैं। अंधकार में, प्यास में भटक रहीं हैं, तड़प रहीं हैं। ऐसी आत्माओं की वैल्यु क्या बताते हो? चित्र बनाते हो ना - कौड़ी तुल्य और हीरे तुल्य। लाइट और ज्ञान जल मिलने से कौड़ी से हीरा बन जाते हैं। तो वैल्यु बढ़ जाती है ना। बापदादा देख रहे थे कि देश विदेश से आये हुए बच्चे पावर हाउस से विशेष पावर लेकर अपने-अपने स्थान पर जा रहे हैं।

एक तरफ तो बच्चों के स्नेह में बापदादा समझते हैं कि मधुबन अर्थात् बापदादा के घर का श्रृंगार जा रहे हैं। जब भी बच्चे मधुबन में आते हैं तो मधुबन की रौनक या स्वीट होम की झलक क्या हो जाती है। बच्चे भी महसूस करते हैं कि मधुबन की रौनक बढ़ाने वाले हमारे स्नेही साथी आये हैं। जैसे आप लोग वहाँ याद करते हो, चलते फिरते, उठते बैठते मधुबन की स्मृति सदा ताजी रहती है वैसे बापदादा और मधुबन निवासी भी आप सबको याद करते हैं। स्नेह के साथ-साथ सेवा भी विशेष सबजेक्ट है - इसलिए स्नेह से तो समझते हैं यहाँ ही बैठ जाऍ। लेकिन सेवा के हिसाब से चारों ओर जाना ही पड़े। हाँ ऐसा भी समय आयेगा जो जाना नहीं पड़ेगा लेकिन एक ही स्थान पर बैठे-बैठे चारों ओर के परवाने स्वत: शमा पर आयेंगे। यह तो छोटा सा सैम्पुल देखा कि आबू हमारा ही है। अभी तो किराये पर मकान लेने पड़े ना। फिर भी थोड़ी सी रौनक देखी। ऐसा समय आयेगा जो चारों ओर फरिश्ते नज़र आयेंगे। अभी मुख द्वारा सेवा का पार्ट चल रहा है और अभी कुछ रहा हुआ है इसलिए दूर-दूर जाना पड़ता है। अभी श्रेष्ठ संकल्प की शक्तिशाली सेवा जो पहले भी सुनाई है, अन्त में उसी सेवा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई देगा। हमें कोई बुला रहा है कोई दिव्य बुद्धि द्वारा, शुभ संकल्प का बुलावा हो रहा है, ऐसे अनुभव करेंगे। कोई दिव्य दृष्टि द्वारा बाप और स्थान को देखेंगे। दोनों प्रकार के अनुभवों द्वारा बहुत तीव्रगति से अपने श्रेष्ठ ठिकाने पर पहुँच जायेंगे। इस वर्ष क्या करेंगे?

प्रयत्न अच्छा किया है। इस वर्ष रहे हुए स्थानों को लाइट तो देंगे ही। लेकिन हर स्थान की विशेषता इस वर्ष यही दिखाओ कि हर सेवाकेन्द्र उसमें भी विशेष बड़े-बड़े केन्द्र जो हैं उसमें यह लक्ष्य रखो जैसे कभी धर्म सम्मेलन करते हो तो सभी धर्म वाले इक्ट्ठे करते हो या राजनीतिक को बुलाते हो, साइंस वालों को विशेष बुलाते हो, अलग-अलग प्रकार के स्नेह मिलन करते हो, तो इस वर्ष हर स्थान पर सर्व प्रकार के विशेष आक्यूपेशन वाले, सम्बन्ध में आने वाले तैयार करो। तो जैसे अभी ऐसे कहते हैं कि यहाँ काले गोरे सब प्रकार की वैरायटी है। एक स्थान पर सर्व रंग, देश, धर्म वाले हैं, ऐसे यह कहें कि यहाँ सर्व आक्युपेशन वाले हैं। विशेष आत्मायें एक ही गुलदस्ते में वैरायटी फूलों के मिसल दिखाई दें। हर सेन्टर पर हर आक्युपेशन वाली विशेष आत्माओं का संगठन हो। जो दुनिया में यह आवाज बुलन्द हो कि यह एक बाप एक ही सत्य ज्ञान सर्व आक्युपेशन वालों के लिए कितना सहज और सरल है अर्थात् हर सेवास्थान की स्टेज पर सर्व आक्यूपेशन वाले इकट्ठे दिखाई दें। कोई भी आक्यूपेशन वाला रह न जाए। गरीब से लेकर साहूकार तक, गाँव वालों से लेकर बड़े शहर वाले तक, मजदूर से लेकर बड़े से बड़े उद्योगपति तक सर्व प्रकार की विशेष आत्माओं की अलौकिक रौनक दिखाई दे, जिससे कोई भी यह नहीं कह सके कि क्या यह ईश्वरीय ज्ञान सिर्फ इन्हीं के लिए है। सर्व का बाप सर्व के लिए है - बच्चे से लेकर परदादे तक सभी ऐसा अनुभव करें कि विशेष हमारे लिए यह ज्ञान है। जैसे आप सभी ब्राह्मणों के मन से, दिल से एक ही आवाज निकलती है कि हमारा बाबा है, ऐसे विश्व के कोने-कोने से, विश्व के हर आक्यूपेशन वाली आत्मा दिल से कहे कि हमारे लिए बाप आये हैं, हमारे लिए ही यह ज्ञान सहारा है। ज्ञान दाता और ज्ञान दोनों के लिए सब तरफ से सब प्रकार की आत्माओं से यही आवाज निकले। वैसे सर्व आक्यूपेशन वालों की सेवा करते भी रहते हो लेकिन हर स्थान पर सब वैरायटी हो। और फिर ऐसे वैरायटी आक्यूपेशन वालों का गुलदस्ता बापदादा के पास ले आओ। तो हर सेवाकेन्द्र विश्व की सर्व आत्माओं के संगठन का एक विशेष चैतन्य म्युज़ियम हो जायेगा। समझा। जो भी सम्पर्क में हैं, उन्हों को सम्बन्ध में लाते हुए सेवा की स्टेज पर लाओ। समय प्रति समय जो भी वी. आई. पीज. वा पेपर्स वाले आये हैं उन्हों को सेवा की स्टेज पर लाते रहो तो मुख से बोलने से भी वह मुख का बोल उन आत्माओं के लिए ईश्वरीय बन्धन में बन्धने का साधन बन जाता है। एक बार बोला कि बहुत अच्छा है और फिर सम्बन्ध से दूर हो गये तो भूल जाते हैं। लेकिन बार-बार बहुत अच्छा, बहुत अच्छा अनेकों के सामने कहते रहें, तो वह बोल भी उन्हों को अच्छा बनने का उत्साह बढ़ाता है, और साथ-साथ सूक्ष्म नियम भी है कि जितनों पर प्रभाव पड़ता है, उन आत्माओं का शेयर उनको मिल जाता है अर्थात् उन्हों के खाते में पुण्य की पूंजी जमा हो जाती है। और वही पुण्य की पूंजी अर्थात् पुण्य का श्रेष्ठ कर्म श्रेष्ठ बनने के लिए उन्हों को खींचता रहेगा इसलिए जो अभी डायरेक्ट बाप की भूमि से कुछ न कुछ ले गये हैं चाहे थोड़ा, चाहे बहुत लेकिन उन्हों से दान कराओ अर्थात् सेवा कराओ। तो जैसे स्थूल धन का फल सकामी अल्पकाल का राज्य मिलता है वैसे इस ज्ञान धन वा अनुभव के धन दान करने से भी नये राज्य में आने का पात्र बना देगा। बहुत अच्छे प्रभावित हुए, अब उन प्रभावित हुई आत्माओं द्वारा सेवा कराए उन आत्माओं को भी सेवा के बल द्वारा आगे बढ़ाओ और अनेकों के प्रति निमित्त बनाओ। समझा क्या करना है! सर्विस वृद्धि को तो पा ही रही है और पाती रहेगी लेकिन अब क्लास स्टूडेन्टस में वैरायटी बनाओ।

अभी तो विदेश वालों का मिलने का साकार रूप का इस वर्ष के लिए सीजन का पार्ट पूरा हो रहा है। लेकिन देश वालों का तो आह्वान हो रहा है, सुनाया ना साकार वतन में तो समय का नियम बनाना पड़ता है और आकारी वतन में इस बन्धन से मुक्त हैं। अच्छा।

चारों ओर के उमंग-उत्साह वाले सेवाधारी बच्चों को, सदा बाप के साथ-साथ अनुभव करने वाले समीप आत्मायें बच्चों को, सदा एक ही याद में एकरस रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

 

12-11-17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा''


रिवाइज:21-03-83 मधुबन


"गीता पाठशाला चलाने वाले भाई-बहनों के सम्मुख अव्यक्त महावाक्य"

आज परम आत्मा अपने महान आत्माओं से मिलने आये हैं। बापदादा सभी बच्चों को महान आत्मायें देखते हैं। दुनिया वाले जिन आत्माओं को महात्मा कहते, ऐसे महात्मायें भी आप महान आत्माओं के आगे क्या दिखाई देंगे? सबसे बड़े से बड़ी महानता जिससे महान बने हो, वह जानते हो?

जिन आत्माओं को, विशेष माताओं को हर बात में अयोग्य बना दिया है, ऐसी अयोग्य आत्माओं को योग्य अर्थात् बाप के भी अधिकारी आत्मायें बना दिया। जिनको चरणों की जूती समझा है, बाप ने नयनों का नूर बना दिया। जैसे कहावत है नूर नहीं तो जहान नहीं। ऐसे ही बापदादा भी दुनिया को दिखा रहे हैं - भारत माता शक्ति अवतार नहीं तो भारत का उद्वार नहीं। ऐसे अयोग्य आत्माओं से योग्य आत्मा बनाया। तो महान आत्मायें बन गये ना! जिन्होंने भी बाप को जाना और जानकर अपना बनाया वह महान हैं। पाण्डवों ने भी जाना है और अपना बनाया है वा सिर्फ जाना है? अपना बनाने वाले हो ना। जानने की लिस्ट में तो सभी हैं। अपना बना लेना इसमें नम्बरवान बन जाते हैं।

अपना बनाना अर्थात् अपना अधिकार अनुभव होना और अधिकार अनुभव होना अर्थात् सर्व प्रकार की अधीनता समाप्त होना। अधीनता अनेक प्रकार की है। एक है स्व की स्व प्रति अधीनता। दूसरी है सर्व के सम्बन्ध में आने की। चाहे ज्ञानी आत्मायें, चाहे अज्ञानी आत्मायें दोनों के सम्बन्ध सम्पर्क द्वारा अधीनता। तीसरी है - प्रकृति और परिस्थितियों द्वारा प्राप्त हुई अधीनता। तीनों में से किसी भी अधीनता के वश हैं तो सिद्ध है सर्व अधिकारी नहीं हैं।

अभी अपने को देखो कि अपना बनाना अर्थात् अधिकारी बनने का अनुभव सदा और सर्व में होता है! वा कभी-कभी और किस बात में होता है और किसमें नहीं होता है। बापदादा बच्चों के श्रेष्ठ तकदीर को देख हर्षित भी होते हैं क्योंकि दुनिया की अनेक प्रकार की आग से बच गये। आज का मानव अनेक प्रकार की आग में जल रहा है और आप बच्चे शीतल सागर के कण्ठे पर बैठे हो। जहाँ सागर की शीतल लहरों में, अतीन्द्रिय सुख की, शान्ति की प्राप्ति में समाये हुए हो। एटामिक बाम्बस या अनेक प्रकार के बाम्बस की अग्नि ज्वाला जिससे लोग इतना घबरा रहे हैं, वह तो सिर्फ सेकण्डों की, मिनटों की बात है। लेकिन आजकल के अनेक प्रकार के दु:ख, चिन्तायें समस्यायें यह भिन्न-भिन्न प्रकार की चोट जो आत्माओं को लगती है, यह अग्नि जीते हुए जलाने का अनुभव कराती है। न जिंदा हैं, न मरे हुए हैं। न छोड़ सकते, न बना सकते। ऐसे जीवन से निकल श्रेष्ठ जीवन में आ गये हो - इसलिए सदा सर्व के प्रति रहम आता है ना, तब तो घर-घर में सेवाकेन्द्र बनाया है। बहुत अच्छा सेवा का लक्ष्य रखा है। अब तो गाँव गाँव या मोहल्ले में हैं, लेकिन अब गली-गली में ज्ञान-स्थान हो। भक्ति में देव-स्थान बनाते हैं लेकिन यहाँ घर-घर में ब्राह्मण आत्मा हो। जैसे घर घर में और कुछ नहीं तो देवताओं के चित्र जरूर होंगे। ऐसे घर घर में चैतन्य ब्राह्मण आत्मा हो। गली गली में ज्ञान-स्थान हो तब हर गली में प्रत्यक्षता का झण्डा लहरायेंगे। अभी तो सेवा बहुत पड़ी है। फिर भी बच्चों ने हिम्मत रख जितनी भी सेवा की है, बापदादा हिम्मतवान बच्चों को मुबारक देते हैं और सदा मदद लेते हुए आगे बढ़ने की शुभ आर्शीवाद भी देते हैं। और फिर जब घर-घर में दीपक जागकर दीपावली मनाकर आयेंगे तो इनाम भी देंगे।

बापदादा को यह देख खुशी है कि महान आत्माओं को भी चैलेन्ज करने वाले पवित्र प्रवृत्ति का सबूत दिखाने वाले, हद के घर को बाप की सेवा का स्थान बनाने वाले, सपूत बच्चों का प्रत्यक्ष पार्ट बजा रहे हैं, इसलिए बापदादा ऐसे सेवाधारी बच्चों को देख सदा हर्षित रहते हैं। इसमें भी संख्या ज्यादा माताओं की है। अगर पाण्डव किसी भी बात में आगे जाते हैं तो शक्तियों को सदा खुशी होती है। बापदादा भी पाण्डवों को आगे करते हैं। पाण्डव स्वयं भी शक्तियों को आगे रखना जरूरी समझते हैं। पहली कोशिश क्या करते हो? मुरली कौन सुनावे? इसमें भी ब्रह्मा बाप को फालो करते हो। शिव बाप ने ब्रह्मा माँ को आगे बढ़ाया और ब्रह्मा माँ ने सरस्वती माँ को आगे बढाया। तो फालो फादर मदर हो गया ना। सदैव यह स्मृति में रखो कि आगे बढ़ाने में आगे बढ़ना समाया हुआ है। जबसे बापदादा ने माताओं के ऊपर नज़र डाली तब से दुनिया वालों ने भी ‘लेडीज़ फर्स्ट' का नारा जरूर लगाया। नारा तो लगाते हैं ना। भारत की राजनीति में भी देखो तो सभी पुरूष भी नारी के लिए महिमा तो गाते हैं ना। ऐसे तो पाण्डव भी किसी हिसाब से नारियाँ ही हो। आत्मा नारी है और परमात्मा पुरूष है। तो क्या हुआ। आत्मा कहती है, आत्मा कहता है - ऐसे नहीं कहा जाता। कुछ भी बन जाओ लेकिन नारी तो हो। परमात्मा के आगे तो आत्मा नारी है। आशिक नहीं हो? सर्व सम्बन्ध एक बाप से निभाने वाले हो। यह तो वायदा है ना। यह तो बापदादा बच्चों से रूहरिहान कर रहे हैं। सभी सिकीलधे बच्चे सदा एक बाप दूसरा न कोई, इसी अनुभव में सदा रहने वाले हैं। ऐसे बच्चे ही बाप समान श्रेष्ठ आत्मायें बनते हैं। अच्छा -

ऐसे सदा सेवा के उमंग-उत्साह में रहने वाले, सदा सर्व आत्माओं प्रति श्रेष्ठ कल्याण की भावना रखने वाले, श्रेष्ठ हिम्मत द्वारा बापदादा के मदद के पात्र आत्मायें - ऐसे सेवास्थान के निमित्त बने हुए महान आत्माओं को परम आत्मा का यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:जिम्मेवारी की स्मृति द्वारा सदा अलर्ट रहने वाले शुभभावना, शुभ कामना सम्पन्न भव!

आप बच्चे प्रकृति और मनुष्यात्माओं की वृत्ति को परिवर्तन करने के जिम्मेवार हो। लेकिन यह जिम्मेवारी तब ही निभा सकेंगे जब आपकी वृत्ति शुभ भावना, शुभ कामना से सम्पन्न, सतोप्रधान और शक्तिशाली होगी। जिम्मेवारी की स्मृति सदा अलर्ट बना देगी। हर आत्मा को मुक्ति-जीवनमुक्ति दिलाना, वर्से के अधिकारी बनाना यह बहुत बड़ी जिम्मेवारी है इसलिए कभी अलबेलापन न आये, वृत्ति साधारण न हो।

स्लोगन:अपने हर कर्म द्वारा सहारेदाता बाप को प्रत्यक्ष करो तो अनेक आत्माओं को किनारा मिल जायेगा।
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Details ( Page:- Murali 13-Nov 2017 )
HINGLISH SUMMARY - 13.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban

Mithe Mithe bacche - Avgoono ko nikaal saaf dil bano, sachchai aur pavitrata ka goon dharan karo to seva me safalta milti rahegi.

Q- Tum Brahman baccho ki karmathit avastha kab aur kaise banengi?

A- Jab ladhai ka samaan poora taiyaar ho jayega tab tum sabki karmathit avastha numbervar ban jayegi. Abhi race chal rahi hai. Karmathit banne ke liye purani duniya se buddhi nikal jani chahiye. Shiv Baba jinse 21 janmo ka varsha milta hai unke sibaye dusra koi yaad na aaye, poora pavitra bano.

Dharna Ke liye mukhya Saar:-

1) Baap ka bankar maya ke bas nahi hona hai. Karmathit banne ka purusharth karna hai. Baap ko bhool nasthik nahi banna hai.

2) Buddhi se behad ka sanyas karna hai. Behad khushi me rahkar bishal buddhi ban seva karni hai.

Vardaan:-- Sab kuch Baap hawale kar double light rehne wale Baap samaan Nyare-Pyare bhava.-

Slogan:-- Maryadaon ki lakeer ke andar rehne wale he Maryada Purushottam hain.

 

HINDI DETAIL MURALI

13/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - अवगुणों को निकाल साफ दिल बनो, सच्चाई और पवित्रता का गुण धारण करो तो सेवा में सफलता मिलती रहेगी

प्रश्न:तुम ब्राह्मण बच्चों की कर्मातीत अवस्था कब और कैसे बनेंगी?

उत्तर:

जब लड़ाई का सामान पूरा तैयार हो जायेगा तब तुम सबकी कर्मातीत अवस्था नम्बरवार बन जायेगी। अभी रेस चल रही है। कर्मातीत बनने के लिए पुरानी दुनिया से बुद्धि निकल जानी चाहिए। शिवबाबा जिनसे 21 जन्मों का वर्सा मिलता है उनके सिवाए दूसरा कोई याद आये, पूरा पवित्र बनो।

गीत:-मुखडा देख ले प्राणी...   ओम् शान्ति।

जबकि बेहद का बाप बच्चों को मिला है और बच्चों ने पहचाना है, अब हर एक महसूस करते हैं कि हम कितना पाप आत्मा थे और कितना पुण्य आत्मा बन रहे हैं। जितना-जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना ज़रूर बाप को फालो करेंगे। बच्चों के आगे एक तो यह चित्र है और देलवाड़ा मंदिर भी पूरा यादगार है। गीत भी गाते हैं दूरदेश के... अब पराये देश, पतित शरीर में आये हैं। बाप खुद कहते हैं यह पराया देश है। पराया किसका? रावण का। तुम भी पराये देश अथवा रावणराज्य में हो। भारतवासी पहले राम राज्य में थे। इस समय पराये अर्थात् रावण राज्य में हैं। शिवबाबा तो विचार सागर मंथन नहीं करते। यह ब्रह्मा विचार सागर मंथन कर समझाते हैं कि यह जो जैनी लोग हैं उनका यह देलवाड़ा मंदिर है। यह जो चैतन्य होकर गये हैं उनका ही जड़ यादगार है। आदि देव आदि देवी भी बैठे हैं। ऊपर में स्वर्ग है। अब अगर जो उन्हों के भगत हैं उन्हों को ज्ञान मिले तो अच्छी तरह समझ सकते हैं कि बरोबर नीचे राजयोग की शिक्षा ले रहे हैं। ऊपर में भी प्रवृत्ति मार्ग, नीचे भी प्रवृत्तिमार्ग। कुवारी कन्या, अधर कन्या का चित्र भी है। अधरकुमार और कुमार भी हैं। तो मंदिर में आदि देव ब्रह्मा भी बैठा है और बच्चे भी बैठे हैं। अब तुम समझ गये हो कि ब्रह्मा सरस्वती ही राधे कृष्ण बनते हैं। ब्रह्मा की आत्मा का बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है। यह बाप और बच्चों का यादगार है। ऐसे तो नहीं हज़ार लाख चित्र रखेंगे। मॉडल में थोड़े चित्र रखे जाते हैं। यह है जड़ और हमारा है चैतन्य। जिन्होंने कल्प पहले भारत को स्वर्ग बनाया है, उन्हों का यादगार है। जगत अम्बा, जगत पिता और उनके बच्चे हैं। मैजारिटी माताओं की होने कारण बी.के.नाम लिख दिया है। मंदिर में भी कुवारी कन्या और अधर देवी है। अन्दर जायेंगे तो हाथियों पर मेल्स के चित्र हैं। यह सब बातें तुम बच्चे ही समझ सकते हो।

तुम अभी स़ाफ दिल बनते हो। आत्मा से अवगुण निकाल रहे हो। तुम्हारी मम्मा किसको समझाती थी तो उनको तीर लग जाता था। उनमें सच्चाई, पवित्रता थी। थी भी कुमारी। मम्मा का नाम पहले आता है। पहले लक्ष्मी फिर नारायण। अब बाप कहते हैं मम्मा जैसे गुण धारण करो। अवगुणों को निकालते जाओ। नहीं निकालेंगे तो पद भ्रष्ट हो जायेंगे। सपूत बच्चों का काम है हर एक बात समझना। पहले तुम बेसमझ थे। अब बाबा समझदार बनाते हैं। अज्ञान में बच्चे खराब होते हैं तो बाप का नाम बदनाम करते हैं। यह तो बेहद का बाप है। ब्रह्माकुमार कुमारियाँ कहलाकर फिर ईश्वर बाप का नाम बदनाम करेंगे तो उनका क्या हाल होगा। ऐसा काम क्यों करना चाहिए जो पद भी भ्रष्ट हो और बहुतों का नुकसान भी हो। तो बाप ने समझाया है दूरदेश से आते हैं पराये देश में। फिर रावण राज्य द्वापर से शुरू होता है। भक्ति भी द्वापर से शुरू होती है, इस समय सबकी तमोप्रधान, जड़जड़ीभूत अवस्था है। यह बेहद का पुराना झाड़ है। बेहद का ज्ञान कोई दे सके। बेहद का सन्यास कोई करा सके। वह हद का सन्यास कराते हैं। बेहद का बाप बेहद की पुरानी दुनिया का सन्यास कराते हैं। आत्माओं को समझाते हैं हे बच्चे, यह पुरानी दुनिया है। तुम्हारे अब 84 जन्म पूरे हुए हैं। महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है। विनाश अवश्य होना ही है इसलिए बेहद के बाप और वर्से को याद करो। हे आत्मायें सुनती हो? हम आत्मा हैं, परमात्मा बाप हमको पढ़ाते हैं। जब तक यह पक्का निश्चय नहीं, गोया कुछ भी नहीं समझेंगे। पहले यह निश्चय करें कि हम आत्मा अविनाशी हैं। हम अशरीरी आत्मा शरीर में आकर प्रवेश करती हैं। नहीं तो आदमशुमारी वृद्धि को कैसे पाये। जैसे आत्मायें परमधाम से आकर शरीर में प्रवेश करती हैं वैसे परमपिता परमात्मा भी इस शरीर में प्रवेश कर कहते हैं - तुम हमारे बच्चे हो। तुम मुझ सागर के बच्चे जलकर खाक हो गये हो। अब मैं आया हूँ तुमको पावन बनाकर वापिस घर ले जाने के लिए। जो विकार में जास्ती जाते हैं उनको ही पतित भ्रष्टाचारी कहा जाता है। यह सारी दुनिया ही विकारी है इसलिए ड्रामा प्लैन अनुसार मैं रावण के देश में आया हूँ। 5 हज़ार वर्ष पहले भी आया था। हर कल्प आता हूँ और आता भी हूँ संगमयुगे। बच्चों को मुक्ति, जीवनमुक्ति देने आता हूँ। सतयुग में है जीवनमुक्ति। बाकी सब मुक्ति में रहते हैं। तो भी इतनी सब जो आत्मायें हैं उनको ले कौन जायेगा? बाप को ही लिबरेटर और गाइड कहा जाता है। बाप ही आकर भक्तों को भक्ति का फल देते हैं। तुम ही पुजारी से पूज्य बनते हो। बाबा कोई और तकलीफ नहीं देते। देलवाड़ा मंदिर में चित्र बरोबर ठीक हैं। बच्चे योग में बैठे हैं, उन्हों को शिक्षा देने वाला कौन है? परमपिता परमात्मा का चित्र भी है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा सतयुग की स्थापना कर रहे हैं। यहाँ भी चित्र में देखो झाड़ के नीचे तपस्या कर रहे हैं। ब्रह्मा, सरस्वती की भी माँ हो गई। गाया भी जाता है त्वमेव माताश्च पिता... निराकार को कैसे कह सकते। इसमें उसने प्रवेश किया है तो यह माता बनी ना। सन्यासी तो निवृत्ति मार्ग वाले हैं - अपने मुख से कहते हैं कि यह हमारे फालोअर्स हैं। वे कहते हैं हम फालोअर्स हैं। यहाँ तो माता पिता दोनों हैं, इसलिए कहते हैं त्वमेव माताश्च पिता... बन्धू भी हैं। जिसमें प्रवेश करते हैं वह भी पढ़ते रहते हैं, तो सखा भी बन जाते हैं। शिवबाबा कहते हैं मैंने ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया है। तुम राजयोग सीख रहे हो। शिवबाबा को अपना शरीर तो है नहीं। वहाँ मंदिर में लिंग रखा है। देलवाड़ा का अर्थ कोई समझ सकें। अधरकुमारी, कुँवारी कन्या भी है, सिखलाने वाले शिव का भी चित्र है। स्वर्ग का मालिक बनाने वाला ज़रूर उस्ताद चाहिए। वहाँ कृष्ण की बात नहीं। जहाँ ब्रह्मा बैठा है - वहाँ कृष्ण कैसे आये। कृष्ण की आत्मा तपस्या कर रही है, सुन्दर बनने के लिए। अभी वह श्याम है। ऊपर में वैकुण्ठ के सुन्दर चित्र खड़े हैं। ब्राह्मण ब्राह्मणियां ही फिर देवता बनेंगे। तुम्हें ऐसा बनाने वाला सबसे ऊंचा है। तो यह देलवाड़ा मंदिर भी सबसे ऊंचा है।

तुम बच्चे ज्ञान तो सबको देते हो लेकिन कई समझते हैं कि ज्ञान में आकर पति पत्नी दोनों साथ रहते पवित्र रहें - यह तो बहुत बड़ी ताकत है। परन्तु यह नहीं समझते कि यह सर्वशक्तिमान् बाप की ताकत है। बाप देखो स्वर्ग की कितनी भीती देते हैं। बच्चे पवित्र बनो तो स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे। माया के तूफान तो बहुत आयेंगे। बाप कहते हैं बच्चे तुम कितना फर्स्टक्लास थे। तुमको क्या हो गया? बाबा झट बतायेंगे, इस समय ब्राह्मणों की माला में नम्बरवार कौन-कौन हैं। परन्तु सब कायम नहीं रहेंगे। कमाई में दशायें बैठती हैं ना। किसको राहू की दशा बैठती है तो फिर छोड़ चले जाते हैं - पुरानी दुनिया में। कहते हैं हमसे मेहनत नहीं होती है। बाबा को याद नहीं कर सकते। नहीं कहने से नास्तिक बन जाते हैं। दशायें फिरती रहती हैं। माया के तूफान आने से ढीले हो जाते हैं। अगर भागन्ती हो गया तो समझेंगे श्याम बन गया। यहाँ आते हैं - सुन्दर बनने। तुम ब्राह्मण कुल वाले श्याम से सुन्दर बन रहे हो। यहाँ बहुत जबरदस्त कमाई है। बच्चे जानते हैं मम्मा बाबा, लक्ष्मी-नारायण बनेंगे। बच्चे कहते हैं बाबा हम भी आप जैसा पुरुषार्थ कर ज़रूर तख्तनशीन बनेंगे। वारिस बनेंगे। परन्तु फिर भी ग्रहचारी बैठ जाती है। चलन भी अच्छी चाहिए। तुम्हारा धन्धा है घर-घर में सन्देश पहुँचाना कि शिवबाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे। विनाश सामने खड़ा है - तुम निमंत्रण देते रहो। तुम्हारी दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जायेगी। सेन्टर्स खुलते जायेंगे। यह इतना बड़ा मकान भी कम पड़ जायेगा। आगे चल कितने मकान चाहिए। ड्रामा में आने वालों के लिए प्रबन्ध भी ज़रूर चाहिए। बच्चे अपने लिए सब कुछ कर रहे हैं। तो बच्चों को बेहद की खुशी होनी चाहिए। परन्तु माया घड़ी-घड़ी बुद्धियोग तोड़ देती है। अभी माला बन नहीं सकती - अन्त में रुद्र माला बनेगी, फिर विष्णु की माला बन जायेगी। बाबा कितना अच्छी रीति समझाते हैं। अम्बा के मंदिर के आगे भी अपना सेन्टर होना चाहिए जो सबको समझाया जाए, तो अभी यह ज्ञान ज्ञानेश्वरी है। वहाँ भी भीड़ मच जायेगी। तुम सिर्फ काम करो, पैसे छम-छम कर जायेंगे। ड्रामा में पहले से नूंधा हुआ है। तुम 10 सेन्टर खोलो, बाबा ग्राहक दे देंगे। परन्तु सेन्टर ही नहीं खोल सकते। कलकत्ते जैसे शहर में तो बहुत सेन्टर खुलने चाहिए। हिम्मते बच्चे मददे बाप, किसको भी टच कर देंगे। काम तुमको करना है। बहुरूपी के बच्चे तुम बहुरूप धारण कर यह सर्विस कर सकते हो। कहाँ भी जाकर बहुतों का कल्याण कर सकते हो। जैनियों की भी सर्विस करनी है। बहुत अच्छे बड़े-बड़े जैनी हैं। परन्तु बच्चों की इतनी विशाल बुद्धि नहीं है, जो सर्विस करें। कुछ देह-अभिमान रहता है। अच्छा !

मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) बाप का बनकर माया के वश नहीं होना है। कर्मातीत बनने का पुरुषार्थ करना है। बाप को भूल नास्तिक नहीं बनना है।

2) बुद्धि से बेहद का सन्यास करना है। बेहद खुशी में रहकर विशाल बुद्धि बन सेवा करनी है।

वरदान:सब कुछ बाप हवाले कर डबल लाइट रहने वाले बाप समान न्यारे-प्यारे भव!

डबल लाइट का अर्थ है सब कुछ बाप हवाले करना। तन भी मेरा नहीं। ये तन सेवा अर्थ बाप ने दिया है। आपका तो वायदा है कि तन-मन-धन सब तेरा। जब तन ही अपना नहीं तो बाकी क्या रहा। तो सदा कमल पुष्प का दृष्टान्त स्मृति में रहे कि मैं कमल पुष्प समान न्यारा और प्यारा हूँ। ऐसे न्यारे रहने वालों को परमात्म प्यार का अधिकार मिल जाता है।

स्लोगन:मर्यादाओं की लकीर के अन्दर रहने वाले ही मर्यादा पुरूषोत्तम हैं।

 

मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य


सतोगुणी, रजोगुणी, तमोगुणी यह तीन शब्द कहते हैं इसको यथार्थ समझना जरूरी है।

 मनुष्य समझते हैं यह तीनों गुण इकट्ठे चलते रहते हैं, परन्तु विवेक क्या कहता है - क्या यह तीनों गुण इकट्ठे चले आते हैं वा तीनों गुणों का पार्ट अलग-अलग युग में होता है? विवेक तो ऐसे ही कहता है कि यह तीनों गुण इकट्ठे नहीं चलते जब सतयुग है तो सतोगुण है, द्वापर है तो रजोगुण है और कलियुग है तो तमोगुण है। जब सतो है तो तमो रजो नहीं, जब रजो है तो फिर सतोगुण नहीं है। यह मनुष्य तो ऐसे ही समझकर बैठे हैं कि यह तीनों गुण इकट्ठे चलते आते हैं। यह बात कहना सरासर भूल है, वो समझते हैं जब मनुष्य सच बोलते हैं, पाप कर्म नहीं करते हैं तो वो सतोगुणी होते हैं परन्तु विवेक कहता है जब हम कहते हैं सतोगुण, तो इस सतोगुण का मतलब है सम्पूर्ण सुख गोया सारी सृष्टि सतोगुणी है। बाकी ऐसे नहीं कहेंगे कि जो सच बोलता है वो सतोगुणी है और जो झूठ बोलता है वो कलियुगी तमोगुणी है, ऐसे ही दुनिया चलती आती है। अब जब हम सतयुग कहते हैं तो इसका मतलब है सारी सृष्टि पर सतोगुण सतोप्रधान चाहिए। हाँ, कोई समय ऐसा सतयुग था जहाँ सारा संसार सतोगुणी था। अब वो सतयुग नहीं है, अभी तो है कलियुगी दुनिया गोया सारी सृष्टि पर तमोप्रधानता का राज्य है। इस तमोगुणी समय पर फिर सतोगुण कहाँ से आया! अब है घोर अन्धियारा जिसको ब्रह्मा की रात कहते हैं। ब्रह्मा का दिन है सतयुग और ब्रह्मा की रात है कलियुग, तो हम दोनों को मिला नहीं सकते।

2) “इस कलियुगी दुनिया में कोई सार नहीं है, यह असार संसार है

इस कलियुगी संसार को असार संसार क्यों कहते हैं? क्योंकि इस दुनिया में कोई सार नहीं है माना कोई भी वस्तु में वो ताकत नहीं रही अर्थात् सुख शान्ति पवित्रता नहीं है, जो इस सृष्टि पर कोई समय सुख शान्ति पवित्रता थी। अब वो ताकत नहीं हैं क्योंकि इस सृष्टि में 5 भूतों की प्रवेशता है इसलिए ही इस सृष्टि को भय का सागर अथवा कर्मबन्धन का सागर कहते हैं इसलिए ही मनुष्य दु:खी हो परमात्मा को पुकार रहे हैं, परमात्मा हमको भव सागर से पार करो इससे सिद्ध है कि जरुर कोई अभय अर्थात् निर्भयता का भी संसार है जिसमें चलना चाहते हैं इसलिए इस संसार को पाप का सागर कहते हैं, जिससे पार कर पुण्य आत्मा वाली दुनिया में चलना चाहते हैं। तो दुनियायें दो हैं, एक सतयुगी सार वाली दुनिया, दूसरी है कलियुगी असार की दुनिया। दोनों दुनियायें इस सृष्टि पर होती हैं। अच्छा

ओम् शान्ति।

 
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Details ( Page:- Murali 14-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 14.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe bacche - Tum roohani yatra par ho, tumhe wapis is mrutyulok me nahi aana hai, tumhara udesya hai manushya se devta banna aur banana.
Q- 16 kala sampoorn banne walo ki nishaani kya hogi?
A- Wo apni jholi gyan ratno se achchi tarah se bharkar dusro ko bhi bharenge. Gyan ratno ka daan kar apna martaba oonch banayenge. 2-Wo pakke Mahavir honge, unhe maya zara bhi hila nahi sakti. Wo akhand-achal suru se ant tak chalte rahenge.
Q- Paapo se mukt ho punya aatma banne ki yukti kya hai?
A- Is antim janm ki kahani Baap ko soonakar raye lo. Saath-saath Baap ko yaad karte gyan ratno ka daan karte raho to punya aatma ban jayenge.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap samaan manushya aatmaon ko jiyadaan dena hai. Behad ke Baap se daan lekar dusro ko dena hai. Mahadani zaroor banna hai.
2) Swadarshan chakradhari ban Ravan ka seer katna hai. Behad ka bairagi ban bikaro ka sannyas karna hai.
Vardaan:- Drama me samasyaon ko khel samajh accurate part bajane wale Hero Partdhari bhava.
Slogan:-- Jo sada prashann rehte hain wohi prasansa ke patra hain.
 
HINDI DETAIL MURALI
14/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - तुम रूहानी यात्रा पर होतुम्हें वापिस इस मृत्युलोक में नहीं आना हैतुम्हारा उद्देश्य है मनुष्य से देवता बनना और बनाना
 
प्रश्न:16 कला सम्पूर्ण बनने वालों की निशानी क्या होगी?
उत्तरवह अपनी झोली ज्ञान रत्नों से अच्छी तरह से भरकर दूसरों की भी भरेंगे। ज्ञान रत्नों का दान कर अपना मर्तबा ऊंच बनायेंगे। 2- वह पक्के महावीर होंगेउन्हें माया जरा भी हिला नहीं सकती। वह अखण्ड-अचल शुरू से अन्त तक चलते रहेंगे 
 
प्रश्न:पापों से मुक्त हो पुण्य आत्मा बनने की युक्ति क्या है?
उत्तर:
इस अन्तिम जन्म की कहानी बाप को सुनाकर राय लो। साथ-साथ बाप को याद करते ज्ञान रत्नों का दान करते रहो तो पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
 
गीत:-   भोलेनाथ से निराला...  ओम् शान्ति।
बाबा ने ओम् का अर्थ समझाया है। बाप भी कहते हैं - ओम् शान्ति। ओम् शान्ति। आत्मा का अपना स्वरूप वा लक्ष्य शान्ति है। आत्मा का धर्म शान्त है। बाबा भी अपना परिचय देते हैं। जैसे परमपिता परमात्मा का परिचय वैसे आत्माओं का। मनुष्य ओम् का अर्थ कितना लम्बा करते हैं। ओम् अर्थात् भगवान भी कह देते हैं। भोलानाथ की भी महिमा है। भोलानाथ शंकर को नहीं कहेंगे क्योकि शंकर आदि-मध्य-अन्त का राज़ नहीं समझाते हैं। वह तो भोलानाथ ही बताते हैं। भोलानाथ वर्सा देते हैं - शंकर वर्सा नहीं देते। ऐसे भी नहीं शंकर कोई शान्ति देते हैं। नहीं। शान्ति देने लिए भी साकार में आकर समझाना पड़े। शंकर तो साकार में आते नहीं। भोलानाथ ही शान्तिसुखसम्पत्तिबड़ी आयु भी देते हैं। हर चीज़ अविनाशी देते हैं क्योंकि अविनाशी बाप हैवर्सा भी अविनाशी देते हैं। ड्रामा को भी अविनाशी कहा जाता है। हद के ड्रामा वा नाटक तो अभी बने हैं। यह तो अनादि ड्रामा है। यह बेहद का नाटक है। स्थूल नाटक मनुष्यों के होते हैं। वह रिपीट होते हैं। जैसे कंस वध का खेल बनाया है फिर वही खेल दिखायेंगे। यह बेहद का ड्रामा सतयुग से शुरू होता है। कलियुग अन्त तक खलास हो फिर रिपीट होता है। वर्ल्ड रिपीट कहा जाता है। कौन सी वर्ल्डबरोबर सतयुगी वर्ल्ड जो थी वह अब रिपीट होनी है। आधाकल्प के बाद पुरानी वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। नई को दिनपुरानी को रात कहा जाता है। यह सब बातें बाप समझाते हैं। वह है ज्ञान सागर। शुरू से लेकर अन्त तक ज्ञान लेना है। पढ़ना है। वह पढ़ाई 15-20 वर्ष चलती है। यह बड़ा भारी इम्तहान हैइनका उद्देश्य है मनुष्य से देवता बनना। जो भी सिर पर पाप हैं उनको जलाना है। इसके लिए बाबा ने रूहानी यात्रा सिखलाई है। जहाँ से वापिस इस मृत्युलोक में नहीं आना है। जिस्मानी यात्रा तो जन्म-जन्मान्तर बहुत कीतुम बच्चों ने आदि को भी जाना हैमध्य को भी जाना है। मध्य में कितनी बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। रावण राज्य शुरू होता है। भक्ति मार्ग शुरू होता है। मनुष्य भ्रष्टाचारी बनने शुरू होते हैं। सम्पूर्ण भ्रष्टाचारी बनने में आधाकल्प लगता है। माया का राज्य द्वापर से शुरू होता है। तो भक्ति और रावण राज्य दोनों नाम गिरने के हैं। भक्ति के बाद भगवान मिलेगा। बाप कहते हैं तुम सबसे जास्ती भक्ति करते हो। फिर ज्ञान भी तुम ही लेते हो। ज्ञान और भक्ति के संगम पर तुमको वैराग्य चाहिए। तुम सन्यास करते हो 5 विकारों का। उनको सिखलाने वाला शंकराचार्य हैउनका है हठ योग। अनेक प्रकार के योग सीखते हैं। घरबार छोड़ ब्रह्म के साथ योग रखते हैं। उनको तत्व ज्ञानीतत्व योगी कहते हैं। ज्ञान देते भी हैं तत्व का। समझते हैं चक्र फिरना हैहमको पार्ट बजाना है। यह बातें उनके आगे ऐसे हैं जैसे बन्दर के आगे डमरू बजायें। अब बन्दर मिसल मनुष्यों को मन्दिर लायक बनाने के लिए यह ज्ञान डांस करते हैंज्ञान डांस को उन्होंने डमरू नाम रख दिया है। और कहते हैं राम ने बन्दर सेना ली। बाबा समझाते हैं तुम सब बन्दर थे। शिवबाबा ज्ञान डमरू बजाए बन्दर से मन्दिर बनाते हैं। वह समझते हैं लंका में रावण का राज्य था। बाप कहते हैं सारी दुनिया सागर के बीच खड़ी है। इस समय सारी दुनिया में रावण राज्य है। वह हद की बातें सुनाते हैं। बाप तो बेहद का राज़ समझाते हैं। सारी दुनिया रावण की जंजीरों में फॅसी हुई है। सारी दुनिया को विकारों के कारण पतित कहा जाता है। पतित पुकारते हैं कि हे पतित-पावन आओआकर हमको पावन बनाओ। आत्मा को ही पावन बन वापिस घर जाना है।
तुम जानते हो एक बाप के बच्चे हम भाई बहन ठहरे। तो जरूर प्रजापिता ब्रह्मा भी चाहिए। शिवबाबा कहते हैं कि तुम निराकार आत्मायें शिव वंशी हो फिर साकार में भाई बहन बनते हो। निराकार में सब भाई-भाई हो। फिर प्रजापिता ब्रह्मा साकार में आते हैं तो तुमको भाई बहन बनाते हैं। रूहानी रीति से भाई-भाई जिस्मानी रीति से भाई बहन हो। तो यह निश्चय रखना है कि हम शिववंशी प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। वर्सा पाना है बाप से। बाप को अविनाशी सर्जन भी कहा जाता है। हर एक का कर्मबन्धन अलग-अलग है। बाप आकर कर्मअकर्म और विकर्म की गति समझाते हैं। हर एक को अपनी-अपनी जीवन कहानी सुनानी होती है। यह तो जानते हो द्वापर से लेकर तुम पतित बनते हो। अब यह तुम्हारा अन्तिम जन्म हैजो कुछ पाप किये हैं वह सब कुछ जमा होते आये हैं। अब हमको पुण्य जमा करने हैं। इतने जन्म के पाप कैसे कटें और हम पुण्य आत्मा कैसे बनेंबाप कहते हैं - मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और ज्ञान रत्नों का दान करना है। जो बहुत दान करेंगे वह ऊंच मर्तबा पायेंगे। भारत जैसा दान कोई करता नहीं। अब उनको मिलता कहाँ से हैबेहद का बाप सबसे बड़ा फ्लैन्थ्रोफिस्ट है। बाप आकर जीयदान देते हैं। झोली भरकर तृप्त कर देते हैं। अपनी झोली कम वा जास्ती भरना वह तो बच्चों के ऊपर है। नम्बरवार झोली भरते हैं। कितने ब्राह्मण ब्राह्मणियाँ हैं। कितने सेन्टर्स हैं। वृद्धि को पाते जायेंगे। शिवबाबा का सिज़रा है अविनाशी। यह फिर साकार सिजरा बनता है। ड्रामा अनुसार शूद्र से ब्राह्मण बनना ही है। तुम नहीं बनो - यह नहीं हो सकता। ड्रामा अनुसार इतने बनने हैं जितने ड्रामा अनुसार बने थेवही सतयुग के देवता बनते हैं। झाड वृद्धि को पाता रहता है। कितने झड़ भी जाते हैं। कोई तो ऐसे पक्के महावीर बनते हैं जो माया उनको हिला  सके। वह अखण्ड अचल रहते हैं। अखण्ड अर्थात् शुरू से लेकर चलते आते हैं। महावीर भी तुम बच्चों को कहा जाता है। अचल स्थिर बनना हैऐसा कोई कह  सके कि हम 16 कला बन गये हैं। नहीं। बनना जरूर है। 16 कला सम्पूर्ण बनने की निशानी क्या हैजो अच्छी रीति अपनी झोली भरकर औरों की भरते हैं। ड्रामा अनुसार कल्प पहले जिसने ज्ञान की धारणा की हैसो करेंगे। हम साक्षी होकर देखते हैं। पुरुषार्थ तो जरूर करना पड़े। पुरुषार्थ के बिगर प्रालब्ध नहीं मिल सकती। वह सब मनुष्यमनुष्य के द्वारा पुरुषार्थ करते हैं। शास्त्र भी मनुष्यों ने बनाये हैं। अब तुमको परमपिता परमात्मा की श्रीमत मिलती है। ऊंचे ते ऊंचा है भगवान। ऊंचे ते ऊंचा उनका ठाँव है। बाप आया है सुखधामशान्तिधाम का मालिक बनाने। सबको शान्तिधाम ले जाते हैं। कितना बड़ा बेहद का पण्डा है। वह एक हैबाकी जिस्मानी यात्रा पर ले जाने वाले तो अनेक पण्डे हैं। कुम्भ के मेले पर ढेर पण्डे होते हैं। यह सच्चा-सच्चा कुम्भ का मेला है। परन्तु पण्डा एक ही है। तुम हो पाण्डव सेना। उन्होने तो 5 पाण्डव दिखाये हैं। वास्तव में गायन इनका है। यह है शक्ति सेनावन्दे मातरम्। मुख्य है भारत। यह सबका माता-पिता हैसबको पावन बनाते हैं। कृष्ण को तो सब नहीं मानते। कृष्ण का नाम गीता में डालने के कारण भारत को इतना ऊंच तीर्थ समझते नहीं हैं। बाप कहते हैं गीता पढ़ते-पढ़ते मनुष्यों की क्या हालत हो गई है। बाप तो सबको वर्सा देते हैं। ज्ञान तो अथाह है। सागर को स्याही बनाओ तो भी बेअन्तअन्त नहीं पाया जाता। गीता में शिवाए नमके बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है। अब तुमको अन्धों की लाठी बनना है। बाप का परिचय देना है कि ऊंचे ते ऊंच कौन हैपरमपिता परमात्मा। वर्सा किससे मिलेगाउनसे। कल्प पहले भी ब्रह्मा द्वारा वर्सा लिया था। स्थापना हुई थी। वर्णों को जरूर फिरना है। तुम शूद्र से ब्राह्मण बनते हो। ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ रचा जाता है। तुम हो सच्चे ब्राह्मणवह हैं झूठे ब्राह्मण। भगवानुवाच - मैं तुम बच्चों को राजयोग सिखलाता हूँ। यहाँ तुमको भगवान पढ़ाते हैं। वहाँ मनुष्यमनुष्य को पढ़ाते हैं। सबको पहले बाप का परिचय देना है। परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध हैकितना भी समझाओ फिर भी कह देते हैं परमात्मा सर्वव्यापी है। पत्थरबुद्धि हैं। अरे हम सम्बन्ध पूछते हैंसर्वव्यापी का सम्बन्ध होता है क्याप्रदर्शनी करते जाओ तो वृद्धि होती जायेगी। तुमको बहुत वोट्स मिलती जायेंगी। बाबा लिखते रहते हैं - धर्म के नेताओं आदि को निमंत्रण देना है। फिर पहरा भी पूरा रखना है। अगर तुमने यह दो तीन बातें सिद्ध कर दी तो उन सबका धन्धा ही ठण्डा हो जायेगा।
तो बच्चों को सर्विस जोर-शोर से बढ़ानी है। बहुत समझते भी हैं। परन्तु बाहर निकले और खलास। सृष्टि चक्र को समझ ले वह मुश्किल हैं। ऐसे-ऐसे जो सही कर जाते हैं उनको फिर चिट्ठी लिखनी चाहिए कि तुम फार्म भरकर फिर सो गये क्योंमेहनत चाहिए परन्तु ड्रामा अनुसार जो बच्चों ने मेहनत की है वह ठीक है। ड्रामा में जो था सो रिपीट हुआ। जितनी सर्विस बढ़नी थीजितने ब्राह्मण बनने थे उतने बने हैं। वृद्धि होती जायेगी। कोई सेकेण्ड में बाप को पहचानेंगे। कोई 7 दिन मेंकोई एक मास मेंकोई चलते-चलते ठण्डे हो पड़ते हैं। फिर संजीवनी बूटी से खड़े हो जाते हैं। बच्चे जानते हैं - श्रीमत पर हम भारत को स्वर्ग बनाने के रेसपान्सिबुल बने हुऐ हैं। श्रीमत से स्वर्गवासी बनाना है। यह खेल है। अब तुम शिवालय में चलते हो। पहले तुम स्वर्गवासी थे फिर इतने जन्मों के बाद रावण ने नर्कवासी बनाना शुरू किया। अब पूरे नर्कवासीकंगाल बन गये हैं।
बाबा कहते हैं तुम बच्चे स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। रावण का सिर काटते हो। रावण दुश्मन पर जीत पाते हो। रावण फारेनर है। हमारा रामराज्य था। अब सारी दुनिया ने रावण से हराया है। यह शोक वाटिका है। सतयुग अशोक वाटिका है। यहां अशोका होटल नाम रखा है। जैसे सन्यासियों ने शिव नाम रखा है। शिव और विष्णु की माला मशहूर है। ब्राह्मणों की माला बन  सके। कृष्ण की भी माला बन  सके। यह है रुद्र माला। विष्णु की माला प्रवृत्ति मार्ग की है। मनुष्य कहेंगे इन जैसा पावन बनाओ। एम आबॅजेक्ट सामने खड़ा है। तुम श्याम से सुन्दर बन रहे हो। पुरानी दुनिया को लात मारते हो। कृष्ण की आत्मा गौरी थीइसलिए स्वर्ग का गोला उनके हाथ में दे दिया है। कृष्णनारायणशिव को भी काला कर दिया है। जो शिव सर्व का रचयिता हैउसे भी जानते नहीं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते 
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप समान मनुष्य आत्माओं को जीयदान देना है। बेहद के बाप से दान लेकर दूसरों को देना है। महादानी जरूर बनना है।
2) स्वदर्शन चक्रधारी बन रावण का सिर काटना है। बेहद का वैरागी बन विकारों का सन्यास करना है।
 
वरदान:ड्रामा में समस्याओं को खेल समझ एक्यूरेट पार्ट बजाने वाले हीरो पार्टधारी भव!
हीरो पार्टधारी उसे कहा जाता - जिसकी कोई भी एक्ट साधारण  होहर पार्ट एक्यूरेट हो। कितनी भी समस्यायें होकैसी भी परिस्थितियां हों किसी के भी अधीन नहींअधिकारी बन समस्याओं को ऐसे पार करें जैसे खेल-खेल में पार कर रहे हैं। खेल में सदा खुशी रहती हैचाहे कैसा भी खेल होबाहर से रोने का भी पार्ट हो लेकिन अन्दर रहे कि यह सब बेहद का खेल है। खेल समझने से बड़ी समस्या भी हल्की बन जायेगी।
स्लोगन:जो सदा प्रसन्न रहते हैं वही प्रशन्सा के पात्र हैं।
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Details ( Page:- Murali 15-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 15.11.17      Pratah Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Mithe bacche - Padhai achchi riti padhkar uska saboot do, service kar auro ko bhi layak banao tab oonch pad ke adhikari banenge.
Q- Is behad ke school me wah-wah kinho ki hoti hai?
A- Jo khud achchi riti padhte hain aur dusro ko aap samaan banane ki seva karte hain. Roohani kamayi me busy rehte hain. Sirf dusro ko dekh khush nahi hote lekin mata-pita samaan seva kar unke takht par baithte hain unki wah-wah mata-pita wa ananya bacche karte hain. Jo apna time waste karte, padhai par dhyan nahi dete, mata-pita ko follow nahi karte un par taras padta hai. Wo oonch pad pa nahi sakte. Unki sada complain rehti ki humara yog nahi lagta.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Baap ke direction ko amal me lana hai. Khaan-paan ki poori parhej rakhni hai. Yaad me rehkar bhojan khane ka abhyas karna hai.
2) Mata-pita ki tarah seva karni hai. Apne bado ka regard zaroor rakhna hai. Roohani social worker ban sabko Baap ka parichay dena hai.
Vardaan:- Sarvshaktimaan ke saath ki smruti dwara sada safalta ka anubhav karne wale Combined Roopdhari bhava.
Slogan:-- Sabki duwayein leni hai to haan ji karte huye sahayog ka haath badhate chalo.
 
HINDI DETAIL MURALI
15/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - पढ़ाई अच्छी रीति पढ़कर उसका सबूत दोसर्विस कर औरों को भी लायक बनाओ तब ऊंच पद के अधिकारी बनेंगे"
 
प्रश्नइस बेहद के स्कूल में वाह-वाह किन्हों की होती है?
उत्तर:
जो खुद अच्छी रीति पढ़ते हैं और दूसरों को आप समान बनाने की सेवा करते हैं। रूहानी कमाई में बिजी रहते हैं। सिर्फ दूसरों को देख खुश नहीं होते लेकिन मात-पिता समान सेवा कर उनके तख्त पर बैठते हैं उनकी वाह-वाह मात-पिता वा अनन्य बच्चे करते हैं। जो अपना टाइम वेस्ट करतेपढ़ाई पर ध्यान नहीं देतेमात-पिता को फालो नहीं करते उन पर तरस पड़ता है। वह ऊंच पद पा नहीं सकते। उनकी सदा कम्पलेन रहती कि हमारा योग नहीं लगता।
 
गीत:-धीरज धर मनुआ....  ओम् शान्ति।
बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं कि सुख के दिन आयेंगे अगर श्रीमत पर चलेंगे तो। फिर जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना ही श्रेष्ठ बनेंगे क्योंकि श्रेष्ठ अर्थात् श्रेष्ठाचारी तो सब बनेंगे परन्तु जो अच्छी रीति श्रीमत पर चलेंगे वह अच्छा श्रेष्ठाचारी बनेंगे। पढ़ाई में भी कोई अच्छी रीति पढ़ते हैंकोई कम पढ़ते हैं अथवा नहीं पढ़ते हैं।  पढ़ने वालों को बुरा माना जाता है। यह पढ़ाई भी कोई अच्छी रीति पढ़ते हैं तो औरों को पढ़ाने लायक भी बनते है। कोई तो ध्यान ही नहीं देते। यह भी बच्चे समझते हैं कि अगर हम कोई भी विद्या अच्छी रीति पढ़ेंगे तो ऐसा ही लायक बनेंगेनहीं तो नालायक बनेंगे। लायक को जरूर अच्छा दर्जा मिलेगा। तुम अभी सुखधाम के लिए पढ़ते हो फिर उसमें भी नम्बरवार मर्तबे हैं। मनुष्य मर्तबे के लिए कितना माथा मारते हैं। वह है अल्पकाल का सुखकाग विष्टा समान सुख। यह तो अथाह सुख है। जो बच्चे श्रीमत पर चलेंगेवही अथाह सुख पा सकेंगे और वह ब्राह्मण कुल में भी अपना नाम निकालेंगे। बाप का बच्चों को फरमान है - सर्विस कर औरों को भी ऊंचे ते ऊंचा पद दिलाओ तो तुम्हारा भी पद ऊंचा हो जायेगा। अच्छी रीति पढ़कर फिर बाप को सबूत देना है। बाबा हमने इतनों को बाबा का परिचय दिया। प्रदर्शनी में भी पहले-पहले बाप का परिचय देते हो। परिचय देकर फिर लिखवा लो। समझाना बहुत सहज है। बाप दो होते हैं लौकिक और पारलौकिक। लौकिक से हद का वर्सा मिलता हैजिसको काग विष्टा समान सुख कहा जाता है। बेहद का बाप बेहद का सुख देतेस्वर्ग का मालिक बनाते हैं। तो बच्चों को सर्विस कर आप समान बनाना है। बाप को सिर्फ याद नहीं करना हैलेकिन उन जैसी सर्विस भी करना है। कृष्ण अथवा किसको भी याद करनाउनके गुण  धारण करनावह क्या काम के। उनसे फल कुछ नहीं मिलता। भक्ति मार्ग में भी देवताओं को याद करते-करते नीचे उतरते जाते हैं। अब मम्मा बाबा भी सद्गति करने की सर्विस में लगे हुए हैं। जो मॉ बाप मुआफिक सर्विस करते हैंवही सच्चे माँ बाप के बच्चे हैं। नहीं तो कच्चे कहा जाता है। बाप भी खुश तब हो जब देखे कि मेरे लाड़ले बच्चे मेरे समान सर्विस करते हैं। लौकिक रीति में भी जो बच्चे अच्छी रीति पढ़ते हैं वह बाप के दिल पर चढ़ते हैं। अच्छी कमाई करते हैं। यह भी तुमको रूहानी कमाई करनी हैसिर्फ दूसरों को देख खुश नहीं होना है। पढ़ाई पढ़कर और पढ़ाकर ऊंच पद पाना हैतब माँ बापअनन्य बच्चे उनकी वाह-वाह करेंगे।
यह बेहद का स्कूल है। हजारों यहाँ पढ़ते हैं। जो अच्छी रीति नहीं पढ़ते वह खुद भी समझते होंगे कि हमारा योग पूरा नहीं लगता है। वह बच्चे बाप की दिल पर चढ़ नहीं सकते। बच्चे बने हैं तो माँ बाप पालना तो करते हैं ना। फिर भी बाप समझाते हैं मात-पिता और अनन्य बच्चों को फालो करो। सर्विस तो बहुत करनी है। वह सोशल वर्कर करोड़ों की अन्दाज में होंगे। तुमको रूहानी सोशल वर्कर बनना है। अगर ज्ञान है तो। नहीं तो समझेंगे पूरा ज्ञान नहीं है। ज्ञान के बदले अज्ञान जास्ती है जिस कारण पद भ्रष्ट हो जायेगाऊंच पद पा नहीं सकेंगे। बाप को तरस पड़ता है। हर पढ़ाई में पुरुषार्थ जरूर चाहिए। पुरुषार्थ बिगर पास हो नहीं सकेंगे। कोई दो तीन बारी फेल होता है तो अपना टाइम वेस्ट गँवाते हैं। तो कम पढ़ने वालों को जो अच्छी रीति पढ़ते हैं उनका रिगार्ड रखना चाहिए क्योंकि वह बड़े भाई बहन हो जाते हैं। मम्मा बाबा मिसल सर्विस करते हैं। अच्छी सर्विस करने वालों को जहाँ तहाँ बुलाते हैं। तो समझना चाहिए क्यों  हम पुरुषार्थ कर ऐसा बनें। औरों को आप समान बनावें। बेहद के बाप का परिचय देना है कि उनसे कैसे बेहद का वर्सा मिलता है। वह बेहद का बाप जन्म-मरण रहित सदा सुख देने वाला है। बाप दो हैं एक आत्माओं का बापदूसरा अलौकिकतब तुम बापदादा कहते हो। लौकिक सम्बन्ध में भी बापदादा होता है। यह फिर पारलौकिक बापदादा। लौकिक से अल्पकाल का सुख मिलतापारलौकिक बाप से तुम भविष्य 21 पीढ़ी की प्रालब्ध पाते हो। लौकिक बाप से अल्पकाल सुख का वर्सा जन्म बाई जन्म मिलता है। जन्म लेते जाओ दूसरा बाप मिलता जाये। सतयुग त्रेता में यहाँ का वर्सा 21 जन्म चलता है। भल बाप दूसरे-दूसरे मिलते जायेंगे परन्तु हम सुखधाम में ही रहते हैं। फिर द्वापर से माया का राज्य शुरू होता है फिर हमारी धीरे-धीरे उतरती कला होती है। यह बुद्धि में रहना चाहिए। जब उतरते हैं तो जल्दी-जल्दी जन्म लेते जाते हैं। आधाकल्प में 21 जन्म लेते हैं बाकी आधाकल्प में 63 जन्म क्योंपतित होने से जल्दी-जल्दी उतरते जाते हैं। जब बाप आये तो हम एकदम उतर गये थे। अभी तुम संगमयुगी ब्राह्मण बने हो। भल तुम्हारा कलियुग के साथ कनेक्शन है। परन्तु अपने को संगमयुगी समझते हो। जानते हो बाबा हमको परमधाम का मालिक बना रहे हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते हुए तुम समझते हो वह कलियुग में रहने वाले हैंहम संगमयुग में रहने वाले हैं। वह विकारी बगुले हैंहम निर्विकारी हंस हैं। सिर्फ बाहर से नहीं दिखाना है। अन्तर्यामी बाबा अन्दर से जानते हैं।
बाप समझाते रहते हैं बच्चे कोई पाप कर्म नहीं करो। कहा जाता है कख का चोर सो लख का चोर। एक बार चोरी करते हैं फिर एक दो वर्ष शक्य रहता है। शक मुश्किल ही मिटता है। तो ऐसा काम करना ही क्यों चाहिए। यह सब काम माया कराती है। जब माया माथा मूड लेती है तब स्मृति आती हैहमने यह क्या कियाफिर बाबा से क्षमा मांगते हैं। बाबा कहते हैं अच्छा बच्चे हर्जा नहींफिर नहीं करना। अच्छा हुआ जो भूल बताई। नहीं तो वृद्धि हो जाती। बाबा को लिखते हैं हमने क्रोध कियाकाला मुहँ किया। अपना भी तो स्त्री का भी किया। बाबा लिखते हैं बाप का बनकर प्रतिज्ञा कर काला मुहँ कियाब्राह्मण कुल को कलंक लगायासज़ा के अधिकारी बन जायेंगे। ऊंचे ते ऊंचा है ब्राह्मण कुलदेवताओं से भी ऊंचा है। तुम ब्राह्मण भारत को पतित से पावन बनाते हो। तुमने सतयुग त्रेता में 21 जन्म राज्य भाग्य किया तब सुन्दर थे फिर 63 जन्म काम चिता पर बैठ काले हो गयेतब श्याम बने। कहते हैं सागर के बच्चे काम चिता पर बैठ खत्म हो गये। फिर सागर ने ज्ञान वर्षा की तो जाग पड़े। गोरे हो गये। इस कृष्ण की आत्मा को 84 जन्म जरूर लेने हैं। 21जन्म सुन्दर, 63 जन्म श्याम। अब उनकी लात पुरानी दुनिया तरफ हैमुँह नई दुनिया तरफ है। जो नम्बरवन पूज्य था वही पुजारी बन अब लास्ट नम्बर में है। खुद ही पुजारी बन नारायण की पूजा करते थे। अब खुद ही पूज्य नारायण बनते हैंइनको ही फर्स्ट नम्बर में जाना है। ब्रह्मा का दिन स्वर्गब्रह्मा की रात नर्क। शिवबाबा आते हैं रात को दिन बनाने। अब आधाकल्प की रात पूरी होदिन होता है। शिवरात्रि कहते हैं परन्तु शिव के बदले कृष्ण का नाम कह दिया है कि कृष्ण का जन्म रात को हुआ। है शिवबाबा की बात। शिवबाबा की तिथि तारीख वेला का कुछ भी पता नहीं कि किस समय आया। कृष्ण की वेला है। वह पुनर्जन्म में आने वाला है। शिवबाबा तो झट आकर परिचय देने लग पड़ते हैं। कुछ समय तो पता ही नहीं पड़ा कि यह कौन आया हैकौन बोल रहे हैंबाद में मालूम पड़ा कि यह तो शिवबाबा ज्ञान का सागर है। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना करते हैं। ब्रह्मा यहाँ है। कृष्णपुरी भी यहाँ है। लक्ष्मी-नारायण के तख्त पिछाड़ी विष्णु का चित्र होता है। परन्तु ज्ञान कुछ भी नहीं। जैसे गवर्मेन्ट का त्रिमूर्ति चित्र है। यह समझने की बात है। बच्चे जास्ती नहीं समझते हैंभला लौकिक पारलौकिक बाप का कान्ट्रास्ट तो समझते हो ना। याद भी करते हैं हे पतित-पावनहे रहमदिलहे दु: हर्ता सुख कर्ता। सतयुग में कोई याद नहीं करते। बाप यहाँ ही सब मनोकामना पूरी कर देते हैं। सतयुग में तुमको इतना अथाह धन मिलता है जो वहाँ माथा मारने की दरकार ही नहीं। तुमको श्रीमत पर चलना चाहिए। जो नहीं चलते गोया निधनके हैंउनको कहा जाता है बगुला। तोहंसों को बगुलों के साथ भी रहना पड़ता है। गृहस्थ व्यवहार में तो रहना ही है इसलिए रिपोर्ट आती है भाई झगड़ा करताफलाना झगड़ा करतादुनिया में झगड़ा ही झगड़ा है। पवित्रता पर भी झगड़ा चलता है। खान-पान की परहेज रखनी होती है। तो बहुतों के लिए मुशीबत हो जाती है। बाप कितना समझाते हैंयाद में रहकर भोजन खाओ। डायरेक्शन अमल में नहीं लाते हैं। प्रैक्टिस करनी चाहिए। तुम हो पतित दुनिया को पावन बनाने वाली शक्तियाँ। याद से पाप भस्म हो जाते हैं। मेहनत है बहुत इसलिए कोटों में कोई निकलता है। पुरुषार्थ करते भी फेल हो जाते हैं। आश्चर्यवत बाबा का बनन्तीबाबा बाबा कहन्ती। फिर भी श्रीमत पर नहीं चलतेतो गिरन्तीभागन्ती। माया खींचती है तो बाप को फारकती दे देते हैं। कल्प पहले जो हुआ है वही रिपीट होना हैइसमें मेहनत चाहिए। जो श्रीमत पर चलते वही धारणा कर सकते हैं। मम्मा बाबा कहकर फालो नहीं करेंगे तो दुर्गति को पायेंगे अर्थात् कम पद पायेंगे। अनपढ़ेपढ़े के आगे भरी ढोयेंगे। नौकर चाकर बनेंगे। जो ब्राह्मण नहीं बनते वह प्रजा में पाई पैसे का पद पायेंगे। और कोई धर्म स्थापन करने वाला राजाई नहीं स्थापन करते। बेहद का बाप ही भविष्य के लिए राजाई स्थापन करते हैं। पवित्र बनने के लिए पुरुषार्थ करना पड़े। तुम फूल बनते होजो विकार में जाते हैं वह काँटे बनते हैं। एक दो को आदि-मध्य-अन्त दु: देते हैं। यह है काँटों की दुनिया। अब तुम संगम पर फूल बन रहे हो। सतयुग है फूलों का बगीचा। संगम पर जंगल से बगीचा बनता है। यह है कल्याणकारी संगम अथवा कुम्भ। आत्मा परमात्मा का मिलन होता है। अभी तुम जानते हो हम परमपिता परमात्मा से 21 जन्म का वर्सा ले रहे हैं। राजाई पाने में मज़ा है। बाकी यह कहना कि तकदीर में होगा तो मिलेगाइससे क्या होगा। बेहद बाप का परिचय देना है। तुम अनुभवी होसर्विस तो करनी है। दिल से पूछना है कि हमने कितनों की सर्विस की। ज्ञान है तो सर्विस में लग जाना है। नो ज्ञान तो नो सर्विसतो नो ऊंच पद। तकदीर में नहीं है तो पुरुषार्थ भी नहीं करते। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी सर्विसएबुल बच्चों प्रति रूहानी बाप  दादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप के डायरेक्शन को अमल में लाना है। खान-पान की पूरी परहेज रखनी है। याद में रहकर भोजन खाने का अभ्यास करना है।
2) मात-पिता की तरह सेवा करनी है। अपने बड़ों का रिगार्ड जरूर रखना है। रूहानी सोशल वर्कर बन सबको बाप का परिचय देना है।
 
वरदानसर्वशक्तिमान् के साथ की स्मृति द्वारा सदा सफलता का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव!
सर्वशक्तिमान् बाप को अपना साथी बना लो तो शक्तियां सदा साथ रहेंगी। और जहाँ सर्व शक्तियां हैं वहाँ सफलता  हो - यह असम्भव है। लेकिन यदि बाप से कम्बाइन्ड रहने में कमी हैमाया कम्बाइन्ड रूप को अलग कर देती है तो सफलता भी कम हो जाती हैमेहनत करने के बाद सफलता होती है। मास्टर सर्वशक्तिमान् के आगे सफलता तो आगे पीछे घूमती है।
स्लोगन:सबकी दुआयें लेनी हैं तो हाँ जी करते हुए सहयोग का हाथ बढ़ाते चलो।

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Details ( Page:- Murali 16-Nov-2017 )
 
HINGLISH SUMMARY - 16.11.17      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe Mithe bacche - tumhe Manushya se Devta banna hai,isiliye Devi fazilat(manners) dharan karo,ashuri avgoono ko chhodte jao,pawan bano
Q- Devi manners dharan karne walo ki parakh kis ek baat se ho sakti hai?
A- Service se.Kahan tak patit se pawan bane hain aur kitno ko pawan banane ki seva karte hain!Achche purusharthi hain ya abhi tak ashuri avgoon hain? yah sab service se pata chalta hai. Tumhari yah Ishwariya mission hai he Devi fazilat sikhlane ki.Tum shrimat par patit manushya ko pawan banane ki seva karte ho.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1)Baap ke saath bafadar,farmanbardar hokar rehna hai. Kabhi kisi ko dukh nahi dena hai.
2) Baap se poora varsha lene ke liye pavitra banne ka purusharth karna hai. Kaam ki chot kabhi nahi khani haiIsse bahut savdhan rehna hai.
Vardaan:--Apni shrest dhristi,briti dwara shristi ka parivartan karne wale Biswa ke Aadharmurt bhava.-
Slogan:--Nyare aur adhikari bankar karm karo to koi bhi bandhan apne bandhan me baandh nahi sakta.
 
HINDI DETAIL MURALI
16/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे “मीठे बच्चे - तुम्हें मनुष्य से देवता बनना है, इसलिए दैवी फजीलत (मैनर्स) धारण करो, आसुरी अवगुणों को छोड़ते जाओ, पावन बनो
प्रश्न: दैवी मैनर्स धारण करने वालों की परख किस एक बात से हो सकती है?
उत्तर:
सर्विस से। कहाँ तक पतित से पावन बने हैं और कितनों को पावन बनाने की सेवा करते हैं! अच्छे पुरुषार्थी हैं या अभी तक आसुरी अवगुण हैं? यह सब सर्विस से पता चलता है। तुम्हारी यह ईश्वरीय मिशन है ही दैवी फजीलत सिखलाने की। तुम श्रीमत पर पतित मनुष्य को पावन बनाने की सेवा करते हो।
गीत: ओम नमो शिवाए  ………ओम् शान्ति।
भक्ति मार्ग में महिमा करते हैं-शिवाए नम: . ..... ऊंच ते ऊंच शिव, उनको ही शिव परमात्माए नम: कहा जाता है। ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम: कहा जाता है और शिव परमात्माए नम: ..... फर्क हुआ ना। परमात्मा एक है, वह ऊंच ते ऊंच है। उनकी महिमा भी ऊंच है। इस समय ऊंचे ते ऊंचा कर्तव्य करते हैं। उनका धाम भी ऊंचे ते ऊंचा है। नाम भी ऊंच है और किसको परमात्मा नहीं कहते। परमात्मा के लिए ही गायन है-हे पतित-पावन, आते भी हैं पतित दुनिया और पतित शरीर में। पतित शरीर का नाम है प्रजापिता ब्रह्मा। इसमें प्रवेश कर कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त वाले साधारण मनुष्य तन में प्रवेश करता हूँ। सूक्ष्मवतन वासी सम्पूर्ण ब्रह्मा में नहीं आते हैं। खुद कहते हैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में आता हूँ। बहुत जन्म लेते ही हैं राधे-कृष्ण। उनके बहुत जन्मों के अन्त का जन्म साधारण है। ऐसे तो कहते नहीं हैं कि मैं पावन शरीर में प्रवेश करता हूँ। भगवानुवाच मैं साधारण तन में आता हूँ। अब भगवान जरूर आकरके इस साधारण तन द्वारा आत्माओं को बैठ समझाते हैं कि मैं परमपिता परमात्मा हूँ। मैं कृष्ण की आत्मा नहीं हूँ, न ब्रह्मा, विष्णु, शंकर की आत्मा हूँ। मैं परमपिता परमात्मा हूँ, जिसको शिव परमात्माए नम: कहा जाता है। मैं इसमें आया हूँ। मैं सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा में प्रवेश नहीं करता हूँ। मुझे तो यहाँ पतितों को पावन बनाना है। मेरे द्वारा ही वह सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा पावन बना है, इसलिए उनको सूक्ष्म में दिखाया है। कितना अच्छी रीति समझाते हैं। परन्तु मनुष्य सुनी अनसुनी कर उल्टी बातों पर चलते रहते हैं। आसुरी बुद्धि से सुनते हैं। ईश्वरीय बुद्धि से सुनें तो संशय सब मिट जायें। त्रिमूर्ति का चित्र दिखाने बिगर समझाना मुश्किल है। उन्होंने त्रिमूर्ति ब्रह्मा नाम रख दिया है क्योंकि शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की रचना रचते हैं। तुम बच्चे अभी सम्मुख बैठे हो। सब पतित से पावन बन रहे हैं। जितना जो बनेगा वह सर्विस से दिखाई पड़ेगा। यह अच्छा पुरुषार्थी है, इनमें अजुन अवगुण हैं। देवताओं में दैवीगुण थे। हर एक अपने आसुरी गुण और उन्हों के दैवीगुण वर्णन करते हैं। अभी आसुरी अवगुणों को छोड़ना है। नहीं तो ऊंच पद नहीं पा सकेंगे।
बाप समझाते हैं - बच्चे दैवीगुण धारण करो। खान-पान, चलन में फजीलत चाहिए। पतित मनुष्यों को बदफजीलत कहेंगे। देवतायें फजीलत (मैनर्स) वाले हैं, तब तो उन्हों का गायन है। हर एक को पुरूषार्थ करना है - जो करेगा, सो पायेगा। अब भगवान तुमको सहज राजयोग और ज्ञान सिखला रहे हैं। ज्ञान सागर एक बाप है, जो तुम्हें ज्ञान देकर सद्गति में ले जाते हैं। उन्हें ही सुखदेव भी कहा जाता है। तो यहाँ की सब बातें न्यारी हैं। जो ब्राह्मण बनने वाले होंगे उन्हों की ही बुद्धि में यह ज्ञान बैठेगा। बहुत करके पूछते हैं - दादा को ब्रह्मा क्यों बनाया है? बोलो, इन बातों को बैठकर समझो। हम तुमको इनके 84 जन्मों की कहानी सुनायें। सब ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारियाँ पावन बन देवता बन जायेंगे। पावन बनने बिगर वर्सा मिल नहीं सकता। भगवान ऊंच ते ऊंच निराकार शिवबाबा है। वर्सा देने के लिए जरूर ब्रह्मा तन में आयेगा। यह प्रजापिता ब्रह्मा है, सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा को प्रजापिता नहीं कहेंगे। वहाँ थोड़ेही प्रजा रचेंगे। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ साकार में हैं तो प्रजापिता ब्रह्मा भी साकार में है। यह राज आकर समझो। हम इस दादा को भगवान नहीं कहते। यह प्रजापिता है, इनके तन में शिवबाबा आते हैं, पावन बनाने। यहाँ कोई पावन है नहीं। त्रिमूर्ति शिव के बदले त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह दिया है। परन्तु त्रिमूर्ति ब्रह्मा का कोई अर्थ नहीं है। ब्रह्मा को मनुष्यों का रचयिता भी कहते हैं इसलिए प्रजापिता कहा जाता है। इसमें वह निराकार प्रवेश कर वर्सा देते हैं। सूक्ष्मवतन वासी ब्रह्मा पावन है। वह पतित से पावन बनते हैं। हम ब्राह्मण भी पतित से पावन देवता बनते हैं। शिव परमात्माए नम: कहा जाता है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को देवता कहा जाता है। भगवान ही भक्तों का रक्षक है। वही सबको सद्गति देंगे। पतित-पावन हैं तो जरूर आकर पतितों को पावन बनायेंगे। पहले-पहले पावन हैं लक्ष्मी-नारायण। वे जरूर पुनर्जन्म लेते होंगे। 84 जन्म पूरे होने से फिर साधारण मनुष्य बन जाते हैं। उनमें फिर बाप प्रवेश करते हैं। तो यह व्यक्त ब्रह्मा, वह अव्यक्त ब्रह्मा। सूक्ष्मवतन में सृष्टि नहीं रची जाती है। अक्सर करके लोग इस बात पर मूँझते हैं तो तुमको समझाना है, बाप कहते हैं मैं बहुत जन्मों अर्थात् 84 जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। भारत में पहले देवी-देवता आये, वह फिर पिछाड़ी में हो जायेंगे। फिर पहले वही जाकर देवी-देवता बनेंगे। विराट रूप का चित्र भी जरूर होना चाहिए। बच्चों ने अर्थ सहित बनाया है। ब्राह्मण चोटी, देवता सिर, क्षत्रिय भुजायें, वैश्य पेट, शूद्र पैर। शूद्र के बाद फिर ब्राह्मण। वर्णों का भी चक्र हुआ ना। यह भी समझना और समझाना है।
बाबा ने बहुत बार समझाया है कि अखबार में पड़ता है फलाना स्वर्गवासी हुआ, तो उनको चिठ्ठी लिखनी चाहिए कि स्वर्गवासी हुआ तो जरूर नर्क में था। और अब है ही नर्क तो जरूर पुनर्जन्म नर्क में लेंगे। अगर स्वर्ग में गया फिर तुम उनको बुलाकर नर्क का भोजन क्यों खिलाते हो? तुम रोते क्यों हो? परन्तु इतनी बुद्धि नहीं है जो समझें कि स्वर्ग की स्थापना तो बाप ही आकर करते हैं। राजयोग सिखलाते हैं। तुम ब्राह्मण संगम पर बाप से वर्सा ले रहे हो, बाकी सब हैं कलियुग में। संगम पर आत्मा परमात्मा मिल रहे हैं, इनको कुम्भ का मेला कहा जाता है। तुम ज्ञान गंगायें ज्ञान सागर से निकली हो। भक्ति में समझते हैं - गंगा में स्नान करने से पावन बन जायेंगे। पावन बनाना तो तुम्हारी मिशन का कर्तव्य है। यह है ईश्वरीय मिशन। तुम ही पतित मनुष्य को पावन देवता बनाते हो श्रीमत पर। श्रीकृष्ण पतित-पावन नहीं है। वह पूरे 84 जन्म लेते हैं। पहले हैं लक्ष्मी-नारायण फिर अन्त में ब्रह्मा सरस्वती। आदि देव, आदि देवी बनते हैं, अभी यह बातें किसने समझाई? शिव परमात्माए नम: गाते भी हैं - हे परमपिता परमात्मा आपकी गत मत सबसे न्यारी है। वह श्रीमत देते हैं गति के लिए। गति और सद्गति। दुगार्ति वालों की सद्गति करने वाला। उनकी श्रीमत सब मनुष्यों से न्यारी है। बाकी भक्ति मार्ग है घोर रात्रि, आधाकल्प है ज्ञान दिन। शिवबाबा कहते हैं मैं अन्धियारी रात में आता हूँ, रात को दिन बनाने। यह ज्ञान एक ही ज्ञान सागर शिवबाबा के पास है। ऋषि मुनि आदि सब कहते आये हैं कि परमात्मा बेअन्त है। बाप को नहीं जानते तो गोया नास्तिक ठहरे। आधाकल्प है नास्तिक, आधाकल्प है आस्तिक। तुम अब बाप को, बाप की रचना के आदि-मध्य- अन्त को जानते हो और कोई नहीं जानते इसलिए कहा जाता है - निधन के। अनेक धर्म अनेक मतें हो गई हैं। अब बाप कहते हैं इस पुरानी दुनिया का सन्यास करना है। याद करना है शान्तिधाम और सुखधाम को। जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। गृहस्थ व्यवहार में भल रहो सिर्फ पवित्र बनो। धन्धे बिगर गृहस्थ कैसे चलेगा। सिर्फ पवित्र बनना है और बाप को याद करना है। बाप कहते हैं मैं सोनार भी हूँ। तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों ही पतित हैं इसलिए तुम्हारी आत्मा जब पावन बनें तब फिर शरीर भी पावन मिले। सच्चे सोने का जेवर भी ऐसा बनेगा ना। अब तो आत्मा और शरीर दोनों ही आइरन एजड हैं। फिर पावन बनाने की युक्ति बाप बताते हैं इसलिए कहते हैं तुम्हारी गत मत, श्रीमत सबसे न्यारी है। अभी तुम जानते हो यह सद्गति का रास्ता कोई बतला नहीं सकते हैं। गायन होता है तो जरूर कुछ करके गये हैं। अभी कलियुग है फिर सतयुग होना है। संगम पर तुम बैठे हो। तुम ब्रह्मा वंशी ब्राह्मण हो। कमल फूल सम पवित्र रहते हो। तुम्हारी माया के साथ युद्ध है। माया से ही कई फेल हो जाते हैं। काम का घूँसा जोर से लगता है। बाबा कहते हैं खबरदार रहो। अगर गिरा तो फिर किसी को कह नहीं सकेंगे कि काम महाशत्रु है। बाप कहते हैं फिर भी पुरूषार्थ करो, एक बार हराया, दूसरी बार हराया फिर अगर तीसरी बार हराया तो खत्म। पद भ्रष्ट हो जायेगा। प्रतिज्ञा की है तो उस पर पूरा रहना है। प्रतिज्ञा कर फिर पतित नहीं बनना चाहिए। परन्तु सब तो प्रतिज्ञा पर कायम नहीं रहते हैं। गिरते भी रहते हैं। कोई फिर बाप को छोड़ भी देते हैं। बहुत भागने वाले भी हैं। अन्त में तुमको पूरा साक्षात्कार होगा कि कौन क्या बनेंगे! पुरूषार्थ पूरा करना चाहिए। जो दु:ख देते हैं वह दु:खी होकर मरते हैं। बाप तो सबको सुख देने वाला है। तुम्हारा भी काम है सबको सुख देना। कर्मणा में भी किसको दु:ख दिया तो दु:खी होकर मरेंगे। पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। बेहद के बाप के साथ पूरा फरमानबरदार, वफादार होकर रहना है । अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप के साथ वफादार, फरमानबरदार होकर रहना है। कभी किसी को दु:ख नहीं देना है।
2) बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए पवित्र बनने का पुरूषार्थ करना है। काम की चोट कभी नहीं खानी है। इससे बहुत सावधान रहना है।
वरदान:अपनी श्रेष्ठ दृष्टि, वृत्ति द्वारा सृष्टि का परिवर्तन करने वाले विश्व के आधारमूर्त भव
आप बच्चे विश्व की सर्व आत्माओं के आधारमूर्त हो। आपकी श्रेष्ठ वृत्ति से विश्व का वातावरण परिवर्तन हो रहा है, आपकी पवित्र दृष्टि से विश्व की आत्मायें और प्रकृति दोनों पवित्र बन रही हैं। आपकी दृष्टि से सृष्टि बदल रही है। आपके श्रेष्ठ कर्मो से श्रेष्ठाचारी दुनिया बन रही है, ऐसी जिम्मेवारी का ताज पहनने वाले आप बच्चे ही भविष्य के ताजधारी बनते हो।
स्लोगन:न्यारे और अधिकारी बनकर कर्म करो तो कोई भी बंधन अपने बंधन में बांध नहीं सकता।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य

अब यह जो हम कहते हैं कि प्रभु हम बच्चों को उस पार ले चलो, उस पार का मतलब क्या है? लोग समझते हैं उस पार का मतलब है जन्म मरण के चक्र में न आना अर्थात् मुक्त हो जाना। अब यह तो हुआ मनुष्यों का कहना परन्तु वो कहता है बच्चों, सचमुच जहाँ सुख शान्ति है, दु:ख अशान्ति से दूर है उसको कोई दुनिया नहीं कहते। जब मनुष्य सुख चाहते हैं तो वो भी इस जीवन में होना चाहिए, अब वो तो सतयुगी वैकुण्ठ देवताओं की दुनिया थी जहाँ सर्वदा सुखी जीवन थी, उसी देवताओं को अमर कहते थे। अब अमर का भी कोई अर्थ नहीं है, ऐसे तो नहीं देवताओं की आयु इतनी बड़ी थी जो कभी मरते नहीं थे, अब यह कहना उन्हों का रांग है क्योंकि ऐसे है नहीं। उनकी आयु कोई सतयुग त्रेता तक नहीं चलती है, परन्तु देवी देवताओं के जन्म सतयुग त्रेता में बहुत हुए हैं, 21 जन्म तो उन्होंने अच्छा राज्य चलाया है और फिर 63 जन्म द्वापर से कलियुग के अन्त तक टोटल उन्हों के जन्म चढ़ती कला वाले 21 हुए और उतरती कला वाले 63 हुए, टोटल मनुष्य 84 जन्म लेते हैं। बाकी यह जो मनुष्य समझते हैं कि मनुष्य 84 लाख योनियां भोगते हैं, यह कहना भूल है। अगर मनुष्य अपनी योनी में सुख दु:ख दोनों पार्ट भोग सकते हैं तो फिर जानवर योनी में भोगने की जरूरत ही क्या है। अब मनुष्यों को यह नॉलेज ही नहीं, मनुष्य तो 84 जन्म लेते हैं, बाकी टोटल सृष्टि पर जानवर पशु, पंछी आदि टोटल 84 लाख योनियां अवश्य हैं। अनेक किस्म की जैसे पैदाइश है, उसमें भी मनुष्य, मनुष्य योनी में ही अपना पाप पुण्य भोग रहे हैं। और जानवर अपनी योनियों में भोग रहे हैं। न मनुष्य जानवर की योनी लेता और न जानवर मनुष्य योनी में आता है। मनुष्य को अपनी योनी में (जन्म में) भोगना भोगनी पड़ती है तो दु:ख सुख की महसूसता आती है। ऐसे ही जानवर को भी अपनी योनी में सुख दु:ख भोगना है। मगर उन्हों में यह बुद्धि नहीं कि यह भोगना किस कर्म से हुई है? उन्हों की भोगना को भी मनुष्य फील करता है क्योंकि मनुष्य है बुद्धिवान, बाकी ऐसे नहीं मनुष्य कोई 84 लाख योनियां भोगते हैं। जड़ झाड़ भी योनी लेते हैं, यह तो सहज और विवेक की बात है कि जड़ झाड़ ने क्या कर्म अकर्म किया है जो उन्हों का हिसाब-किताब बनेगा, जैसे देखो गुरूनानक साहब ने ऐसे महावाक्य उच्चारण किये हैं - अन्तकाल में जो पुत्र सिमरे ऐसी चिंता में जो मरे सुअर की योनी में वल वल उतरे .. परन्तु इस कहने का मतलब यह नहीं है कि मनुष्य कोई स्कर की योनि लेता है परन्तु सूकर का मतलब यह है कि मनुष्यों का कार्य भी ऐसा होता है जैसे जानवरों का कार्य होता है। बाकी ऐसे नहीं कि मनुष्य कोई जानवर बनते हैं। अब यह तो मनुष्यों को डराने के लिये शिक्षा देते हैं। तो अपने को इस संगम समय पर अपनी जीवन को पलटाए पापात्मा से पुण्यात्मा बनना है। अच्छा - ओम् शान्ति।

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Details ( Page:- Murali 17-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 17.11.17      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe Mithe  Mithe bacche - Vishal buddhi ban poore Biswa ko dukhdham se sukhdham,patit se pawan banane ki seva karni hai,apna time safe karna ahi,byarth nahi gawana hai.
Q- Is gyan marg me healthy kaun hai aur unhealthy kaun hai?
A- Healthy wo hai jo bichar sagar manthan karte jeevan me ramanikta ka anubhav karta hai aur unhealthy wo hai jiska bichar sagar manthan nahi chalta. Jaise gau bhojan khati hai to sara din ugarti rehti hai,mukh chalta rehta hai.Mukh na chale to samjha jata hai bimar hai,yah bhi aise hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1)Amritvele ooth baba se mithi_mithi roohrihan karni hai,fir bhojan khate,kaamkaz karte baba ki yaad me rehna hai,deha ke sambandho ko bhool aatma bhai-bhai hoon,yah dhristi pakki karni hai.
2) Bikalpo par jeet prapt kar dukh sukh se nyari nirsankalp avastha me rehna hai.Kaydesir sabhi bikaro ki ahooti de yogyukt banna hai.
Vardaan:-- Divya goono roopi prabhu prasad khane aur khilane wale Sangam yugi Farishta so Devta bhava.
Slogan:-Sada umang-utsah me rehna-yahi Brahaman jeevan ka saans hai.
 
HINDI DETAIL MURALI
17/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे मीठे बच्चे विशाल बुद्धि बन पूरे विश्व को दु:खधाम से सुखधाम, पतित से पावन बनाने की सेवा करनी है, अपना टाइम सेफ करना है, व्यर्थ नहीं गंवाना है
प्रश्न:इस ज्ञान मार्ग में हेल्दी कौन हैं और अनहेल्दी कौन है?
उत्तर:
हेल्दी वह है जो विचार सागर मंथन करते जीवन में रमणीकता का अनुभव करता है और अनहेल्दी वह है जिसका विचार सागर मंथन नहीं चलता। जैसे गऊ भोजन खाती है तो सारा दिन उगारती रहती है, मुख चलता रहता है। मुख चले तो समझा जाता है बीमार है, यह भी ऐसे है।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे बेहद के बाप पास आते ही हैं रिफ्रेश होने लिए क्योंकि बच्चे जानते हैं बेहद के बाप से बेहद विश्व की बादशाही मिलती है। यह कभी भूलना नहीं चाहिए। यह सदैव याद रहे तो भी बच्चों को अपार खुशी रहे। बाबा ने यह बैज जो बनवाये हैं, इसे चलते-फिरते घड़ी-घड़ी देखते रहो। ओहो! भगवान की श्रीमत से हम यह बन रहे हैं। बस बैज़ को देख बाबा, बाबा करते रहो। तो सदैव स्मृति रहेगी। हम बाप द्वारा यह (लक्ष्मी-नारायण) बनते हैं। तो बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए ना। मीठे बच्चों की बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए। सारा दिन सर्विस के ही ख्यालात चलते रहें। बाबा को तो वह बच्चे चाहिए जो सर्विस बिगर रह सकें। तुम बच्चों को सारे विश्व पर घेराव डालना है अर्थात् पतित दुनिया को पावन बनाना है। सारे विश्व को दु:खधाम से सुखधाम बनाना है। अच्छे स्टूडेन्टस को देख टीचर को भी पढ़ाने में मज़ा आता है। तुम तो अभी स्टूडेन्ट के साथ-साथ बहुत ऊंच टीचर बने हो। जितना अच्छा टीचर, उतना बहुतों को आपसमान बनायेंगे। कभी थकेंगे नहीं। ईश्वरीय सर्विस में बहुत खुशी रहती है। बाप की मदद मिलती है। यह बड़ा बेहद का व्यापार भी है - व्यापारी लोग ही धनवान बनते हैं। वह इस ज्ञान मार्ग में भी जास्ती उछलते हैं। बाप भी बेहद का व्यापारी है ना। सौदा बड़ा फर्स्टक्लास है, परन्तु इसमें बड़ा साहस धारण करना पड़ता है। नये-नये बच्चे पुरानों से भी पुरुषार्थ में आगे जा सकते हैं। हर एक की इन्डीविज्युअल (व्यक्तिगत) तकदीर है, तो पुरुषार्थ भी हर एक को इन्डीविज्युअल करना है। अपनी पूरी चेकिंग करनी चाहिए। ऐसी चेकिंग करने वाले एकदम रात दिन पुरुषार्थ में लग जायेंगे। कहेंगे हम अपना टाइम वेस्ट क्यों करें, जितना हो सके टाइम सेफ करें। अपने से पक्का प्रण कर देते हैं, हम बाप को कभी नहीं भूलेंगे। स्कालरशिप लेकर ही छोड़ेंगे। ऐसे बच्चों को फिर मदद भी मिलती है। ऐसे भी नये-नये पुरुषार्थी बच्चे तुम देखेंगे, साक्षात्कार करते रहेंगे। जैसे शुरू में हुआ वही फिर पिछाड़ी में देखेंगे। जितना नज़दीक होते जायेंगे उतना खुशी में नाचते रहेंगे। उधर खूने नाहेक खेल भी चलता रहेगा।
तुम बच्चों की ईश्वरीय रेस चल रही है। जितना आगे दौड़ते जायेंगे उतना नई दुनिया के नज़ारे भी नज़दीक आते जायेंगे। खुशी बढ़ती जायेगी। जिनको नज़ारे नजदीक नहीं दिखाई पड़ते उनको खुशी भी नहीं होगी। अभी तो कलियुगी दुनिया से वैराग्य और सतयुगी नई दुनिया से बहुत प्यार होना चाहिए। शिवबाबा याद रहेगा तो स्वर्ग का वर्सा भी याद रहेगा। स्वर्ग का वर्सा याद रहेगा तो शिवबाबा भी याद रहेगा। तुम बच्चे जानते हो अभी हम स्वर्ग तरफ जा रहे हैं, पाँव नर्क तरफ हैं, सिर स्वर्ग तरफ है। अभी तो छोटे-बड़े सबकी वानप्रस्थ अवस्था है। बाबा को सदैव यह नशा रहता है ओहो! हम जाकर यह बाल (मिचनू) कृष्ण बनूँगा। जिसके लिए बच्चियां इनएडवान्स सौगातें भी भेजती रहती हैं। जिन्हों को पूरा निश्चय है वही गोपिकायें सौगातें भेजती हैं, उन्हें अतीन्द्रिय सुख की भासना आती है। हम ही अमरलोक में देवता बनेंगे। कल्प पहले भी हम ही बने थे फिर हमने 84 पुनर्जन्म लिए हैं। यह बाजोली याद रहे तो भी अहो सौभाग्य - सदैव अथाह खुशी में रहो। बड़ी लाटरी मिल रही है। 5000 वर्ष पहले भी हमने राज्यभाग्य पाया था फिर कल पायेंगे। ड्रामा में नूँध है। जैसे कल्प पहले जन्म लिया था वैसे ही लेंगे। वही हमारे माँ-बाप होंगे। जो कृष्ण का बाप था वही फिर बनेगा। ऐसे-ऐसे जो सारा दिन विचार सागर मंथन करते रहेंगे तो वो बहुत रमणीकता में रहेंगे। विचार सागर मंथन नहीं करते तो गोया अनहेल्दी हैं। गऊ भोजन खाती है तो सारा दिन उगारती रहती है, मुख चलता ही रहता है। मुख चले तो समझा जाता है बीमार है, यह भी ऐसे है।
बेहद के बाप और दादा दोनों का मीठे-मीठे बच्चों से बहुत लव है, कितना लव से पढ़ाते हैं। काले से गोरा बनाते हैं। तो बच्चों को भी खुशी का पारा चढ़ना चाहिए। पारा चढ़ेगा याद की यात्रा से। बाप कल्प-कल्प बहुत प्यार से लवली सर्विस करते हैं। 5 तत्वों सहित सबको पावन बनाते हैं। कितनी बड़ी बेहद की सेवा है। बाप बहुत प्यार से बच्चों को शिक्षा भी देते रहते क्योंकि बच्चों को सुधारना बाप वा टीचर का ही काम है। बाप की है श्रीमत, जिससे ही श्रेष्ठ बनेंगे। जितना प्यार से याद करेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे। यह भी चार्ट में लिखना चाहिए हम श्रीमत पर चलते हैं वा अपनी मत पर चलते हैं। श्रीमत पर चलने से ही तुम एक्यूरेट बनेंगे। जितनी बाप से प्रीति बुद्धि होगी उतनी गुप्त खुशी रहेगी और ऊंच बनेंगे। अपनी दिल से पूछना है इतनी अपार खुशी हमको है! बाप को इतना प्यार करते हैं! प्यार करना माना ही याद करना है। याद से ही एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनेंगे। पुरुषार्थ करना होता है और किसी की भी याद आये। एक शिवबाबा की ही याद हो, स्वदर्शन चक्र फिरता रहे तब प्राण तन से निकले। एक शिवबाबा दूसरा कोई। यही अन्तिम मंत्र है अथवा वशीकरण मंत्र, रावण पर जीत पाने का मंत्र है।
बाप समझाते हैं मीठे बच्चे इतना समय तुम देह-अभिमान में रहे हो अब देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस करो। दृष्टि का परिवर्तन होना ही निश्चयबुद्धि की निशानी है। सब देह के सम्बन्धों को भूल अपने को गॉडली स्टूडेन्ट समझो, आत्मा भाई-भाई की दृष्टि हो जाए, तब ही ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी भाई-बहन की दृष्टि पक्की हो जायेगी। सवेरे-सवेरे उठकर बाप को याद करो - नींद गई तो कमाई में घाटा पड़ जायेगा। अमृतवेले उठकर बाबा से मीठी मीठी रुहरिहान करो। बाबा आपने हमको क्या से क्या बना दिया, बाबा कमाल है आपकी। बाबा आप हमें अथाह खजाना देते हो, विश्व का मालिक बनाते हो! बाबा हम आपको कभी भूल नहीं सकते। भोजन खाते, कामकाज करते बाबा आपको ही याद करेंगे। ऐसे-ऐसे प्रतिज्ञा करते-करते फिर याद पक्की हो जायेगी। मोस्ट बिलवेड बाबा नॉलेजफुल भी है, ब्लिसफुल भी है। नम्बरवन पतित से हमको नम्बरवन पावन बनाते हैं। बस मीठे-मीठे बाबा की याद में गदगद होना चाहिए। बाबा को यह सुमिरण कर बहुत अन्दर में खुशी होती है। ओहो! मैं ब्रह्मा सो विष्णु बनूँगा! फिर 84 जन्मों बाद ब्रह्मा बनूँगा! फिर बाबा हमको विष्णु बनायेगा। फिर आधाकल्प बाद रावण पतित बनायेगा! कितना वन्डरफुल ड्रामा है! यह सुमिरण कर सदैव हर्षित रहता हूँ! शिवबाबा कितना लायक बनाते हैं। वाह तकदीर वाह! ऐसे-ऐसे विचार करते एकदम मस्ताना हो जाना चाहिए। वाह! हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं! बाकी हम बहुत अच्छी सर्विस करते हैं, इसमें ही सिर्फ खुश नहीं होना है। पहले गुप्त सर्विस अपनी यह (याद की) करते रहो। अशरीरी बनने करा अभ्यास करना है, इससे ही तुम्हारा कल्याण होना है। अभ्यास पड़ जाने से फिर घड़ी-घड़ी तुम अशरीरी हो जायेंगे। आज बाबा खास इस पर ज़ोर दे रहे हैं, जो यह अभ्यास करेंगे वही कर्मातीत अवस्था को पा सकेंगे और ऊंच पद पायेंगे। इसी अवस्था में बैठे-बैठे बाप को याद करते घर चल जायें। दिन-प्रतिदिन याद का चार्ट बढ़ाना चाहिए। देखना है तमोप्रधान से सतोप्रधान कितने परसेन्ट बनें हैं? किसको दु: तो नहीं देते हैं? किसी देहधारी में बुद्धि फंसी हुई तो नहीं है? बाप का सन्देश कितनों को देते हैं? ऐसा चार्ट रखो तो बहुत उन्नति होती रहेगी। अच्छा।
दूसरी मुरली:-
आज तुम बच्चों को संकल्प, विकल्प नि:संकल्प अथवा कर्म, अकर्म और विकर्म पर समझाया जाता है। जब तक तुम यहाँ हो तब तक तुम्हारे संकल्प जरूर चलेंगे। संकल्प धारण किए बिना कोई मनुष्य एक क्षण भी रह नहीं सकता है। अब यह संकल्प यहाँ भी चलेंगे, सतयुग में भी चलेंगे और अज्ञानकाल में भी चलते हैं, परन्तु ज्ञान में आने से संकल्प संकल्प नहीं, क्योंकि तुम परमात्मा की सेवा अर्थ निमित्त बने हो, तो जो यज्ञ अर्थ संकल्प चलता वह संकल्प संकल्प नहीं, वह निरसंकल्प ही है। बाकी जो फालतू संकल्प चलते हैं अर्थात् कलियुगी संसार और कलियुगी मित्र सम्बन्धियों के प्रति चलते हैं वह विकल्प कहे जाते हैं जिससे ही विकर्म बनते हैं और विकर्मों से दु: प्राप्त होता है। बाकी जो यज्ञ प्रति अथवा ईश्वरीय सेवा प्रति संकल्प चलता है वो गोया निरसंकल्प हो गया। शुद्ध संकल्प सर्विस प्रति भले चले। देखो बाबा यहाँ बैठा है तुम बच्चों को सम्भालने अर्थ। तो इस सर्विस करने अर्थ माँ बाप का संकल्प जरूर चलता है परन्तु यह संकल्प संकल्प नहीं,, इससे विकर्म नहीं बनता है, परन्तु यदि किसी का विकारी सम्बन्ध प्रति संकल्प चलता है तो उनका विकर्म अवश्य ही बनता है। बाबा तुमको कहता है कि मित्र-सम्बन्धियों की सर्विस भले करो परन्तु अलौकिक ईश्वरीय दृष्टि से। वह मोह की रग नहीं आनी चाहिए। अनासक्त होकर अपनी फर्जअदाई निभाओ। परन्तु जो कोई यहाँ होते हुए, कर्म सम्बन्ध में होते हुए उनसे मुक्त नहीं हो सकता तो भी उसे बाप का हाथ नहीं छोड़ना चाहिए। हाथ पकड़ा होगा तो कुछ कुछ पद प्राप्त कर लेंगे। अब यह तो हरेक अपने को जानते हैं कि मेरे में कौन-सा विकार है! अगर किसी में एक भी विकार है तो वह देह-अभिमानी जरूर ठहरा, जिसमें विकार नहीं वह ठहरा देही-अभिमानी। किसी में कोई भी विकार है तो वह सजायें जरूर खायेंगे और जो विकारों से रहित है वे सज़ाओं से मुक्त हो जायेंगे। जैसे देखो कोई-कोई बच्चे हैं जिनमें काम है, क्रोध है, लोभ है, मोह है वो सर्विस बहुत अच्छी कर सकते हैं। अब उन्हों की बहुत ज्ञान विज्ञानमय अवस्था है, वह तो तुम सब भी वोट देंगे। अब यह तो जैसे मैं जानता हूँ वैसे तुम सब जानते हो अच्छे को सब अच्छा वोट देंगे। अब यह निश्चय करना जिनमें कुछ विकार हैं वो सर्विस नहीं कर सकेंगे। जो विकार प्रूफ हैं वो सर्विस कर औरों को आप समान बना सकेंगे इसलिये अपने ऊपर बहुत ही सम्भाल चाहिए। विकारों पर पूर्ण जीत चाहिए। विकल्प पर पूर्ण जीत चाहिए। ईश्वर अर्थ संकल्प को निरसंकल्प रखा जायेगा।
वास्तव में निरसंकल्पता उसी को कहा जाता है जो संकल्प चले ही नहीं, दु: सुख से न्यारा हो जाए वह तो अन्त में जब तुम हिसाब-किताब चुक्तू कर चले जाते हो, वहाँ दु: सुख से न्यारी अवस्था में तब कोई संकल्प नहीं चलता। उस समय कर्म अकर्म दोनों से परे अकर्मी अवस्था में रहते हो।
यहाँ तुम्हारा संकल्प जरूर चलेगा क्योंकि तुम सारी दुनिया को शुद्ध बनाने अर्थ निमित्त बने हो। तो उसके लिये तुम्हारे शुद्ध संकल्प जरूर चलेंगे। सतयुग में शुद्ध संकल्प चलने कारण संकल्प संकल्प नहीं, कर्म करते, कर्म नहीं होता, उसे अकर्म कहा जाता है। समझा। अब यह कर्म, अकर्म और विकर्म की गति तो बाप ही समझाते हैं। विकर्मों से छुड़ाने वाला तो एक बाप ही है जो इस संगम पर तुमको पढ़ा रहे हैं इसलिये बच्चे अपने ऊपर बहुत ही सावधानी रखो। अपने हिसाब-किताब को भी देखते रहो। तुम यहाँ आये हो हिसाब-किताब चुक्तू करने। ऐसा तो नहीं यहाँ आए हिसाब-किताब बनाते जाओ जो सज़ा खानी पड़े। यह गर्भजेल की सज़ा कोई कम नहीं है। इस कारण बहुत ही पुरुषार्थ करना है। यह मंजिल बहुत भारी है इसलिये सावधानी से चलना चाहिए। विकल्पों के ऊपर जीत पानी है जरूर। अब कितने तक तुमने विकल्पों पर जीत पाई है, कितने तक इस निरसंकल्प अर्थात् दु: सुख से न्यारी अवस्था में रहते हो, यह तुम अपने को जान सकते हो। जो खुद को समझ सकें वो बाबा से पूछ सकते हैं क्योंकि तुम तो उनके वारिस हो तो वह बता सकते हैं। अच्छा !
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का याद प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) अमृतवेले उठ बाबा से मीठी-मीठी रूहरिहान करनी है, फिर भोजन खाते, कामकाज करते बाबा की याद में रहना है, देह के संबंधों को भूल आत्मा भाई-भाई हूँ, यह दृष्टि पक्की करनी है।
2) विकल्पों पर जीत प्राप्त कर दु: सुख से न्यारी निरसंकल्प अवस्था में रहना है। कायदेसिर सभी विकारों की आहुति दे योगयुक्त बनना है।
वरदान:दिव्य गुणों रूपी प्रभू प्रसाद खाने और खिलाने वाले संगमयुगी फरिश्ता सो देवता भव!
दिव्य गुण सबसे श्रेष्ठ प्रभू प्रसाद है। इस प्रसाद को खूब बांटों, जैसे एक दो में स्नेह की निशानी स्थूल टोली खिलाते हो, ऐसे ये गुणों की टोली खिलाओ। जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है उसे अपनी मन्सा अर्थात् शुद्ध वृत्ति, वायब्रेशन द्वारा शक्तियों का दान दो और कर्म द्वारा गुण मूर्त बन, गुण धारण करने में सहयोग दो। तो इसी विधि से संगमयुग का जो लक्ष्य हैफरिश्ता सो देवतायह सहज सर्व में प्रत्यक्ष दिखाई देगा।
स्लोगन:सदा उमंग-उत्साह में रहना - यही ब्राह्मण जीवन का सांस है।
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Details ( Page:- Murali 18-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 18.11.17      Pratah Murli Om Shanti Babdada Madhuban
Mithe bacche -Apni buddhi kisi bhi dehadhari me nahi latkani hai,ek bidehi Baap ko yaad karna hai aur dusro ko bhi Baap ki he yaad dilana hai.
Q- Apna jeevan heere jaisa shrest banane ke liye mukhya kin baato ka attention chahiye?
A-  1) Bhojan bahut yogyukt hokar banana aur khana hai.2) Ek do ko Baap ki yaad dilakar jiyadaan dena hai.3) Koi bhi bikarm nahi karna hai.4) Faaltu baat karne walo ke sang se apni sambhal karni hai,jharmuyi-jhagmuyi nahi karna hai.5) Kisi bhi dehadhari me apni buddhi ki asakti nai rakhni hai,dehadhari me latkana nahi hai.6) Kadam-Kadam par abinashi surgeon se raye lete rehna hai.Apni bimari surgeon se nahi chhipani hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1) Yaad ki yatra me thakna nahi hai,ek do ko savdhan karte Baap ko yaad dilani hai.Apna time waste nahi karna hai.Jharmuyi-jhagmuyi(parchintan) na karna hai,na soona hai.
2) Pass with honour hone ke liye mansa-vacha-karmana koi bhi bhool nahi karni hai.
Vardaan:-Gyan ke saath-saath goono ko emerge kar number one banne wale Sarvgoon Sampann bhava.
Slogan:--Silence ki power dwara negative ko positive me parivartan karna he mansa seva hai.
 
HINDI DETAIL MURALI
18/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे मीठे बच्चे - अपनी बुद्धि किसी भी देहधारी में नहीं लटकानी है, एक विदेही बाप को याद करना है और दूसरों को भी बाप की ही याद दिलाना है
प्रश्न: अपना जीवन हीरे जैसा श्रेष्ठ बनाने के लिए मुख्य किन बातों का अटेन्शन चाहिए?
उत्तर:
1- भोजन बहुत योगयुक्त होकर बनाना और खाना है। 2- एक दो को बाप की याद दिलाकर जीयदान देना है। 3- कोई भी विकर्म नहीं करना है। 4- फालतू बात करने वालों के संग से अपनी सम्भाल करनी है, झरमुई-झगमुई नहीं करना है। 5- किसी भी देहधारी में अपनी बुद्धि की आसक्ति नहीं रखनी है, देहधारी में लटकना नहीं है। 6- कदम-कदम पर अविनाशी सर्जन से राय लेते रहना है। अपनी बीमारी सर्जन से नहीं छिपानी है।
ओम् शान्ति।
बच्चे किसकी याद में बैठे हैं? (शिवबाबा की) शिवबाबा को ही याद करना है और कोई भी देहधारी को याद नहीं करना है। तुम्हारे सामने यह देहधारी बैठा हुआ है, इनको भी याद नहीं करना है। तुमको याद सिर्फ एक विदेही को करना है, जिसको अपनी देह नहीं है। यह मम्मा बाबा अथवा अनन्य सर्विसएबुल जो बच्चे हैं, वह सब सीखते हैं शिवबाबा द्वारा। तो याद भी शिवबाबा को ही करना है। भल कोई बच्चे जाकर किसको समझाते हैं तो भी बुद्धि में समझना है कि शिवबाबा ने इनको पढ़ाया है। बुद्धि में शिवबाबा की याद रहनी चाहिए कि देहधारी की। अगर इस देहधारी को तुम याद करते हो, तो यह कॉमन हो जाता है। बाप कहते हैं कभी भी देहधारी में लटकना नहीं है। तुमको याद एक को करना है - जो सभी को सद्गति देने वाला है। अगर इस साकार को याद किया तो वह याद निष्फल है। जैसे लौकिक बाप को बच्चे याद करते हैं, उनसे कोई फ़ायदा नहीं होता। कोई ब्राह्मणी को याद किया कि हमको फलानी ब्राह्मणी पढ़ावे, तो निष्फल हुआ। कोई की भी याद नहीं रहनी चाहिए। हमको शिवबाबा पढ़ा रहे हैं, कल्याणकारी शिवबाबा है। देहधारी पर कभी बलिहार नहीं जाना होता है। यह बाबा भी तुमको कहते हैं मनमनाभव। देहधारी को याद किया तो दुर्गति को पायेंगे। बाप जानते हैं कोई-कोई की ब्राह्मणी के साथ बुद्धि जुट जाती है, यह राँग है। देहधारी में आसक्ति नहीं होनी चाहिए। बाबा का फरमान है मामेकम् याद करो। सुबह को उठकर मुझे याद करो। देहधारी को लौकिक कहा जायेगा। उनको याद नहीं करना है। एक मुझ निराकार को ही याद करो। गायन भी एक का ही है। शिवाए नम:, शिव है विदेही। वर्सा तुमको बाप से लेना है। यह देह भी उनकी नहीं है।
बाप कहते हैं इस शरीर द्वारा मैं सिर्फ तुमको पढ़ाता हूँ, क्योंकि मुझे अपना शरीर नहीं है इसलिए इनका आधार लेता हूँ। कल्प पहले इन द्वारा मैंने तुम बच्चों को सहज राजयोग सिखाया था, जिससे तुम पावन बने थे। मेरी सेवा ही यह है - पतितों को पावन बनाना। बाकी कृपा या आशीर्वाद मांगना फालतू है। यह बातें भक्तिमार्ग में चलती हैं, यहाँ नहीं हैं। ऐसे भी नहीं कोई बीमार हो जाए, मैं ठीक कर दूँ, यह मेरा धन्धा नहीं है। पुकारते हैं हम पतितों को आकर पावन बनाए दुर्गति से सद्गति में ले चलो। गाते हैं परन्तु अर्थ नहीं जानते। भगत तो सारी दुनिया में हैं, वह सब किसको याद करते हैं? एक पतित-पावन बाप को। सारी दुनिया के मनुष्यमात्र का वह लिबरेटर है, गाईड भी है। दु: से लिबरेट कर परमधाम में ले जाने वाला बाप ही है। तो बाप की श्रीमत पर चलना चाहिए। कदम-कदम पर राय लेनी चाहिए कि इस हालत में क्या करें? सर्जन तो एक ही है। यह (ब्रह्मा) सर्जन के रहने और बोलने की जगह है। इस सर्जन जैसी मत कोई और दे सके। बच्चों को टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए। दिन प्रतिदिन आयु कमती होती जाती है। विनाश सामने खड़ा है - ग़फलत की तो बहुत पछताना पड़ेगा। झरमुई-झगमुई करने में टाइम गँवाने से तुम्हारा बहुत नुकसान होता है। तुमको औरों को बचाना है। मनुष्य तो एक दो को बाप से मिलाते नहीं और ही दूर करते हैं। इस समय सबकी उतरती कला है तो जरूर उल्टी मत देंगे। बच्चों को अब ज्ञान मिला है तो कोई भी विकर्म नहीं करना चाहिए। छिपाना नहीं चाहिए। यह तो तुम जानते हो हम जन्म-जन्मान्तर पाप करते ही आये हैं। बाप का बनकर अगर पाप करते होंगे तो और क्या कहेंगे। यह कहते हैं हमको परमात्मा पढ़ाते हैं और खुद पाप करते रहते हैं! पाप करके फिर बताने से वह बोझा उतरता नहीं। आदत पक्की हो जाती है। समझते हैं हमको कोई देखता नहीं है। भगवान तो देखता है ना। नहीं तो सज़ा कैसे मिलती है - गर्भ में। दिल अन्दर खाता है कि हमसे यह पाप हुआ। समझो कोई विकार में जाकर फिर यहाँ आकर बैठते हैं। बाप को तो मालूम पड़ता है - बहुत ही तुच्छ बुद्धि हैं जो समझते नहीं, पाप करते रहते हैं, सुनाते नहीं। कई बातें साकार बाप भी जान लेते हैं, परन्तु बच्चे सुनाते नहीं हैं। बाप कहते हैं पाप करते रहेंगे तो वृद्धि होती रहेगी फिर सौगुणा दण्ड भोगना पड़ेगा। चोर चोरी करता रहता है, उनको चोरी बिगर कुछ सूझता ही नहीं है। उनको जेल बर्ड कहा जाता है। बाप बच्चों को समझाते हैं कि सिवाए बाप की याद दिलाने के और कोई झरमुई-झगमुई की फालतू बात करे तो समझो यह दुश्मन है। फालतू बातें करनी है, सुननी है। एक दो को सावधानी देते रहो कि शिवबाबा को याद करो। कोई को फिर गुस्सा भी लगता है कि फलाना मुझे क्यों कहता है? परन्तु तुम्हारा फ़र्ज है याद दिलाना। याद से विकर्म विनाश होंगे। जब तक कर्मातीत अवस्था नहीं आई है तो मन्सा-वाचा-कर्मणा कुछ कुछ भूलें तो होती रहती हैं। कर्मातीत अवस्था पिछाड़ी में आयेगी। सो भी थोड़े पास विद ऑनर होंगे। जो सर्विस नहीं करते उनकी यह अवस्था आयेगी नहीं। सर्विस पर जो रहते हैं वह एक दो को याद कराते रहते हैं - परमपिता परमात्मा के साथ तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? बाबा अपना मिसाल बताते हैं कि मैं भी भोजन पर बैठता हूँ, स्नान करता हूँ, तो मुझे भी याद दिलाओ कि शिवबाबा को याद करो। भल खुद याद भी करे, परन्तु बाबा का डायरेक्शन अमल में लाना चाहिए। अगर अपना कल्याण करना चाहते हो तो याद दिलाओ एक दो को। ब्रह्मा भोजन की बहुत महिमा है। भोजन बनाने वाले ब्राह्मणों का योग ठीक चाहिए तब तो भोजन में ताकत आयेगी। याद से ही तुमको जीयदान मिलता है। अपना हीरे जैसा जीवन बनाना है। सहज ते सहज बात है मुझे याद करो, पवित्र बनो। पतित बनें तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। मुझ बाप को याद करते रहेंगे तो विकर्म भी विनाश होंगे और हम वर्सा भी देंगे। थोड़ा याद करेंगे तो वर्सा भी थोड़ा मिलेगा। गीता में भी आदि और अन्त में आता है मनमनाभव। कोई भी देहधारी की याद नहीं आनी चाहिए। शिवबाबा को याद करेंगे तो तुम्हारा कल्याण होगा। पाप दग्ध होंगे। गंगा में स्नान करने से कोई पाप विनाश नहीं होते हैं। भल कहते हैं भावना है परन्तु भावना ही राँग है। गंगा पतित-पावनी नहीं है। पतित-पावन एक बाप है। कोई भी स्थूल चीज़ को तुम्हें याद नहीं करना है। एक शिवबाबा को ही याद करना है।
आत्मा कहती है - हे गॉड फादर, हे परमपिता परमात्मा। बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुमको बिल्कुल सहज उपाय बताता हूँ कि मुझे याद करो। अन्त में मेरी याद रहेगी तो तुम मेरे पास चले आयेंगे। जीव और आत्मा है ना। मनुष्य आत्मा को पाप आत्मा, पुण्य आत्मा कहा जाता है। पुण्य परमात्मा नहीं कहा जाता है। आत्मा ही पतित बनती है तो फिर शरीर भी पतित मिलता है। बाप आत्माओं से बात करते हैं। आत्मा अविनाशी है। बाप बच्चे दोनों अविनाशी हैं। बाप कहते हैं लाडले, सिकीलधे बच्चों, मैं एक ही बार आकर तुमको पावन बनाता हूँ। तुमको आत्म-अभिमानी बनाए कहता हूँ अशरीरी भव, मुझ बाप को याद करो। बस यह है आत्मा की यात्रा। वह होती है शारीरिक यात्रा। यहाँ तो तुम जानते हो कि आत्माओं को अब वापिस जाना है। योग अग्नि से ही तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कटेंगे। तुम्हें ब्राह्मण बनना है। नहीं बनेंगे तो प्रजा में हल्का पद पायेंगे। कुछ कुछ सुनते हैं तो उसका विनाश नहीं होगा। जो अच्छी तरह पढ़ेंगे पढ़ायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे। सहज ते सहज बात है याद की। परमपिता परमात्मा को याद करना है। ऊंच ते ऊंच एक ही भगवान है - इसलिए गीत भी शिवबाबा का ही गाने से ठीक है। तुम्हारी बुद्धि वहाँ रहनी चाहिए कि शिवबाबा हमको सुनाते हैं। अभी नाटक पूरा होता है। हम सब एक्टर्स को अब शरीर का भान छोड़ वापिस घर जाना है। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे फिर जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे। जैसे एक पिल्लर बनाते हैं ना, जहाँ दौड़ी लगाए हाथ लगाते हैं फिर जो पहले पहुँचें। तुम्हारा पिल्लर शिवबाबा है। याद के यात्रा की दौड़ी है। जितना याद करेंगे उतना जल्दी पिल्लर तक पहुँचेंगे फिर आना है स्वर्ग में। इस यात्रा में थकना नहीं है। अब तो दु:खधाम खत्म हुआ। हमको तो सुखधाम, शान्तिधाम में जाना है। आज दु:खधाम है, कल सुखधाम होगा। अब यही बाप की याद सबको दिलाओ। बाप ने हथेली पर बहिश्त लाया है। कहते हैं मामेकम् याद करो तो बेड़ा पार हो जायेगा। टाइम वेस्ट मत करो। भक्ति में भी बहुत झरमुई-झगमुई की। भक्ति में कितनी रड़ियाँ मारते हैं कि भगवान हमारी सद्गति करने आओ। अब बाप आये हैं, समझाते हैं बच्चे पवित्र बनो। भल युगल इकट्ठे रहो, देखो आग तो नहीं लगती है? आग लगी तो पद भ्रष्ट हो पड़ेगा। एक बार आग लगी तो फिर लगती ही रहेगी, इसलिए अपने को सम्भालना भी है। योग में रहने की बड़ी प्रैक्टिस चाहिए। योग में भल कितना भी आवाज हो, अर्थक्वेक हो, बाम्ब गिरें, देखें क्या होता है। इन बातों से डरना नहीं है। यह तो जानते ही हैं कि रक्त की नदियाँ भारत में ही बहनी है। पार्टीशन में रक्त की नदियाँ बही ना। अजुन तो बहुत आफतें आनी हैं, तुमको देखना है, मिरूआ मौत मलूका शिकार। तुम फरिश्ते बन रहे हो। जो अच्छे सर्विसएबुल होंगे वही उस समय ठहर सकेंगे, इसमें बहुत मज़बूती चाहिए। शिवबाबा को याद करना है। शिवबाबा जैसा मीठा बाप फिर कभी नहीं मिल सकता। उनकी ही मत पर चलना है। मुख्य बात ही है पवित्र बनने की। पतित उनको कहा जाता, जो विकार में जाते हैं। देवतायें हैं ही सम्पूर्ण निर्विकारी। यहाँ तो सब हैं विकारी। वह है - शिवालय। यह है वैश्यालय। अब विकारी से निर्विकारी बन स्वर्ग का राज्य भाग्य लेना है। बाप कहते हैं मैं पावन दुनिया स्थापन करने आया हूँ। तुमको मैं पावन दुनिया का मालिक बनाऊंगा। सिर्फ पवित्र बनने की मदद करो, सबको बाप का निमंत्रण दो। पांच हजार वर्ष पहले भी जब मैंने गीता सुनाई थी तो कहा था मामेकम् याद करो तो पावन बनेंगे। चक्र को फिरायेंगे तो चक्रवर्ती राजा रानी बनेंगे। हेल्थ वेल्थ और हैपीनेस मिलेगी। सतयुग में सब कुछ था ना। बाप कहते हैं मेरे को याद करो तो कभी 21 जन्म रोगी नहीं बनेंगे। स्वदर्शन चक्र फिराते रहेंगे तो तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ - भगवानुवाच, बाबा सिर्फ अल्फ और बे पढ़ाते हैं। मनमनाभव और मध्याजी भव, बस। पढ़ाई भी कितनी सहज है। बस दिल पर यह लिख दो। कोई विरले व्यापारी इस धन्धे की युक्ति उस्ताद से लेते हैं। वह धन्धे आदि भल करो, मना थोड़ेही है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे जो खुद भी अल्फ और बे को याद करते और दूसरों को भी याद दिलाते हैं वही प्यारे लगते हैं। ऐसे बच्चों को मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) याद की यात्रा में थकना नहीं है, एक दो को सावधान करते बाप की याद दिलानी है। अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है। झरमुई-झगमुई (परचिंतन) करना है, सुनना है।
2) पास विद ऑनर होने के लिए मन्सा-वाचा-कर्मणा कोई भी भूल नहीं करनी है।
वरदान:ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज कर नम्बरवन बनने वाले सर्वगुण सम्पन्न भव !
वर्तमान समय आपस में विशेष कर्म द्वारा गुण दाता बनने की आवश्यकता है, इसलिए ज्ञान के साथ-साथ गुणों को इमर्ज करो। यही संकल्प करो कि मुझे सदा गुण मूर्त बन सबको गुण मूर्त बनाने का विशेष कर्तव्य करना ही है तो व्यर्थ देखने, सुनने वा करने की फुर्सत ही नहीं रहेगी। दूसरों को देखने के बजाए ब्रह्मा बाप को फालो करते हुए हर सेकण्ड गुणों का दान करते चलो तो सर्वगुण सम्पन्न बनने और बनाने का एक्जैम्पल बन नम्बरवन हो जायेंगे।
स्लोगन:साइलेन्स की पावर द्वारा निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन करना ही मन्सा सेवा है।
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Details ( Page:- Murali 19-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 19.11.17     
Pratah Murli Om Shanti “AVYAKT BAPDADA” Madhuban
Headline – Kumarion ko Bhatti mei prana avyakt babdada ke madhur mahavakya.
Vardan – Sada hajoor ko hajir samajh sath ka anubhav karnewale combined roopdhari bhav.
Slogan – Mann ko sada ruhani mauj mei rakhna yehi Jeevan jeene ki kala hai.
 
HINDI DETAIL MURALI
19/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " "अव्यक्त-बापदादा" मधुबन
"कुमारियों को भट्ठी में प्राण अव्यक्त बापदादा के मधुर महावाक्य"
आज बापदादा सब बच्चों से कहाँ मिलन मना रहे हैं? किस स्थान पर बैठे हो? सागर और नदियों के मिलन स्थान पर मिलन मना रहे हैं। सागर का कण्ठा पसन्द आता है ना। सिर्फ सागर नहीं लेकिन अनेक नदियों का सागर के साथ मिलन स्थान कितना श्रेष्ठ होगा। सागर को भी नदियों का मिलन कितना प्यारा लगता है। ऐसा मिलन मेला फिर किसी युग में होगा? इस युग का मिलना सारा कल्प भिन्न-भिन्न रूप और रीति से गाया मनाया जायेगा। ऐसा मेला मनाने के लिए आये हो ना, यहाँ वहाँ से इसलिए भागे हो ना। सागर में समाए, समान मास्टर ज्ञान सागर बन जाते हो अर्थात् बाप समान बेहद के स्वरूप में स्थित हो जाते हो। ऐसा बेहद का अनुभव करते हो? बेहद की वृत्ति अर्थात् सर्व आत्माओं के प्रति कल्याण की वृत्ति - मास्टर विश्व कल्याणकारी। सिर्फ अपने वा अपने हद के निमित्त बनी हुई आत्माओं के कल्याण अर्थ नहीं, लेकिन सर्व के कल्याण की वृत्ति हो। मैं तो ब्रह्माकुमारी बन गई, पवित्र आत्मा बन गई - अपनी उन्नति में, अपनी प्राप्ति में, अपने प्रति सन्तुष्टता में राज़ी होकर चल रहे हैं, यह बाप सामन बेहद की वृत्ति रखने की स्थिति नहीं है। हद की वृत्ति अर्थात् सिर्फ स्वंय प्रति सन्तुष्टता की वृत्ति। क्या यहाँ तक ही सिर्फ रहना है वा आगे बढ़ना है? कई बच्चे बेहद की सेवा का समय, बेहद की प्राप्ति का समय, बाप समान बनने का गोल्डन चान्स वा गोल्डन मैडल लेने के बजाए, मैं ठीक चल रही हूँ, कोई गलती नहीं करती, लौकिक, अलौकिक जीवन दोनों अच्छा निभा रही हूँ, कोई खिट-खिट नहीं, कोई संगठन के संस्कारों का टक्कर नहीं, इसी सिलवर मैडल में ही खुश हो जाते हैं। बाप समान बेहद की वृत्ति तो नहीं रही ना। बाप विश्व कल्याणकारी और बच्चे - स्व कल्याणकारी, ऐसी जोड़ी अच्छी लगेगी? सुनने में अच्छी नहीं लग रही है। और जब बनकर चलते हो तब अच्छी लगती है? सर्व खजानों के मालिक के बालक खजानों के महादानी नहीं बने तो उसको क्या कहा जायेगा? किसी से भी पूछो तो बाप के सर्व खजानों के वर्से के अधिकारी हो? तो सब हाँ कहेंगे ना! खजाना किसलिए मिला है? सिर्फ स्वयं खाओ पियो और अपनी मौज में रहो, इसलिए मिला है? बाँटो और बढ़ाओ, यही डायरेक्शन मिले हैं ना। तो कैसे बाँटेंगे? गीता पाठशाला खोल ली वा जब चांस मिला तब बाँट लिया, इसमें ही सन्तुष्ट हो? बेहद के बाप से बेहद की प्राप्ति और बेहद की सेवा के उमंग-उत्साह में रहना है। कुमारी जीवन संगमयुग में सर्व श्रेष्ठ वरदानी जीवन है। तो ऐसी वरदानी जीवन ड्रामा अनुसार आप विशेष आत्माओं को स्वत: प्राप्त है। ऐसी वरदानी जीवन सर्व को वरदान, महादान देने में लगा रहे हो? स्वत: प्राप्त हुए वरदान की लकीर श्रेष्ठ कर्म की कलम द्वारा जितनी बड़ी खींचने चाहो उतनी खींच सकते हो। यह भी इस समय को वरदान है। समय भी वरदानी, कुमारी जीवन भी वरदानी, बाप भी वरदाता। कार्य भी वरदान देने का है। तो इसका पूरा पूरा लाभ लिया है? 21 जन्मों तक लम्बी लकीर खींचने का चांस, 21 पीढ़ी सदा सम्पन्न बनने का चान्स जो मिला है वह ले लिया? कुमारी जीवन में जितना चाहो कर सकते हो। स्वतंत्र आत्मा का भाग्य प्राप्त है। अपने से पूछो - स्वतत्र हो या परतंत्र हो? परतंत्रता के बन्धन अपने ही मन के व्यर्थ कमजोर संकल्पों की जाल है। उसी रची हुई जाल में स्वयं को परतंत्र तो नहीं बना रहो हो? क्वेश्चन की जाल है? जो जाल रचते हो उसका चित्र निकालो तो क्वेश्चन का ही रूप होगा। क्वेश्चन क्या उठते हैं, अनुभवी हो ना। क्या होगा, कैसे होगा, ऐसे तो नहीं होगा, यह है जाल। पहले भी सुनाया था - संगमयुगी ब्राहमणों का एक ही सदा समर्थ संकल्प है कि - ‘जो होगा वह कल्याणकारी होगा। जो होगा श्रेष्ठ होगा, अच्छे ते अच्छा होगा।' यह संकल्प है जाल को समाप्त करने का। जबकि बुरे दिन, अकल्याण के दिन समाप्त हो गये। संगमयुग का हर दिन बड़ा दिन है, बुरा दिन नहीं। हर दिन आपका उत्सव है ना। हर दिन मनाने का है। इस समर्थ संकल्प से व्यर्थ संकल्पों की जाल को समाप्त करो।
कुमारियाँ तो बापदादा की, ब्राह्मण कुल की शान हैं। फर्स्ट चान्स कुमारियाँ को मिलता है। पाण्डव हँसते हैं कि छोटी-छोटी कुमारियाँ टीचर बन जातीं, दादी बन जाती, दीदी बन जाती। तो इतना चान्स मिलता है। फिर भी चान्स लें तो क्या कहेंगे! क्या बोलती हो, पता है? सहयोगी रहेंगे लेकिन समर्पण नहीं होंगे। जो समर्पण नहीं होंगे वह समान कैसे बनेंगे! बाप ने क्या किया? सब कुछ समर्पित किया ना वा सिर्फ सहयोगी बना? ब्रह्मा बाप ने क्या किया? समर्पण किया वा सिर्फ सहयोगी रहा? जगत अम्बा ने कया किया? वह भी कन्या ही रही ना। तो फालो फादर मदर करना है वा एक दो में सिस्टर्स फालो करते हो।इसका जीवन देखकर मुझे भी यही अच्छा लगता है।तो फालो सिस्टर्स हो गया ना! अब क्या करेंगी? डर सिर्फ अपनी कमजोरी से होता है और किसी से नहीं होता। अब क्या लेंगी? गोल्डन मैडल लेंगी वा सिलवर ही ठीक है? कमजोरियों को नहीं देखो। वह देखेंगी तो डरेंगी। स्वयं कमजोर बनो, दूसरों की कमजोरियों को देखो। समझा, क्या करना है!
बापदादा को तो कुमारियाँ देख करके खुशी होती है। लोगों के पास कुमारी आती है तो दु: होता है। और बापदादा के पास जितनी कुमारियाँ आवें उतना ज्यादा से ज्यादा खुशी मनाते हैं क्योंकि बापदादा जानते हैं कि हर कुमारी विश्व कल्याणकारी, महादानी, वरदानी है। तो समझा कुमारी जीवन का महत्व कितना है। आज विशेष कुमारियों का दिन है ना। भारत में अष्टमी पर कुमारियों को खास बुलाते हैं। तो बापदादा भी अष्टमी मना रहे हैं। हर कन्या अष्ट शक्ति स्वरूप है। अच्छा -
ऐसे सर्व श्रेष्ठ वरदानी जीवन अधिकारी, गोल्डन चांस अधिकारी, 21 पीढ़ी की श्रेष्ठ तकदीर की लकीर खींचने के अधिकारी, स्वतंत्र आत्मा के वरदान अधिकारी, ऐसे शिव वंशी ब्रह्माकुमारियों, श्रेष्ठ कुमारियों को विशेष रूप में और साथ-साथ सर्व मिलन मनाने वाले पद्मापदम भाग्यवान आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
कर्मभोग पर कर्मयोग की विजय - कर्मभोग पर विजय पाने वाले विजयी रत्न हो ना! वे कर्मभोग भोगने वाले होते और आप कर्मयोगी हो। भोगने वाले नहीं हो लेकिन सदा के लिए भस्म करने वाले हो। ऐसा भस्म करते हो जो 21 जन्म कर्मभोग का नाम निशान रहे। आयेगा तब तो भस्म करेंगे? आयेगा जरूर लेकिन आता है, भस्म होने के लिए कि भोगने के लिए। विदाई लेने के लिए आता है क्योंकि कर्मभोग को भी पता है कि हम अभी ही सकते हैं फिर नहीं सकते इसलिए थोड़ा-थोड़ा बीच में चाँस लेता है। जब देखता है कि यहाँ तो दाल गलने वाली नहीं है तो वापस चला जाता है।
दादी दीदी को देखते हुए - इतने हैण्डस देखकर खुशी हो रही है ना? जो स्वप्न देख रही थी वो साकार हो गया ना। इतने हैण्डस हों, इतने सेन्टर बढ़ें, यह स्वप्न देख रही थी ना क्योंकि हैन्डस की दादी दीदी को सबसे ज्यादा आश रहती है। तो इतने सब बने बनाये हैन्डस देखकर खुशी होगी ना। भारत की कुमारियों में और विदेश की कुमारियों में भी अन्तर है, इन्हें कमाई की क्या आवश्यकता है! (डिग्री लेनी है) जब तक सेवा में प्रैक्टिस नहीं की है तब तक डिग्री की भी वैल्यु नहीं है। डिग्री की वैल्यु सेवा से है। पढ़ाई पढ़कर कार्य में नहीं लगाया, पढ़ाई के बाद भी गृहस्थी में रहे तो लौकिक में भी कहते हैं, पढ़ाई से क्या लाभ। अनपढ़ भी बच्चे सम्भालते और यह भी सम्भालते तो फ़र्क क्या हुआ। ऐसे ही यह भी पढ़कर अगर स्टेज पर जाएं जो डिग्री की वैल्यु भी है। अगर यहाँ चांस मिलता है तो डिग्री आप ही मिल जायेगी। यह डिग्री कम है क्या! जगदम्बा सरस्वती को कितनी बड़ी डिग्री मिली। यहाँ की डिग्री तो वर्णन भी नहीं कर सकते हो। कितनी बड़ी डिग्री मिली है - मास्टर ज्ञान सागर, मास्टर सर्वशक्तिमान कितनी डिग्री हैं! इसमें एम.., बी.. सब जाता है। इंजीनियर, डाक्टर सब जायेगा। अच्छा।
कुमारियों के अलग-अलग ग्रुप से बापदादा की मुलाकात
1. वरदानी कुमारियाँ हो ना! धीरे-धीरे चलने वाली हो या उड़ने वाली हो? उड़ने वाली अर्थात् हद की धरनी को छोड़ने वाली। जब धरनी को छोड़ें तब उड़ेंगी ना! नीचे तो नहीं उड़ेंगी। नीचे वाले को शिकारी पकड़ लेते हैं। नीचे आया पिंजरे में फंसा। उड़ने वाला पिंजरे में नहीं आता। तो पिंजरा छोड़ दिया! अभी क्या करेंगी? नौकरी करेंगी? ताज पहनेंगी या टोकरी उठायेंगी? जहाँ ताज होगा वहाँ टोकरी चलेगी नहीं। ताज उतारेंगी तब टोकरी रख सकेंगी। टोकरी रखेंगी तो ताज गिर जायेगा। तो ताजधारी बनना है या टोकरीधारी। अभी विश्व की सेवा की ज़िम्मेवारी का ताज और भविष्य रत्न जड़ित ताज। अभी विश्व की सेवा का ताज पहनो तो विश्व आपको धन्य आत्मा, महान आत्मा माने। इतना बड़ा ताज पहनने वाले टोकरी क्या उठायेंगे! 63 जन्म तो टोकरी उठाते रहे, अब ताज मिलता है तो ताज पहनना चाहिए ना! क्या समझती हो? दिल नहीं है लेकिन करना पड़ता है! क्या ऐसे सरकमस्टांस हैं? धीरे-धीरे लौकिक को सन्तुष्ट करते अपने को निर्बन्धन कर सकती हो। निर्बन्धन होने का प्लैन बनाओ। बेहद सेवा का लक्ष्य रखो तो हद के बन्धन स्वत: टूट जायेंगे। लक्ष्य दो तरफ का होता है तो लौकिक अलौकिक दोनों में सफल नहीं हो सकते। लक्ष्य क्लियर हो तो लौकिक में भी मदद मिलती है। निमित्त मात्र लौकिक, लेकिन बुद्धि में अलौकिक सेवा हो तो मजबूरी ही मुहब्बत के आगे बदल जाती है।
2) सभी कुमारियों ने अपनी तकदीर का फैंसला कर लिया है या करना है? जितना समय अपने जीवन के फैंसले में लगाती हो उतना प्राप्ति का समय चला जाता है इसलिए फैंसला करने में समय नहीं गंवाना चाहिए। सोचा और किया - इसको कहा जाता है नम्बरवन सौदा करने वाले। सेकेण्ड में फैंसला करने वाले गोल्डन मैडल लेते हैं। सोच-सोचकर फैंसला करने वाले सिल्वर मैडल लेते और सोचकर भी फैंसला नहीं कर पाते वह कापर वाले हो गये। आप सब तो गोल्डन मैडल वाले हो ना! जब गोल्डन एज में जाना है तो गोल्डन मैडल चाहिए ना। राम सीता बनने में कोई हाथ नहीं उठाते। लक्ष्मी नारायण तो गोल्डन एजड हैं ना। तो सभी ने अपने तकदीर की लकीर ऐसी खींच ली है या कभी-कभी हिम्मत नहीं होती। सदा उमंग-उत्साह में उड़ने वाली, कुछ भी हो लेकिन अपनी हिम्मत नहीं छोड़ना। दूसरे की कमजोरी देखकर स्वयं दिलशिकस्त नहीं होना। पता नहीं हमारा तो ऐसा नहीं होगा! अगर एक कोई खड्डे में गिरता है तो दूसरा क्या करेगा? खुद गिरेगा या उसको बचाने की कोशिश करेगा? इसलिए कभी भी दिलशिकस्त नहीं होना। सदा उमंग उत्साह के पंखों से उड़ते रहना। किसी भी आकर्षण में नहीं आना। शिकारी जब फँसाते हैं तो अच्छा-अच्छा दाना डाल देते हैं। माया भी कभी ऐसे करती है इसलिए सदा उड़ती कला में रहना तो सेफ रहेंगी। पीछे की बात सोचना, कमजोरी की बात सोचना पीछे देखना है, पीछे देखना अर्थात् रावण का आना।
3) शक्ति सेना हो ना! सबके हाथ में विजय का झण्डा है। विश्व के ऊपर विजय का झण्डा है या सिर्फ स्टेट के ऊपर है? विश्व के अधिकारी बनने वाले विश्व सेवाधारी होंगे। हद के सेवाधारी नहीं। बेहद के सेवाधारी, जहाँ भी जायें वहाँ सेवा करेंगे। तो ऐसे बेहद सेवा के लिए तैयार हो? विश्व की शक्तियाँ हो तो स्वयं ही आफर करो। 2 मास 6 मास की छुट्टी लेकर ट्रायल करो। एक कदम बढ़ायेंगी तो 10 कदम बढ़ जायेंगे, एक दो मास निकल कर अनुभव करो। जब कोई बढ़िया चीज से दिल लग जाती है तो घटिया स्वत: छूट जाती है। ऐसे ट्रायल करो। संगमयुग आगे बढ़ने का समय है। ब्रह्माकुमारी बन गयी, ज्ञान स्वरूप बन गयी, यह तो बहुत समय हो गया। अब आगे बढ़ो, कुछ तो आगे कदम बढ़ाओ, वहाँ ही नहीं ठहरो। कमजोर को नहीं देखो। शक्तियों को देखो, बकरियों को क्यों देखते! बकरियों को देखने से खुद का भी कांध नीचे हो जाता। डर लगता है - पता नहीं क्या होगा? कमजोर को देखने से डरते हो इसलिए उन्हें मत देखो। शक्तियों को देखो तो डर निकल जायेगा।
वरदान:सदा हज़ूर को हाज़िर समझ साथ का अनुभव करने वाले कम्बाइन्ड रूपधारी भव!
बच्चे जब भी स्नेह से बाप को याद करते हैं तो समीप और साथ का अनुभव करते हैं। दिल से बाबा कहा और दिलाराम हाज़िर इसीलिए कहते हैं हज़ूर हाज़िर है। हाज़िरा हज़ूर है। स्नेह की विधि से हर स्थान पर हर एक के पास हजूर हाजिर हो जाते हैं, अनुभवी ही इस अनुभव को जानते हैं। गाया हुआ है - करनकरावनहार तो करनहार और करावनहार कम्बाइन्ड हो गया। ऐसे कम्बाइन्ड रूपधारी सदा साथ का अनुभव करते हैं।
स्लोगन:मन को सदा रूहानी मौज में रखना - यही जीवन जीने की कला है।

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Details ( Page:- Murali 20-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 20.11.17     
Pratah Murli Om Shanti “BAPDADA” Madhuban
Mithe bacche -Ab shrimat par mann aur buddhi ko bhatkana band karo,ek Baap se sambandh jod buddhi yog lagao to sab bandhan samapt ho jayenge.
Q-Baap sangam par tumhe kaun sa purusharth karate hain ,jo sarey kalp me nahi hota hai?
A-Bandhano se buddhi yog nikaal sambandh se buddhi yog jodne ka purusharth abhi Baap tumhe karate hain.Is samay he ek taraf tumhe sambandh khinchte to dusre taraf bandhan.Yah yudh chalti rehti hai.Ashuri bandhan se Ishwariya sambandh me aane ka yahi samay hai kyunki Ishwar ko yathart roop se tum abhi jaante ho.Ishwar ko sarvbyapi kehne se sambandh joodne ke bajaye toot jata hai,buddhi biparit ho jati hai isiliye jab yathart pehechan mili to sambandh me aane ka purusharth karo.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1)Mrutyulok ke bandhano me rehte sukh ke sambandh ko yaad karna hai.Apne ko aatma samjh mann-buddhi ko bhatkane se choodane hai.
2) Purani duniya khatm honi hai isiliye isse mamatva mita dena hai.Sab bhramo se buudhi yog nikalne ke liye shrimat par chalna hai.
Vardaan:--Dukh ki lehro se nyare rah prabhu pyaar ka nubhav karne wale Khushi ke khazane se Sampann bhava.
Slogan:--Trikaldarshi wa Trinetri wo hai jo maya ke bahuroopo ko sahaj he pehechan le.
HINDI DETAIL MURALI
20/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " "अव्यक्त-बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - अब श्रीमत पर मन और बुद्धि को भटकाना बंद करो, एक बाप से सम्बन्ध जोड़ बुद्धियोग लगाओ तो सब बंधन समाप्त हो जायेंगे''
प्रश्न:
बाप संगम पर तुम्हें कौन सा पुरुषार्थ कराते हैं, जो सारे कल्प में नहीं होता है?
उत्तर:
बंधनों से बुद्धियोग निकाल सम्बन्ध से बुद्धियोग जोड़ने का पुरुषार्थ अभी बाप तुम्हें कराते हैं। इस समय ही एक तरफ तुम्हें सम्बन्ध खींचता तो दूसरे तरफ बंधन। यह युद्व चलती रहती है। आसुरी बंधन से ईश्वरीय सम्बन्ध में आने का यही समय है क्योंकि ईश्वर को यथार्थ रूप से तुम अभी जानते हो। ईश्वर को सर्वव्यापी कहने से सम्बन्ध ज़ुड़ने के बजाए टूट जाता है, बुद्धि विपरीत हो जाती है इसलिए जब यथार्थ पहचान मिली तो सम्बन्ध में आने का पुरुषार्थ करो।
गीत:-धीरज धर मनुआ ...   ओम् शान्ति।
मनुष्य मात्र का मन और बुद्धि अर्थात् आत्मा का जो मन और बुद्धि है वह अनेक प्रकारों के भ्रमों में भटकता रहता है। यहाँ तुम बच्चे अनेक प्रकार के भटकने से छूटने का पुरुषार्थ कर रहे हो। आत्मा कहती है मेरा मन भटकता है। अब बाप कहते हैं तुमको भटकने की दरकार नहीं है। आधाकल्प तुम्हारा मन बुद्धि भटकते-भटकते हैरान हो गया। अब श्रीमत पर मन बुद्धि को भटकाना बन्द करो। एक तरफ बुद्धि का योग लगाओ, देह-अभिमान में आकर बहुत भटके हो। अनेक प्रकार के मित्र सम्बन्धियों आदि का बंधन रहता है। बाप कहते हैं - उन सबको छोड़ो, एक के साथ सम्बन्ध जोड़ो। कहते हैं हमारा मन बहुत भटकता है। एक के सम्बन्ध में जुट नहीं सकता। हम चाहते भी हैं ऐसे मीठे-मीठे बेहद का सुख देने वाले बाप के साथ योग पक्का रखें, कहाँ भी बुद्धि भटके नहीं। बाप कहते हैं आधाकल्प से आसुरी मत पर भटकते-भटकते तुम हैरान हो गये हो। अब यह भटकना छोड़ दो। मैं आत्मा हूँ - यह भूलने से समझते हैं मैं देह हूँ। तो देहों के साथ सम्बन्ध हो जाता है। बाबा ऐसे नहीं कहते हैं कि तोड़ दो लेकिन तुम इस मृत्युलोक के बंधन में रहते हुए ईश्वरीय सम्बन्ध को याद करो। यह है बंधन, वह है सम्बन्ध। बंधन होता है दु:ख का। सम्बन्ध होता है सुख का। बंधन और सम्बन्ध दोनों अलग-अलग हैं। बंधन अक्षर पुरानी दुनिया से, सम्बन्ध अक्षर नई दुनिया से लगता है। अब तुम नई दुनिया के मालिक बनने वाले हो तो नई दुनिया के साथ सम्बन्ध जोड़ो। इस बंधन में रहते हुए सम्बन्ध के लिए पुरुषार्थ करना है। सम्बन्ध किसके साथ रखना है? ऐसा तो कोई है नहीं जो कहे मनमनाभव, मध्याजी भव और कहे कि बेहद के बाप से और बेहद सुख के वर्से से सम्बन्ध रखो। बाप ही यह सम्बन्ध जुड़ाते हैं। जब तुम बंधन में हो तो तुमको पुरुषार्थ कराने वाला कोई मनुष्य नहीं है। एक ही बाप है जो बंधन से छुड़ाकर सम्बन्ध में ले जाते हैं। बंधन है मायावी राज्य में, सम्बन्ध है रामराज्य में वा ईश्वरीय राज्य में, उनको ईश्वरीय राज्य और इनको आसुरी राज्य कहा जाता है क्योंकि सतयुग ईश्वर स्थापन करते हैं। उसमें ऊंच पद पाने के लिए तुम बच्चों को पुरुषार्थ कराते रहते हैं। अब तुम संगमयुग पर हो। सिर्फ संगम पर ही सम्बन्ध का पुरुषार्थ होता है और कोई युग में यह पुरुषार्थ नहीं होता।
बाप कहते हैं मैं आकर बंधन से छुड़ाए सम्बन्ध में बुद्धियोग लगवाता हूँ। सतयुग में नये सम्बन्ध की प्रालब्ध अभी के पुरुषार्थ से मिलती है। जो सम्बन्ध को जानते ही नहीं तो पुरुषार्थ कैसे करेंगे। यह तो जरूर होगा, एक तरफ सम्बन्ध खींचेगा दूसरे तरफ बंधन खींचेगा। यह लड़ाई होती है। सतयुग, त्रेता में सम्बन्ध की बात ही नहीं। द्वापर, कलियुग में भी सम्बन्ध की बात नहीं। संगम पर ही सम्बन्ध और बंधन का ध्यान रहता है। अब तुम जानते हो आसुरी बंधन से ईश्वरीय सम्बन्ध में जा रहे हैं। संगम है ही पुरुषार्थ का युग। तुमको ही बंधन और सम्बन्ध का पता है। आसुरी बंधन में रावण ने लाया। ईश्वर फिर ईश्वरीय सम्बन्ध में ले जाते हैं। बाप तुम्हारा बुद्धियोग अपने साथ जोड़ते हैं, जिससे तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो। भक्ति में जो पुरुषार्थ करते हैं वह है अयथार्थ। यथार्थ पुरुषार्थ परमपिता ही कराते हैं। सर्वव्यापी के ज्ञान से परमात्मा से सम्बन्ध नहीं हो सकता और ही टूट पड़ता है। अब तुमने एक बाप के साथ बुद्धियोग जोड़ा है और स्वर्ग वैकुण्ठ की राजाई के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। शास्त्रों में तो भगवानुवाच अर्जुन के प्रति लिख दिया है। सिर्फ एक अर्जुन थोड़ेही होगा। भगवान ने राजयोग तो बहुतों को सिखाया होगा ना। नहीं तो स्वर्ग की राजधानी कैसे स्थापन हो। दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो कहे कि हम भविष्य जन्म-जन्मान्तर के लिए पुरुषार्थ करते है। यह सिर्फ तुम ब्राह्मण ही कर सकते हो। यह निश्चय है कि हमारी दैवी राजधानी ड्रामा अनुसार जरूर स्थापन होनी ही है। हम न चाहें तो भी जरूर होगी। इम्पासिबुल है जो स्थापना न हो। ड्रामा जरूर स्थापन करायेगा। ड्रामा हमको जरूर पुरुषार्थ करायेगा, कल्प पहले मुआफिक। परन्तु चलना है श्रीमत पर। ड्रामा कहकर अपनी मत नहीं चलानी है। जानते हैं ड्रामा अनुसार भारत को स्वर्ग जरूर बनना है, फिर भी ऊंच मर्तबे के लिए श्रीमत पर पुरुषार्थ कराते हैं। टाइम भी बतलाते हैं। ड्रामा प्लेन अनुसार बाप आया है। वह कहते हैं यह संगमयुग पुरुषार्थ करने का है। पतित से पावन बनना है। संगम की बहुत महिमा है। वह है नदियों और सागर का संगम, यह संगम तो तुम्हारा अभी होता है। बाप कहते हैं मैं इस संगम युगे युगे आता हूँ। सारी दुनिया पतित जरूर बनने की है। फिर पतित से पावन दुनिया जरूर बननी है। जो भी मनुष्य मात्र हैं सबको हिसाब-किताब चुक्तू कर जरूर पावन बनना है। यह कयामत का समय है, बिगर पावन बने कोई भी सज़नी परमपिता परमात्मा साज़न के पिछाड़ी जा नहीं सकती। तुमने देखा है, मक्कड़ (टिड़ियाँ) जब उड़ती हैं तो उनका एक लीडर होता है, उनके पिछाड़ी ही सारा झुण्ड उड़ता है। यह भी ऐसे है। साज़न आया है गुल-गुल बनाने। तुम सभी पावन बन जायेंगे फिर जब मैं जाऊंगा तो तुम सभी आत्मायें सज़नियाँ ढेर के ढेर मेरे पिछाड़ी भागेंगी। तुम सजनियाँ भी जानती हो कि हम यह शरीर छोड़कर भागेंगे - साज़न के पिछाड़ी। भगवान है एक, भक्तियाँ हैं अनेक। कोई किसको मानते, कोई किसको मानते। कोई कहते हैं संसार बना ही नहीं है। जिसने जो कहा सो मान लिया, अपनी मत अथवा मनुष्य मत को भ्रम कहा जाता है। बाप आकर सभी भ्रमों से छुड़ा देते हैं। यह है ही दु:खधाम। अब सुखधाम जाने के लिए श्रीमत मिल रही है। निराकार बाप की मत मिल रही है। साकार मनुष्य से कभी श्रीमत नहीं मिल सकती है। रावण राज्य में आसुरी सम्प्रदाय को सिवाए परमपिता परमात्मा के श्रीमत कोई दे नहीं सकते, जिससे वह श्रेष्ठ बनें। दिन प्रतिदिन मनुष्य और ही भ्रष्ट होते जाते हैं। उन सबकी उतरती कला है, तुम्हारी अब चढ़ती कला है। तुम ब्राह्मण से देवता बनते हो फिर उतरती कला शुरू होती है। देवता से क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। अब चढ़ती कला है। चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला। सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे और तुम जीवनमुक्ति में चले जायेंगे। भारत कभी खाली नहीं होता। स्वर्ग जब होता है तब और खण्ड नहीं रहता। इस्लामी, बौद्धी आदि तो बाद में आते हैं। उनके पहले चन्द्रवंशी रामराज्य था। उनके पहले सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। क्राइस्ट नहीं था तो बौद्धी थे, बौद्धी नहीं थे तो इस्लामी थे। इस्लामी नहीं थे तो रामराज्य था। उनके पहले सूर्यवंशी थे। अब सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी दोनों घराने नहीं हैं। बाप आकर 3 धर्म स्थापन करते हैं। तुम ब्रह्मा मुख वंशावली सच्चे ब्राह्मण देवता बनने लिए पुरुषार्थ कर रहे हो। शूद्र पुरुषार्थ नहीं करते, ब्राह्मणों को ही ब्रह्मा द्वारा श्रीमत मिलती है, जिससे तुम श्रेष्ठ देवता बनते हो। बाकी थोड़ा समय है - विनाश आया कि आया। हालतें बिगड़ती रहती हैं। बिगड़ने में टाइम नहीं लगता। अगर एक ने बाम्ब चलाया तो दूसरे भी चलाने लग पड़ते। तुम सूक्ष्मवतन, मूलवतन, वैकुण्ठ देखकर आते हो। साक्षात्कार होता है। कृष्णपुरी का भी साक्षात्कार होता है, बाकी वहाँ जा नहीं सकते हैं। जाने का समय तो तब होगा जब शिवबाबा साथ में ले जायेंगे, बाकी साक्षात्कार होता है।
अब तुम्हारा मुझ ईश्वर के साथ सम्बन्ध जुटा है। तुम्हारी रावणराज्य तरफ पीठ है। मुँह है रामराज्य तरफ। अभी तुम ब्राह्मण वर्ण में हो। वर्ण अविनाशी हैं। प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्राह्मण जरूर चाहिए। तुम ब्राह्मणों को वर्सा दादे से मिलता है। स्वर्ग की स्थापना करने वाला, राजयोग सिखलाने वाला शिवबाबा है। यह ईश्वरीय वर्सा आधाकल्प चलता है, फिर मिलता है आसुरी वर्सा। चढ़ती कला 21 जन्मों के बाद पूरी होगी। फिर आसुरी राज्य शुरू होगा, असुर यह रावण है। परमपिता परमात्मा को कहा जाता है बिन्दी मिसल। दुनिया यह नहीं जानती कि शिव का रूप क्या है। वह समझते हैं इतना बड़ा लिंग है। बाबा कहते हैं जैसे तुम आत्मा का रूप बिन्दी मिसल है। वैसे मुझ परमात्मा का भी रूप बिन्दी मिसल है। जैसा तुम चमकता हुआ सितारा हो, वैसे मैं भी चमकता हुआ सितारा हूँ। मैं सदैव परमधाम में रहता हूँ, जन्म-मरण में नहीं आता हूँ। तुम जन्म-मरण में आते हो। मैं पतित-पावन हूँ तो जरूर मुझे परमधाम में रहना पड़े। अभी तुमको मैं पावन बना रहा हूँ। बड़ी भारी भीती है। (प्राप्ति बहुत है) 21 जन्मों के लिए तुम विश्व के मालिक बनते हो। पुरानी दुनिया को सिर्फ बुद्धियोग से भूलना होता है। कहते भी हैं यह बच्चा अथवा यह धन ईश्वर ने दिया है। अब बाप कहते हैं कि यह सब तो अब खत्म हो जाना है। यह तो कुछ नहीं है, इससे ममत्व तोड़ दो। भगवान तुमसे लेकर क्या करेंगे? सिर्फ तुम ममत्व निकाल दो। यह तो बहुत थोड़ा है। हम तो रिटर्न में तुमको स्वर्ग का वर्सा देते हैं। जैसे बाप नया मकान बनाते हैं तो पुराने से ममत्व निकल नये से जुट जाता है। तुम बच्चे जानते हो यह पुरानी दुनिया भस्म होनी ही है। अभी हमको नई दुनिया में जाना है इसलिए ममत्व मिटाए नये में जोड़ना है। कलियुग के बाद सतयुग आना है। जैसे रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आती है। यह फिर बेहद के दिन और रात की बात है। आधाकल्प है ज्ञान की प्रालब्ध। आधाकल्प है भक्ति। जब तमोप्रधान, जड़जड़ीभूत हो जाते हैं तब मैं आता हूँ। अभी तो भक्ति भी व्यभिचारी है। मुझे कण-कण में ठिक्कर भित्तर में कह देते हैं। पत्थर को पूजा के लिए रखते हैं। पत्थर को ही शिव कहते हैं। पूजा के लिए यह पत्थर की प्रतिमायें बनाई हैं। यह भक्ति मार्ग की सामग्री बहुत है। जन्म-जन्मान्तर यज्ञ तप तीर्थ आदि करते, शास्त्र पढ़ते आये हैं। बाप कहते हैं कि इन सबसे तुम मुझे प्राप्त नहीं कर सकते हो। तुम खुद ही कहते हो कि हे पतित-पावन आओ। पतित आत्मायें तो जा नहीं सकती। समझाते तो बहुत अच्छी तरह से हैं। गीत भी है कि अब थोड़ा धीरज धरो। श्रीमत पर चलते चलो तो तुम्हारे सब दु:ख दूर हो जायेंगे। 21 जन्मों के लिए तुम फिर विश्व के मालिक बन जायेंगे। एक ही पारलौकिक बाप स्वर्ग का वर्सा देते हैं। वहाँ दु:ख की कोई बात नहीं। तुम 5 हजार वर्ष बाद बाप से वर्सा लेने आये हो। जो आकर थोड़ा बहुत सुनते हैं वह भी स्वर्ग में आयेंगे, परन्तु ऊंच पद नहीं पा सकेंगे। जितना योग में रहेंगे उतना पवित्र होते जायेंगे और ऊंच पद पायेंगे। शिवबाबा की याद में रहना है और सृष्टि चक्र को फिराना है, दूसरों को भी समझाना है इससे बहुत ऊंच पद मिलेगा। बाप कहते हैं अजामिल जैसे पापियों का भी उद्धार हो जाता है। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते ।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) मृत्युलोक के बंधनों में रहते सुख के सम्बन्ध को याद करना है। अपने को आत्मा समझ मन-बुद्धि को भटकाने से छुड़ाना है।
2) पुरानी दुनिया खत्म होनी है इसलिए इससे ममत्व मिटा देना है। सब भ्रमों से बुद्धियोग निकालने के लिए श्रीमत पर चलना है।
वरदान:दु:ख की लहरों से न्यारे रह प्रभू प्यार का अनुभव करने वाले खुशी के खजाने से सम्पन्न भव!
संगम के समय दु:ख के लहरों की कई बातें सामने आयेंगी लेकिन अपने अन्दर वो दु:ख की लहर दुखी नहीं करे। जैसे गर्मी की मौसम में गर्मी होगी लेकिन स्वयं को बचाना अपने ऊपर है। तो दुख की बातें सुनते हुए भी दिल पर उसका प्रभाव न पड़े। जब ऐसे दु:ख की लहरों से न्यारे बनो तब प्रभू का प्यारा बनेंगे। जो ऐसे न्यारे और परमात्म प्यारे हैं वही खुशियों के खजाने से सम्पन्न रहते हैं।

स्लोगन: त्रिकालदर्शी वा त्रिनेत्री वह है जो माया के बहुरूपों को सहज ही पहचान ले।
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Details ( Page:- Murali 21-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 21.11.17     
Pratah Murli Om Shanti “BAPDADA” Madhuban
Mithe bacche -Yah anadi khel bana hua hai,isme har ek partdhari ka part apna-apna hai,ek ka part dusre se nahi mil sakta,yah bhi kudrat hai.
Q- Bhaktimarg me gangan jal ko itna maan kyun dete hain? Bhakto ki itni preet ganga jal se kyun?
A-Kyunki tum bacche abhi gyan jal(amrit) se sadgati ko paate ho,tumhari preet gyan se hai,jisse tum gyan ganga ban jate ho isiliye bhakto ne fir pani ko itna maan diya hai. Vaishnav log humesa ganga jal he kaam me late hain.Parantu pani se koi sadgati nahi hoti. Sadgati to gyan se hoti hai.Gyan sagar Baap tumhe shristi ke adi-madhya-ant ka gyan dete hain.Aatma ko pawan banane ka sadhan pani nah,uske liye to gyan aur yog ka injection chahiye jo ek Baap ke paas he hai.
 
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1)Sakshi ho har ek partdhari ka part dekhna hai.Baap se 21 janmo ka varsha lene ke liye poora purusharth karna hai.
2) Aatma ko sachcha sona(kanchan) banane ke liye is antim janm me pavitra ban Baap ko yaad karna hai.Sachchi kamayi karni hai.
 
Vardaan:--Master Sarvshaktimaan ki smruti dwara sarv halchalo ko merge karne wale Achal-Adol bhava.
Slogan:-- Najuk paristhitiyon me ghabrane ke bajaye unse paath padhkar swayang ko paribakwa bana lo.
HINDI DETAIL MURALI
21/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " "अव्यक्त-बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - यह अनादि खेल बना हुआ है, इसमें हर एक पार्टधारी का पार्ट अपना-अपना है, एक का पार्ट दूसरे से नहीं मिल सकता, यह भी कुदरत है''
 
प्रश्न:भक्तिमार्ग में गंगाजल को इतना मान क्यों देते हैं? भक्तों की इतनी प्रीत गंगाजल से क्यों?
उत्तर:   क्योंकि तुम बच्चे अभी ज्ञान जल (अमृत) से सद्गति को पाते हो, तुम्हारी प्रीत ज्ञान से है, जिससे तुम ज्ञान गंगा बन जाते हो इसलिए भक्तों ने फिर पानी को इतना मान दिया है। वैष्णव लोग हमेशा गंगा जल ही काम में लाते हैं। परन्तु पानी से कोई सद्गति नहीं होती। सद्गति तो ज्ञान से होती है। ज्ञान सागर बाप तुम्हें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं। आत्मा को पावन बनाने का साधन पानी नहीं, उसके लिए तो ज्ञान और योग का इन्जेक्शन चाहिए जो एक बाप के पास ही है।
 
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ...  ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चे जानते हैं कि यह ज्ञान मार्ग है जिससे सद्गति होती है अथवा स्वर्ग का राज्य भाग्य मिलता है, इसलिए इनको पाठशाला कहो अथवा कॉलेज कहो, युनिवर्सिटी कहो बात एक ही है। युनिवर्सिटी में बड़ी विद्या, उनमें छोटी विद्या मिलती है। हैं तो सब पाठशालायें, पाठशाला में कमाई के लिए पढ़ते हैं। तुम बच्चे जानते हो हमारी यह गुप्त पढ़ाई है। बेहद का बाप आकर आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मायें ही पढ़ती हैं। अगर कृष्ण भगवान होता तो तुम्हारा बुद्धियोग उनके चित्र की तरफ जाता, उनकी तरफ कशिश होती। उनके चित्र बिगर तुम रह नहीं सकते। परन्तु कृष्ण तो भगवान है नहीं। तो उल्टा समझने के कारण मनुष्यों को कृष्ण की ही याद रहती है। जिस्मानी याद तो बड़ी सहज है। रूहानी याद में मेहनत है। पूछते हैं बाबा कैसे याद करें? किसको याद करें? कृष्ण का चित्र तो स्वीट है, परमपिता परमात्मा तो निराकार है। वह खुद कहते हैं, मैं इस बुजुर्ग शरीर में बैठ तुम बच्चों को फिर से सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाता हूँ। है बहुत सहज सिर्फ बाबा को याद करना है। शिवबाबा को याद तो करते हैं ना। बनारस में कहते हैं शिव काशी, फिर कहते हैं विश्वनाथ गंगा। विश्वनाथ ने गंगा लाई। अब पानी के गंगा की तो बात नहीं। ज्ञान सागर ने यह ज्ञान गंगायें लाई हैं। तो ज्ञान गंगाओं को जरूर ज्ञान देने वाले ज्ञान सागर बाप की याद रहनी चाहिए। हे ज्ञान गंगायें, अगर तुम अपने को ज्ञान गंगा समझती हो तो ज्ञान सागर को याद करो। जो अपने को ज्ञान गंगा नहीं समझते वह अज्ञानी ठहरे। तुम बच्चे जानते हो हमको ज्ञान सागर ने सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान दिया है। अब हमको फिर सबको जाकर ज्ञान अमृत देना है। फिर कोई अंचली लेते, कोई लोटा भरते। वैष्णव जो होते हैं उनकी गंगा जल से प्रीत रहती है। वह हमेशा गंगाजल काम में लाते हैं। तुम्हारी फिर इस ज्ञान से प्रीत है क्योंकि इस ज्ञान से तुम सद्गति को पाते हो। शिवबाबा ने यह ज्ञान दिया है कि तुम आत्मा मुझ बाप को याद करो। वर्से को भी तुम जान गये हो। यह कौन समझाते हैं? परमपिता परमात्मा। कब स्वप्न में भी किसको यह ख्याल नहीं आयेगा कि परमात्मा से वर्सा कैसे मिलता है। परमपिता परमात्मा के बिगर यह बेहद का वर्सा मिल सके। परमपिता माना सभी मनुष्य मात्र का क्रियेटर। तो रचना का पिता हुआ ना। सिर्फ निराकार को ही परमपिता परम आत्मा कहा जाता है, उनको इन आंखों से देख नहीं सकते। भक्ति मार्ग में दिव्य दृष्टि से देखा जाता है। यहाँ भी तुमने आत्मा का साक्षात्कार नहीं किया है, फिर भी अपने को आत्मा निश्चय करते हो। जानते हो आत्मा अविनाशी है। आत्मा निकलने से शरीर कोई काम का नहीं रहता। यह तो सब जानते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परन्तु आत्मा क्या चीज़ है, यह कोई को पता नहीं। आत्मा बिन्दी मिसल अति सूक्ष्म ते सूक्ष्म है, जो भ्रकुटी के बीच निवास करती है। बिल्कुल छोटी सी आत्मा है, वही सब कुछ करती है। आत्मा नहीं होती तो यह कर्मेन्द्रियाँ भी चल सकें। आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेकर अपना पार्ट बजाती है। हर एक का पार्ट अपना-अपना है। एक मिले दूसरे से। एक्टर कभी एक जैसे नहीं होते हैं। इस खेल को कोई भी समझ नहीं सकते हैं। हर एक आत्मा का अपना-अपना पार्ट है। आत्मायें सभी एक ही रूप की हैं। बाकी शरीर भिन्न-भिन्न हैं। यह अनादि खेल बना हुआ है। इन बातों को विशालबुद्धि ही समझ सकते हैं। वन्डर खाना चाहिए - आत्मा बिन्दी मिसल उनमें 84 जन्मों का पार्ट अविनाशी नूँधा हुआ है जो कभी विनाश नहीं होता, इसको कहा जाता है कुदरत। आत्मा खुद कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा पार्ट बजाता हूँ। हम साक्षी हो सारी सृष्टि के पार्टधारियों का एक्ट देखते हैं। हम परमपिता परमात्मा से अपना 21 जन्मों के सुख का वर्सा फिर से ले रहे हैं जिसके लिए हमने 2500 वर्ष (आधाकल्प) भक्ति की है। तो जरूर भक्तों को भगवान मिलना ही है। अब तुमको पता पड़ा है - नम्बरवन भक्त, पुजारी तुम ठहरे। इस ड्रामा में पहले-पहले सतयुग में तुम देवी-देवताओं का पार्ट बज़ाने आते हो। इस समय तुम ब्राह्मण वर्ण में हो। हम आत्मा ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण धर्म के हैं। अभी पढ़ते इसलिए हैं कि हम ब्राह्मण धर्म से बदल दैवी धर्म में जायें। आत्मा को ज्ञान मिला है। ज्ञान से सद्गति होती है। जब सद्गति मिलनी होती है तो सबको मिलती है। बाप कहते हैं मैं ही सर्व का सद्गति दाता हूँ। मनुष्य गुरू कब होता नहीं। हमेशा देही-अभिमानी रहना है। समझो किसको बच्चा है, तो समझना चाहिए यह कर्मो के हिसाब-किताब से बच्चा बना, मर गया तो बस एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा लिया, हिसाब-किताब इतना ही था, पूरा किया, इसमें अ़फसोस करने वा रोने की बात ही नहीं। साक्षी हो खेल देखना है।
तुम बच्चे जानते हो हम 84 जन्म लेते हैं। सतयुग में हम देवी देवता थे। पहले तुम कुछ नहीं जानते थे। ब्रह्मा ने भी बहुत गुरू किये थे परन्तु इनको भी कुछ पता नहीं था। समझते थे 84 लाख जन्म होते हैं। अभी तुम ऐसे नहीं कहेंगे - बाप समझाते हैं मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे हम ही आकर सबकी सद्गति करते हैं। सभी धर्म वाले भक्त भगवान को किस किस प्रकार से याद जरूर करते हैं। कहते हैं - गॉड फादर, हे परमपिता परमात्मा... परन्तु परमात्मा को जानते नहीं। सिर्फ इतना समझते हैं परमपिता परमात्मा परमधाम में रहते हैं। परन्तु हम वहाँ कैसे जायें, हम तो जा नहीं सकते। सतयुगी देवतायें भी नहीं जा सकते, उनको 84 जन्म लेने हैं। वहाँ सुख है, वहाँ ख्याल भी नहीं होता, कहाँ जाने का है। बाप को भी याद नहीं करते। कहते हैं दु: में सिमरण सब करें... बाप समझाते हैं हम तुमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। वहाँ तुम सदा सुखी रहेंगे। कल्प को लाखों वर्ष आयु दे दी है, यह है भूल। भक्ति में मुँझारा बहुत है। दर-दर धक्का खाना, जप तप तीर्थ आदि करना सब भक्ति मार्ग है। आधाकल्प भक्ति मार्ग चलता है, यह भी खेल बना हुआ है। बाप कहते हैं सब बच्चे ड्रामा के वश हैं। मैं भी भल क्रियेटर, डायरेक्टर, करनकरावनहार हूँ। परन्तु मैं भी ड्रामा के वश हूँ। सिवाए एक टाइम, एक शरीर के दूसरे कोई शरीर में नहीं सकता हूँ। कहते हैं सदैव दादा के तन में आयेगा और इनको ही ब्रह्मा बनायेगा? हाँ, पहले-पहले इनका ही जन्म लक्ष्मी-नारायण था ना फिर इनको ही आदि देव, आदि देवी बनायेंगे। इस देलवाड़ा मन्दिर में शिव का भी चित्र है। आदि देव, आदि देवी भी हैं, बच्चे भी हैं। सब तपस्या में बैठे हैं। ऊपर में स्वर्ग भी है, पूरा यादगार खड़ा है। तुम यहाँ बैठे-बैठे दैवी झाड की स्थापना कर रहे हो। वह है जड़ चित्र। यहाँ तुम चैतन्य में बैठे हो। तुम स्वर्ग की स्थापना कर रहे हो श्रीमत पर। जो अच्छी तरह पढ़ते पढ़ाते हैं वह ऊंच पद पाते हैं। लक्ष्मी-नारायण ने क्या पुरुषार्थ किया होगा। तुम भी पुरुषार्थ कर रहे हो फिर से देवता बनें तो जरूर देवताओं ने पिछले जन्म में पुरुषार्थ किया होगा? मनुष्य मृत्युलोक में रहते हैं, देवतायें अमरलोक में रहते हैं। भारत अमरलोक था, फिर मृत्युलोक हुआ है। अभी है संगम, इनको कुम्भ का मेला कहा जाता है। कुम्भ का सच्चा-सच्चा मेला यह है। आत्मा परमात्मा मिलते हैं। अनेक बार मिले होंगे, अनेक बार मिलने वाले हैं। कोई तो पुरुषार्थ कर पूरा वर्सा लेंगे। कोई फिर चले जायेंगे। (परवानों का मिसाल) आते तो बहुत हैं। तुम बच्चों को निश्चय है कि यह हमारा बापदादा है। हम ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं। ब्रह्मा भी शिव का बच्चा है। हम धर्म के बच्चे हैं। बाप के बच्चे तो सब कहलाते हैं। परन्तु जो हम बी.के. कहलाते हैं तो गोया हम शिववंशी ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हो गये। शिवबाबा है दादा, उनको मुख्य बालक एक है, एक से फिर दूसरे पैदा होते हैं।
तुम जानते हो हम ब्रह्मा मुख वंशावली ढेर हैं। ढेर होते जायेंगे, पढ़ाने वाला शिवबाबा है। ब्रह्मा की आत्मा भी मुझको याद करती है, तुम्हें भी याद करना है। सृष्टि चक्र को याद करेंगे तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे। अभी तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो। तुम्हारे में भी नम्बरवार यह सिमरण करते हैं। गाया जाता है ना - सिमर-सिमर जीवनमुक्ति पाओ, वहाँ दु: होता नहीं। यह तो पुरानी दुनिया है। यह शरीर भी पुरानी जुत्ती है। घड़ी-घड़ी चत्तियाँ लगती रहती हैं। सर्प का मिसाल देते हैं ना। वह पुरानी खाल छोड़ नई ले लेते हैं। नई खाल चमकने लग पड़ती है। तो यह तुम्हारे 84 जन्मों की पुरानी खाल बिल्कुल जड़जड़ीभूत, तमोप्रधान है। अब तुम्हारी आत्मा और शरीर दोनों सतोप्रधान कैसे बनें, यह बाप आकर समझाते हैं। मीठे-मीठे बच्चे मामेकम् याद करो। इस याद रूपी अग्नि से जो तुम्हारे में खाद पड़ी है, वह जलकर भस्म हो जायेगी। तुम्हारी आत्मा सतोप्रधान बन जायेगी। फिर यह पुराना शरीर छोड़ आत्मा जाकर दूसरा शरीर लेगी। बाप की याद से ही विकर्म विनाश होंगे। भक्ति मार्ग में भी सिमरण करते हैं ना। नाम जपते हैं। पूजा करते हैं। उनको स्नान आदि कराते हैं। यहाँ तो शिवबाबा को स्नान आदि नहीं कराना है। वह तो अशरीरी है। शिव के मन्दिर में कभी शिव को कपड़ा आदि पहनाकर श्रृंगारते हैं क्या? कृष्ण को, लक्ष्मी-नारायण आदि को तो कितना श्रृंगारते हैं। निराकार का क्या श्रृंगार करेंगे! तो बाप कहते हैं तुम मुझ निराकार शिव की पूजा क्यों करते थे? जरूर कुछ मैं करके गया हूँ तब तो तुम पूजा आदि करते हो। तुम आत्मायें निराकार हो - मैं भी निराकार हूँ। तुम पुनर्जन्म लेते हो, मैं पुनर्जन्म नहीं लेता हूँ। मैं आकर तुमको स्वर्ग का, 21 जन्मों का वर्सा देता हूँ। सन्यासी आदि तो घरबार छोड़कर जाते हैं। तुमको तो कुछ छोड़ना नहीं है। सिर्फ यह अन्तिम जन्म पवित्र बन बाप को याद करो, बस। याद से ही तुम्हारी आत्मा कंचन हो जायेगी। आत्मा को लोहे से सोना पारसनाथ बना देते हैं।
तुम ही सच्ची-सच्ची कमाई करते हो। वह झूठी कमाई भी भल करते रहो, साथ-साथ यह भी करो। कोई भी पाप नहीं करना है। सर्जन तो एक है। हर एक के कर्मो के हिसाब की बीमारी अपनी है। बाप से कोई पूछे तो झट बतायेंगे कि ऐसे-ऐसे करो। एक बाप ही कर्मातीत अवस्था में ले जाने वाला है। यह है अविनाशी सर्जन की मत। हर एक के जो-जो बन्धन हैं, वह आकर पूछो। बच्चियाँ तो पति को भूँ-भूँ कर साथ में ले आती हैं। उनको समझाती हैं - पवित्र बनने बिगर तो स्वर्ग में जा नहीं सकेंगे। मरना तो सभी को है ही। यह भी समझ की बात है। मृत्युलोक का यह अन्त है। यह है संगम। अमरलोक की स्थापना हो रही है। अभी हम बाप का बनकर अर्थात् ब्राह्मण बनकर फिर देवता बनेंगे। फिर क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। यह मंत्र कितना अच्छा है फिर भी तुम भूल जायेंगे। योग में नहीं रहेंगे तो जो 63 जन्मों के पापों का बोझा सिर पर है वह कैसे भस्म होगा। गंगा के पानी से थोड़ेही पाप धुलेंगे। पाप आत्मा पर लगे हुए हैं। पापात्मा, पुण्यात्मा कहते हैं ना। तो तुम आत्माओं को पावन बनने का इन्जेक्शन चाहिए। वह इन्जेक्शन पतित-पावन बाप के ही पास है और कोई के पास यह इन्जेक्शन है नहीं इसलिए सब पुकारते हैं हे पतित-पावन आओ - आकर के हम पतितों को ज्ञान इन्जेक्शन दो तो हम पावन बनें। अब बच्चों को यात्रा पर तो चलना है ना। उठते-बैठते सदैव यात्रा पर रहो। बाप और घर को याद करो तो कमाई जमा होती रहेगी। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) साक्षी हो हर एक पार्टधारी का पार्ट देखना है। बाप से 21 जन्मों का वर्सा लेने के लिए पूरा पुरुषार्थ करना है।
2) आत्मा को सच्चा सोना (कंचन) बनाने के लिए इस अन्तिम जन्म में पवित्र बन बाप को याद करना है। सच्ची कमाई करनी है।
 
वरदान:मास्टर सर्वशक्तिमान् की स्मृति द्वारा सर्व हलचलों को मर्ज करने वाले अचल-अडोल भव!
जैसे शरीर का आक्यूपेशन इमर्ज रहता है, ऐसे ब्राह्मण जीवन का आक्यूपेशन इमर्ज रहे और उसका हर कर्म में नशा हो तो सर्व हलचलें मर्ज हो जायेंगी और आप सदा अचल-अडोल रहेंगे। मास्टर सर्व शक्तिमान् की स्मृति सदा इमर्ज है तो कोई भी कमजोरी हलचल में ला नहीं सकती क्योंकि वे हर शक्ति को समय पर कार्य में लगा सकते हैं, उनके पास कन्ट्रोलिंग पावर रहती है इसलिए संकल्प और कर्म दोनों समान होते हैं।
 
स्लोगन: नाज़ुक परिस्थितियों में घबराने के बजाए उनसे पाठ पढ़कर स्वयं को परिपक्व बना लो।
 

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Details ( Page:- Murali 22-Nov-2017 )
 
HINGLISH SUMMARY - 22.11.17     
Pratah Murli Om Shanti “BAPDADA” Madhuban
Mithe bacche -Baap ka farmaan hai Swadarshan chakra firate apna buddhi yog ek Baap se lagao,isse bikarm binash honge,seer se paapo ka bojha utar jayega.
Q-Is purushottam sangam yug ki bisheshtayein kaun-kaun si hai?
A- Yah sangam yug he kalyankari yug hai-isme he Aatma aur Parmatma ka sachcha mela lagta hai jise kumbh ka mela kehte hain.2-Is samay he tum sachche-sachche Brahman bante ho.3-Is sangam par tum dukhdham se sukhdham me jate ho.Dukho se choote ho.4-Is samay tumhe gyan sagar Baap dwara shristi ke adi-madhya-ant ka poora gyan milta hai.Nayi duniya ke liye naya gyan Baap dete hain.5-Tum saanvre se gora bante ho.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1)Swadarshan chakra firate poora-poora nastmoha banna hai.Mout seer par hai isiliye sabse mamatva nikaal dena hai.
2) Baap se varsha lene ke liye poora shrimat par chalna hai.Aatma-abhimaani ban sapoot baccha banna hai.
Vardaan:--Har ghadi ko antim ghadi samajh sada ever ready rehhe wale Tibra Purusharthi bhava.
Slogan:--Najuk samay par pass with honour banna hai to adjust hone ki shakti ko badhao.
 
HINDI DETAIL MURALI
22/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " "अव्यक्त-बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - बाप का फरमान है स्वदर्शन चक्र फिराते अपना बुद्धियोग एक बाप से लगाओ, इससे विकर्म विनाश होंगे, सिर से पापों का बोझा उतर जायेगा''
 
प्रश्न: इस पुरुषोत्तम संगमयुग की विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
 
उत्तर:
यह संगमयुग ही कल्याणकारी युग है - इसमें ही आत्मा और परमात्मा का सच्चा मेला लगता है जिसे कुम्भ का मेला कहते हैं। 2- इस समय ही तुम सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बनते हो। 3- इस संगम पर तुम दु:खधाम से सुखधाम में जाते हो। दु:खों से छूटते हो। 4- इस समय तुम्हें ज्ञान सागर बाप द्वारा सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का पूरा ज्ञान मिलता है। नई दुनिया के लिए नया ज्ञान बाप देते हैं। 5- तुम सांवरे से गोरा बनते हो।
 
गीत:- इस पाप की दुनिया से.....  ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों ने गीत सुना और बच्चों की बुद्धि में यह बैठा हुआ है कि बरोबर कलियुग पाप की दुनिया है। इस समय सब पाप ही करते रहते हैं। बाप आकर तुम बच्चों को कल्प-कल्प गति सद्गति देते हैं, जब पतित दुनिया को पावन बनाना होता है तब पतित-पावन बाप आते हैं, आकर बच्चों को आप समान बनाते हैं। बाप में कौन सा ज्ञान है? सारे सृष्टि चक्र का ज्ञान है। तुम बच्चे भी इस सृष्टि चक्र को जानते हो। यह सारा चक्र कैसे फिरता है, यह बाप में ज्ञान है, इसलिए उनको ज्ञान का सागर कहा जाता है। वही पतित-पावन है। इस चक्र को समझने से, स्वदर्शन चक्रधारी बनने से तुम फिर स्वर्ग के चक्रवर्ती राजा रानी बनते हो। तो बुद्धि में सारा दिन यह चक्र फिरना चहिए तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जायेंगे। फिर सतयुग में तो तुम यह चक्र नहीं फिरायेंगे। वहाँ स्व अर्थात् आत्मा को सृष्टि चक्र का ज्ञान नहीं होता। सतयुग में, कलियुग में, यह ज्ञान सिर्फ संगमयुग पर तुमको मिलता है। संगम की बहुत महिमा है। कुम्भ का मेला करते हैं ना। वास्तव में यह है ज्ञान सागर और नदियों का मेला अर्थात् परम आत्मा और आत्माओं का मेला। वह कुम्भ का मेला भक्ति मार्ग का है। यह आत्मा और परमात्मा का मेला इस सुहावने कल्याणकारी संगमयुग पर ही होता है, जबकि तुम दु:खों से छूट सुख में जाते हो इसलिए बाप को दु: हर्ता सुख कर्ता कहा जाता है। आधाकल्प सुख और आधाकल्प दु: चलता है। दिन और रात आधा-आधा है। मकान भी नया पुराना होता है। नये घर में सुख, पुराने घर में दु: होता है। दुनिया भी नई और पुरानी होती है। आधाकल्प सुख रहता है फिर मध्य से दु: शुरू होता है। दु: के बाद फिर सुख होता है। दु:खधाम से फिर सुखधाम कैसे बनता है, कौन बनाते हैं। यह दुनिया भर में कोई नहीं जानते। मनुष्य तो घोर अन्धियारे में हैं। सतयुग को बहुत लम्बा समय दे दिया है। अगर सतयुग की आयु बड़ी हो तो आदमी कितने होने चाहिए। वापिस तो कोई भी जा नहीं सकते। सबको इक्ट्ठा होना ही है। वापिस तो तब जायें जब बाप आकर घर का रास्ता बताये। इतनी सब आत्माओं को बाप संगमयुग पर आकर पूरा रास्ता बताते हैं, तुम जानते हो हम 84 जन्मों का चक्र लगाकर आये हैं। सतयुग, त्रेता में हमने कितने जन्म लिये हैं, वहाँ कितने वर्ष कौन-कौन राज्य करते हैं। सारा तुम्हारी बुद्धि में है। सतयुग में हैं 16 कला सम्पूर्ण, फिर 14 कला फिर उतरती कला होती है। इस समय बहुत दु: है। दु: होता ही है पुरानी दुनिया में। सतयुग को नई दुनिया, कलियुग को पुरानी दुनिया कहा जाता है। अभी है संगम। अब पुरानी दुनिया का विनाश होता है, बाप नई दुनिया बना रहे हैं। तुम पुरानी दुनिया से निकल जाए नये घर में बैठेंगे। तुम कहेंगे हम नये घर के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं कि हम नई दुनिया में ऊंच पद पायें। बाप सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो और कोई तकलीफ नहीं देते। कैसे भी टाइम निकाल फरमान मानना चाहिए। परन्तु माया ऐसी है जो फरमान मानने नहीं देती। बाप से बुद्धियोग लगाने नहीं देती। परन्तु तुम बच्चों ने कल्प पहले भी पुरुषार्थ कर इस माया रूपी रावण पर जीत पाई है तब तो सतयुग की स्थापना होती है। जितना जो मददगार बनता है उनको उतना इज़ाफा भी मिलता है। तो बच्चों को यह नॉलेज मित्र सम्बन्धियों को भी देनी है। बाप का फरमान है कि मुझे याद करो क्योंकि आधाकल्प के विकर्मो का बोझा सिर पर है, उनको भस्म करने का कोई उपाय नहीं सिवाए याद के। भल गंगा जमुना को पतित-पावनी कहते हैं, समझते हैं हम पावन हो जायेंगे परन्तु पानी से पाप कैसे कटेंगे। यह है पतित दुनिया तब सब पुकारते हैं हे पतित-पावन आकर सतयुग की स्थापना करो। सो तो सिवाए बाप के कोई स्थापन कर सके। तो यह है नई दुनिया के लिए नया ज्ञान। देने वाला एक ही बाप है, कृष्ण ने ज्ञान नहीं दिया, कृष्ण को पतित-पावन नहीं कहा जाता। पतित-पावन तो एक ही परमपिता परमात्मा है, जो पुनर्जन्म रहित है।
तुम जानते हो- कृष्णपुरी को ही विष्णुपुरी कहा जाता है। कृष्ण की राजधानी अपनी, राधे की राजधानी अपनी फिर उन्हों की आपस में सगाई होती है। राधे कृष्ण कोई भाई बहन नहीं थे। भाई बहन की आपस में शादी नहीं होती। अब तुम्हारी बुद्धि में यह बातें टपकती रहती हैं। पहले यह नहीं जानते थे। अब मालूम पड़ा है कि राधे कृष्ण ही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। स्वर्ग के महाराजा और महारानी, प्रिन्स और प्रिन्सेज राधे कृष्ण गाये हुए हैं। उन्हों के माँ बाप का इतना उंचा मर्तबा नहीं है। यह क्यों हुआ? क्योंकि उन्हों के माँ बाप कम पढ़े हुए हैं। राधे कृष्ण का जितना नाम है, उन्हों के माँ बाप का तो जैसे नाम है नहीं। वास्तव में जिसने जन्म दिया उन्हों का नाम बहुत होना चाहिए। परन्तु नहीं, राधे कृष्ण सबसे ऊंच हैं। उन्हों के ऊपर तो कोई है नहीं। राधे कृष्ण पहले नम्बर में गये हैं फिर पहले नम्बर में महाराजा महारानी भी बने हैं। भल जन्म माँ बाप से लिया है परन्तु नाम उन्हों का ऊंचा है। यह बुद्धि में अच्छी तरह बिठाना है। जबकि तुम यहाँ बैठे हो तो यह स्वदर्शन चक्र फिराते रहो। इस चक्र फिराने से तुम्हारे पाप भस्म होते हैं अर्थात् रावण का सिर कटता है। यह सतयुग, त्रेता... का चक्र है ना। हम पहले सो देवता थे फिर क्षत्रिय, वैश्य.... बनें। अब फिर हम ब्राह्मण बने हैं। फिर हम सो देवता बनेंगे। बाबा ने ओम् का अर्थ अलग समझाया है, हम सो का अर्थ अलग है। शास्त्रों में एक ही कर दिया है। वह समझते हैं ओम् अर्थात् हम आत्मा सो परमात्मा। परमात्मा सो आत्मा - यह है उल्टा। बाप समझाते हैं ओम् अर्थात् हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। मैं भगवान, यह कोई ओम् का अर्थ नहीं है। हम आत्मा निराकार हैं। हमारा बाप भी निराकार है। साकार शरीर का बाप भी साकार है। हम परमात्मा की सन्तान हैं तो हमको स्वर्ग की राजधानी जरूर चाहिए। बाप हमको स्वर्ग का वर्सा देने आये हैं। रावण फिर आधाकल्प के बाद श्राप देते हैं तो तुम दु:खी तमोप्रधान बन जाते हो। फिर बाप आकर सुखी बनने का वर देते हैं। ऐसे नहीं कहते चिरन्जीवी भव। परन्तु कहते हैं मुझे याद करो तो इस जन्म सहित जो भी जन्म जन्मान्तर के पाप हैं वह भस्म हो जायेंगे, इसको योग अग्नि कहा जाता है। रावणराज्य में सबको पतित जरूर बनना है। पतित और पावन आत्मा बनती है, परमात्मा तो सदैव पावन है, वह सबको पावन बनाते हैं। पतित बनाते हैं रावण। सतयुग में विकार होते नहीं। वह है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया, तब तो देवताओं के आगे जाकर गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न..... यह महिमा शिव के आगे नहीं गायेंगे। देवतायें जो पावन हैं सो पतित बनते हैं, यह खेल है। बाप सुखधाम बनाते हैं, शिव को बाप कहते हैं। सालिग्राम अलग हैं, रुद्र यज्ञ में एक बड़ा लिंग बनाते हैं, बाकी छोटे-छोटे सालिग्राम बनाते हैं। हम आत्मा 84 जन्म लेते हैं, दूसरे धर्म वालों के लिए 84 जन्म नहीं कहेंगे। सिक्ख धर्म वाले 500 वर्ष में कितने जन्म लेते होंगे? हम कितने लेते हैं? यह बाप समझाते हैं, ब्राह्मणों की ही चोटी मशहूर है। सच्चे ब्राह्मण होते ही हैं संगम पर। यह कल्याणकारी युग है। यहाँ ही तुम सबका कल्याण होता है। रावण अकल्याण करते हैं, बाप आकर कल्याण करते हैं। तो बाप की मत पर चल कल्याण करना चाहिए ना। श्रीमत शिव भगवानुवाच - शिवबाबा जन्म नहीं लेते, वह प्रवेश करते हैं। जन्म तब कहें जब पालना लेवें। वह कभी पालना नहीं लेते हैं। सिर्फ कहते हैं मेरी श्रीमत पर चलो। स्वर्ग के तुम मालिक बनो। मुझे तो बनना नहीं है, मैं तो अभोक्ता हूँ।
तो समझना चाहिए बाबा हम आत्माओं को समझा रहे हैं, आत्मा ही समझती है ना। आत्मा ही बैरिस्टर, इन्जीनियर बनती है। मैं फलाना हूँ। आत्मा ने कहा - हम देवता थे, फिर हम 8 जन्म बाद क्षत्रिय बने, फिर 12 जन्म लिये, फिर मैं पतित बनता हूँ। अब बाप कहते हैं बच्चे, आत्म-अभिमानी भव। यह समझने की बातें हैं। आत्मा कहती है हम सतयुग में थे तो महान आत्मा थे फिर कलियुग में महान पाप आत्मा हैं। सबसे महान ते महान, महान आत्मा है एक परमात्मा, जो सदैव पवित्र है। यहाँ तो मनुष्य सदैव पवित्र रहते नहीं। सदैव पवित्र तो सुखधाम में रहते हैं। त्रेता में भी कुछ कला कम होती जाती हैं। अभी हमारी चढ़ती कला है। हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं। फिर त्रेता में आयेंगे तो 2 कला कम हो जायेंगी फिर द्वापर में 5 विकारों का ग्रहण लगने से काले होते जाते हैं। अभी बाप कहते हैं इन 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण उतर जाये, फिर तुम सतयुगी सम्पूर्ण देवता बन जायेंगे। पहले-पहले देह-अभिमान छोड़ो, काम विकार का दान दो। अन्त में आकर नष्टोमोहा बनना होता है। अभी तुम आत्माओं को स्मृति आई है कि हमने बरोबर 84 जन्म भोगे हैं। द्वापर से रावण ने श्रापित किया है, इसलिए सब दु:खी हैं। क्या द्वापर के राजा रानी आदि बीमार नहीं पड़ते होंगे? यह भी दु: हुआ ना। यह है ही दु: की दुनिया, सतयुग ही है सुखधाम। तो भगवान की श्रीमत माननी चाहिए ना। बेहद के बाप की जो मत नहीं मानते उन्हें महान कपूत कहा जाता है। कपूत बच्चे को बाप से क्या वर्सा मिलेगा! सपूत बच्चे वर्सा भी अच्छा लेते हैं। जो खुद पवित्र बन औरों को पवित्र बनाते हैं। बेहद का बाप आत्माओं को पढ़ाते हैं हे आत्मायें कानों से सुनती हो? कहते हैं हाँ बाबा हम आपकी श्रीमत पर चल जरूर श्रेष्ठ बनेंगे। ऊंच ते ऊंच भगवान है तो जरूर पद भी ऊंच ते ऊंच देंगे ना। स्वर्ग का वर्सा देते हैं आधाकल्प के लिए। लौकिक बाप से तो हद का वर्सा मिलता है, अल्पकाल का सुख। कलियुग में है काग विष्ठा समान सुख इसलिए सन्यासी घरबार छोड़ देते हैं। वह गृहस्थ धर्म को नहीं मानते हैं। गृहस्थ धर्म सतयुग में है ना।
तुम जानते हो इस पढ़ाई से हम विष्णुपुरी में जाते हैं उसके लिए परमपिता परमात्मा हमको पढ़ा रहे हैं। भक्तों को पता ही नहीं है कि भगवान कौन है, उनका कर्तव्य कौन सा है? कैसे वह पतित से पावन बनाते हैं? अभी तुम पावन बन रहे हो। दुनिया उस पतित-पावन बाप को याद कर रही है। अभी तुम संगमयुग पर खड़े हो, बाकी सब कलियुग में हैं। वह समझते हैं कि कलियुग तो अजुन बच्चा है। तुम जानते हो कि कलियुग का अब विनाश होने पर है। अब तुम्हें सतयुग में जाना है। बाप ने तुम्हें स्मृति दिलाई है - मैं कल्प-कल्प तुमको वर्सा देता हूँ। तो वर्सा पूरा लेना चाहिए ना। तो बाप ऐसे थोड़ेही कहते हैं कि यहाँ बैठ जाओ। भल घर गृहस्थ में रहो सिर्फ यह स्वदर्शन चक्र फिराते रहो और नष्टोमोहा हो जाओ। एक शिवबाबा दूसरा कोई, हम जानते हैं कि अब हमारा नया सम्बन्ध जुट रहा है, तो पुराने में ममत्व नहीं रहना चाहिए। नई दुनिया, नई राजधानी से ममत्व रखना है। अब तो मौत बिल्कुल सिर पर सवार है। तैयारियाँ होती रहती हैं। सतयुग में अकाले मृत्यु होती नहीं। समय पर एक पुरानी खाल छोड़ नई ले लेते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) स्वदर्शन चक्र फिराते पूरा-पूरा नष्टोमोहा बनना है। मौत सिर पर है इसलिए सबसे ममत्व निकाल देना है।
2) बाप से वर्सा लेने के लिए पूरा श्रीमत पर चलना है। आत्म-अभिमानी बन सपूत बच्चा बनना है।
 
वरदान: हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझ सदा एवररेडी रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव!
जो बच्चे तीव्र पुरूषार्थी हैं वह हर घड़ी को अन्तिम घड़ी समझकर एवररेडी रहते हैं। ऐसा नहीं सोचते कि अभी तो विनाश होने में कुछ टाइम लगेगा, फिर तैयार हो जायेंगे। उस अन्तिम घड़ी को देखने के बजाए यही सोचो कि अपनी अन्तिम घड़ी का कोई भरोसा नहीं इसलिए एवररेडी, अपनी स्थिति सदा उपराम रहे। सबसे न्यारे और बाप के प्यारे, नष्टोमोहा। सदा निर्मोही और निर्विकल्प, निरव्यर्थ, व्यर्थ भी हो तब कहेंगे एवररेडी।
 
स्लोगन: नाजुक समय पर पास विद ऑनर बनना है तो एडॅजेस्ट होने की शक्ति को बढ़ाओ।
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Details ( Page:- Murali 23-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 23.11.17     
Pratah Murli Om Shanti “BAPDADA” Madhuban
Mithe bacche -Tumhe grihast byavahar me rehte sabhi se tod nibhana hai,ek baar behad ka sannyas kar 21 janm ki pralabdh banani hai.
 
Q-Chalte-firte kaun si ek baat yaad rahe to bhi tum roohani yatra par ho?
A-Chalte firte yaad rahe ki hum actor hain,humko ab wapis ghar jana hai.Baap yahi yaad dilate hain.Bacche me tumhe wapis le jane aya hoon,is smruti me rehna he manmanabhava,madhyaji bhava hai.Yahi roohani yatra hai jo tumhe Baap sikhlate hain.
 
Q- Sadgati ke lakshan kaun se hain?
A-Sarvgoon sampann 16 kala sampoorn...yah jo mahima hai yahi sadgati ke lakshan hain,jo tumhe Baap dwara prapt hote hain.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1)Kisi bhi baat ka afsoos nahi karna hai.Apni buddhi ki line sada clear rakhni hai.Grihachari se apni sambhal karni hai.
2) Grihast byavahar se tod nibhana hai,nafrat nahi karni hai.Kamal phool samaan rehna hai.Aastik ban sabko aastik banana hai.
 
Vardaan:--Swarajya ke saath behad ki vairagya briti ko dharan karne wale Sachche-sachche Rajrishi bhava.
Slogan:-- Samajhdar wo hai jo sab aadhar tootne ke pehle ek Baap ko apna aadhar bana le.
 
HINDI DETAIL MURALI
23/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " "अव्यक्त-बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम्हें गृहस्थ व्यवहार में रहते सभी से तोड़ निभाना है, एक बार बेहद का सन्यास कर 21 जन्म की प्रालब्ध बनानी है"
 
प्रश्न:चलते-फिरते कौन सी एक बात याद रहे तो भी तुम रूहानी यात्रा पर हो?
उत्तर:
चलते फिरते याद रहे कि हम एक्टर हैं, हमको अब वापिस घर जाना है। बाप यही याद दिलाते हैं। बच्चे मैं तुम्हें वापिस ले जाने आया हूँ, इस स्मृति में रहना ही मनमनाभव, मध्याजी भव है। यही रूहानी यात्रा है जो तुम्हें बाप सिखलाते हैं।
 
प्रश्न: सद्गति के लक्षण कौन से हैं?
उत्तर: सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण... यह जो महिमा है यही सद्गति के लक्षण हैं, जो तुम्हें बाप द्वारा प्राप्त होते हैं।
 
गीत:- धीरज धर मनुवा...  ओम् शान्ति।
बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं कि अब पुराना नाटक पूरा होता है। दु: के दिन बाकी कुछ घड़िया हैं और फिर सदा सुख ही सुख होगा। जब सुख का पता पड़ता है तब समझा जाता है यह दु:खधाम है, दोनों में बहुत अन्तर है। अभी सुख के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो अथवा श्रीमत पर चल रहे हो। कोई को भी ये समझाना बहुत सहज है। अभी बाबा के पास जाना है। बाबा लेने आया है। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र रहना है। तोड़ जरूर निभाना है। अगर तोड़ निभाया तो जैसे सन्यासियों मिसल हो गये। जो तोड़ नहीं निभाते हैं उनको निवृत्ति मार्ग अथवा हठयोग कहा जाता है। अभी भगवान राजयोग सिखलाते हैं जो हम सीखते हैं। भारत का धर्म शास्त्र है गीता। दूसरों के धर्म शास्त्र क्या हैं, उनसे अपना कोई तैलुक नहीं। सन्यासी प्रवृत्ति मार्ग वाले नहीं हैं। उन्हों का है हठयोग, घरबार छोड़ जंगल में चले जाना। उन्हों को जन्म बाई जन्म सन्यास करना पड़ता है। तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते एक बार सन्यास करते हो फिर 21 जन्म उनकी प्रालब्ध पाते हो। उन्हों का है हद का सन्यास, तुम्हारा है बेहद का सन्यास। तुम्हारे राजयोग का तो बहुत गायन है। भगवान ने राजयोग सिखाया था। भगवान ऊंचे ते ऊंचे को ही कहा जाता है। श्रीकृष्ण भगवान हो सके। बेहद का बाप है ही निराकार। बेहद की बादशाही वही दे सकते हैं। यहाँ गृहस्थ व्यवहार से ऩफरत नहीं की जाती है। बाप कहते हैं यह अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनो। पतित-पावन कोई सन्यासी को कह नहीं सकते। वह भी पावन दुनिया चाहते हैं। वह दुनिया है एक, जिसके लिए पतित-पावन बाप को बुलाते हैं। जबकि वह गृहस्थ व्यवहार में ही नहीं हैं तो देवताओं को भी नहीं मानेंगे। वह कभी राजयोग सिखला सकें। बाप कभी हठयोग सिखला सके। यह समझने की बातें हैं।
अब देहली में वर्ल्ड कानफ्रेन्स होनी है। वहाँ यह समझाना है, लिखत में देना है। लिखत में होगा तो सब समझ जायेंगे। अब हम हैं ऊंचे ते ऊंच ब्राह्मण कुल के। वह हैं शूद्र कुल के। हम हैं आस्तिक। वह हैं नास्तिक। वह हैं ईश्वर को जानने वाले। हम हैं ईश्वर से योग रखने वाले। तो मतभेद है ना। बाप ही आकर आस्तिक बनाते हैं। बाप का बनने से बाप का वर्सा मिल जाता है। यह बड़ी पेचीली बातें हैं। पहले-पहले तो बुद्धि में बिठाना है कि गीता का भगवान परमपिता परमात्मा है। उसने ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन किया था। भारत का देवी-देवता धर्म ही मुख्य है। भारतवासी अपने धर्म को भूल गये हैं। यह भी तुम जानते हो, भारतवासियों को ड्रामा-अनुसार अपना धर्म भूलना ही है, तब तो बाप आकर फिर स्थापन करे। नहीं तो बाप आये कैसे? कहते हैं जब-जब देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है, तब मैं आता हूँ। प्राय:लोप भी जरूर होना है। कहते हैं बैल की एक टांग टूट गई है, बाकी 3 टांगों पर दुनिया खड़ी है। मुख्य हैं ही 4 धर्म। अभी देवता धर्म की टांग टूटी हुई है अर्थात् वह धर्म गुम हो गया है इसलिए बड़ के झाड़ का मिसाल देते हैं कि फाउन्डेशन सड़ गया बाकी टाल टालियाँ खड़ी हैं। तो इनमें भी फाउन्डेशन देवता धर्म का है नहीं। बाकी मठ पंथ आदि बहुत खड़े हैं। तुम्हारी बुद्धि में अब सारी रोशनी है।
बाप कहते हैं तुम बच्चे इस ड्रामा के राज़ को जान गये हो कि सारा झाड़ पुराना हो गया है। कलियुग के बाद सतयुग को आना है जरूर, चक्र को फिरना है जरूर। बुद्धि में रखना है कि अब नाटक पूरा हुआ है, हम जा रहे हैं। चलते-फिरते यह याद रहे कि अब हमको वापिस जाना है। मनमनाभव, मध्याजी भव का भी यही अर्थ है। कोई भी बड़ी सभा में भाषण आदि करना है, तो यही समझाना है कि परमपिता परमात्मा फिर से कहते हैं हे बच्चे, देह सहित देह के सब धर्म त्याग अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो पाप दग्ध होंगे। मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बन मुझे याद करो। पवित्र रहो, नॉलेज को भी धारण करो। अभी सब दुर्गति में हैं। सतयुग में देवतायें सद्गति में थे। फिर बाबा आकर सद्गति करते हैं। सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण... यह है सद्गति के लक्षण। यह लक्षण कौन देते हैं? बाप। उनके फिर लक्षण क्या हैं? वह ज्ञान का सागर, शान्ति का सागर... है। उनकी महिमा बिल्कुल अलग है। ऐसे नहीं सब एक ही एक है। एक बाप है, हम सब आत्मायें बच्चे हैं। अब नई रचना रची जाती है। हम प्रजापिता ब्रह्मा की सब औलाद हैं। परन्तु वो लोग इन बातों को समझ नहीं सकते। ब्राह्मण वर्ण सबसे ऊंच है। भारत के ही वर्ण गाये जाते हैं। 84 जन्म लेने में इन वर्णो से पास करना होता है। ब्राह्मण हैं ही संगम पर। अच्छा साइलेन्स तो बहुत अच्छी है। शान्ति का हार तो गले में पड़ा है। एक रानी की कहानी है। अब शान्तिधाम अपना घर बहुत याद पड़ता है। चाहते सब हैं शान्ति घर में जायें परन्तु रास्ता कौन बताये? शान्ति के सागर बाप के सिवाए कोई बता सके। बाप की महिमा अच्छी है। शान्ति का सागर, आनंद का सागर... मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, कितना रात दिन का फ़र्क है। कृष्ण को सृष्टि का बीजरूप कह सकें। बाप की महिमा ही अलग है। सर्वव्यापी कहने से महिमा सिद्ध नहीं होती। ऐसे भी नहीं परमात्मा बैठ अपनी पूजा करेंगे। परमात्मा सदैव पूज्य है, वह कभी पुजारी नहीं बनता। ऊपर से जो भी आते हैं वह पूज्य से पुजारी बनते हैं। प्वाइन्ट्स तो बहुत हैं। अब देखो, आते तो कितने ढेर हैं। परन्तु निकलते कोटों में कोई हैं क्योंकि मंजिल ऊंची है। प्रजा तो ढेर बनती रहेगी। परन्तु कोटों में कोई माला का दाना बनते हैं। नारद का मिसाल...... तुम अपनी शक्ल देखो लक्ष्मी को वरने लायक बने हो? राजा तो थोड़े बनेंगे। एक राजा की ढेर प्रजा बनती है। पुरुषार्थ करना चाहिए - ऊंच बनने का। राजाओं में भी कोई बड़ा राजा, कोई छोटा। भारत के कितने राजायें हैं, कितनी राजाईयां चली आती हैं। सतयुग में भी बहुत राजायें, महाराजायें होते हैं, महाराजाओं के फिर प्रिन्स प्रिन्सेज भी होते, उनके पास बहुत प्रापर्टी होती है, राजाओं के पास कम प्रापर्टी होती। अभी है प्रजा का प्रजा पर राज्य। अभी राजधानी स्थापन हो रही है। यह है श्री लक्ष्मी-नारायण बनने की नॉलेज। उसके लिए ही तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। पूछते हैं लक्ष्मी-नारायण का पद पायेंगे वा राम सीता का? तो सब कहते हैं लक्ष्मी-नारायण का। बाप से पूरा वर्सा लेंगे। वन्डरफुल बातें हैं और कोई जगह यह बातें नहीं हैं। कोई शास्त्र में ही हैं। अब तुम्हारी बुद्धि का ताला खुल गया है। बाप समझाते हैं चलते फिरते अपने को एक्टर समझो। अब हमको वापिस जाना है, यह सदैव याद रहे - इसको ही मनमनाभव, मध्याजी भव कहा जाता है। बाप घड़ी-घड़ी याद दिलाते हैं, बच्चे तुमको वापिस ले जाने आया हूँ। यह है रूहानी यात्रा। यह बाप के सिवाए और कोई करा नहीं सकते। भारत की महिमा भी करनी है। यह भारत होलीएस्ट लैण्ड है। सर्व के दु: हर्ता सुख कर्ता, सबके सद्गति दाता बाप का बर्थ प्लेस है। वही बाप सबका लिबरेटर भी है। यह बड़े ते बड़ा तीर्थ स्थान है। भारतवासी भल शिव के मन्दिर में जाते हैं परन्तु वह बाप को जानते नहीं हैं। गांधी को जानते हैं, समझते हैं वह बहुत अच्छा था, इसलिए उन पर जाकर फूल चढ़ाते हैं। लाखों खर्चा करते हैं। अब इस समय है उन्हों का राज्य। जो चाहे सो कर सकते हैं। यह तो बाप बैठ गुप्त धर्म की स्थापना करते हैं। भारत में पहले देवताओं का राज्य था। दिखाते हैं असुरों और देवताओं की लड़ाई लगी। परन्तु ऐसी बात है नहीं। यहाँ युद्ध के मैदान में माया पर जीत पाई जाती है। माया पर जीत तो जरूर सर्वशक्तिमान बाप ही पहनायेंगे। कृष्ण को सर्वशक्तिमान नहीं कहा जाता है। बाप ही रावण राज्य से छुड़ाए रामराज्य की स्थापना कर रहे हैं। बाकी वहाँ लड़ाई आदि की बात होती नहीं। कृष्ण को सर्वशक्तिमान कह नहीं सकते। अभी देखेंगे मनुष्यों में सर्वशक्तिमान क्रिश्चियन लोग हैं। वह सब पर जीत पहन सकते हैं। परन्तु वह विश्व का मालिक बनें, यह कायदा नहीं है। इस राज़ को तुम ही जानते हो। इस समय सर्वशक्तिमान राजधानी क्रिश्चियन की है। नहीं तो उन्हों की संख्या सबसे कम होनी चाहिए क्योंकि लास्ट में आये हैं, परन्तु तीनों धर्मो में यह सबसे तीखा है। सबको हाथ में कर बैठे हैं। यह भी ड्रामा बना हुआ है। इन द्वारा ही फिर हमको राजधानी मिलनी है। कहानी भी है दो बन्दर लड़े माखन तीसरे को मिल जाता है। वह आपस में लड़ते हैं - माखन भारतवासियों को मिल जाता है। कहानी तो पाई पैसे की है। अर्थ कितना बड़ा है। मनुष्य एक्टर होते भी ड्रामा को नहीं जानते। इस ज्ञान को समझते फिर भी गरीब हैं। साहूकार लोग कुछ भी नहीं समझते। गरीब-निवाज़ पतित-पावन बाप ही गाया हुआ है। अब प्रैक्टिकल में पार्ट बजा रहे हैं। बड़ी-बड़ी सभाओं में तुमको समझाना है। विवेक कहता है कि धीरे-धीरे वाह-वाह निकलेगी। लास्ट मूवमेन्ट में डंका बजना है। अभी तो बच्चों पर गृहचारी बैठती रहती है। लाइन क्लीयर नहीं है। विघ्न पड़ते रहते हैं। जितना पुरुषार्थ करेंगे उतनी ऊंच प्रालब्ध मिलेगी। पाण्डवों को 3 पैर पृथ्वी के नहीं मिलते थे - अभी का यह गायन है। परन्तु यह किसको पता नहीं है कि वही फिर विश्व के मालिक बनेंगे। प्रैक्टिकल में तुम बच्चे अब जानते हो, इसमें अ़फसोस नहीं किया जाता है। कल्प पहले भी ऐसे हुआ था। ड्रामा के पट्टे पर खड़ा रहना है। हिलना नहीं चाहिए। अब नाटक पूरा होता है। चलते हैं सुखधाम में। पढ़ाई ऐसी पढ़ें जो ऊंच पद पा लेवें। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी बात का अ़फसोस नहीं करना है। अपनी बुद्धि की लाइन सदा क्लीयर रखनी है। गृहचारी से अपनी सम्भाल करनी है।
2) गृहस्थ व्यवहार से तोड़ निभाना है, ऩफरत नहीं करनी है। कमल फूल समान रहना है। आस्तिक बन सबको आस्तिक बनाना है।
 
वरदान: स्वराज्य के साथ बेहद की वैराग्य वृत्ति को धारण करने वाले सच्चे-सच्चे राजऋषि भव!
 
एक तरफ राज्य और दूसरे तरफ ऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी। ऐसे राजऋषि का कहाँ भी - चाहे अपने में, चाहे व्यक्ति में, चाहे वस्तु में..... लगाव नहीं हो सकता क्योंकि स्वराज्य है तो मन-बुद्धि-संस्कार सब अपने वश में हैं और वैराग्य है तो पुरानी दुनिया में संकल्प मात्र भी लगाव जा नहीं सकता, इसलिए स्वयं को राजऋषि समझना अर्थात् राजा के साथ-साथ बेहद के वैरागी बनना।
 
स्लोगन: समझदार वह है जो सब आधार टूटने के पहले एक बाप को अपना आधार बना ले।
 
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
 
तुम मात पिता हम बालक तेरे तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे... अब यह महिमा किसके लिये गाई हुई है? अवश्य परमात्मा के लिये गायन है क्योंकि परमात्मा खुद माता पिता रूप में आए इस सृष्टि को अपार सुख देता है। जरूर परमात्मा ने कब सुख की सृष्टि बनाई है तभी तो उनको माता पिता कहकर बुलाते हैं। परन्तु मनुष्यों को यह पता ही नहीं कि सुख क्या चीज़ है? जब इस सृष्टि पर अपार सुख थे तब सृष्टि पर शान्ति थी, परन्तु अब वो सुख नहीं हैं। अब मनुष्य को यह चाहना उठती अवश्य है कि वो सुख हमें चाहिए, फिर कोई धन पदार्थ मांगते हैं, कोई बच्चे मांगते हैं, कोई तो फिर ऐसे भी मांगते हैं कि हम पतिव्रता नारी बनें, जब तक मेरा पति जिंदा है, हम दुवागिन बनें, तो चाहना तो सुख की ही रहती है ना। तो परमात्मा भी कोई समय उन्हों की आश अवश्य पूर्ण करेंगे। तो सतयुग के समय जब सृष्टि पर स्वर्ग है तो वहाँ सदा सुख है, जहाँ स्त्री कभी दुहागिन नहीं बनती, तो वो आश सतयुग में पूर्ण होती है जहाँ अपार सुख है। बाकी तो इस समय है ही कलियुग। इस समय तो मनुष्य दु: ही दु: भोगते हैं। बाकी जब मनुष्य अति दु: भोगते हैं तो कह देते हैं कि प्रभु का भाना मीठा करके भोगना है। परन्तु जब स्वयं परमात्मा आकर हमारे सारे कर्मों का खाता चुक्तू करता है तब ही हम कहेंगे तुम माता पिता.. अच्छा।
ओम् शान्ति।
 
 

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Details ( Page:- Murali 24-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 24.11.17     
Pratah Murli Om Shanti “BAPDADA” Madhuban
Mithe bacche -Ab tumhari dil me khushi ki sehenayi bajni chahiye kyunki Baap aaye hain haath me haath dekar saath le jane,ab tumhare sukh ke din aaye ki aaye.
 
Q- Abhi naye jhaad ka kalam lag raha hai isiliye kaun si khabardari avasya rakhni hai?
A-Naye jhaad ko toofan bahut lagte hain.Aise-aise toofan aate hain jo sab phool fal adi gir jate hain.Yahan bhi tumhare naye jhaad ka jo kalam lag raha hai usey bhi maya zor se hilayegi.Anek toofan aayenge.Maya sansay buddhi bana degi.Buddhi me Baap ki yaad nahi hogi to murjha jayenge,gir bhi padenge isiliye Baba kehte bacche maya se bachne ke liye mukh me muhlara daal do arthat dhanda adi bhal karo lekin buddhi se Baap ko yaad karte raho.Yahi hai mehnat.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
1)Is behad ki duniya se vairagya rakh isey buddhi se bhoolna hai.Abinashi gyan ratna dharan kar bhavisya ke liye dhanvan banna hai.
2) Nayi duniya ke liye Baap jo baate soonate hain wo yaad rakhni hai.Baki sab padha hua bhool jana hai,aisa jeete ji marna hai.
 
Vardaan:-Ekras sthiti ke aashan par mann-buddhi ko bithane wale ho.Sachche Tapasvi bhava.
 
Slogan:-Dusre ke bicharo ko apne bicharo se milakar sarv ko samaan dena he mananiya banne ka sadhan hai.
 
HINDI DETAIL MURALI
24/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " "अव्यक्त-बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - अब तुम्हारी दिल में खुशी की शहनाई बजनी चाहिए क्योंकि बाप आये हैं हाथ में हाथ देकर साथ ले जाने, अब तुम्हारे सुख के दिन आये कि आये''
 
प्रश्न:अभी नये झाड़ का कलम लग रहा है इसलिए कौन सी खबरदारी अवश्य रखनी है?
उत्तर:
नये झाड़ को तूफान बहुत लगते हैं। ऐसे-ऐसे तूफान आते हैं जो सब फूल फल आदि गिर जाते हैं। यहाँ भी तुम्हारे नये झाड़ का जो कलम लग रहा है उसे भी माया जोर से हिलायेगी। अनेक तूफान आयेंगे। माया संशयबुद्धि बना देगी। बुद्धि में बाप की याद नहीं होगी तो मुरझा जायेंगे, गिर भी पड़ेंगे इसलिए बाबा कहते बच्चे माया से बचने के लिए मुख में मुहलरा डाल दो अर्थात् धंधा आदि भल करो लेकिन बुद्धि से बाप को याद करते रहो। यही है मेहनत।
 
गीत:- ओम् नमो शिवाए ....  ओम् शान्ति।
 
तुम बच्चों को अच्छी तरह निश्चय हो गया है कि बाबा आकर नई दुनिया रचते हैं जो हम पतित हैं उनको पावन बनाने। ऐसे नहीं कि सृष्टि है नहीं और बाप आकर रचते हैं। बाप को बुलाते हैं कि हम जो पतित हैं उनको आकर पावन बनाओ। दुनिया तो है ही। बाकी पुरानी को नई करते हैं। यह ज्ञान मनुष्यों के लिए है, जानवरों के लिए नहीं है क्योंकि मनुष्य पढ़कर मर्तबा पाते हैं। अभी जो दु: देने की सामग्री है, इसमें सब गये - देह, देह के धर्म आदि। तो बाप इस दु: की सामग्री को सुख का बनाते हैं तब बाप ने कहा है मैं दु:खधाम को सुखधाम बनाता हूँ, मैं हूँ ही दु:खहर्ता सुखकर्ता। अब तुम्हारे अन्दर शहनाई बजनी चाहिए कि हमारे सुख के दिन सामने रहे हैं। जानते हो कि बाप कल्प के बाद मिलते हैं और कोई ऐसे किसके लिए नहीं कहते। भगवान आते ही हैं भक्तों की सद्गति करने। अपने साथ हाथ में हाथ देकर ले चलता हूँ। ऐसे नहीं कि सुखधाम में जाकर तुमको छोड़ता हूँ। नहीं, इस समय के पुरूषार्थ अनुसार आपेही जाकर प्रालब्ध भोगते हो। जितना जो औरों को समझाते हैं उतना उनको ड्रामा पक्का हो जाता है। मनुष्य कोई ड्रामा देखकर आते हैं तो कुछ दिन तक पक्का हो जाता है। तो तुमको यह भी पक्का हो जाता है क्योंकि यह बेहद का ड्रामा है। सतयुग से लेकर इस समय तक ड्रामा बुद्धि में है। सेन्टर पर आते हैं तो सावधानी मिलती है। तो यह याद जाता है। यहाँ भी बैठे हो तो याद है। सृष्टि तो बेहद का ड्रामा है। परन्तु है सेकेण्ड का काम। समझाते हैं तो झट ड्रामा बुद्धि में जाता है। जानते हैं कि कौन-कौन आकर धर्म स्थापन करते हैं। मूलवतन को याद करना भी सेकेण्ड का काम है। दूसरा नम्बर है सूक्ष्मवतन। तो वहाँ भी कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि वहाँ भी सिर्फ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर दिखाया है। वह भी झट बुद्धि में जाता है। फिर है स्थूलवतन। इसमें 4 युगों का चक्र जाता है। यह है बाप की रचना, ऐसे नहीं कि सिर्फ तुम स्वर्ग को याद करते हो। नहीं, स्वर्ग से लेकर कलियुग अन्त तक का तुम्हारी बुद्धि में राज़ है तो तुमको औरों को भी समझाना है। यह झाड और गोले (सृष्टि पा) का चित्र सबके घर में रहना चाहिए। जो कोई आवे उनको बैठ समझाना चाहिए। रहमदिल और महादानी बनना है इसको अविनाशी ज्ञान रत्न कहा जाता है। इस समय तुम भविष्य के लिए धनवान बनो।
बाप समझाते हैं बच्चे अब तक तुमने जो कुछ पढ़ा और सुना है उन सबको भूल जाओ। मनुष्य मरने समय सब कुछ भूल जाते हैं ना। तो यहाँ भी तुम जीते जी मरते हो। तो बाप कहते हैं मैं नई दुनिया के लिए जो बातें सुनाता हूँ वही याद करो। अभी हम अमरलोक में जाते हैं और अमरनाथ द्वारा अमरकथा सुन रहे है। कोई पूछते हैं मृत्युलोक कब शुरू होता है? बोलो, जब रावण राज्य शुरू होता है। अमरलोक कब शुरू होता है? जब रामराज्य शुरू होता है। भक्ति की सामग्री तो ऐसे फैली है जैसे झाड़ फैला हुआ हो। अब नये झाड़ का कलम लग रहा है तो ऐसे झाड़ को माया के तूफान देखो कितने लगते हैं। जब तूफान लगता है तो बगीचे में जाकर देखो कितने फल फूल गिरे हुए होते हैं। थोड़े बच जाते हैं। यहाँ भी ऐसे है कि माया के तूफान आने से और बाबा की याद रहने से मुरझा जाते हैं। कोई तो गिर पड़ते हैं। हातमताई का खेल है ना कि मुख में मुहलरा डालते थे। अगर बुद्धि में बाबा याद हो तो माया का असर नहीं होता है। बाबा यह थोड़ेही कहते हैं कि धन्धा आदि करो। धन्धा आदि करते बाप को याद करो - इसमें मेहनत है। राजाई लेना, कोई कम बात है क्या! कोई हद की राजाई लेते हैं तो भी कितनी मेहनत करनी पड़ती है। यह तो सतयुग की राजाई लेते हो। मेहनत जरूर करनी पड़े। परमात्मा को ज्ञान का सागर कहा जाता है, जानी जाननहार नहीं। जानी-जाननहार माना थॉट रीडर, यानी अन्दर को जानने वाला। वास्तव में यह भी एक रिद्धि-सिद्धि है, उससे प्राप्ति कुछ नहीं। अगर उल्टा भी लटक जायें तो भी प्राप्ति कुछ नहीं। आजकल तो आग से भी पार करते हैं। एक सन्यासी था उसने आग से पार किया। सुना है सीता ने आग से पार किया तो यह भी आग से पार करते हैं। अब यह सब दन्त कथायें हैं। वह कह देते शास्त्र अनादि हैं। कब से? तारीख तो कोई है नहीं। दूसरे धर्मों की तारीख है, उससे हिसाब लगाया जा सकता है। जैसे कहते हैं क्राइस्ट के 3000 वर्ष पहले भारत हेविन था। परन्तु हेविन में क्या था, यह नहीं जानते। झाड़ का राज़ तुम्हारी बुद्धि में है। तुम वर्णन कर सकते हो कि इस वृक्ष का फाउन्डेशन कैसे लगा, फिर कैसे वृद्धि को पाया। जब फ्लावरवाज़ (फूलदान) बनाते हैं, तो ऊपर में फूल बनाते हैं। यह भी ऐसे है। पहले देवी-देवता धर्म का तना था। पीछे यह सब धर्म तने से निकलते हैं अर्थात् उनकी प्रजा का फ्लावर दिखाते हैं। अब विचार करो हर एक धर्म जब आता है तो फूलों का बगीचा था। गिरती कला पीछे आती है अर्थात् पहले गोल्डन, सिल्वर, कॉपर अब आइरन में हैं। पढ़ाई तुम्हारी बुद्धि में होनी चाहिए। नॉलेजफुल बाप बैठ वृक्ष और ड्रामा का फुल नॉलेज देते हैं। इस कारण परमात्मा को ज्ञान का सागर, बीजरूप कहा जाता है। यह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है जो ऊपर में रहता है। जो इनकारपोरियल वर्ल्ड आत्माओं की है, उनको ब्रह्माण्ड, ब्रह्म लोक कहते हैं। जहाँ आत्मायें अण्डे मिसल रहती हैं। साक्षात्कार भी करते हैं आत्मा बिन्दी रूप है। जैसे फायरफ्लाई जब इकट्ठे उड़ती हैं तो जगमग होती है, परन्तु वह लाइट कम है। तो आत्मायें भी इकट्ठी उड़ेंगी। इस छोटी सी बिन्दी में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। बाबा तुमको सारे ड्रामा का साक्षात्कार कराते हैं। जिस ड्रामा के अन्दर आत्मा एक्टर है और एक्टर्स को इस ड्रामा का पता नहीं है। तुमको याद करना है एक बाबा को, दूसरा नॉलेज को। ज्ञान तो सेकेण्ड का बहुत सिम्पल है। परन्तु ज्ञान शुरू कब से हुआ, विस्तार करना पड़ता है क्योंकि भूल जाता है। माया के विघ्न भी पड़ते हैं। शारीरिक बीमारी जाती है। आगे कभी बुखार नहीं हुआ होगा, ज्ञान में आने के बाद बुखार हो जाता है तो सशंय पड़ जाता है कि ज्ञान में तो बंधन खलास होने चाहिए। परन्तु बाबा तो कह देते यह बीमारी और आयेंगी, हिसाब-किताब भी चुक्तू करना है।
भक्ति में मनुष्य 9 रत्नों की अंगूठी पहनते हैं। बीच में वैल्युबुल रत्न लगाते हैं। आजूबाजू कम कीमत वाले। कोई रत्न हजार वाला होता है, कोई 100 वाला ...... बाबा कहते हैं कि यह हीरे जैसी अमूल्य जीवन है। तो सूर्यवंशी में जन्म लेना चाहिए। सतयुग का महाराजा, महारानी और त्रेता के अन्त का राजा रानी कितना फ़र्क होगा। यह ड्रामा की कहानी औरों को भी समझानी है। आओ तो हम आपको समझायें कि 5 हजार वर्ष पहले एक बहुत अच्छा देवताओं का राज्य था। उन्होंने यह पद कैसे पाया! लक्ष्मी-नारायण जो सतयुग की राजाई लेते हैं, उन्हों के 84 जन्मों की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनायें। ऐसे-ऐसे टेम्पटेशन (प्रलोभन) देकर उन्हों को अन्दर ले आना चाहिए। सेकेण्ड की कहानी है। परन्तु है पदमों की। कहाँ भी तुम जा सकते हो। कॉलेज में, युनिवर्सिटी में, हॉस्पिटल में जाओ तो कहना चाहिए कि तुम कितना बीमार पड़ते हो। हम आपको ऐसी दवाई देंगे जो 21 जन्म बीमार ही नहीं पड़ेंगे। आपने सुना है कि परमात्मा ने कहा है मनमनाभव। तुम बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और कोई नये विकर्म होंगे ही नहीं। तुम एवरहेल्दी, वेल्दी बन जायेंगे। आओ तो हम परमपिता परमात्मा की बायोग्राफी बतायें। परमात्मा को सर्वव्यापी कहना कोई यह बायोग्राफी थोड़ेही है। ऐसे-ऐसे समझाना चाहिए।
अच्छा - आज तो भोग है। गीत:- धरती को आकाश पुकारे... इसको कहा जाता है पुरानी झूठी दुनिया। इसको रौरव नर्क कहा जाता है। गीत भी अच्छा है कि आना ही होगा, प्रेम की दुनिया में। सूक्ष्मवतन में भी प्रेम है ना। देखो ध्यान में खुशी-खुशी जाते हैं। सतयुग में भी सुख है, यहाँ तो कुछ नहीं है। तो इस दुनिया से वैराग्य आना चाहिए। सन्यासियों का तो है हद का वैराग्य। तुम्हारा तो है बेहद का वैराग्य। तुम्हें तो सारी दुनिया को भुलाना है। बाबा ने बाम्बे में एक पत्र लिखा था। बाबा सिर्फ बाम्बे वालों को ही नहीं कहते परन्तु सब सेन्टर्स वालों के लिए बाबा की राय निकलती है। तुमको भाषण करना होता है सुबह और शाम को। तो हर एक शहर में बड़े-बड़े हाल तो होते ही हैं और बहुतों के मित्र-संबंधी भी होते हैं, तो एडवरटाइज़ करनी है कि हमको परमपिता परमात्मा का परिचय देना है। ताकि सभी परमात्मा से अपना बर्थराइट ले सकें। हमको सिर्फ डेढ़ घण्टा सुबह, डेढ़ घण्टा शाम के लिए हाल चाहिए। कोई हंगामा नहीं होगा, बाजा-गाजा नहीं। तो कोई वाजिब किराये पर देवे तो हम ले सकते हैं। एरिया को भी देखना है, घर को भी देखना है कि अच्छा है। अच्छा आदमी होगा तो अच्छे जिज्ञासुओं को लेकर आयेगा। ऐसे-ऐसे 4-5 जगह भाषण करना चाहिए। बड़े-बड़े शहरों में अगर फर्स्ट फ्लोर मिले तो सेकेण्ड फ्लोर, नहीं तो लाचारी हालत में थर्ड फ्लोर भी ले सकते हो। ऐसे ही गाँव-गाँव में भी। जैसा गाँव हो। भले कोई छोटा मकान हो। पूरा मकान तो चाहिए नहीं। सिर्फ 3 पैर पृथ्वी चाहिए। सबको अपने सम्बन्धियों से बात करते रहना चाहिए तो कोई कोई दे देंगे। तो ऐसे सेन्टर्स खोलते रहना चाहिए। कोई तो किराया भी नहीं लेंगे। और कोई लेते-लेते अगर तीर लग गया तो वह भी लेना बन्द कर देंगे। जो विशालबुद्धि होंगे वह अच्छा समझकर धारण करेंगे। जिनकी विशालबुद्धि है, उनको महारथी कहा जाता है। वह तो एक दो के पिछाड़ी सेन्टर्स खोलते जायेंगे। बच्चे जानते हैं कि हम अपना राज्य श्रीमत पर गुप्त ही गुप्त स्थापन कर रहे हैं। और कोई जान नहीं सकते कि कैसे स्थापन करते हैं? बस पवित्र रहना है। तो बाबा ने कहा है कि माया ने दु: दिया है, इसको छोड़ो। माया जीते जगतजीत बनो। मन को जीतने की बात नहीं। मन तो शान्त, शान्तिधाम में रहता है। यहाँ शरीर है तो शान्त रह सके। तो शान्तिधाम है परमधाम। यहाँ समझानी मिलती है तो चिन्तन भी चलता रहे। वहाँ सेन्टर पर आया, कथा सुनी और धन्धे में लग गये खलास। यहाँ ताजा-ताजा रहता है इसलिए बच्चे रिफ्रेश होने के लिए आते हैं। दुनिया वालों की बुद्धि में नहीं रहता कि भारत परमात्मा का बर्थ प्लेस (जन्म-स्थान) है। यहाँ सुनने से तुमको नशा रहता है कि हम शरीर छोड़ अमरलोक में जायेंगे। सतयुग में यह नहीं होगा कि फलाना मर गया। नहीं, जब पुराना चोला छोड़ेंगे, नया लेंगे तो खुशी होगी ना। बाजा बजेगा। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) इस बेहद की दुनिया से वैराग्य रख इसे बुद्धि से भूलना है। अविनाशी ज्ञान रत्न धारण कर भविष्य के लिए धनवान बनना है।
2) नई दुनिया के लिए बाप जो बातें सुनाते हैं वह याद रखनी है। बाकी सब पढ़ा हुआ भूल जाना है, ऐसा जीते जी मरना है।
 
वरदान:एकरस स्थिति के आसन पर मन-बुद्धि को बिठाने वाले सच्चे तपस्वी भव!
तपस्वी सदा आसनधारी होते हैं, वे कोई कोई आसन पर बैठकर तपस्या करते हैं। आप तपस्वी बच्चों का आसन है - एकरस स्थिति, फरिश्ता स्थिति। इन्हीं श्रेष्ठ स्थितियों के आसन पर स्थित होकर तपस्या करो। जैसे स्थूल आसन पर शरीर बैठता है ऐसे श्रेष्ठ स्थिति के आसन पर मन-बुद्धि को बिठा दो और जितना समय चाहो, जब चाहो-आसन पर बैठ जाओ। इस समय श्रेष्ठ स्थिति के आसन पर बैठने वालों को भविष्य में राज्य का सिंहासन प्राप्त होता है।
 
स्लोगन: दूसरे के विचारों को अपने विचारों से मिलाकर सर्व को सम्मान देना ही माननीय बनने का साधन है।

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Details ( Page:- Murali 25-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY - 25.11.17      
Pratah Murli Om Shanti “BAPDADA” Madhuban
Mithe Bache, tumhari ruhani yatra bahut gupt hai jo tumhe budhiyog se karte rahna hai, issme hi kamai hai.
Ques:- Yaad ki yatra par rahnewale bachho ki nisani kya hogi.
Ans –
a.)   Who baut gambhir aur samjhdar honge. Sada santchitt rahenge.
b.)   Unme asudh ahankar ni hoga.
c.)    Unhe siway ek baap ki yaad ke aur koi bhi baat acchi ni lagegi
d.)   Who bahut kom aur dhire bolenge. Who har kaam isare se karenge. Jor se bolenge wa hasenge ni.
e.)   Unki challan baut baut royal hogi. Unhe nasha hoga ki hum iswariya santan hai
f.)    Aapas mei baut pyar se rahenge. Kabi lunpani ni honge. Unki bacha baut firstclass hogi.
Dharna k lie mukhya sar
(1)   Satya baap satya banana aye hai isilie kabi bhi jhut ni bolna hai. Sada sachhe hokar rahna hai. Kisi ko bhi dukh ni dena hai.
(2)   Much se gyan ki batein bolni hai. Bacha baut firstclass rakhni hai. Kisi ko bhi ulti mat dekar dhutipana ni karna hai
Vardan – kalyankari yug mei swayam ka aur sarb ka kalyan karne wale prakritijit mayajit bhav
Slogan – Nyare –pyare hokar karm karnewale hi sankalpo par second mai fullstop laga sakta hai
 
HINDI DETAIL MURALI
25/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति " "अव्यक्त-बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - तुम्हारी रूहानी यात्रा बहुत गुप्त है जो तुम्हें बुद्धियोग से करते रहना है, इसमें ही कमाई है''
 
प्रश्न:याद की यात्रा पर रहने वाले बच्चों की निशानी क्या होगी?
उत्तर:
वह बहुत गम्भीर और समझदार होंगे। सदा शान्तचित रहेंगे। 2- उनमें अशुद्ध अहंकार नहीं होगा। 3- उन्हें सिवाए एक बाप की याद के और कोई भी बात अच्छी नहीं लगेगी। 4- वह बहुत कम और धीरे बोलेंगे। वह हर काम ईशारे से करेंगे। जोर से बोलेंगे वा हसेंगे नहीं। 5- उनकी चलन बहुत-बहुत रॉयल होगी। उन्हें नशा होगा कि हम ईश्वरीय सन्तान हैं। 6- आपस में बहुत प्यार से रहेंगे। कभी लूनपानी नहीं होंगे। उनकी वाचा बहुत फर्स्टक्लास होगी।
 
गीत:- रात के राही...  ओम् शान्ति।
 
बच्चे जानते हैं कि हम रात के राही हैं। परन्तु ऐसे नहीं कि तुम कोई रात्रि को ही बुद्धियोग लगाते हो वा मुसाफिरी पर हो, नहीं। यह तो बेहद की बात है। वो जिस्मानी यात्रा सिर्फ दिन में ही होती है। रात्रि को नहीं जाते हैं। रात्रि को तो सब सो जाते हैं। इस यात्रा को तो तुम जानो अथवा बाप जाने अर्थात् निराकार परमपिता परमात्मा जाने और निराकारी आत्मायें ही जानें। अभी परमपिता परमात्मा शरीर में बैठ यह यात्रा सिखलाते हैं। यह कभी कोई शास्त्र में सुना, कोई विद्वान पण्डित सिखला सकते हैं। यह यात्रा रात को भी, अमृतवेले भी हर समय हो सकती है। भक्त लोग सवेरे उठकर कोठरी में बैठ जाते हैं। पूजा करते हैं। तुमको भी कहा जाता है कि सवेरे याद की यात्रा अच्छी होगी। यह है रूहानी यात्रा। बच्चे देही-अभिमानी बने हैं। हम आत्मा हैं, यह निश्चय करना भी मासी का घर नहीं है। घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। बहुत बच्चे हैं जो इस यात्रा को जानते भी नहीं हैं। बुद्धि में बैठता ही नहीं है। अगर यात्रा पर चला हुआ है तो नित्य यात्रा करते रहे ना। यात्रा में फिर ठहरना थोड़ेही होता है। ठहर जाते हैं अर्थात् यात्रा करने का शौक नहीं है। तुम्हारी है गुप्त यात्रा, इनका वर्णन कोई शास्त्र में नहीं है। जितना यात्रा पर बुद्धि योग रहेगा अर्थात् बाप को याद करते रहेंगे उतना कमाई होगी। बुद्धि का योग दौड़ी पहनता है - बाप के पास, इसमें आत्म-अभिमानी बनना है। आधाकल्प तुम देह-अभिमानी बने हो। वह आधाकल्प की आदत तुमको इस एक जन्म में मिटानी है अथवा खत्म करनी है। यह कोई वह सतसंग नहीं है शास्त्र सुनने का। तुम बैठे हो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते हो। फिर बाप की मत पर भी चलना है, जो मत बाबा ब्रह्मा द्वारा दे रहे हैं। फिर लक्षण भी अच्छे रखने हैं। शैतानी लक्षण नहीं होने चाहिए। उसमें भी जो पहला नम्बर अशुद्ध अहंकार है उनके बाद सब और विकार आते हैं। तो अपने को आत्मा निश्चय करना, यह अभ्यास बड़ी मेहनत का है। बहुतों से यह मेहनत पहुँचती नहीं है। क्यों? तकदीर में नहीं है। इस यात्रा पर रहने वाले की निशानी क्या होगी? वह बड़े गम्भीर और समझदार रहते हैं। एक बाप की याद के सिवाए उनको और कोई बात अच्छी नहीं लगेगी। शान्ति तो बहुत लोग पसन्द करते हैं। सन्यासी लोग भी एकान्त में जंगल आदि में जाकर रहते हैं। परन्तु वह तत्व अथवा ब्रह्म की याद में रहते हैं। वह यात्रा तो है झूठी क्योंकि ब्रह्म अथवा तत्व कोई सर्वशक्तिमान बाप तो है नहीं। आत्माओं का बाप तो एक ही निराकार परमपिता परमात्मा शिव है, जिसको सब आत्मायें पुकारती हैं। आत्मा ऐसे कब नहीं कहती, हे ब्रह्म बाबा, हे तत्व बाबा। नहीं। आत्मा सदैव कहती है हे परमपिता परमात्मा, उनका नाम चाहिए। ब्रह्म तो महतत्व रहने का स्थान है। बाप कहते हैं ब्रह्म ज्ञानी वा ब्रह्म योगी कहना यह भ्रम है। कोई ने कह दिया और मान लिया। भक्ति में सब झूठा रास्ता बताते हैं, इसलिए देही-अभिमानी बन नहीं सकते। आत्मा सो परमात्मा कह दिया तो फिर योग किससे लगायें। बाप कहते हैं यह सब मिथ्या ज्ञान है अर्थात् ज्ञान ही नहीं है। ज्ञान और भक्ति दो अक्षर आते हैं। आधाकल्प ज्ञान और आधाकल्प भक्ति चलती है। बाप आकर समझाते हैं कि इन शास्त्र आदि में भक्ति का ही वर्णन है। ज्ञान अलग चीज़ है, आधाकल्प ज्ञान सतयुग त्रेता दिन। आधाकल्प भक्ति यानी रात द्वापर कलियुग। ऐसी सहज बातें भी विद्वान आचार्य नहीं जानते। बिल्कुल ताकत नहीं रही है। तुम कहते हो परमपिता परमात्मा हमको पढ़ाते हैं। वो लोग कहते वह सर्वव्यापी है। पढ़ायेंगे कैसे? बहुत माथा मारना पड़ता है। एक बच्ची ने समाचार लिखा - एक सेठ ने प्रश्न पूछा तुम शास्त्र पढ़ी हो? उसने कहा परमात्मा ने हमको शास्त्रों का सार समझाया है। हमारा दूसरा गुरू है नहीं। तो वह अपनी तीक-तीक करने लगा कि शास्त्र जरूर पढ़ना चाहिए। यह करना चाहिए। वह सुनती रही। परन्तु बड़े आदमियों को समझाने की हिम्मत चाहिए। कहना चाहिए कि यह ठीक है। वेद शास्त्र पढ़ना है परन्तु भगवानुवाच - कि इन्हें पढ़ने से मेरे साथ कोई मिल नहीं सकते, मुक्ति-जीवनमुक्ति पा नहीं सकते। पहली बात यह समझानी चाहिए - परमपिता परमात्मा के साथ आपका क्या सम्बन्ध है? भल आप नगर सेठ हो सिर्फ एक बात आपसे पूछते हैं? देखना चाहिए क्या जवाब देते हैं क्योंकि बाप को सब भूले हुए हैं। तो पहले परिचय देना पड़े। परन्तु बच्चे ऐसी-ऐसी बातें भूल जाते हैं। श्रीमत पर चलते नहीं। पहले श्रीमत कहती है कि मुझे याद करो। एक घण्टा आधा घण्टा सिर्फ याद जरूर करो। कई बच्चे सारे दिन में 5 मिनट भी याद नहीं करते। यह सब लक्षणों से पता लग जाता है। अगर याद करते हो तो चलन बड़ी रॉयल होनी चाहिए। बच्चों ने राजाओं को कब देखा नहीं है। यह बाबा का रथ तो बहुत अनुभवी है। सबको जानते हैं। कोई जेवर आदि लेने होंगे तो महाराजा आयेगा - सिर्फ हाथ लगाया और गये फिर पोट्री आपेही बात करेंगे। तो उन्हों का कितना दबदबा रहता है। तुम गुप्त हो परन्तु बड़ा रॉयल्टी से चलना चाहिए। बिल्कुल थोड़ा बोलना चाहिए। क्यों? हमको टाकी से सूक्ष्म, सूक्ष्म से मूल में जाना है। भक्तिमार्ग में बहुत रड़ियां मारते हैं। गीत गाते हैं। यहाँ तुमको आवाज बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अन्दर में यह ज्ञान है कि हम आत्मा हैं। यहाँ बाकी थोड़े रोज़ हैं। अब जाना है। शिवबाबा कितना थोड़ा बोलते हैं सिर्फ ईशारा देते हैं कि मुझे और वर्से को याद करो। टॉक नो ईविल, सी नो ईविल... बहुत सेन्टर्स पर अच्छे-अच्छे बी.के. इतना जोर से बोलते-हँसते हैं, बात मत पूछो। बाबा समझाते रहते हैं। यहाँ तुम्हारा कितना लव चाहिए। सतयुग में शेर गाय इक्ट्ठा जल पीते हैं। यहाँ बहुत प्यार होना चाहिए। हम ईश्वरीय सन्तान हैं, बड़ी रॉयल चलन चाहिए। हम परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं। हम श्रीमत पर चलकर बेहद का वर्सा ले रहे हैं। श्रीमत पर नहीं चलते तो कितनी डिस-सर्विस करते हैं इसलिए टाइम बहुत लग जाता है। वाचा बड़ी फर्स्टक्लास होनी चाहिए। स्कूल में बच्चे नम्बरवार होते हैं। कोई तो बहुत अच्छा पढ़ते हैं - कोई थर्ड क्लास। गरीबों की लगन अच्छी होती है। 50 गरीब आयेंगे तो एक साहूकार। क्यों? बाबा है गरीब निवाज़। मम्मा गरीब थी। परन्तु बाबा से आगे चली गई। उन्हें लिफ्ट मिल गई। बाबा ने इसमें प्रवेश किया - यह भी लिफ्ट है। बच्चों को देही-अभिमानी बनना है। लक्षण भी सीखने हैं, तब खुशी का पारा चढ़ेगा। बाप कहते हैं तुमको सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी पवित्र आत्मा बनना है। इनके पास आते हो तो शिवबाबा को याद करके आओ। तुमको याद करना है शिवबाबा को। यह तो गॉवड़े का छोरा था। यह है ही निधनके, दु: देने वाले छोकरों की दुनिया। छो करे अर्थात् क्यों गिरे। माया ने गिरा दिया है। बाबा कारण बतलाते हैं कि तुम भारतवासी स्वर्ग के मालिक थे। फिर गिरे क्यों? मुझ बाप को भूल गये। अब मुझे याद करो तो चढ़ जायेंगे। मुख्य बात है बाप को याद करना, ज्ञान की बातें सुननी और सुनानी है। सर्विस करनी है। मम्मा भी सर्विस करती थी। बाबा जास्ती नहीं जा सकते। बच्चे कमाई करते तो सर्विस करने वाले हो गये। बाबा को तो एक जगह रहना है। सबको यहाँ आकर रिफ्रेश होना है। यहाँ मधुबन में जो आते हैं तो सागर बाबा बहुत प्वाइंटस देते हैं। फर्क है ना। भल सेन्टर्स पर अच्छे-अच्छे हैं तो भी यहाँ आना पड़ता है। बाबा अच्छी तरह समझाते हैं। बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे भी आपस में लूनपानी हैं तो वह औरों को क्या सिखलायेंगे? आपस में बात नहीं करते, कितना नाम बदनाम करते हैं इसलिए बाबा मुरली चलाते हैं कि कहाँ बच्चों की आंख खुले। परन्तु ब्राह्मणियां आपस में मिलती नहीं हैं। बात नहीं करती हैं। यह बहुत बड़ी मंजिल है। बाबा कहते हैं मैं आता हूँ तुमको विश्व का मालिक बनाने। कोई हथियार आदि नहीं। कोई खर्चे की बात है। सिर्फ बाबा को याद करो और दैवीगुण धारण करो। आपस में बहुत मीठा बोलो। सबको ज्ञान की बातें सुनाओ। तुम्हारा धन्धा ही यह है। गीता का रहस्य इन चित्रों से समझाना है। वह भक्ति के गीत गाते हैं कि हे पतित-पावन आओ, आकर के पावन बनाओ। गीता के भगवान ने आकर पावन बनाया है। तुम जानते हो गीता का भगवान हमको फिर से नर से नारायण, मनुष्य से देवता बना रहे हैं। परन्तु अपने में गुण तो देखो। कोई-कोई का झूठ तो जैसे नम्बरवन धर्म है। तुम बच्चों को बिल्कुल भी दु: नहीं देना चाहिए। किसको दु: देते हैं तो जानवर से भी बदतर हैं। मुख से कुछ और कहते हैं और आपस में लूनपानी होते रहते हैं तो बहुत डिस-सर्विस करते हैं। इसको ही माया का ग्रहण कहा जाता है। कोई पर ग्रहचारी बैठती है तो ग्लानी करने लग पड़ते हैं। किसकी ग्रहचारी थोड़ा समय चलती है, किसकी अन्त तक भी उतरती नहीं है। तो बच्चों को सर्विस में लगा रहना चाहिए। बाबा सर्विस बिगर हम रह नहीं सकते। हमको कहाँ भेजो। जो सर्विस ही नहीं जानते तो उनको बाबा थोड़ेही एलाउ करेंगे। देखेंगे इनको सर्विस का शौक है? कहते हैं बाबा हमको फलानी सर्विस का शौक है तो बाबा भेज देते हैं। सर्विस बिगर क्या पद पायेंगे। तुम्हारी सर्विस ही है मनुष्य से देवता बनाना। पूछना ही यह है कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? बाबा ने कुरूक्षेत्र वालों को डायरेक्शन दिये हैं कि बड़े-बड़े बोर्ड लगा दो। मेले में यह पोस्टर जरूर लगा दो। तो सबका विचार चलेगा कि यह ठीक पूछते हैं। यह बड़ी अच्छी बात है। वहाँ पण्डे लोग ऐसे हैं जो माथा खराब कर देते हैं। देखा गया है - तीर्थों पर बहुत सर्विस नहीं हो सकती है। बहुत समझ भी जाते हैं फिर कहते हैं हम अगर यह ज्ञान समझाने लग पड़े तो हमारी कमाई चट हो जायेगी। इतने सब फालोअर्स कहेंगे कि यह बी.के. पर आशिक हुआ है। इसमें बड़ी समझ और दूरादेशी चाहिए। बलिहारी शिवबाबा की है, उनकी श्रीमत पर चलना है। ज्ञान में बड़ी अच्छी बुद्धि चाहिए। श्रीमत पर चलना चाहिए। बहुतों को अहंकार जाता है कि मेरे जैसा कोई है नहीं। कोई तो ऐसे बुद्धू हैं समझते हैं कि ब्रह्मा भी क्या है? जैसे हम जिज्ञासू हैं, वैसे ब्रह्मा भी जिज्ञासू है। कोई प्वाइंट में हम तीखे हैं, कोई प्वाइंट में करके ब्रह्मा तीखा जायेगा। अरे मम्मा बाबा तो जरूर सबसे तीखे होंगे। हम उन्हों का सामना क्यों करते हैं। बहुतों को अहंकार जाता है। बाबा कहते हैं रात के राही थक मत जाओ। बन्दरपना छोड़ दो। नहीं तो फिर सज़ायें खायेंगे। दैवीगुण धारण करने हैं। किसको भी कभी उल्टी मत नहीं देनी चाहिए जो उनका बुद्धियोग टूट पड़े। धूतियां उल्टी मत देती हैं। यह भी शास्त्रों में है ना। राम है एक, बाकी सब हैं सीतायें। बच्चों की चाल बड़ी दैवी होनी चाहिए। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सत्य बाप सत्य बनाने आये हैं इसलिए कभी भी झूठ नहीं बोलना है। सदा सच्चे होकर रहना है। किसी को भी दु: नहीं देना है।
2) मुख से ज्ञान की बातें बोलनी हैं। वाचा बहुत फर्स्टक्लास रखनी है। किसी को भी उल्टी मत देकर धूतीपना नहीं करना है।
 
वरदान:कल्याणकारी युग में स्वयं का और सर्व का कल्याण करने वाले प्रकृतिजीत, मायाजीत भव!
इस कल्याणकारी युग में, कल्याणकारी बाप के साथ-साथ आप बच्चे भी कल्याणकारी हो। आपकी चैलेन्ज है कि हम विश्व परिवर्तक हैं। दुनिया वालों को सिर्फ विनाश दिखाई देता इसलिए समझते हैं - यह अकल्याण का समय है लेकिन आपके सामने विनाश के साथ स्थापना भी स्पष्ट है और मन में यही शुभ भावना है कि अब सर्व का कल्याण हो। मनुष्यात्मायें तो क्या प्रकृति का भी कल्याण करने वाले ही प्रकृतिजीत, मायाजीत कहलाते हैं, उनके लिए प्रकृति सुखदाई बन जाती है।
 
स्लोगन: न्यारे-प्यारे होकर कर्म करने वाले ही संकल्पों पर सेकण्ड में फुलस्टॉप लगा सकते हैं।
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Details ( Page:- Murali 26-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY  26.11.17
Pratah Murli Om Shanti AVYAKT Babdada Madhuban ( 30/03/83 )
Headline 1 – Sahajyogi banne ka sadhan – anubhavo ki authority ka aasan ( Kumariyon ke sath mulakat ).
 
Vardan – Ekagrata ke abhyash dwara maan-buddhi ko anubhavo ki seat par set karnewale nirbinghna bhav.
Slogan – second me biistaar ko saar mei samane ka abhyask hi antim certificate dilayega.
 
HINDI DETAILs MURALI
26/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' रिवाइज-30/03/83
 
सहजयोगी बनने का साधन - अनुभवों की अथॉरिटी का आसन (कुमारियों के साथ मुलाकात)
 
आज बेहद ड्रामा के रचयिता बाप बेहद ड्रामा के वन्डरफुल संगमयुग के दिव्य दृश्य के अन्दर मधुबन के विशेष दृश्य को देख रहे हैं। मधुबन स्टेज पर हर घड़ी कितने दिलपसन्द रमणीक पार्ट चलते हैं। जिसको बापदादा दूर बैठे भी समीप से देखते रहते हैं। इस समय स्टेज के हीरो एक्टर कौन हैं? डबल पावन आत्मायें, श्रेष्ठ आत्मायें। लौकिक जीवन से भी पवित्र और आत्मा भी पवित्र। तो डबल पावन विशेष आत्माओं का हीरो पार्ट मधुबन स्टेज पर चलता हुआ देख बापदादा भी अति हर्षित होते हैं। क्या क्या प्लैन बनाते हो, क्या क्या संकल्प करते हो, कौन सी हलचल में आते हो, यह हिम्मत और हलचल दोनों ही खेल देख रहे थे। हिम्मत भी बहुत अच्छी रखते हो। उमंग-उल्लास भी बहुत आता है लेकिन साथ-साथ थोड़ा सा हाँ वा ना का मिक्स संकल्प भी रहता है। बापदादा हँसी का खेल देख रहे थे। चाहना बहुत श्रेष्ठ है कि दिखायेंगे, करके दिखायेंगे। लेकिन मन के उमंग की चाहना वा संकल्प चेहरे पर झलक के रूप में नहीं दिखाई देता है। शुद्ध संकल्प की चमक चेहरों पर चमकती हुई दिखाई दे, वह परसेन्टेज में देखा। यह क्यों? इसका कारण? शुभ संकल्प है लेकिन संकल्प में शक्ति कुछ मात्रा में है। संकल्प रूपी बीज तो है लेकिन शक्तिशाली बीज जो प्रत्यक्ष फल अर्थात् प्रत्यक्ष रूप में रौनक दिखाई दे, वह अभी और चाहिए।
सबसे ज्यादा चेहरे पर उमंग-उल्लास की रौनक वा चमक आने का साधन है - हर गुण, हर शक्ति, हर ज्ञान की प्वाइंट के अनुभवों से सम्पन्नता। अनुभव बड़े ते बड़ी अथॉरिटी है। अथॉरिटी की झलक चेहरे पर और चलन पर स्वत: ही आती है। बापदादा वर्तमान के हीरो पार्टधारियों को देखते हुए मुस्करा रहे थे। खुशी में नाच भी रहे हैं लेकिन कोई कोई नाचते हैं तो सारे वायुमण्डल को ही नचा देते हैं। उनकी एक्ट में रौनक दिखाई देती है। जिसको आप लोग कहते हैं कि रास करते-करते मचा लिया अर्थात् सभी को नचा लिया। तो ऐसी रौनक वाली झलक अभी और दिखानी है। उसका आधार सुन लिया। सुनने सुनाने वाले तो बन ही गये हो। साथ-साथ अनुभवी मूर्त बनने का विशेष पार्ट बजाओ। अनुभव की अथॉरिटी वाला कभी भी किसी प्रकार की माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों में धोखा नहीं खायेंगे। अनुभवी अथॉरिटी वाली आत्मा सदा अपने को भरपूर आत्मा अनुभव करेगी। निर्णय शक्ति, सहन शक्ति वा किसी भी शक्ति से खाली नहीं होंगे। जैसे बीज भरपूर होता है वैसे ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबसे भरपूर। इसको कहा जाता है मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी। ऐसे के आगे माया झुकेगी न कि झुकायेगी। जैसे हद की अथॉरिटी वाले विशेष व्यक्तियों के आगे सब झुकते हैं ना क्योंकि अथॉरिटी की महानता सबको स्वत: ही झुकाती है। तो विशेष क्या देखा? अनुभव की अथॉरिटी की सीट पर अभी सेट हो रहे हैं। स्पीकर की सीट ले ली है लेकिन ''सर्व अनुभवों की अथॉरिटी का आसन'' अभी यह लेना है। सुनाया था ना, दुनिया वालों का है सिंहासन और आप सबका है अथॉरिटी का आसन। इसी आसन पर सदा स्थित रहो। तो सहज योगी, सदा के योगी, स्वत: योगी हैं ही।
अभी तो अमृतवेले का दृश्य भी हँसने हँसाने वाला है। कोई निशाना लगाते-लगाते थक जाते हैं। कोई डबल झूलों में झूलते हैं। कोई हठयोगी बन करके बैठते हैं। कोई तो सिर्फ नेमीनाथ हो बैठते हैं। कोई-कोई लगन में मगन भी होते हैं। याद शब्द के अर्थ स्वरूप बनने में अभी विशेष अटेन्शन दो। योगी आत्मा की झलक चेहरे से अनुभव हो। जो मन में होता है वह मस्तक पर झलक जरूर रहती है। ऐसे नहीं समझना मन में तो हमारा बहुत है। मन की शक्ति का दर्पण चेहरा अर्थात् मुखड़ा है। कितना भी आप कहो कि हम खुशी में नाचते हैं लेकिन चेहरा उदास देख कोई नहीं मानेगा। खोया-खोया हुआ चेहरा और पाया हुआ चेहरा इसका अन्तर तो जानते हो ना! ''पा लिया'' इसी खुशी की चमक चेहरे से दिखाई दे। खुश्क चेहरा नहीं दिखाई दे, खुशी का चेहरा दिखाई दे। बापदादा हीरो पार्टधारी बच्चों की महिमा भी गाते हैं। फिर भी आजकल की फैशनेबल दुनिया से, मन से, तन से किनारा कर बाप को सहारा तो बना दिया। इस दृढ़ संकल्प की बहुत-बहुत मुबारक। सदा इसी संकल्प में जीते रहो। बापदादा यह वरदान देते हैं। इसी श्रेष्ठ भाग्य की खुशी में, स्नेह के पुष्प भी चढ़ाते हैं। साथ-साथ हर बच्चा सम्पन्न बाप समान अथॉरिटी हो, इस शुद्ध संकल्प की विधि बताते हैं। बधाई भी देते हैं और विधि भी बताते हैं।
सभी ने समारोह तो मना लिया ना! सभी समारोह मनाते सम्पन्न बनने का लक्ष्य लेते हुए जा रहे हो ना! पहले वाले पुराने तो पुराने रहे लेकिन आप सुभान अल्ला हो जाओ। सबका फोटो तो निकला है ना। फोटो तो यादगार हो गया ना यहाँ। अब दीदी दादी भी देखेंगी कि अथॉरिटी के आसन पर कौन कौन कितने स्थित हुए! सेन्टर पर रहना भी कोई बड़ी बात नहीं लेकिन विशेष पार्टधारी बन पार्ट बजाना, यह है कमाल। जो सभी कहें कि इस ग्रुप की हर आत्मा बाप समान सम्पन्न स्वरूप है। खाली नहीं बनो। खाली चीज में हलचल होती है। सयाने बनो अर्थात् सम्पन्न बनो। सिर्फ कुमारियों के लिए नहीं है लेकिन सभी के लिए है। सम्पन्न तो सभी को बनना है ना। जो भी सभी आये हैं मधुबन की विशेष सौगात ''सर्व अनुभवों की अथॉरिटी का आसन'' यह साथ में ले जाना। इस सौगात को कभी भी अपने से अलग नहीं करना। सबको सौगात है ना कि सिर्फ कुमारियों को है? मधुबन निवासियों को भी आज की यह सौगात है। चाहे कहाँ भी बैठे हैं लेकिन बाप के सम्मुख हैं।
आने वाले सर्व कमल पुष्प समान बच्चों को, मधुबन निवासियों को, चारों ओर के देश विदेश के बच्चों को और वर्तमान स्टेज के हीरो पार्टधारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सभी को ‘अनुभवी भव' के वरदान के साथ वरदाता बाप की याद और प्यार और नमस्ते।
कुमारियों ने विशेष संकल्प किया! विशेष संकल्प द्वारा विशेष आत्मायें बनीं? विशेष संकल्प क्या लिया? सदा महावीरनी बन विजयी रहेंगी, यही संकल्प लिया है ना! सदा विजयी, सदा महावीरनी या थोड़े समय के लिए लिया? इसके बाद कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आयेगी ना! आधाकल्प के लिए खत्म हुई, कभी संकल्पों का टक्कर तो नहीं होगा! कभी व्यर्थ संकल्प का तूफान तो नहीं आयेगा? अगर बार बार माया के वार से हार खाते तो कमजोर हो जाते हैं। जैसे कोई बार बार धक्का खाता तो उसकी हड्डी कमज़ोर हो जाती है ना। फिर प्लास्टर लगाना पड़ता इसलिए कभी भी कमज़ोर बन हार नहीं खाना। तो महावीरनी अर्थात् संकल्प किया और स्वरूप बन गये। ऐसे नहीं वहाँ जाकर देखेंगे, करेंगे...यह गें गें वाली नहीं। जो संकल्प लिया है उसमें दृढ़ रहना तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इतने दृढ़ संकल्प वाली अपने अपने स्थान पर जायेंगी तो जय-जयकार हो जायेगी। संकल्प से सब सहज हो जाता है। जो संकल्प किया है उसे पानी देते रहना। हर मास अपनी रिज़ल्ट लिखना। कभी भी कमज़ोर संकल्प नहीं करना। यह संस्कार यहाँ खत्म करके जाना। आगे बढ़ेंगी, विजयी बनेंगी - यह दृढ़ संकल्प करके जाना। अच्छा।
सभी की आशायें पूरी हुई? कुमारियों की आशायें पूरी हुई तो माताओं की तो हुई पड़ी हैं। अभी आप लोग थोड़े आये हो इसलिए अच्छा चांस मिल गया। इस बारी सभी कुमारियों का उल्हना तो पूरा हुआ। कोई कम्पलेन्ट नहीं, सभी कम्पलीट होकर जा रही हो ना! अभी देखेंगे, नदियाँ कहाँ बहती हैं। तालाब बनती हैं, बड़ी नदी बनती हैं, छोटी बनती हैं या कुआं बनता है। तालाब से भी छोटा कुआं होता है ना। तो देखेंगे क्या बनती हैं! वह रिजल्ट आयेगी ना! कुमारियों को देखकर आता है इतने हैन्डस निकलें, माताओं को देखकर कहेंगे कि निकलना थोड़ा मुश्किल है। तो अब निर्विघ्न हैन्ड बनना। ऐसे नहीं सेवा भी करो और सेवा के साथ-साथ मेहनत भी लेते रहो, यह नहीं करना। सेवा के साथ अगर कम्पलेन्ट निकलती रहे तो सेवा का फल नहीं निकलता इसलिए निर्विघ्न हैन्ड बनना। ऐसे नहीं आप ही विघ्न रूप बन, दादी दीदी के सामने आते रहो, मददगार हैन्ड बनना। खुद सेवा नहीं लेना। तो सदा निर्विघ्न रहेंगे और सेवा को निर्विघ्न बढ़ायेंगे - ऐसा पक्का संकल्प करके जाना। अच्छा।
कुमारियों के ग्रुप से:-
आप सब कुमारियाँ अपने को विशेष आत्मायें समझती हो ना? विशेष आत्मायें अर्थात् विशेष कार्य के निमित्त। एक-एक विशेष कार्य के निमित्त बनी हुई हो। एक-एक कुमारी 21 कुल तारने वाली हैं। जब भी जहाँ भी आर्डर मिले तो हाजिर। ऐसे निर्विघ्न सेवाधारी हो ना! जिस समय जो भी सेवा मिले, हाजिर। सेवा करना अर्थात् प्रत्यक्ष फल खाना। जब प्रत्यक्षफल मिल जाता है, तो फल खाने से शक्ति आती है। प्रत्यक्षफल खाने से आत्मा शक्तिशाली बन जाती है। जब ऐसी प्राप्ति हो तो करनी चाहिए ना। लौकिक में तो एक मास नौकरी करेंगे फिर पीछे तनख्वाह मिलेगी। यहाँ तो प्रत्यक्षफल मिलता है। भविष्य तो जमा ही होता है लेकिन वर्तमान में भी मिलता है। तो ऐसे डबल फल मिलने वाला कार्य तो पहले करना चाहिए ना! कईयों को बापदादा, दादी-दीदी डायरेक्शन देते हैं सर्विस करो, श्रीमत पर करने से जिम्मेवार खुद नहीं रहते। अपने मन के लगाव से, कमजोरी से करते तो श्रेष्ठ नहीं बन सकते। ट्रायल में स्वयं भी सन्तुष्ट रहें और दूसरों को भी करें तो सर्टिफिकेट मिल जाता है। अपने को मिलाकर चलने का लक्ष्य हो। मुझे बदलना है। स्वयं को बदलने की भावना वाला सभी बातों में विजयी हो जाता है। दूसरा बदले यह देखने वाला धोखा खा लेते हैं इसलिए सदैव मुझे बदलना है, मुझे करना है, पहले हर बात में स्वयं को आगे करना है, अभिमान में नहीं - करने में आगे करो तो सफलता ही सफलता है।
पार्टियों से मुलाकात:- बापदादा ने बच्चों की विशेषता के गुण तो सुना ही दिये। जो बापदादा के समान सेवाधारी हैं उन बच्चों को बापदादा सदा कहाँ रखते हैं? (नयनों में) नयन सारे शरीर में सूक्ष्म हैं और नयनों में भी जो नूर है वह कितना सूक्ष्म है, बिन्दी है ना। तो बाप के नयनों में समाने वाले अर्थात् अति सूक्ष्म। अति न्यारे और बाप के प्यारे। ऐसे ही अनुभव करते हो ना। बहुत अच्छा चांस ड्रामा अनुसार मिला है। क्यों अच्छा कहते हैं? क्योंकि जितना बिजी रहेंगे उतना ही मायाजीत हो जायेंगे। बिजी रहने का अच्छा साधन मिला है ना। सेवा बिजी रहने का साधन है। चाहे किसी भी समय माया का विघ्न आया हुआ है लेकिन जब सेवा वाले सामने आयेंगे तो अपने को ठीक करके उनकी सेवा करेंगे। क्या भी होगा, तैयार होकर के ही मुरली सुनायेंगे ना! और सुनाते सुनाते स्वयं को भी सुना लेंगे। दूसरों की सेवा करने से स्वयं को भी मदद मिल जाती है इसलिए बहुत-बहुत श्रेष्ठ साधन मिला हुआ है। एक होता है अपना पुरुषार्थ करना, एक होता है दूसरे के सहयोग का साधन। तो डबल हो गया ना। प्रवृत्ति सम्भालते सेवा की जिम्मेवारी सम्भाल रहे हो, यह भी डबल लाभ हो गया। यह तो रास्ते चलते खुदा दोस्त द्वारा बादशाही मिल गई। डबल प्राप्ति, डबल जिम्मेवारी, लेकिन डबल जिम्मेवारी होते भी डबल लाइट समझने से कभी लौकिक जिम्मेवारी थकायेगी नहीं क्योंकि ट्रस्टी हो ना। ट्रस्टी को क्या थकावट। अपनी गृहस्थी, अपनी प्रवृत्ति समझेंगे तो बोझ है। अपना है ही नहीं तो बोझ किस बात का। पाण्डवों को कभी लौकिक व्यवहार, लौकिक वायुमण्डल में बोझ तो नहीं लगता? बिल्कुल न्यारे और प्यारे। बालक सो मालिक, ऐसा नशा रहता है? मालिकपन का नशा बेहद का है। बेहद का नशा बेहद चलेगा और हद का नशा हद तक चलेगा। सदा इस बेहद के नशे को स्मृति में लाओ कि क्या-क्या बाप ने दिया है, उस दिये हुए खजाने को सामने लाते हुए फिर अपने को देखो कि सर्व खजानों से सम्पन्न हुए हैं? अगर नहीं तो कौन सा खजाना और क्यों नहीं धारण हुआ है, फिर उसी प्रमाण से देखो और धारण करो। समय कौन सा है? बाप भी श्रेष्ठ, प्राप्ति भी श्रेष्ठ और स्वयं भी। जहाँ श्रेष्ठता है वहाँ जरूर प्राप्ति है ही। साधारणता है तो प्राप्ति भी साधारण। अच्छा !
प्रश्न:-बाप को किन बच्चों पर बहुत नाज़ रहता है?
उत्तर:-
जो बच्चे कमाई करने वाले होते, ऐसे कमाई करने वाले बच्चों पर बाप को बहुत नाज़ रहता, एक-एक सेकेण्ड में पद्मों से भी ज्यादा कमाई जमा कर सकते हो। जैसे एक के आगे एक बिन्दी लगाओ तो 10 हो जाता, फिर एक बिन्दी लगाओ तो 100 हो जाता, ऐसे एक सेकण्ड बाप को याद किया, सेकण्ड बीता और बिन्दी लग गई, इतनी बड़ी कमाई अभी ही जमा करते हो फिर अनेक जन्म तक खाते रहेंगे।
 
वरदान:एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मन-बुद्धि को अनुभवों की सीट पर सेट करने वाले निर्विघ्न भव!
एकाग्रता की शक्ति सहज ही निर्विघ्न बना देती है। इसके लिए मन और बुद्धि को किसी भी अनुभव की सीट पर सेट कर दो। एकाग्रता की शक्ति स्वत: ही एक बाप दूसरा न कोई - यह अनुभूति कराती है। इससे सहज ही एकरस स्थिति बन जाती है। सर्व के प्रति कल्याण की वृत्ति रहती है, एकाग्रता के अभ्यास से भाई-भाई की दृष्टि रहती है। उसे कभी भी कोई कमजोर संस्कार, कोई आत्मा वा प्रकृति, किसी भी प्रकार की रॉयल माया अपसेट नहीं कर सकती।
स्लोगन:सेकण्ड में विस्तार को सार में समाने का अभ्यास ही अन्तिम सर्टीफिकेट दिलायेगा।
 
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Details ( Page:- Murali 27-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY 
27.11.17Pratah Murli Om Shanti Bapdada Madhuban
Mithe bacche-Baap ki gati sadgati karne ki mat wa raye sabse nyari hai,isiliye gaate hain teri gat mat tum he jano,wo swayang apni mat dete hain.
Q- Brahmakumar kumari kehelane ke adhikari kaun? unka swabhav kaisa hoga?
A- Jo Baap samaaan mithe aur pyare hain,jo kabhi matbhed me nahi aate,wohi Brahmakumar kumari kehelane ke adhikari hain.B.K ka swabhav bahut-bahut mitha hona chahiye.Andar zara bhi kadwapan athawa deha-abhimaan na ho.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
 1)Aapas me raye kar bihang marg ki seva karni hai.Kabhi matbhed me nahi aana hai.
2)Teacher ban sabhi ko alf ki pehechan deni hai.Chadhti kala aur utarti kala ka raaz samjhana hai.Gyan ki paheliyan poochkar satyata ko siddh karna hai.
Vardaan:- Mallikpan ki smruti dwara parvas sthiti ko samapt karne wale Sada Samarth bhava.
Slogan:- Vardano ki shakti zama kar lo to paristhiti roopi aag bhi paani ban jayegi.
 
HINDI DETAILs MURALI
27/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' Madhuvan
''मीठे बच्चे - बाप की गति सद्गति करने की मत वा राय सबसे न्यारी है, इसलिए गाते हैं तेरी गत मत तुम ही जानो, वह स्वयं अपनी मत देते हैं"
 
प्रश्न:ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाने के अधिकारी कौन? उनका स्वभाव कैसा होगा?
उत्तर:
जो बाप समान मीठे और प्यारे हैं, जो कभी मतभेद में नहीं आते, वही ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाने के अधिकारी हैं। बी.के. का स्वभाव बहुत-बहुत मीठा होना चाहिए। अन्दर जरा भी कडुवापन अथवा देह-अभिमान न हो।
 
गीत:-  ओम् नमो शिवाए...   ओम् शान्ति।
 
सब सेन्टर्स के नूरे रत्नों को बेहद का बाप समझा रहे हैं, सेन्टर्स वाले बच्चे समझेंगे और सुन सकेंगे कि बाप क्या समझाते हैं। देखो, इस दुनिया में हर एक को हर एक के लिए ऩफरत है। गोरों को कालों के लिए ऩफरत है। समझते हैं यह हमारे गांव से निकल जायें इतनी ऩफरत आती है। इतने धर्म वाले हैं, सब एक दो से लड़ते झगड़ते रहते हैं। यह है ही रावण का राज्य, उनका अब अन्त है। मनुष्य तो जानते नहीं, पुकारते रहते हैं कि हे पतित-पावन, दु:ख हर्ता सुख कर्ता, हे लिबरेटर आओ। दु:ख तो सबको है ही। बुद्धि भी कहती है कि इनको हेविन तो नहीं कहेंगे। स्वर्ग ही सबको याद आता है, तो जरूर अभी नर्क है। नई दुनिया थी जरूर, फिर वह शान्ति के बाद सुख की दुनिया आयेगी जरूर। वहाँ इस दु:खधाम का नाम निशान नहीं होगा। अभी फिर सुख-शान्ति का नाम निशान नही है। 5 हज़ार वर्ष पहले सुखधाम था। बाकी सब आत्मायें शान्तिधाम में रहती थी। यह भी तुम अब समझते हो जबकि तुमको परमपिता परमात्मा ने समझाया है। कहते भी हैं शल तुमको ईश्वर समझ देवे। ऐसे नहीं कहेंगे कि ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अच्छी मत दें। ईश्वर का ही नाम लेते हैं। तो जरूर है कोई। इस समय ईश्वर ने ही मत दी होगी और साकार में ही आकर दी होगी। लिखा हुआ है श्रीमत भगवानुवाच सिर्फ नाम कृष्ण का डाल दिया है। वास्तव में है निराकार भगवान की मत। तो जरूर नई दुनिया स्थापन हुई होगी। भगवान ने तो सारी दुनिया में फेरा नहीं लगाया होगा? न सारी दुनिया आ सकती है। न भगवान सबके पास जा सकता है। न सब परमात्मा के सम्मुख हो सकते हैं। कितने ढेर मनुष्य हैं। कोई बड़ा आदमी आता है, उनको भी कोई सब थोड़ेही देख सकेंगे। इतनी सब मनुष्यात्माओं को बाप आकर गति वा सद्गति देते हैं। शान्तिधाम और सुखधाम अलग-अलग हैं। सुखधाम में अशान्ति नहीं होती। दु:खधाम में फिर शान्ति नहीं होती। यह सब बातें बाप समझाते हैं, जो कोई शास्त्र में नहीं होंगी। भगवान को कहा जाता है नॉलेजफुल, वह सब कुछ जानते हैं। उनकी गति वा सद्गति की मत सबसे न्यारी है। गाते भी हैं हे प्रभू तुम्हरी गत मत तुम ही जानो। जब तुम बताओ तब ही हम जानें। तो जरूर उनको आना पड़े, नहीं तो सद्गति कैसे दे। सर्व का सद्गति दाता और सर्व का बाप वह है। सब आपस में भाई-भाई हैं, न कि बाप ही बाप हैं। यह समझ की बात है। परन्तु आसुरी मत ने जो सुनाया वह मान लिया। सब आसुरी मत के अधीन हैं। तुम्हारे पास अब कितनी रोशनी है। यह लक्ष्मी-नारायण जो इतनी ऊंच सद्गति को पाये हुए हैं, उन्हों में भी यह नॉलेज नहीं रहती। त्रिकालदर्शी बाप है, उन द्वारा यह राज्य पाया है। बाप किन्हों को आकर त्रिकालदर्शी बनाते हैं? जरूर बच्चों को ही बनायेंगे। सगे बच्चों को सिखायेंगे फिर उन द्वारा और सीखेंगे। बाप का बच्चा ब्रह्मा। ब्रह्मा के बच्चे तुम ब्राह्मण। विष्णु वा शंकर के बच्चे नहीं कहा जाता। गायन है प्रजापिता ब्रह्मा तो यह ब्रह्मा भी पिता, शिव भी पिता। दोनों बाप ठहरे। जरूर ब्रह्मा द्वारा ही सृष्टि रचेंगे। गायन भी है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों की स्थापना। अनेक धर्म मनुष्यों के हैं तो एक धर्म भी मनुष्यों का था। मनुष्यों की बात है। जानवरों की तो हो न सके। बाबा ने समझाया है पहला प्रश्न पूछो कि पतित-पावन कौन? परमपिता परमात्मा या गंगा जल? एक फैंसला करो। फिर इतने मेले आदि पर जो भटकते हैं, उनसे छूट जायेंगे। कहते हैं पतित-पावन, तो बुद्धि ऊपर जाती है। पतित-पावनी गंगा कहने से फिर बुद्धि पानी की तरफ चली जाती है। ज्ञान अमृत नाम सुना है तो गंगाजल को अमृत समझते हैं। तो सबसे मुख्य प्रश्न यह है।
बाबा युक्तियां बहुत बताते हैं परन्तु किसको याद भी पड़े। बच्चे लिखते हैं बहुत प्रभावित हुआ परन्तु बुद्धि में बैठा कुछ भी नहीं। सिर्फ इतना समझते हैं ब्रह्माकुमारियां अच्छा रास्ता बताती हैं। घर गये खलास इसलिए प्रदर्शनी में जब आते हैं तो एक-एक बात पर अच्छी तरह समझाकर लिखाना चाहिए। सैकड़ों आते हैं, कोई की बुद्धि में एक बात भी नहीं ठहरती। बाबा के पास ऐसा समाचार नहीं आता है कि इन-इन मुख्य बातों पर भाषण किया। यह स्कूल है, टीचर पूछता है तो स्टूडेन्ट को जवाब देना पड़ता है। तुम टीचर होकर पूछेंगे तो जवाब देंगे। बच्चे बहुत खुश होते हैं। तुम बच्चे उतरती कला और चढ़ती कला पर भी समझाते हो। कोई मुक्ति में गये, कोई जीवनमुक्ति में गये, सबका भला हो गया। सबकी चढ़ती कला हो गई। अब फिर उन सतोप्रधान सतयुग वालों को तमोप्रधान में नीचे जरूर आना है। तो यह भी दिखाना पड़े कि द्वापर से उतरती कला होती है। चढ़ती कला, उतरती कला का भी स्लाइड है। परन्तु बच्चे समझाते नहीं। हर एक बात पूछना चाहिए यह पढ़ाई है, टीचर होकर बैठना चाहिए। बाकी भाषण किया, स्टेज पाट्री बना, यह तो कामन है। यहाँ तो हर एक बात पूछनी है। सर्व का सद्गति दाता, पतित-पावन बाप एक है वा सर्वव्यापी है? अगर सर्वव्यापी है तो फिर बाप कैसे ठहरा? बताओ, पतित-पावन, ज्ञान का सागर गीता का भगवान है या श्रीकृष्ण? भगवान किसको कहेंगे? जरूर निराकार को कहेंगे। इस हिसाब से गीता खण्डन हो गई। गीता माई बाप खण्डन तो सब शास्त्र खण्डन हो गये। तुम सिद्धकर बताओ कि सारी दुनिया झूठी है, सब पत्थरबुद्धि हैं। पारसबुद्धि होते ही हैं सतयुग में। पत्थरबुद्धि हैं तब तो बाबा आकर पारसबुद्धि बनाते हैं। जो पारसबुद्धि थे वही आकर पत्थरबुद्धि बने हैं, जबकि सृष्टि का भी अन्त है। बीच के टाइम में हम कह नहीं सकते कि तुच्छ बुद्धि वा तमोप्रधान हैं। पिछाड़ी में सब तमोप्रधान बनते हैं। क्रिश्चियन धर्म आया तो ऐसे नहीं कहेंगे कि तमोगुणी थे। नहीं। उनको भी सतो, रजो, तमो से पास करना है। इस समय सारा झाड जड़जड़ीभूत है। इनका विनाश होना है। इस पर अच्छी रीति भाषण करना है। ऐसे नहीं जो आया सो बोल दिया। बड़े अक्षरों में यह पहेली लगा दो, जो सब पढ़ें कि गीता का भगवान पुनर्जन्म रहित, ज्ञान सागर परमपिता परमात्मा या श्रीकृष्ण? भगवान ने ही गीता रची और पतितों को पावन बनाया। याद भी उनको करते हैं। अब कृष्ण की आत्मा भी पावन बन रही है। इस बात को उठाते नहीं हैं। 5 विकारों के डायलाग बहुत करते हैं। विहंग मार्ग की सर्विस करनी चाहिए। अपने को अक्लमंद बहुत समझते हैं परन्तु ख्याल करना चाहिए कि अक्लमंद कैसे हो सकते हैं? अभी तो कच्चे हैं। हर एक मर्चेन्ट, हर एक धर्म वालों को तुम्हें अलग-अलग निमंत्रण देना है। रामकृष्ण वालों का बड़ा मठ है। हरिजन की भी एसोशियेसन है, उनके जो मुख्य हैं सबको निमंत्रण देकर बुलाना चाहिए। ऐसे काम करने वाले कोई हों जो इसमें लगे रहें। आपस में राय करनी चाहिए। बाप श्रीमत देते हैं। मुख्य प्रोब की बात उठानी है। तुम माताओं को अच्छी तरह ललकार करनी चाहिए। कमजोर नहीं बनना चाहिए। लेकिन कई ब्राह्मणों की भी आपस में नहीं बनती है। मतभेद के कारण आपस में बात भी नही करते हैं। देह-अभिमान बहुत है। रामराज्य में जाने के लिए तो लायक बनना पड़े ना। यह है ईश्वरीय राज्य, इसमें आसुरी स्वभाव वाले रह न सकें। उनको बी.के. कहलाने का भी हक नहीं है। बाप कितना मीठा प्यारा है, तो बाप समान बनना चाहिए। कोई-कोई बच्चे कितने कड़ुवे बन पड़ते हैं। बाप कहते हैं यह तो जंगली कांटे हैं। तो एक-एक बात पर अच्छी तरह पूछकर फिर लिखाना चाहिए। पतित-पावन परमात्मा या गंगा? सर्व का सद्गति दाता परमपिता परमात्मा या पानी की गंगा? ऐसे चित्र बनाने चाहिए। प्रोजेक्टर में भी पहेलियां आ सकती हैं। अब जज़ करो गीता का भगवान कौन? बाप तो डायरेक्शन देते हैं। पहली मूल बात सिद्ध करो। अल्फ को जाना तो सब कुछ जान जायेंगे। बीज को जानने से झाड़ को जान जायेंगे। तुम बच्चों को बहुत मेहनत करनी है, सिर्फ कहते हैं बी.के. बहुत अच्छी सर्विस कर रही हैं, मनुष्यों को लाभ लेना चाहिए। आता एक भी नहीं है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) आपस में राय कर विंहग मार्ग की सेवा करनी है। कभी मतभेद में नहीं आना है।
2) टीचर बन सभी को अल्फ की पहचान देनी है। चढ़ती कला और उतरती कला का राज़ समझाना है। ज्ञान की पहेलियां पूछकर सत्यता को सिद्ध करना है।
 
वरदान:मालिकपन की स्मृति द्वारा परवश स्थिति को समाप्त करने वाले सदा समर्थ भव!
जो सदा मालिकपन की स्मृति में स्थित रहते हैं - उनके संकल्प आर्डर प्रमाण चलते हैं। मन, मालिक को परवश नहीं बना सकता। ब्राह्मण आत्मा कभी अपने कमजोर स्वभाव-संस्कार के वश नहीं हो सकती। जब स्वभाव शब्द सामने आये तो स्वभाव अर्थात् स्व प्रति व सर्व के प्रति आत्मिक भाव, इस श्रेष्ठ अर्थ में टिक जाओ और जब संस्कार शब्द आये तो अपने अनादि और आदि संस्कारों को स्मृति में लाओ तो समर्थ बन जायेंगे। परवश स्थिति समाप्त हो जायेगी।
 
स्लोगन:वरदानों की शक्ति जमा कर लो तो परिस्थिति रूपी आग भी पानी बन जायेगी।
 
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य

 
1- ओम् रटो माना ओम् जपो, जिस समय हम ओम् शब्द कहते हैं तो ओम् कहने का मतलब यह नहीं कि ओम् शब्द का उच्चारण करना है सिर्फ ओम् कहने से कोई जीवन में फायदा नहीं। परन्तु ओम् के अर्थ स्वरूप में स्थित होना, उस ओम् के अर्थ को जानने से मनुष्य को वो शान्ति प्राप्त होती है। अब मनुष्य चाहते तो अवश्य हैं कि हमें शान्ति प्राप्त होवे। उस शान्ति स्थापन के लिये बहुत सम्मेलन करते हैं परन्तु रिजल्ट ऐसे ही दिखाई दे रही है जो और अशान्ति दु:ख का कारण बनता रहता है क्योंकि मुख्य कारण है कि मनुष्यात्मा ने जब तक 5 विकारों को नष्ट नहीं किया है तब तक दुनिया पर शान्ति कदाचित हो नहीं सकती। तो पहले हरेक मनुष्य को अपने 5 विकारों को वश करना है और अपनी आत्मा की डोर परमात्मा के साथ जोड़नी है तब ही शान्ति स्थापन होगी। तो मनुष्य अपने आपसे पूछें मैंने अपने 5 विकारों को नष्ट किया है? उन्हों को जीतने का प्रयत्न किया है? अगर कोई पूछे तो हम अपने 5 विकारों को वश कैसे करें, तो उन्हों को यह तरीका बताया जाता है कि पहले उन्हों को ज्ञान और योग का वास धूप लगाओ और साथ में परमपिता परमात्मा के महावाक्य हैं - मेरे साथ बुद्धियोग लगाए मेरे बल को लेकर मुझ सर्वशक्तिवान प्रभु को याद करने से विकार हटते रहेंगे। अब इतनी चाहिए साधना, जो खुद परमात्मा आकर हमें सिखाता है।
 
'परमात्मा की सद्गति करने की गत मत परमात्मा ही जानता है'
 
तुम्हारी गत मत तुम ही जानो... अब यह महिमा किसकी यादगार में गाते हैं? क्योंकि परमात्मा की सद्गति करने की जो मत है वो तो परमात्मा ही जानता है। मनुष्य नहीं जान सकता, मनुष्य की सिर्फ यह इच्छा रहती है कि हमको सदा के लिये सुख चाहिए, मगर वो सुख कैसे मिले? जब तक मनुष्य अपने 5 विकारों को भस्म कर कर्म अकर्म नहीं बनाये तब तक वो सुख मिल नहीं सकता, क्योंकि कर्म अकर्म विकर्म की गति बहुत गहन है जिसको सिवाए परमात्मा के और कोई मनुष्य आत्मा उसकी गति को नहीं जान सकता। अब जब तक परमात्मा ने वो गति नहीं सुनाई है तब तक मनुष्यों को जीवनमुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती, इसलिए मनुष्य कहते हैं तेरी गत मत तुम ही जानो। इनकी सद्गति करने की मत वो परमात्मा के पास है। कैसे कर्मों को अकर्म बनाना है, यह शिक्षा देना परमात्मा का काम है। बाकी मनुष्यों को तो यह ज्ञान नहीं, जिस कारण वो उल्टा कार्य करते रहते हैं, अब मनुष्य का पहला फर्ज़ है अपने कर्मों को सुधारना, तब ही मनुष्य जीवन का पूरा लाभ उठा सकेंगे। अच्छा।
 
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Details ( Page:- Murali 28-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY 
28.11.17Pratah Murli Om Shanti Bapdada Madhuban
Mithe bacche -Tumhe is rudra gyan yagyan ka bada kadar hona chahiye kyunki is yagyan se he Bharat swarg banta hai,tum is yagyan ke rakshak ho.
Q.1-Bacche,Baap wa teacher ko talaak athawa farkati kaise aur kab dete hain?
Ans .1.- Jab Baap athawa teacher ko bhool jaate hain,murli miss karte hain,padhte wa soonte nahi hai to goya Baap ko farkati wa talaak de dete hain.Baba kehte bacche tum mujhe talaak kabhi nahi dena.
Q.2-Tumhara satya gyan manushyo ko muskil samajh me aata hai,kyun?
Ans.2.- Kyunki yah gyan parampara nahi chalta hai.Abhi he praya loup ho jata hai.Is gyan ka kisko pata he nahi hai.Yah naya gyan hai isiliye unhe samajhne me muskil lagta hai.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Maya ke toofano me kabhi murjhana nahi hai.Sadev khushi me rehna hai.
2)Humko nirakar Baap padhate hain,is nashe me rehna hai.Is jhooti duniya me koi bhi kaamna nahi rakhni hai.
Vardan:-Double light sthiti dwara udti kala ka anubhav karne wale Sarv Aakarshan mukt bhava.
Slogan:Sneh ka chumbak bano to glani karne wale bhi samip aakar sneh ke puspo ki varsha karenge.
 
 
HINDI DETAILs MURALI
28/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' Madhuvan
 
''मीठे बच्चे - तुम्हें इस रुद्र ज्ञान यज्ञ का बड़ा कदर होना चाहिए क्योंकि इस यज्ञ से ही भारत स्वर्ग बनता है, तुम इस यज्ञ के रक्षक हो''
 
प्रश्न:बच्चे, बाप वा टीचर को तलाक अथवा फारकती कैसे और कब देते हैं?
 
उत्तर:
जब बाप अथवा टीचर को भूल जाते हैं, मुरली मिस करते हैं, पढ़ते वा सुनते नहीं हैं तो गोया बाप को फारकती वा तलाक दे देते हैं। बाबा कहते बच्चे तुम मुझे तलाक कभी नहीं देना।
 
प्रश्न:तुम्हारा सत्य ज्ञान मनुष्यों को मुश्किल समझ में आता है, क्यों?
उत्तर:
क्योंकि यह ज्ञान परम्परा नहीं चलता है। अभी ही प्राय:लोप हो जाता है। इस ज्ञान का किसको पता ही नहीं है। यह नया ज्ञान है इसलिए उन्हें समझने में मुश्किल लगता है।
 
गीत:-पितु मात सहायक .....  ओम् शान्ति।
 
जिसके साथ बच्चों का अभी योग है उनकी बाहर मनुष्य महिमा गाते रहते हैं। तुम उनकी याद में बैठे हो। अपने को आत्मा समझ देह का अभिमान छोड़ एक की ही याद में रहना है। अभी तुम आत्म-अभिमानी बने हो। पहले थे देह-अभिमानी। सतयुग में तुम बाप को नहीं जानते क्योंकि सुख में होते हो तो बाप याद नहीं रहता। यहाँ दु:खों में हो तब पुकारते हो। गायन भी है दु:ख हर्ता - सुखकर्ता। वास्तव में सच्चा-सच्चा हरिद्वार यह है। मनुष्य हरी कहते हैं कृष्ण को, बैकुण्ठ को कृष्ण का हरी द्वार कहते हैं। तुम जानते हो वास्तव में हरी कृष्ण को नहीं कहेंगे। दु:ख हरने वाले को हरी कहेंगे। तुम जानते हो शिवबाबा कृष्ण का द्वार अथवा बैकुण्ठ, सतयुग का द्वार खोलने आया है। कोई मकान बनाते हैं तो कोई ओपनिंग सेरीमनी करते हैं ना। तो बाबा आया है हरी द्वार की सेरीमनी करने। कृष्ण की राजधानी में कंस तो होता नहीं है। बाप द्वारा हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। बाप ही आकर स्वर्ग के स्थापना की सेरीमनी कर रहे हैं। स्थापना को सेरीमनी कहा जाता है। मकान का पहला फाउन्डेशन लगाया जाता है फिर मकान बनकर पूरा होता है फिर सेरीमनी की जाती है। तो बाप फाउन्डेशन लगाने आया है। 1937 में फाउन्डेशन लगाया, अब फिर तुम स्थापना कर रहे हो। तुमको खुशी है कि बाबा आया है नई दुनिया स्थापन करने और हम नई दुनिया में जा रहे हैं। इस पृथ्वी पर स्वर्ग था, अब फिर स्थापन कर रहे हैं। हर एक को पैगाम दे रहे हैं। धर्म स्थापक को पैगम्बर कहा जाता है ना। सच्चा-सच्चा पैगाम मैं ही देता हूँ। मैं ही राजयोग सिखला कर स्वर्ग की स्थापना करा रहा हूँ। बाप समझाते हैं कि मैं वेद-शास्त्रों से नहीं मिलता हूँ। यह सब भक्ति मार्ग के शास्त्र हैं। भक्तिमार्ग की बहुत सामग्री है। जन्म-जन्मान्तर से तुम भक्ति करते आये हो। अब ज्ञान सुनो फिर सतयुग में ज्ञान नहीं सुनेंगे। कहा जाता है ज्ञान अंजन सतगुरू दिया। सतयुग में अंधकार है नहीं जो भक्ति करें। बाप से ज्ञान लो फिर भक्ति नहीं रहेगी।
तुम जानते हो रावण राज्य किसको कहा जाता है, रामराज्य किसको कहा जाता है। तुमको सारी रोशनी मिली है क्योंकि बाप जगाते हैं। अब देखो दीपावली मनाते हैं, उसमें दीपक कोई छोटे, कोई बड़े बनाते हैं। अब यह छोटे बड़े दीपक जग रहे हैं ना, ज्ञान का घृत मिल रहा है। मनुष्य मरते हैं तो दीपक में घृत डालते रहते हैं कि प्राणी अन्धियारे में ठोकरे न खाये। वह हैं हद की बातें, तुम्हारी हैं बेहद की बातें। जब रावणराज्य शुरू होता है तो ठोकरें खाना शुरू होती हैं। अभी दिन प्रतिदिन अधिक ही ठोकरें खाते रहते हैं। पहले एक की भक्ति करते अब तो मनुष्यों की, टिवाटे की भक्ति करते हैं। भक्ति की बहुत सामग्री है, जितनी वृक्ष की सामग्री है। बीज से कितना बड़ा वृक्ष निकलता है, भक्ति भी इतनी है। ज्ञान है बीज, यह सृष्टि तो अनादि अविनाशी है। इनका कब विनाश नहीं होता। यह सृष्टि चक्र लगाती रहती है। बीज भी एक है तो झाड़ भी एक है। ऐसे नहीं आकाश में, पाताल में, सूर्य में, चांद में दुनिया है। यह तो साइंस वाले चन्द्रमा में जाकर रहने की कोशिश करते हैं। परन्तु यह नहीं जानते कि साइंस से सारी दुनिया का विनाश होना है और राज्य तुम ले लेंगे। तुम कहेंगे यह भी ड्रामा में नूंध है। दूसरे इन बातों को समझेंगे नहीं। राजाई तुमको मिलनी है क्योंकि कनेक्शन है कृष्णपुरी और क्रिश्चियनपुरी का। इन्होंने भारतवासियों को आपस में लड़ाकर कृष्णपुरी को क्रिश्चियनपुरी बनाया। अब बाप कहते हैं हिसाब लेना है, इनको आपस में लड़ाकर माखन तुमको देते हैं अथवा तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं। यह आपस में लड़ेंगे जरूर। वह समझते हैं हम पहलवान, वह कहते हैं हम पहलवान, हम जीतेंगे लेकिन सबसे पहलवान तो तुम निकल पड़े हो। जीत तुम्हारी होनी है। महावीर और महावीरनी कहा जाता है। बाप कहते हैं माया के तूफान तो आयेंगे परन्तु कर्म में नहीं आना। योगबल से स्थापना हो रही है और बाहुबल से विनाश हो रहा है। उठते-बैठते, चलते-फिरते बाप को याद करना है, इसको कहा जाता है योगबल। फिर ज्ञान बल कहा जाता है। ज्ञान बल क्यों कहा जाता है? क्योंकि शास्त्रों में बल नहीं हैं। उनसे कोई को मुक्ति-जीवनमुक्ति नहीं मिल सकती, इसलिए उनको ज्ञान नहीं कहा जाता। भक्ति के शास्त्र कहेंगे। ज्ञान का कोई शास्त्र होता नहीं। अब जो राम के पुस्तक बने हैं वा जो भी शास्त्र आदि हैं, सब लड़ाई में खत्म हो जायेंगे। झूठी गीता, सच्ची गीता सब खत्म हो जायेगी क्योंकि सद्गति मिल जाती है। सब कामनायें पूरी हो जाती हैं। कोई कामना रहेगी नहीं। अब तुम 84 के चक्र को जानते हो। तुम अभी बेअन्त नहीं कहेंगे। बेअन्त कहते हैं नास्तिक। कहते हैं गॉड फादर परन्तु नाम रूप देश काल कर्तव्य को नहीं जानते। तुम उनके नई दुनिया की स्थापना, पतितों को पावन करने के कर्तव्य को जान गये हो। मनुष्य तो रावण को जलाते हैं। तुमको तो अब हंसी आती है। जन्म-जन्मान्तर तुम भी रावण को जलाते थे। अभी तो रावणराज्य का विनाश होना है फिर आती है दीपावली। वहाँ घोर सोझरा है, उसको रामराज्य कहते हैं। कहते तो सब हैं कि रामराज्य चाहिए। परन्तु रामराज्य को जानते नहीं। अभी तुमको ज्ञान मिल रहा है और रावणराज्य ट्रांसफर होना है रामराज्य में। उससे पहले तुम जायेंगे रूद्रमाला में। और यह जो इस्लामी, बौद्धियों की आत्मायें हैं, वह आधाकल्प मुक्ति में रहेंगी। जब हमारी सतयुग की प्रालब्ध पूरी होगी तब भक्ति शुरू होगी। फिर द्वापर को रावणराज्य कहा जाता है क्योंकि अपने देवता धर्म को भूल गये हैं। यह होना है जरूर। मिसाल बड़ के झाड़ का देते हैं। बच्चे जानते हैं कि आदि सनातन देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन प्राय:लोप हो चुका है। सब धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो गये हैं। जब देवी देवता धर्म स्थापन हो तब यह सब धर्म विनाश हो जाएं। कहते भी हैं अनेक अधर्म विनाश, एक सत धर्म की स्थापना हो। यहाँ वर्सा पाने का तुम पुरूषार्थ कर रहे हो। जो धारणा करेंगे करायेंगे, वह ऊंच पद पायेंगे। बाप कहते हैं मुख्य बात जरूर धारण करो कि हमको निराकार बाप पढ़ाते हैं। कृष्ण नहीं पढ़ाते हैं। चित्र भी बनाया है - एक तरफ कृष्ण का चित्र, दूसरे तरफ शिव का। पूछना है अब बताओ गीता का भगवान कौन? जज करो तुमको समझाने में बहुत सहज होगा कि गीता का भगवान कृष्ण नहीं शिव है। तुमको मालूम है गीता का ज्ञान फिर से बाप दे रहे हैं। गीत में भी है गीता का ज्ञान फिर से सुनाना पड़े। गीत तो तुमने नहीं बनाये हैं। बनाने वाले तो मनुष्य ही हैं, परन्तु अर्थ को नहीं जानते। कहते हैं गीता के भगवान ने ज्ञान घोड़े गाड़ी में बैठकर दिया। कृष्ण के लिए कोई घोड़े गाड़ी थोड़ेही आयेगी। अगर कृष्ण होता तो उनके लिए अच्छे से अच्छी गाड़ी ले आयें। बड़े-बड़े धनवान आ जायें। यहाँ तो देखो अपनी मोटर (शरीर) भी नहीं है। आता ही हूँ पतित शरीर में। तो गुप्त है ना। कृष्ण की तो बात नहीं। फिर तुम भक्ति मार्ग में मेरा कितना मान रखते हो। सोमनाथ का मन्दिर बनाते हो। कोई एक मन्दिर थोड़ेही होगा, अनेक होंगे फिर उन्हें लूटा भी होगा। तो सारी बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को तुम जान गये हो। बाप को कहते हैं नॉलेजफुल। तो यहाँ ज्ञान भी दिया जाता है, पढ़ाई भी पढ़ाई जाती है। ज्ञान है मनमनाभव, इससे सद्गति होती है। फिर मध्याजीभव की पढ़ाई पढ़ाते हैं। टीचर और गुरू का पार्ट इकट्ठा चलता है। सारे वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी तुमको पढ़ाते हैं।
सच्ची-सच्ची नन्स तुम हो क्योंकि तुम एक को याद करती हो। नन्स को गले में क्रास पड़ा रहता है। क्राइस्ट को याद करती हैं, समझती हैं क्राइस्ट गॉड का बच्चा था। तुम जानते हो कि क्राइस्ट कोई गॉड का बच्चा नहीं था, क्राइस्ट की आत्मा गॉड का बच्चा थी। ऐसे तो हम सभी हैं। बाप आकर 3 धर्म स्थापन करते हैं। तुम ऊंचे ते ऊंची चोटी ब्राह्मण हो क्योंकि तुम ऊंच ते ऊंच विश्व की सेवा करते हो। मनुष्य को आत्मा का ज्ञान देते हो। तुम आत्मा को बाप से वर्सा मिलता है। बरोबर बाप कल्प-कल्प के संगमयुगे वर्सा देने आते हैं। शास्त्रों में तो युगे-युगे लिख दिया है। कल्प अक्षर बीच से निकाल दिया है। उनका नाम ही है पतित-पावन। तो युगे-युगे आकर क्या करेंगे। कल्प में एक बार आकर पावन बनाकर चले जाते हैं। तो बाप कहते हैं मुझे तलाक मत देना। आजकल स्त्रियाँ पति को तलाक दे देती हैं वैसे हिन्दू नारी पति को कभी तलाक नहीं देती थी। तुमको मुरली सुननी है जरूर। मुरली नहीं सुनते हो तो गोया बाप टीचर को भूल जाते हो, यह भी जैसे तलाक हो गया। तुमको भी कितना अटेन्शन देना है। अब नापास होंगे तो कल्प-कल्पान्तर नापास होंगे। अन्त में सबको मालूम पड़ जायेगा कि किस-किस ने कितनी पढ़ाई पढ़ी थी। सब कहते हैं कि शान्ति चाहिए। गोया मुक्ति चाहते हैं। कहते हैं कि दु:ख में सिमरण सब करें... तो आधाकल्प सुख और आधाकल्प दु:ख है। सुख दु:ख का खेल भारत पर ही है। तुम तो कहेंगे हम ही देवता, हम ही क्षत्रिय..... तो हम सो का अर्थ भी तो कोई नहीं जानते हैं। तो बाप कहते हैं मनमनाभव, मध्याजीभव। खुद धारण कर औरों को धारण करायें तो अहो सौभाग्य। याद से ही विकर्म विनाश होंगे। कहाँ गंगा में स्नान करना, कहाँ योग में रह पावन बनना।
बच्चों को यज्ञ के पैसे की बहुत कदर होनी चाहिए क्योंकि इससे भारत स्वर्ग बनता है। बाप है गरीब निवाज। गरीबों की पाई-पाई पड़ेगी तब वह साहूकार बनेंगे। स्वर्ग में हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस है। अगर हेल्थ वेल्थ है तो हैपीनेस भी है। अगर हेल्थ हो वेल्थ न हो तो हैपीनेस हो नहीं सकती। सतयुग में हेल्थ वेल्थ है तो सदैव हैपी रहते हैं। वहाँ कभी रोते नहीं हैं। तो तुमको भी यहाँ रोना नहीं है। परन्तु माया के तूफान मुरझा देते हैं। हेल्थ मिलती है हॉस्पिटल से और वेल्थ मिलती है पढ़ाई से। तो देखो मेरे बच्चे कितने गरीब हैं। तीन पैर पृथ्वी में हॉस्पिटल खोल देते हैं। जहाँ से ही सबको हेल्थ वेल्थ मिलती है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) माया के तूफानों में कभी मुरझाना नहीं है। सदैव खुशी में रहना है।
2) हमको निराकार बाप पढ़ाते हैं, इस नशे में रहना है। इस झूठी दुनिया में कोई भी कामना नहीं रखनी है।
 
वरदान: डबल लाइट स्थिति द्वारा उड़ती कला का अनुभव करने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव!
अभी चढ़ती कला का समय समाप्त हुआ, अभी उड़ती कला का समय है। उड़ती कला की निशानी है डबल लाइट। थोड़ा भी बोझ होगा तो नीचे ले आयेगा। चाहे अपने संस्कारों का बोझ हो, वायुमण्डल का हो, किसी आत्मा के सम्बन्ध-सम्पर्क का हो, कोई भी बोझ हलचल में लायेगा इसलिए कहीं भी लगाव न हो, जरा भी कोई आकर्षण आकर्षित न करे। जब ऐसे आकर्षण मुक्त, डबल लाइट बनो तब सम्पूर्ण बन सकेंगे।
 
स्लोगन: स्नेह का चुम्बक बनो तो ग्लानि करने वाले भी समीप आकर स्नेह के पुष्पों की वर्षा करेंगे।
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Details ( Page:- Murali 29-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY 
29.11.17Pratah Murli Om Shanti Bapdada Madhuban
Mithe Mithe bacche-Baap jo sada sukh dete hain,roz padhate hain,gyan khazana dete hain,aise Baap ko tum bhoolo mat,shrimat par sada chalte raho.
Q- Baap ki jadoogari kaun si hai jo manushya nahi kar sakte hain?
A-Kaanto ke is jungle ko badalkar soondar phoolo ka bagicha bana dena,patit manushyo ko pawan devta bana dena-yah jadoogari Baap ki hai.Kisi manushya ki nahi.Baap he sabse bada social worker hai jo patit sarir,patit duniya me aakar sari patit duniya ko pawan banate hain.
Dharana ke liye mukhya saar:-
1)Kisi bhi prakar ki gaflat nahi karni hai.Ek do ko savdhan kar,Baap ki yaad dilaye unnati ko pana hai.Apne Ishwariya bachapan ko bhoolna nahi hai.
2)Mata-pita ko follow karte rehna hai.Maya ke toofano se darna nahi hai.Amritvele Baap ki yaad me baithkar sukh ka anubhav karna hai.
Vardan:-Dhridh sankalp roopi brat dwara apni britiyon ko parivartan karne wale Mahan Aatma bhava.
 Slogan:-Apne pavitra shrest vibration ki chamak Biswa me failana he real diamond banna hai.
 
HINDI DETAILs MURALI
29/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' Madhuvan
 
''मीठे ''मीठे बच्चे - बाप जो सदा सुख देते हैं, रोज़ पढ़ाते हैं, ज्ञान खजाना देते हैं, ऐसे बाप को तुम भूलो मत, श्रीमत पर सदा चलते रहो''
प्रश्न: बाप की जादूगरी कौन सी है जो मनुष्य नहीं कर सकते हैं?
उत्तर:
कांटों के इस जंगल को बदलकर सुन्दर फूलों का बगीचा बना देना, पतित मनुष्यों को पावन देवता बना देना - यह जादूगरी बाप की है। किसी मनुष्य की नहीं। बाप ही सबसे बड़ा सोशल वर्कर है जो पतित शरीर, पतित दुनिया में आकर सारी पतित दुनिया को पावन बनाते हैं।
गीत:-बचपन के दिन भुला न देना...  ओम् शान्ति।
 
बच्चों ने अपने लिए गीत सुना। तुम हो मात-पिता के क्षीर (मीठे) बच्चे। बाप क्षीर बच्चों को कहते हैं कि मम्मा बाबा कहकर कल भूल न जाना। अगर भूले तो वर्सा गँवा देंगे। परन्तु बच्चे सुनते हुए भी भूल जाते हैं। तो भी बाप सहज रास्ता बताते हैं। घरबार, गृहस्थ-व्यवहार आदि कुछ भी छुड़ाते नहीं हैं। कहते हैं गृहस्थी हो, चाहे बैचलर (कुमार) हो सिर्फ श्रीमत पर चलने का पुरुषार्थ करो। ऐसे बाप को कभी भूल न जाओ। बाप उल्हना देते हैं कि कोई-कोई बच्चे मम्मा बाबा कहकर फिर कभी अपना समाचार भी नहीं देते हैं। बाप से स्वर्ग की बादशाही लेते हैं फिर उनको भूल जाते हैं और नर्क की जायदाद देने वाले बाप को बहुत खुशी से चिट्ठी लिखते हैं, चिट्ठी न आये तो माँ बाप भी मूँझ जाते हैं, सोचते हैं पता नहीं बीमार है क्या? तो बेहद का बाप भी ऐसे समझते हैं कि पता नहीं बच्चों का क्या हाल है? इन्तज़ार होता है ना। वो लौकिक बच्चे तो दु:ख देने वाले भी निकल पड़ते हैं, तो भी उनसे मोह नहीं जाता। यहाँ फिर वन्डर देखो जिस बाप को कहते हैं तुम मात-पिता... सामने भी बैठे हैं। यूँ तो सब बच्चे मुरली द्वारा भी सुनेंगे। बाप जानते हैं नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कितने सपूत हैं, कितने कपूत हैं। बाबा मम्मा कहकर फिर भी छोड़ देते हैं। गीत भी कहता है ऐसे बाप को क्यों भूल जाते हो? ऐसे बाप को रोज़ चिट्ठी लिखनी चाहिए। बाप भी रोज़ खज़ाना देते हैं। रोज़ पढ़ाते भी हैं, प्यार भी देते हैं। बाप, टीचर, सतगुरू तीनों ही हैं। लौकिक बाप को तो बच्चे चिट्ठी लिखते हैं। गुरू को भी याद करते हैं। परन्तु जो सदा सुख देने वाला, सचखण्ड का मालिक बनाने वाला बाप है उनको भूल जाते हैं। चिट्ठी भी नहीं लिखते हैं। बाप को फिकर रहता है कि क्या हुआ? माया ने मार डाला वा विकार में ढकेल दिया। बाबा तो मुरली में ही बच्चों को सावधान करेंगे ना। बाबा राय देंगे कि ऐसे-ऐसे अपने को बचाते रहो क्योंकि यह है बाप का सबसे बड़ा बच्चा। सबसे आगे चल रहा है। इनके पास सब प्रकार के तूफान आदि आते हैं। महावीर, हनूमान इनको ही कहेंगे। आगे रूसतम होने के कारण माया भी रूसतम हो पहले इनसे ही लड़ेगी। बाबा कहते हैं तुमको जो तूफान आते हैं वह पहले मुझे आयेंगे। जो बाबा अनुभव भी बताते हैं। तुम कहेंगे बाबा आपको तूफान कैसे आयेंगे? आप तो बुजुर्ग हो। बाबा कहते हैं हमारे पास सब आते हैं। नहीं तो हम तुमको सावधान कैसे करें? परन्तु बच्चे बाबा को बताते ही नहीं हैं। तूफान में घुटका खाकर डूब मर जाते हैं। अपना पद भ्रष्ट कर देते हैं इसलिए बाप कहते हैं एक दो को याद दिलाते रहो - बाबा को पत्र तो लिखो। हर बात में एक दो को सावधान करो। माया बड़ी तीखी है। घूसा मार देती है।
तुम बच्चे सारी दुनिया के सच्चे सोशल वर्कर्स हो। वह हद के सोशल वर्कर हद की सेवा करते हैं, यह बाप तो सारी दुनिया का सोशल वर्कर है। सारी पतित दुनिया को पावन बनाना यह बाप के ऊपर है। बाप को ही बुलाते हैं। ऐसे बाप को बाप कह फिर बच्चे भूल जाते हैं। यह गीत भी कोई का टच किया हुआ है। जैसे कोई-कोई शास्त्र भी अच्छे बने हुए हैं जो मनुष्य अपने पास रखते हैं। यहाँ तो शास्त्र, चित्र आदि कुछ भी नहीं हैं। यह चित्र भी अपने ही बनाये हुए हैं। वह सब चित्र हैं संशयबुद्धि बनाने वाले। यह चित्र हैं निश्चयबुद्धि बनाने वाले।
दुनिया को तो यह मालूम ही नहीं कि भारत स्वर्ग था। भारत का कितना मान है। यहाँ ही शिवबाबा आते हैं। शिव को बाबा कहते हैं फिर है ब्रह्मा बाबा। विष्णु को बाबा नहीं कहेंगे। यह भी तुम बच्चे जानते हो। दुनिया के मनुष्य तो कहते हैं हे पतित-पावन आओ, हम पतित हैं आकर पावन बनाओ। परन्तु यह नहीं जानते कि वह पतित से पावन कैसे बनायेंगे। कहाँ ले जायेंगे? बस तोते के मुआफिक बोलते हैं। बिगर अर्थ कुछ भी नहीं जानते। अरे गॉड फादर कहते हो, फादर माना प्रापर्टी और किसको फादर नहीं कहा जाता। विष्णु और शंकर को भी फादर नहीं कह सकते, तो और किसी को कैसे कहेंगे। सब समझते हैं कि गॉड फादर निराकार ही है। आत्मा इस देह में आकर पुकारती है ओ गॉड फादर। बाप आकर देही-अभिमानी बनाते हैं। तुम बाप को कहते हो बाबा हमको पावन बनाओ और पावन दुनिया में ले चलो। शिवबाबा आते हैं - भारत में पवित्र प्रवृत्ति मार्ग बनाने।
बाप कहते हैं तुम प्रवृत्ति मार्ग वाले पावन थे। तुम ही चाहते हो हम पावन बनें। स्वर्ग को याद करते हो। वैकुण्ठ कहने से कृष्ण याद आता है। यह नहीं समझते कि प्रवृत्ति मार्ग के महाराजा-महारानी, लक्ष्मी-नारायण को याद करें। अब मनुष्य चाहते हैं शान्ति। यह सारी दुनिया का क्वेश्चन है। उसकी जवाबदारी बाप के ऊपर है। जब भारत नर्क हो जाता है तो उसको स्वर्ग बनाने बाप ही आते हैं। नर्क फिर कौन बनाते, कब बनाते हैं? यह कोई नहीं जानते हैं। बाप कहते हैं मैं तुमको स्वर्गवासी बनाता हूँ। स्वीट वर्ल्ड में ले जाए फिर तुमको स्वीट बादशाही में भेज देंगे। ऐसे बाप से तो रात दिन पढ़कर पूरा वर्सा लेना चाहिए। वास्तव में रात दिन कोई पढ़ाया नहीं जाता है। बाबा कहते हैं सवेरे और रात को एक घण्टा रेग्युलर पढ़ो। सवेरे का समय तो सबको मिलता है। एक सेकेण्ड की बात है। सिर्फ बाबा और वर्से को याद करना है। फिर भी तुम भूल जाते हो। फिर कहते हो बाबा हम क्या करें - याद भी बड़ी सहज है। सृष्टि चक्र का ज्ञान भी बड़ा सहज है। यह है पाप आत्माओं की दुनिया, तुमको पुण्य की दुनिया में जाना है। शिवबाबा को याद करो। गृहस्थ व्यवहार में रहने वालों के लिए भी बहुत सहज है। तो बाप बच्चों को जरूर याद करते हैं। फलाने की कभी चिट्ठी नहीं आती है, क्या हो गया है? वा जब सामने आते हैं तो पूछता हूँ - क्या बेहोश तो नहीं हो गये थे? बाप के साथ इतना लव नहीं, पाई पैसा कमाने वाले में लव चला जाता है। बाबा को समाचार देना चाहिए, बाबा हम जीते हैं, खुश हैं। औरों को भी परिचय देते रहते हैं। बाबा तो रोज़ मुरली में याद-प्यार भेजते हैं। बाकी एक-एक का नाम तो नहीं लिख सकते हैं, तो बच्चों को भी अपना समाचार देना चाहिए।
इस समय सारी दुनिया का मुँह काला हो गया है। उनको बाबा आकर गोरा बनाते हैं। बाबा भारत का मुँह फेर देते हैं। कांटों के जंगल को फूलों का बगीचा बनाते हैं। कैसा जादूगर है, स्वर्ग के बगीचे में भारत ही होता है। वहाँ यह पता नहीं रहता कि हमारे पीछे और कौन-कौन आने वाले हैं। समझते हैं बस हम ही विश्व के मालिक हैं। सतयुग को कहा जाता है गार्डन ऑफ अल्लाह। फिर जंगल कोई गॉड नहीं बनाते। वह तो रावण बनाते हैं। रावण पुराना दुश्मन है, जिसको कोई नहीं जानते हैं। बाबा पूछते हैं तुम किसकी सन्तान हो? बाबा हम ब्रह्मा के बच्चे हैं, शिवबाबा के पोत्रे हैं। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं। ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। तुम बाबा के बच्चे बने ही हो वर्सा लेने के लिए। बाबा कहते हैं याद रखना, भूलना नहीं। कहते हैं बाबा घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। अरे तुमको जो नर्कवासी बनाते हैं उनको याद करते हो और स्वर्गवासी बनाने वाले बाप को भूल जाते हो? बाप को नहीं भूलेंगे तो वर्से को भी नहीं भूलेंगे। इस समय तो बाबा हाज़िर नाज़िर है। कहते भी हैं हाजिराहजूर...वह भी गुप्त है। ऐसे नहीं कहेंगे कि हम उनको देखते हैं। आत्मा गुप्त तो बाप भी गुप्त। आत्मा शरीर में आकर बोलती है, मुझे भी शरीर चाहिए। नहीं तो आऊं कैसे? गर्भ में आऊं तो गर्भ जेल में आना पड़े। मैं गर्भ जेल में क्यों आऊं, मैंने कौन सा गुनाह किया है? गर्भ महल तो होता है स्वर्ग में। हम स्वर्ग में आकर क्या करेंगे? स्वर्ग का मालिक तो तुम बच्चों को ही बनाता हूँ। यहाँ सम्मुख बैठकर सुनने से सबको मजा आता है। यहाँ से बाहर जाने से सब कुछ भूल जाते हैं। 21 जन्मों की राजाई लेना और साधारण प्रजा में पद पाना फ़र्क तो बहुत है ना। भील लोग रोटला खाते हैं। साहूकार माल खाते हैं। फ़र्क है मर्तबे का। परन्तु दु:खी तो दोनों ही होते हैं। स्वर्ग में फिर सब सुखी होते हैं, परन्तु मर्तबा नम्बरवार है। हमको पुरुषार्थ करके ऊंच पद पाना है। मम्मा-बाबा को फालो करना है। इस समय श्रीमत मिलती है। तो मात-पिता को फालो करना पड़े। मात-पिता तो साकार में चाहिए। शिवबाबा को तो पुरुषार्थ करना नहीं है। मम्मा बाबा पुरुषार्थ कर 21 जन्मों का राज्य भाग्य लेते हैं। फिर जो अच्छा पुरुषार्थ करते हैं, वह गद्दी पर बैठते हैं। 8 पास विद आनर होते हैं। उनमें आना चाहिए। उनमें नहीं तो 108 में आओ। मार्जिन तो 16108 की भी है। 16108 की बहुत बड़ी माला होती है। उनको बैठ खींचते हैं। यहाँ माला जपने की बात नहीं है। बाप तो कहते हैं फालो करो। यह ब्रह्मा बूढ़ा पढ़कर पास हो नम्बरवन में जाता है। मम्मा जवान भी नम्बरवन में जाती है। तो तुम पुरुषार्थ क्यों नहीं करते हो। ग़फलत क्यों करते हो? बाप को पत्र भी नहीं लिखते, याद भी नहीं करते हैं। प्रण भी कर जाते हैं परन्तु बाहर गये खलास। हम कह भी देते हैं - तुम बाहर जाने से भूल जायेंगे। कहते हैं बाबा हम नहीं भूलेंगे। फिर भूल जाते हैं। वन्डर है ना। यह है बिल्कुल नई पढ़ाई जो कोई शास्त्र में नहीं है। कोई समझ नहीं सकते। अब बाबा ने दृष्टि दी है - इस अन्तिम जन्म में। बाबा सुनाते हैं - हम गीता भी पढ़ते थे। नारायण का भी पूजन करते थे। गद्दी पर भी नारायण का चित्र रखते थे (हिस्ट्री सुनाना) लक्ष्मी को कैसे मुक्त कर दिया। दुनिया वालों से बड़ा युक्ति से चलना पड़ता है। तुम भी गुप्त रीति बाबा का परिचय देते रहो कि बाप और वर्से को याद करो। स्वर्ग के हैं देवी-देवता, इसलिए लक्ष्मी-नारायण का चित्र बनाया है। पहले त्रिमूर्ति नहीं डाला था क्योंकि ब्रह्मा को देख बिगड़ जाते हैं। परन्तु ब्रह्मा बिगर काम कैसे हो। बी.के. बाप को नहीं देखेंगे तो काम कैसे होगा? बाप कहते हैं गीता में लिखा हुआ है - मनमनाभव, मध्याजी भव। चाहे मुक्ति का वा जीवन मुक्ति का दोनों वर्सा मैं दे सकता हूँ और कोई नहीं। बहुत समझने की बातें हैं। अमृतवेले उठकर विचार सागर मंथन करना है जरूर। दिन में भल काम करो परन्तु अमृतवेले 4 बजे से 5 बजे तक बैठकर याद करो तो बहुत सुख फील होगा। बाबा स्वीट होम से हम बच्चों को पढ़ाने आते हैं, फिर चले जाते हैं। कहते हैं मुझे याद करो तो खाद निकलेगी। जब सच्चा सोना बन जायेंगे तब पास विद आनर होंगे। अगर ऊंच पद पाना है तो पुरुषार्थ से क्या नहीं हो सकता है? बाप फिर भी कहते हैं - इस ईश्वरीय बचपन को नहीं भूलना। ऐसे बाप को घड़ी-घड़ी याद करना चाहिए। याद से तुम कंचन बनते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) किसी भी प्रकार की ग़फलत नहीं करनी है। एक दो को सावधान कर, बाप की याद दिलाए उन्नति को पाना है। अपने ईश्वरीय बचपन को भूलना नहीं है।
2) मात-पिता को फालो करते रहना है। माया के तूफानों से डरना नहीं है। अमृतवेले बाप की याद में बैठकर सुख का अनुभव करना है।
 
वरदान: दृढ़ संकल्प रूपी व्रत द्वारा अपनी वृत्तियों को परिवर्तन करने वाले महान आत्मा भव!
महान आत्मा बनने का आधार है - ''पवित्रता के व्रत को प्रतिज्ञा के रूप में धारण करना'' किसी भी प्रकार का दृढ़ संकल्प रूपी व्रत लेना अर्थात् अपनी वृत्ति को परिवर्तन करना। दृढ़ व्रत वृत्ति को बदल देता है। व्रत का अर्थ है मन में संकल्प लेना और स्थूल रीति से परहेज करना। आप सबने पवित्रता का व्रत लिया और वृत्ति श्रेष्ठ बनाई। सर्व आत्माओं के प्रति आत्मा भाई-भाई की वृत्ति बनने से ही महान आत्मा बन गये।
 

स्लोगन:अपने पवित्र श्रेष्ठ वायब्रेशन की चमक विश्व में फैलाना ही रीयल डायमण्ड बनना है।

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Details ( Page:- Murali 30-Nov-2017 )
HINGLISH SUMMARY 
30.11.17Pratah Murli Om Shanti Bapdada Madhuban
Mithe Mithe bacche-Ek do ko dukh dena ghost ka kaam hai,tumhe kisi ko bhi dukh nahi dena hai.Ramrajya me yah ghost (Ravan) hota nahi.
Q- Tum baccho ko kis baat me moorchit nahi hona hai,khushi me rehna hai?
A- Koi bimari adi hoti hai to moorchit nahi hona hai.Agar deha-abhimaan me latke huye hain.Apne ko aatma nahi samajhte,sara din deha me dhyan hai to jaise mare pade hain.Baba kehte bacche tum yog me raho to dard bhi kam ho jayega.Yogbal se dukh door hote hain.Bahut khushi rehti hai.Kaha jata hai apni ghot to nasha chadhe.Karm bhog ko yog se hatana hai.
Dharna Ke liye mukhya Saar:-
 1)Gyan ki boolbool ban gyan ki tiklu-tiklu kar sabko kabra se nikalna hai.Mata-pita ka show karna hai.
2)Apne andar koi bhi bhoot pravesh hone nahi dena hai.Moh ka bhoot bhi satynash kar deta hai isiliye bhooto se bachna hai.Ek Baap se buddhi yog lagana hai.
Vardaan: Brahman so Farishta so Jeevan-mukt Devta banne wale Sarv aakarshan mukt bhava.
Slogan:-- Apne sanskaro ko easy(saral) bana do to sab karya easy ho jayenge.
 
HINDI DETAILs MURALI
30/11/17 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त बापदादा'' Madhuvan
 
''मीठे "मीठे बच्चे - एक दो को दु:ख देना घोस्ट का काम है, तुम्हें किसी को भी दु:ख नहीं देना है। रामराज्य में यह घोस्ट (रावण) होता नहीं"
 
प्रश्न: तुम बच्चों को किस बात में मूर्छित नहीं होना है, खुशी में रहना है?
उत्तर:
कोई बीमारी आदि होती है तो मूर्छित नहीं होना है। अगर देह-अभिमान में लटके हुए हैं। अपने को आत्मा नहीं समझते, सारा दिन देह में ध्यान है तो जैसे मरे पड़े हैं। बाबा कहते बच्चे तुम योग में रहो तो दर्द भी कम हो जायेगा। योगबल से दु:ख दूर होते हैं। बहुत खुशी रहती है। कहा जाता है अपनी घोट तो नशा चढ़े। कर्मभोग को योग से हटाना है।
गीत:- तूने रात गँवाई.....  ओम् शान्ति।
 
यह बातें शास्त्रों में भी हैं। एक दो को समझाते भी हैं। फिर भी टाइम गंवाना छोड़ते नहीं हैं। अनेक प्रकार के गुरू लोग मत देते हैं। अच्छे-अच्छे भगत कोठरी में बैठ गऊमुख कपड़ा होता है, उसमें अन्दर हाथ डाल माला फेरते हैं। यह भी फैशन है। अब बाप कहते हैं - यह सब छोड़ो। आत्मा को सिमरण करना है बाप का। इसमें माला फेरने की बात नहीं। सबसे अच्छा गीत है शिवाए नम: का। इसमें ही आता है कि तुम मात-पिता हो। भगवान को ही रचता कहा जाता है। अब रचते क्या हैं? वह समझते हैं नई दुनिया रचते हैं। गाते हैं तुम मात-पिता, परन्तु सिर्फ गाते हैं। समझते कुछ नहीं। अब ईश्वर तो फादर ठहरा, फिर मदर भी चाहिए। मदर के सिवाए क्रियेट न कर सकें। सिर्फ यह नहीं जानते कि कैसे क्रियेट करते हैं। मात-पिता कहते हैं तो आपस में भाई बहन ठहरे। फिर विकार की दृष्टि हो न सके, जब आत्मा रूप में है तो फिर पवित्र रहने की बात भी नहीं। भाई बहन का सवाल ही नहीं। भाई-भाई हो गये। प्वाइंट बहुत अच्छी समझाई जाती है। परन्तु माया ऐसी है जो फट से गिरा देती है। जैसे त़ूफान लगते हैं तो झाड़ के झाड़ गिर पड़ते हैं, सिर्फ एक बड का झाड़ होता है वह तूफान में कभी नहीं गिरता। तो यह समझाना सहज है। सब गाते हैं तुम मात-पिता, पास्ट का गायन करते हैं, भक्ति मार्ग का। मात-पिता सृष्टि रचते हैं। उनके बालक बनते हैं तो जरूर सुख घनेरे देते होंगे। यह कोई नहीं जानते कि वह मात-पिता भी है, टीचर भी है तो गुरू भी है। महिमा तो करते हैं ना - तुम मात-पिता। तो भाई बहन हो गये। फिर तुम विकार में क्यों जाते हो? हम फिर से उनके बालक बनते हैं और जानते हैं भल घर में रहते हैं परन्तु याद उनको ही करते हैं। हम ब्रह्मा की औलाद आपस में भाई बहन हैं। कहलाते भी हैं ब्रह्माकुमार कुमारियां। ब्रह्मा को भी रचने वाला वह है। मात-पिता आकर सुख देते हैं। अब सुख घनेरे पाने के लिए मात-पिता से हम राजयोग सीख रहे हैं। सुख घनेरे तो सतयुग में होते हैं। बाप जो स्वर्ग की स्थापना करते हैं, उनसे सुख घनेरे मिलते हैं, जब हम दु:ख में हैं तब शिक्षा मिलती है - सुख में जाने की। वही मात-पिता आकर सुख देते हैं। एडम ईव तो मशहूर हैं। जरूर गॉड की सन्तान ठहरे। तो गॉड फिर कौन? यह राज्य ही रावण घोस्ट का है। परन्तु रावण क्या चीज़ है, यह नहीं जानते। अब घोस्ट (विकार) तो सबमें हैं। उनका ही राज्य चल रहा है। सिर्फ क्रोध का भूत नहीं। सब विकारों का भूत है। जैसे वो लोग कुछ छपाते हैं तो बाबा अटेन्शन देते हैं कि यह राज्य ही आसुरी घोस्ट का है। ऐसे तुम बच्चों को भी अटेन्शन दे समझाने की युक्तियां निकालनी चाहिए।
तुम जानते हो बाबा यह जो नॉलेज देते हैं - यह सब धर्म वालों के लिए है। बाकी सबका बुद्धियोग उस बाप से टूटा हुआ है। घोस्ट बुद्धियोग लगाने नहीं देते हैं और ही बुद्धियोग तोड़ देते हैं। बाबा आकर घोस्ट पर जीत पहनाते हैं। आजकल दुनिया में रिद्धि सिद्धि वाले बहुत हैं। एक दो को दु:ख देते हैं। यह है ही घोस्टों की दुनिया। काम रूपी विकार है तो एक दो को आदि-मध्य-अन्त दु:ख देते हैं। एक दो को दु:ख देना घोस्ट का काम है। सतयुग में घोस्ट होता नहीं। घोस्ट नाम बाइबिल में चला आता है। रावण माना घोस्ट। रामराज्य में घोस्ट होता ही नहीं। जयजयकार हो जाती है। वहाँ सुख घनेरे होते हैं। तो शिवाए नम: वाला गीत बहुत अच्छा है। शिव है मात-पिता। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को मात-पिता नहीं कहेंगे। शिव को ही फादर कहेंगे। एडम ईव ब्रह्मा सरस्वती तो यहाँ ही हुए हैं। वहाँ सिर्फ गॉड फादर को प्रार्थना करते हैं - ओ गॉड फादर। भारत तो मात-पिता का गाँव है। उनका जन्म यहाँ है। तो समझाना है तुम मात पिता गाते हो तो आपस में भाई बहन ठहरे। प्रजापिता ब्रह्मा ने एडाप्ट किया है। यह जो इतने ब्रह्माकुमार कुमारियां बने हैं। शिवबाबा एडाप्ट कराते जाते हैं। नई सृष्टि ब्रह्मा द्वारा ही रची जाती है। समझाने की बहुत युक्तियां हैं। परन्तु पूरा समझाते नहीं हैं। बाबा ने बहुत बार समझाया है यह शिवाए नम: का गीत बजाकर जहाँ तहाँ समझाओ। हम मात-पिता के बालक कैसे हैं। वह बैठ समझाते हैं। ब्रह्मा द्वारा नई दुनिया की स्थापना की थी। अब कलियुग का अन्त है फिर से स्थापना कर रहे हैं। बुद्धि में धारण करना है, यह नॉलेज बड़ी सहज है। माया के तूफान योग में ठहरने नहीं देते हैं। बुद्धि चक्रित हो जाती है। नहीं तो समझाना बहुत अच्छा है। पहले समझाना चाहिए रचयिता एक है, उनको सब फादर कहते हैं। वह निराकार जन्म मरण रहित है। ब्रह्मा विष्णु शंकर को सूक्ष्म चोला है। 84 जन्म मनुष्य भोगते हैं। सूक्ष्मवतन में तो नहीं भोगेंगे। तुम जानते हो हम मात पिता के नये बच्चे हैं। बाबा ने हमको एडाप्ट किया है। ब्रह्मा को तो भुजायें बहुत हैं। अर्थ तो कुछ भी नहीं समझते। जो भी चित्र आदि निकले हैं, शास्त्र निकले हैं। यह सभी ड्रामा के ऊपर आधार रखना पड़ता है। ब्रह्मा का दिन था फिर भक्ति मार्ग शुरू हुआ है। वह चला आ रहा है। यह राजयोग बाबा ही आकर सिखलाते हैं। यह स्मृति में रहना चाहिए। कहते हैं ना अपनी घोट तो नशा चढ़े। परन्तु बुद्धि का योग चाहिए - बाबा के साथ। यहाँ तो बहुतों का बुद्धियोग लटका हुआ है, पुरानी दुनिया के मित्र सम्बन्धी आदि की तरफ या देह-अभिमान में फँसे रहते हैं। थोड़ा बीमारी होती है तो मर पड़ते हैं। अरे योग में रहेंगे तो दर्द भी कम हो जायेगा। योग नहीं तो बीमारी कैसे छूटे, ख्याल करना चाहिए मात-पिता जो पावन बनते हैं, वही फिर सबसे पहले पतित भी बनते हैं, उनको बहुत भोगना भोगनी पड़ती है। परन्तु योग में रहने कारण बीमारी हट जाती है। नहीं तो उनकी भोगना सबसे जास्ती है। परन्तु योगबल से दु:ख दूर होते हैं और बहुत खुशी में रहते हैं। बाबा से हम स्वर्ग के सुख घनेरे लेते हैं। बहुत बच्चे हैं जो बीमारी में एकदम मूर्छित हो जाते हैं। सुरजीत नहीं होते, तो समझते हैं यह देह-अभिमान में लटकते रहते हैं। अपने को आत्मा समझते नहीं, सारा दिन देह में ध्यान है। जैसे मरे पड़े हैं। बाबा आकर कब्र से उठाए ज्ञान की टिकलू-टिकलू सिखाते हैं। तुम्हें ज्ञान की बुलबुल बनना है। छोटी बच्चियों को खड़ा किया है। बाहर में छोटे बच्चे मात-पिता का शो करते हैं। लोक, परलोक सुहैला होता है ना। यह भी तुम देखेंगे छोटी-छोटी बच्चियां माँ बाप को ज्ञान देंगी। कुमारी का मान होता है। कुमारी को सब नमन करते हैं। शिव शक्ति सेना में सब कुमारियां हैं। भल मातायें भी हैं परन्तु वह भी कहलाती तो कुमारी हैं ना। छोटी बच्चियां बड़ों का शो करती हैं। कोई बहुत अच्छी बच्चियां हैं परन्तु मोह है, वह सत्यानाश कर देता है। मोह बड़ा खराब है। जैसे बन्दर बन्दरी बना देता है। तुम जानते हो बन्दरी में कितना मोह होता है। यह मोह का भी भूत है। बाप से बेमुख कर देते हैं। इनसे ही अक्षर मिलते हैं मात-पिता। वास्तव में मन्दिर में राधे कृष्ण दिखाते हैं, कृष्ण के साथ राधे का नाम गीता में तो है नहीं। कृष्ण की महिमा अलग है, सर्वगुण सम्पन्न 16 कला सम्पूर्ण.. परमात्मा की महिमा अलग है। शिव की आरती में बहुत महिमा करते हैं। परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते। पूजा करते-करते थक गये हैं।
तुम जानते हो मम्मा बाबा और हम ब्राह्मण सबसे जास्ती पुजारी बने हैं। अभी फिर आकर ब्राह्मण बने हैं, उनमें भी नम्बरवार हैं। कर्म का भोग होता है, उनको योग से हटाना है। देह-अभिमान को तोड़ना है। बाबा को याद कर बहुत खुशी में रहना है। मात-पिता से हमको सुख घनेरे मिलते हैं। बाबा से वर्सा मिलता है। बाबा ने हमारा रथ लोन पर लिया है। बाबा तो इस रथ की खातिरी करेंगे। पहले तो समझता था मैं आत्मा इस रथ को खिलाता हूँ। अब कहेंगे इनको खिलाने वाला वह है। बाबा भी हमको खिलाते हैं। हम भी उनको खिलाते हैं। बाबा खुद कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में प्रवेश करता हूँ। यह अपने जन्मों को नही जानते हैं, मैं जानता हूँ। तुम कहते हो बाबा फिर हमको ज्ञान दे रहे हैं। इन द्वारा वर्सा दे रहे हैं। वर्सा लेना है सतयुग में। सतयुग में तो राजा प्रजा आदि सब हैं। पुरुषार्थ करना है बाप से पूरा वर्सा लेने का। अगर अब नहीं लेंगे तो कल्प-कल्प मिस करते रहेंगे। इतना ऊंच पद पा नहीं सकेंगे। जन्म जन्मान्तर की बाजी है। तो कितना श्रीमत पर चलना चाहिए। कल्प-कल्प के लिए पढ़ाई है। इसमें बहुत ध्यान रखना पड़े। 7 रोज़ लक्ष्य ले फिर मुरली घर में भी पढ़ सकते हो। भल अमेरिका आदि की तरफ चले जाओ तो भी बाप से वर्सा ले सकते हो। सिर्फ एक हफ्ता धारणा करके जाओ। खान-पान की दिक्कत होती है। परन्तु ऐसी बहुत चीज़ें बनती हैं, डबल रोटी से जैम मुरब्बा आदि खा सकते हो। आदत पड़ जायेगी। फिर और कोई चीज़ अच्छी नहीं लगेगी। तुम सब भगवान के बच्चे हो, आपस में भाई बहन हो। ब्रह्मा के बच्चे भी भाई बहन हो। गृहस्थ में रहते भाई बहन होकर रहेंगे तब तो पवित्र रहेंगे। है बहुत सहज। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
 
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) ज्ञान की बुलबुल बन ज्ञान की टिकलू-टिकलू कर सबको कब्र से निकालना है। मात-पिता का शो करना है।
2) अपने अन्दर कोई भी भूत प्रवेश होने नहीं देना है। मोह का भूत भी सत्यानाश कर देता है इसलिए भूतों से बचना है। एक बाप से बुद्धियोग लगाना है।
 
वरदान:ब्राह्मण सो फरिश्ता सो जीवन-मुक्त देवता बनने वाले सर्व आकर्षण मुक्त भव!
संगमयुग पर ब्राह्मणों को ब्राह्मण से फरिश्ता बनना है, फरिश्ता अर्थात् जिसका पुरानी दुनिया, पुराने संस्कार, पुरानी देह के प्रति कोई भी आकर्षण का रिश्ता नहीं। तीनों से मुक्त इसलिए ड्रामा में पहले मुक्ति का वर्सा है फिर जीवनमुक्ति का। तो फरिश्ता अर्थात् मुक्त और मुक्त फरिश्ता ही जीवनमुक्त देवता बनेंगे। जब ऐसे ब्राह्मण सो सर्व आकर्षण मुक्त फरिश्ता सो देवता बनो तब प्रकृति भी दिल व जान, सिक व प्रेम से आप सबकी सेवा करेगी।
 

स्लोगन:अपने संस्कारों को इज़ी (सरल) बना दो तो सब कार्य इज़ी हो जायेंगे।

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